भारत भूमि
Tuesday, September 17, 2013
समाजवादी नहीं दंगाई है अखिलेश सरकार ,बेनी गरजे -इस जुल्मी सरकार से सभी त्रस्त
आखिरकार समाजवादी धरा बाराबंकी से ही उत्तर-प्रदेश की वर्तमान अखिलेश सरकार के कार्यकाल में हो रहे अनवरत दंगों,बलात्कार ,हत्या ,लूटपाट ,अवैध खनन ,गुंडागर्दी ,पुलिसिया अत्याचार के खिलाफ जोरदार आवाज़ बुलंद हुई । पुराने समाजवादी नेता बेनी प्रसाद वर्मा -केंद्रीय इस्पात मंत्री ,भारत सरकार के निर्देशों पर जिस प्रकार सोमवार को बाराबंकी कांग्रेस ने सड़क पर उतर कर संघर्ष का बिगुल बजाया है ,वो सरकार के लिए चेतावनी तो है ही कांग्रेस में व्याप्त चाटुकारिता की राजनीति के वर्चस्व के खात्मे की शुरुआत भी माना जा सकता है । सपा की सरकार के खिलाफ उपजे जनाक्रोश को भांपते हुए राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी बेनी प्रसाद वर्मा ने लगातार अपने बयानों से खुद को चर्चा में बनाये रखने के साथ-साथ आम जनमानस के बीच संवाद कायम रखने और उनकी पीड़ा को समझने के पश्चात् विशाल धरना-प्रदर्शन का सफल आयोजन करवाकर यह भी साबित कर दिया कि अगर उत्तर-प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व चाहता तो कांग्रेस का कार्यकर्ता अब तक पुरे प्रदेश में सपा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर चुका होता ।
तमाम आरोपों-दंगों की आंच से बेहाल सपा सरकार के दामन को मुज्ज़फरनगर के दंगों ने झुलसा ही दिया है । प्रशासनिक चूक ,लापरवाही स्वीकार कर चुके सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूर्व में भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि नौकरशाह उनकी बात नहीं मानते ,लापरवाही -हीलाहवाली करते हैं । नौकरशाही की मनमानी , सपा के तमाम विधायकों ,मंत्रियों ,पदाधिकारियों और परिजनों के कारनामों -बयानों से उपजे जनाक्रोश को भांपते हुए ही बेनी प्रसाद वर्मा ने सोमवार को गन्ना कार्यालय परिसर में आयोजित विशाल धरना-प्रदर्शन में बेबाकी पूर्ण नपा तुला भावनात्मक भाषण दिया ।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रातः १० बजे से ही कार्यक्रम स्थल पर बाराबंकी जनपद के कोने-कोने से ग्रामीण का आना शुरू हो गया था । दोपहर ११ बजे से ही धरने का विधिवत प्रारंभ हो गया और धरना स्थल पर बने विशाल मंच पर कांग्रेस जिला अध्यक्ष बाराबंकी फवाद किदवई ,राकेश वर्मा (पूर्व मंत्री ),संतोष श्रीवास्तव ,कुँवर रामवीर सिंह ,छोटेलाल यादव ,रामपाल वर्मा ,निजामुद्दीन ,बैजनाथ रावत (पूर्व सांसद ),बंशीलाल गौतम ,रतनलाल राव ,बृजेश दीछित ,मो सबाह ,मो मोनिस ,दीप शंकर जायसवाल ,फैजी ,वीरेन्द्र वर्मा ,शिवस्वामी वर्मा ,जयराम वर्मा ,मुन्नू लाल चौरसिया आदि पहुँच चुके थे । कार्यक्रम का संचालन रिजवान संजय ने किया । कार्यक्रम प्रारंभ होने के वक़्त तक ही गन्ना परिसर लोगों से खचाखच भर चुका था और मंच पर स्व राममनोहर वर्मा के पिता /परिजन पहुँच चुके थे । स्व राममनोहर के हत्यारों को गिरफ्तार करो ,फांसी दो के नारे लगातार लग रहे थे । तमाम वक्ताओं ने अपने सम्बोधन में उत्तर-प्रदेश सरकार की नाकामियों का जिक्र किया और संघर्ष की शुरुआत करने का निर्देश देने के लिए बेनी प्रसाद वर्मा को धन्यवाद दिया ।
भीषण गर्मी में चले इस धरना-प्रदर्शन में तक़रीबन १ बजे बेनी प्रसाद वर्मा -केंद्रीय इस्पात मंत्री अपने काफिले के साथ पहुँचे । उनके साथ फर्रुख मोबीन ,डी के आनन्द ,राजबहादुर ,डॉ मसूद ,जय राम वर्मा भी धरना स्थल पर बने मंच पर आये । बेनी प्रसाद वर्मा के कार्यक्रम स्थल पर आते ही समूचा जनसमुदाय उद्वेलित होकर विकास पुरुष बेनी प्रसाद जिंदाबाद और स्व राम्मानोरथ वर्मा के हत्यारों को गिरफ्तार करो-फाँसी दो के नारे लगाने लगा । संचालन कर्ता के बारम्बार अनुरोध के बावजूद तक़रीबन १५ मिनट तक अनवरत नारेबाजी होती ही रही ।
धरना-प्रदर्शन में सम्बोधन के क्रम को आगे बढ़ाते हुए बार कौंसिल बाराबंकी के पूर्व अध्यक्ष बृजेश दीक्षित ने कहा कि बेनी बाबू ने विकास की गंगा भागीरथ की भाँति उतारी है अब संघर्ष के नये रास्ते भी दिखाने का कार्य किया है । यही संघर्ष जनता के दुखों को खत्म करेगा और आगामी लोकसभा चुनावों में बेनी प्रसाद वर्मा के नेतृत्व में विजय हासिल होगी । अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्य श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि जुल्म-अन्याय व अत्याचार के खिलाफ जनता के हित के लिए आवाज़ उठाने वाला ,संघर्ष करने वाला ही जननेता होता हैं ,यह हम कांग्रेसजनों का सौभाग्य है कि बेनी बाबू जैसा विराट व्यक्तित्व -सोच का नेता हमारा अगुआ है ,मार्गदर्शक है । इसके अतिरिक्त छोटेलाल यादव (पूर्व विधायक ),डॉ मसूद (पूर्व मंत्री ),राजबहादुर (पूर्व मंत्री ),कुँवर रामवीर सिंह सभी के निशाने पर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रहे । सबसे प्रभावी करने वाले धारदार सम्बोधन करने वाले बाराबंकी के ही फर्रुख मोबीन ने उपस्थित लोगों के मर्मस्थली को छुते हुए भावनाओं के ज्वार को और बढ़ाने का कार्य किया । फर्रुख मोबीन ने कहा कि उत्तर-प्रदेश में अखिलेश राज में हो रहे दंगे सपा और भाजपा की मिली जुली साजिश है । दोनों दल धर्म के नाम पर हिन्दू -मुस्लिम को लड़ाकर ,मरवाकर चुनावी फायदा लेना चाहते हैं ,इस साजिस को सबसे पहले हम सबके नेता बेनी बाबू ने समझा और विकास कार्यों के साथ-साथ जुल्म व अत्याचार के खिलाफ संघर्ष का ऐलान किया है । असली मायनों में डॉ लोहिया के सच्चे अनुयायी हैं बेनी प्रसाद , इनकी सामाजिक सोच व व्यापक जनाधार के कारण ही कांग्रेस नेतृत्व ने उनको इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है । उसूलों से कभी भी समझौता ना करने वाले विकास पुरुष बेनी प्रसाद वर्मा आम जनता के सच्चे हितैषी हैं । लाल कृष्ण आडवाणी की बार-बार तारीफ करके मुस्लिमों के जख्मों को कुरेदने -नमक छिड़कने का कार्य करने वाले सपा मुखिया मुलायम सिंह को आगामी लोकसभा चुनावों में जनता सबक सिखायेगी ।
तक़रीबन तीन बजे बेनी प्रसाद वर्मा -केंद्रीय इस्पात मंत्री ने अपना सम्बोधन शुरू किया । अपने १५ मिनट के सम्बोधन में अपने बेबाक बयानों का सिलसिला जारी रखते हुये सपा-भाजपा को खूब खरी-खोटी सुनाई । उन्होंने कहा कि अपने ४० साल के राजनैतिक जीवन में उत्तर-प्रदेश की सरकार के प्रति लोगों के मन में इतना ज्यादा गुस्सा मैंने पहली बार देखा है । यह सरकार समाजवादी ना होकर दंगाई और निर्दयी है । अब मुलायम सिंह बेनकाब हो चुके हैं ,उनके सभी दाँव अब उल्टे पड़ रहे हैं ,साजिशे असफल हो रही हैं ,यह अगला लोकसभा चुनाव मुलायम का आखिरी चुनाव होगा । प्रदेश में फैली अराजकता ,दंगे ,हत्या-बलात्कार की चर्चा करते हुये इस्पात मंत्री ने कहा कि मुलायम सिंह बेशर्मी कर रहे हैं ,किसी की जान की कीमत उसके परिजनों को सिर्फ पैसा देकर नहीं चुकाई जा सकती । अगर जरुरत पड़ी तो बाराबंकी का एक एक किसान स्व राममनोरथ वर्मा के परिजनों की आर्थिक मदद करेगा ,जनता को सरकार से अधिकार व न्याय चाहिए ,मौत के बदले रिश्वत नहीं । राममनोरथ के हत्यारों को सपा नेताओं का संरक्षण प्राप्त है । हत्या की सी बी आई जाँच की माँग प्रदेश सरकार को केन्द्र से करनी चाहिए , सी बी आई जाँच तो होगी ही । अपने भाषण के अंत में बेनी प्रसाद वर्मा ने कहा कि अब यह संघर्ष रुकना नहीं चाहिए , उत्तर-प्रदेश सरकार सुधरेगी नहीं ,जनता के हित के लिए अगर मुझे आमरण अनशन भी करना पड़ा तो मैं करूँगा । अब इस निर्दयी सरकार को सत्ता से बेदखल करना ही पड़ेगा ।
और कार्यक्रम के अंत में कांग्रेस जिला अध्यक्ष फ़वाद किदवाई ने सभी को संघर्ष में शामिल होने के लिए धन्यवाद दिया । सोमवार सम्पन्न हुये इस प्रदर्शन में उमड़े जनसैलाब ने यह एक बार पुनः साबित कर दिया कि भले ही अभी डेढ़ साल पहले सपा बाराबंकी की सभी सीटों पर जीत गई थी लेकिन अब आम जनता के दिलों पर एक बार पुनः विकास पुरुष बेनी प्रसाद वर्मा समां चुके हैं ।
Saturday, May 25, 2013
उत्तर-प्रदेश की राजनैतिक चौसर पर बिछती बिसाते - बेनी के बोल अनमोल अरविन्द विद्रोही
उत्तर-प्रदेश की राजनीति में हासिये पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी मरता क्या ना करता की तर्ज़ पर आख़िरकार नरेन्द्र मोदी , हिंदुत्व , विकास ,बाहुबलियों की शरण में जा चुकी है । भाजपा अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह की ताजपोशी के दिन से ही कयास लगने लगे थे कि अब भाजपा में ठाकुर- बाहुबली जुड़ना शुरू होंगे और यह होने भी लगा । विगत दिनों सुल्तानपुर में संपन्न हुई भाजपा की रैली में स्थानीय छत्रिय बाहुबली की दमदार उपस्थिति ने भाजपा की रणनीति का एक पक्ष उजागर कर ही दिया है । लोकसभा चुनावों में विजय हासिल करने हेतु भाजपा बाहुबलियों-दागियों को पुनः अंगीकार करने की शुरुआत कर चुकी है ।
लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र उत्तर-प्रदेश अत्यंत महत्वपूर्ण प्रदेश है । उत्तर-प्रदेश की राजनीति के दो प्रमुख राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों के राष्ट्रीय अध्यक्षों का मानना है कि अगर उनका दल उत्तर-प्रदेश में बढ़त हासिल करके ५० सीटों पर विजय हासिल करले तो एन केन प्रकारेण वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो ही जायेंगे । भाजपा में गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनावों के पूर्व ही भाजपा का प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करने की मांग भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ताओं द्वारा करना अनवरत जारी है । पिछली लोकसभा गठन के समय भाजपा की हार के चलते प्रधानमंत्री बनने के स्थान पर मुँह ताकते रह गए वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी व उनके समर्थक पार्टी नेताओं को नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित हो यह कतई स्वीकार नहीं है । इसी बीच भारतीय जनता पार्टी में सर्वमान्य नेता के रूप में प्रधानमंत्री पद हेतु एक मुहीम उत्तर-प्रदेश के ही राजनाथ सिंह के पक्ष में भीतर खाने चलनी शुरू हो गई है । क्या पता भाजपा की सरकार बनने का अवसर आने पर अध्यक्ष पद की ही तरह भाग्य के धनी राजनाथ सिंह के लिए पुरानी कहावत बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा चरितार्थ हो ही जाये । और तो और यह सर्व विदित है कि कांग्रेस में भी अब राहुल गाँधी को अगला प्रधानमंत्री बनाये जाने की सहमति बन ही गई है सिर्फ उचित अवसर पर घोषणा या यूँ कहे ताजपोशी शेष है ।
उत्तर-प्रदेश की जटिलता भरी राजनीति में प्रधानमंत्री पद के तमाम दावेदार यही से हैं । उत्तर-प्रदेश के राजनैतिक किले को फतह करने की चाहत ही है कि भाजपा अपने सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी को लोकसभा के चुनावी दंगल में उत्तर-प्रदेश की किसी सीट से लड़ाकर माहौल अपने पक्ष में करने का मन बना चुकी है । बसपा सुप्रीमों मायावती अपने संगठन के समर्पित कार्यकर्ताओं के बलबूते एक मर्तबा फिर से मतदाताओं के विश्वास अर्जित करने की चेष्टा में लगी हैं । उत्तर-प्रदेश में अखिलेश सरकार को घेरने व उसकी खामियां उजागर करने का कोई भी अवसर बसपा प्रमुख मायावती नहीं गँवा रही हैं । उत्तर-प्रदेश की बहुमत प्राप्त अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व की सरकार को भंग करने की मांग तक महामहिम राज्यपाल से बसपा नेत्री कर चुकी हैं । बसपा के राजनैतिक प्रहारों का ही तीखा परिणाम है कि सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के निशाने पर बसपा का बीता शासनकाल रहता है , मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल को तानाशाही पूर्ण ,भ्रष्टाचार से सराबोर बताना सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कभी नहीं भूलते । बसपा प्रमुख मायावती और बसपा प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा उठाये जाने वाले प्रश्नों /मामलों का सीधा जवाब देना शायद सपा नेतृत्व मुनासिब नहीं समझता । बसपा ही नहीं सपा सरकार पर प्रहार तो सभी विपक्षी दल करते हैं और सपा सरकार पर राजनैतिक प्रहार को सपा प्रवक्ता बड़ी खूबसूरती से विपक्षी दलों की बौखलाहट कहके किनारा कर लेते हैं । भाजपा के आरोपों को अत्यंत सहज भाव से नकार कर भाजपा को साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दल घोषित करने वाला सपा नेतृत्व पुराने समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा - केंद्रीय इस्पात मंत्री के अनवरत जारी बयानों से असहज व हलकान हो चुका है ।
यह कथन अतिश्योक्ति न होगा कि बेनी प्रसाद वर्मा - केंद्रीय इस्पात मंत्री उत्तर-प्रदेश की राजनीति में एक अहम् भूमिका का निर्वाहन कर रहे हैं । कभी मुलायम सिंह यादव के प्रिय व खासमखास रहे उनके सखा , हमराह बेनी प्रसाद वर्मा अब अपनी स्मृतियों के पिटारे से नूतन जानकारियां प्रेस वार्ताओं में दे रहे हैं । राजनीति के अनोखे-निराले खेल का नजारा तो देखिये कि कभी कांग्रेस के मुखर विरोधी रहे बेनी प्रसाद वर्मा आज उत्तर-प्रदेश के एकमात्र कांग्रेसी नेता हैं जो उत्तर-प्रदेश की सत्ताधारी सपा सरकार व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से अपने बयानों व जनाधार के बूते सीधे दो दो हाथ करने की चुनौती पेश कर रहे हैं । किंग मेकर की भूमिका शुरू से ही निभाने वाले बेनी प्रसाद वर्मा की बेबाकी व कांग्रेस में बढ़े कद से कांग्रेस के भी तमाम घाघ मठाधीशों की नींद हराम हो चुकी है । उत्तर-प्रदेश विधानसभा २०१२ के चुनावों के दौरान बेनी प्रसाद वर्मा के खिलाफ गोंडा में कई सभाओं में नारेबाजी हुई और उनके पुत्र राकेश वर्मा - पूर्व कारागार मंत्री को भी दरियाबाद विधानसभा में पराजित होना पड़ा । पुराने कांग्रेसी मठाधीशों को और सपाइयों को लगा था कि अब बेनी प्रसाद वर्मा का कद व रुतबा कांग्रेस में कम हो जायेगा परन्तु समय बीतता गया और बेनी प्रसाद वर्मा के कद व रुतबे दोनों में वृद्धि हुई ।
शतरंज के खिलाडी बेनी प्रसाद वर्मा अवसर को ध्यान में रखते हुये अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ा से बड़ा जोखिम उठाने में तनिक संकोच नहीं करते हैं । अपने लड़ाकू तेवर व बेबाक बयानबाजी से चर्चा में बने रहने वाले बेनी प्रसाद वर्मा एक जमीनी नेता हैं । दरअसल बेनी प्रसाद वर्मा का आत्मविश्वास अपने स्वजातीय कुर्मी मतदाताओं पर टिका हुआ है । लगभग ९ प्रतिशत कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ बेनी प्रसाद वर्मा की नजर हमेशा अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सभी जाति - धर्म के अपने व्यक्तिगत संबंधों वाले लोगों पर रहती है । सपा से वर्षों पुराना नाता तोड़ कर कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने वाले पुराने समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा अब बहुत ही सुनियोजित तरीके से सपा में असंतुष्ट जमीनी पकड़ - जनाधार रखने वाले नेताओं से संवाद कायम कर चुके हैं । कयास तो यहाँ तक लगाया जा रहा है कि चिर असंतुष्ट एक वरिष्ठ मुस्लिम नेता की भी मध्यस्थों के माध्यम से बेनी प्रसाद वर्मा से राजनैतिक संवाद परवान चढ़ चूका है । अपने धुन के पक्के बेनी प्रसाद वर्मा एक साथ दो संदेश देने में जुटे हैं -- पहला मुलायम सिंह यादव का मुस्लिम प्रेम दिखावा है दूसरा मुलायम और भाजपा में भीतर खाने याराना है ।
सार्वजनिक बयानबाजी के अतिरिक्त पर्दे के पीछे बेनी प्रसाद वर्मा एक चतुर-सुजान राजनैतिज्ञ की भांति अपने संसदीय इलाके गोंडा सहित गृह जनपद बाराबंकी , कैसरगंज , बहराइच , श्रावस्ती , बलरामपुर , डुमरियागंज , महाराजगंज , खलीलाबाद , बस्ती , अम्बेडकरनगर , फैजाबाद लोकसभा इलाके में सपा सरकार से व्यथित मतदाताओं के सम्मुख खुद के तीखे बयानों से कांग्रेस को विकल्प के तौर पर स्थापित करने के भागीरथ प्रयास में लगे हैं । गोंडा लोकसभा में कोई सशक्त मुस्लिम प्रत्याशी ना होने के कारण बेनी प्रसाद वर्मा अपनी स्थिति दिन प्रति दिन मजबूत करने में कामयाब हो रहे हैं । गृह जनपद बाराबंकी सीट पर कांग्रेस सांसद पी एल पुनिया से बेनी प्रसाद वर्मा व जिला कमेटी की तल्खी सर्व विदित है ,वर्तमान सांसद का टिकट बदल कर यहाँ से कांग्रेस बेनी प्रसाद वर्मा के किसी पसंदीदा नेता को अपना प्रत्याशी घोषित कर दे तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगा । इसके अतिरिक्त इलाहाबाद से सोनभद्र तक के इलाके में बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा किया जा रहा गुणा - भाग अन्य दलों की रणनीति को प्रभावित कर सकता है ।
बहरहाल अपने समर्थकों और बाराबंकी की आम जनता के बीच विकास पुरुष की छवि रखने वाले बेनी प्रसाद वर्मा के तरकश में अभी कई सनसनीखेज बयानों के तीखे तीर मौजूद हैं जो सपा-भाजपा के रिश्तों की परत उधेड़ने का काम सफलतापूर्वक करेंगे , ऐसा उनके करीबी सूत्रों का दावा है । अपने बयानों से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तक को असहज कर चुके बेनी प्रसाद वर्मा अगला बयान कब देंगे और क्या देंगे इसका इंतजार पत्रकारों के साथ-साथ जनता को भी रहता है । बेनी प्रसाद वर्मा के बयानों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा अब खासकर मुस्लिम बस्तियों में जोर पकड़े हुए है जिसका सीधा नकारात्मक प्रभाव सपा के लोकसभा चुनाव के अपने विजय लक्ष्य पर पड़ता दिख रहा है । अपने अंतर्द्वंद में उलझी और सत्ता सुख के रसास्वादन में मशगूल सपा सरकार व संगठन के जिम्मेदारों का ध्यान अब मुलायम सिंह यादव के निर्देशों की अवहेलना करने वाले सपाइयों और जनता की बुनियादी जरूरतों बिजली-पानी-सड़क की तरफ भी नहीं जाता ऐसे परिस्थितियों में लाभ उठाने में कोई कसर विपक्षी दल नहीं रखना चाहते हैं और इस कार्य में फिलहाल बेनी प्रसाद वर्मा बाजी मारते दिख रहे हैं ।
Sunday, March 31, 2013
बेनी प्रसाद वर्मा मानसिक दिवालिया --- डॉ हरिनाम वर्मा
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पर अनर्गल आरोप लगाकर बेनी प्रसाद वर्मा अपने मानसिक दिवालिया पन का सुबूत दे रहे हैं । बेनी प्रसाद वर्मा ने हमेशा झूठ व अहंकार की राजनीति की है । स्व रामसेवक यादव के द्वारा बेनी प्रसाद वर्मा को दल में लिए जाने के कारण ही समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बेनी प्रसाद वर्मा को अत्याधिक महत्व दिया । अपने रूखे व्यव्हार के कारण ही बेनी प्रसाद कभी भी समाजवादी कार्यकर्ताओं और कुर्मी बिरादरी के पसंदीदा नहीं रहे सिर्फ समाजवादी पार्टी के व्यापक जनाधार और नेता जी मुलायम सिंह यादव से नजदीकी होने के कारण ही बेनी प्रसाद वर्मा और उनके बेटे राकेश वर्मा ने मंत्री पद प्राप्त किया था -- यह उद्गार आज सपा नेता डॉ हरिनाम वर्मा ने एक बयान में व्यक्त किये ।
अपने बयान में सपा नेता डॉ हरिनाम वर्मा ने कहा कि कुर्मी समाज किसानों की बिरादरी है । किसानों के हितैषी नेता जी मुलायम सिंह यादव पर व्यक्तिगत द्वेष ,जलन के कारण बेनी प्रसाद वर्मा ओछे -अनर्गल आरोप लगातार लगा रहे हैं । डॉ हरिनाम वर्मा ने बताया कि जब 2007 में नेता जी ने उन्हें बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र राकेश वर्मा के मुकाबले में मसौली विधानसभा से सपा प्रत्याशी बनाया था तब उस वक़्त नेता जी ने कहा था ,--" चुनाव के दौरान कोई भी व्यक्तिगत टिप्पणी /आरोप /भाषण बेनी प्रसाद वर्मा और उनके पुत्र राकेश वर्मा के खिलाफ मत देना , सिर्फ सपा की नीतियों और कार्यों के आधार पर वोट मांगना । राजनीति में सुचिता और सद्भाव कायम रखना समाजवादियों के चरित्र की पहचान होती है ,समाजवादियों को कभी भी किसी पर अनर्गल आरोप नहीं लगाना चाहिए । "
डॉ हरिनाम वर्मा ने कहा कि बेनी प्रसाद वर्मा के अनर्गल /ओछे बयानों से कुर्मी समाज भी आहत व शर्मिंदा है । बेनी प्रसाद वर्मा अहसान फरामोशी में यह भूल चुके हैं कि उनका राजनीतिक कद मुलायम सिंह की ही देन है । अपने पुत्र राकेश वर्मा की लगातार हार से बौखलाए बेनी प्रसाद वर्मा अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं और मिथ्या प्रलाप कर रहे हैं । इस तरह के बयानों का समाजवादी कार्यकर्ताओं समेत कुर्मी समाज भी जमकर निंदा व प्रतिवाद करता है
Thursday, February 7, 2013
आदर्शों को भुलाते निर्देश - युवा संगठन भी उपेक्षा के शिकार ----- अरविन्द विद्रोही
बतौर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव - मुख्यमंत्री ,उत्तर प्रदेश शासन ने विगत 10जनवरी ,2013 को पत्रांक संख्या 2906/2013 के माध्यम से समाजवादी पार्टी के समस्त जिला /महानगर अध्यक्ष तथा महासचिव , सांसद / पूर्व सांसद , विधायक / पूर्व विधायक , सदस्य विधान परिषद / पूर्व सदस्य विधान परिषद , राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारी / सदस्य , सम्बद्ध प्रकोष्ठों के प्रदेश अध्यक्ष तथा जिला / महानगर अध्यक्षों को तमाम निर्देश जारी किये थे । इस परिपत्र में जारी तमाम निर्देश पूर्व में भी कई मर्तबा मौखिक - लिखित जारी किये जा चुके हैं , ये अलग तथ्य है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता/पदाधिकारी इन निर्देशों को कतई अमल में नहीं लाते हैं । सपा कार्यालय के ही परिपत्र संख्या 458/2012 दिनांक 14 मार्च ,2012 में भी स्पष्ट रूप से अपेक्षा की गयी थी कि पार्टी के नेता / पदाधिकारी / कार्यकर्ता अपने वाहनों पर हूटर व लाल बत्ती न लगायें ।
और तो और अपने-अपने विजिटिंग कार्ड पर तमाम लोगों ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के चित्र तक छपवा रखे थे जिसको संज्ञान में लेते हुए इस प्रकार के कृत्यों को न करने की अपेक्षा भी सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने की और स्पष्टता स्वीकारा कि इन कृत्यों से पार्टी तथा सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । जब जागे तभी सबेरा की कहावत को चरितार्थ करने की प्रक्रिया में 15 जिम्मेदार पदाधिकारियों का चयन अखिलेश यादव ने कर दिया जो जनपदों का भ्रमण करेंगे और छान बीन करके पता लगायेंगे कि ऐसे कौन से कार्यकर्ता / पदाधिकारी अथवा व्यक्ति हैं जो अपने वाहनों पर हूटर , स्टीकर अथवा लाल बत्ती लगायें हैं , होर्डिंग्स पर भी इनको नज़र रखनी है । होर्डिंग्स के संदर्भ में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए अखिलेश यादव के हस्ताक्षर युक्त परिपत्र में लिखा है कि राष्ट्रीय ,प्रदेशीय , जिला स्तरीय तथा विधान सभा स्तरीय संगठन द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों की होर्डिंग्स संगठन के अध्यक्ष के स्तर से लगायी जा सकेगी , जिसमे आयोजक अपना चित्र नहीं लगायेंगे । केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष , प्रदेश अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि के चित्र लगाये जा सकते हैं । यदि लोकसभा चुनाव हेतु प्रत्याशी होर्डिंग लगवाना चाहे तो वह राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा स्वयं अपना चित्र छाप सकता है । निवेदक के रूप में प्रत्याशी को अपना ही नाम लिखवाने की हिदायत भी इसी परिपत्र में दी गयी है ।
किसी भी राजनैतिक संगठन के संचालन के अपने तौर-तरीके होते हैं । अपने संगठन को सुचारू ढंग से संचालित करते रहने , अनुशासित रखने और उसमे गतिशीलता रखने की जिम्मेदारी भी संगठन के मुखिया समेत अन्य जिम्मेदारों , रणनीतिकारों की होती है । पत्रांक संख्या 2906/2013 में सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा जारी यह एक निर्देश कि होर्डिंग्स में केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष , प्रदेश अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि का चित्र लगाया जा सकता है - अचम्भित करने वाला है । न सिर्फ अचम्भित करने वाला वरन अगर यह लिपिकीय त्रुटि न होकर सोच-समझ कर , जाँच- परख कर जारी किया गया निर्देश है तो अत्यन्त दुखद - समाजवादियों के ह्रदय को दुखाने , भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला कदम है । डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों पर बनी समाजवादी पार्टी के होर्डिंग्स में डॉ लोहिया के ही चित्र व जिक्र की अनिवार्यता का न होना दुखद है ।अभी 22 जनवरी को ही छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र की पुण्य तिथि पर सपा के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव ने स्पष्टतया कहा था कि यह जनेश्वर जी ही थे जिन्होंने कन्नौज से अखिलेश को सांसद का चुनाव लड़ाने को कहा । खुद अखिलेश यादव यह स्वीकारते रहें हैं कि जनेश्वर जी ने सबसे पहले उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया था और वो जनेश्वर जी को अपना प्रेरणाश्रोत - आदर्श मानते हैं । आखिर जिन डॉ लोहिया की विचारधारा को आधार बनाकर और जिन छोटे लोहिया का साथ लेकर मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया ,उनके चित्र - जिक्र की अनिवार्यता से परहेज किन परिस्थितियों में किया जा रहा है ? पूर्ण बहुमत हासिल करने के पश्चात् कहीं समाजवादी पार्टी सत्ता के गलियारे में अपने इन आदर्शों को तिलांजलि देकर नूतन विचारधारा के प्रतिपादन और उसकी स्थापना में तो नहीं लग चुकी है यह सवाल जेहन में कौंधता है । सरकार गठन के पश्चात् संगठन के पदाधिकारियों को जारी परिपत्र में होर्डिंग्स में डॉ लोहिया-जनेश्वर मिश्र के चित्र की अनिवार्यता का जिक्र आखिर कैसे रह गया ? यह सत्ता के राही और सिर्फ मलाई काटने के फेर में लगे रहने वाले पेशेवर लोगों के लिए नहीं बल्कि समाजवादी मूल्यों की स्थापना को अपना लक्ष्य मानकर डॉ लोहिया के विचारों की मशाल लेकर समाजवादी पार्टी के संघर्ष में सहयोग-साथ देने वालों के लिए एक अफसोसजनक कृत्य है । इस निर्देश के सन्दर्भ में डॉ लोहिया को अपना नेता मानने वाले सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव को ध्यान केन्द्रित करके अपना रुख अतिशीघ्र स्पष्ट करना चाहिए ।
खैर ,इसी परिपत्र में सभी जिला / महानगर अध्यक्षों , महासचिवों से यह भी अपेक्षा की गयी कि वे अपने जनपद में मनमाने ढंग से कार्य न होने दें । निर्देशों का पालन न करने वालों , अनुशासनहीनता करने वालों की सूची भी प्रत्येक माह भेजने को कहा गया है ताकि उसपर विचार कर कार्यवाही की जा सके । इन निर्देशों का पालन नहीं कराये जाने पर जिला / महानगर अध्यक्ष को ही दोषी माने जाने की चेतावनी भी दी है । अंत में अपने इस परिपत्र में जिला/ विधान सभा स्तर की संगठन की बैठकों में इस परिपत्र को पढ़कर सुनाये जाने को भी निर्देशित किया गया जिससे कि अधिक से अधिक लोगों तक इन निर्देशों की जानकारी हो । निर्देश जारी होकर सभी को प्राप्त भी हो गए , समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में भी विवरण आया , एक माह पुनः पूरा होने को है लेकिन समाजवादी पार्टी के मनमाने प्रवृत्ति के तमाम धुरंधरों पर किंचित प्रभाव नहीं पड़ा है । उनकी व उनके चेले-चपाटों की होर्डिंग्स अभी भी सपा नेतृत्व के निर्देशों को ठेंगा दिखा रही है और यह कृत्य उन्ही की सरपरस्ती में हो रहा है जिनको इसकी रोकथाम करनी चाहिए । हर एक होर्डिंग किसी न किसी प्रभावी नेता के शिष्य ने उनकी सहमति -अनुमति से ही लगवाई है यह कटु सत्य है ।और तो और लखनऊ सपा कार्यालय के बाहर खड़ी तमाम गाड़ियों में विजय 2012- लक्ष्य 2014 का मुलायम सिंह - स्टीकर अभी भी लगा सहज दिख ही जाता है ।
समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया ने चिंता व्यक्त करते हुए 1957 में ही कहा था कि ,'' किसी भी बड़े आन्दोलन में एक अजीब तरह की वाहियात चीज या मोड़ बन जाया करता है ।एक तरफ वे लोग जो कि आन्दोलन के मुद्दे पर तकलीफ उठाते हैं ,दूसरी तरफ वे लोग जो आन्दोलन के सफल होने के बाद उसके हुकुमती कामकाज को चलाते हैं ।और आप याद रखना कि ये संसार के इतिहास में हमेशा ही हुआ है लेकिन इतना बुरी तरह से नहीं हुआ कभी जितना कि हिंदुस्तान में हुआ है । और मुझे खतरा लगता है कि कहीं सोशलिस्ट पार्टी की हुकूमत में भी ऐसा न हो जाये कि लड़ने वालों का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक़्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये। " उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जो कि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं , को अपनी राजनैतिक दृढ़ता हेतु , अपने राजनैतिक भविष्य को और अधिक संवारने - निखारने के लिए डॉ लोहिया की इस चिंता को समझना चाहिए । समाजवादी पार्टी में युवा संगठनों के प्रभारी रहे अखिलेश यादव के ही चलते समाजवादी पार्टी से पढ़ने - लिखने वाले युवा वर्ग और शहरी इलाकों के नागरिकों का जुड़ाव हुआ । आज सपा के युवा प्रकोष्ठ भंग हैं , जिन युवा संगठनों के संघर्ष शील कार्यकर्ताओं ने अनवरत संघर्ष की बेला में पुलिस की लाठी खायी , वे युवा प्रकोष्ठों के कार्यकर्ता ( लाल बत्ती से नवाजे गए और उसकी फ़िराक में लगे नेताओं के अतिरिक्त ) अब कुछ हताश से हैं , वो निराशा के गर्त में , अनिश्चिंतता के भंवर में , दुविधाओं के दलदल में फंसा हुआ सा महसूस कर रहा है । यह वही नौजवान हैं जिन्होंने शुरू से ही अपने युवा नेता अखिलेश यादव को अपने भाई सरीखा माना और एक ही निर्देश पर जुल्मी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर गया था । जेल की बंद दीवारों , बदन पर पड़ी लाठियों व पुलिसिया जुल्म के शिकार हुए शरीर ने उतना दर्द नहीं महसूस किया था जितना उत्तर-प्रदेश की सरकार के गठन के पश्चात् युवा प्रकोष्ठों की उपेक्षा और अपने युवा नेता अखिलेश यादव से बढ़ी दूरियों से महसूस किया । एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत युवा संगठनो को उपेक्षित तो नहीं किया जा रहा है इसको ध्यान में रखना होगा युवाओं की आशाओं के केंद्र बिंदु बने - अखिलेश यादव को । इन संघर्षशील युवाओं को यह भी दर्द सालता है कि विधानसभा चुनाव के चंद दिनों पूर्व या दौरान सपा में शामिल लोग आखिरकार नेतृत्व के इतने करीबी किन कारणों से हो गए और समर्पित-पुराने कार्यकर्ता होने के बावजूद हम नेपथ्य में क्यूँ धकेल दिए गए ? समाजवादी मूल्यों को बरक़रार रखने की चुनौती पूर्ण महती जिम्मेदारी के साथ-साथ युवा प्रकोष्ठों की बहाली , युवा मन की तमाम आशंका को दूर करने की भी जिम्मेदारी बतौर सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के जिम्मे है - युवा प्रकोष्ठ जो कि समाजवादी पार्टी के अन्दर उनकी अपनी ताकत हैं और आज वही आज उपेक्षित क्यूँ हैं ? , इसका मनन जरुरी है ।
Wednesday, January 30, 2013
समाजवादी संगठन - सत्ता के सिद्धांत,मुलायम सिंह व उत्तर प्रदेश की सरकार-- अरविन्द विद्रोही
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने नए रूप में एक अभिभावक की भूमिका में उत्तर-प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव , मंत्रियों , विधायकों , संगठन के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को उत्तर-प्रदेश में वर्तमान सरकार के गठन के पश्चात् से ही अनवरत मार्ग निर्देशित करते चले आ रहे हैं । मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में उत्तर-प्रदेश की सरकार को जनता की उम्मीदों को ,अपने वायदों को , घोषणा पत्र को अति शीघ्र पूरा करने व भ्रष्टाचार से अपने को दूर रखने की स्पष्ट चेतावनी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी की हालिया संपन्न बैठक में दी ।
उत्तर -प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्ट नौकरशाहों-मंत्रियों की कारगुजारियों से त्रस्त होकर सड़क पर जनहित के लिए संघर्ष कर रहे समाजवादी कार्यकर्ताओं की लगन ,समर्पण से प्रभावित होकर आम जनमानस ने सत्तारूढ़ बसपा की जगह समाजवादी पार्टी को उत्तर-प्रदेश में हुकूमत की बागड़ोर सौंपी थी । समाजवादी पार्टी के सर्वे-सर्वा मुलायम सिंह यादव के ही शब्दों में ,-" सपा को सभी जातियों और वर्गों ने वोट दिया तभी बहुमत की सरकार बनी , हमारे मंत्री ,विधायक व कार्यकर्ता घमण्ड न करें । " मुलायम सिंह यादव एक कुशल संगठनकर्ता , दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के संकल्पित जन-नेता हैं ,यह उन्होंने अपने व्यक्तिगत-राजनैतिक जीवन के प्रत्येक मोड़ पर साबित कर दिखाया है । संकट व परीक्षा की प्रत्येक घड़ी में धरती पुत्र की उपाधि से नवाज़े गए डॉ लोहिया के सबसे बड़े जनाधार वाले अनुयायी मुलायम सिंह ने न तो अपना संयम खोया और न अपने संकल्पित-संघर्षमयी मार्ग से विचलित ही हुआ । डॉ राममनोहर लोहिया के समाजवादी आन्दोलन व संघर्ष की विरासत को सहेजने की जद्दो-जहद के ही कारण संभवता प्रचण्ड बहुमत हासिल होने के पश्चात् युवा चेहरा अखिलेश यादव को उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपने का कार्य मुलायम सिंह यादव ने किया था । पूर्ववर्ती बसपा सरकार के शासन काल में चले अनवरत संघर्षों के दौरान अखिलेश यादव समाजवादियों ,युवाओं व आम नागरिकों की उम्मीदों के केंद्र बिंदु बनकर तेजी से राजनैतिक परिदृश में उभरे व चमके। इसी चमक और आम जनता की उम्मीदों को भाँपते हुए मुलायम सिंह ने भविष्य की राजनीति के आधार को पुख्ता करने के लिए उत्तर-प्रदेश में सरकार चलाने की महती जिम्मेदारी युवा कंधों पर दी और स्वयं कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कायम रखने के लिए , आगामी चुनावी लक्ष्यों को दृष्टि में रखते हुए संगठनात्मक कार्यों में लगे हुए हैं ।
सरकार व संगठन दोनों के पेंच कसते रहने के क्रम में एक मर्तबा सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने पुनः दोहराया है कि ,-" सपा एक लोकतान्त्रिक पार्टी है , हमारा विश्वास लोकतान्त्रिक समाजवाद में हैं । यहाँ दबी मुठ्ठी , खुली जुबान की नीति है । अनुशासन में रहते हुए अपनी बात को कहने की आज़ादी है । " छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र की तीसरी पुण्य तिथि 22जनवरी को सपा मुख्यालय लखनऊ में आयोजित श्रधांजलि सभा में अपनी भाव-भीनी श्रधांजलि देने के पश्चात् मुलायम सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा था कि ,-" डॉ लोहिया लोक भोजन , लोक भूषा और लोक भाषा को लोकतंत्र का महत्वपूर्ण अंग मानते थे । जनेश्वर जी ने अपने आचरण ,विद्वता ,व्यवहार और भाषण कला से डॉ लोहिया को प्रभावित कर रखा था । समाजवाद की जीवंत मूर्ति रहे जनेश्वर मिश्र जी की हार्दिक इच्छा थी कि दिल्ली पर भी समाजवादियों का कब्ज़ा हो ।"
देश के बड़े सूबे उत्तर-प्रदेश में जनता के स्नेह-आशीर्वाद रूपी मतों से स्पष्ट-प्रचण्ड बहुमत हासिल करने के पश्चात् ही मुलायम सिंह ने दिल्ली में गैर कांग्रेसी -गैर भाजपाई सरकार के गठन के स्वरुप को आकार देने के प्रयास प्रारंभ कर दिए । आगामी लोकसभा के आम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जहाँ एक तरफ मुलायम सिंह उत्तर-प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को घोषणा पत्र पर तत्काल अमल करने व पूरा करने के लिए निर्देशित करते हैं वहीं पदाधिकारियों ,कार्यकर्ताओं को अनुशासन में रहने , भ्रष्टाचार पर नजर रखने और सपा सरकार - संगठन की उपलब्धियों को प्रचारित-प्रसारित करके आम जनमानस तक पहुँचाने को भी कहते हैं । गरीबों ,पिछड़ों तथा नौजवानों को हीनता का भाव त्यागने व आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने का आह्वाहन जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24जनवरी को करते हुए मुलायम सिंह के चेहरे पर भविष्य के प्रति आशान्वित होने की स्पष्ट झलक दिखाई पड़ती है । मुलायम सिंह की भविष्य की आशाओं को साकार करने के लिए उत्तर-प्रदेश सरकार को जनता की उम्मीदों पर अपने को खरा साबित करना पड़ेगा । बसपा के शासन काल में लोग भ्रष्ट नौकरशाही -मंत्रियों से त्रस्त हो गए थे । तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को नौकरशाहों की चौकड़ी ने अपने मोहपाश में जकड़ रखा था । उत्तर-प्रदेश की नौकरशाही अपने मोहपाश में , अपने छद्म प्रेम जाल में युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समेटने-लपेटने में पूर्णतया कामयाब न हो जाये , यह चिंता समाजवादियों को सताने लगी है । कानून व्यवस्था पर अभी भी प्रभावी नियंत्रण नहीं हो सका है । नौकरशाही राजनेताओं को अपने ही रंग में रंगने में माहिर होती है । चापलूसी की चाशनी में ,विनम्रता का लबादा ओढ़कर अपना वर्चस्व कायम करना नौकरशाहों की फितरत व प्रशिक्षण में शुमार है । 4-5नवम्बर ,1992 को लखनऊ के बेगम हज़रत महल पार्क में डॉ लोहिया के सिद्धांतो -विचारों पर आधारित गठित हुई समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में लिए गए संकल्पों का पठन ,चिंतन व अनुपालन समाजवादी पार्टी की उत्तर-प्रदेश सरकार के जिम्मेदारों को करना चाहिए । देश-प्रदेश की जनता के हित के लिए , समाजवादी विचारधारा - आन्दोलन के प्रचार-प्रसार के लिए चिंतित , उम्र के इस पड़ाव में भी प्रयासरत सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को प्रदेश सरकार के शीर्षस्थ नौकरशाही की कारगुजारियों - हीलाहवाली पूर्ण रवैये पर भी अपनी सतर्क पैनी दृष्टि डालनी चाहिए । नौकरशाही ने क्रिकेट प्रतियोगिता के बहाने अपनी शतरंजी चाल चल कर सरकार को आत्ममुग्धता में डाल दिया । डॉ लोहिया के विचारों पर बनी समाजवादी पार्टी के उत्तर-प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव - मुख्यमंत्री उत्तर-प्रदेश को स्मरण होना चाहिए कि डॉ लोहिया क्रिकेट को अंग्रेजियत - विलासिता का खेल मानते थे , और यह खेल है भी समय की भरपूर बर्बादी करने वाला , पूंजीवादी - विलासिता का वाहक । बतौर मुख्यमंत्री जिम्मेदारियों का दायरा बहुत बढ़ जाता है , व्यक्तिगत रूचि-अभिरुचि का परित्याग कर सामाजिक हितों -परिस्थितियों के अनुसार अपना प्रत्येक पल व्यतीत करना चाहिए । महोत्सव -खेल के आयोजन खूब होने चाहिए लेकिन इस महोत्सव-खेल के खेल में जनता जनार्दन की भावना से कदापि नहीं खेलना चाहिए अन्यथा आम जनता भी सत्तारूढ़ राजनैतिक दल का जमा-जमाया खेल बिगाड़ने में तनिक देर व संकोच नहीं करती है ।
निर्विवाद रूप से मुलायम सिंह यादव वर्तमान समय में डॉ लोहिया के सबसे बड़े जनाधार व संगठन वाले अनुयायी है । देश की संसद पर समाजवादियों का कब्ज़ा हो -छोटे लोहिया की इस अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए आगामी लोकसभा में उत्तर-प्रदेश में अधिकतम सीटों पर विजय श्री हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश की सरकार को जनता से किये गए वायदों को पूरा करने व कानून व्यवस्था को पूर्णतया चुस्त-दुरुस्त करना ही होगा । एक तपे तपाये, अपने संघर्षों की बदौलत समाजवाद पर कायम रहने वाले धरतीपुत्र मुलायम सिंह के राजनैतिक-प्रशासनिक अनुभवों से शिक्षा ग्रहण करके उनके कुशल मार्गदर्शन में सरकार -संगठन दोनों को समाजवादी लोकतान्त्रिक जन कल्याणकारी राज्य की स्थापना के महती दायित्व को पूरा करने में जुट जाना चाहिए ।
Sunday, December 30, 2012
गुज़रा राजनितिक परिदृश और जनमानस ------ अरविन्द विद्रोही
भारत जैसे विशाल भू भाग वाले देश में विभिन्न धर्म को मानने वालों को समानता का दर्ज़ा प्राप्त है । भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि निर्वाचन का अवसर प्राप्त है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सामान्य जनमानस को प्रदत्त ताकत ही है कि बहुमत प्राप्त सत्ता अहंकार में मदमस्त हो जाने वाले सत्ताधिसों को आमचुनावो में अपने एक एक मत से आम जनमानस सत्ता से बेदखल कर देता है। परिवर्तन का ऐसा तूफान उत्पन्न अहंकारी वा मदमस्त जनविरोधी सत्ताधारी के खिलाफ आम जनमानस में व्याप्त होता जाता है कि अपने को चतुर सुजान व काबिल समझने वाले तमाम राजनीतिज्ञों सहित राजनितिक ज्ञानियों के होश चुनाव नतीजों से फाख्ता हो जाते है । उत्तर प्रदेश के संपन्न हुए विधान सभा के 2012 आम चुनावों में जिस प्रबल बहुमत की प्राप्ति समाजवादी पार्टी को हुई उसकी उम्मीद खुद समाजवादी पार्टी नेतृत्व को नहीं थी लेकिन परिवर्तन का मान बना चुकी उत्तर प्रदेश के जनमानस ने अपना निर्णय हुए बहुजन समाज पार्टी को सत्ता से पदच्युत हुए समाजवादी पार्टी को बेहतर विकल्प मानते हुए सत्ता पे बैठा दिया । इसी दौरान हुए उत्तराखंड के विधान सभा आम चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त मिली और कांग्रेस ने यहाँ अपनी सरकार बना डाली ।
वर्ष के प्रारम्भ की बेला में जहां उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड-पंजाब मणिपुर -गोवा में चुनावी घमासान मचा था वहीं वर्ष 2012 के समापन बेला में हिमांचल प्रदेश व गुजरात में चुनावी दंगल अपने शबाब पे रहा । हिमांचल में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हारी और कांग्रेस को विजय की प्राप्ति हुई । गुजरात जहाँ पर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की जबरदस्त घेरेबंदी में विपक्षी राजनितिक दलों के साथ साथ कुछ भाजपा नेता भी लगे थे वहां नरेन्द्र मोदी एक बार गुजराती जनमानस की पसंद बनकर उभरे । 2012 में संपन्न गुजरात के सिवाय सभी विधान सभा आम चुनावो में सत्ता धारी दल को सत्ता से बेदखल करने का कार्य आम जनमानस ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए किया । यह विचारणीय बिंदु है कि परिवर्तन के तूफान में एक राज्य गुजरात में तमाम विरोधाभास , घेरेबंदी के बावजूद नरेन्द्र मोदी तीसरी बार अनवरत गुजराती जनमानस के पसंदीदा व्यक्तित्व कैसे बने रहे ? निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की जनता के उम्मीदों पे अपने को खरा साबित किया है , लोकतंत्र में विरोध के लिए विरोध करते रहना एक राजनितिक फैशन व मानसिक-आर्थिक जरुरत की विषय हो सकती है कुछ लोगों के लिए ।
वर्ष 2012 राजनितिक दृष्टिकोण से चुनावी वर्ष रहा । आरोप -प्रत्यारोप रूपी चुनावी भाषणों के पश्चात निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और मुख्यमंत्रियों को उस उम्मीद को पूरा करने की दिशा में जुटना चाहिए जिसकी अपेक्षा करते हुए उनको आम जनमानस ने सत्ता सौपीं है । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी निःसंदेह अपने समर्थक गुजराती मतदाताओं की कसौटी पे खरे उतरे है और अपने अपने प्रदेश में आम जनमानस के हितों के कार्य करने के संकल्प को साकार रूप देने में अन्य निर्वाचित मुख्यमंत्रियों को जुटना चाहिए । इस वर्ष एक तरफ युवा चेहरा समाजवादियों की आशाओं के केंद्र बिंदु बनकर उभरे अखिलेश यादव ने संघर्ष के रास्ते उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करी वही कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश में तमाम बयानों -भाव -भंगिमाओं के प्रदर्शन , अपने आक्रोशित ह्रदय के जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद निराशा ही हासिल हुई । राहुल गाँधी को हार का जो स्वाद बिहार में नितीश कुमार ने चखाया उसको और तीखापन देने का कार्य उत्तर प्रदेश में क्रांति रथ पे सवार युवा समाजवादी अखिलेश यादव ने अपने सौम्य -सहज व्यवहार से अर्जित बहुमत के द्वारा किया । वर्षान्त 2012 में नरेन्द्र मोदी की गुजरात में सत्ता वापसी ने राहुल गाँधी की आगे की उम्मीदों पे भी ग्रहण लगा दिया है ।
दरअसल आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद पे बैठाने का मन बना चुकी है लेकिन गुजरात में नरेन्द्र मोदी की विजय ने कांग्रेस रणनीतिकारों को पेशोंपेश में डाल दिया है । उत्तर प्रदेश के भी दो महारथी क्रमशः समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती आगामी लोकसभा चुनावों को अपने आप को प्रधानमंत्री बनाने की सोच के तहत कार्य कर रहे है । उत्तर प्रदेश के इन दो महारथियों की नज़र उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों को जीतने पे है , अपने अपने राजनितिक लाभ के जातीय समीकरण को बुनने- गुनने में लगे इन दोनों राजनेताओं की अनदेखी करना न तो कांग्रेस के की है और न ही भाजपा के । समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव तो लोकसभा चुनावों के पश्चात गैर कांग्रेस - गैर भाजपा दलों के मोर्चे के गठन की बात कह भी चुके है । प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने भाजपा नीत राजग गठबंधन के अध्यक्ष धुर समाजवादी शरद यादव को प्रधानमंत्री पद का सर्वाधिक सुयोग्य राजनितिक व्यक्ति घोषित करके भविष्य की तरफ इंगित कर ही दिया है । भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की भारी तादात गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में अभी से घोषित करने की मांग अपने केंद्रीय नेतृत्व से कर रही है । कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ बने वातावरण व भ्रष्टाचार के नित नए मामलों ने एक के पश्चात् एक मुद्दों को जनमानस के सम्मुख रखा है । बहुमत के जादुई आंकड़ें से कांग्रेस की नित बढती दूरी की भरपाई के लिए कांग्रेस ने अपने विरोधी मतों के विभाजन की योजना तो बनायीं ही है , राहत और बख्शीश के सहारे मतदाताओं को लुभाकर उनके मतों पर डाका डालने की स्व कल्याणकारी योजना भी शुरू हो चुकी है ।
इसी वर्ष राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का निर्वाचन हुआ । चुनावी राजनीती से इतर वर्ष 2012 में शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे की लम्बी बीमारी के बाद हुए निधन की सूचना मात्र से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई थम गयी । महाराष्ट्र सहित देश के हर हिस्से से शोक संवेदना के सन्देश उनके परिजनों को प्रेषित हुए । शोकाकुल - ठहर सी गई भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई के तक़रीबन 25लाख मुम्बईकरों ने अपने ह्रदय सम्राट की अंतिम यात्रा में अश्रु पूरित ह्रदय समेत शामिल होकर श्रधा सुमन अर्पित किये । आम जनमानस के ह्रदय में बसे रहने का इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकता है कि कभी न थमने वाले मुंबई कर सिसकते हुए ठहर से गये थे । लगभग सभी राजनितिक दलों के नेताओं ने शिवसेना प्रमुख बल ठाकरे को अपनी श्रधांजलि प्रेषित करते हुए उन्हें महाराष्ट्र की राजनीती में कभी न भुला पाने वाला व निर्णायक जननेता कहा । वर्ष में तमाम अन्य वरिष्ठ राजनेताओं की मृत्यु हुई परन्तु जो शोक का माहौल शिवसेना प्रमुख के के मौके पे व्याप्त हुआ उसने यह साबित कर कि तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद वो मुंबई करों सहित हिन्दुओ के ह्रदय सम्राट थे । वर्ष 2012 में तमाम नए राजनितिक दलों के गठन का ऐलान भी हुआ है जिनके राजनीतिक उपलब्धियों में सिर्फ आरोपों की फेहरिस्त जारी करना है । चंद लोगों के द्वारा लोकतंत्र , संसद -सांसदों , राजनितिक दलों को कोसते कोसते खुद भी वही बनने की दबी मनोकामना भी इसी वर्ष जगजाहिर हो ही गयी ।
भारत की राजनीती में चुनावी दंगल से इतर सामाजिक - राजनितिक -आर्थिक मुद्दों पर इस वर्ष बहस आन्दोलन अपने चरम के शिखर को छुते नज़र आये । विदेशों में जमा काला धन लाने की मांग , भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण हेतु लोकपाल विधेयक की मांग सामाजिक मुद्दों से राजनितिक मुद्दों में तब्दील चुकी है । राजनितिक दलों की कार्यप्रणाली से ऊबे लोगों ने अपनी सारी उम्मीद व उर्जा भ्रष्टाचार विरोधी जन अन्दोलनो में लगायी लेकिन जल्द ही उस आम जन मानस को घोर निराशा का सामना करना पड़ा जब आंदोलन के चर्चित चेहरे अरविन्द केजरीवाल ने आन्दोलन के अगुवा अन्ना हजारे की मंशा के विपरीत राजनितिक दल के गठन का ऐलान कर दिया । जन आन्दोलन अब बिखराव के दोराहे पे आ पंहुचा था और सामाजिक चेतना और जन मानस की शक्ति के बलबूते राजशक्ति को झुकाने की अन्ना हजारे की मंशा पर गहरा आघात अरविन्द केजरीवाल ने राजनितिक दल के गठन के द्वारा किया । सामाजिक आन्दोलन के बैनर और अपने नाम के इस्तेमाल न करने की हिदायत देते हुए अन्ना हजारे ने जनादोलन जारी रखने और अरविन्द केजरीवाल द्वारा गठित राजनितिक दल से कोई वास्ता न रखने की बात अंत में कह ही दी । भ्रस्टाचार , महंगाई , बेकारी , बिगड़ी कानून व्यवस्था से त्रस्त भारत के लोगो के सम्मुख समर्पण और संघर्ष दो रास्तों में से एक के चुनाव का विकल्प आन पड़ा है और सामाजिक चेतना और जनमानस के उद्वेलित मन ने सड़क पर उतर कर वर्तमान हुक्मरानों और व्यवस्था को चुनौती देने का साहस दिखाया । इसी जन शक्ति के सहारे अति महत्वकांछी चन्द लोगो ने अपना राजनितिक व आर्थिक मकसद पूरा करने की जुगत लगा ली है ।
पदोन्नति में आरक्षण मसले पर समाजवादी पार्टी ने सड़क से संसद तक जमकर विरोध किया और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नूतन छवि सवर्णों के मध्य अपने हित चिन्तक व रक्षक की बन कर उभरी है । प्रोन्नति के मुद्दे पर मचे घमासान के दौरान ही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने संप्रग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार व कांग्रेस प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सी बी आई का भय दिखा कर ब्लैक मेल कर रही है । राजेंद्र चौधरी ने यह भी कहा था कि संप्रग सरकार देश के आर्थिक व सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने की साजिश कर रही है । उसने पहले देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी से उतारने के लिए एफ डी आई को मंजूरी दी और अब प्रोन्नति में आरक्षण बिल लाकर सामाजिक विषमता और वैमनस्य को बढ़ावा देने में लगी है । वही बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती - पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने अपने परंपरा गत अधर मतों के हित के लिए राज्य सभा में अपने अंदाज़ में आवाज़ बुलंद करी, मायावती पर संसदीय मर्यादा से बाहर होने का आरोप तक लगा । पिछड़े वर्ग के लिए भी पदोन्नति में आरक्षण की मांग करके मायावती ने पिछड़ों को आकर्षित करने का दांव चला है । कांग्रेस अपने फैसलों से खुद को संकट में डालने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखे है और भाजपा में अंदरखाने से आरक्षण मामले में नेतृत्व के के आवाज़ बुलंद हुई । एफ डी आई को मंजूरी मिलने के साथ ही साथ इसकी मंजूरी के मामले में रिश्वत खोरी का मामला भी सामने आया । अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट के अनुसार वालमार्ट ने भारत में मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रवेश के लिए लाबिंग पर लगभग 125करोड़ रूपये खर्च किये है । विपक्ष के जबरदस्त दबाव के चलते सरकार ने वालमार्ट मामले की समय बद्ध जाँच सेवा निवृत न्यायाधीश से करने की घोषणा की । केंद्र सरकार दुर्भाग्य वश अपने हर कदम से खुद को ही परेशानी में डालती जा रही ही है ।
वर्ष 2012 के अंतिम माह में दिल्ली में भी के अन्य राज्यों की तरह शर्मसार करने वाली सामूहिक बलात्कार की एक के बाद एक जघन्य घटना घटित हुई । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने बयान कि 5व्यक्ति के परिवार का महीने का खर्च 600 रूपये काफी है ,से एक बार फिर से विपक्ष के निशाने पे आई । भाजपा के प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नकवी ने संप्रग सरकार की सब्सिडी के बदले नगदी देने की योजना के सन्दर्भ में शीला दीक्षित के बयान को गरीबों का अपमान करार दिया । अपमान तो शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली सरकार इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक बनाये जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का विरोध करके उन शहीदों का भी कर चुकी है जिन्होंने आजादी के पश्चात देश हित में अपने आप को कुर्बान किया । दरअसल रक्षा मंत्री ए के एंटोनी की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह ने इंडिया गेट के समीप प्रिंसेस पार्क में स्वतंत्रता के पश्चात शहीद हुये सैनिकों की याद में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने की सिफारिश की है और इस सिफारिश का विरोध दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने करते हुए कहा कि इससे इलाके का माहौल प्रभावित होगा और घुमने - फिरने के मकसद से यहाँ आने वाले लोगो की आवा जाही पर भी असर पड़ेगा । दिल्ली की मुख्यमंत्री शिला दीक्षित की मानसिकता व सोच का दायरा उनके बयानों से समझ आ ही जाता है । शहीदों की याद में बनने वाले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण पे एतराज निःसंदेह घृणित सोच का परिचायक है ।
Wednesday, November 21, 2012
22 नवम्बर - स्व रामसेवक यादव और मुलायम सिंह यादव को जोडती तारीख
अरविन्द विद्रोही ..........................................................................
तारीखों का अपना महत्व अलग ही होता है । पुरखों , शख्सियतों को प्रति दिन स्मरण करना , उनके आदर्शो-संकल्पों का स्मरण करना ,स्वयं अपने चारित्रिक-मानसिक विकास के लिए अत्यंत कारगर होता है । परन्तु पुरखों- शख्सियतों के जन्मदिन व पुण्य तिथि को विशेष यादगार दिवस के रूप में मनाना एक अच्छी सोच व सच्चे अनुयायी के प्रत्यक्ष परिलक्षित होने वाले गुणों में से एक होता है । अद्भुत संयोग की घडी तब आ जाती है जब एक ही दिन दो शख्सियतों का मेल हो जाये । तमाम ऐसे ही दिवसों में से एक दिवस 22 नवम्बर भी है,इस दिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्म दिन तो है ही आज ही के दिन 1974 में समाजवादी पुरोधा राम सेवक यादव की आत्मा ने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर परिनिर्वाण की प्राप्ति की थी ।
वर्तमान सामाजिक राजनितिक फलक पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बहुचर्चित राजनेता है । उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के सैफई गाँव में माता श्रीमती मूर्तिदेवी के कोख से जन्मे मुलायम सिंह यादव के जन्म २२नवम्बर,१९३९ के समय उनके जन्मदाता पिता श्री सुघर सिंह यादव ने भी तनिक कल्पना नहीं की होगी कि उनकी संतान के रूप में जन्मा यह अबोध बालक करोडो-करोड़ गरीबो-मज़लूमो-पीडितो-वंचितों-आम जनों का दुःख हर्ता बनकर युगों युगों तक के लिए कुल का नाम रोशन करेगा | क्या उस वक़्त किसी ने भी तनिक सा सोचा होगा कि एक किसान के घर जन्मा यह बालक मुलायम अपनी वैचारिक-मानसिक दृठता और कुशल संगठन छमता के बलबूते समाजवादी विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी व उनके संकल्पों,उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने वाला बनेगा? और स्व राम सेवक यादव का नाम जनसाधारण , नई समाजवादी पीढ़ी के लोगो के लिए अनजाना सा हो गया है । सवाल लाज़मी है की आखिर राम सेवक यादव थे कौन ? रामसेवक यादव ही वह शख्स थे जिन्होंने युवक मुलायम सिंह यादव की प्रतिभा को पहचान कर युवजन सभा की जिम्मेदारी सौपीं थी और राजनीती में आगे किया था ।
ग्राम ताला मजरे रुक्मुद्दीनपुर पोस्ट थल्वारा (वर्तमान में पोस्ट रुक्मुद्दीनपुर ) परगना व थाना सुबेहा हैदरगढ़ जनपद बाराबंकी के एक संपन्न कृषक परिवार में हुआ था । पिता श्री राम गुलाम यादव को किंचित भी अभाश न था कि उनका यह वरिष्ठ पुत्र देश की राजनीती में अपना व जनपद का नाम रोशन करेगा । दो अनुजों क्रमशः प्रदीप कुमार यादव और डॉ श्याम सिंह यादव तथा तीन बहनों क्रमशः रामावती , शांतिदेवी व कृष्णा के सर्व प्रिय भाई रामसेवक यादव की प्राथमिक शिक्षा कक्षा 4 तक की ग्राम ताला में ही हुई । मिडिल5 -6 की शिक्षा अपने एक करीबी रिश्तेदार जो की मटियारी-लखनऊ में रहते थे के घर पे रहकर ग्रहण करी ।कक्षा 7 की शिक्षा के लिए बाराबंकी के सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया । सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल से कक्षा 8 की परीक्षा में सफल होने के पश्चात् हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्थानीय राजकीय हाई स्कूल में राम सेवक यादव ने दाखिला लिया । इंटर मिडियट की शिक्षा रामसेवक यादव ने कान्य कुब्ज इंटर कॉलेज से पूरी करी । उच्च शिक्षा स्नातक व विधि स्नातक की उपाधि लखनऊ विश्व विद्यालय से ग्रहण करके रामसेवक यादव ने बाराबंकी जनपद में वकालत करना प्रारंभ किया ।
आज़ादी के पश्चात् 1952 के चुनावो में कांग्रेस व नेहरु के नाम का डंका बज रहा था , वहीं दूसरी तरफ आज़ादी के पश्चात् देश में बुराई की जननी कांग्रेस व नेहरु को मानने वाले समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से देश के ग्रामीण जनता के हितकारी विचार व कार्यक्रम देने में जुटे थे ।बाराबंकी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दमदार प्रत्याशी जगन्नाथ बक्श सिंह के मुकाबिल सोशलिस्ट पार्टी ने रामसेवक यादव को अपना प्रत्याशी बनाया ,1952 का यह चुनाव रामसेवक यादव हार गए थे लेकिन सामाजिक राजनितिक सक्रियता व प्रभाव बढ़ता गया ।
बाराबंकी जनपद में 1955-56 में अलग अलग घटनाओ में कांग्रेस के विधायक भगवती प्रसाद शुक्ला और सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या हो गयी । सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या अपने मित्र सियाराम से मित्रता निभाने के परिणामस्वरूप हुई थी । लल्ला जी की हत्या के प्रतिकार स्वरुप रामसेवक यादव ने जनता को जगाने का शुरू किया तथा जालिमों - हत्यारों के इलाकों में जाकर सोशलिस्ट पार्टी की बैठकों -सभाओं का आयोजन किया । सोशलिस्ट पार्टी के विधायक स्व लल्ला जी की श्रधांजलि सभा बड्डूपुर में समाजवादी पुरोधा डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था कि --- लल्ला जी की शहादत ने यह साबित कर दिया है की खाली एक माँ के पेट से पैदा होने वाले ही दो सगे भाई नहीं होते बल्कि अलग अलग माँ के से पैदा होने वाले भी सगे भाई हो सकते है । सोशलिस्ट पार्टी के नेता रामसेवक यादव द्वारा लल्ला सिंह - सियाराम की हत्या के विरोध में जनांदोलन व मजबूत अदालती पैरवी के चलते ही मुख्य अभियुक्त भोला सिंह 26सहित लोगो को दोहरे हत्याकांड के इस मामले में सजा हुई थी । 1956 के दौरान हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा उप चुनाव में रामसेवक यादव रामनगर विधान सभा से विजयी हुए । 1957 के आम चुनावों में बाराबंकी जनपद की पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जीते थे । 1957-62,1962-67 और 1967-71 तीन बार रामसेवक यादव लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए । उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रुधौली से 1974 में निर्वाचित हुए और उपभोक्ता विभाग और अध्यक्ष लोक लेखा समिति भी रहे । आपकी मृत्यु सिरोसिस ऑफ़ लीवर बीमारी के कारन हुई ।
रामसेवक यादव मन से गरीबों के दोस्त व वंचितों के साथी थे ।अपने गुणों के कारन ही वे डॉ लोहिया के प्रिय थे । पार्टी की जिम्मेदारी के साथ साथ डॉ लोहिया ने रामसेवक यादव को लोकसभा में पार्टी संसदीय दल का नेता भी बनाया था । स्व रामसेवक यादव के बाल्य काल से मित्र रहे वयोवृद्ध समाजवादी नेता अनंत राम जायसवाल (पूर्व मंत्री-पूर्व सांसद ) की नज़र में रामसेवक यादव के अन्दर आम जनता को जोड़ने और उनके लिए लड़ने की असीम ताकत थी , वो सही मायनों में गाँव -गरीब के नायक थे । स्व रामसेवक यादव के राजनितिक उत्तराधिकारी अरविन्द कुमार यादव ( पूर्व विधान परिषद् सदस्य ) के अनुसार डॉ लोहिया , राम सेवक यादव के पश्चात् अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी आन्दोलन व संघर्ष को नूतन आयाम दिए है ।
आज जरुरत है समाजवादी युवाओ को स्व रामसेवक यादव सरीखे समाजवादी आन्दोलन की आधार शिलाओं को स्मरण करने का ,उनके संघर्षो-विचारो के अनुपालन का ।
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