Monday, November 1, 2010

जनसुविधायें-जनअधिकार बहाल हों

जनसुविधायें बद से बदतर होती जा रहीं हैं। जनसमस्यायें सुरसा की तरह मुॅंह बाये जनता का सुख चैन लील रही है। भ्रष्टाचार का रावण,तानाशाही रूपी मेघनाद एवं माफिया रूपी कुंभकर्ण के बदौलत जनता की शान्ति रूपी सीता का हरण कर चुका है ।जाने कब इन कलयुगी राक्षसों की लंका का भेदन रामभक्त कोई हनुमान करेगा?
आज आम नागरिक का जीवन नारकीय स्थिति में पहुॅंच गया है। घण्टों विद्युत कटौती के कारण नौकरशाहों,माफियाओं,पूॅंजीपतियों और राजनैतिज्ञों को छोडकर सारी जनता का जीवन कोढ में खाज सरीखा हो गया है ।जन-गण-मन के भाग्य विधाता वातानुकूलित कमरों में जनरेटरों के सहारे अपने ऐश्वर्य का भोग और निर्लज्जता पूर्वक प्रदर्शन करते हुए बेचारी जनता जनार्दन के कल्याण हेतु कार्यक्रम बनाते रहते हैं।अनियंत्रित व भ्रष्टाचार से सराबोर विकास व कल्याण का रथ जन-भावनाओं को रौंदता हुआ भाग्यविधाताओं की तिजोरी भरता हुआ तेजी से दौड रहा है ।इनके मनमाने,अदूरदर्शी,पाखण्ड भरे जनविरोधी कृत्यों का प्रतिफल कौन,कब,कैसे और कहॉं देगा?इन कलयुगी राक्षसों का संहार कौन करेगा?राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे पर दोषारोपण करते देख जनता का मन क्लान्त हो चुका है। चुनाव में मतदान के प्रति उदासीनता राजनैतिक दलों व व्यक्तियों में चारित्रिक गिरावट के ही कारण है ।समस्याओं के खिलाफ आवाज बुलन्द करने वाला जनसमर्थन के अभाव में जटायु की भॉंति सीताहरण विफल करने के प्रयास में असहाय बेचारगी व पराजय झेलता दिखायी पडता है ।जनसमस्याओं
पर आन्दोलन का स्थान नेता,नेता पुत्रों,सम्बन्धियों से सम्बन्धित मामलों पर जो कि वर्चस्व के लिए स्वप्रायोजित होते हैं,ने,ले लिया है।नेताओं का जन्मदिन जनता को साक्षात स्वर्ग के दर्शन करा देता है।नेताओं के जन्मदिन पर कार्यकर्ता जो कि जनता का ही हिस्सा है,समुद्र रूप धारण कर सडको। पर फैले दिखते हैं।फिर क्या अपनी समस्याओं के लिए जनता भी जिम्मेदार नहीं है?दलीय कार्यक्रमों,नेताओं के स्वागत में किन्नरों सा उत्साह प्रदर्शन और अपनी ही समस्याओं से लडने के लिए वक्त की कमी और कोई सुनता नहीं-जैसा मिथ्या प्रलाप ।यह जो आत्महत्या करने जैसा कदम भारत का आमजन उठाता आ रहा है,यह भ्रष्टाचारियों,पूॅंजीपतियों और वंशानुगत राजनीति को संजीवनी दे रहा है ।रही सही कसर अपराधियों द्वारा राजनीति की लंका पर प्रभावी पहरेदारी-कब्जेदारी के प्रयासों ने पूरी कर दी है।

संतुष्टि जनता के लिए अभिशाप बन चुकी है।जो हमारा हक है,उसका आधा या कोई भी हिस्सा हमें मिल रहा है,चलो,कोई बात नहीं, मिल तो रहा है,यह भाव जनसुविधाओं में लगातार कटौती का एक कारण बना है।सरकारी योजनाओं में लाभार्थी से धन-उगाही,अपात्रों द्वारा लाभ अर्जित करने हेतु लोकसेवकों को प्रलोभन देना,दबंगों की मदद से असहायों की भूमि पर कब्जा,सार्वजनिक सम्पत्ति पर कब्जा,कमीशनखोरी,घटिया निर्माण,शिक्षा-स्वास्थ्य-ग्राम्य विकास जैसे महकमों में व्याप्त अनाचार जनता के साथ साथ देश को भी रसातल में ले जा रहें हैं।असंतोष की ज्वाला कहीं जल ही नहीं रही है,धुॅंआ का आभास मात्र हो रहा है ।हालात तो यह है कि जनसमस्या से निजात पाने के लिए जनता को सडक पर होना चाहिए,पर हाय रे बेबसी...
क्या इसी स्वतन्त्र भारत की अवधारणा संजोयें सरदार भगतसिंह ने फॉंसी के फन्दे को स्वीकारा था?क्या महामानव महात्मा गॉंधी ने इसी स्वराज्य के लिए यहॉं की जनता की आजादी की लडाई लडी थी? सरदार भगतसिंह की कल्पना- जनता के लिए जनता की सरकार -कब साकार होगी?आजाद भारत का शासन प्रशासन व पुलिसिया तंत्र ब्रिटिश काल की दरिंदगी को शिकस्त दे रहा है।
शासन को गम्भीरतापूर्वक मनन् करना चाहिए-लोगों के दिलोदिमाग में आग सुलग रही है।यह आग कभी भी विकराल रूप धारण कर सकती है,ज्वालामुखी बनकर फूट सकती है।किसका आशियाना असंतोष रूपी यह लावा जला दे,इसका ठिकाना नहीं है ।जागो हे शासन सत्ता के मद में चूर राजनेताओं-जागो ।अगर अब भी तुम्हारी सत्ता मद में चूर निद्रा भंग नहीं हुई तो विभिन्न अंचलों में फैली हुई गरीब,मेहनतकश रियाया के असंतोष की आग,तथाकथित अराजकता,माओवाद,नक्सलवाद,क्षेत्रवाद,भाषावाद आदि के रूप में फैली असंतोष की यह आग हवा रूपी चन्द झोंकों के इन्तजार में सुलग रही है ।यह हवा शासन की दमन नीति ही बनेगी,इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है।इस असंतोष की आग को न तो उपेक्षित किया जा सकता है,न बुझाया जा सकता है।हॉं,जनता की आवाज को सुनकर,जनहित के कार्यों को ईमानदारी से करके,जनसुविधाओं-अधिकारों की तत्काल बहाली करके इसको सकारात्मक रूप में अवश्य परिवर्तित किया जा सकता है ।निश्चित ही यह कार्य सत्ता के शीर्ष पर आसीन नीतिनिर्धारकों को करना ही पडेगा,और उन्हे करना भी चाहिए, वरना् इतिहास तो दोहराया ही जाता है।