Friday, October 29, 2010

प्रयास

धरोहरों कों सजोंने का,

शहीदों को नमन का ।

राष्टप्रेम को जगाने का,

गौरव को बताने का ।

आत्मबल को बढ़ाने का,

गुलामी से मुक्ति पाने का ।

जनचेतना को जगाने का,

समृद्ध राष्ट बनाने का ।

मानवता को बचाने का,

परचम फिर लहराने का ।

अभी तो अधूरा संकल्प है ।

प्रेरणा मिलेगी ,

कैसे ? कब ? कहाँ ?

आदर्श बचे ,

कहाँ ?

ढूढ़ता हूँ भीड़ में,

शायद मिल जाये भीड़ में ।

और यहाँ भीड़ ,

समूह है भेड़ों का ।

चरवाहे हैं वही,

नेता,अपराधी व नौकरशाह ।

जो ये कहें,करते रहो,

चुपचाप जीते हुए मरते रहो ।

चुप रहो,शान्त रहो,

शान्ति ही जीवन है ।

पर क्या यह सत्य है ?

अभी तो अधूरा संकल्प है ।।।।

हमें जगाती चिड़िया

चीं-चीं-चीं चिड़िया करती,
मेरे घर में वो रहती है।
रोज सुबह वह शोर मचाती,
हमको बिस्तर से है उठाती।
चीं-चीं-चीं करती जाती,
भोर हुई उठ कहती जाती।
जब तक हम उठ न जाते,
चीं-चीं-चीं करती जाती।
उठ कर बिस्तर से जैसे ही,
दरवाजों के पट खोलें हम।
नील गगन में उड़ जाती है।
हमसे कहती अब तुम भी,
झट से विद्यालय जाओं न।
पढ़ना-लिखना जाओ सीखों,
समय व्यर्थ गवाओं न।
चीं-चीं-चीं करती चिड़िया ,
प्रतिदिन हमें उठाती है।
अच्छी चिडिया सुन्दर चिडिया,
हमें राह दिखाती है