Friday, August 12, 2011

सर्वशक्तिमान , प्यार और मानव के जीवन में प्यार के मायने


अरविन्द विद्रोही क्या कोई सर्व शक्तिमान है,जिसने सृष्टि की रचना की है | अगर है कोई सर्व शक्तिमान तो क्या उसे अपनी रची रचना में सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले मानव का अधोपतन दिखाई नहीं पड़ता ? यह मानव जाति ही है ना जो अपने को सभी प्राणियो में सर्वाधिक बुद्धिमान मानती है | सारे धर्म ग्रन्थ के मूल आधार-भूत सिधांतो से अपने को अपने पाखंड पूर्ण , आडम्बर भरे पूजा व उपासना पद्धति से नकारता मानव अपने मानव धर्म से भी कोसो दूर हो चला है | प्राणी मात्र से प्रेम, सौहार्द , भाई चारे का स्थान नफरत , अलगाव , मनमुटाव ,क्लेश व द्वेष आदि मनोविकारो ने ले लिया है | क्या मानव सचमुच सर्व शक्तिमान की सर्वश्रेष्ट रचना है ? ढाई आखर का एक शब्द - प्यार , सृष्टि के रचनाकार का भी शायद अभीष्ट | यह प्यार ही तो रहा होगा जब उसने जीवन में रंग भरते हुए अनूठे अहसास के लघु बीज को जीवात्मा में रोपित किया | हे सृष्टि के रचनाकार - तुम अगर हो तो अपने अस्तित्व का आभास मात्र ही कराओ | इस काल के मानव के पशुवत आचरण के पीछे क्या कोई लीला है तुम्हारी? अब अगर यह कोई लीला है तो यह तो तुम ही समझते होगे , हम तो सिर्फ यह समझते है कि जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है, फसल लगाता है , उसके बाद अगर वही किसान अपने खेत व फसल की निगरानी ना करे ,खर- पतवार की निराई-गुड़ाई ना करे तो निश्चित रूप से फसल ख़राब हो ही जाति है, बीज दबा रह जाता है , अनावश्यक खर - पतवार की फसल खड़ी हो जाती है | देखने वाले बीज व फसल को दोषी नहीं मानते है, और ना ही खेत को , दोषी तो किसान ही माना जाता है , और अपनी अकर्मण्यता के लिए अनजानों से भी दुत्कारा जाता है | किसान तो खैर तेरी सृष्टि का एक सबसे निरीह व बेबस प्राणी है जो तेरे बनाये तथा कथित सर्वश्रेष्ट रचना मानव के रूप में जन्मने के बावजूद चन्द मानव के शोषण आधारित राज्य का शिकार है |अन्न दाता भरी दोपहरी , उमस भरी गर्मी , भीषण बरसात व सर्दी के थपेड़ो को जीता हुआ अपनी बदहाली व बेबसी को सोचता हुआ प्रति पल मरता है | यह अन्न दाता किसान तो तेरी तरह सर्वशक्तिमान नहीं है , क्या सचमुच तू है सर्वशक्तिमान ? अगर है तो अब ठीक कर अपनी रचना | क्या लिखू और कितना लिखू ? मानव जाति के अधोपतन का हाल यह है कि आज प्यार शब्द को वासना की पूर्ति मात्र की अभिव्यक्ति - जरिया मान लिया गया है | आज प्यार शब्द को कामुकता व वासनायुक्त आचरण का पर्याय बना दिया गया है | विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण आज के दौर में अपने चरम पर है , जीवन में संयम का कोई मोल नहीं | यह आकर्षण जो समर्पण , स्नेह , आसक्ति , विछोह , मिलन की यादगार अमिट हस्ताक्षर के रूप में तमाम किस्सों - कहानियो के रूप में मौजूद है आज समाप्त सा हो चुका है | प्यार अब सिर्फ वासना से लबरेज़ युवा वर्ग का विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण से प्रारंभ होकर समर्पण की राह पर ना जाकर अधिकायत में व्यापार , सौदेबाजी , कैरियर , अलगाव की राह पर बार बार टूटता - सँवरता रहता है | वास्तव में उन्मुक्त व स्वछंद जीवन का यह तथा कथित प्यार मनोकामना पूर्ति, लोभ , व्यावसायिकता , सौदेबाजी, वासना पूर्ति और धनार्जन का माध्यम मात्र है | प्यार तो वह भाव है जिसमे प्यार करने वाला अपना सर्वस्व लुटा कर , समर्पित कर के प्रसन्नता महसूस करता है | वर्षो बाद वह कह उठता है कहाँ चली गयी तुम?क्या वापस नहीं आओगी?वर्षों हो गया है तुम्हारा इंतज़ार करते|अब आ भी जाओ|तुम तो बहुत चाहती थी मुझे,फिर अब क्या हो गया?क्यूँ छोड़ के चली गयी?सभी कहते हैं कि अब तुम वापस नहीं आओगी,क्या सचमुच नहीं आ सकती?सुनो..तुमको आना पड़ेगा..मेरे लिए..अपने प्यारे....के लिए..कितना प्यार करती थी तू मुझ को और मैं था कि बस|तू मेरी सबसे प्यारी..थी,थी ना फिर क्या अब आ भी जा..और तू जानती ही है कि तेरे पास आना मेरे बस का नहीं..खैर तेरे इंतज़ार में तेरा| और किसी दिन कह पड़ता है वही दीवाना - जानती हो,तेरी हर बात,तेरा प्यार तेरा मनुहार याद है मुझे|जिस दिन तू छोड़ के गयी मुझे,मैं रात भर जगा था,उसी जगह था जहा से तू चली गयी|किसी ने कहा था--वो चली गयी सो जाओ|मैंने कहा--इस के लिए एक पूरी रात तो जागना ही था,चलो इसी तरह|बहुत याद आती हो,हमेशा.....कब आओगी? वास्तव में अपने ह्रदय में मधुर यादों को सहेजे , स्मृतिओं को जीवन का आधार बनाकर एक प्रेमी जीवन के भव सागर को पार कर लेता है | स्नेह , ममत्व , करुना , समर्पण सरीखे सखा उसके जीवन की नौका के खेवनहार होते है | यह प्रेम की असीम ताकत ही होती है जो प्रेमी को हौसला देती है| कोई भी जिसने अपने जीवन में प्यार को उतार लिया , व्यवहार में अपना लिया , उसके जीवन में नफरत , ईर्ष्या , द्वेष आदि कालिमाओं का कोई स्थान नहीं रह जाता है | यह कलिमायें तो प्रेम रूपी अखंड ज्योति के देदीप्यमान प्रकाश से कभी पास आ ही नहीं सकती है | आह.. तनिक कल्पना तो करो.. उस प्यार के पथिक के खुश हाल जीवन की,,,उस जीवन की जिसमे सब एक दुसरे को प्यार करे जहा किसी विकार की कोई जगह ना हो | हमारी नज़र में तो प्यार एक सरल - सुन्दर अलौकिक भाव है | प्यार एक ताकत है | यह वह भाव है जिसे जब तक आत्मसात ना किया जाये तब तक समझ पाना नामुमकिन है | प्यार किसी सिधान्त का मोहताज़ नहीं है | समर्पण- स्नेह का आधार युक्त प्यार प्राणी मात्र को बुलन्दियो पर ले जाता है | जिसने अपने जीवन में प्यार को स्थान दिया प्यार को जिया , प्यार से जिया , प्यार किया उस ने परम पिता परमेश्वर के सानिध्य को पाने के मार्ग पर चलने का अपना राह प्रशस्त व सुगम किया | परम पिता तक पहुचने का , अपने कर्त्तव्य को पूरा करने का श्रेष्ठ मार्ग है प्रेम अर्थात प्यार | प्यार के राही बनिए... प्रेम पथिक .... प्रभु के पास जाने का एक मार्ग.. अपने अभीष्ट को पाने का एक मात्र मार्ग ..