Thursday, March 29, 2012

समाजवादी पार्टी में आये दलाल

समाजवादी पार्टी की बहुमत की सरकार गठन के पश्चात् समाजवादी पार्टी के नेतृत्व पर अपने घोषणा पत्र को लागु करने का दबाव है और युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर अपनी संघर्ष शील युवा साथियों के साथ साथ धुर समाजवादियो के विश्वास पे खरे उतरने की महती जिम्मेदारी है | समाजवादी सरकार के प्रारंभिक निर्णयों से आशा है कि उम्मीदों की साइकिल अपनी मंजिलो को बेहतर तरीके से पायेगी | समाजवादी पार्टी के जिम्मेदारो को एक बात का ध्यान रखना चाहिए -- समाजवादी पार्टी में मार्च के जन आन्दोलन के पश्चात् दुसरे दलों से सपा में शामिल कई नेता नव नियुक्त अधिकारीयों-मंत्रियों के दफ्तरों में लगातार चक्कर लगाते देखे जा रहे है | आम जनता के बीच ना काम , ना सपा संगठन का काम , मुफ्त में मिल गयी इनको सपा की सरकार | ध्यान दीजिये - दुसरे दलों से आये दलाल समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओ से अपनी नजदीकी बता व दिखा के दलाली में लग चुके है |

यूथ वेलफेयर सोसाइटी


यूथ वेलफेयर सोसाइटी के महासचिव दानिस सिद्धिकी अपने साथियों के साथ नव नियुक्त जिला अधिकारी बाराबंकी से मिलते हुये

Thursday, March 22, 2012

२३ मार्च - बलिदान व समाजवाद की एक यादगार - प्रेरक तारीख

अरविन्द विद्रोही ................. २३ मार्च , बलिदान व समाजवाद की एक यादगार - प्रेरक तारीख | २३ मार्च के ही दिन समाजवाद को नयी परिभाषा , नयी सोच और विचारो से कर्म तक के संघर्ष का नूतन पथ प्रदर्शित करने वाले डॉ राम मनोहर लोहिया का जन्म हुआ था | डॉ राम मनोहर लोहिया का जन्म २३ मार्च , १९१० को हुआ | डॉ लोहिया का जन्म उस दौर में हुआ जब भारत ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था | भारत की तरुणाई गुलामी की जंजीरों को तोड़ने का हर संभव प्रयास कर रही थी | डॉ लोहिया के जन्म से मात्र ५ वर्ष बाद २३ मार्च , १९१५ को भारत की आज़ादी के लिए छेड़े गये २१ फ़रवरी , १९१५ के विप्लव के अपराधी रहमत अली , दुदू खान , गनी खान , सूबेदार चिश्ती खान , हाकिम अली को उनके वतन भारत से दूर मलय स्टेट गाइड , मलय- सिंगापूर में वतन परस्ती के जुर्म में गोली से उड़ा दिया गया | पंजाब के लुधियाना जिले के हलवासिया गाँव के रहने वाले रहमत अली को जो कि फौज में हवलदार के पद पर मलय स्टेट गाइड में तैनात थे , को ग़दर पार्टी के प्रचारको ने २१ फ़रवरी , १९१५ के विप्लव से जोड़ा था | इस विप्लव के सूत्रधार कर्तार सिंह सराभा , रास बिहारी बोस , विष्णु गणेश पिंगले , शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि थे | २३ मार्च , १९१५ के पश्चात् २३ मार्च , १९३१ को जंग ए आज़ादी की बलिवेदी पर भगत सिंह , राजगुरु व सुखदेव तीनो फांसी पर चढ़ा दिये गये | इनकी शहादत ने भारत के युवा मन को क्रांति पथ पर चलने को प्रेरित कर दिया | २३ मार्च , १९३१ के पश्चात् १९८८ में २३ मार्च के ही दिन पंजाब के क्रांति के गीत लिखने वाले अवतार सिंह पाशा को आतंक वादियो ने गोलियों से भून दिया था | साहित्य के माध्यम से जन चेतना जगाने का बीड़ा उठाने वाले पाशा की रचनाएँ राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन को स्वर देती है | इनकी रचनाओ ने सरकार तथा शोषक वर्ग दोनों के हितो को प्रभावित किया | २३ मार्च , १९१० को राम मनोहर लोहिया का जन्म - २३ मार्च ,१९१५ को रहमत अली , दुदू खान , गनी खान , सूबेदार चिस्ती खान , हाकिम अली का बलिदान - २३ मार्च ,१९३१ को भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव को फांसी तथा २३ मार्च , १९८८ को आतंवादियो द्वारा क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाशा की गोलियों से भूनकर की गयी निर्मम हत्या इन सभी चार एतिहासिक घटनाओं ने २३ मार्च को प्रेरणा की श्रोत व तारीखों में महत्वपूर्ण तारीख बना दिया है | लोहिया से पाशा तक सभी दसो सपूतो ने अपना जीवन अपनी मात्र भूमि के लिए कुर्बान किया | भारत भूमि की माटी से जुड़े ये सभी बलिदानी व्यवस्था परिवर्तन के हिमायती थे | समाज के निचले पायदान पर रह गये वंचितों की गैर बराबरी के खात्मे के हिमायती तथा मानव के द्वारा मानव के शोषण की खिलाफत करने में भगत सिंह , लोहिया और पाशा ने कोई कसर नहीं रखी | साम्राज्य वाद और पूंजी वाद के स्थान पर समाजवाद की परिकल्पना संजोये ना जाने कितने प्रेरक लेख व गीत इन्होने लिख डाले | जगह जगह २३ मार्च के उपलक्ष्य में आयोजन होते है | समाजवादी चरित्र के लोगो की निगाहें इस बात उत्तर प्रदेश पर केन्द्रित है | अपने को डॉ लोहिया के विचारो की पार्टी मानने वाली समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के हालिया विधान सभा चुनावो में २२४ विधायक निर्वाचन के पश्चात् स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना चुकी है | उत्तर प्रदेश में गठित समाजवादी पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी अखिलेश यादव - प्रदेश अध्यक्ष , सपा ने संभाली है | उम्मीदों की साइकिल पर सवार होकर अखिलेश यादव ने बसपा सरकार के तानाशाही - मनमाने शासन के खिलाफ जबरदस्त संगठन करके , जन संघर्ष खड़ा करके जो विश्वास अर्जित किया है , उसको बरक़रार रखना ही सर्वाधिक दुष्कर चुनौती है | अपने को एक समाजवादी चरित्र का , डॉ लोहिया के विचारो का सच्चा सेनानी साबित करने की चुनौती है अब - अखिलेश यादव के सम्मुख | खुद को डॉ लोहिया का , समाजवाद का अनुयायी बनाने व साबित करने के लिए किसी को भी लोहिया को , समाजवाद को मन से , कर्म से और वचन से आत्म सात करना पड़ेगा | अखिलेश यादव के अन्दर विचारो के प्रति दृढ़ता के बूते ही जनता को आकर्षित करने की छमता बढ़ी है | समाजवादी मूल्यों के प्रति दृठता में लचीलापन जनविश्वास और जन आकर्षण में कमी ही उत्पन्न करेगा ,यह तथ्य सदैव समाजवादी नेतृत्व को ध्यान में रखना चाहिए | समाजवादियो की आशाव के केंद्र बिंदु बनके उभरे अखिलेश यादव को डॉ राम मनोहर लोहिया की यह बात कि --- मुझे खतरा लगता है कि कही सोशलिस्ट पार्टी कि हुकूमत में भी ऐसा ना हो जाये कि लड़ने वालो का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक़्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये | लोहिया स्मृति से एक प्रसंग मन को उद्वेलित करता है | कितने महान व संवेदन शील थे - डॉ लोहिया , इसकी बानगी इस प्रसंग से पता चलती है | एक बार २३ मार्च को होली का पर्व पड़ा तब डॉ लोहिया ने बदरी विशाल पित्ती से कहा था - (यह दिन अच्छा नहीं है | मेरे लिए ख़ुशी का नहीं है और टीम लोगो के लिए भी नहीं होना चाहिए | आज २३ मार्च है , आज ही मेरे नेता भगत सिंह को फांसी हुई थी | ) डॉ राम मनोहर लोहिया के अधूरे पड़े संकल्पों को पूरा करने कि दिशा में , उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने की दिशा में , अमली जमा पहनने की दिशा में सार्थक कदम उठाने की नितांत आवश्यकता है | यह आवश्यकता समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी महसूस की थी | मुलायम सिंह यादव के ही शब्दों में --- वर्त्तमान परिवेश में लोहिया जी के आदर्श और विचार सर्वाधिक प्रासंगिक हो गये है | अतः इनका जन जन तक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए | वह लोक भोजन, लोक भाषा और लोक भूषा के प्रबल पक्षधर थे तथा उन्होंने जीवन पर्यत्न दलितों , शोषितों एवं पीडितो की लडाई लड़ी | २३ मार्च की इस प्रेरक तारीख पर लोहिया के लोगो के शासन को जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के संकल्प के साथ बलिदानियो के सपनो का कल्याण कारी - समाजवादी राज्य स्थापित करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए |

Wednesday, March 21, 2012

समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पिछले साल मार्च में तीन दिवसीय जन आन्दोलन किया था , यह वह निर्णायक मोड़ था जिसके बाद पुरे प्रदेश में बसपा से नाराज़ जनता का मन सपा की तरफ बन गया | समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओ के संघर्ष से बने जन समर्थन को भांप के तमाम नेता तत्काल सपा में शामिल हो गये और कई तो विधान सभा का टिकेट भी पा के निर्वाचित हो गये | समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को मंथन करना चाहिए और जिन कार्यकर्ताओ -नेताओ ने अपनी निष्ठा कभी ना बदली और संघर्ष में जेल गये ,लाठी खायी , यहाँ तक कि संगठन के पदों पे भी नहीं रहे ,अब प्राथमिकता के आधार पर उनको संगठन व सत्ता में जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए | जनपदों में तमाम नेता ऐसे है जो संगठन के जिम्मेदार पदों पर वर्षो से अहमियत पा रहे है और अब सत्ता में भी लाल बत्ती की जुगत लगाने में रात दिन एक किये है , इनकी मंशा संगठन विस्तार की ना होकर अपने व्यक्तिगत लाभ अर्जन की साफ़ तौर पर दिखती है | विधान सभा चुनावो के दौरान तमाम नेता दल बदल के सपा में शामिल हुये और ये दलबदल के आये सभी नेता सत्ता में मलाई काटने , विधान परिषद् सदस्य बनने या किसी आयोग का अध्यक्ष बनने , सदस्य बनने में अपनी लामबंदी कर रहे है | सपा नेतृत्व को मार्च आन्दोलन-२०११ के पश्चात् शामिल किसी भी नेता को लोकसभा २०१४ के पहले कोई भी लाभ का पद नहीं देना चाहिए | समाजवादी पार्टी के पुराने नेताओ-कार्यकर्ताओ को संगठन-सत्ता में जिम्मेदारी देने से समर्पित लोगो में विश्वास जागेगा | मार्च २०१४ के पश्चात् शामिल लोगो को संगठन के कामों में जुटाना चाहिए और २०१४ के लोकसभा चुनावो के पश्चात् जिन लोगो ने मेहनत से काम किया उनको तवज्जो देनी चाहिए | समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को यह भी ध्यान रखना होगा कि अन्य दलों से एन चुनावो के पहले शामिल लोग कही सत्ता का बेजा लाभ उठाने और दलाली करने में तो नहीं लगे हुये है | जनपदों में जिम्मेदार पदों पर नियुक्त लोगो,खासकर जिला अध्यक्ष , जिला महा सचिव , कोष अध्यक्ष को अभी लोकसभा २०१४ तक सत्ता में किसी जिम्मेदारी के पद को देने से बचना चाहिए | जनपदों में एक व्यक्ति-एक पद का नियम निर्धारित होना जरुरी है |

Friday, March 16, 2012

स्मृति शेष -- जंग ए आज़ादी के गुमनाम सेनानी बलवंत सिंह का बलिदान दिवस १७ मार्च

अरविन्द विद्रोही ....................... श्री बलवंत सिंह का जन्म सरदार बुद्ध सिंह के घर पहली आश्विन संवत १९३९ दिन शुक्रवार को गाँव खुर्द पुर जिला जालंधर में हुआ था | आदम पुर के मिडिल स्कूल में आपका दाखिला कराया गया | कम उम्र में ही आपका विवाह भी हुआ , शीघ्र ही पत्नी की मौत भी हो गयी | स्कूल त्याग कर बलवंत सिंह फौज में भर्ती हुये | वहां संत कर्म सिंह जी की संगति से आप ईश्वर भजन करने लगे | आपका दूसरा विवाह हुआ | दस वर्षो बाद नौकरी छोड़ कर गाँव के पास स्थित एक गुफा में ग्यारह माह तक तपस्या की | सन १९०५ में कनाडा चले गये | आपके ही अथक प्रयासों से वैंकोवर में अमेरिका का पहला गुरु द्वारा स्थापित हुआ , इस कार्य में आपके साथी थे श्री भाग सिंह | बाद में भाग सिंह की एक देश द्रोही ने गोली मार कर हत्या कर दी | उस समय वहां के प्रवासी हिन्दुओ तथा सिक्खों को मृतक संस्कार करने में बड़ी विपत्ति होती थी | मुर्दे जलाने की उन्हें आज्ञा ना थी | श्री बलवंत सिंह ने कुछ जमीने खरीदी तथा दाह संस्कार की अनुमति ले ली | भारतीय मजदूरों को संगठित किया | उनमे सच्चरित्रता तथा ईश्वरोपासना का प्रचार किया | आपने गुरुद्वारा का ग्रंथी बनना स्वीकार किया | इमिग्रेसन विभाग ने भारतीओं को कैनेडा से हटाने का षड्यंत्र रचा | भारतीय मजदूरों को हांडूरास नामक द्वीप में चले जाने को राजी करने का प्रयास किया | बलवंत सिंह श्री नागर सिंह को द्वीप देखने भेजा | वहा इमिग्रेसन विभाग वालो ने उन्हें भारत में पाँच मुरब्बे जमीन और पाँच हज़ार डालर देने का लोभ देकर भारतीओं को इस द्वीप पर भेजने को कहा | नागर सिंह ने घुस ठुकरा कर बलवंत सिंह को वास्तविकता बता दी | प्रवासी भारतीओं की इच्छा थी कि हमारा पूरा परिवार साथ आकर रहे | श्री बलवंत सिंह , श्री भाग सिंह , भाई सुन्दर सिंह जी को भारत लौट कर अपने परिवार को लाने के लिए भेजा गया | १९११ में ये तीनो सपरिवार हांगकांग पहुचे | वैंकोवर आने के लिए काफी मुसीबतें उठाई | परिवार वालो को जमानत की तयं अवधि तक ही रहने की अनुमति मिली | अवधि बीतते ही इमिग्रेसन विभाग के लोग आ धमके | भारतीय झगडे के लिए तैयार हो गये | अफसर लोग जरा गरम हुये परन्तु वीर योद्धाओं की लाल आँखे देख कर खिसिया कर लौट गये | वे परिवार तो वही रहे परन्तु शेष भारतीओं के परिवार लाने की समस्या बनी हुई थी | तीन सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल बनाया गया जिसमे बलवंत सिंह शामिल थे | प्रतिनिधिमंडल इंग्लॅण्ड गया , वहा कहा गया की मामला भारत सरकार द्वारा यहाँ पहुचना चाहिए | निराश होकर सभी भारत आये | संपर्क व आन्दोलन शुरु किया | उस समय लाला लाजपत राय ने भी एक सडा स उत्तर देकर प्रतिनिधिमंडल से अपना पीछा छुड़ा लिया | फिर क्या था ? ये लोग लगे रहे , सहायता भी मिली और सभाएं भी हुई | घोर निराशा , विवशता , क्रोध से घिरे बलवंत सिंह को सहारा था तो सिर्फ राष्ट्रीय भाव का और कर्त्तव्य निर्वाहन का | बलवंत सिंह ने सभाओं में ह्रदय के अन्दर के लावे को उगला | सर माईकल ओडायर ने अपने ग्रन्थ इंडिया एस आई नो में इस बारे में लिखा है | वे बलवंत सिंह की सफाई , शांति , वीरता , गंभीरता और निर्भीकता को देख कर कहा करते थे कि - बलवंत सिंह सिक्खों के पादरी है अथवा सेनापति , यह निश्चय करना बड़ा कठिन है | बलवंत सिंह ने निश्चय कर लिया था कि भारत को हर सम्भव उपाय से स्वतंत्र करवाना ही प्रत्येक भारत वासी का कर्त्तव्य है और सब रोगों कि एक मात्र औषधि भारत कि स्वतंत्रता है | प्रतिनिधि मंडल २०१४ के प्रारंभ में वापस लौटा | इस समय बरकत उल्लाह तथा श्री भगवान सिंह अमेरिका में थे | बलवंत सिंह और प्रतिनिधि मंडल का अभी इनसे संपर्क नहीं हुआ था | इसी प्रकार कि गतिविधिओ में महीनो बीत गये | सन १९१४ के अंतिम में आप शंघाई पहुचे | वहा आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | परिवार को श्री कर्तार सिंह के साथ वापस भारत भेज दिया | सन १९१५ में बैंकाक आ गये | २१ जनवरी , १९१५ के विद्रोह के आयोजन में जुटे रहे | दुर्भाग्य वश विद्रोह असफल हुआ उसके बाद आप बीमार भी हो गये | डाक्टर ने बिना क्लोरोफोर्म सुंघाए आप्रेशन कर डाला | बीमारी में ही अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिये गये बलवंत सिंह | स्यान - थाईलैंड कि सरकार ने बलवंत सिंह और उनके साथियो को गिरफ्तार करके भारत की अंग्रेज सरकार के हवाले कर दिया | बलवंत सिंह को सिंगापुर लाया गया | मौन साध गये बलवंत सिंह | आखिर कर १९१६ में लाहौर षड़यंत्र-कारियो में आपको भी शामिल किया गया | २४ दिन के नाटक के बाद आपको फांसी की सजा सुनाई गयी | क्रान्तिकारियो के बौद्धिक नेता भगत सिंह लिखते है -- काल कोठरी में बंद हैं , सिक्ख होने पर टोपी नहीं पहन सकते | कम्बल ही सिर पर लपेट लिया है | बदनाम करने के लिए किसी ने शरारत की - कम्बल के किसी कोने में अफीम बांध दी और कहा गया कि आप आत्म हत्या करना चाहते है | अपने अत्यंत शांति से उत्तर दिया -- मृत्यु सामने खड़ी है | उसके आलिंगन के लिए तैयार हो चुका हूँ | आत्म हत्या कर के मैं मृत्यु सुंदरी को कुरूपा नहीं बनाऊंगा | विद्रोह के अपराध में मृत्यु दंड पाने में गर्व अनुभव करता हूँ | फांसी के तख्ते पर ही वीरता पूर्वक प्राण त्याग दूंगा | पूछ ताछ करने पर भेद खुल गया | कुछ नंबर दार कैदियो तथा वार्डर को कुछ सजाएं हुई | सभी ने आपकी देश भक्ति तथा निर्भीकता की दाद दी | १७ मार्च , १९१६ को बलवंत सिंह और उनके साथ छह साथी वीर नहाने के बाद भारत का स्वतंत्रता गान गाते हुये मुक्ति मार्ग पर चल पड़े | छोड़ गये अपने पीढियो के लिए त्याग , तपस्या और देश प्रेम की अनोखी मिसाल | बलवंत सिंह के जीवन संघर्ष को विस्तार से फ़रवरी १९२८ में चाँद के फांसी अंक में भगत सिंह ने लिखा था | भगत सिंह ने लिखा --- वे बड़े ईश्वर भक्त थे | धर्म निष्ठा के कारण उन्हें सिक्खों में पुरोहित बना दिया गया था | शांति के परम उपासक बलवंत का स्वाभाव बड़ा मृदुल था | वे सुमधुर भाषी थे | पहले पहल वे ईश्वरोपासना की ओर लगे | फिर लोगो को उस ओर लाने की चेष्टा की | बाद में लोगो के कष्ट दूर करने के प्रयास में धीरे धीरे गौरांग महाप्रभुओ से मुठभेड़ होती गयी और अंत में फांसी पर मुस्कुराते हुये आपने प्राण त्याग दिये | भगत सिंह ने फांसी के समय को कुछ इस प्रकार से वर्णित किया --- बलवंत सिंह ने प्रातः काल स्नान किया तथा अपने छह और साथियो के साथ भारत माता को अंतिम नमस्कार किया | भारत स्वतंत्रता का गान गाया | हँसते हँसते फांसी के तख्ते पर जा खड़े हुये | फिर क्या हुआ ? क्या पूछते हो ? वही जल्लत , वही रस्सी ! ओह ! वही फांसी और वही प्राण त्याग ! आज बलवंत सिंह इस संसार में नहीं है , उनका नाम है , उनका देश है , उनका विप्लव है |

Monday, March 12, 2012

भूमि अधिग्रहण

उत्तर प्रदेश में किसानों की जो कृषि योग्य बेश कीमती भूमि पिछली सरकारों के द्वारा जबरन व मनमाने तरीके से अधिग्रहित कर ली गयी थी , उन तमाम अधिग्रहित भूमि जहा के किसान अपनी जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ रहे है ,जिन्होंने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया था और अधिग्रहित भूमि पर अधिग्रहण के वर्षो बाद भी कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ है वो सभी भूमि अधिग्रहण चिन्हित करके रद्द किया जाना चाहिए | इस प्रकार की सभी अधिग्रहित कृषि भूमि किसानों के नाम तत्काल की जानी चाहिए ,किसानों के नाम राजश्व अभिलेखों में दर्ज करने का शासनादेश निर्गत किया जाना समाजवादी सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए |

समाजवादी पार्टी में जारी अनुशासन हीनता

समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश व प्रवक्ता सम्बन्धी जारी विज्ञप्ति कि राजेंद्र चौधरी के अलावा कोई भी प्रवक्ता नहीं है का उल्लंघन बदस्तूर जारी , बगलगीर - खासम खास माने जा रहे हालिया नियुक्त एक और सचिव लिख रहे है अपने को समाजवादी पार्टी का प्रवक्ता | अनुशासन हीनता- राजनीतिक अनुभव हीनता का प्रदर्शन जारी ,देखते है क्या होता है अंजाम ?

Friday, March 9, 2012

उत्तर प्रदेश में संघर्ष से सत्ता तक के समाजवादी नायक अखिलेश यादव



अरविन्द विद्रोही .......................... उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो चुका है | विधान सभा उत्तर प्रदेश के आम चुनाव २०१२ में आम जनता के विश्वास रूपी मतों के सहारे , तमाम राजनीतिक पूर्वानुमानो को धता बताते हुये समाजवादी पार्टी ने विजय पताका फहरा ली है | बहुमत के जादुई अंक को पार करते हुये समाजवादी पार्टी ने अपने स्थापना से लेकर अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल की है | बहुजन समाज पार्टी की उत्तर प्रदेश में सत्ता से विदाई के साथ ही साथ परिपक्व हो रहे लोकतंत्र की झलक भी उत्तर प्रदेश के मतदाताओ ने दिखा ही दिया है | माया के मायावी , कांग्रेस के दिखावी , भाजपा के भ्रमित प्रचार युद्ध की जगह समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओ के अनवरत संघर्ष को तरजीह देते हुये आम जनता ने अपनी पहली पसंद के रूप में उम्मीदों की साइकिल का बटन दबा के उत्तर प्रदेश में संघर्ष से सत्ता तक के समाजवादी नायक अखिलेश यादव के माथे पर विजयी तिलक लगा दिया है | बहुजन समाज पार्टी सरकार के जनविरोधी नीतिओ के खिलाफ जनता की आवाज बनने का महती काम करने वाले युवा समाजवादी अखिलेश यादव-सांसद ,प्रदेश अध्यक्ष सपा ने जनता के लिए सड़क पे उतर के संघर्ष करने में तनिक भी संकोच या देर नहीं किया | समाजवादी पार्टी के संगठन में जिम्मेदारी स्वरुप मिले उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद के दायित्व निर्वाहन को बखूबी निभाते हुये अखिलेश यादव ने धुर समाजवादी राजेंद्र चौधरी-प्रवक्ता ,समाजवादी पार्टी को अहमियत देते हुये संगठन से जुड़े प्रत्येक निर्णय में उनकी सलाह को अहमियत देते हुये समाजवादी विचारधारा पर अपनी दृठता निरंतर बढ़ाते रहने पर , कर्मठ युवाओ को अपने से , समाजवादी विचारधारा से , जनता के संघर्ष से जोड़ते रहने पर विशेष ध्यान दिया | आज उत्तर प्रदेश में डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारो पर बनी समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत में आ चुकी है | आज से लगभग १९ वर्ष , ४ महीना पूर्व ४-५ नवम्बर , १९९२ को लखनऊ के बेगम हज़रत महल पार्क में संपन्न हुये समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में देश के लगभग सभी प्रान्तों के तपे-तपाये समाजवादी नेता शामिल हुये थे | इस दौर में मुलायम सिंह यादव ने ना तो शौकिया राजनीति की थी और ना पेशेवर राजनीति की थी | डॉ लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने उस समय छोटे लोहिया पंडित जनेश्वर मिश्र के निर्देश पे जोखिम की राजनीति की थी | मुलायम सिंह यादव ने डॉ लोहिया के कार्यक्रमों को पुनः जीवित करने का महती काम उस दौर में किया था | सपा की स्थापना के समय समाजवादी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुये मुलायम सिंह यादव ने अन्याय के खिलाफ संघर्ष का एलान किया था | अन्याय के खिलाफ संघर्ष की विरासत - यह वह विरासत है जो डॉ लोहिया - जे पी के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने बूते हासिल की थी | समाजवाद की इसी संघर्ष की विरासत को उत्तर प्रदेश में युवा समाजवादियो ने बखूबी निभाया और उत्तर प्रदेश में भ्रष्ट - मनमानी बसपा सरकार के जुल्म के खिलाफ इस संघर्ष के अगुआ के तौर पे समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव - सांसद ने अपनी महती भूमिका को बखूबी अंजाम दिया | उत्तर प्रदेश के विधान सभा के चुनाव में यह सफलता किसी चमत्कार के बदौलत नहीं हासिल हुई है समाजवादी पार्टी को , इस जन विश्वास के पीछे बसपा सरकार के खिलाफ जनता की आवाज बनकर संघर्ष कर रहे समाजवादियो की मेहनत रही है | जनता के मुद्दों पर आन्दोलनरत युवा सपाइयो के शरीर पर पड़ी एक एक लाठी , पुलिसिया बूटो से रौंदे गये युवाओ के जिस्म के दर्द को आम जनता ने अपने दिलो दिमाग में बैठा लिया था | हटाना ही था बसपा की सरकार को , बसपा सरकार के खिलाफ खिलाफ अपने कार्यकर्ताओ के संघर्ष ,अखिलेश यादव के सौम्य -निर्भीक नेतृत्व की बदौलत समाजवादी पार्टी आम जन की पहली पसंद बन चुकी थी और यह अब चुनाव परिणामो से साबित भी हो चुका है | यह निष्ठावान समाजवादियो का संघर्ष ही था कि साल भर पहले से दुसरे दलों से नेता एक के बाद एक समाजवादी पार्टी में अपना भविष्य तलाशने व सुरक्षित करने आने लगे थे | संघर्ष का एक कारवां बनाया अखिलेश यादव ने जिसमे संघर्ष शील नेता-कार्यकर्ता जुड़ते गये | दुर्भाग्य वश चुनावो के दौरान लगभग सभी दलों के जनाधार विहीन- संकुचित सोच के नेताओ ने आम जनता की रोज मर्रा की परेशानियो पर छिड़े संघर्ष की जगह हिन्दू-मुस्लिम और नेपथ्य में जा चुके धार्मिक मुद्दों को अनावश्यक तूल देने का प्रयास किया | यह वही नेता गण थे जिनका कोई जन सरोकार नहीं ,जिनकी पूरी राजनीति सिर्फ कोरी बयान बाजी , जातीय-धार्मिक उन्माद पर टिकी रहती है | नकारे गये ऐसे नेता ,नहीं चलने पाई इनकी सतही व भ्रमित करने वाली स्याह - संकीर्ण राजनीति इस बार यह एक विशेष उपलब्धि रही है चुनाव की | निरंकुश व भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ संघर्ष ही समाजवादियो की पहचान व पूंजी होती है | डॉ लोहिया और जय प्रकाश के बाद समाजवादी संघर्ष को सहेजने - सवारने का काम मुलायम सिंह यादव ने बखूबी अंजाम दिया था | समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओ ने ग्रामीण जनता , छात्रों-युवाओ पर अपनी मजबूत पकड़ की बदौलत ही मुलायम सिंह यादव धरती पुत्र के संबोधन से नवाजे गये | गाँधी-लोहिया - जयप्रकाश के सिद्धांतो के अनुपालन में तनिक भी विचलित ना होने के कारण ,तात्कालिक अन्याय का विरोध करने के कारण , भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ हल्ला बोलने के कारण मुलायम सिंह यादव को जिद्दी भी कहा गया | समाजवादी आन्दोलन में भटकाव व कामियो के बावजूद जन संघर्ष की जो विरासत मुलायम सिंह यादव ने जो अर्जित की थी , उस पर उनके साथ साथ सपा कार्यकर्ता भी खरे साबित हुये है | आज पंडित जनेश्वर मिश्र नहीं है लेकिन उनकी कही हुई बात स्मृति पटल पर अंकित है | कन्नौज की लोकसभा सीट से १९९९ में प्रत्याशी के रूप में अखिलेश यादव का नामांकन करने पहुचे छोटे लोहिया ने पत्रकारों के सवालो के जवाब में कहा था कि - यह संघर्ष का परिवारवाद है , सत्ता का नहीं | इसके पहले शिक्षा ग्रहण कर रहे अखिलेश यादव से एक मुलाकात के दौरान जनेश्वर मिश्र ने अखिलेश यादव से कहा था --- युवाओ को सार्थक व सकारात्मक राजनीति करनी चाहिए और तुमको भी पढाई के बाद करनी है | छोटे लोहिया के मार्ग धर्षण में युवा अखिलेश यादव ने लोक सभा चुनाव जीतने के बाद क्रांति रथ के माध्यम से पुरे प्रदेश का भ्रमण किया था | यह अखिलेश यादव की संघर्ष और जनता से जुड़ने की शुरुआत थी | जनता से जुड़ने की ललक ने ही अखिलेश यादव को नव आशा का केंद्र बिंदु बना दिया है | वर्तमान पीढ़ी में विरलों के ही मन में सीखने की इच्छा होती है ,विरलों को ही धुर समाजवादियो का सानिद्ध्य मिलता है | जनेश्वर मिश्र के शिष्य रूप में अखिलेश यादव ने जनता से जुड़े सवालो को बखूबी समझा , अध्धयन किया , मानसिक दृठता अर्जित करने के साथ साथ कर्मठ युवाओ के समाजवादी संगठन के रूप में समाजवादी पार्टी को एक नयी पहचान दिया | वरिष्ठ समाजवादियो का मार्गदर्शन व युवाओ कि उर्जा के एकीकरण की बदौलत डॉ लोहिया की आर्थिक नीतिओ ,किसानों .मजदूरों,युवाओ,महिलाओ ,आम जन के मुद्दों को सड़क से संसद तक उठाने में अखिलेश यादव किसी भी समकालीन युवा संसद से पीछे नहीं है | सरल स्वभाव के धनी अखिलेश यादव ने वैचारिक दृठता के बूते संघर्ष की राजनीति के सहारे सत्ता तक का सफ़र तय किया है | उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की वर्तमान सफलता के पीछे आम जनमानस के नज़रिए से उत्तर प्रदेश में संघर्ष से सत्ता तक के समाजवादी नायक समाजवादियो की उम्मीदों के केंद्र बिंदु बनके उभरे अखिलेश यादव ही है |

Thursday, March 8, 2012

वर्तमान भारतीय परिवेश में परिवार-रिश्तो को अहमियत देती महिलाओं का जीवन

अरविन्द विद्रोही .............................

भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मातृ शक्ति अर्थात महिला वर्ग का स्थान सदैव सर्वोपरि माना गया है।इस देवभूमि में समस्त आराधना पद्धतियों में नारी शक्ति का पूजन किया जाता है।नारी के बगैर पुरूष के द्वारा की गई ईश आराधना अधूरी ही होती है।सृष्टि के दो अनिवार्य व पूरक अंग के रूप में महिला व पुरूष ही हैं,इस शाश्वत सत्य को कौन नकार सकता है?क्या कोई स्त्री-पुरूष के सहअस्तित्व को नकार सकता है?अधिकारों की बात करें तो भारतीय सभ्यता-संस्कृति व पारिवारिक मूल्य तो परिवार ही नही वरन् समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो नर हो या नारी,बालक हो या वृद्ध सभी के संरक्षण व अधिकारों की बेमिसाल धरोहर है।भारतीय समाज सदैव सहिष्णु व मानवता वादी सोच का रहा है।मुगलों तथा ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की लडाई में महिला शक्ति किसी भी नजरिए से पुरूषों से पीछे नहीं रही हैं।वास्तविकता तो यह है कि वीर पुरूषों की जननी मातृशक्ति ही वीरोचित कर्म व धर्म की प्रेरक रही हैं।

अतीत की गौरव-शाली,बलिदानी,त्यागमयी गाथायें समेटे भारत-भूमि में आज पारिवारिक मूल्य व आपसी विश्वास दम तोड चुका है।जिस प्रकार दीमक अच्छे भले फलदायक वृक्ष को नष्ट कर देता है उसी प्रकार पूॅजीवादी व भौतिकतावादी विचारधारा भारतीय जीवन पद्धति व सोच को नष्ट करने में प्रति पल जुटा है।जिस प्रकार एक शिक्षित पुरूष स्वयं शिक्षित होता है लेकिन एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को शिक्षित व सांस्कारिक करती है,उसी प्रकार ठीक इसके उलट यह भी है कि एक दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन पुरूष अपने आचरण से स्वयं का अत्यधिक नुकसान करता है,परिवार व समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है लेकिन अगर कोई महिला दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन हो जाये तो वह स्वयं के अहित के साथ-साथ अपने परिवार के साथ ही दूसरे के परिवार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।एक कटु सत्य यह भी है कि एक पथभ्रष्ट पुरूष के परिवार को उस परिवार की महिला तो संभाल सकती है,अपनी संतानों को हर दुःख सहन करके जीविकोपार्जन लायक बना सकती है लेकिन एक पथभ्रष्ट महिला को संभालना किसी के वश में नहीं होता है और उस महिला के परिवार व संतानों को अगर कोई महिला का सहारा व ममत्व न मिले तो उस परिवार के अवनति व अधोपतन को रोकना नामुमकिन है।

पूंजीवाद के प्रभाव में भारत में भी महिलाओं को एक उत्पाद के रूप में,एक उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुतिकरण का नतीजा है कि आज अर्धनग्नता फिल्मी परदों से निकल कर महानगरों से गुजरती हुई शहरों-कस्बों में पांव पसार चुकी है।परिवारों में आपसी सामंजस्य की कमी,विलासिता व उपभोगवादी संस्कृति के प्रति आर्कषण तथा अन्धानुकरण ने युवा वर्ग को गर्त में धकेलने का काम किया है।फिल्म,टेलीविजन,पत्र-पत्रिकायें यहां तक कि विद्यार्थियों की पाठ्य व लेखन पुस्तिका के आवरण पृष्ठ भी अश्लील,अर्धनग्न,कामुक,नायक-नायिकाओं,खिलाडियों,कार्टून चरित्रों से परिपूर्ण हैं।जिनका शिक्षा जगत से,नैतिकता से कोई लेना-देना नही है उनका दर्शन प्रतिक्षण करने को विद्यार्थियों को अनवरत् प्रेरित किया जा रहा है।दरअसल वर्तमान दौर में आधुनिकता व अधिकारों के नाम पर स्वच्छंदता व भौण्डेपन को अपनाया जा रहा है।आज भी भारत की बहुसंख्यक ग्राम्य आधारित जीवन जीने वाली मेहनतकश आम जनता अपने मनोरंजन के लिए तो इन तडक-भडक वाली जीवन शैली युक्त फिल्मों को देखता है परन्तु निजी तौर पर उस शैली को,उस जीवन पद्धति को अपनाने का विचार भी उसके जेहन में नही आता है।भारत में पारिवारिक विखण्डन व नैतिक अवमूल्यन के पश्चात् भी अभी सामाजिक-धार्मिक ताने बाने के कारण,लोक-लाज के कारण छोटे शहरों,कस्बों व ग्रामीण अंचलों में महिलायें कामकाज पर,नौकरी पर निकल तो रही हैं परन्तु महानगरों सी स्वछंदता यहां देखने को नही मिलती है।

कृषि आधारित भारतीय परिवारों का जीवन सरल व सुव्यवस्थित था।इसमें परिवार के सभी सदस्यों के काम बंटे होते थे और हित-अधिकार सुरक्षित।आज के आर्थिक युग में नौकरी कर रहीं महिलायें आर्थिक कमाई तो निश्चित रूप से कर ले रही हैं परन्तु शारीरिक,मानसिक व भावनात्मक रूप से कमजोर होती जा रही हैं।अपनी नौकरी के,व्यवसाय के दायित्वों का निर्वाहन के साथ-साथ पत्नी धर्म का पालन,संतानों की परवरिश,सास-श्वसुर की देखभाल के साथ-साथ मायके में वृद्ध मॉं-बाप के स्वास्थ्य की चिन्ता कामकाजी महिलाओं को हलकान कर देती हैं।आज महिला वर्ग नौकरी पाने पर अत्यधिक प्रसन्नता की अनुभूति करती हैं।दरअसल अब महिला वर्ग का दोहरा शोषण हो रहा है।रिश्तों को,परिवार को सहेजने के साथ-साथ महिला को परिवार के लिए धर्नाजन के लिए श्रम करना क्या महिला सशक्तिकरण है?यह बात उन महिलाओं पर कदापि लागू नही होती है जो परिवार व रिश्तों से ज्यादा अहमियत दूसरी बातों को देती हैं।मेरा यह विचार सिर्फ उन महिलाओं की आंतरिक पीडा पर है जो पारिवारिक सुख व सम्पन्नता को प्राथमिकता पर रखते हुए जीवन जी रही हैं और अपनी कमाई परिवार पर ही खर्च करती हैं।अपने परिवार को अहमियत देते हुये कई बार काम काजी महिला अपनी जमी जमी नौकरी भी त्याग देती है - वह नौकरी जिसके लिए उसने रात दिन एक करके पढाई की होती है ,तमाम जगह प्रयत्नों के बाद मेहनत-मसक्कत करके जो नौकरी हासिल की होती है |भारी तादात में ऐसी भी महिला है जो अपने परिवार की माली हालात को और बेहतर बनाने के लिए ,घर के खर्चे में अपना भी योगदान देने के लिए घर से बाहर या घर में ही रहकर अपनी आय के जरिये बना लेती है |दोहरी जिम्मेदारी के निर्वाहन के बावजूद इन महिलाओ का स्पष्ट मानना है कि स्वावलंबन और आमदनी के जरिये उनके अन्दर आत्म विश्वास जगा है और ये महिला वर्ग का सशक्तिकरण है | अविवाहित युवतियो का घर से दूर नौकरी करने के लिए प्रतिदिन घंटो का सफ़र तयें करना ही कितना थकाऊ व उबाऊ होता है इसका तो भली भांति अहसास पुरुष वर्ग को है ही |लेकिन इस अहसास के होने के बावजूद कितने पुरुष , पुरुष को भी रहने दीजिये घर में ही रहने सिर्फ घरेलु काम करने वाली महिला अपने ही घर की उस काम काजी युवती को नौकरी से घर वापसी को बिना उसके मांगे कितने बार पीने का पानी या चाय-नाश्ता देती है,ये काबिले गौर तथ्य है |अगर देती भी है तो गाहे बगाहे सुना जरुर देती है ,ये परिवारों के अन्दर की बहुत उलझी हुई ,बिगड़ी हुई ,अभी बहुत हद तक ढकी-छिपी तस्वीर है | कामकाजी महिलाओ का जाहे वो नौकरी पेशा हो,स्व रोजगार से जुडी हो,श्रमिक वर्ग से हो या खेती-किसानी से जुडी हो ,निश्चित रूप से एक आतंरिक बैचैनी ,पीड़ा को अंगीकार किये ख़ामोशी से परिवार-समाज के लिए अपने व्यग्तिगत लाभों को कमोबेश दरकिनार करने में तनिक परहेज़ नहीं करती है | घर से दूर रहकर शिक्षा अर्जन हो अथवा उसके पश्चात् घर से दूर नौकरी मिलने पर घर से अलग रहकर नितांत अकेले परवारिक माहौल से दूर नौकरी करने की विवशता जब किसी युवती के सामने आती है तो उसके सामने अपने सुनहरे भविष्य के सपनो को साकार करने के अवसर के साथ ही साथ एकाकी पन का असीम कष्ट भी होता है | किसी भी युवती के जीवन का यह वो निर्णायक काल होता है जिसमे उसको अपने दायित्व निर्वाहन के साथ साथ अपने एकाकी पन को काटने के लिए चन्द साथियो की जरुरत महसूस होती है |शिक्षा अर्जन के समय सहपाठी और नौकरी के समय सहकर्मी ही सभी के लिए सबसे निकट के व्यक्ति होते है | घर से दूर ,पढाई का काम का भरपूर दबाव जिस चरित्र का मित्र इस समय किसी का भी बन गया उसके निजी जीवन में उस तरह के चरित्र से घटित होने वाली अच्छी बुरी घटना घटित होनी स्वाभाविक ही है | किसी भी अकेली रह रही युवती के विषय में अधिकांश पुरुष वर्ग की सोच किसी से छिपी नहीं है ,सोच के पीछे मानसिकता हो या तमाम उदाहरण ,इसमें ना जा कर मेरा सवाल उस युवती के घर के ही पुरुषो से ही करने को कहता है कि क्या वो अपने साथ पढ़ रही या काम कर रही या कही भी अकेली रह रही युवती-महिला के विषय में क्या सोचते है ? और जो भी सोचते है क्या उनके परिवार की महिला के विषय में वही बात लागु नहीं होती है ? और सबसे बड़ी बात परिवार की एक युवती-महिला अगर परिवार की तरक्की में अपना योगदान देती है तो परिवार के लोगो का उसका समुचित ध्यान देना चाहिए लेकिन अभी बहुतायत में परिवार के बारे में सोचने वाली महिला परिवार के ही अन्य लोगो के द्वारा उपेक्षित है जबकि अपना निजी हित सर्वोपरि रखने वाली महिला देखने में तो स्वयं में मस्त व प्रसन्न रहती ही है |

Sunday, March 4, 2012

आज समाजवादी पार्टी कार्यालय लखनऊ

आज समाजवादी पार्टी कार्यालय लखनऊ में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ,शिवपाल सिंह यादव -नेता प्रति पक्ष , प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी,मधुकर द्विवेदी मौजूद रहे | पार्टी कार्यालय में महामंत्री राम आसरे विश्व कर्मा , पूर्व मंत्री शत रूद्र प्रकाश ,दरियाबाद विधायक राजीव कुमार सिंह , राजेश यादव उर्फ़ बबलू , कुलदीप वर्मा . पंकज सिंह आदि नेताओ सहित सैकड़ो कार्यकर्ता मौजूद थे | शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव दोनों लोगो ने पत्रकारों के द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर दिया | बेनी प्रसाद वर्मा - केंद्रीय इस्पात मंत्री के द्वारा कि गयी टिप्पणी के सन्दर्भ में पूछे जाने पर सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कोई टिप्पणी नहीं किया और एक मंझे हुये राजनीतिक होने का परिचय उनके इसी अंदाज़ से मिला |सपा कार्यालय में वरिष्ठ पत्रकार ए पी दीवान जी , दिलीप सिंह जी, प्रमोद श्रीवास्तव से मुलाकात हुई | आज सपा कार्यालय में कलाकार चरित्र व प्रवृति के एक नए नवेले नेता जी के तौर तरीको और भाव भंगिमा देख कर उनके ऊपर गुस्सा आया और साथ ही अफ़सोस भी हुआ कि समाजवादी पार्टी ने कैसे इस गैर राजनीतिक चरित्र के कलाकार को पार्टी में पदाधिकारी बना दिया | अभी से सरकारी कामों को करवाने का वायदा करते और अखिलेश यादव से दोस्ताना सम्बन्ध होने की बात करते मैंने खुद सुना | खैर किसी दिन ये भी खबर बन के सबके सामने आ ही जायेंगे ,हरकते तो ऐसी ही है कि लेन- देन की बात करते कोई भी फिल्मा लेवे | जब मुलायम सिंह यादव सपा कार्यालय से चले गये तब पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी जी से इत्मिनान से वार्ता हुई | राजेंद्र चौधरी जी के मित्र डी वी सिंह ने कल ही मुझसे कहा था कि मेरी बात करवा देना सो उनसे बात करवाई | जब राजेंद्र चौधरी जी के साथ उनके कमरे से निकला तभी बुंदेलखंड की युवा नेत्री कृष्णा यादव ने अपने द्वारा चुनाव में किये गये प्रचार की तमाम खबरे राजेंद्र चौधरी जी को दिखाई , साथ होने के कारण मैंने भी देखी | तत्पश्चात वहा से रवाना होकर इंकलाबी नज़र के ऑफिस में समन्वय संपादक राजेश श्री नेत्र जी से और लोकमत ऑफिस में उप संपादक प्रणय मोहन सिंह जी से मिला | उसके बाद अमीनाबाद में खरीददारी करी और बाराबंकी घर वापस |

समाजवादी पार्टी पे एक लेख---अरविन्द विद्रोही

उत्तर प्रदेश विधान सभा के आम चुनाव २०१२ के परिणाम आने में सिर्फ २ दिन शेष है | आज एक अजीब बात हुई , लखनऊ से प्रकाशित एक बड़े अख़बार के संपादक ने सुबह सुबह मुझे फ़ोन करके समाजवादी पार्टी पे एक लेख तैयार करके भेजने को कहा | यह वही अख़बार है जिसने आज से २ साल पहले फरवरी २०१० में मेरे द्वारा मुलायम सिंह यादव पे लिखे एक लेख को छापने से मना कर दिया था|लेकिन मुलायम सिंह यादव पे लिखा मेरा वह लेख डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में मध्यांतर पेज ९ पर २४ फरवरी,२०१० को प्रकाशित हुआ जिसके बाद तमाम वरिष्ट समाजवादियो ने मेरे लेखन को सराहा और मेरा उत्साहवर्धन किया | समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव , उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अखिलेश यादव ,प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ,अहमद हसन -नेता विधान परिषद् सहित वरिष्ट पत्रकार व डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के स्थानीय संपादक अरविन्द चतुर्वेदी जी , प्रभात राय जी , स्वामी अग्निवेश जी , सीधी खबर के संपादक संजय सिंह जी , युवा पत्रकार अतुल सिंह जी ,राजेश भारती बाबा,पटेश्वरी प्रसाद ने मेरे द्वारा लिखे गये समाजवादी आन्दोलन और डॉ लोहिया के विचारो पे आधारित लेखो को बार बार सराहा और मार्गदर्शन भी किया | मैंने निर्णय ये लिया है कि जिन अखबारों ने अभी तक डॉ लोहिया और समाजवादी पार्टी के नेताओ पे लिखे मेरे लेखो को छापने से इंकार किया था ,उनको इन मुद्दों पे लेख अब उनके द्वारा मांगने पे भी नहीं प्रेषित करूँगा | दिल्ली से प्रकाशित हरिभूमि जिसके संपादक ओमकार चौधरी जी है का भी ह्रदय से धन्यवाद जिन्होंने मेरा लिखा एक लेख १२ अक्टूबर ,२०११ को सम्पादकीय पृष्ट पे प्रकाशित किया था | आज की तारीख में सभी जगह सभी पत्रकार अखिलेश यादव के बारे में वही लिख रहे है जो पिछले वर्ष से ही में लिखता रहा हूँ | ---

Saturday, March 3, 2012

राजनीति में सिद्धांतहीन गठबंधन

उत्तर प्रदेश में चुनावी नतीजों पर चर्चा-परिचर्चा जोरो से जारी है | ६ मार्च को परिणाम आने पे किसी एक दल को बहुमत ना मिलने कि स्थिति में राजनीति में सिद्धांतहीन गठबंधन के बलबूते देखते है कौन सरकार बनाता है ? सत्ता के सुख के लिए सिद्धांतो का त्याग कौन करेगा ? किस आधार पे समर्थन दिया और लिए जायेगा ? चुनाव के दौरान एक दुसरे की जम कर आलोचना करने वाले दलों के नेता कैसे बगलगीर होंगे , ये भी शायद देखने को मिल ही जाये | बसपा और कांग्रेस की सरकारों के खिलाफ समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में जिन मतदाताओ ने अपना समर्थन और मत दिया है,उनकी निगाहें चुनाव परिणामो के बाद सत्ता के लिए बनने वाले गठ बंधन पे भी रहेंगी| जिनके विरोध में मतदाताओ ने मत दिया है , उनके साथ गठ बंधन करके सत्ता हासिल होते देख के क्या बीतेगी ? उत्तर प्रदेश में किसी को भी स्पष्ट बहुमत ना मिलने की सूरत में अगर बसपा या कांग्रेस किसी के समर्थन से या किसी को समर्थन देकर सरकार बनाती है तो एक बार दुबारा से मतदाता ठगा जायेगा |

Friday, March 2, 2012

कुशल वक्ता ,उच्च कोटि के लेखक, क्रांतिकारी लाला हरदयाल

अरविन्द विद्रोही .................. प्रतिदिन सूर्य उदय होता है ,अस्त होता है ,रात्रि अपना अंधकार फैलाती है | मानव जीवन की शुरुआत का अर्थ ही मौत का निश्चित आना है | ३ मार्च की रात विलक्षण प्रतिभा के धनी लाला हरदयाल जो सोये तो सोते ही रह गये | ४ मार्च की सुबह अनपेक्षित रूप से वे फिलाडेल्फिया-अमेरिका में मृत्यु की आगोश में चले गये | लाला हरदयाल कुशल वक्ता व उच्च कोटि के लेखक थे | दीनबंधु एंड्रूज के अनुसार यदि लाला हरदयाल का जन्म शांति के समय में होता तो वो अपनी बुद्धि का उपयोग आश्चर्य जनक कार्यो के लिए करते | लाला हरदयाल ने उन्हें विलक्षण आदर्श वादी करार दिया | पेशकार गौरी दयाल माथुर के पुत्र रत्न रूप में लाला हरदयाल का जन्म दिल्ली में हुआ था | सेंट स्टीफेन कॉलेज दिल्ली से कला स्नातक की उपाधि लाला हरदयाल ने ली | राजकीय कॉलेज लाहौर से एक ही वर्ष में अंग्रेजी साहित्य में तथा अगले वर्ष इतिहास में परास्नातक किया | दिल्ली में लाला हरदयाल क्रान्तिकारियो के प्रति आकर्षित हो गये | मास्टर अमीर चन्द्र ,भाई बाल मुकुंद और हनुमंत सहाय जैसे विख्यात क्रांतिकारी इनके मित्र थे | लार्ड हार्डिंग्ज बम कांड में चार क्रान्तिकारियो को सजा मिली थी | उच्च शिक्षा के लिए आप लन्दन गये ,फिर कुछ दिन बाद भारत वापस लौट आये | लाला हरदयाल ने कुछ समय के बाद लाहौर में एक संस्था की स्थापना की यहाँ उनकी मुलाकात लाला लाजपत राय से हुई | लाला हरदयाल ने स्वदेशी मंत्र को अपने जीवन में आत्म सात कर लिया था | भारत सरकार और आक्सफोर्ड विद्या पीठ की छात्र-वृत्ति को नकार दिया था | अंग्रेजी पोशाक को भी ठुकरा दिया था | निमोनिया होने पर घर की बनी हुई दवाइयों का सेवन किया | लाहौर के आश्रम में रहते हुये लाला हरदयाल ने पंजाबी भाषा में अख़बार निकाला | लाहौर के आश्रम में कार्यकर्ताओ की भर्ती के लिए लाला हरदयाल कानपुर के प्रसिध्द वकील पृथ्वी नाथ समाजसेवी के घर पधारे | उनके सादगी पूर्ण और तपस्वी जीवन का युवको पर बहुत प्रभाव पड़ा | पंजाब में अकाल के दौरान संकट ग्रस्त लोगो की जो सेवा उन्होंने की थी , उसके कारण उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गयी थी | पुलिस लाला हरदयाल को गिरफ्तार करने का मौका तलाशने लगी | लाला लाजपत राय ने लाला हरदयाल को भारत छोड़ कर विदेश जाने के लिए प्रेरित किया | लाला हरदयाल कोलम्बो मार्ग से इटली होकर फ्रांस पहुचे | फ्रांस में श्याम जी कृष्ण वर्मा और उनके सहयोगी दल सक्रिय था | मैडम कामा ने वन्देमातरम अख़बार का संपादक लाला हरदयाल को बना दिया | प्रथम अंक मदन लाल धींगरा की स्मृति को समर्पित किया गया | वन्देमातरम के अंक बलिदान गाथाओ से भरे होते थे | भारतीओं को देश भक्ति की प्रेरणा मिलती थी- वन्देमातरम के अंको से | ब्रिटिश सरकार की नज़रे लाला हरदयाल को तलाशते हुये पेरिस आ गयी | ब्रिटिश सरकार फ्रांस सरकार पर क्रान्तिकारियो की गिरफ़्तारी के लिए दबाव बनाने लगी | इन परिस्थितियो में लाला हरदयाल इजिप्ट-मिस्र चले गये | वहा इजिप्शियन क्रान्तिकारियो से परिचय हुआ | कुछ समय बाद वे पुनः पेरिस आये परन्तु ब्रिटिश सरकार अभी भी चौकन्नी थी | लाला हरदयाल ला मार्टिनिक नामक समुद्री तट जो कि वेस्ट इंडीज में स्थित है वहा पहुचे | यह फ्रांसीसियो की बस्ती थी | लाला हरदयाल फ्रेंच जानते थे | वहा भरपूर नैसर्गिक सौंदर्य विद्यमान था | स्थानीय लोगो को अंग्रेजी पढ़ा कर वे अपना पेट पालने लगे | यहाँ नैसर्गिक वातावरण में उन्होंने अपनी स्वाभाविक आध्यात्मिक वृत्ति को बढ़ावा दिया | पहाड़ो की गुफाओ में उन्होंने तपस्या की | सब्जी-फल जो मिलता खा लेते | शाम को स्थानीय ग्रंथालय में बिताते | वे पूरी तरह से सन्यासियो और वैरागियो का जीवन जी रहे थे | भाई परमानन्द प्रसिद्ध क्रांतिकारी भी ला मार्टिनिक आ पहुचे | दयानंद कॉलेज में प्राचार्य का पद छोड़ने के बाद भाई परमानन्द लन्दन आ गये थे | भाई परमानन्द को लाहौर कांड में फांसी की सजा मिली थी जो बाद में आजीवन काले पानी की सजा में तब्दील हो गयी थी | लाला हरदयाल पेरिस में बिताये जा रहे अपने जीवन और लोगो की स्वार्थ वृति से उकता गये थे | माह भर भाई परमानन्द लाला हरदयाल साथ ही रहे | भाई परमानन्द लाला हरदयाल को क्रांतिकारी आन्दोलन में पुनः लाने में सफल रहे | लाला हरदयाल ला मार्टिनिक से बोस्टन, बोस्टन से अमेरिका , अमेरिका से होनोलुलू पहुचे | समुद्र किनारे गुफा में तपस्या ,मजदूरों को धर्मोपदेश और क्रांति साधना यही दिनचर्या थी लाला हरदयाल की |अब लाला हरदयाल शिक्षा जगत में भारतीओं के मन में देश प्रेम जगाने में जुटे थे | भाई परमानन्द के कहने पर वे कैलिफोर्निया पहुचे | वहा एक छात्र वृत्ति देने के लिए समिति का गठन किया | लाला हरदयाल ने सान फ्रांसिस्को में और बर्कले में कुछ भाषण दिये ,जिससे प्रभावित होकर इन्हें लेलैंड - स्टेनफोर्ड विद्यापीठ में संस्कृत और भारतीय दर्शन के प्राध्यापक पद पर रखा गया , जिसे लाला हरदयाल ने अवैतनिक रूप से स्वीकार किया | संपूर्ण अमेरिका में लाला हरदयाल की छवि एक भारतीय ऋषि की हो गयी थी | अपनी लोकप्रियता का उपयोग उन्होंने क्रन्तिकार्य को आगे बढ़ाने में किया | २३ दिसंबर ,१९१२ को दिल्ली में लार्ड हार्डिंग्ज पर बम फैंका गया | खबर सुनकर लाला हरदयाल और विद्यार्थियो ने अमेरिका में वन्देमातरम और भारत माता की जय के नारे लगाये | सार्वजनिक सभा में जय घोष हुआ | युगांतर सर्कुलर नामक पत्र में छपे लाला हरदयाल के लेखो का दुनिया भर में बम विस्फोट से ज्यादा प्रभाव हुआ | सान फ्रांसिस्को का युगांतर आश्रम ग़दर पार्टी का मुख्यालय था | इस आश्रम में अनेको क्रांतिकारी तपोमय जीवन व्यतीत कर रहे थे | ग़दर पार्टी का नाम पहले द हिंदुस्तान एसोसियशन ऑफ़ पेसिपक एशियन था | ग़दर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भागना , लाला हरदयाल मंत्री तथा पंडित काशीराम कोषाध्यक्ष थे | ग़दर पत्र उर्दू और पंजाबी भाषा में निकलता था | लाला हरदयाल के ओजस्वी लेखन से ग़दर के प्रचार-प्रसार के साथ साथ धन संघर्ष भी बढ़ रहा था | २५ मार्च , १९१३ को अमेरिकी सरकार ने लाला हरदयाल को गिरफ्तार कर लिया | जमानत पर रिहा होने के बाद ग़दर पार्टी के अनुरोध पर वे तुर्की से जिनेवा ,फिर रामदास नाम से २७ जनवरी , १९१५ को जिनेवा से बर्लिन जा पहुचे | प्रथम विश्व युद्ध का दौर था | लाला हरदयाल ने बर्लिन कमेटी की स्थापना करके यहाँ भी स्वतंत्रता की लडाई जारी रखी | चम्पक रमण पिल्लै , तारक नाथ दास , अब्दुल हाफिज़ मोहम्मद बरकतुल्ला , डॉ चन्द्रकान्त चक्रवर्ती , डॉ भूपेंद्र नाथ दत्त , डॉ प्रभाकर , वीरेन्द्र सरकार एवं वीरेन्द्र चटोपाध्याय प्रमुख क्रांतिकारी बर्लिन में क्रांति मिशन का संचालन कर रहे थे | लाला हरदयाल के आने से साहित्य का निर्माण और भी तेजी से होने लगा | बर्लिन कमेटी ने योजना बनायीं कि जब भारत में विद्रोह हो तभी अंग्रेजो के शत्रु देश भी आक्रमण करे | ग़दर पार्टी ने विद्रोह की तारीख तय की २१ फ़रवरी,१९१५ | लाला हरदयाल ने फ्रांस,स्वीडन,नार्वे,स्विट्जर्लैंड ,इटली ,आस्ट्रिया आदि देशो के क्रान्तिकारियो से संपर्क करके भारत की क्रांति के लिए पोषक वातावरण बनाया | जर्मनी में युद्ध बंदी के पश्चात् लौटे सैनिको को भी आज़ादी की जंग में उतरने कि तैयारी हो गयी | इसी समय राजा महेंद्र प्रताप ने जर्मनी पहुच कर कैसर विलियम को प्रभावित करके जर्मनी और भारतीय सदस्यों का शिष्ट मंडल बनाया और अफगानिस्तान में अस्थायी आजाद हिंद सरकार की स्थापना की | जर्मनी से क्रान्तिकारियो के लिए शास्त्रों से भरे अनेक जहाज भारत भेजे गये | अंग्रेजो ने इन जहाजो को पकड़ लिया | जर्मनी पराजित होने लगा था | जर्मनी ने लाला हरदयाल को १९१६ से १९१७ तक नज़रबंद रखा | बाद में छिपते हुये स्वीडन पहुचे लाला हरदयाल अलग अलग शहरो में नौ वर्षो तक रहे | स्वीडिश भाषा सीख़ ली और स्वीडिश भाषा में ही अपना भाषण-संभाषण और अध्यापन करने लगे | चौदह भाषाओ पर पुर्नाधिकार था माँ भारती के इस क्रांति ज्वाला का | २७ अक्टूबर,१९२७ को लाला हरदयाल लन्दन पहुचे | लन्दन में भाई किशन लाल और भतीजे भगवत दयाल के साथ रहते हुये उन्होंने १९३१ में गौतम बुद्ध के दार्शनिक विचारो पर शोध ग्रन्ध लिखकर पी एच डी की उपाधि प्राप्त की | सर तेज़ बहादुर सप्रू और सी एफ एंड्रूज के प्रयत्नों से उन्हें भारत आने की अनुमति मिली | भारतीय जनता इस विलक्षण , बुद्दिमान और विश्व विख्यात व्यक्तित्व वाले भारत पुत्र के आगमन का स्वागत करने की तैयारी में लगी थी परन्तु लाला हरदयाल नहीं आये उनके मृत्यु की खबर ही एकाएक भारत आ गयी |

Thursday, March 1, 2012

चन्द्र शेखर आजाद के विश्वस्त थे कवि ह्रदय डॉ भगवान दास माहौर

अरविन्द विद्रोही .................... २ मार्च , १९६९ के दिन काल के क्रूर हाथो ने चन्द्र शेखर आजाद के विश्वस्त रहे क्रांतिकारी डॉ भगवान दास माहौर को छीन लिया | इस कवि ह्रदय क्रांतिकारी का जन्म बडौनी ग्राम जनपद दतिया मध्य प्रदेश में हुआ था | माहौर जी के आदर्श चन्द्र शेखर आजाद थे | भुसावल बम कांड के नायक माहौर को बम बनाने का प्रशिक्षण आजाद ने ही दिलाया था | असेम्बली में बम फैकने के लिए क्रांतिकारी संगठन ने जब अंततोगत्वा भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना तब राजगुरु नाराज़ हो गये थे | राजगुरु की नाराज़गी अपने को चयनित ना किये जाने को लेकर थी | वे पूना में अलग नया क्रांतिकारी संगठन करने लगे | आजाद को मालूम पड़ा तो उन्होंने राजगुरु के साथ के लिए डॉ भगवान दास माहौर और सदाशिव मलकापुरकर को बम बनाने की सामग्री के साथ पूना भेज दिया | यह घटना सितम्बर १९२९ की है | पूना जाते समय भुसावल स्टेशन पर आप दोनों लोग मय पेटी/ बम सामग्री के गिरफ्तार कर लिए गये | चन्द्र शेखर आजाद ने भगवान दास माहौर को विक्टोरिया कॉलेज ,ग्वालियर में अध्ययन करने को कहा | उद्देश्य बताया -ग्वालियर में ही बम बनाने का कारखाना खोलना ,छात्रों को क्रांतिकारी संगठन से जोड़ना | दाखिला लेकर माहौर कुछ दिनों तक छात्रावास में रहे फिर किराये का कमरा लेकर रहने लगे ,इनका कमरा क्रान्तिकारियो का ठिकाना बन गया | भुसावल बमकांड में सुनवाई के दौरान इन लोगो ने गद्दार हो चुके जाय गोपाल और फणीन्द्र घोष पर गोलिया चला कर हत्या करने का प्रयास किया | दोनों गद्दार और पुलिस वाले सिर्फ घायल हुये | मुक़दमे में भगवान दास माहौर को आजीवन कारावास और सदाशिवराव मलकापुरकर को पंद्रह वर्ष का कारावास मिला | सन १९३८ में कांग्रेस मंत्री मंडलों के गठन के बाद कैदियो को मुक्त किया गया | रिहा होकर आप दोनों लोग झाँसी पहुंचे | भारत रक्षा कानून के तहत सन १९४० में भगवान दास माहौर फिर गिरफ्तार कर लिए गये | माहौर आज़ादी की प्राप्ति तक जेल आते जाते रहे | आजाद भारत में माहौर जी को उनके शोध ग्रन्थ- सन १८५७ के स्वाधीनता संग्राम का हिंदी साहित्य पर प्रभाव पर आगरा विश्व विद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्रदान की गयी | माहौर जी को झाँसी विश्व विद्यालय ने बुंदेलखंड पर कार्य करने के उपलक्ष में डी लिट की उपाधि दी गयी | साहित्य महा-महोपाध्याय की पदवी उन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने मदनेश कृत रासो पर शोध हेतु दी थी | आज़ादी का जंग छिड़ा है ,आज़ादी का रंग | गरज रहा है विप्लव सागर, नचती क्रांति तरंग | छिड़ा है आज़ादी जंग | पास हमारे क्या खोने को ,सारा विश्व जित लेने को | बढे चलो ,है क्या डरने को | भूखे,नंग -धडंग ,छिड़ा है आज़ादी का जंग |