Thursday, February 7, 2013

आदर्शों को भुलाते निर्देश - युवा संगठन भी उपेक्षा के शिकार ----- अरविन्द विद्रोही

बतौर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव - मुख्यमंत्री ,उत्तर प्रदेश शासन ने विगत 10जनवरी ,2013 को पत्रांक संख्या 2906/2013 के माध्यम से समाजवादी पार्टी के समस्त जिला /महानगर अध्यक्ष तथा महासचिव , सांसद / पूर्व सांसद , विधायक / पूर्व विधायक , सदस्य विधान परिषद / पूर्व सदस्य विधान परिषद , राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारी / सदस्य , सम्बद्ध प्रकोष्ठों के प्रदेश अध्यक्ष तथा जिला / महानगर अध्यक्षों को तमाम निर्देश जारी किये थे । इस परिपत्र में जारी तमाम निर्देश पूर्व में भी कई मर्तबा मौखिक - लिखित जारी किये जा चुके हैं , ये अलग तथ्य है कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता/पदाधिकारी इन निर्देशों को कतई अमल में नहीं लाते हैं । सपा कार्यालय के ही परिपत्र संख्या 458/2012 दिनांक 14 मार्च ,2012 में भी स्पष्ट रूप से अपेक्षा की गयी थी कि पार्टी के नेता / पदाधिकारी / कार्यकर्ता अपने वाहनों पर हूटर व लाल बत्ती न लगायें । और तो और अपने-अपने विजिटिंग कार्ड पर तमाम लोगों ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के चित्र तक छपवा रखे थे जिसको संज्ञान में लेते हुए इस प्रकार के कृत्यों को न करने की अपेक्षा भी सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने की और स्पष्टता स्वीकारा कि इन कृत्यों से पार्टी तथा सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा । जब जागे तभी सबेरा की कहावत को चरितार्थ करने की प्रक्रिया में 15 जिम्मेदार पदाधिकारियों का चयन अखिलेश यादव ने कर दिया जो जनपदों का भ्रमण करेंगे और छान बीन करके पता लगायेंगे कि ऐसे कौन से कार्यकर्ता / पदाधिकारी अथवा व्यक्ति हैं जो अपने वाहनों पर हूटर , स्टीकर अथवा लाल बत्ती लगायें हैं , होर्डिंग्स पर भी इनको नज़र रखनी है । होर्डिंग्स के संदर्भ में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए अखिलेश यादव के हस्ताक्षर युक्त परिपत्र में लिखा है कि राष्ट्रीय ,प्रदेशीय , जिला स्तरीय तथा विधान सभा स्तरीय संगठन द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों की होर्डिंग्स संगठन के अध्यक्ष के स्तर से लगायी जा सकेगी , जिसमे आयोजक अपना चित्र नहीं लगायेंगे । केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष , प्रदेश अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि के चित्र लगाये जा सकते हैं । यदि लोकसभा चुनाव हेतु प्रत्याशी होर्डिंग लगवाना चाहे तो वह राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा स्वयं अपना चित्र छाप सकता है । निवेदक के रूप में प्रत्याशी को अपना ही नाम लिखवाने की हिदायत भी इसी परिपत्र में दी गयी है । किसी भी राजनैतिक संगठन के संचालन के अपने तौर-तरीके होते हैं । अपने संगठन को सुचारू ढंग से संचालित करते रहने , अनुशासित रखने और उसमे गतिशीलता रखने की जिम्मेदारी भी संगठन के मुखिया समेत अन्य जिम्मेदारों , रणनीतिकारों की होती है । पत्रांक संख्या 2906/2013 में सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा जारी यह एक निर्देश कि होर्डिंग्स में केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष , प्रदेश अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि का चित्र लगाया जा सकता है - अचम्भित करने वाला है । न सिर्फ अचम्भित करने वाला वरन अगर यह लिपिकीय त्रुटि न होकर सोच-समझ कर , जाँच- परख कर जारी किया गया निर्देश है तो अत्यन्त दुखद - समाजवादियों के ह्रदय को दुखाने , भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाला कदम है । डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों पर बनी समाजवादी पार्टी के होर्डिंग्स में डॉ लोहिया के ही चित्र व जिक्र की अनिवार्यता का न होना दुखद है ।अभी 22 जनवरी को ही छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र की पुण्य तिथि पर सपा के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव ने स्पष्टतया कहा था कि यह जनेश्वर जी ही थे जिन्होंने कन्नौज से अखिलेश को सांसद का चुनाव लड़ाने को कहा । खुद अखिलेश यादव यह स्वीकारते रहें हैं कि जनेश्वर जी ने सबसे पहले उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया था और वो जनेश्वर जी को अपना प्रेरणाश्रोत - आदर्श मानते हैं । आखिर जिन डॉ लोहिया की विचारधारा को आधार बनाकर और जिन छोटे लोहिया का साथ लेकर मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया ,उनके चित्र - जिक्र की अनिवार्यता से परहेज किन परिस्थितियों में किया जा रहा है ? पूर्ण बहुमत हासिल करने के पश्चात् कहीं समाजवादी पार्टी सत्ता के गलियारे में अपने इन आदर्शों को तिलांजलि देकर नूतन विचारधारा के प्रतिपादन और उसकी स्थापना में तो नहीं लग चुकी है यह सवाल जेहन में कौंधता है । सरकार गठन के पश्चात् संगठन के पदाधिकारियों को जारी परिपत्र में होर्डिंग्स में डॉ लोहिया-जनेश्वर मिश्र के चित्र की अनिवार्यता का जिक्र आखिर कैसे रह गया ? यह सत्ता के राही और सिर्फ मलाई काटने के फेर में लगे रहने वाले पेशेवर लोगों के लिए नहीं बल्कि समाजवादी मूल्यों की स्थापना को अपना लक्ष्य मानकर डॉ लोहिया के विचारों की मशाल लेकर समाजवादी पार्टी के संघर्ष में सहयोग-साथ देने वालों के लिए एक अफसोसजनक कृत्य है । इस निर्देश के सन्दर्भ में डॉ लोहिया को अपना नेता मानने वाले सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव को ध्यान केन्द्रित करके अपना रुख अतिशीघ्र स्पष्ट करना चाहिए । खैर ,इसी परिपत्र में सभी जिला / महानगर अध्यक्षों , महासचिवों से यह भी अपेक्षा की गयी कि वे अपने जनपद में मनमाने ढंग से कार्य न होने दें । निर्देशों का पालन न करने वालों , अनुशासनहीनता करने वालों की सूची भी प्रत्येक माह भेजने को कहा गया है ताकि उसपर विचार कर कार्यवाही की जा सके । इन निर्देशों का पालन नहीं कराये जाने पर जिला / महानगर अध्यक्ष को ही दोषी माने जाने की चेतावनी भी दी है । अंत में अपने इस परिपत्र में जिला/ विधान सभा स्तर की संगठन की बैठकों में इस परिपत्र को पढ़कर सुनाये जाने को भी निर्देशित किया गया जिससे कि अधिक से अधिक लोगों तक इन निर्देशों की जानकारी हो । निर्देश जारी होकर सभी को प्राप्त भी हो गए , समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में भी विवरण आया , एक माह पुनः पूरा होने को है लेकिन समाजवादी पार्टी के मनमाने प्रवृत्ति के तमाम धुरंधरों पर किंचित प्रभाव नहीं पड़ा है । उनकी व उनके चेले-चपाटों की होर्डिंग्स अभी भी सपा नेतृत्व के निर्देशों को ठेंगा दिखा रही है और यह कृत्य उन्ही की सरपरस्ती में हो रहा है जिनको इसकी रोकथाम करनी चाहिए । हर एक होर्डिंग किसी न किसी प्रभावी नेता के शिष्य ने उनकी सहमति -अनुमति से ही लगवाई है यह कटु सत्य है ।और तो और लखनऊ सपा कार्यालय के बाहर खड़ी तमाम गाड़ियों में विजय 2012- लक्ष्य 2014 का मुलायम सिंह - स्टीकर अभी भी लगा सहज दिख ही जाता है । समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया ने चिंता व्यक्त करते हुए 1957 में ही कहा था कि ,'' किसी भी बड़े आन्दोलन में एक अजीब तरह की वाहियात चीज या मोड़ बन जाया करता है ।एक तरफ वे लोग जो कि आन्दोलन के मुद्दे पर तकलीफ उठाते हैं ,दूसरी तरफ वे लोग जो आन्दोलन के सफल होने के बाद उसके हुकुमती कामकाज को चलाते हैं ।और आप याद रखना कि ये संसार के इतिहास में हमेशा ही हुआ है लेकिन इतना बुरी तरह से नहीं हुआ कभी जितना कि हिंदुस्तान में हुआ है । और मुझे खतरा लगता है कि कहीं सोशलिस्ट पार्टी की हुकूमत में भी ऐसा न हो जाये कि लड़ने वालों का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक़्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये। " उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जो कि समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं , को अपनी राजनैतिक दृढ़ता हेतु , अपने राजनैतिक भविष्य को और अधिक संवारने - निखारने के लिए डॉ लोहिया की इस चिंता को समझना चाहिए । समाजवादी पार्टी में युवा संगठनों के प्रभारी रहे अखिलेश यादव के ही चलते समाजवादी पार्टी से पढ़ने - लिखने वाले युवा वर्ग और शहरी इलाकों के नागरिकों का जुड़ाव हुआ । आज सपा के युवा प्रकोष्ठ भंग हैं , जिन युवा संगठनों के संघर्ष शील कार्यकर्ताओं ने अनवरत संघर्ष की बेला में पुलिस की लाठी खायी , वे युवा प्रकोष्ठों के कार्यकर्ता ( लाल बत्ती से नवाजे गए और उसकी फ़िराक में लगे नेताओं के अतिरिक्त ) अब कुछ हताश से हैं , वो निराशा के गर्त में , अनिश्चिंतता के भंवर में , दुविधाओं के दलदल में फंसा हुआ सा महसूस कर रहा है । यह वही नौजवान हैं जिन्होंने शुरू से ही अपने युवा नेता अखिलेश यादव को अपने भाई सरीखा माना और एक ही निर्देश पर जुल्मी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर गया था । जेल की बंद दीवारों , बदन पर पड़ी लाठियों व पुलिसिया जुल्म के शिकार हुए शरीर ने उतना दर्द नहीं महसूस किया था जितना उत्तर-प्रदेश की सरकार के गठन के पश्चात् युवा प्रकोष्ठों की उपेक्षा और अपने युवा नेता अखिलेश यादव से बढ़ी दूरियों से महसूस किया । एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत युवा संगठनो को उपेक्षित तो नहीं किया जा रहा है इसको ध्यान में रखना होगा युवाओं की आशाओं के केंद्र बिंदु बने - अखिलेश यादव को । इन संघर्षशील युवाओं को यह भी दर्द सालता है कि विधानसभा चुनाव के चंद दिनों पूर्व या दौरान सपा में शामिल लोग आखिरकार नेतृत्व के इतने करीबी किन कारणों से हो गए और समर्पित-पुराने कार्यकर्ता होने के बावजूद हम नेपथ्य में क्यूँ धकेल दिए गए ? समाजवादी मूल्यों को बरक़रार रखने की चुनौती पूर्ण महती जिम्मेदारी के साथ-साथ युवा प्रकोष्ठों की बहाली , युवा मन की तमाम आशंका को दूर करने की भी जिम्मेदारी बतौर सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के जिम्मे है - युवा प्रकोष्ठ जो कि समाजवादी पार्टी के अन्दर उनकी अपनी ताकत हैं और आज वही आज उपेक्षित क्यूँ हैं ? , इसका मनन जरुरी है ।