Monday, August 29, 2011

गैर सरकारी संगठनो और पूंजीवादी -साम्राज्यवादी ताकतों का दुष्चक्र

गैर सरकारी संगठनो और पूंजीवादी -साम्राज्यवादी ताकतों का दुष्चक्र अरविन्द विद्रोही भारत में किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देश गैर सरकारी संगठनो को भारी मात्र में धन दे रहे है ,इसकी जाँच लोकसभा कि संयुक्त संसदिए समिति या किसी अन्य सक्षम जांच एजेंसी से भारत सरकार को तत्काल करनी चाहिए| भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था ,चुनाव प्रणाली ,संविधान को नकारने का प्रयास व कुचेष्टा करने तथा संसद के खिलाफ दुष्प्रचार करने वालो की साजिश को बेनकाब करने के लिए भारत भूमि के उन लोगो को आगे आना ही पड़ेगा जो भेड़ चल ना चलते हो | लाखो-करोडो रुपया विदेश से प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनो के कारनामो पर नज़र रखने व इनको आम जनता के सामने लाने की महती भूमिका निभाने के लिए अब भारत भूमि के भूमि-पुत्रो को कमर कसना ही पड़ेगा | गैर सरकारी संगठनो के कर्ता-धर्ताओ ने विदेशो से धन व सम्मान प्राप्ति के लिए भारत को अस्थिर करने, अशांति फ़ैलाने , लोकतान्त्रिक व्यवस्था को ख़त्म करने का षड़यंत्र तो नहीं रचा जा रहा है, यह प्रश्न जेहन में कौंधता रहता है| सरकारी सहायता से संचालित गैर सरकारी संगठन पर धन राशी के बन्दर बाँट के लिए भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियो की भी नज़र रहती है लेकिन विदेशी धन से संचालित गैर सरकारी संगठनो पर कोई प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण नहीं दीखता | इनका रवैया व कार्य पद्धति दोनों अत्यंत रहस्यमयी है | इस पर प्रभावी निगरानी की तत्काल जरुरत है|प्रभावी लोकपाल बिल का गठन भ्रस्टाचार को रोकने में एक कारगर कदम होगा यह कहा जा रहा है| लोकपाल विधेयक के गठन की प्रक्रिया चल रही है | संसद ने कुल ५ प्रस्ताविक विधेयको को संसद की ड्राफ्टिंग कमिटी को भेजा है| ध्यान देने की व गंभीर चिंता की बात यह है कि एक स्व गठित तथा कथित सिविल सोसाइटी के लोग जिन्होंने प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक को भ्रस्टाचार के मुद्दे पर लोकपाल में लाने की मांग पर अपना सर्वस्व झोंक दिया, छोटे सरकारी कर्मचारियो तक को लोकपाल के दायरे में लाने की विशेष मांग रखी कि इससे आम जनता को भ्रस्टाचार से निजात मिलेगी , वही यह सिविल सोसाइटी के स्वयंभू लोग विदेशी धन पाने वाले गैर सरकारी संगठनो को प्रभावी व सक्षम लोकपाल के अधीन करने कि मांगो का विरोध कर रहे है और इस मांग को कि सभी गैर सरकारी संगठनो को लोकपाल के दायरे में लाया जाये सिरे से खारिज करते है |गैर सरकारी संगठनो को प्रभावी लोकपाल के दायरे से बाहर रखने कि कवायत व प्रयास करने वाले इन तथा कथित सिविल सोसाइटी के लोगो की मंशा को संदेह के घेरे में लाती है | क्या इन लोगो के द्वारा संचालित गैर सरकारी संगठनो को विदेशी धन राशी मिलती है, और अगर हा तो किस लिए? सभी गैर सरकारी संगठनो को यह लोग प्रभावी लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहते इसका क्या करण हो सकता है? क्या विदेशी धन का गलत कामों में प्रयोग हो रहा है भारत में ? क्या यह इन सिविल सोसाइटी के लोगो का भ्रस्टाचार नहीं है? पुरे देश के लोकतंत्र को कठघरे में खड़े करने वाले इन लोगो की संपूर्ण गतिविधिया इनके संविधान विरोधी मानसिकता व सामाजिक चरित्र को परिलक्षित करती है | संसद में गैर सरकारी संगठनो को प्रभावी लोकपाल के अधीन लाने की चर्चा हुई | हमारा यह भी सुझाव है विदेशी धन व विदेशी सम्मान पाने वाले किसी भी गैर सरकारी संगठन के किसी भी कार्यकर्ता को लोकपाल ना बनाया जाये | लोकतंत्र में भारत के हर देश भक्त का , भूमि पुत्र का शत प्रतिशत विश्वास है | इसी विश्वास को संसद ने और सांसदों ने और अधिक दृठता प्रदान की जब इस तथा कथित सिविल सोसाइटी की हठधर्मिता को नकारते हुये उनकी मांगो को संसद की ड्राफ्टिंग कमिटी के पास भेजा, जहा बाकि प्रस्तावित बिलों के साथ साथ विचार किया जायेगा | भारत की सरकार ने सभी नागरिको से लोकपाल विधेयक पर प्रस्ताव व सलाह मांगी थी , सभी प्राप्त विधेयको , सुझावों पर संसद की ड्राफ्टिंग कमिटी विचार करके एक प्रभावी लोकपाल विधेयक का प्रारूप बनाएगी| लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसद के सदन ही कानून - विधेयक बनाते है | एब सदन से बाहर खड़े होकर सदन को नियंत्रित करने का संविधान विरोधी कृत्य करने की कुचेस्टा करने वालो से सरकारों को सख्ती से पेश आना चाहिए| सदन ने सभी सुझावों, प्रस्तावों को विचारार्थ ड्राफ्टिंग कमिटी को भेजा इसके लिए सदन को शत-शत नमन| सदन से , सरकार से निवेदन है की देश-समाज हित में विदेशी धन प्राप्त करने वाले गैर सरकारी संगठनो के कर्ता-धर्ताओ के विदेशी संपर्क व मंशा को पता करने की दिशा में तत्काल प्रभावी कदम उठाये| इनकी मंशा भारत में अराजकता फ़ैलाने व सामाजिक अलगाव पैदा करने की प्रतीत होती है |

Thursday, August 18, 2011

डॉ लोहिया के विचार और छात्र नौजवान जागरूकता अभियान


अरविन्द विद्रोही डॉ राममनोहर लोहिया ने १९५७ में एक भाषण में कहा था की -- आखिर संगठन किसका नाम है ? संगठन तो वो है कि जो बिना किसी खास पर्चे या मेहनत या ख़तबाजी के सैकड़ो , हजारो , दास हज़ार , लाख आदमी अपने वक़्त पर और अपने खास काम को कर दिया करे | मान लो कल विचार बैठक है | उस विचार बैठक में लोग आया करते है | समय , दिन बंधा हुआ है | फिर अगर उसके बाद किसी को याद दिलाने की जरुरत पड़े तो समझो संगठन नहीं है | लेकिन अगर बिना याद दिलाये लोग आ जाया करे तो उस दिन और समय पर तो समझ लो संगठन है | डॉ लोहिया का स्पष्ट कहना था की संगठन के लोगो में सहयोगिता होनी चाहिए | डॉ लोहिया के इन विचारो की कसौटी पर समाजवादी संगठनो को परखना नितांत आवश्यक है | समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव के निर्देशानुसार समाजवादी पार्टी के चार युवा फ्रंटल संगठनो क्रमश समाजवादी युवजन सभा , समाजवादी छात्र सभा , लोहिया वाहिनी और मुलायम सिंह यादव यूथ बिग्रेड ने विगत १अगस्त से १५ अगस्त तक पुरे प्रदेश के समस्त जनपदों में छात्र - नौजवान जागरूकता अभियान चलाया | पखवारे भर चले इस छात्र नौजवान जागरूकता अभियान का उद्देश्य समझाते हुये समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने १८ जुलाई को प्रदेश कार्यालय में फ्रंटल संगठनो के अध्यक्षों से पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी व मेरी खुद की मौजूदगी में कहा था कि --- समाजवादी पार्टी डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारो पर आधारित पार्टी है | नेता जी मुलायम सिंह यादव ने स्वर्गीय जनेश्वर मिश्रा के आशीर्वाद व मार्ग निर्देशन में समाजवादी संकल्पों व विचारो को पूरा करने के लिए समाजवादी पार्टी बनायीं थी | हमें यह कतई नहीं भूलना है कि डॉ लोहिया हमारी पार्टी के मूल आधार है , समाजवादी पार्टी को , हम सब को डॉ लोहिया के सप्त क्रांति को पूरा करना है | डॉ लोहिया के कामों क आगे बढ़ाने के लिए ही छात्रों नौजवानों में जागरूकता पैदा करने के लिए ही युवा संगठनो को , आप लोग को १२ सुत्रिये मांगो के साथ अभियान चलाना है | यह मांगे क्रमश शिक्षा का व्यवसायी करण बंद हो , बढ़ी फीस वापस की जाये , कालेजो - विश्व विद्यालयों में छात्र संघ की बहाली , क्लास १२ तक समान शिक्षा नीति , मुस्लिम व पिछड़े वर्ग के सभी छात्र- छात्राओ को छात्र वृत्ति , मुस्लिम नौजवानों को विशेष अवसर देते हुये शिक्षा एवं रोजगार में समुचित भागीदारी , छात्रावासों का निर्माण एवं निशुल्क भोजन का प्रबंध , बेरोजगारी भत्ता तथा कन्या विद्या धन देना शुरु किया जाये | शिक्षण शंस्थान में और बाहर दोन जगह छात्राओ को सुरक्षा का इन्तेजाम हो , अलीगढ मुस्लिम विश्व विद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरुप की बहाली की जाये | छात्र - छात्राओ को बस एवं रेलगाड़ी में निशुल्क यात्रा पास की व्यवस्था की जाये | उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्ताधारी बहुजन समाज पार्टी की सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखरित रही है , सड़क पर उसके खिलाफ संघर्ष में सबसे आगे रही है ,यही कारन है कि बहुजन समाज पार्टी की सरकार से त्रस्त लोगो की पहली पसंद बन चुकी समाजवादी पार्टी से सबसे ज्यादा आशा भी अब उत्तर प्रदेश के नागरिको को है | ऐसी स्थितिओ में विभिन्न सामाजिक विषयों को भी छात्र- नौजवान जागरूकता अभियान में शामिल करके समाज के विभिन्न तबको से जुड़ने व उनको संगठन के साथ जोड़ने की कवायत में सक्रियता निभाने वालो तथा रूचि ना लेने वालो दोनों तरह के कार्यकर्ताओ-नेताओ का चिन्हीकरण कार्यकर्ता आधारित राजनीति को बढ़ावा देने की सोच को साकार रूप देने में सहायक सिद्ध होगी | यह इस लिए भी जरुरी है कि प्रत्येक अभियान व आन्दोलन में सक्रिय कार्यकर्ताओ कि पहचान होने से उनको विशेष अवसर व सम्मान दिया जा सके | समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव जिस सरलता से अपनी बातो को अपने युवा सहयोगियो के सम्मुख रख रहे थे और इन कार्यक्रमों के मसौदो को , अभियान के संचालन के तरीको पर जिस तरह से संजीदगी पूर्वक सलाह मशविरा कर रहे थे , देख कर एक सुखद अनुभूति हुई | प्रसंग वश बताते चले कि लखनऊ के एक धार्मिक स्थल के बाहर अभियान का शिविर लगाने के प्रस्ताव को नकारते हुये अखिलेश यादव ने कहा कि यह डॉ लोहिया और समाजवादी विचारधारा के खिलाफ होगा | धर्म स्थल धार्मिक कामों के लिए है , वहा पार्टी का प्रचार शिविर लगाना कतई उचित नहीं है | संगठन के कार्यक्रम धार्मिक स्थल पर ना आयोजित किया जाये सिर्फ सार्वजनिक स्थल ही उपयुक्त है | आज धर्म का सहारा लेकर , उन्माद व धार्मिक भावना को उभर कर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने वालो को समाजवादी पार्टी के युवा नेता अखिलेश यादव से कुछ सीखना चाहिए | इस अभियान में फ्रंटल संगठन एक अनुमान के अनुसार लगभग ५ लाख छात्र नौजवानों तक सीधे संवाद के जरिये अपनी बात पहुचने में कामयाब हुये है | छोटे लोहिया के नाम से विख्यात जनेस्वर मिश्र जी को अंतिम दिनों में चिंता हो गयी थी कि समाजवादी नेता अब जन संघर्ष से कटते जा रहे है| समाजवादी युवा कार्यकर्ताओ - नेताओ को जनता के सवालो पर जन अभियान में जुटा कर राजनीतिक परिपक्वता के साथ साथ समाजवादी पुरोधाओ के विचारो को व्यवहार रूप में साकार करने का महती काम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के युवा कार्यकर्ता अखिलेश यादव के नेतृत्व में करने में जुटे है |

Friday, August 12, 2011

सर्वशक्तिमान , प्यार और मानव के जीवन में प्यार के मायने


अरविन्द विद्रोही क्या कोई सर्व शक्तिमान है,जिसने सृष्टि की रचना की है | अगर है कोई सर्व शक्तिमान तो क्या उसे अपनी रची रचना में सर्वश्रेष्ठ कहे जाने वाले मानव का अधोपतन दिखाई नहीं पड़ता ? यह मानव जाति ही है ना जो अपने को सभी प्राणियो में सर्वाधिक बुद्धिमान मानती है | सारे धर्म ग्रन्थ के मूल आधार-भूत सिधांतो से अपने को अपने पाखंड पूर्ण , आडम्बर भरे पूजा व उपासना पद्धति से नकारता मानव अपने मानव धर्म से भी कोसो दूर हो चला है | प्राणी मात्र से प्रेम, सौहार्द , भाई चारे का स्थान नफरत , अलगाव , मनमुटाव ,क्लेश व द्वेष आदि मनोविकारो ने ले लिया है | क्या मानव सचमुच सर्व शक्तिमान की सर्वश्रेष्ट रचना है ? ढाई आखर का एक शब्द - प्यार , सृष्टि के रचनाकार का भी शायद अभीष्ट | यह प्यार ही तो रहा होगा जब उसने जीवन में रंग भरते हुए अनूठे अहसास के लघु बीज को जीवात्मा में रोपित किया | हे सृष्टि के रचनाकार - तुम अगर हो तो अपने अस्तित्व का आभास मात्र ही कराओ | इस काल के मानव के पशुवत आचरण के पीछे क्या कोई लीला है तुम्हारी? अब अगर यह कोई लीला है तो यह तो तुम ही समझते होगे , हम तो सिर्फ यह समझते है कि जिस प्रकार किसान अपने खेत में बीज बोता है, फसल लगाता है , उसके बाद अगर वही किसान अपने खेत व फसल की निगरानी ना करे ,खर- पतवार की निराई-गुड़ाई ना करे तो निश्चित रूप से फसल ख़राब हो ही जाति है, बीज दबा रह जाता है , अनावश्यक खर - पतवार की फसल खड़ी हो जाती है | देखने वाले बीज व फसल को दोषी नहीं मानते है, और ना ही खेत को , दोषी तो किसान ही माना जाता है , और अपनी अकर्मण्यता के लिए अनजानों से भी दुत्कारा जाता है | किसान तो खैर तेरी सृष्टि का एक सबसे निरीह व बेबस प्राणी है जो तेरे बनाये तथा कथित सर्वश्रेष्ट रचना मानव के रूप में जन्मने के बावजूद चन्द मानव के शोषण आधारित राज्य का शिकार है |अन्न दाता भरी दोपहरी , उमस भरी गर्मी , भीषण बरसात व सर्दी के थपेड़ो को जीता हुआ अपनी बदहाली व बेबसी को सोचता हुआ प्रति पल मरता है | यह अन्न दाता किसान तो तेरी तरह सर्वशक्तिमान नहीं है , क्या सचमुच तू है सर्वशक्तिमान ? अगर है तो अब ठीक कर अपनी रचना | क्या लिखू और कितना लिखू ? मानव जाति के अधोपतन का हाल यह है कि आज प्यार शब्द को वासना की पूर्ति मात्र की अभिव्यक्ति - जरिया मान लिया गया है | आज प्यार शब्द को कामुकता व वासनायुक्त आचरण का पर्याय बना दिया गया है | विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण आज के दौर में अपने चरम पर है , जीवन में संयम का कोई मोल नहीं | यह आकर्षण जो समर्पण , स्नेह , आसक्ति , विछोह , मिलन की यादगार अमिट हस्ताक्षर के रूप में तमाम किस्सों - कहानियो के रूप में मौजूद है आज समाप्त सा हो चुका है | प्यार अब सिर्फ वासना से लबरेज़ युवा वर्ग का विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण से प्रारंभ होकर समर्पण की राह पर ना जाकर अधिकायत में व्यापार , सौदेबाजी , कैरियर , अलगाव की राह पर बार बार टूटता - सँवरता रहता है | वास्तव में उन्मुक्त व स्वछंद जीवन का यह तथा कथित प्यार मनोकामना पूर्ति, लोभ , व्यावसायिकता , सौदेबाजी, वासना पूर्ति और धनार्जन का माध्यम मात्र है | प्यार तो वह भाव है जिसमे प्यार करने वाला अपना सर्वस्व लुटा कर , समर्पित कर के प्रसन्नता महसूस करता है | वर्षो बाद वह कह उठता है कहाँ चली गयी तुम?क्या वापस नहीं आओगी?वर्षों हो गया है तुम्हारा इंतज़ार करते|अब आ भी जाओ|तुम तो बहुत चाहती थी मुझे,फिर अब क्या हो गया?क्यूँ छोड़ के चली गयी?सभी कहते हैं कि अब तुम वापस नहीं आओगी,क्या सचमुच नहीं आ सकती?सुनो..तुमको आना पड़ेगा..मेरे लिए..अपने प्यारे....के लिए..कितना प्यार करती थी तू मुझ को और मैं था कि बस|तू मेरी सबसे प्यारी..थी,थी ना फिर क्या अब आ भी जा..और तू जानती ही है कि तेरे पास आना मेरे बस का नहीं..खैर तेरे इंतज़ार में तेरा| और किसी दिन कह पड़ता है वही दीवाना - जानती हो,तेरी हर बात,तेरा प्यार तेरा मनुहार याद है मुझे|जिस दिन तू छोड़ के गयी मुझे,मैं रात भर जगा था,उसी जगह था जहा से तू चली गयी|किसी ने कहा था--वो चली गयी सो जाओ|मैंने कहा--इस के लिए एक पूरी रात तो जागना ही था,चलो इसी तरह|बहुत याद आती हो,हमेशा.....कब आओगी? वास्तव में अपने ह्रदय में मधुर यादों को सहेजे , स्मृतिओं को जीवन का आधार बनाकर एक प्रेमी जीवन के भव सागर को पार कर लेता है | स्नेह , ममत्व , करुना , समर्पण सरीखे सखा उसके जीवन की नौका के खेवनहार होते है | यह प्रेम की असीम ताकत ही होती है जो प्रेमी को हौसला देती है| कोई भी जिसने अपने जीवन में प्यार को उतार लिया , व्यवहार में अपना लिया , उसके जीवन में नफरत , ईर्ष्या , द्वेष आदि कालिमाओं का कोई स्थान नहीं रह जाता है | यह कलिमायें तो प्रेम रूपी अखंड ज्योति के देदीप्यमान प्रकाश से कभी पास आ ही नहीं सकती है | आह.. तनिक कल्पना तो करो.. उस प्यार के पथिक के खुश हाल जीवन की,,,उस जीवन की जिसमे सब एक दुसरे को प्यार करे जहा किसी विकार की कोई जगह ना हो | हमारी नज़र में तो प्यार एक सरल - सुन्दर अलौकिक भाव है | प्यार एक ताकत है | यह वह भाव है जिसे जब तक आत्मसात ना किया जाये तब तक समझ पाना नामुमकिन है | प्यार किसी सिधान्त का मोहताज़ नहीं है | समर्पण- स्नेह का आधार युक्त प्यार प्राणी मात्र को बुलन्दियो पर ले जाता है | जिसने अपने जीवन में प्यार को स्थान दिया प्यार को जिया , प्यार से जिया , प्यार किया उस ने परम पिता परमेश्वर के सानिध्य को पाने के मार्ग पर चलने का अपना राह प्रशस्त व सुगम किया | परम पिता तक पहुचने का , अपने कर्त्तव्य को पूरा करने का श्रेष्ठ मार्ग है प्रेम अर्थात प्यार | प्यार के राही बनिए... प्रेम पथिक .... प्रभु के पास जाने का एक मार्ग.. अपने अभीष्ट को पाने का एक मात्र मार्ग ..

Wednesday, August 10, 2011

क्रान्तिकारियो के बलिदान से मिली आजादी --- अतुल अंजान


अरविन्द विद्रोही ९ अगस्त क्रांति दिवस के अवसर पर विभ्भिन आयोजनों में शिरकत करने का निमंत्रण मिला | गाँधी जयंती समारोह ट्रस्ट - बाराबंकी के द्वारा बाराबंकी जनपद के मुख्यालय पर स्थित गाँधी भवन में आयोजित संगोष्ठी में अतुल कुमार अंजान के मुख्य वक्ता के तौर पर आने की पुष्टि दूरभाष से करने के बाद मैं उनको अरसे बाद प्रत्यक्ष रूप से सुनने के व्यग्तिगत लोभ से खुद को रूक ना सका | लखनऊ विश्व विद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष के दायित्व निर्वाहन से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव पड़ के दायित्व निवाहन बखूबी करने वाले , अपनी अलग छाप छोड़ने वाले अतुल कुमार अंजान की वक्तव्य शैली का जवाब नहीं | विषय पर गहरी पकड़ और विचारो के प्रस्तुति-करण का अंदाज़ एक ज्ञान कोष की तरह युवा वर्ग के सामने मौजूद है | विचारो को ह्रदय से निकल कर मुखारविंद से प्रकट करने वाले अतुल कुमार अंजान जितने अच्छे वक्ता है उतने ही अच्छे श्रोता भी |

Thursday, August 4, 2011

समाजवादी आन्दोलन व चिंतन की पाठशाला है छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र


समाजवादी आन्दोलन व चिंतन की पाठशाला है छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र अरविन्द विद्रोही जनेश्वर मिश्र समाजवादी आन्दोलन के एक योद्धा व विचारक के रूप में सदैव याद किये जायेंगे | ५ अगस्त ,१९३३ को श्रीमती बासमती एवं श्री रंजीत मिश्र के पुत्र रूप में बलिया जनपद के शुभ नाथहि गाँव में जन्मे जनेश्वर मिश्र पर तत्कालीन ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ चल रहे जन संघर्ष का गहरा असर पदा | हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक समाजवादी संघ ने समाजवाद की अवधारणा को भारत भूमि के युवा मष्तिष्क में जगह बना दी थी | शचीन्द्र नाथ सान्याल , चन्द्र शेखर आजाद , भगत सिंह , राज गुरु , सुख देव सहित तमाम क्रांति कारियो के आजादी के लिए संघर्ष ,समाज के प्रति सोच व बलिदान ने भारत के जन मानस को आक्रोशित कर रखा था | इस क्रांति की बेला में ब्रितानिया हुकूमत के अन्याय के खिलाफ चल रहे संघर्ष के दौर में जन्म लेने वाले जनेश्वर मिश्र के व्यक्तित्व में अन्याय , अत्याचार , शोषण , छुआ -छुत , भेद-भाव व पूंजीवाद के खिलाफ संघर्ष कूट कूट के भरा था | लोक नायक जय प्रकाश नारायण , डॉ राम मनोहर लोहिया के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव विद्यार्थी जीवन में जनेश्वर मिश्र पर पड़ा | जय प्रकाश नारायण के सर्वोदय आन्दोलन में चले जाने के बाद जब लोहिया ने समाजवादी आन्दोलन व संघर्ष की कमान संभाली तब से जनेश्वर मिश्र पूरी तरह से डॉ लोहिया के ही साथ हो लिए | डॉ लोहिया के निजी सचिव की जिम्मेदारी के साथ साथ जनेश्वर मिश्र ने १९६१ में समाजवादी युव जन सभा के महामंत्री पड़ की जिम्मेदारी भी संभाली | १९६२ में फूल पुर लोक सभा के चुनाव में जवाहर लाल नेहरु के मुकाबिल डॉ लोहिया के चुनाव संचालन की जिम्मेदारी जनेश्वर मिश्र ने ही संभाली थी | इस चुनाव में जनेश्वर मिश्र के रण नीतिक कौसल के कारण डॉ लोहिया ने ४५ बुथो पर नेहरु को परास्त किया यद्यपि यह चुनाव डॉ लोहिया हार गये | इस चुनाव के कारण १९६३ में डिफेंस ऑफ़ इंडिया एक्ट के तहत जनेश्वर मिश्र को नज़र बंद किया गया | डॉ राम मनोहर लोहिया के अनुयायी के रूप में जनेश्वर मिश्र इतने मशहूर हो गये कि १९६९ में फूल पुर लोक सभा के उप चुनाव में फूल पुर के लोगो ने नारा दिया -- लोहिया को तो जीता ना सके , छोटे लोहिया को जिताएंगे | इस प्रकार जनेश्वर मिश्र को छोटे लोहिया की उपाधि से विभूषित करने का श्रेय फूल पुर की सम्मानित जनता को जाता है | यह वह दौर था जब समाजवादी युव जन सभा के नेता के तौर पर जनेश्वर मिश्र का दबदबा कायम हो चुका था | उत्तर भारत के युवाओ के आकर्षण के केंद्र बिंदु बन चुके जनेश्वर मिश्र के संघर्ष व विचारो के प्रति समर्पण के कारण ही समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था ,-- समता , समानता , अहिंसा , लोक तंत्र और समाज वाद यह पांचो भारत की समग्र राजनीति के अंतिम लक्ष्य है | इन्हें जनेश्वर जैसे वैचारिक प्रतिबद्धता वाले संकल्प के धनी युवा ही सत्याग्रह के रास्ते पर चल कर प्राप्त कर सकते है | जनेश्वर में संगठन की अकूत छमता है | वह विश्वसनिये और जुझारू है , समाजवाद की लड़ाई के लिए ऐसे नौजवानो को आगे आना जरुरी है | उसके मन में ताकत के बल पर शोषक बने लोगो के प्रति क्रोध और गरीबो , पीडितो , कमजोरो के लिए अथाह करुना है | उसमे प्रतिभा है और दबे-कुचले वर्ग की बेहतरी के लिए बड़ा काम करने की सदिच्छा भी , ये दोनों बाते विरले लोगो में मिलती है | छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र ने डॉ लोहिया के एक एक शब्द को , अपने ऊपर किये गये हर विश्वास को ता ज़िदगी बखूबी जिया व पूरा किया | समाजवादी आन्दोलन के योद्धा जनेश्वर मिश्र का महती योगदान वैचारिक दृढ़ता के रूप में हमारे सामने है | डॉ लोहिया के विचारो को आत्मसात किये छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र ने तमाम युवाओ को समाजवादी संघर्ष व विचार से जोड़ा तथा राजनीतिक सक्रियता प्रदान की | डॉ लोहिया के विचारो के लिए संघर्ष करने वाले लोक बंधु राज नारायण को भी जनेश्वर मिश्र अपना नेता मानते थे | प्रखर वक्ता जनेश्वर मिश्र उर्फ़ छोटे लोहिया को समाजवाद की चलती फिरती पाठ शाला बताते हुये समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि आज से लगभग ४३ वर्ष पूर्व मैं जनेश्वर मिश्र जी के संपर्क में आया था तब से जब तक वो सशरीर रहे , एक शिक्षक व अभिभावक की तरह हमारा मार्ग दर्शन करते रहे | उनका दिल्ली का राजेंद्र प्रसाद मार्ग स्थित ८ न ० का बंगला लोहिया के लोग समाजवादी नेताओ, कार्य -कर्ताओ का केंद्र बिंदु था | स्मृतियो में खोते हुये राजेंद्र चौधरी ने बताया की छोटे लोहिया का भवन मार्ग दर्शन प्राप्त करने का , आशीर्वाद प्राप्ति का , अपनी बात बेबाकी से कहने का , मदद प्राप्ति का और भर पुर भोजन करने का स्थल था | समाजवादी विचारो के संगम छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र ने ११ सितेम्बर, २००५ को कहा था ,-- समाजवाद महज़ सियासी लफ्ज़ नहीं है, इसे किसी भी समाज का संपूर्ण आधार माना गया है | उप भोक्ता वादी संस्कृति युवा वर्ग को वैचारिक रूप से पतन की ओर ले जाती है | इससे निकट भविष्य में ऐसा संकट पैदा होगा जिससे पार पाना आसान नहीं होगा |... आज के हालात में छोटे लोहिया की यह चिंता वैश्विक चिंता बन चुकी है | २८ अगस्त, २००९ को आगरा के लोहिया नगर में छोटे लोहिया ने कहा था , --- समाजवादियो को देश की तकदीर बदलनी है तो भारी बलिदानों के लिए तैयार रहना होगा | समाजवादियो को राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस चलानी चाहिए | सिर्फ नेताओ के भाषण सुन लेने भर से सामाजिक - आर्थिक परिवर्तन की राजनीति नहीं गरमाएगी | जनता भूख की मार सहते- सहते सो गयी है | जनता को जगाने की जरुरत है | यह काम समाजवादियो को ही करना है | भेदभाव के बारे में सोचोगे तो दिमाग गरम हो जायेगा , तब गरीब की लड़ाई लड़ सकोगे |..... छोटे लोहिया स्वयं विभिन्न जन संघर्षो में लगभग ११ साल जेल में रहे है | कर्त्तव्य के प्रति लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह दृढ़ता दिखाते हुये राम कोला कांड में नैनी जेल में हिरासत में रखे गये छोटे लोहिया ने पत्नी की मृत्यु पर राज्य पल द्वारा जमानत पर रिहाई करने की बात कहने पर साफ़ मना कर दिया था | उन्होंने कहा कि सभी आन्दोलन कारियो कि रिहाई होने पर ही वे जेल से निकलेंगे और अंतत यही हुआ | जनेश्वर मिश्र कार्यकर्ताओ और साथियो को सम्मान देने में तनिक भी कंजूसी नहीं करते थे | छोटे लोहिया का स्पष्ट कहना था कि मुद्दे जन संपर्क व संघर्ष से बनते है | वे चिंतित रहते थे कि अब समाजवादी जन संघर्ष से अलग हो रहे है तथा मेरी मृत्यु के बाद मेरे भवन में रह रहे कार्यकर्ताओ का क्या होगा ? छोटे लोहिया आज हमारे मध्य नहीं है, उनके विचार व संघर्ष समाजवादी विचारो पर चिंतन करने वालो, राजनीति करने वालो के लिए सदैव प्रेरक रहेंगे | आज समाजवादी विचारो के सभी लोगो को , डॉ लोहिया के लोगो को गरीब- गुरबा की लड़ाई को आगे बढ़ाने की जरुरत है | राजनीतिक पटल पर १९९२ में मुलायम सिंह यादव द्वारा लखनऊ क ए हज़रत महल पार्क में डॉ लोहिया के विचारो की पार्टी का गठन किये जाने के पीछे छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र का संपूर्ण निर्देश व आशीर्वाद था | डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारो के वाहक छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र आजीवन समाजवादी पार्टी के और मुलायम सिंह यादव के मार्गदर्शक रहे | मुलायम सिंह यादव ने उनके देहावसान के बाद कहा था ,---- डॉ लोहिया और राजनारायण जी के बताये आदर्शो को जनेश्वर जी आगे बढ़ाने में लगे हुये थे | लोहिया और राजनारायण के विचार , उन्ही की सादगी , उन्ही का संघर्ष और उन्ही के बताये रास्ते पर जनेश्वर जी चल रहे थे | जो गरीब है , पिछड़े है , मजदूर है , किसान है , उनके प्रति जो ना इंसाफी हो रही है, गरीबी - अमीरी की खाई बढ़ रही है , उसे पड़ने का संकल्प जनेश्वर जी ने लिया था | अब जनेश्वर जी नहीं है | पहले डॉ राम मनोहर लोहिया जी और राज नारायण जी और फिर जनेश्वर जी हम लोगो को संभाले हुये थे | दिशा निर्देश देते थे , राय देते थे | उनका अभाव बहुत खलेगा | जनेश्वर जी के सपनो , विचारो और उनके संकल्पों को ले कर हम लोग आगे चलेंगे | १९ जनवरी,२०१० को समाजवादी पार्टी के इलाहाबाद में आयोजित धरने में जनेश्वर मिश्र छोटे लोहिया ने आशा भरी आवाज़ में कहा था ---- शायद मेरी मौत के बाद समाजवादी आन्दोलन और तेज हो जाये | २२ जनवरी, २०१० को ही छोटे लोहिया नहीं रहे | छोटे लोहिया के देहावसान के बाद उनकी अंतिम इच्छा कि समाजवादी आन्दोलन तेज हो को पूरा करने कि जिम्मेदारी समाजवादी कार्यकर्ताओ की है | समाजवादी आन्दोलन के बूते समाजवादी राज्य की स्थापना जनता के मुद्दों पर संघर्ष खड़ा करके , जन विश्वास अर्जित करके ही किया जा सकता है | जोड़-तोड़ , दल -बदल, सिधान्त हीन गठ बंधन का सहारा लेने की अपेक्षा समर्पित संघर्ष के साथियो को राजनीति में अवसर दिया जाना वक्त की मांग है और समाजवादी पुरोधाओ भगत सिंह, आचार्य नरेन्द्र देव , लोक नायक जय प्रकाश नारायण , डॉ राम मनोहर लोहिया , राज नारायण , राम सेवक यादव , मधु लिमये , जनेश्वर मिश्र के संकल्पों , सपनो के क्रियान्वयन की दिशा में उथया गया सकारात्मक कदम रूपी सच्ची श्रधांजलि और समर्पण है |

Wednesday, August 3, 2011

आस्था या अन्धविश्वास












यह सभी चित्र उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निकटवर्ती जनपद बाराबंकी के मुख्यालय से लगभग १० किलोमीटर दुरी पर गोंडा मार्ग पर फ़तेह सराएँ , सहावपुर की है | यहाँ एक युवक पर नागिन का साया आने की चर्चा से उसको देखने के लिए पिछले १५ दिनों से तमाम लोग आ रहे है, हजारो का चढ़ाव रोज चढ़ रहा है | प्रशासन बेखबर, बाढ़ राहत में व्यस्त और पुलिस को इसकी तहकीकात का मौका नहीं,