Monday, September 12, 2011

यथार्थ

यथार्थ क्या अब , काव्य बन पायेगा ? किसान-मजदूर का दर्द ,कौन गा के सुनाएगा? गायेगा तब ना,जब गीत लिखा जायेगा| यथार्थ क्या अब,काव्य बन पायेगा? जो देश के विकास का , आधार कहलाते है| अपना पूरा जीवन , श्रम में लगाते है| उनके अंतर्मन का मर्म ,क्या कोई लिख पायेगा? यथार्थ क्या अब,काव्य बन पायेगा? रूचि-अभिरुचि का सवाल,यहाँ मुखरित हो रहा| विकास की चक्की में, अन्नदाता पिस रहा| श्रमिक अब,राहत व बख्शीश पर टिक रहा , श्रम का मोल ,उसे ना मिल रहा| यथार्थ क्या अब काव्य बन पायेगा?