Thursday, December 15, 2011

ग्रामीण भारत के आम जन और उनकी अभिलाषा


अरविन्द विद्रोही ........ भारत एक कृषि प्रधान देश है| भारत की बहुसंख्यक आबादी कृषि से ही जुडी है| आज भी भारत की बहुसंख्यक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण जीवन से सरोकार रखती ही है| ग्रामीण अंचलों में आजादी के पश्चात् विकास के अनियंत्रित रथ ने ग्रामीणों और ग्रामीण अंचलों के विकास के स्थान पर कृषि की आधार-भूत ढांचे पर ही प्रहार किया | ग्रामीणों की कृषि योग्य बेश कीमती उपजाऊ भूमि का हरण आजाद भारत की सरकारों ने ब्रितानिया सरकार के बनाये एक काले कानून भूमि अधिग्रहण अधिनियम १८९४ के बलबूते ,सत्ता की हनक और संगीनों के जोर पर जम कर किया| भारत की ग्रामीण जनता अपनी बेबसी को आखिर कब तलक जीती? अपनी जमीन को बचाने के लिए भारत के ग्रामीणों ने एकता के सूत्र में बंधना और भारत की ग्राम्य व्यवस्था को तहस नहस करने वाले इस काले कानून की खिलाफत करना शुरु किया | किसान शक्ति के तमाम धरना,प्रदर्शन, आन्दोलन और किसानों के बलिदान के बाद इस काले कानून में बदलाव की पहल हुई| एक तरफ भारत के शहरी इलाको में विकास कार्यो में वृद्धि और दूसरी तरफ ग्रामीण भारत के ढांचे के प्रतिकूल विकास के नित नए कीर्तिमान कायम करने की होड़ ने ग्रामीणों के मन को व्यथित कर डाला है| कंक्रीट के जंगलो की मार से तड़प रहा किसान ,लाभ कारी फसलो के लिए क़र्ज़ लेकर घाटा उठा कर जान देने पर विवश किसानों की मनो दशा समझने की दिशा में पहल जरुरी है | नकली खाद,नकली बीज , बिजली की किल्लत, बढ़ते डीज़ल के दाम ,नहरों में खेत तक समुचित पानी ना आने की समस्या , कृषि लागत में वृद्धि, नहर कटान से उपजे हालात, कभी बाढ़ तो कभी सूखे से बेजार और परेशान अन्न दाता किसान अपनी आर्थिक दशा और अपने परिवार की सामाजिक-शैक्षिक दशा सुधरने के लिए जी जान से हाड तोड़ मेहनत-मसक्कत करता है | क्या गर्मी,क्या बरसात,क्या सर्दी की सर्द रात और क्या गर्म लू के थपेड़े , अन्न दाता किसान कृषि पैदावार के लिए हर मौसम में अपने खेत-खलिहान में मौजूद रहता है | अपने परिवार के भरण-पोषण और हमारे-आपके खाने के लिए अन्न उपजाने वाले किसान की आर्थिक-सामाजिक -शैक्षिक दशा में सुधार के रास्ते तलाशने की जिम्मेदारी हमारी सब की भी बनती है| किसानों की दशा में सुधार के रास्ते तलाशने के लिए किसानों के ही मन को टटोलने का निश्चय किया और किसानों की अद्भुत ज्ञान परक सोच को जान कर एक सुखद अनुभूति का अनुभव भी किया | क्या खेती किसानी में लगे किसानों से कभी ग्राम्य स्तर पर विकास परक योजना के निर्धारण,उनके क्रियान्वयन के बारे में सलाह मशविरा करना शुरु होगा ? ग्राम्य पंचायतो के प्रस्तावों पर विकास कार्य ना होकर सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण से चुनावी लाभ हेतु विकास कार्य व विकास परक योजनाओ की घोषणा का सिलसिला भारत-भूमि को तेज़ी से गहरे खाई की तरफ ले जा रहा है| खुद का चुनाव जीतने के लिए,अपने सगे-सम्बंधियो को जिताने के लिए,अपने संगठन के लोगो को जिताने के लिए अब सरकार में शामिल मंत्रियो ने सामाजिक-राजनीतिक नैतिकता को त्याग कर सरे-आम बेशर्मी पूर्वक प्रलाप शुरु कर दिया| अपने संवैधानि कर्तव्यों के पालन की जगह सिर्फ चुनावी लाभ हासिल करने के छुद्र मानसिकता के चलते चुनावी लाभ के लिए विकास कार्यो और वायदों की बरसात करने वाले नेता व मंत्री निष्पक्ष चुनावो की प्रक्रिया को सरेआम अपने सत्ता के रथ पर सवार होकर रौंदते चले जा रहे है और आम आदमी की बिसात ही क्या भारत का चुनाव आयोग भी एक बेबस निरीह संस्था की तरह सिर्फ अधि-सूचना का इंतज़ार कर रहा है | राजनेताओ की मनमानी और भ्रस्टाचार के इस अदभुत स्वरुप को देख कर ब्रितानिया हुक्मरानों के शासन की याद ताजा हो जाती है,जहा भारत की आम जनता की चिंता ना उस सरकार को थी ना इन सरकारों को है| सरकारे आम जनता के विश्वास को लुटने के लिए ,उनके मताधिकार के संवैधानिक अधिकार को लोभ जाल में फंसा कर हड़पने के लिए जनता के धन का चुनावी लाभ हेतु इस्तेमाल कर रही है| एक विधायक,एक सांसद के अपने विधान सभा,अपने संसदिए इलाके के प्रति क्या कर्त्तव्य है,क्या यह भी इन निर्वाचित प्रतिनिधिओ को ज्ञान नहीं है? क्या सरकारों में शामिल मंत्रियो को सिर्फ अपने इलाके में या जहा से उनके पुत्र या सगे -सम्बन्धी चुनाव लड़ने वाले हो ,अपने मंत्रालय का सारा धन वही लगाना राजनीतिक गिरावट और भ्रस्टाचार नहीं ? बुनियादी बदलाव की जगह तात्कालिक लाभ के लोभ में फंस कर इन स्वार्थी राजनेताओ के मकड़ जाल में आम आदमी दिन प्रति दिन कसता ही जा रहा है| ग्रामीण इलाको ,ग्रामीण जनता ,मेहनत कश तबके के सर्वांगीन विकास की एक ठोस पहल ,एक सकारात्मक कार्य योजना आज तक क्रियान्वित नहीं हो सकी है| चुनावी लाभ के लिए टुकडो टुकडो में लागु की जाने वाली विकास योजना सिर्फ छलावा ही साबित होती है जिस से आम जन की जगह चन्द लोगो की तरक्की और शानो-शौकत में वृद्धि होती है | ग्रामीण जनता के लिए ,उसके जीवन के स्तर को उच्च स्तर पर लाने के लिए अब कंक्रीट और इस्पात की नहीं, खेती- किसानी के लिए किसानों के उपज में लागत के अनुपात में मूल्य निर्धारित करने की जरुरत है | ग्रामीण जनता का भला ना कंक्रीट की इमारतो से हुआ है और ना ही इस्पात के जाल से हो सकता है,ये सिर्फ विकास के एक पहलु ,एक टुकड़े ही है | समग्र विकास की पहल ग्रामीण जनता के जीवन दशा, उनके परंपरा-गत पेशे ,बुनियादी शिक्षा-स्वास्थ्य - कृषि आधारित रोजगार ,वाजिब-लाभकारी मूल्यों के निर्धारण और सबसे बढ़कर उनमे आत्म विश्वास जगाने से होगा| यह आत्म विश्वास जगाने का काम भ्रष्ट नेता नहीं करेंगे ,ये स्वार्थी और भ्रष्ट नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए आम जनता के सम्मुख विकास के नाम पर लोभ का पिटारा खोलते है |जनता की मेहनत की कमाई से बने सरकारी खजाने और उसी सरकारी खजाने के धन को बेशर्मी पूर्वक सिर्फ अपने राजनीतिक लाभ के मद्दे नज़र इस्तेमाल नहीं लुटाते हुये इनको तनिक भी लाज नहीं आती ,कारण सिर्फ आम जनता की ख़ामोशी ही है| आम जनता की ख़ामोशी तोड़ने का काम ,ग्रामीण जनता के बीच जाकर इन स्वार्थी मंत्रियो-नेताओ के स्वार्थी मंसूबो को बताने और जन चेतना जगाने का काम अगर भारत की तरुनाई आगे बढ़ कर अपने मजबूत कंधो पर ले लेवे और जुट जावे इनके चेहरों से नकाब हटाने की मुहिम में तब सत्ता ही नहीं व्यवस्था परिवर्तन से भी कोई नहीं रोक सकता | आज जरुरत समग्र चेतना जगाने और ग्रामीण इलाको की जनता के मन को समझने की है,ग्रामीण मन अब शोषक वर्ग से त्रस्त हो चुका है,नित नए अंट-शंट आन्दोलनों ने आम जन को निराश ही किया है| ग्रामीण मन भारत का वास्तविक मन है,इसकी अभिलाषा को ना जानने की इच्छा शक्ति सरकारी में है,ना ही इनकी समग्र विकास से वास्ता| ग्रामीण इलाको में विकास कार्य सिर्फ चुनावी लाभ के लिए होते है ना की ग्रामीणों की तरक्की के लिए | ग्रामीणों के लिए बनी सार्थक योजनाये भी स्वार्थी सरकारों के नापाक मनसूबों और भ्रष्ट नेता-भ्रष्ट नौकरशाह -अपराधी के काकस में तम तोड़ कर सिर्फ जेब भरने का जरिया बन गयी है |आज जरुरत ग्रामीण अंचलो में जागरूकता की और संवैधानिक अधिकारों को हासिल करने की लडाई लड़ने की है| ग्रामीण इलाको में लोगो के पास तन ढकने को कपडा नहीं है, उनके पास इतना पैसा नहीं है की वो सलीके का वस्त्र खरीद कर पहन सके और पूंजी वाद की बेरहम चक्की में मेहनत कशो-किसानों-युवाओ के हक़ को पिस कर शोषक वर्ग के लोग शहरो-महानगरो में अपना तन दिखाने के लिए नाना प्रकार के हजारो रूपये के वस्त्र खरीदते और पहनते है| ग्रामीण मन अन्दर ही अन्दर अपने शोषण के खिलाफ जल रहा है,ज्वाला मुखी के मुहाने पर बैठा यह समाज किसानों-मेहनत कशो की मेहनत की गाढ़ी कमाई पर ऐश कर रहा है और अंजाम की परवाह भी नहीं कर रहा है| अगर किसी युवा का आक्रोश तमाचे के रूप में एक मंत्री के मुंह पर जा पड़ता है तब कोहराम मचाने में ये स्वार्थी नेता तनिक भी संकोच नहीं करते और अपने द्वारा आम जन के हितो पर प्रति दिन -प्रति पल कुठारा घात करते समय इनको शर्म भी नहीं आती| जुल्मी-निरंकुश सरकारों के खिलाफ संघर्ष करना और उनको उखाड़ फैकना आज के ग्रामीण भारत के मन की अभिलाषा है| जनता की अभिलाषा पर खरे उतरने वाले राजनीतिक नेतृत्व का अभाव ही भ्रष्ट सरकारों के लिए संजीविनी का काम कर रहा है, समाजवादियो ,जनता के लिए संघर्ष करने वाले संगठनो और राष्ट्र वादियो को ग्रामीण मन के अनुसार चलना चाहिए | भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ जनता से जुड़े संघर्ष शील राजनीतिक नेताओ को लोकतान्त्रिक अधिकारों को हासिल करने के लिए चुनाव लड़ना चाहिए या किसी इमान दार ,जन नेता ,समाजवादी चरित्र-सोच के प्रत्याशी की भर-पुर मदद करनी चाहिए | जनता के लिए संघर्ष करने वाले ही जनता के लिए काम कर सकते है ,जोड़ तोड़ व मौका परास्त राजनीति करने वाले सिर्फ स्वार्थ सिद्ध करेंगे यह निश्चित व ध्रुव सत्य है |सामाजिक - राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तन के लिए आम जन के हितैषियो को लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत जन प्रतिनिधि निर्वाचन हेतु आगे आना चाहिए ,बगैर लोकतान्त्रिक ताकत हासिल किये व्यवस्था परिवर्तन नहीं किया जा सकता है|

जन चेतना अभियान

बाराबंकी में जन चेतना अभियान के तहत देवा से महादेव तक १३ दिसम्बर को निकली महंगाई,भ्रष्टाचार,जातिवाद,फिरका परस्ती,राजनीतिक गिरावट के खिलाफ और आम आदमी के हको हकूक की लडाई सड़क पर लड़ने के लिए जन कारवां बनाने के उद्देश्य से निकली संकल्प यात्रा अपने उद्देश्यों में सफल रही| अब ग्रामीण अंचलो में ग्रामीणों के साथ बैठक ,पद यात्रा ,साइकिल यात्रा के लिए संघर्ष शील साथियो को आगे आना चाहिए | बाराबंकी की समाजवादी धरा से जुल्मी ,अत्याचारी,जनविरोधी,मौकापरस्तो ,अवसर वादियो ,पूंजीपतियो को प्रत्याशी को विधान सभा में नहीं पहुचने दिया जायेगा यह संकल्प आम जनता को दिलाते रहना है| समाजवादी चरित्र व सोच के विधान सभा प्रत्याशियो जिन्होंने आम जनता के हित की लडाई लड़ी है उनको विधान सभा में अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करना है|दल बदलुओ को नकार दीजिये ,सिर्फ जनता से जुड़े अपने राजनीतिक सिधान्त पर अडिग ,राजनीतिक चरित्र व समाजवादी सोच के प्रत्याशियो को समर्थन व मत दीजिये |राजनीतिक दलों के मकड़ जाल से निकल कर समाजवादी सोच - चरित्र के जन नेताओ को विजयी बनाइये |विनम्र अनुरोध के साथ-- अरविन्द विद्रोही