Tuesday, June 14, 2011

दुनियॉं

घिर गये गम के बादळ
रूठ गयी हमसे खुशियॉं,
जाने हमसे क्या खता हुई
उजइ गयी हमारी दुनियॉं।
ऐसा क्या जळजळा उठा
घिर आयी काळी घटा (जीवन मे),
अपनो ने मुह मोइ ळिया
सपनो मे आना छोइ दिया।
टूट गये सारे रिश्ते
बढ गयी ये दूरियॉं,
न जाने ऐसी क्या वजह हुई
सुनसान हुई हमारी गळियॉ।
दिल दर्द से तइप उठा
जीवन अंधेरो मे घटा (बीता),
तकळीफो ने घेर ळिया
उम्मीदो ने दामन छोइ दिया।
घिर गये गम के बादळ
रूठ गयी हमसे खुशियॉं,
जाने हमसे क्या खता हुई
उजइ गयी हमारी दुनियॉं। by Vinay mohan Joshi

भारत के हालत की जिम्मेदार सरकारे और जनविरोधी सोच


अरविन्द विद्रोही आज के हालत का जिम्मेदार कौन है? अगर भारत में कोई भूख से मरता है तो क्या सरकार जिम्मेदार नहीं है? किसानों की भूमि,मजदूर की मजदूरी हड़पने वाला तंत्र कब तक शोषण की बुनियाद पे टिका रहेगा? अफ़सोस तो यह भी होता है कि यहाँ अपने वतन में बहुत से लोगो के पास पहनने को कपडे नहीं है ,खाने को रोटी नहीं है,और दूसरी तरफ कुछ पूंजीवादी शोषक तंत्र के वाहक अपना तन दिखाने वाले कपडे महंगे दामो में खरीद कर प्रदर्शन करते है,पालतू कुत्तो को बिस्कुट खिलाते है|वाह रे भारत को विकास के पथ पर ६३ वर्षो में ले जाने वाली सरकार............................. अरे माँ भारती आप भी व्यथित हो गयी? अपने एक सपूत के कष्टों को देख कर ,अरे माँ तेरी कोख तो सदा सदा से वीरो और बलिदानियो को जन्म देती रही है| क्या आम जनों पर अत्याचार से तेरा भी ह्रदय द्रवित हो गया , कलेजा फटा जा रहा है माँ तेरा भी ? हजारो वर्षो की गुलामी के पश्चात् आजादी के इन ६४ वर्षो में ही अपनी ही संतानों के द्वारा अपने ही धरा के बंधु-बांधवो पर ढाए गये जुल्म व किये गये शोषण का लहराता पचम तेरे मन को अशांत कर गया है क्या? माँ भारती निवेदन है तेरे इस पुत्र का मन को शांत कर लीजिये| आपका अशांत मन इस धरा पर बड़ा ही प्रलयंकारी होगा| एक बात कहू माँ, जरा अपनी जुल्मी संतानों के प्रति प्रेम व अनुराग का त्याग मात्र कर दो,अब शोषण - अत्याचार- अनाचार के शिकार अपनी मेहनत संतानों की सुधि लो | तू वीरो की जननी, श्रेष्ट पथ-प्रदर्शको की जननी बस अपने व्यथित मन को सहेज कर अपनी भटकी भ्रष्ट संतानों को चेता तो दो| अब अपनी मेहनत-कश संतानों में हौसिला भर दो माँ भारती| हजारो-हज़ार साल की गुलामी के कारण अभी तेरी संताने गुलामी की,दासता की दंश से अभी भी उभर नहीं पाई है| भारत भूमि के किसान-मजदूर-नौजवान में जुल्म-शोषण-अत्याचार के खिलाफ लड़ने की नव शक्ति का संचार कर, अपने स्वाभिमान के लिए,अपने अधिकार के लिए मर मिटने की भावना का नूतन प्रवाह कर दो| ब्रितानिया हुकूमत के दौरान जुल्म का हर संभव तरीके से प्रतिकार कर तेरी बेडीयां काटने वाली संतानों की आत्मा भी आज द्रवित होगी माते | महात्मा गाँधी के नश्वर शरीर से आत्मा को हरने का काम तो सिर्फ एक बार नाथू-राम गोडसे ने किया लेकिन गाँधी के विचारो की निर्ममता पूर्वक प्रति-पल हत्या करने का काम करने का काम आजाद भारत की भ्रस्टाचार हितैषी जनविरोधी सरकार कर रही है| महात्मा गाँधी ने चरखे की अवधारणा को मूर्त रूप देते समय यह कदापि नहीं सोचा होगा कि सादगी व आम जन के द्वारा,आम जन के लिए सिर्फ वस्त्र नहीं विचार का प्रतीक खादी भ्रष्ट नेताओ का,ऐश्वर्या-भोग-विलासता -समृद्धि का लिबास बन जायेगा| आज खादी आम जन से दूर हो कर भ्रष्ट तंत्र के वाहको का गाँधी कवच बन चुका है| खादी का व्यापार गाँधी के चरघे कि अवधारणा को समाप्त कर चुका है| महात्मा गाँधी के अनन्य अनुयायी समाजवादी नेता-विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया ने इस परिस्थिति को भांप कर ही चरखे की जगह किसान के फावड़े कि प्राथमिकता कि बात करते थे| चरघे की जगह फावड़ा को रखने की बात करने वाले डॉ लोहिया का कहना व मानना था कि चरखा भारत के आम जन के लिए उतना प्रासंगिक नहीं है जितना कि फावड़ा | खेती में ,नहर बनाने में, सिचाई के काम में, हदबंदी में,भूमि खोदने या समतल करने में,इमारतो को बनाने में,सड़क बनाने में, खेती- किसानी - मजदूरी से लेकर विकास के हर काम में फावड़ा उपयोगी है,यह भारत के हर व्यक्ति के जीवन में काम आने वाला औजार है| महात्मा गाँधी के ग्राम्य विकास कि बलि चढाने वाली सरकार किसानों की बदहाली,मजदूरों की दयनीय दशा और युवाओ की बेकारी की जिम्मेदार नहीं है तो और कौन है?
कृषि भूमि के अधिग्रहण ने अन्न-दाता किसान और भारत के ग्राम्य व्यवस्था के चिंतको की नीद हराम कर दी है|विदेशो से काले धन की वापसी की मुहीम के साथ साथ कृषि भूमि का अधिग्रहण सरीखे तमाम जनविरोधी कानों समाप्त किये जाने से ही देश-समाज विकास के मार्ग पर चल सकेगा| जगह जगह आम जनों पर पुलिसिया गुंडागर्दी का जो नज़ारा देखने को मिल रहा है, बाबा रामदेव व सत्याग्रहियो पर निर्मम अत्याचार देखने को मिला , वो सरकारों का जुल्म ही है| भारत की कांग्रेस सरकार तिलक-गाँधी के स्वराज्य के मूल मंत्र व भाव पर यह जो लगातार कुठाराघात करती चली आ रही है , वो भारत भूमि के बलिदानियो की आत्मा को लहूलुहान कर रही है | भारत एक लोकतान्त्रिक देश है| लोकतंत्र में सत्ताधारी दल को गफलत में नहीं पड़ना चाहिए| यह भी सत्य है कि चुनावो में सत्ता के बेजा इस्तेमाल व धन के अँधाधुंध वितरण से मतदाताओ को लोभ-लालच में डाल कर परिणाम अपने पक्ष में करने में इनको महारत हासिल है परन्तु आज पुनः एक बार भारत की तरुनाई,भारत का किसान,मजदूर, आम आदमी ,घर का बज़ट बेतहाशा बढती महंगाई से परेशान महिला शक्ति के दिलो-दिमाग में सरकार के द्वारा दी जा रही चोट से मन में आग लग चुकी है| लोगो के दिलो में लगी यह आग जुल्मी सरकार को ख़त्म कर के एक जनहित की सरकार को कायम करने की सोच में बदल चुकी है |