Wednesday, November 9, 2011

उत्तर प्रदेश की बदहाली और समाजवादियो-सामाजिक कार्यकर्ताओ का दायित्व

अरविन्द विद्रोही उत्तर प्रदेश के हालात दिन प्रतिदिन बाद से बदतर होते जा रहे है | सियासत की चक्की में आम जन की बात दीगर है , प्रशासनिक अधिकारी और विपक्षी दलों के नेता भी पिसते जा रहे है |उत्तर प्रदेश में सत्ता धारी बहुजन समाज पार्टी के हितो के विपरीत बात करने वाले अधिकारी पागल तक करार दिये जा रहे है ,कोई पागल हो या ना हो इतने यंत्रणा के बाद पागल होने की पूरी सम्भावना उत्पन्न हो ही जाती है | तानाशाही व नौकर शाही के दो पाटो के बीच बेचारा लोकतंत्र,मतदाता पिसता ही जा रहा है| लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापित मान्यताओ की परवाह किये बिना जन आकांझाओ की अवहेलना करते हुये सरकारों का दमन कारी रवैय्या अपने चरमोत्कर्ष पे है|उत्तर प्रदेश की बसपा और केंद्र की कांग्रेस दोनों सरकारों का दमन चक्र आम जन की भावनाओ को दरिंदगी से कुचलता ही जा रहा है | लोकतंत्र में निर्वाचित सरकारों का जन विरोधी यह चरित्र शर्मनाक और लोकतंत्र को ख़त्म करने वाला चरित्र है| जनविरोधी तानाशाही सरकारों के कारण ही आज आम जन का विश्वास लोकतान्त्रिक व्यवस्था से डगमगा रहा है| आज हालात यह है की उत्तर प्रदेश में हर एक वर्ग बहुजन समाज पार्टी की कार गुजारियो से त्रस्त है |बसपा सरकार की गलत नीतिओ के खिलाफ जनता में जो आक्रोश दिखना चाहिए था ,अनवरत जारी सरकारी लूट ,दमन ,शोषण ,मनमानेपन के खिलाफ उबाल आना चाहिए था ,आखिर वो उबाल ,जनता का आक्रोश लगातार सड़क पर दिखाई क्यूँ नहीं दे रहा है? आम जन त्रस्त है ,यह सत्य है लेकिन संघर्ष से वास्ता नहीं रखना चाहती,आखिर क्यूँ? समाजवादी विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया ने जनता की मनोदशा पे कहा था---- हिंदुस्तान जैसे देश में साधारण जनता यांकी गरीब आदमी क्रांति को इतना नहीं समझेगा,जितना कि राहत वाली राजनीति को |वह बराबरी को इतना नहीं समझेगा ,जितना कि बख्शीश को |उसको अगर थोडा बहुत पैसा मिलता रहे जीतने कि उसको आकांझा है,तो वह इसे ज्यादा पसंद करेगा,चाहे वह पैसा और समाज में उसका स्थान बहुत निचे दर्जे का हो,लेकिन कुछ मिला तो सही|जहाँ आदमी बहुत भूखा ,बहुत नंगा है ,बहुत दबा और गिरा हुआ है,वहां वह थोड़ी-बहुत छोटी-मोटी राहत की चीजों से प्रसन्न हो जाया करता है और उसको बराबरी की इच्छा कोई ऐसे सपने के जगत की काल्पनिक चीज मालूम होती है कि उसके लिए वह कुछ बहुत चिंता या सोच विचार करने को तैयार नहीं होता| ऐसा देखा गया है ,लेकिन यह खाली तुलनात्मक बात कह रहा हूँ| ऐसा ना समझना कि हमेशा के लिए एक भूखे और बहुत गरीब देश का गरीब आदमी क्रांति के बजाय राहत की राजनीति को,बराबरी के बजाय बख्शीश वाली नीति को पसंद करेगा |अगर ऐसा हो तो संसार में बदलाव कभी आ ही नहीं सकता|समय बीतते-बीतते ठोकर खाते-खाते दूसरी बातें भी दिमाग में आने लगती है| शायद अब वो वक़्त आ गया है हिंदुस्तान की राजनीति में जिसकी तरफ ,जिसके कभी ना कभी आने की बात डॉ लोहिया ने कही थी|आज तमाम संगठन जनता की आवाज़ बन के उभरे है,जनता में विश्वास की उमंग जगी है| भारत स्वाभिमान आन्दोलन की बाबा राम देव की अगुआई में जनजागरण यात्रा, अन्ना हजारे के अनशन,लाल कृष्ण आडवानी की लोकनायक जय प्रकश नारायण की जन्म स्थली से शुरु हुई रथ यात्रा ,युवा समाजवादी अखिलेश यादव की क्रांति यात्रा ने जनता की भावनाओ को उद्वेलित व जागृत करने का अनूठा काम किया है | उत्तर प्रदेश में समाजवादी आन्दोलन के आशा के केंद्र बिंदु बन चुके समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने डॉ लोहिया के विचारो के आधार पे मुद्दों की राजनीति की सकारात्मक शुरुआत की है जो उनके प्रति बन रहे जन आकर्षण का प्रमुख कारक है |आज जुल्म के खिलाफ लड़ने व एकजुट होने का समय आ गया है| कांग्रेस भ्रस्टाचार की जननी है इसको राजनीतिक नेपथ्य में करने और उत्तर प्रदेश को बसपा की माया सरकार से निजात दिलाने के किये सभी समाजवादियो और सामाजिक कार्यकर्ताओ को गैर कांग्रेसी गठबंधन बनाने की दिशा में काम करना चाहिए| डॉ लोहिया को मानने वालो,समाज हित में काम करने वालो,सरकारों के तानाशाही तरीको से त्रस्त जनों को देश-प्रदेश की सरकारों को उखाड़ फैकने की मुहिम में जुट जाना होगा और समाजवादी मूल्यों की सरकार बनाने के लिए अपना सर्वस्व लगाना पड़ेगा |