Thursday, March 3, 2011

महत्वाकांक्षी इंसान

नितेन्द्र विक्रम कौशिक
महत्वाकांक्षी होना इंसान के लिए बहुत अच्छी बात है , लेकिन ज्यादा महत्वाकांक्षी होना गलत है , क्योंकि वो फिर लोभ और स्वार्थ का धोतक है , कभी कभी हम अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के चकर में दुसरे लोगों की महत्वाकांक्षा और उनकी भावनाओं को गहरा ठेस पहुंचाते हैं ! हमें ये ख्याल रखना होगा की और लोग भी हैं , सभी लोगों का अलग अलग महत्व है , सभी लोगों का मान सामान , महत्व का ख्याल रखते हुए हमें अपना वक्तव्य देना चाहिए ! हम हमेश अपनी आदत से लचर हैं अपने आपको देखने और दिखाने के चकर में औरों को भूल जाते हैं , कभी कभी इन सबों के चकर में लोगों की गरिमा तो ठेस पहुंचाते हैं , हम हमेशा भूल जाते हैं की सामने वाला व्यक्ति क्या है , उनकी अहमियत क्या है , मैं जो बोलने या लिखने जा रहा हूँ वो सही है या नहीं है , इससे औरों को कैसा महसूस होगा ? ऐसा तो नहीं की हम लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं, और ऐसे भी हमारी जो सभ्यता और संस्कृति है उसके हिसाब से लोगों का ख्याल रखना पड़ता है , सामने वाले वरिष्ट हैं या गुनी हैं या फिर हम से ज्यादा जानते हों और करते हों , एक संगठन चलने के लिए इन सब बातों को ध्यान में रखना पड़ेगा तभी जाकर कोई संगठन सफल होगा , हम हमेशा लोगों को भूल कर आदेश जरी कर देते हैं , हमारे संस्कृति में व्यक्तियों की दो वजहों से आदर करते हैं एक उनके उम्र के हिसाब से दूसरा उनके काम और उनके नाम के हिसाब से , लेकिन ये बहुत ही दुःख की बात है की हमलोग या भूल गए हैं ! और अक्सर ही ऐसी गलतियाँ करते रहते हैं ! जब हम औरों को आदर करेंगे तभी हमें भी कोई आदर करेगा , जब हम औरों की भावनाओं का क़द्र करेंगे तभी हमारी भावनाओं की कोई क़द्र करेगा ! हमें अपने आप को भूलना नहीं चाहिए ! हम अपनी बात दो तरीके से किसी को कह सकते हैं एक तो आदेश दे सकते हैं और दूसरा हम निवेदन करते हुए ,ये हमें तय करना है की इन दोनों में कौन सा तरीका अच्छा रहेगा ! देखने में ये छोटी बात लगती है लेकिन ये बहुत ही बड़ी बातें हैं ! इन्ही छोटी छोटी बातों से रिश्तों के बिच बहुत बड़ी खायी आ जाती है , और बाद में उस खायी को पाटना बहुत मुश्किल हो जाता है !