Thursday, February 10, 2011

सुश्री मायावती -- 12 फरवरी को बाराबंकी आगमन

आसुतोष कुमार श्रीवास्तव... प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के आगामी 12 फरवरी को जनपद आगमन को देखते हुए सारा प्रशासनिक अमला दिन रात एक किये हुए है।

गौरतलब है कि आखिर मुख्यमंत्री दौरे की तारीख आते ही प्रशासनिक अमला क्यो सक्रिय होता है। क्या जो विकास कार्य अब कराये जा रहे है इनको पहले नही कराया जा सकता था। हर विकास कार्य के लिए धन का आवटन तो किया जाता है। साथ ही साथ कराये गये विकास कार्यो की निरीक्षण रिपोर्ट भी यही अधिकारी ही तो देते है। इस समय समस्याग्रस्त पीड़ित दरिद्रनारायण की सुनने वाला कोई नही है। क्योकि सारे अधिकारी सुबह होते ही विभिन्न स्थानों को कूच कर जाते है। तथा देर रात वापस आ रहे है। चारो ओर सफाई का कार्य जा रहा है। चाहे सरकारी दफतर हो अथवा नगर के मुख्यमार्ग या फिर मलिन बस्ती ही क्यो न हो। जो कार्य इस समय कराये जा रहे है। ये सारे कार्य तो रूटीन में ही कराये जाने चाहिए। एक दिन के लिए इतनी सारी तैयारी की जाये फिर आराम तलबी में मशगूल हो जाने से तो आमजन को राहत नही मिलने वाली है। जन सामान्य से जुडे साधारण से मामलों में भी प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता ही दिखती है। चाहे काशीराम आवास योजना हो या फिर महामाया योजना हो सारी योजनाएॅ जिस वर्ग के लिए बनायी गयी है। उस वर्ग को इनका लाभ मिलना चाहिए। मुख्यमंत्री के पास इतना समय कहा कि हर व्यक्ति के पास पहॅुचकर दुःख-दर्द जान सके। फिर भी वर्तमान प्रदेश की मुखिया जिला-जिला जा कर प्रदेश वासियों की समस्याओ को जानने की जो कोशिश कर रही है। निश्चित रूप से चन्द्र गुप्त मौर्य व अकबर द ग्रेट के द्वारा की गयी जनसेवा की पुनरावृत्ति कर आम आदमी को बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय को कार्य रूप दे रही है। वृद्धावस्था, विधवा, विकलांग, पेन्शन सहित विवाह अनुदान समय पर लाभार्थी को यदि मिलता रहे, अस्पतालो में रोगियों की सुचारू रूप से इलाज होता रहे, पुलिस कानून व्यवस्था बनाये रखने को सक्रिय रहे, समाज में अपराध व अपराधियों का बोलबाला न हो, विद्यालयों में बच्चो को समय पर शिक्षा व भोजन मिलता रहे, ब्लाको में मात्र राजनीति ही न हो विकास पर भी चर्चा हो, तहसीलो में भाई-भतीजा से ऊपर उठकर जनसामान्य का काम होता रहे, परिवहन विभाग द्वारा यात्रियों की सुख-सुविधा का ध्यान रखा जाये, वन विभाग द्वारा उपलब्ध भूभाग का 33 प्रतिशत पर हरियाली बनायी रखी जाये, वन जन्तुओ का अवैध रूप से शिकार न किया जाये लकडी माफियाओ से संाठ गंाठ कर हरे फल दार पेडों की कटान न कराई जाये, खाद्य रसद विभाग द्वारा सरकार द्वारा सरकारी राशन का वितरण भली प्रकार किया जाता रहे, मुनाफा खोरो, जमाखोरो, मिलावटी व नकली सामान बेचने वाले लोगो के खिलाफ कार्यवाही होती रहे, शिक्षण संस्थाओं में अध्यापक प्रबन्धतन्त्र व प्रधानाचार्य के बीच राजनीति तक ही सीमित न रहे बल्कि शैक्षणिक कलैन्डर के अनुरूप विद्यार्थियों को पढाते रहे, सरकारी विभागो में भ्रष्टाचार व्याप्त न हा,े जिले की औद्योगिक इकाईयां भरपूर उत्पादन करती रहे तो प्रदेश मुखिया को इस प्रकार दौरे क्यो करने पडें। बात बिल्कुल साफ है कि सरकारी पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग जहॉ अपने कर्तव्यों के प्रति संवेदनहीन होते है वही सत्तारूढ दल के जनता द्वारा चुने गये नुमाइन्दे भी इन व्यवस्थाओ के प्रति अपनी जवाब देही नही समझते। क्योकि व्यवस्था तो तभी दुरूस्त रहेगी जब देख रेख अपनी ऑखो की जाये। लेकिन विडम्बना है कि एक ओर जहॉ सरकारी अधिकारी शाम होते ही लखनऊ स्थित अपने द्यरो की ओर कूच कर जाते है। वहीं निर्वाचित प्रतिनिधि भी अपने क्षेत्र में निवास करने की जगह राजधानी में ही निवास करने को वरीयता देते है। क्योकि क्षेत्र की समस्याओ को झेलने के लिए तो जनता है ही।

बाबू बेनी प्रसाद- बाराबंकी जनपद का विकास

Asutosh kumar Srivastava बाराबंकी:- देश के स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर आजतक जनपद को गौरव दिलाने वालो में जहा रफी अहमद किदवाई का नाम लिया जाता है वही जनपद को विकास की राह पर ले जाने वालो में मात्र एक ही धुृवतारा है जिसे हम सब बाबू बेनी प्रसाद के नाम से जानते है।

गौरतलब है कि जनपद की परिधि में अनेक नेता आये और अपनी राजनैतिक रोटी सेक कर चलते बने। लेकिन बाबू बेनी प्रसाद का सारा अस्तित्व जनपद के चहुॅमुखी विकास में ही परिलक्षित होता है। मुंह से खरे व दिल के भले इस नेता ने अबतक आधा दर्जन से भी अधिक बार विधान सभा व पांच बार लगातार लोकसभा का चुनाव जीत कर अपने शानदार राजनैतिक कौशल का परिचय दिया है। वर्ष 2007 के विधान सभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी को छोड़कर तुरन्त समाजवादी क्रन्तिदल के गठन के पश्चात हुए चुनाव में बेनी बाबू के हाथ निराशा तो जरूर लगी लेकिन उनके समाजवादी पार्टी छोड़ देने के कारण चुनाव में इसका सीधा लाभ बसपा को मिला तथा बाबू जी के समय आठो विधान सभा सीटो पर परचम लहराने वाली सपा को मात्र दो सीटो से ही सब्र करना पडा। खराब स्वास्थ्य के चलते एक बार विरोधियों को यह कहने का मौका जरूर मिला कि बाबू जी की राजनैतिक पारी अब समाप्त होने को है। लेकिन वर्ष 2009 में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में काग्रेस पार्टी के टिकेट पर गोण्डा संसदीय क्षेत्र से शानदार विजय हासिल कर बाबू जीने अपने विरोधियों को करारा जवाब दिया। इस लोकसभा चुनाव में बाराबंकी लोकसभा सीट से 25 साल बाद बाबू जी ने काग्रेस प्रत्याशी पी0एल0पुनिया को रिकार्ड मतो से विजय बनाकर लोकसभा भेजा यह बात किसी से छिपी नही है। लेकिन राजनीति के क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित है कि जिसको अगुली पकड कर चलना सिखाओ वही तुमको पीछे करने की कोशिश करता है। बाबू जी के जन्मदिन के दो साल पूर्व पर नजर डाले तो एक माला के अन्दर बाबू जी व पुनिया एक साथ नजर आते है। लेकिन आज स्थितयां ठीक विपरीत है। एक ही राजनैतिक दल मे होने के बावजूद दोनो लोग एक दूसरे को फूटी ऑख नही सुहाते। वर्तमान समय मे दोनो ही सांसदो को मनमोहन सरकार मे महत्वपूर्ण पद मिले हुए है। लेकिन दोनो लोगो में पार्टी के लिए कौन लाभदायक सिद्ध होगा यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन एक बात साफ तौर से कही जा सकती है कि चाहे कोई जितना भी क्यो न बन ले नेता तो बेनी बाबू ही हैं। जब-जब बाबू जी पावर मे होते है तबतब उसका सीधा लाभ जनपद को मिला है चाहे वो वर्ष 1989 से 1991 व 1993 से 1995 में लोक निर्माण मंत्रिपद हो अथवा वर्ष 1996 में देवगौडा सरकार मेे केन्द्रीय दूर सचार मंत्री का पद हो। दोनो पदो पर रहते हुए बाबू जीने जनपद में विकास की गंगा बहाने में कोई कसर नही छोडी। जब वह प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री थे तो जनपद के हर गांव के गली -कूंचो तक सड़को का जाल बिछाने का कार्य किया। और जब वह केन्द्रीय संचार मंत्री बने तो जनपद स्तर से लेकर गांजरी क्षेत्र हेतमापुर तक संचार भवन बनवाकर टेलीफोन लाइन बिछवाने का कार्य किया। इतना ही नही संचार मंत्री रहते हुए ही द्वापरयुगीन पारिजात वृक्ष पर तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भण्डारी द्वारा डाकटिकट जारी करवा कर जनपद को सारे देश में पहचान दिलाने का काम किया। वर्तमान पारी में इस्पात मंत्री बनते ही जगदीश पुर की स्टील फैक्ट्री को पुनः चालू करने व बाराबंकी तथा गोण्डा में इकाईया स्थापित करने की घोषणा से ही लोगो के मन में एक नयी आशा की किरन जगी है। इनके राजनैतिक कौशल का लाभ मिशन 2012 को कामयाब करने में काग्रेस पार्टी को मिलना अवश्यंभावी है।