Wednesday, March 21, 2012

समाजवादी पार्टी

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पिछले साल मार्च में तीन दिवसीय जन आन्दोलन किया था , यह वह निर्णायक मोड़ था जिसके बाद पुरे प्रदेश में बसपा से नाराज़ जनता का मन सपा की तरफ बन गया | समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओ के संघर्ष से बने जन समर्थन को भांप के तमाम नेता तत्काल सपा में शामिल हो गये और कई तो विधान सभा का टिकेट भी पा के निर्वाचित हो गये | समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को मंथन करना चाहिए और जिन कार्यकर्ताओ -नेताओ ने अपनी निष्ठा कभी ना बदली और संघर्ष में जेल गये ,लाठी खायी , यहाँ तक कि संगठन के पदों पे भी नहीं रहे ,अब प्राथमिकता के आधार पर उनको संगठन व सत्ता में जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए | जनपदों में तमाम नेता ऐसे है जो संगठन के जिम्मेदार पदों पर वर्षो से अहमियत पा रहे है और अब सत्ता में भी लाल बत्ती की जुगत लगाने में रात दिन एक किये है , इनकी मंशा संगठन विस्तार की ना होकर अपने व्यक्तिगत लाभ अर्जन की साफ़ तौर पर दिखती है | विधान सभा चुनावो के दौरान तमाम नेता दल बदल के सपा में शामिल हुये और ये दलबदल के आये सभी नेता सत्ता में मलाई काटने , विधान परिषद् सदस्य बनने या किसी आयोग का अध्यक्ष बनने , सदस्य बनने में अपनी लामबंदी कर रहे है | सपा नेतृत्व को मार्च आन्दोलन-२०११ के पश्चात् शामिल किसी भी नेता को लोकसभा २०१४ के पहले कोई भी लाभ का पद नहीं देना चाहिए | समाजवादी पार्टी के पुराने नेताओ-कार्यकर्ताओ को संगठन-सत्ता में जिम्मेदारी देने से समर्पित लोगो में विश्वास जागेगा | मार्च २०१४ के पश्चात् शामिल लोगो को संगठन के कामों में जुटाना चाहिए और २०१४ के लोकसभा चुनावो के पश्चात् जिन लोगो ने मेहनत से काम किया उनको तवज्जो देनी चाहिए | समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को यह भी ध्यान रखना होगा कि अन्य दलों से एन चुनावो के पहले शामिल लोग कही सत्ता का बेजा लाभ उठाने और दलाली करने में तो नहीं लगे हुये है | जनपदों में जिम्मेदार पदों पर नियुक्त लोगो,खासकर जिला अध्यक्ष , जिला महा सचिव , कोष अध्यक्ष को अभी लोकसभा २०१४ तक सत्ता में किसी जिम्मेदारी के पद को देने से बचना चाहिए | जनपदों में एक व्यक्ति-एक पद का नियम निर्धारित होना जरुरी है |