Tuesday, March 29, 2011

अंतिम संस्कार

भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग ए आजादी की एक यौद्धा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमिला सिंह पत्नी स्वर्गीय ए. पी .सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल २८मर्च,२०११ को हमारे बीच से इस nasvar संसार को छोड़ कर चली गयी...उनका देहावसान उनके सुपुत्र श्री अतुल कुमार अंजान जी के निवास ३हल्वसिया कोर्ट,हजरतगंज लखनऊ में हुआ...आज २९मर्च,२०११ को भैंसा kund में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमिला सिंह का ११बजे सुबह अंतिम संस्कार किया जायेगा..अतुल कुमार अंजान जी का mobile 9415884415

Sunday, March 27, 2011

निर्णय का पालन सुनिश्चित करायें मुख्यमंत्री

निर्णय का पालन सुनिश्चित करायें मुख्यमंत्री
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने समीक्षा के बाद अधिकारियों को जो कार्य सम्बन्धी चेतावनी दी है,वो एक प्रशंसनीय कृत्य है। जनता की शिकायतों के तत्काल निवारण, विकास कार्यों का सुचारू संचालन, शासनादेशों का अनुपालन, कानून व्यवस्था कायम रखना आदि सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों की ही जिम्मेदारी होती है। इन उत्तर-दायित्वों को पूर्ण न कर पाने वाले लोकसेवकों को सेवा से बर्खास्त कर देना ही एक मात्र समुचित दण्ड़ात्मक कार्यवाही है। उ0प्र0 के पूर्व मुख्यमंत्री स्व0चौधरी चरण सिंह भ्रष्टाचार में लिप्त पटवारी संवर्ग की सामूहिक बर्खास्तगी करके शासन की ईमानदार हनक दिखा चुके हैं। कुख्यात अपराधियों और उनके गुर्गों पर प्रभावी कार्यवाही व नियंत्रण प्राप्त करने में सफल सिद्ध हो चुकी उ0प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को लापरवाह, गैर जिम्मेदार तथा भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी लोकसेवकों पर प्रभावी नियंत्रण की दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए।
मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा लिया गया यह निर्णय कि बगैर किसानों की सहमति के उनकी भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जायेगा, एक सार्थक किसान हितैषी तथा क्रांतिकारी कदम है। इस निर्णय के लिए वे धन्यवाद की पात्र हैं। अब उन्हें एक और बड़ी पहल करनी चाहिए। बाराबंकी जनपद की फतेहपुर तहसील के रामनगर मार्ग स्थित पचघरा के किसानों की बेशकीमती कृषि भूमि का पूर्व की सरकारों द्वारा मनमाने तरीके से बगैर किसानों की सहमति के जबरिया किये गये अधिग्रहण को रद्द करके मुख्यमंत्री को किसानों की वास्तविक दुःखहरता बनना चाहिए। पचघरा के किसानों की भूमि उनके नाम राजस्व अभिलेखों में वापस दर्ज होनी चाहिए। पचघरा के किसान आज भी अपने संगठन पचघरा भूमि अधिग्रहण विरोधी मोर्चा के बैनर तले अपने अध्यक्ष खुशीराम लोधी राजपूत के नेतृत्व में अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के इस निर्णय से इन किसानों को हार्दिक प्रसन्नता हुई है और अब इन किसानों को अपना भूमि अधिकार वापस मिलने का यकीन हो गया है।शायद इन किसानों का यकीन हकीकत में तब्दील हो जाये।

Tuesday, March 22, 2011

23मार्च-प्रेरणा व बलिदान की अमिट तारीख

23मार्च-प्रेरणा व बलिदान की अमिट तारीख
अरविन्द विद्रोही
23मार्च का दिन एक विशेष व प्रेरक दिवस के रूप में सदैव विद्यमान रहेगा। 23मार्च का दिन भारत की ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की जंग के बलिदानी योद्धाओं की प्राणोत्सर्ग की अमिट व अमर गाथा की यादगार-प्रेरक तारीख है। जंग-ए-आजादी से लेकर आजाद भारत में भी अंतिम सांस तक सरकार के कुशासन व भ्रष्टाचार के खिलाफ अनवरत् संघर्ष करने वाले धुर समाजवादी चिंतक डा0राम मनोहर लोहिया का जन्म दिन भी 23मार्च ही है। 23मार्च,1931को ही ब्रितानिया हुकूमत के जुल्मों के खिलाफ आम जनता की आवाज बनकर उभर चुके क्रंातिकारियों के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरू को फॉंसी पर चढ़ा दिया गया था। इस घटना से भी 16वर्ष पूर्व क्रंातिकारी करतार सिंह सराभा,रासबिहारी बोस,शचीन्द्र नाथ सान्याल,विष्णु गणेश पिंगले आदि गदर पार्टी के वीरों ने सम्पूर्ण भारत में एक साथ 1857 की तरह गदर करने की योजना बनाई। तारीख तय हुई 21फरवरी,1915। यह बहुत बडा़ काम था।भारतीय फौजों को अपने पक्ष में करने, हथियार, गोला-बारूद, काफी धन सभी प्रबन्धों को करने में क्रंातिकारी योजना पूर्वक लग गये।देश में सर्वत्र संगठन किया गया।गदर पार्टी के प्रचारकों ने पंजाब के लुधियाना जिले के हलवासिया गॉंव के रहने वाले रहमत अली से जो कि फौज में हवलदार पद पर मलय-स्टेट-गाइड में तैनात थे, से सम्पर्क किया। रहमत अली की टुकडी मलय अर्थात सिंगापुर में तैनात थी।रहमत अली एक देशभक्त योद्धा थे।वे भी अपनी सरजमीं की आजादी की जंग को लडना व जीतना चाहते थे।अवसर की प्रतिक्षा में वे थे ही। रहमत अली ने अल्प समय में ही तमाम साथी तैयार कर लिए।तयशुदा तारीख 21फरवरी,1915 को अपनी टुकडी के साथ रहमत अली ने बगावत कर दी। साथ ही पांचवीं नेटिव इन्फैण्टरी ने भी बगावत कर दी। दूसरी टुकड़ी से बागियों पर गोली चलाने को कहा गया, उन्होंने भी साफ मना कर दिया। परिणाम स्वरूप रहमत अली और उसके साथियों पर आज्ञा उल्लंघन के साथ दूसरे सैनिकों को भड़काने का आरोप लगा। रहमत अली, गनी, सूबेदार दूदू खॉं, चिश्ती खॉं और हाकिम अली का एक साथ कोर्ट मार्शल किया गया।
23मार्च,1915 को सिंगापुर छावनी के सभी फौजियों को परेड़ मैदान में एकत्र किया गया। फौजियों के मन में दहशत पैदा करने के उद्देश्य से पॉंचों अभियुक्तों को एक दीवार के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया गया।हाथ पीठ की तरफ बंधे तथा एक बल्ली में पॉंचों को एक साथ बांधा गया था। पांचों देशभक्तों ने आवाज लगाई थी, -हमारी पीठ पर नहीं छातियों पर गोली मारों। निशानेबाजों की गोलियों से पांचों भारत मॉं के लाडले वतन से बहुत दूर सिंगापुर में 23मार्च,1915 को कुर्बान हो गये।23मार्च,1931 को ही राजगुरू, सुखदेव के साथ भगतसिंह भी क्रंातिपथ को अपने प्राणोत्सर्ग से आलोकित कर मुक्ति-पथ के राही हो लिए। भगत सिंह ने लिखा, - नौजवानों को क्रंाति का संदेश देश के कोने-कोने में पहुॅंचाना है, फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों और गॉंवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में क्रंाति की अलख जगानी है जिससे आजादी आयेगी और तब एक मनुष्य के द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा। सुखदेव ने महात्मा गॉंधी के नाम एक पत्र में लिखा था, -क्रंातिकारियों का ध्येय इस देश में सोशलिस्ट प्रजातंत्र प्रणाली स्थापित करना है। इस ध्येय में संशोधन की जरा भी गुंजाइश नहीं है।वह दिन दूर नहीं है जबकि क्रंातिकारियों के नेतृत्व में और उनके झण्ड़े के नीचे जनसमुदाय उनके समाजवादी प्रजातंत्र के उच्च ध्येय की ओर बढ़ता हुआ दिखायी पडेगा।आम जन के प्रति ह्दय में असीम दर्द समेटे और उस दर्द को खत्म करने के लिए दधीचि की तरह अपनी बलिदान देने वाले थे ये वीर बलिदानी।
और 23मार्च,1910 को जन्में व अंतिम सांस तक क्रांति की राह पर चलने वाले डा0राम मनोहर लोहिया ने क्रांति के उच्च ध्येय को अपने विचारों से प्रचारित करने का अद्भुत कार्य कर दिखाया।आजादी के पश्चात् डा0लोहिया ने इस भ्रम को तोडने के लिए कि सामाजिक न्याय, समता व आर्थिक समानता सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है, समाजवादी पार्टी का स्वतंत्र संगठन बनाया था और घोषणा भी किया था कि - कांग्रेस पार्टी ही एक एैसी पार्टी है जो भारतीय जनता की अस्मिता और आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। डा0लोहिया की सोच, उनके संघर्ष भारत की आम जनता के हित में रहे हैं। समाजवादी विचारक मधु लिमये के अनुसार-कार्यक्रम और विचार की दृष्टि से भूमिगत संगठन में उनका स्थान असाधारण था।भूमिगत रेडियों की कल्पना को उषा मेहता और उनके साथियों की मदद से उन्होंने साकार किया।भूमिगत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा नित्य नये कार्यक्रम जारी करने का काम मुख्य रूप से वे ही करते थे। सुचेता कृपलानी जैसी गॉंधीवादी व अच्युत पटवर्द्धन जैसे समाजवादी-इनके बीच की कड़ी लोहिया ही थे।अंग्रेजी साम्राज्यवाद के मर्म स्थानों- पुलिस, थाना, रेल, तार, स्टेशन, डाकखाना आदि पर हमला कर विदेशी हुकूमत से जल्दी और थोड़े में उभर कर खत्म होने वाली क्रांति के जरिए उखाड़ फेंकने की उन्ही की योजना थी। डा0 लोहिया के मनोमस्तिष्क में भगत सिंह के प्रति असीम श्रद्धा थी।समाजवादी नेता बदरी विशाल पित्ती के अनुसार-एक बार 23मार्च को लोहिया जी के जन्म दिन के अवसर पर होली भी आई तो उस दिन लोहिया जी ने कहा कि यह दिन अच्छा नहीं है, मेरे लिए यह खुशी का दिन नहीं है और तुम लोगों के लिए भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि 23मार्च को ही भगत सिंह को फॉंसी हुई थी।
23मार्च, 1915 के अमर बलिदानी रहमत अली, गनी, सूबेदार दूदू खॉं, चिश्ती खॉं एवं 23मार्च, 1931 के बलिदानी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू तथा 23मार्च, 1910 को भारत भूमि पर जन्म लेने वाले डा0 राम मनोहर लोहिया सहित मॉं भारती के सभी अमर सपूतों कों श्रद्धा सुमन अर्पण तथा कोटिशः वन्दन-अभिनन्दन।

Sunday, March 13, 2011

बसपा के मुकाबिल समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन

बसपा के मुकाबिल समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन
अरविन्द विद्रोही
और आखिरकार मुलायम सिंह यादव ने उ0प्र0 में बसपा सरकार के खिलाफ पुनः संघर्ष की तारीख 17मार्च घोषित कर ही दी।समाजवादी पार्टी के द्वारा 7,8,9मार्च को छेड़ा गया जनान्दोलन समाप्त हो चुका है।समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन उ0प्र0 की वर्तमान बहुजन समाज पार्टी की सरकार की नीतियों और कार्यों के विरोध में आयोजित हुआ।समाजवादी पार्टी के अनुसार यह जनान्दोलन सफल रहा जिसमें बसपा सरकार के खिलाफ समाजवादी पार्टी के लााखों कार्यकर्ता सड़क पर उतरे तथा जेल गये।दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी ने सपा के इस आन्दोलन को फलॉप शो तथा जनविरोधी बताया।पूरे प्रदेश में आन्दोलनकारी समाजवादी कार्यकर्ताओं को कानून व्यवस्था कायम रखने के उद्देश्य का हवाला देते हुए सरकार ने हिरासत में ले लिया।समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव की नजरबंदी का मामला देश के सर्वोच्च सदन संसद में भी उठाया गया।बहुजन समाज पार्टी के अनुसार 7,8,9मार्च को सरकार द्वारा किये गये प्रशासनिक इंतजामों,चप्पे-चप्पे पर तैनात पुलिस बल ने किसी भी उपद्रव,तोड़-फोड़,आगजनी जैसी घटनाओं के घटित होने व उससे आम जनता को होने वाले नुकसान,सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान से प्रदेश को बचाया।मुख्यमंत्री मायावती ने साफ तौर पर चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि कानून व्यवस्था को तोड़ना कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।लेकिन जनता के हितों की अनदेखी होने पर आवाज उठाना व सत्याग्रह करना कानून तोड़ना नही होता यह बात सबको समझना चाहिए।वहीं यह भी सत्य है कि जनान्दोलन के नाम पर तोड़-फोड़,आगजनी,अराजकता फैलाना अनुचित है।अब आने वाली 17तारीख को यही चुनौती पुनःसरकार व समाजवादी नेतृत्व के सामने रहेगी।जनान्दोलन जनता के हित के लिए आयोजित किया जाता है,आन्दोलन के दौरान एक ही घटना सम्पूर्ण सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य बदल सकती है इसका विशेष ध्यान आन्दोलनकारियों व सरकार दोनों को रखना चाहिए।अभी समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ पुलिस का अमानवीय व क्रूर चेहरा सामने आया है।पुलिस का जनविरोधी रवैया किसी से छुपा नही है लेकिन आम जन पर होने वाले अनवरत् अत्याचार पर राजनैतिक कार्यकर्ताओं की खामोशी ने,उस अत्याचार का,तात्कालिक अन्याय का प्रतिकार न करने का ही यह परिणाम है कि पुलिस का रवैया ब्रितानिया हुकूमत की दरिंदगी की याद ताजा करा गया।
डा0राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सच को कैसे मजबूत बनाया जाये?मेरी समझ में यह केवल सत्याग्रह है।इसमें केवल एक और शब्द इस्तेमाल करता हूॅं-तर्क।लेकिन केवल तर्क कमजोर रह जाता है।केवल तर्क अच्छा भी हो और उसमें आप जीत भी जाओं तो जो शक्तिशाली है वह और अपने अणुबम,तलवार या पिस्तौल के बल पर तर्क को खत्म कर देता है।इसलिए तर्क को कोई एैसी ताकत मिलनी चाहिए जो पशुबल न हो,हिंसा न हो,लेकिन एक हिंसक के मुकाबले में उस तर्क को खड़ा कर सकें और वह वही ताकत है कि हम तुमको मारेंगें भी नहीं मगर तुम्हारी बात मानेंगें भी नहीं।यह था किसी जुल्मी,अत्याचारी,निरंकुश,तानाशाह व्यक्ति या व्यवस्था से संघर्ष करने का लोहिया का रास्ता।समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को समीक्षा करनी चाहिए कि क्या डा0लोहिया की इन बातों का व्यवहार में अमल हो रहा है?शासन सत्ता के खिलाफ सत्याग्रह में दमनात्मक कार्यवाही का एक नाजुक मोड़ आता है और यही मोड़ निर्णायक भी होता है।शासन की दमनात्मक कार्यवाही से झुक जाने से,भाग जाने से या उत्तेजित होकर शारीरिक प्रतिकार करने से शासन ही विजयी होता है अन्यथा जनता के हित के लिए लडने वालों के कदमों में विजय श्री होती है।बहरहाल आजाद भारत में भी आम जनों का दुर्भाग्य ही है कि जिन पुलिस बलों या सरकारी कर्मियों की तनख्वाह आम जनता के द्वारा दिये गये विभिन्न राजस्व करों से बने राजकीय कोष से निकलती है,वही वेतनभोगी पुलिस-प्रशासन के लोग आम जन को व उनके अधिकारों को बूटों तले रौंद रहे हैं।इस तरह के अमानवीय प्रवृत्ति के कर्मियों को अब कौन सजा देगा?
जो भी हो समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की अगुवाई में वर्तमान बसपा सरकार को चुनौती देने का काम सड़क पर उतर कर समाजवादी पार्टी के जुझारू कार्यकर्ताओं ने दिया।आन्दोलन अपने मकसद में सफल रहा,समाजवादी पार्टी का नेतृत्व यह मान कर चल रहा है।समाजवादी पार्टी के कई स्वनाम धन्य,गणेश परिक्रमा करने में सिद्धहस्त नेताओं ने जनान्दोलन में क्या भूमिका निभाई,किन-किन क्षेत्रों में जाकर कार्यकर्ताओं व जनता को आन्दोलन की रूपरेखा बताई,इसकी गहन समीक्षा समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को स्वयं ही करनी चाहिए।मैने अपने पूर्व के लेखों में एक बात लिखा है और पुनःलिख रहा हूॅं कि संगठन में जिम्मेदारी व विधान सभा के टिकट वितरण में आन्दोलन के साथियों और संक्रमण काल में समाजवादी पार्टी में बने रहे निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ही तवज्जों देना चाहिए।उ0प्र0 में बसपा के मुकाबिल आज सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी ही लड़ती नजर आ रही है।बसपा सरकार से नाखुश मतदाताओं की पहली पसन्द समाजवादी पार्टी बन चुकी है,इस स्थिति को भांपते हुए जनप्रतिनिधि बनने के फेर में तमाम दलों के लोग समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं,और बहुत अभी करेंगें।एैसे लोगों को चुनावों में प्रत्याशी बनाने से कोई भी सामाजिक-राजनैतिक फायदा समाजवादी पार्टी को नहीं होगा उल्टा नुकसान अवश्यंभावी है।इस विषय में भी दशकों पहले डा0लोहिया ने लिखा है कि-‘‘यह सही है कि सत्याग्रह में कई तरह की मिलावट रहेगी।न जाने उसमें कितनी जलन,कितनी ईर्ष्या और कितना द्वेष रहेगा,न जाने कितने ही लोग उसे गद्दी हासिल करने के लिए करेंगे,न जाने कितने ही लोग उसे विधान सभा और लोक सभा की मेम्बरी हासिल करने के लिए करेंगे।‘‘समाजवादी नेतृत्व को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब पुराना संघर्ष का वफादार साथी सालों-साल से साथ निभा रहा है तो उसकी जगह मात्र स्वार्थ सिद्धि करने के फेर में लगे जनाधार विहीन,दलबदलू,पूॅजीवादी सोच के मगरूर लोग जिनका आम गा्रमीण जनता से कोई सरोकार नहीं को महत्व देना अपने संघर्षशील कार्यकर्ता के साथ विश्वासघात सरीखा होगा।अब गॉंव-गॉंव में 17मार्च के संघर्ष की अलख जलाने के लिए समाजवादी संघर्षशील-जुझारू कार्यकर्ताओं को घर से निकल जाना चाहिए।

Friday, March 11, 2011

सेवानिवृत होते बिहार के युवा

सेवानिवृत होते बिहार के युवा
नितेन्द्र विक्रम कौशिक

पिछले कुछ सालों से हमारे बिहार में हस्यास्पद एवं दुखद स्थिति बनी हुयी है ! अभी जो यहाँ की स्थिति बनी हुयी है उसके हिसाब से मेरे पिताजी के लिए नौकरियों की भरमार हैं लेकिन मेरे लिए नहीं है ! आज की स्थिति ऐसी बनी हुयी है की , एक व्यक्ति जिसका नाम राकेश कुमार है ,जिसकी उम्र ४३ साल है , उसके पिताजी का नाम श्री राजेंद्र प्रसाद सिंह है, जिनकी उम्र ६४ साल है ! एक दिन राकेश अपने पिताजी को उनके कार्यालय छोड़ने जा रहा था ! कार्यालय जाने के क्रम में उसका दोस्त मिल गया , जिसका नाम जीतेन्द्र था ! मिलने पे दोनों को बहुत ख़ुशी हुयी ,एक दुसरे हाल चाल लेने लगे ! फिर अचानक जीतेन्द्र ने राकेश से पूछा की , तुम्हारी नौकरी कब लगी और कितने साल नौकरी बची हुयी है ? उस समय वहां पे खड़े हुए लोगों के लिए हस्यास्पद स्थिति बन गयी और राकेश के लिए दुखद स्थिति ! फिर उसने अपने दोस्त से बोला की दोस्त मैं नौकरी नहीं करता हूँ , मैं अपने पिताजी को कार्यालय छोड़ने जा रहा हूँ ! उस समय राकेश के चेहरे का जो भाव था वो बहुत ही दुःख और पीड़ा से भरा हुआ था , मानो की वो थोड़ी देर में ही ख़ुदकुशी कर बैठेगा ! फिर वो किसी तरह अपने आप को सँभालते हुए मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया !

आज बिहार में अधिकतर युवाओं की कमोबेश यही स्थिति बनी हुयी है ! आज की तारीख में बिहार में जितनी भी नौकरियां आ रही हैं , उसके लिए जो - जो पात्रता चाहिए उसमे सेवानिवृत प्रमुख रूप से है या फिर उसी विभाग के अधिकारयों एवं कर्मचारियों की उम्र सीमा बढ़ा दी जा रही है , जिसके कारण बिहार के युवा सेवानिवृत होने पे मजबूर हो रहे हैं ! आज जिसे देखो वो विकास की बात कर रहा है , चाहे वो केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार ! दोनों अपने अपने दावे कर रहे हैं ! हम २०२० तक भारत को विकसित देश बना के छोड़ेंगे , तो राज्य सरकार का कहना है की २०१५ तक बिहार को विकसित राज्य की श्रेणी में खड़ा कर के ही रहेंगे ! लेकिन मुझे सरकार का कोई ऐसा काम दिखाई नहीं देता है जिससे ये परिलक्षित हो की वो हकीकत में भारत और बिहार का विकास चाहते हों ! क्योंकि युवा के बगैर विकास की बात करना बेईमानी है और मुर्खतापूर्ण है ! अगर आपको भारत और बिहार को विकसित बनाना है तो नए चेहरे , नई सोंच , नई तरीके और नए जोश को मौका देना होगा और अपने कार्यालयों में भागीदारी देनी होगी ! तभी जाकर विकसित भारत और विकसित बिहार की परिकल्पना को पूरा कर पाएंगे !

लेकिन ऐसा भी नहीं है की केंद्र सरकार और बिहार सरकार ने कुछ नहीं किया है , उनके द्वारा बहुत सारी ऐसी योजनायें चलायीं गयी है जिससे युवा स्वाबलंबी बन सकें ! लेकिन वो भी कुछ विशेष समुदाय के लिए चलाया गया है जिससे उनके वोट बैंक में इजाफा हो सके ! क्योंकि उनलोगों को तकनिकी विषयों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है या दिया जाना है ! और उसकी जो समय सीमा तय की गयी है वो उन विषयों के लिए काफी नहीं है , उनके लिए जो नौकरी की व्यवस्था की जा रही है वो किसी भी मायने में न्यायोचित नहीं है ! यों कहें की उनके हाँथ में एक लड्डू थमा दिया गया है, एक खिलौना दे दिया गया है की खेलते रहो और अपनी जुवान को बंद रखो ! लेकिन हकीकत में उनलोगों के साथ ये लोग खेल रहे हैं !

आखिर में मैं एक सवाल पूछना कहता हूँ की इसके लिए जिम्मेदार कौन है सरकार या फिर हमलोग ? मेरा जवाब होगा की इन सबों के जिम्मेदार हमलोग खुद हैं ! क्योंकि हमलोग अपनी आवाज दवाए हुए हैं ! जिस दिन हमलोग अपने हक के लिए अपने आवाज को बुलंद करना सुरु कर देंगे उस दिन से सरकारें हमारी बातों की सुनने लगेगी ! सिर्फ सुनेगी ही नहीं बल्कि हमारी बातों को मानने भी लगेंगी ! हम युवाओं को आगे आकर अपनी आवाज को उठाना चाहिए ! हमलोग उनलोगों को इतना मजबूर कर दें की उनलोग खुद चलकर हमारे पास आ कर ये कहें की हमलोग आपलोगों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं ! हमलोग इन्टरनेट के जरिए शोशल साईट पे अपने मित्रों की बातों पे वक्तव्य देने में व्यस्त रहते हैं , हम एक दुसरे की बातों को काटने में लगे हुए रहते हैं , हम एक दुसरे को घेरने में लगे हुए रहते हैं ! इस से क्या फायदा होगा ? क्यों न हमलोग एक दुसरे के माध्यम से जानकारी प्राप्त करें , एक दुसरे के सहयोग से लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया करवाएं ! क्यों न हम अपने ज्ञान और अनुभव को अपने समाज के बिच जाकर बाटें! जिससे हमारे जैसे आने वाली युवा पीढ़ी को वो सब न झेलना पड़े जो हमलोगों ने झेला है या झेल रहे हैं ! आइये हमलोग आज संकल्प लें की हम अपने समाज के प्रति जो हमारी जवाबदेही है उसका ईमानदारी निर्वहन करेंगे और लोगों ( सरकार ) को इतना मजबूर कर देंगे की वो खुद हमारे पास आकर भारत और बिहार के विकास में हमलोगों को भागीदार बनायें

Monday, March 7, 2011

समाजवादी जनांदोलन

जब की पूरी समाजवादी पार्टी के लोग जनांदोलन के लिए कमर कस के जानता से संपर्क कर के सड़क पे उतरने की तैयारी में है समाजवादी पार्टी के ही एक नेता शिवपाल यादव जनाधारविहीन और पार्टी छोड़ के गए और फिर नवाबगंज-बाराबंकी से विधानसभा टिकेट के लिए वापस आये विकास यादव के विद्यालय के कार्यक्रम सम्मान समारोह में जाके बाराबंकी जनपद में समाजवादी जन आन्दोलन और पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा दे गए...संघर्ष के साथिओं की जगह दलबदलूं और पूंचिपतियो को तवज्जो देना बहुत महंगा पड़ेगा इसका ध्यान समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह को रखना पड़ेगा...यह सत्य है की जनता परिवर्तन चाहती है लेकिन जनता गलत लोगो,अपराधियो, पूंचिपतियो,जनाधारविहीन, दलबदलूं,मगरूर प्रवृत के लोगो की जगह सामाजिक लोगो को ही चुनेगी फिर चाहे वो किसी भी पार्टी का हो...समाजवादी संघर्ष के कार्यकर्ताओ की उपेक्षा करने से समाजवादी पार्टी सरकार नहीं बना पायेगी इस बात का ध्यान कौन रखेगा???????

Sunday, March 6, 2011

वर्तमान भारतीय परिवेश में महिलाओं का जीवन

वर्तमान भारतीय परिवेश में महिलाओं का जीवन
अरविन्द विद्रोही
भाारतीय सभ्यता और संस्कृति में मातृ शक्ति अर्थात महिला वर्ग का स्थान सदैव सर्वोपरि माना गया है।इस देवभूमि में समस्त आराधना पद्धतियों में नारी शक्ति का पूजन किया जाता है।नारी के बगैर पुरूष के द्वारा की गई ईश आराधना अधूरी ही होती है।सृष्टि के दो अनिवार्य व पूरक अंग के रूप में महिला व पुरूष ही हैं,इस शाश्वत सत्य को कौन नकार सकता है?क्या कोई स्त्री-पुरूष के सहअस्तित्व को नकार सकता है?अधिकारों की बात करें तो भारतीय सभ्यता-संस्कृति व पारिवारिक मूल्य तो परिवार ही नही वरन् समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो नर हो या नारी,बालक हो या वृद्ध सभी के संरक्षण व अधिकारों की बेमिसाल धरोहर है।भारतीय समाज सदैव सहिष्णु व मानवता वादी सोच का रहा है।मुगलों तथा ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की लडाई में महिला शक्ति किसी भी नजरिए से पुरूषों से पीछे नहीं रही हैं।वास्तविकता तो यह है कि वीर पुरूषों की जननी मातृशक्ति ही वीरोचित कर्म व धर्म की प्रेरक रही हैं।
अतीत की गौरव-शाली,बलिदानी,त्यागमयी गाथायें समेटे भारत-भूमि में आज पारिवारिक मूल्य व आपसी विश्वास दम तोड चुका है।जिस प्रकार दीमक अच्छे भले फलदायक वृक्ष को नष्ट कर देता है उसी प्रकार पूॅजीवादी व भौतिकतावादी विचारधारा भारतीय जीवन पद्धति व सोच को नष्ट करने में प्रति पल जुटा है।जिस प्रकार एक शिक्षित पुरूष स्वयं शिक्षित होता है लेकिन एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को शिक्षित व सांस्कारिक करती है,उसी प्रकार ठीक इसके उलट यह भी है कि एक दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन पुरूष अपने आचरण से स्वयं का अत्यधिक नुकसान करता है,परिवार व समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है लेकिन अगर कोई महिला दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन हो जाये तो वह स्वयं के अहित के साथ-साथ अपने परिवार के साथ ही दूसरे के परिवार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।एक कटु सत्य यह भी है कि एक पथभ्रष्ट पुरूष के परिवार को उस परिवार की महिला तो संभाल सकती है,अपनी संतानों को हर दुःख सहन करके जीविकोपार्जन लायक बना सकती है लेकिन एक पथभ्रष्ट महिला को संभालना किसी के वश में नहीं होता है और उस महिला के परिवार व संतानों को अगर कोई महिला का सहारा व ममत्व न मिले तो उस परिवार के अवनति व अधोपतन को रोकना नामुमकिन है।
पूॅजीवाद के प्रभाव में भारत में भी महिलाओं को एक उत्पाद के रूप में,एक उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुतिकरण का नतीजा है कि आज अर्धनग्नता फिल्मी परदों से निकल कर महानगरों से गुजरती हुई शहरों-कस्बों में पांव पसार चुकी है।परिवारों में आपसी सामंजस्य की कमी,विलासिता व उपभोगवादी संस्कृति के प्रति आर्कषण तथा अन्धानुकरण ने युवा वर्ग को गर्त में धकेलने का काम किया है।फिल्म,टेलीविजन,पत्र-पत्रिकायें यहां तक कि विद्यार्थियों की पाठ्य व लेखन पुस्तिका के आवरण पृष्ठ भी अश्लील,अर्धनग्न,कामुक,नायक-नायिकाओं,खिलाडियों,कार्टून चरित्रों से परिपूर्ण हैं।जिनका शिक्षा जगत से,नैतिकता से कोई लेना-देना नही है उनका दर्शन प्रतिक्षण करने को विद्यार्थियों को अनवरत् प्रेरित किया जा रहा है।दरअसल वर्तमान दौर में आधुनिकता व अधिकारों के नाम पर स्वच्छंदता व भौण्डेपन को अपनाया जा रहा है।आज भी भारत की बहुसंख्यक ग्राम्य आधारित जीवन जीने वाली मेहनतकश आम जनता अपने मनोरंजन के लिए तो इन तडक-भडक वाली जीवन शैली युक्त फिल्मों को देखता है परन्तु निजी तौर पर उस शैली को,उस जीवन पद्धति को अपनाने का विचार भी उसके जेहन में नही आता है।भारत में पारिवारिक विखण्डन व नैतिक अवमूल्यन के पश्चात् भी अभी सामाजिक-धार्मिक ताने बाने के कारण,लोक-लाज के कारण छोटे शहरों,कस्बों व ग्रामीण अंचलों में महिलायें कामकाज पर,नौकरी पर निकल तो रही हैं परन्तु महानगरों सी स्वछंदता यहां देखने को नही मिलती है।
कृषि आधारित भारतीय परिवारों का जीवन सरल व सुव्यवस्थित था।इसमें परिवार के सभी सदस्यों के काम बंटे होते थे और हित-अधिकार सुरक्षित।आज के आर्थिक युग में नौकरी कर रहीं महिलायें आर्थिक कमाई तो निश्चित रूप से कर ले रही हैं परन्तु शारीरिक,मानसिक व भावनात्मक रूप से कमजोर होती जा रही हैं।अपनी नौकरी के,व्यवसाय के दायित्वों का निर्वाहन के साथ-साथ पत्नी धर्म का पालन,संतानों की परवरिश,सास-श्वसुर की देखभाल के साथ-साथ मायके में वृद्ध मॉं-बाप के स्वास्थ्य की चिन्ता कामकाजी महिलाओं को हलकान कर देती हैं।आज महिला वर्ग नौकरी पाने पर अत्यधिक प्रसन्नता की अनुभूति करती हैं।दरअसल अब महिला वर्ग का दोहरा शोषण हो रहा है।रिश्तों को,परिवार को सहेजने के साथ-साथ महिला को परिवार के लिए धर्नाजन के लिए श्रम करना क्या महिला सशक्तिकरण है?यह बात उन महिलाओं पर कदापि लागू नही होती है जो परिवार व रिश्तों से ज्यादा अहमियत दूसरी बातों को देती हैं।मेरा यह विचार सिर्फ उन महिलाओं की आंतरिक पीडा पर है जो पारिवारिक सुख व सम्पन्नता को प्राथमिकता पर रखते हुए जीवन जी रही हैं और अपनी कमाई परिवार पर ही खर्च करती हैं।

सोच बदलिए

प्रतिभा वाजपेयी
सोच बदलिए

सकारात्मक खबर न देने के लिए अक्सर मीडिया पर इल्जाम लगाए जाते हैं, लेकिन मुझे यह कहते हुए थोड़ी तकलीफ जरूर हो रही है पर सच यही है कि फेसबुक की स्थिति इससे कुछ बेहतर नहीं है। देश की वर्तमान हालात उसे विचलित करती हैं परंतु देश का भविष्य हमारे बच्चे उसकी प्राथमिकता में नहीं आते। मी सिंधुताई सपकाल सिखते समय मुझे लगा था कि फेसबुक में जो हमारे हजारो-हजार मित्र हैं उनके हाथ उनकी सहायता के लिए आगे आएंगे। मित्र चंदन आर्यन को छोड़कर किसी ने भी इस विषय में अपनी उत्सुकता तक व्यक्त नहीं की। निश्चित रूप से निराशा हुई। यह निराशा उस समय और बढ़ गई जब अरुंधती राय की नग्न पेंटिग को लेकर एक जगह नहीं कई जगह प्रतिक्रियाओं का सैलाब देखा। कुछ ने तो इसे तुरंत नेट पर डालने का भी आग्रह किया हुआ था। किसी महिला के नग्न चित्र को देखने के लिए इतनी उत्सुकता किस मानसिकता का द्योतक है। अगर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना जा रहा है...तो हुसैन का इतना विरोध क्यों किया गया क्योंकि जो चित्र उन्होंने बनाएं थे वे भी तो मूल रूप से स्त्रियों के ही थे....

इसे पुरुषों की विकृत मानसिकता कहें या उनका दोगलापन जो एक तरफ दुर्गा, सरस्वती को पूजते हैं दूसरी तरफ महिलाओं के नग्न चित्र सार्वजनिक करने को उतावले रहते है।

अगर कोई महिला अपनी इच्छा से ऐसे चित्र बनवाती है तो उसकी मर्जी। परंतु यदि वह ऐसे चित्र का समाजिक प्रदर्शन करती है तो किसी को भी उस चित्र के प्रति अपनी राय देने का हक बनता था पर यहां तो यह भी स्पष्ट नहीं है अरुंधती ने यह चित्र स्वयं बनवाया या यह उस चित्रकार के दिमाग का खुराफात है।

अरुंधती एक अच्छी लेखिका है। उनके अपने सामाजिक सरोकार भी हैं। उनके विचारों से सहमत या असहमत होने का समाज के हर व्यक्ति को अधिकार है। पर इस तरह का सोच निंदनीय है।

-प्रतिभा वाजपेयी.

मुख्यमंत्री जी .........फिर कब आओगी???

मुख्यमंत्री जी .........फिर कब आओगी???
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती का निरीक्षण कार्यक्रम बाराबंकी जनपद में 12फरवरी,दिन शनिवार को निर्धारित था।अपने निर्धारित कार्यक्रम के एक दिन पूर्व 11फरवरी,दिन शुक्रवार को ही बाराबंकी जनपद में मुख्यमंत्री महोदया का आगमन हो गया।जिलाधिकारी विकास गोठलवाल रात-दिन एक करके विभागवार व क्षेत्रवार समीक्षा व भ्रमण करके मुख्यमंत्री के निरीक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे रहे।यूॅं भी जनपद बाराबंकी में अपनी तैनाती के प्रारम्भ में ही भ्रष्ट व गैर जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों को कुछ हद तक प्रशासनिक नियंत्रण में कर चुके जिलाधिकारी विकास गोठलवाल निरन्तर समीक्षा बैठक करते ही रहते हैं।प्रशासनिक दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री का जनपद बाराबंकी का भ्रमण कार्यक्रम सफल ही माना जायेगा क्योंकि किसी भी स्तर के अधिकारी को न तो निलम्बित किया गया और न ही स्थानान्तरित।लेकिन क्या विकास के तय मापदण्डों,शासनादेशों के अनुपालन तथा सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की अवधारणा पर जनपद बाराबंकी में कार्य हो रहा है?यह विचारणीय प्रश्न है।
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती के जनपद आगमन पर संभावित निरीक्षण स्थलों,सम्पर्क मार्गों की साफ-सफाई युद्ध स्तर पर की गई।विकास भवन मार्ग तक की सफाई विगत् 13वर्षों में पहली बार इतने कायदे से प्रशासन द्वारा कराई गई।मुख्यमंत्री के बाराबंकी आगमन कार्यक्रम निर्धारित होने के पश्चात् सुनियोजित तरीके से सब कुछ दुरूस्त है का एक माहौल बनाया गया।मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान प्रशासन ने जगह-जगह बैरियर लगाकर आम जनता को सडक पर बेवजह घण्टों खडा करके एक जनविरोधी कृत्य किया है।प्रशासन के इस रास्ता रोको अभियान से परेशान नागरिक आक्रोशित हुए।अपनी कमियां न उजागर हो पाये,कोई नागरिक मुख्यमंत्री से किसी बात की शिकायत रूबरू होकर न कह पाये,इस मकसद में निःसन्देह प्रशासनिक अमला सफल रहा लेकिन उसकी प्रशासनिक मनमानी से कितना जनाक्रोश मुख्यमंत्री के खिलाफ पनपा है,इसका आकलन नौकरशाहों को करने की न तो आवश्यकता है और न ही फुर्सत।
मुख्यमंत्री मायावती के बाराबंकी आगमन पर प्रमुख स्थानों व मार्गों की सफाई हुई थी।मुख्यमंत्री को अब औचक निरीक्षण रात में करना चाहिए।जनपद बाराबंकी में शिक्षा-स्वास्थ्य व ग्राम्य विकास विभाग में भ्रष्टाचार व शासनादेशों के उल्लंघन को लेकर विभिन्न संगठन कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं।ठोस प्रशासनिक कार्यवाही न होने से इन विभागों के भ्रष्ट,नाकारा कर्मियों की चॉंदी है।आप दोबारा बाराबंकी कब आओगी यह सवाल जेहन में कौंधता है।अब आप जब भी आओगी हम तो घर से निकलेंगे ही नही।एक फायदा हो जायेगा कि फिर से साफ-सफाई हो जायेगी।इस बार आप जब आओ तो यहां कि प्रशासनिक गंदगी को साफ करके जाओ तो आम जनता का कुछ भला हो।

Thursday, March 3, 2011

महत्वाकांक्षी इंसान

नितेन्द्र विक्रम कौशिक
महत्वाकांक्षी होना इंसान के लिए बहुत अच्छी बात है , लेकिन ज्यादा महत्वाकांक्षी होना गलत है , क्योंकि वो फिर लोभ और स्वार्थ का धोतक है , कभी कभी हम अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के चकर में दुसरे लोगों की महत्वाकांक्षा और उनकी भावनाओं को गहरा ठेस पहुंचाते हैं ! हमें ये ख्याल रखना होगा की और लोग भी हैं , सभी लोगों का अलग अलग महत्व है , सभी लोगों का मान सामान , महत्व का ख्याल रखते हुए हमें अपना वक्तव्य देना चाहिए ! हम हमेश अपनी आदत से लचर हैं अपने आपको देखने और दिखाने के चकर में औरों को भूल जाते हैं , कभी कभी इन सबों के चकर में लोगों की गरिमा तो ठेस पहुंचाते हैं , हम हमेशा भूल जाते हैं की सामने वाला व्यक्ति क्या है , उनकी अहमियत क्या है , मैं जो बोलने या लिखने जा रहा हूँ वो सही है या नहीं है , इससे औरों को कैसा महसूस होगा ? ऐसा तो नहीं की हम लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं, और ऐसे भी हमारी जो सभ्यता और संस्कृति है उसके हिसाब से लोगों का ख्याल रखना पड़ता है , सामने वाले वरिष्ट हैं या गुनी हैं या फिर हम से ज्यादा जानते हों और करते हों , एक संगठन चलने के लिए इन सब बातों को ध्यान में रखना पड़ेगा तभी जाकर कोई संगठन सफल होगा , हम हमेशा लोगों को भूल कर आदेश जरी कर देते हैं , हमारे संस्कृति में व्यक्तियों की दो वजहों से आदर करते हैं एक उनके उम्र के हिसाब से दूसरा उनके काम और उनके नाम के हिसाब से , लेकिन ये बहुत ही दुःख की बात है की हमलोग या भूल गए हैं ! और अक्सर ही ऐसी गलतियाँ करते रहते हैं ! जब हम औरों को आदर करेंगे तभी हमें भी कोई आदर करेगा , जब हम औरों की भावनाओं का क़द्र करेंगे तभी हमारी भावनाओं की कोई क़द्र करेगा ! हमें अपने आप को भूलना नहीं चाहिए ! हम अपनी बात दो तरीके से किसी को कह सकते हैं एक तो आदेश दे सकते हैं और दूसरा हम निवेदन करते हुए ,ये हमें तय करना है की इन दोनों में कौन सा तरीका अच्छा रहेगा ! देखने में ये छोटी बात लगती है लेकिन ये बहुत ही बड़ी बातें हैं ! इन्ही छोटी छोटी बातों से रिश्तों के बिच बहुत बड़ी खायी आ जाती है , और बाद में उस खायी को पाटना बहुत मुश्किल हो जाता है !

Wednesday, March 2, 2011

महाशिवरात्रि पर लोधेश्वर महादेव-बाराबंकी पहुॅंचे शिवभक्त

महाशिवरात्रि पर लोधेश्वर महादेव-बाराबंकी पहुॅंचे शिवभक्त
आशुतोष कुमार श्रीवास्तव
बाराबंकी।महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर द्वापरकालीन भूतभावन भोलेनाथ बाबा लोधेश्वर महादेव को गंगाजल चढाने सुदूर क्षेत्रों से कांवरियों के आने का सिलसिला विगत् एक पखवारे से शुरू हो चुका था।दूर-दराज से आने वाले शिवभक्तों के विश्राम,जलपान व भोजन की व्यवस्था बाराबंकी जनपद के तमाम नागरिक संगठन बडे ही श्रद्धाभाव व मनोयोग से करते आ रहे हैं।इस वर्ष भी महादेवा जाने वाले मार्ग पर जगह-जगह शिवभक्त कांवरियों के लिए शिविर लगाया गया।महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लगने वाले फागुनी मेले में प्रति वर्ष कानपुर से गंगाजल लेकर सुदूर क्षेतंों से शिवभक्त कांवरिये पैदल बाराबंकी जनपद स्थित लोधेश्वर महादेव की पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुए आते हैं।अपनी धुन व शिवभक्ति के पक्के कांवरियों की सकुशल सुरक्षित यात्रा,पूजा-अर्चना,जलाभिषेक सम्पन्न कराना प्रशासन के लिए एक चुनौती ही होता है।प्रशासन पूरी यात्रा के दौरान मुस्तैद व चौकना रहता है।श्री लोधेश्वर महादेव मंदिर जाते हुए जब बाराबंकी क्षेत्र में कांवरिये प्रवेश करते हैं तो जगह-जगह लगे उनके व्श्रिाम व जलपान शिविर उनका उत्साह बढा देते हैं।हाथ जोडकर सविनय कांवरियों को शिविर में बाराबंकी के नागरिक आमंत्रित करते हैं।कांवरियों की सेवा करके बाराबंकी जनपद के शिवभक्त नागरिक अपने को संतुष्ट व प्रसन्न महसूस करते हैं।बाराबंकी विकास मंच ने बाराबंकी जिलाधिकारी आवास के बगल में सोमवार व मंगलवार दो दिन शिविर लगाकर कांवरियों की सेवा की।विश्राम व जलपान शिविर का उद्घाटन बाराबंकी की आदर्श कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक जितेन्द्र गिरि द्वारा भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना तथा उपस्थित दर्जनों कांवरियों को अपने हाथों से प्रसाद रूपी मिष्ठान,फल भेंट करके किया गया।इस अवसर पर बाराबंकी जनपद के वयोवृद्ध समाजसेवी गोपाल सिंह सेवक,अरविन्द विद्रोही,आशुतोष श्रीवास्तव,भानुप्रताप सिंह वर्मा,शिव कुमार श्रीवास्तव,अनुतोष श्रीवास्तव,संतोष शुक्ला,राजेश भारती-बाबा,औवैश किदवाई,संजय वर्मा-पत्रकार,रमेश चन्द्र रावत,धर्मेन्द्र विद्यार्थी,विश्राम धनगर,सत्यदेव कुमार श्रीवास्तव-वाणिज्य कर विभाग आदि शिवभक्त मौजूद रहे।दूसरे दिन शिविर में अधिवक्ता कमलेश चन्द्र शर्मा,सुरेन्द्र नाथ शर्मा,पुष्पेन्द्र,सचिन वर्मा,आशीष शरण गुप्ता,बसन्त गुप्ता,बहादुर आदि शिवभक्तों ने आकर कांवरियों के जलपान वितरण में अपना योगदान दिया।

Tuesday, March 1, 2011

अजब मठाधीश की गजब कहानी

अजब मठाधीश की गजब कहानी
Rashmi Singh
Disclaimer: इस कहानी के सारे पात्र और स्थान काल्पनिक हैं. लेकिन इसका सम्बन्ध कुछ जीवित व्यक्तियों से है और यह कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है.



एक मठ था. बहुत बड़ा मठ था. लोग मिलजुल कर रहते थे उसमे. मठाधिशो की भी बहुत इज्जत थी उसमे. गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन बड़े अच्छे ढंग से होता था.

उस मठ के शिष्यों में से एक थे श्री पल्टू राम. गजब के पल्टू थे वे. जिधर पलड़ा भारी होता था पलट जाते थे. उनका सारा समय मठाधिशो के पीछे ही जाता था. मठाधिशो के बहुत सारे काम वो खुद ही कर दिया करते थे. उनकी एक और खासियत थी वो जो भी काम करते थे चद्दर ओढ़ के. खैर, मठाधिशो के काम करते-करते उनके मन में एक दिन भावना जगी की काश मैं भी किसी मठ का मठाधीश होता. भावना क्या जगी, उन्होंने तो बस ठान लिया की मुझे भी मठाधीश बनना है. लेकिन, उनको ये पता था की इस मठ में तो कोई संभावना नहीं है. तो उन्होंने एक नया मठ बनाने का निर्णय किया और लग गए मठ बनाने में.

उन्हें ये भी अच्छी तरह पता था की नया मठ बनाना इतना आसान नहीं है और इस मठ से भी लोग उनके मठ में ऐसे नहीं जायेंगे. इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए उन्होंने पहले तो लोगो की बुराई दुसरे के सामने करनी शुरू की और बहुत सारे फर्जी शिष्यों को इकठ्ठा करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने खूब मेहनत की. वो मठ बनाने के लिए दिन में १८ घंटे काम करने लगे. उन्होंने कुछ फर्जी शिष्याएं भी बना ली ताकि पुराने मठ के शिष्यों को ये शिष्याएं लुभा के उनके मठ में ले आये. खैर उनकी मेहनत रंग लायी और उनका एक मठ तैयार हो गया. उस मठ में उन्होंने फर्जी शिष्य-शिष्याओं को भर दिया ताकि लोगो को लगे की ये मठ चल निकला है. चुकी उनके मठ में बहुत सारी फर्जी शिष्याएं थी, तो शिष्य भी आकर्षित हो के आने लगे.

ऐसे करते-करते पल्टू राम की मेहनत रंग लाने लगी. लेकिन पल्टू राम को संतोष कहाँ ? उन्हें तो ज्यादा से ज्यादा शिष्य चाहिए थे. इसके लिए उन्होंने नया तरीका निकला. उन्होंने अपने फर्जी शिष्य-शिष्याओं को अलग-अलग मठों जो की अन्य क्षेत्रो के भी थे ,में शिष्य बनवा दिया. हालाँकि उनके मठ का क्षेत्र कुछ और था लेकिन उनको इससे क्या लेना-देना था, उन्हें तो ज्यादा से ज्यादा शिष्य चहिये थे जो उनका गुणगान कर सके.

वो सारे लोग अलग अलग क्षेत्रो से शिष्यों को इकठ्ठा कर उनके मठों में भेजने लगे. अब उनके शिष्यों की संख्या और भी ज्यादा हो गयी. वो शिष्यों के गुणगान करते, बदले में शिष्य भी उनका गुणगान करने लगे. अब पल्टू राम की दूकान अच्छी चलने लगी. वो रोज नयी तरह की बातें करते; कभी हंसी-मजाक तो कभी कुछ और.

लेकिन कहानी में नया मोड़ आने लगा. वो शिष्य जो दुसरे मठों से भगाकर लाये गए थे उन्हें लगने लगा की मठाधीश तो कुछ करते नहीं, खाली बातें करते हैं. अब ये पल्टू राम के लिए चिंता का विषय बन गया. खैर, हमारे पल्टू राम भी कहाँ ऐसे हार मानने वाले थे. उन्होंने नयी स्कीम निकाली. उन्होंने शिष्यों को बोला की चलो समाज सेवा करते हैं. अब जो गंभीर शिष्य थे वो फटाक से तैयार हो गए और साथ में पल्टू राम की गुणगान फिर से होने लगी. ऐसे करते करते उन्होंने ४ साल निकाल दिए. लोग भी सोचते रहे की पल्टू राम जी अब कुछ करेंगे की तब कुछ करेंगे, लेकिन , पल्टू राम तो कहाँ कुछ करने वाले थे. अब जब ४ साल तक कुछ नहीं हुआ तो आवाजें फिर से उठने लगी. लेकिन पल्टू राम के पास इसका भी जवाब था. जो आवाज़ उठती थी, उसको वो रातों रात मठ से गायब कर देते थे और अपने किसी फर्जी शिष्य से अपनी बड़ाई करवाने लगते थे. इस तरह से उनकी गाड़ी बढ़ने लगी.

लेकिन कहानी में बड़ा मोड़ तब आया जब कुछ उनके शिष्य जो उनकी समाज सेवा की बातें सुन सुन के गंभीर हो गए थे, सही में कुछ करने का सोचने लगे. अब जा के पल्टू राम की चिंता बढ़ी. उन्होंने सोचा की अब तो कुछ करना ही पड़ेगा ऐसा लगता है. तो उन्होंने शिष्यों की बैठक बुलाई और बाते की हम लोग समाज सेवा अब बहुत जल्दी ही शुरू करेंगे, आप लोग अब पैसे की व्यवस्था करना शुरू करें. ऐसा सुनना था की सारे शिष्य खुश हो गए. पैसा इकठ्ठा होने लगा. पल्टू राम के दिन अच्छे निकलने लगे और उनकी वाहवाही फिर से होने लगी. लेकिन, जब पैसे इकट्ठे होने लगे तो लोग सवाल भी पूछने कगे की पैसे तो इकट्ठे हो गए अब समाज सेवा कब करना है. पल्टू राम को तो कहाँ कुछ करना था. ज्यादा असंतोष देख उन्होंने शिष्यों को ही बांटना शुरू कर दिया. उन्होंने एक नयी स्कीम निकाली. अब वो शिष्यों में इनाम बांटने लगे. अलग अलग वर्गो के इनाम बना दिए जैसे सबसे अच्छा शिष्य, सबसे ज्यादा बोलने वाला शिष्य, सबसे ज्यादा घुमने वाला शिष्य आदि आदि. अब शिष्य भी इन सब चीजों के पीछे व्यस्त होने लगे. और पल्टू राम जी ने भी अपने एक दो फर्जी शिष्यों से कहवा कर अपने आपको को भी महान घोषित करवा लिया.

उनकी मठ में नए नए लोग आने लगे. वो भी पल्टू राम का गुणगान करने लगे ये जान कर की पल्टू राम जी समाज सेवक हैं. इस बीच पल्टू राम जी अलग अलग मठों से लोगो को भगाकर लाते रहे और अपने मठ में शिष्यों की संख्या अच्छी खासी कर ली.

लेकिन कुछ कुछ शिष्य भी कहाँ मानने वाले थे. उन्होंने फिर सवाल पूछने शुरू कर दिए. अब तो पल्टू राम जी को लगा की कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. अब तो पैसे भी इकट्ठे हो गए हैं. लोगो को पैसा तो वापस कर नहीं सकते ये बोलकर की मैं समाज सेवा नहीं कर सकता. खैर, अब उन्होंने अपनी बुद्धि लगायी और फिर एक उपाय निकाल लिया. ये उपाय अपने आप में अनूठा था. ये उपाय था "ठेके पर समाज सेवा" का. उन्होंने ये पैसे किसी और समाज सेवी को भेज, ठेके पर समाज सेवा करने की ठान ली. लोगो को बता भी दिया. लोग भी अलग अलग माध्यमो से प्रचार करने लगे पल्टू राम जी के महानता की. लेकिन पल्टू राम जी तो अपनी हरकतों से कहाँ बाज आने वाले थे. उन्हें लगा की इस चीज को जितना चला सकूँ चलाना चाहिए. एक बार ठेके पर समाज सेवा करा दिया तो फिर कौन पूछेगा. इसके लिए वो ठेके पर समाज सेवा की रोज-रोज नयी -नयी तारीखे रखने लगे. हालत ये है की पल्टू राम जी अभी भी तारीखें ही रख रहे हैं. और लोग अभी भी उनकी महानता का गुण ही गा रहे हैं.

खैर, छोडिये पल्टू राम जी को अभी तक ये कहानी यही तक है. जब कहानी आगे बढ़ेगी, तो मैं फिर बताउंगी. तब तक के लिए आप भी पल्टू राम जी की बातों का आनंद लीजिये.