Tuesday, October 9, 2012

बहुजन समाज को सामाजिक चेतना से राजनीतिक चेतना तक ले जाने वाले नायक मान्यवर कांशीराम

अरविन्द विद्रोही ............. कांशीराम - भारत की राजनीति में एक अनूठा व्यक्तित्व | बालक कांशीराम का जन्म खवासपुर गाँव - जिला रोपड़ - पंजाब में एक रामदासिया हरिजन परिवार में हुआ था | गाँव में ही शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक कांशीराम के दादा व चाचा फ़ौज में थे | कांशीराम ने विज्ञानं स्नातक की शिक्षा रोपड़ में ग्रहण की | बाल्य कल से लेकर शैक्षिक जीवन तक कांशीराम को सामाजिक भेदभाव व छुआ छूत का अनुभव नहीं था क्यूंकि आर्य समाज व सिख संप्रदाय के प्रभाव के चलते पंजाब में सामाजिक बुराई समाप्त प्राय : थी | आखिर युवक कांशीराम से - एक शिक्षित नौकरी शुदा कांशीराम से सामाजिक राजनीतिक चेतना का नायक मान्यवर कांशीराम तक का सफ़र कैसे शुरू हुआ ? यह एक दिलचस्प और प्रेरक प्रसंग है | वर्तमान परिस्थितियो में भी मानों इतिहास खुद को दोहराने की प्रक्रिया में लगा हुआ है | आभास होता है कि काल की गति स्वयं को दोहारने वाली है | कांशीराम १९५७ में सर्वे ऑफ़ इंडिया की परीक्षा में उत्तीर्ण हुये | विभाग में कार्यभार ग्रहण करने के पूर्व भरवाए जाने वाले बंद को भरने से इंकार करके कांशीराम ने वो नौकरी ना करने का फैसला किया | तत्पश्चात आपने पूना में एक्स प्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्री ( ई आर डी एल ) में अनुसन्धान सहायक के पद पे कार्य करना प्रारंभ किया | अनुसन्धान सहायक के पद पे कार्य रत कांशीराम की रूचि सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों की तरफ होने लगी थी | कांशीराम की इसी नौकरी के दौरान ई आर डी एल में एक ऐसी घटना घटी जिसने शिक्षित कांशीराम को जो अगर यह घटना ना घटी होती तो शायद गुमनामी में ही गम रह जाता , को करोडो - करोड़ लोगो का मान्यवर कांशीराम बनाने में अहम् भूमिका अदा की | दरअसल इसी समय बुद्ध जयंती व अम्बेडकर जयंती के अवकाश को निरस्त करने का निर्णय ई आर डी एल ने लिया और जब उसका विरोध वही के एक कर्मचारी ने किया तो उसे नौकरी से निलंबित कर दिया गया | कांशीराम से ना रहा गया , अपने मित्रो-सहकर्मियों के तमाम मना करने के बावजूद कांशीराम ने अन्याय के खिलाफ प्रतिकार का संकल्प लेते हुये उस निलंबित कर्मचारी की मदद कारी तथा मा ० न्यायालय में इसके विरोध में वाद दायर किया | मा० न्यायालय ने न्याय किया तथा निलंबित कर्मचारी के निलंबन को रद्द करने के साथ साथ बुद्ध व अम्बेडकर जयंती दोनों के अवकाश को बहाल किया | आज उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पर घोषित अवकाश को रद्द करते हुये पुनः वही परिस्थितिया - हालात पैदा कर दिया है जो किसी नए कांशीराम के आगे आने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है | सामाजिक - राजनीतिक दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर चुके कांशीराम ने डॉ भीमराव अम्बेडकर को उनके विचारो-पुस्तकों के अध्धयन से आत्मसात करना प्रारंभ कर दिया | इसी अध्धयन काल में कांशीराम ने नौकरी का परित्याग किया और संकल्प लिया --- "मैं कभी शादी नहीं करूँगा और ना ही किसी प्रकार की कोई व्यक्तिगत संपत्ति अर्जित करूँगा |" सामाजिक बुराइयों की जड़ जातिवाद है और इसको समाप्त करना जरुरी है , यह बात समाजवादी चिन्तक युगद्रष्टा डॉ राममनोहर लोहिया हमेशा दोहराते रहते थे | डॉ लोहिया ने कार्यक्रम भी दिया था , जाती तोड़ो - समाज जोड़ो | इसी जाती के विष को भांपते हुये , परखते हुये कांशीराम ने कहा था कि , -- " मुझे लगा कि जातिवाद सामाजिक व्यवस्था ही सारी बुराइयों की जड़ है | जाती विहीन समाज की स्थापना के बगैर इस तरह की बुराइयाँ समाप्त नहीं हो सकती है | मैं इस बुराई को ख़त्म करने का काम करूँगा इसीलिए मैंने १९६४ में अपनी नौकरी त्याग दी थी | " सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में पूरी तरह तल्लीन कांशीराम ने महाराष्ट्र रिपब्लिक पार्टी तथा डॉ अम्बेडकर द्वारा स्थापित पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के लिए काम शुरू किया | लगभग ४ वर्षो तक इन संगठनो में कार्य करने के पश्चात् कांशीराम ने अनुभव किया कि इन संगठनो में आन्तरिक मतभेद बहुत है तथा संगठन - समाज का मूल कम कर पाना इसमें संभव नहीं है | कांशीराम ने नया संगठन बनाने और शोषित समाज को एक साथ लाने कि दिशा में सोचा और ६ दिसम्बर , १९७३ को पुन व दिल्ली के चन्द सरकारी कर्मचारियों को साथ लेकर बामसेफ का गठन किया | बामसेफ को अखिल भारतीय स्वरुप देने में कांशीराम को ५ वर्षो का समय लगा और ६ दिसम्बर , १९७८ को दिल्ली में ही बामसेफ की औपचारिक घोषणा की | बामसेफ को सरकारी कर्मचारियों की संस्था के रूप में खड़ा करके एक मजबूत सामाजिक आधार के साथ साथ आर्थिक मजबूती का कार्य कांशीराम ने किया | कांशीराम के ही अनुसार ,- " जिस समाज की राजनीतिक जड़े मजबूत नहीं होती , उस समाज की राजनीति कभी कामयाब नहीं होती | मैंने बामसेफ बना कर दलित-शोषित समाज का राजनीतिक आधार मजबूत किया | " सक्रिय राजनीति में कदम रख चुके कांशीराम की नज़र सर्वोच्च सत्ता पे थी , बगैर किसी लाग लपेट के कांशीराम का कहना था ,- " राजनीति सत्ता के लिए होती है और सत्ता बिना संघर्ष के नहीं मिलती | " असमान सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष को धार देने के लिए , जाती विहीन समाज की सथापना के लिए , समाज में बराबरी कायम करने के लिए कांशीराम ने १९८१ में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति ( डी एस फोर ) का गठन किया | डी एस फोर के बैनर तले कांशीराम ने ' समता और सम्मान के लिए संघर्ष ' आन्दोलन की शुरुआत ६ दिसम्बर ,१९८३ को प्रारंभ किया | देश के पाँच कोनो कन्याकुमारी , कोहिमा , कारगिल , पूरी तथा पोरबंदर से कांशीराम ने दो-दो दिन के अंतराल पर दिल्ली के लिए साइकिल यात्रा शुरू की | सौ दिन में दिल्ली पहुची इस यात्रा में डी एस फोर के ३ लाख कार्यकर्ताओ ने साढ़े सात हज़ार सभा करी , १० करोड़ से ज्यादा लोगो तक इस आन्दोलन के माध्यम से समता और सम्मान की बात पहुचाई | कांशीराम का मानना था कि , -- " जब हम इस गैर बराबरी वाले समाज को ध्वस्त कर एक नए समाज की स्थापना के लिए संघर्ष की बात करते है तो हमें विकल्प भी प्रस्तुत करना होगा और यह विकल्प राजनीतिक सत्ता को हासिल किये बगैर संभव नहीं है | " और कांशीराम ने --- करोडो- करोड़ लोगो में सामाजिक राजनीतिक चेतना जगाने वाले बहुजन समाज के नायक कांशीराम ने अपने जीते जी राजनीतिक सत्ता- ताकत हासिल करके दिखाई भी | भारतीय लोकतंत्र में कांशीराम द्वारा गठित राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी ने जोरदार आगाज़ किया तथा सभी प्रमुख राजनीतिक दलों - नेताओ को अपने चातुर्य व रणनीति के तहत बार - बार घुटने टेकने पर विवश किया | कांशीराम अपने समाज को जागृत करते हुये कहते थे ,--" शिक्षित करो , संघर्ष करो तथा संगठित करो | " कांशीराम का स्पष्ट मानना था कि सामाजिक कार्यवाही बिना उग्रता के होनी चाहिए | मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पे अवकाश को रद्द किये जाने पे प्रतिक्रिया देते हुये साथी पत्रकार धनञ्जय सिंह लिखते है कि -- यू पी में कांशीराम पुण्यतिथि पर अवकाश रद्द होना ठीक नहीं | यही एक प्रदेश है जहा उनके प्रयोग धरातल पर उतरे | छुट्टी के बहाने ही सही लोग उन्हें याद करते | आप उन्हें नकार नहीं सकते | नोयडा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश पाण्डेय का मानना है कि सीमित संसाधनों में समाज के सबसे निचले वर्ग का संकलन कर उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के सत्ता शीर्ष पर बैठने वाले मा कांशीराम जी वन्दनिये है | भले ही उनके मिशन को आगे बढ़ाने वाले कार्यकर्ताओ का अभाव हो गया है किन्तु तब भी अभी तक उनके द्वारा किये गये प्रयासों का अपेक्षित परिणाम ही आया है |