Tuesday, December 28, 2010

धान क्रय केन्द्रों, बिचैलियों, मुनाफाखोरों व भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही हो

धान क्रय केन्द्रों, बिचैलियों, मुनाफाखोरों व भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही हो

अरविन्द विद्रोही

उ0प्र0 की मुखिया मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने कृषि विभाग की समीक्षा करते हुए कहा था कि खरीफ के दौरान उर्वरक की उपलब्धता हर हालत में बनायी रखी जाये।नेपाल से लगी सीमा में खाद की तस्करी की चर्चा करते हुए सुश्री मायावती ने इस तस्करी को कठोरता से रोकने का निर्देश दिया तथा नेपाल की सीमा से लगे जनपदों में मांग से अधिक उर्वरक उपलब्ध न कराने का आदेश दिया था।सुश्री मायावती के किसान हित के इन निर्देशों का पालन ईमानदारी व दृढ़तापूर्वक करने में नौकरशाही की नाकामयाबी किसी से छुपी नही है।विभिन्न किसान संगठन उर्वरकों की कमी और खाद की कालाबाजारी,जमाखोरी,मिलावटी खाद की समस्या को लेकर आंदोलित रहे।फिर भी अन्य वर्षों की अपेक्षा इस बार खरीफ की फसल में किसान राहत में रहे।

उ0प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने धान खरीद की प्रभावी व्यवस्था के निर्देश अगस्त माह में ही दे दिए थे।किसानों को उनकी उपज का पर्याप्त एवं लाभकारी मूल्य दिये जाने की पुरजोर वकालत करते हुए सुश्री मायावती ने स्पष्ट चेतावनी दी थी कि धान क्रय के समय किसानों का उत्पीड़न बर्दाश्त नही किया जायेगा।मुख्यमंत्री के निर्देश व चेतावनी के बावजूद उ0प्र0 में किसानों को धान क्रय केन्दों पर उत्पीड़न व शोषण का शिकार होना पड़ रहा है।बेबस किसानों ने अपना धान 700रूपये प्रति कुन्तल की दर से ही बेचा तथा बिचैलियों तथा प्रभावी किसानों की पौ बारह है।तमाम किसान अपने धान के बोरों के साथ प्रशासन के सामने जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं।

काश.....उ0प्र0 की मुखिया मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की निगाहें किसानों के दुःख पर पुनः पड़ती तथा कार्यवाही का चाबुक भ्रष्ट धान क्रय केन्द्रों व मुनाफाखोरों,बिचैलियों,दलालों व गैर-जिम्मेदार अधिकारियों पर पड़ता।

Monday, December 27, 2010

बिहार उदय

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Sunday, December 26, 2010

पंचायती चुनावों से सबक लें राजनेता व प्रत्याशी

पंचायती चुनावों से सबक लें राजनेता व प्रत्याशी
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 में पंचायती चुनाव क्षेत्र पंचायत प्रमुखों के निर्वाचन के साथ ही सम्पन्न हो चुके हैं।ग्राम्य प्रधान,ग्राम्य पंचायत सदस्य,क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा जिला पंचायत सदस्य के पद पर चुनाव प्रचार के दौरान आम मतदाताओं की चांदी रही।सामाजिक,राजनैतिक,विकास के मुद्दों के स्थान पर व्यक्तिगत स्वार्थ,लाभ,दबाव,धन का अंधाधुंध वितरण,शराब का वितरण,दावतों का आयोजन आदि प्रभावी व निर्णायक साबित हुए थे।पंचायती चुनावों में पद प्राप्ति के फेर में अधिकांश प्रत्याशियों ने अपनी पूॅंजी,क्षमता व ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया।ग्राम्य पंचायत सदस्य पद का चुनाव फीका रहा लेकिन ग्राम्य प्रधान पद पर निर्वाचित होने की लालसा में अधिकतर प्रत्याशियों ने लाखों रूपये पानी की तरह बहाये।ग्राम्य प्रधान पद पर निर्वाचित होने के लिए लाखों रूपया खर्च करने का कारण ग्राम्य पंचायतों में आने वाले ग्राम्य विकास के धन की लूट व बन्दर-बॉंट करना ही है।ग्रामीण जनता एक तरफ भ्रष्टाचार का रोना रोती रहती है,वहीं चुनावों में प्रत्याशियों का भरपूर आर्थिक दोहन करने में भी कोई कोताही नहीं बरतती है।साफ-सुथरी छवि के अधिकतर प्रत्याशी ग्राम्य प्रधान पद पर निर्वाचित होने की कौन कहे,चुनावी संघर्ष में ही नहीं गिने गये।प्रधान पद की योग्यता जानकारी,कर्मठता,ईमानदारी ना मानकर जनता ने कुछ और ही मानी।
क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य पद के निर्वाचन में भी काफी जोर-आजमाइश हुई।कई दिग्गजों का समीकरण चक्रानुक्रम आरक्षण के चलते बिगड़ गया।क्षेत्र प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में खरीद-फरोख्त के सुअवसर के फेर में सदस्य पद के चुनाव में लाखों रूपये लगाकर दावेदारी की गई।औसत अनुमान के अनुसार क्षेत्र पंचायत सदस्य पद हेतु लगभग 50हजार रूपया तथा जिला पंचायत सदस्य पद हेतु लगभग 12लाख रूपया खर्च करने के पश्चात् ही प्रत्याशी गण सदस्य निर्वाचित हुए।ग्राम्य प्रधान,क्षेत्र पंचायत सदस्य व जिला पंचायत सदस्य पद के प्रत्याशियों के द्वारा आदर्श चुनाव संहिता का जमकर माखौल उडाया गया।जिससे जो बन पड़ा उसने वो किया।कहीं भी आदर्श चुनाव संहिता के पालन व लोकतांत्रिक मूल्यों की चर्चा नहीं की गई।सभी प्रत्याशी व राजनैतिक दल अपनी व अपने समर्थकों की ऐन केन प्रकारेण विजय श्री सुनिश्चित करने की लालसा में अनैतिक कृत्य करते रहे।
जिला पंचायत अध्यक्ष पद हेतु निर्वाचन की प्रक्रिया में जीते जिला पंचायत सदस्यों को अपने-अपने पाले में करने के लिए जमकर घमासान मचा।सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी पर सत्ता के बेजा इस्तेमाल का आरोप समाजवादी पार्टी,कांग्रेस,भाजपा ने जमकर लगाया।बसपा पर दबाव,खरीद-फरोख्त के जरिए जिला पंचायत सदस्यों को अपने पाले में करने का आरोप लगा रहे विपक्षी दलों के अपने ही नव-निर्वाचित सदस्यों ने विभिन्न जनपदों में बहुजन समाज पार्टी के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी को मत व समर्थन दिया।समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अनुशासनहीनता के खिलाफ ठोस निर्णय लेते हुए दर्जनों नेताओं को समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिया।उ0प्र0 में कांग्रेस का नेतृत्व कोई निर्णय नही ले सकता यह सर्व विदित है।शायद भाजपा के उ0प्र0 के नेतृत्व को कमजोर व लाचार मानकर ही विकास के नाम पर राजधानी से सटे जनपद बाराबंकी में भारतीय जनता पार्टी के जिला पंचायत सदस्यों व जिले के नेतृत्व ने बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष पद की प्रत्याशी को घोषित समर्थन व मत दिया।भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश नेतृत्व बसपा पर आज तक खरीद-फरोख्त का आरोप पानी पी पी कर लगा रही है और सरेआम बसपा की मदद कर चुके अपने दल के लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रही है,यह बात गले नही उतरती है।क्या भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का नेतृत्व बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों की मदद को,उनको मत व समर्थन देने को अनुशासनहीनता व मतदाताओं के प्रति विश्वासघात नही मानता?
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के निर्वाचन के तत्काल बाद क्षेत्र पंचायत चुनावों में भी यही मंजर दिखा।अब इसे कानून व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश कहिए या सरकार के द्वारा प्रशासन से विपक्षी प्रत्याशियों पर दबाव बनवाना,लेकिन यह सत्य है कि पुलिस के छापों व सख्ती से बड़े-बड़े सूरमा जो अपने को दबंग,प्रभावी व बाहुबली समझते थे,चुनाव मैदान में ही नही आये।जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत दोनों के प्रमुखों के निर्वाचन में बसपा का दबदबा रहा सिर्फ समाजवादी पार्टी ही बसपा के मुकाबिल रही।
आने वाले नगर निकायों के चुनावों के संदर्भ में अभी से सभी राजनैतिक दलों और प्रत्याशियों को सचेत हो जाना चाहिए।नगर निकायों के चुनाव प्रक्रिया में बदलाव करके नगर अध्यक्षों का चुनाव जनता के मतों से ना करा के निर्वाचित सभासदों के द्वारा करवाये जाने के प्रस्ताव की चर्चा जोरों पर है।अगर यह बदलाव हो गया तो यह भी निश्चित है कि पंचायती चुनावों की तरह नगर निकायों के निर्वाचन में बहुजन समाज पार्टी का परचम लहरायेगा।

Thursday, December 23, 2010

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह

राजनीति के ऐसे श्लाका पुरूष चौधरी चरण सिंह जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में देश के दलितों,पिछड़ों,गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए संघर्ष किया,राजनीति में हिस्सेदार बनाया,का व्यक्तित्व एवं कृतित्व राजनैतिक-सामाजिक जीवन जी रहे लोगों के लिए अनुकरणीय है।आज हमारा मुल्क भारत भ्रष्टाचार के दलदल में फॅंसा है।जाति-विद्वेष,आतंकवाद,क्षेत्रवाद,साम्प्रदायिकता के झंझावातों में जनमानस पिस रहा है।नौजवान रोजगार के अभाव में कुण्ठित हो रहा है।गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होता जा रहा है।अन्नदाता किसान खेत और बाजार दोनों जगह लूटा जा रहा है।विकास के नाम पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किसानों के साथ-साथ देश को भी संकट की तरफ ले जा रहा है।जिस प्रकार अंधेरे में राह देखने के लिए प्रकाश पुंज की आवश्यकता होती है,उसी प्रकार जनसमस्याओं को समझने के लिए ह्दय तथा जनसमस्याओं से निजात पाने के लिए पथ-प्रदर्शकों की जरूरत होती है।गरीब,किसान,दलित,मजदूर को उसका अधिकार बतलाने वाले एवं आमूलचूल व्यवस्था परिवर्तन करने वाले चैधरी चरण सिंह की नीतिया।,विचार हमारे बीच दीपस्तम्भ की भांति विद्यमान हैं।

चैधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की मर्यादा में जिया।बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर गांव,तहसील हापुड़,जनपद गाजियाबाद,कमिश्नरी मेरठ में काली मिट्टी के अनगढ़ और फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में 23दिसम्बर,1902 को आपका जन्म हुआ।चैधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था।चरण सिंह के जन्म के 6वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गये थे।यहीं के परिवेश में चैधरी चरण सिंह के नन्हें ह्दय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ।आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चैधरी चरण सिंह ने ईमानदारी,साफगोई और कत्र्तव्यनिष्ठा पूर्वक गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की।वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चैधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था।कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया।गाॅंधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया।आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया।परिणाम स्वरूप चरण सिंह को 6माह की सजा हुई।जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गाॅंधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्तूबर1941 में मुक्त किये गये।सारे देश में इस समय असंतोष व्याप्त था।महात्मा गाँधी ने करो या मरो का आह्वान किया।अंग्रेजों भारत छोड़ों की आवाज सारे भारत में गूंजने लगी।9अगस्त,1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवक चरण सिंह ने भूमिगत होकर गाजियाबाद,हापुड़,मेरठ,मवाना,सरथना,बुलन्दशहर के गंावों में गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी।मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था।एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभायें करके निकल जाता था।आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफतार कर ही लिया।राजबन्दी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई।जेल में ही चौधरीचरण सिंह की लिखित पुस्तक ‘‘शिष्टाचार‘‘,भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

दरअसल कुशाग्र बुद्धि के चरण सिंह का जुड़ाव आर्य समाज से भी था।1929 में गाजियाबाद आर्य समाज के सभापति चुने गये चरण सिंह ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।स्पष्ट वक्ता तथा दृढ़ संकल्पित चरण सिंह ने 1937 में प्रथम बार बागपत-गाजियाबाद क्षेत्र से प्रांतीय धारा सभा में चुने जाने के बाद ‘‘लैण्ड युटिलाइजेशन बिल‘‘ को पास कराने की चेष्टा की।किसान हितैषी इस बिल को ब्रितानिया हुकूमत ने रखने ही नहीं दिया।चैधरी चरण सिंह ने हिम्मत नहीं हारी तथा उन्होंने धारा सभा में एक ऋण निर्मोचन विधेयक रखा।इस विधेयक का विरोध तो कंाग्रेस के ही तमाम विधायको ने किया।ये ऐसे विधायक थे,जिनके ऋण पाश में लाखों गरीब,खेतिहर,मजदूर,किसान जकड़ा हुआ था।चौधरीचरण सिंह ने विधेयक के पक्ष में अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये।ऋण निर्मोचन विधेयक धारा सभा में पास हो गया तथा किसान ऋण मुक्त हो गये तथा उनके घर-खेत नीलाम होने से बच गये।चैधरी चरण सिंह का कृषि विपणन पर लिखा लेख हिन्दुस्तान टाइम्स में 31मार्च और 1अप्रैल,1938 को छपा।इन लेखों को ही पढ़कर सर छोटूराम ने ‘मण्डी समिति ऐक्ट‘ को पंजाब में पाीरत किया था।उ0प्र0 की धारा सभा के भंग होने से यह बिल पास न हो पाया था।आजादी के बाद 1949 में इन्हीं प्रस्तावों को चैधरी चरण सिंह ने 1939 में 50प्रतिशत आरक्षण खेतिहर-मजदूर किसान के लिए आरक्षित करने की मांग नव निर्वाचित धारा सभा में की थी,परन्तु इस प्रस्ताव पर शोषण वादी नीति के संरक्षकों ने विचार भी नहीं किया।आजाद भारत में 1947 में चौधरीचरण सिंह ने पुनः कांग्रेस विधानमण्डल में यह प्रस्ताव रखा।इस विषय पर चौधरी चरण सिंह का लिखा लेख-‘‘सरकारी सेवाओं में किसान स।तान के लिए 50प्रतिशत का आरक्षण क्यों?‘‘किसानों की मनोदशा को उजागर करता है।कांग्रेस और कांग्रेस के नेता पं0नेहरू का मोह कृषि के प्रति न होकर बड़े उद्योगों के प्रति था,इसलिए किसान हितैषी यह बिल पारित न हो सका।यह चौधरी चरण सिंह ही हैं जिनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक ‘‘राज्य के कल्याणकारी निदेशक सिद्धान्त‘‘पर आधारित था।महात्मागाँधी के सच्चे अनुयायी चैधरी चरण सिंह द्वारा तैयार किया ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक‘‘विधानसभा में पारित हुआ तथा सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले मेहनतकश किसान भू-स्वामी बनाये गये।1जुलाई,1952 के दिन उ0प्र0 के पिछड़ों-भूमिहीनों को अपने पेशवा चरण सिंह की बदौलत हक मिला।इसी दिन प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन विधेयक लागू हुआ।

दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरीचरण सिंह ने प्रदेश के 27000पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही,प्रशासनिक धाक भी जमाई।लेखपाल भर्ती में 18प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था।क्रान्तिकारी विचारों के वाहक चरण सिंह ने एक और किसान हित का क्रांतिकारी कानून ‘‘उ0प्र0 भूमि संरक्षण कानून‘‘1954 में पारित कराया।1953 में आप के द्वारा पारित कराया गया ‘‘चकबन्दी कानून‘‘1954 में लागू हुआ तथा संगठित खेत तैयार करने के इस कानून के विषय में अमेरिकी कृषि विशेषज्ञ अलवर्ट मायर ने टिप्पणी की थी-‘‘चकबन्दी के काम को देखकर मुझे ऐसा लगा है कि यह अत्यन्त महत्व का काम गांवों के कृषि उत्पादन में क्रांति लाने वाला होगा।‘‘चौधरीचरण सिंह ने गरीब किसानों के हक में सस्ती खाद-बीज आदि के लिए कृषि आपूर्ति संस्थानों की स्थापना की।मुख्यम।त्री पद पर 3अप्रैल,1967 को आसीन होने के बाद चैधरी चरण सिंह ने कुटीर उद्योगों तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि की योजनाओं को क्रियान्वित करने की दृष्टि से सरकारी एजेंसियों द्वारा ऋण देने के तौर-तरीकों को सुगम बनाया,साढ़े छह एकड़ तक की जोत पर आधा लगान माफ कर दिया तथा दो रूपये तक का लगान बिल्कुल मा़फ कर दिया गया,किसानों की उपज,विशेषकर नकदी फसलों के लाभकारी मूल्यों को दिलाने की दिशा मे। महत्वपूर्ण निर्णय लिए,भूमि भवन कर समाप्त किया।सरकारी काम-काज में हिन्दी का शत् प्रतिशत् प्रयोग तथा 23तहसीलों में,जो उर्दू बाहुल्य थी,सरकारी गजट उर्दू में भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की।किसानों के लिए जोत-बही की व्यवस्था चरण सिंह की ही देन है।ब्रिटिश काल से चले आ रहे नहर की पटरियों पर चलने की पाबंदी को चौधरीचरण सिंह ने कानूनन समाप्त कराया।चैधरी चरण सिंह एक ऐसे नेता थे जिनकी ईमानदारी,नैतिकता और प्रशासनिक दृढ़ता के कारण उ0प्र0 में भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगा था।सरकारी कार्यालयों में रिश्वतखोरी समाप्त हो गई थी।17अप्रैल,1968 को चौधरी चरण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।मात्र10माह में किसान व जनहित के ठोस कदम उठाने वाले चरण सि।ह 1969 के मध्यावधि चुनावों में 98 विधायक जिता लाये।17फरवरी,1970 को चैधरी चरण सिंह पुनः मुख्यमंत्री बने।चौधरी चरण सिंह ने सत्ता में आते ही कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीति को प्रोत्साहन देते हुए उर्वरकों से बिक्रीकर उठा लिया।साढ़े तीन एकड़ वाली जोतों का लगान माफ कर दिया,भूमिहीन खेतिहर-मजदूरों को कृषि भूमि दिलाने के कार्य पर और जोर दिया।छह माह की अवधि में ही 6,26,338एकड़ भूमि की सीरदारी के पट्टे और 31,188एकड़ के आसामी पट्टे वितरित किये गये।सीलिंग से प्राप्त सारी जमीनें भूमिहीन हरिजनों तथा पिछड़े वर्गों को ही दी गई।भूमि विकास बैंकों की कार्यप्रणाली को और उपयोगी बनाया।गुण्डा विरोधी अभियान चलाया,कानून का राज कायम किया।बाद में केन्द्र में गृहमंत्री रहते हुए चरण सिंह ने ही मण्डल आयोग,अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।1979में वित्त मंत्री तथा उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्टीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक-नाबार्ड की स्थापना की।उर्वरकों व डीजल के दामों में कमी की,कृषि यंत्रों पर उत्पाद शुल्क घटाया,काम के बदले अनाज योजना लागू की।यह चैधरी चरण सिंह ही थे जिन्होंने महात्मा गाँधी की सोच के अनुसार ‘अंत्योदय‘योजना को प्रारम्भ किया।विलासिता की सामग्री पर भारी कर चैधरी चरण सिंह ने ही लगाये।मूल्यगत विषमता पर रोक लगाने के लिए कृषि जिन्सों की अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी रोक हटाई।लाइसेंस आवण्टन पर पाबंदी लगाई तथा लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया।बडी कपडा मिलों को हिदायत दी कि 20प्रतिशत कपडा गरीब जनता के लिए बनाये।पहली बार कृषि बजट की आवण्टित राशि में वृद्धि आपके कारण सम्भव हुआ।प्रधानमंत्री पद पर अल्प समय में ही ग्रामीण पुनरूत्थान मंत्रालय की स्थापना आपने ही की थी,जो इस समय ग्रामीण विकास मंत्रालय के नाम से जाना जाता है।

29मई,1987 को स्वर्ग सिधारे सादगी की प्रतिमूर्ति,किसान पुत्र चरण सिंह की ईमानदारी ने उनके भीतर निर्भिकता को जन्म देकर भारत के गरीबों-किसानों के मसीहा के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया।भ्रष्टाचार के विषय में चरण सिंह की स्पष्ट सोच कि भ्रष्टाचार उपर से नीचे की ओर चलता है,अक्षरशः सत्य है।चौधरी चरण सिंह आमजन के लिए वह दीप स्तम्भ हैं,जिसकी रोशनी के बिना उन्हें राह नहीं दिख सकती।आज भ्रष्टाचार,मॅंहगाई का दानव आम जन के हितों को लील रहा है,किसानों की भूमि अधिग्रहण मामलों ने किसानों व कृषि भूमि दोनों को खतरे में डाल दिया है।चैधरी चरण सिंह का चरित्र व सिद्धान्त इन समस्याओं रूपी दानवों से निपटने में आम जन व सरकारों का मददगार हो सकता है बशर्ते आम जन व सरकारें चैधरी चरण सिंह जैसे महापुरूषों को आत्मसात् करे।

Wednesday, December 22, 2010

व्यवस्था परिवर्तन से ही आयेगी नव वर्ष में खुशियॉं

व्यवस्था परिवर्तन से ही आयेगी नव वर्ष में खुशियॉं

अरविन्द विद्रोही

मानव सभ्यता का एक और वर्ष व्यतीत हो गया ।पुरानी यादें, कडुवाहटें जेहन में बसाये,नव वर्ष के स्वागत में पलक-पावंडे बिछाये,हर्षोल्लास में मनुष्य आशामयी जीवन की उम्मीद में,जीने की तमन्ना अपने ह्दय में संजोये है। एक-दूसरे को नव वर्ष मंगलमय हो का संदेश देना भी आज महज एक औपचारिकता रूपी परम्परा बन कर रही गई है ।पुरानी बातों को भूलने की अद्भुत क्षमता वाला मनुष्य सिर्फ और सिर्फ आशा के सहारे वर्ष 2011 में अपने जीवन स्तर में तरक्की के सपने देख सकता है।हो सकता है कि वर्ष 2010 किसी पूॅंजीपति के लिए,किसी व्यावसायिक घराने के लिए मंगलकारी रहा हो,सम्भव है कि,किसी राजनैतिक दल या राजनेता को वर्ष 2010 में तरक्की हासिल हुई हो,विकास का लाभ मिला हो ।पर यह ध्रुव सत्य है कि आम नागरिक तो वर्ष 2010 में भी सिर्फ ठगा ही गया है ।वर्ष 2010 में जो भी उम्मीद का,तरक्की का ख्वाब आम नागरिक की ऑंखों में आया,मॅंहगाई की बेलगाम गति और राजनेताओं-नौकरशाहों के गैरजिम्मेदाराना रवैये ने चकनाचूर कर दिया।

मध्यम वर्ग इस आशा और विश्वास के सहारे कि हो सकता है कि वर्ष 2011 में हमारी जीवन यापन की दशा सुधरे,हमारा आत्मविकास हो,उम्मीद की तरंगों पर सवार होकर वर्ष 2011 का स्वागत अपने घर में टेलीविजन में प्रसारित होने वाले रंगारंग,ऐश्वर्य व वैभवशाली जीवन के प्रस्तुतीकरण युक्त कार्यक्रमों व अप्सरा सरीखी युवतियों के अर्धनग्न देह प्रदर्शन को देखकर मन ही मन क्षणिक प्रसन्नता की अनुभूति करेगा ।अपनी प्रसन्नता का शोर गुल मचा कर इजहार भी करेगा। यह जो जगह-जगह नगरों,महानगरों में नव वर्ष 2011 का स्वागतपूर्ण उल्लासित वातावरण बनेगा , यह किसी दुखियारे,गरीब,बेबस,मजदूर,किसान,बेसहारा की झोपड़ी में उम्मीद की एक भी किरण नहीं जगा पायेगा ।पॅंूजीवाद का घिनौना ताण्डव ऐसे ही अनेक मौकों पर देखने को मिलता है ।शराब की नदियां बहा दी जाती हैं,ऐशो-आराम व भोगविलास का शर्मनाक नग्न प्रर्दशन विभिन्न होटलों में प्रायोजित होता है ।प्रत्येक वर्ष धन के मद में चूर पूॅंजीपति विचारों के वाहक गणों द्वारा गरीबी का मजाक उड़ाते हुए लाखों-करोंड़ों रूपया नव वर्ष के स्वागत के बहाने,पानी की तरह सिर्फ मौज-मस्ती के लिए रातो-रात बहा दिया जाता है ।एक तरफ भूख से बेहाल,दूध को तरसते नौनिहाल और दूसरी तरफ नाना प्रकार के व्यंजनों से परिपूर्ण थाल व जी भर को पीने को उपलब्ध शराब- यह सामाजिक आर्थिक असमानता मानव को कहॉं ले जायेगी?निर्लज्जता की हदों को तोडते हुए सामूहिक नृत्यों का,जोड़ा नृत्यों का,पानी में भीगते हुए नृत्यों का आयोजन अश्लील धुनों के बीच मदहोषी के आलम में प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा है ।यह जो पूॅंजीवाद का वीभत्स क्रूर प्रदर्शन गरीबों-मेहनतकशों का मजाक उड़ाते हुए जारी है,उससे किसी को स्थायी प्रसन्नता प्राप्त हो या न हो,गरीब की आत्मा को कष्ट जरूर पहुॅंचता है।

काश,अब नव वर्ष के स्वागत में मानवता का भी ध्यान रखना प्रारम्भ हो ।कुछ सार्थक पहल हमारे द्वारा किये जा सकते हैं ।हम अपने पड़ोसी के साथ सम्बन्ध सुधार सकते हैं,किसी भूखे को खाना खिला कर,भीषण सर्द मौसम में जरूरतमन्दों को गर्म वस्त्र व कम्बल भेंट देकर भी हम नव वर्ष की खुशियॉं आपस में बॉंट सकते हैं।हम मेहनतकशों के साथ,अन्नदाता किसानों के साथ बैठ कर उनके दुख-दर्द को समझने की,उसे कम करने की एक साझा कोशिश नव वर्ष में कर सकते हैं।आज हमें अपनी सोचने-समझनें की क्षमता को फिर से जगाना पड़ेगा।हमें अपनी तरक्की के रास्ते निःसन्देह पास-पड़ोस व देश-समाज की तरक्की से जोड़ कर देखने पड़ेंगें।हमें नव वर्ष में व्यक्तिगत हितों की बलि,समाज व देश हित में चढ़ाने की पुनः शुरूआत करनी चाहिए।मानव सभ्यता की आधी आबादी स्त्री आज कई चुनौतियों से बेजार है।स्त्री बढ़ती पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने में असहाय व असहज होती जा रही है।शिक्षा प्राप्त स्त्री नौकरी,व्यवसाय की जिम्मेदारी के साथ-साथ घर गृहस्थी के दायित्व निर्वाहन को विवश है।कस्बों व ग्रामीण अंचलों की स्त्री मंहगाई के दानव के सम्मुख सीमित आय में मन मसोस कर अपने परिवार का मान-सम्मान व रसोईं के चूल्हे की आग को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद में लगी रहती है ।इस दौर के स्कूली छात्र-छात्राओं की अपनी अलग ही कहानी है,जिस पर ध्यान देना अभिभावकों के साथ समाज का भी दायित्व है।समुचित मार्गदर्शन,निगरानी व नैतिक मूल्यों के अभाव में युवा वर्ग पूरे वर्ष पार्कों,सिनेमा घरों,चौराहों तथा रेस्तरां में मटरगश्ती करता देखा जा सकता है ।पैसा कमाने की फेर में,पूॅंजीवाद के चक्रव्यूह में फॅंसा इन्सान अपने परिवार के साथ समय नहीं गुजार पा रहा है ।उसे अपने परिवार के विखण्डन व नैतिक पतन की तरफ देखने की फुर्सत भी नहीं है ।समाज की प्राथमिक इकाई के विखण्डन का दंश सम्पूर्ण समाज को भुगतना पड़ रहा है ।नव वर्ष में परिवार की तरफ ध्यान देना यदि प्रारम्भ हो तो अवश्य ही मंगलकारी वातावरण व परिस्थितियां उत्पन्न होंगीं।

नव वर्ष का स्वागत अतिरेक उत्साह में कर रहे युवा वर्ग का आज के परिवेश में क्या दायित्व बनता है,इसका इस वर्ग को न तो बोध है और न ही इन्हें बोध कराने वाला कोई मार्गदर्शक ।इतिहास प्रत्येक क्षण का गवाह रहता है ।काल की गति निर्बाध रहती है ।वर्ष 2010 की विदाई की बेला और 2011 के इस आगमन के मौके पर मन क्लान्त है ।बीते वर्ष मानवता को शर्मसार करने वाले जालिमों के नाम रहे। वे जालिम आज भी हमारा ही राशन पानी खा रहें हैं और हमारे लोग भूखे पेट सो रहें हैं ।सरकारों की अदूरदर्शिता,अकर्मण्यता,दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव के चलते पूरा देश व देशवासी आतंक का शिकार रहे ।आज भी आतंकवाद का खौफ़ हमारे जेहन में सवार रहता है ।राजनैतिक दलों की आपसी प्रतिद्वन्दिता,मानवाधिकार संगठनों की अनावश्यक चिल्ल-पों,के चलते आतंक के पैरोकारों का गुट मानवता और देश की सुरक्षा पर भारी रहे ।जरा याद करिए-स्वतन्त्रता संग्राम में बहादुर शाह जफर को आगे कर के,पूरे देश में अंग्रेजी हुकूमत से युद्ध किया गया ।युद्ध का मोर्चा नौजवानों ने लिया ।मंगल पाण्डे, तात्या टोपे,रानी लक्ष्मी बाई,बलभद्रसिंह चहलारी,उदा देवी,अवन्तीबाई आदि का बलिदान हमारे लिए ही था ।कालांतर में बाल-पाल-लाल की तिगड़ी के साथ महामानव महात्मा गॉंधी,सावरकर बंधुओं व चाफेकर बंधुओं के अदम्य साहस,सुभाष की सेना,चन्द्रशेखर आजाद,सरदार भगतसिंह,राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी,अशफ़ाक उल्ला खॉं,रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल,रानी गिडालू,प्रीतिलता वादेदार,अरूणा आसफ अली आदि की क्रंातिकारी टुकड़ियों ने अपना सर्वस्व बलिदान करके गुलामी की बेड़ियां काट डाली। महात्मा गॉंधी के विशाल नेतृत्व ने,क्रान्तिकारियों के अदम्य साहस व सर्वस्व बलिदान की उच्च परम्परा ने,उस ब्रितानिया हुकूमत को,जिसके राज्य में कभी भी सूर्य अस्त नहीं होता था,भारत की पवित्र भूमि से भागने पर विवश कर दिया था ।यह सम्भव हुआ- देशभक्तों के जुनून से,वन्देमात्रम के ओज से,बलिदानों तथा दृढ़ संकल्प से।देश के प्रति समर्पण की भावना ने भारत के युवा वर्ग की एक अमिट पहचान विश्व पटल पर स्थापित कर दी।फिर आया 1977,आजाद भारत में पुनः एक बुजुर्ग कराह रही जनता का दुःख हरने,अपने बीमार शरीर की परवाह करे बगैर, क्रान्ति की मशाल लेकर घूमने लगा।जय प्रकाश नारायण की अगुवाई में समूचे भारत में तरूणाई ने अंगड़ाई लेकर भ्रष्ट सरकारों को उखाड़ फेंका।‘‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ‘‘के ओजपूर्ण आह्वान ने युवाओं के साथ-साथ समूचे जनमानस में उत्साह तथा सरकारों में भय भर दिया था।दुर्भाग्यवश जे0पी0 बाबू द्वारा छेड़ी गई व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई सिर्फ सत्ता परिवर्तन बनकर रह गई।1977 के आन्दोलन से निकले नेताओं ने व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई छोड़ कर सत्ता में चिपके रहना अंगीकार कर लिया।महात्मा गॉंधी के साथ लोहिया-जे0पी0 की आत्मा भी अपने इन छद्म अनुयायी नेताओं को देख कर, कृत्यों को देखकर अवश्य ही रोती होगी।आज इनका नाम व सिद्धान्त बेच कर,मूर्ति लगाकर,समिति बनाकर धन एकत्र कर,अपनी व्यवस्था व सत्ता व्यापार में लगे नेताओं का रवैया जनसमस्या से लेकर देश की सुरक्षा तक के मसलों पर हीला-हवाली पूर्ण है।आज जो युवाओं को सही नेतृत्व न देने का अपराध बुजुर्ग नेता कर रहें हैं,उस पर भी काल की नजर है ।इतिहास साक्षी रहेगा कि महात्मा गॉंधी,अम्बेडकर,भगतसिंह,लोहिया व जय प्रकाश के देश में युवा नेतृत्व के अभाव का जिम्मेदार कौन है?हमारी नजरों में तो आज जो भी 45 वर्ष से अधिक उम्र के वे व्यक्ति जो सामाजिक संगठन चलाते हैं, साहित्यिक मण्डली के हैं,मानवाधिकार संगठन के हैं,नौकरशाह हैं,व्यापारी नेता हैं,किसान नेता हैं,पत्रकार हैं,बुद्धिजीवी हैं सभी को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन इस वर्ष 2011 में निभाना प्रारम्भ करना ही चाहिए।क्या इन्होंने एक भी नौजवान को देश प्रेम व देश की सुरक्षा के सवाल पर समझाया?क्या इन्होंने किसी किशोर को समाजसेवी या देशभक्त के रूप में तैयार किया?यदि हॉं तो आप वंदनीय है,नहीं तो धिक्कार है आपके जीवन पर।अब प्रण करके नव वर्ष 2011 में अपने इस महती दायित्व को पूर्ण करने की दिशा में प्रयास करें।

एक विषय सोचनीय है कि क्या अब ऐसा वक्त आ गया है कि युवा वर्ग अपना नेतृत्व स्वयं करे।?बुजुर्ग नेता तो सिर्फ सियासी गोष्ठी करेंगें।युवा वर्ग को तो इन राजनेताओं ने अपना,अपने भाई-पुत्र-सगे सम्बन्धियों,चाटुकारों का जय कारा लगवाने,फूल माला पहनवाने तथा स्वागत और हर्ष के बहाने किन्नरों सा उत्साह प्रदर्शन व नृत्य करवाने के उपयोग के लिए समझ रखा है।अच्छा तो यह ही होगा कि नव वर्ष 2011 में हम मानव मात्र की भलाई के बारे में कार्य करना प्रारम्भ करें ।एक देश एक प्राण की भावना का स्थान सिर्फ स्वयं हित की सोच ने ले लिया है,इस नव वर्ष में हमें इसे बदलना चाहिए।अब तो युवाओं को न तो गॉंधी मिलेंगें और न जयप्रकाश।अब तो युवा वर्ग को सरदार भगत सिंह और अमर क्रान्तिकारियों की क्रान्ति राह पर चलकर अपना नेतृत्व स्वयं में तय करना होगा।जनता की वास्तविक लड़ाई,किसान मजदूर के हक की लड़ाई के क्रान्तिकारी कार्यक्रम को तेज करना पडे़गा।यह तो तय ही है कि व्यवस्था परिवर्तन के बगैर किसी भी जनसमस्या का हल सम्भव नहीं है। आइये,व्यापक जनहित में नव वर्ष 2011 में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को तेज किया जाये तभी नव वर्ष के मंगलमय होने की सम्भावना है।



Monday, December 20, 2010

काकोरी के अमर शहीद

काकोरी के अमर शहीद

9 अगस्त, 1925 को लखनउ के करीब काकोरी के पास क्रान्तिकारी कार्यक्रमों को संचालित करने तथा ब्रितानिया हुकूमत से भारत को आजाद कराने के लिए हथियारों को जुटाने तथा धन की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से क्रान्तिकारियों ने रेलगाड़ी से आ रहे सरकारी खजाने को गाड़ी रोकवा कर लूट लिया था। इस अभियान के बाद चन्द्रशेखर आजाद को छोड ़कर बाकी सभी क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, शचीन्द्र बख्शी, रोशन सिंह , भूपेन्द्रनाथ सान्याल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, जोगेश चन्द्र चटर्जी, मन्मथनाथ गुप्त, गोविन्द चरणकार उर्फ डी0एन0चैधरी, सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुबलिस, राम दुलारे आदि पकड़े गये तथा इन पर अभियोग चलाया गया। काकोरी काण्ड के अभियुक्त राजेन्द्र नाथ लाहिडी़ को 17 दिसम्बर 1927 को गोण्ड़ा जेल में, 19 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जेल में, राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में तथा रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस मुकदमें के सेशन जज मि0 हेमिल्टन ने फैसला देते हुए कहा था कि-ये नौजवान देशभक्त हैं तथा इन्होने अपने लिए कुछ भी नहीं किया है। इन वीरों को फॅांसी की व अन्य को कड़े कारावास की सजा सुनाते समय जज ने कहा-आप सच्चे सेवक और त्यागी हो, लेकिन गलत रास्ते पर हो। मुकदमें में फैसले के बाद की स्थिति का वर्णन सरदार भगतसिंह ने पंजाबी में लिखे एक लेख में किया है कि-गरीब भारत में ही सच्चे देशभक्तों का यह हाल होता है। ..........जिन्हें फांसी की सजा मिली, जिन्हें उम्र भर के लिए जेल में बन्द कर दिया गया, उनके दिलों का हाल हम नहीं समझ सकते। कदम-कदम पर रोने वाले हिन्दुस्तानी, यों ही थर-थर कॅांपने लग जाने वाले कायर हिन्दुस्तानी, उन्हें क्या समझ सकते हैं?छोटों ने बड़ों के पैरों पर झुककर नमस्कार किया। उन्होंने छोटों को आर्शीवाद दिया, जोर से गले मिले और आह भरकर रह गये। जेल भेज दिये गये। जाते हुए श्री राम प्रसाद बिस्मिल ने बड़े दर्दनाक लहजे में कहा-

दरो-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं।
खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं। ।

यह कहकर वह लम्बी, बड़ी दूर की यात्रा पर चले गये। दरवाजे से निकलते समय उस अदालत के बड़े भारी रैंकन थियेटर हाल की भयावह चुप्पी को एक आह भरकर तोड़ते हुए राम प्रसाद बिस्मिल ने फिर कहा-

हाय, हम जिस पर भी तैयार थे मर जाने को।
जीते जी हमसे छुड़ाया उसी काशाने को। ।

आइऐ, इन चारों क्रान्तिकारियों के जीवन संघर्षों, परिचय तथा विचारों का ज्ञान लाभ उठाने की कोशिश करें। किन उद्देश्यों को लेकर इन नौजवानों ने अपना उच्चतम बलिदान अपने प्राणों का न्यौछावर, मातृभूमि की सेवा में अर्पित किया?इसका मनन् करें तथा हो सके तो इनके सपनो के भारत के निर्माण में अपना योगदान स्वयं सुनिश्चित करें।

राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी

अंग्रेजी शासन के धुर विरोधी श्री क्षितिज मोहन लाहिड़ी के पुत्र रत्न के रूप में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1903 को मोहनपुर ग्राम पवना, बंगाल में हुआ था। बंग-भ्ांग आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभाते हुए क्षितिज मोहन लाहिड़ी जेल यात्रा कर चुके थे। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 9वर्ष की उम्र में बनारस शिक्षा ग्रहण करने हेतु पिता ने बड़े भाई के साथ भेज दिया। बनारस परम्परागत् शिक्षा के केन्द्र के साथ-साथ क्रान्तिकारियों गढ़ भी था। बनारस में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी क्रांतिकारी शिक्षा में दीक्षित हो गये। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययनरत् लाहिड़ी, शचीन्द्रनाथ सान्याल के क्रान्तिकारी संगठन में शामिल हो गये। साहित्यिक अभिरूचि के कारण लाहिणी को बंग साहित्य परिषद का सचिव बनाया गया। क्रांतिकारी मासिक पत्र अग्रदूत का सम्पादन भी आपने किया। आपके लेख बंगवाणी और शंख में निरन्तर छपते थे। जोगेश चन्द्र चटर्जी जो कि अनुशीलन समिति का कार्य बनारस में भी प्रारम्भ कर चुके थे, ने शचीन्द्रनाथ सान्याल के साथ मिलकर काम करने के उद्देश्य से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से नये संगठन का गठन किया। बनारस जनपद का संगठक राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को बनाया गया। 22 वर्ष की ही उम्र में क्रांतिकारी संगठक के रूप में शीघ्र ही आपने अपनी धाक जमा ली। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने सेण्टल हिन्दू स्कूल के विद्यार्थी रामनारायण पाण्डेय को अपना पत्रवाहक बनाया।

राजनैतिक डकैतियों में राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी की उपयोगिता के कारण ही रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हुई रेल डकैती में लाहिड़ी को शामिल किया गया था। क्रातिकारी दल के सदस्यों की बैठक 7अगस्त 1925 को शाहजहॅांपुर में हुई। सहारनपुर से लखनउ जाने वाली पैसेंजर गाड़ी में कुछ क्रांतिकारी शाहजहॅांपुर से तथा कुछ काकोरी में सवार हुए। काकोरी से आगे बढ़ते ही राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने जंजीर खींच कर रेलगाड़ी को रोक दिया। रेल रूकते ही सभी क्रांतिकारियों ने नीचे उतर कर फायरिंग की, गार्ड और चालक को पेट के बल जमीन पर लिटा दिया तथा यात्रियों को रेलगाड़ी के अन्दर ही रहने का आदेश दिया। सरकारी खजाने का संदूक तोड़कर क्रांतिकारी भाग निकले। इस काकोरी षड़यंत्र के बाद लाहिड़ी कलकत्ता चले गये। दक्षिणेष्वर के बम कारखाने में 10 नवम्बर 1925 को बंगाल पुलिस द्वारा छापा मारा गया, यहीं पर लाहिड़ी गिरफतार किये गये तथा इस जुर्म में 10 वर्ष की सजा हुई। काकोरी काण्ड में संलिप्तता साबित होने पर लाहिड़ी को कलकत्ता से लखनउ लाया गया। बेड़ियों में ही सारे अभियोगी आते-जाते थे। आते-जाते सभी मिलकर गीत गाते। एक दिन अदालत से निकलते समय सभी क्रांतिकारी-सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, गाने लगे, सूबेदार बरबण्डसिंह ने इन्हे चुप रहने को कहा। क्रांतिकारी सामूहिक गीत गाते रहे। बरबण्डसिंह ने सबसे आगे चल रहे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का गला पकड़ लिया, लाहिड़ी के एक भरपूर तमाचे और साथी क्रांतिकारियों की तन चुकी भुजाओं ने बरबण्डसिंह के होश उड़ा दिए। ज़ज को बाहर आना पड़ा। इसका अभियोग भी पुलिस ने चलाया परन्तु वापस लेना पड़ा। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। 6 अप्रैल 1927 केा फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ्रने पूछा कि-प्रार्थना तो ठीक है परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो? राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया-व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यांे छोड़ दूँ?दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके। यह एक रहस्य आज भी बना है कि काकोरी काण्ड के अभियुक्तों को 19 दिसम्बर को फांसी दी जानी थी तो राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को 17 दिसम्बर 1927 को दो दिन पूर्व ही गोण्ड़ा जेल में फॅांसी क्यों दे दी गयी?

रामप्रसाद बिस्मिल

मैनपुरी उ0प्र0 में 1897 में पं0 मुरलीधर के पुत्र रूप में जन्में रामप्रसाद बिस्मिल प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक हैं। शाहजहांपुर के मूल निवासी बिस्मिल अपनी माता तथा स्वामी सोमदेव से अत्यधिक प्रभावित थे। क्रांतिकारी विचारधारा के संत स्वामी सोमदेव ने ही बिस्मिल के मन में क्रांति के बीज बोये। भाई परमानन्द को फाँसी की सजा सुनाये जाने पर, बिस्मिल ने स्वामी सोमदेव के सामने अंग्रेजों को खत्म करने की प्रतिज्ञा ली। स्वामी जी ने बिस्मिल की आत्मा को ललकारते हुए कहा था-प्रतिज्ञा करना सरल है, उसका पालन करना कठिन है।

कांग्रेस के 1916 के लखनउ अधिवेशन में रामप्रसाद बिस्मिल, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की कार के आगे लेट गये थे। यह बिस्मिल की जिद का परिणाम था कि कार के बजाए तिलक घोड़ागाड़ी से चारबाग स्टेशन से अधिवेशन स्थल तक गये। इस घोड़ागाड़ी को युवकों ने रामप्रसाद के नेतृत्व में घोड़ों को हटाकर स्वयं गाड़ी खींच कर चलाई थी। रास्ते भर तिलक पर पुष्प वर्षा की गई। अधिवेशन में लोकमान्य तिलक की भूमिका और विचारों से युवकों का दल अत्यन्त प्रभावित हुआ। इसी अधिवेशन में बिस्मिल का परिचय क्रांतिकारियों से हुआ और बिस्मिल क्रांतिकारी संगठन के सदस्य बन गये। रामप्रसाद बिस्मिल ने अमेरिका को स्वतंत्रता कैसे मिली?ग्रंथ लिखा। मैनपुरी षड़यंत्र के कर्ताधर्ता पं0 गेंदालाल दीक्षित के अत्यन्त करीबी थे-बिस्मिल। अपने मित्र सुशील चन्द्र सेन से बंग्ला सीखने के प्श्चात् बिस्मिल ने बंग्ला क्रातिकारी साहित्य का हिन्दी में अनुवाद कार्य प्रारम्भ किया। तीन पुस्तकों का प्रकाशन भी कराया। 1920 में जब सारे राजनैतिक कैदी रिहा कर दिये गये तब बिस्मिल पर से भी पाबंदी हटा ली गई। बिस्मिल ने शाहजहांपुर वापस आकर दो पुस्तकें और लिखी तथा प्रकाशित करवाईं। उनकी लिखित क्रांतिकारी जीवन को प्रकाशित करने का साहस किसी प्रकाशक को नहीं हुआ। महर्षि अरविन्द की पुस्तक यौगिक साधना का अनुवाद भी बिस्मिल ने किया। हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की फौजी शाखा के प्रमुख के रूप में बिस्मिल ने पार्टी का एक्शन ग्रुप संभाल रखा था। धन की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से रामप्रसाद बिस्मिल ने सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई। इसके लिए बिस्मिल ने 7 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर में क्रांतिकारियों की बैठक की। इस बैठक में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुंदीलाल गुप्त, बनवारीलाल, चन्द्रशेखर आजाद, अशफ़ाक उल्ला खाँ, मुरारीलाल, केशव चक्रवर्ती शामिल थे। पं0रामप्रसाद बिस्मिल ने रेलगाड़ी से सरकारी खज़ाने को लूटने का प्रस्ताव रखा। आजाद ने समर्थन तथा अशफ़ाक ने विरोध किया। फिर सबके समर्थन के कारण यह योजना 9 अगस्त 1925 को क्रियान्वित की गई। घटना को अंजाम देने वाले मात्र दस क्रांतिकारी थे परन्तु बाद में चालीस लोग पकड़े गये। चन्द्रशेखर आजाद तो आजीवन आजाद ही रहे। ब्रितानिया सरकार ने पकड़े गये लोगों को अलग-अलग रखकर आपस में सन्देह उत्पन्न कर दिया। अंग्रेजों की इस चाल से कुछ लोग मुखबिर हो गये तथा पच्चीस लोगों पर काकोरी षड़यंत्र का अभियोग चला। क्रांतिकारियों का मुकद्मा मोतीलाल नेहरू, गोविंद वल्लभ पंत, चंद्रभानु गुप्त, मोहनलाल सक्सेना, अजित प्रसाद जैन, बी0के0चैधरी ने लड़ा। 18माह तक चले मुकद्में के दौरान इन लोगों से मिलने वेश बदल कर सरदार भगतसिंह, शिव वर्मा, विजय सिन्हा आते रहते थे। 6 अप्रैल 1927 को काकोरी षड़यंत्र का फैसला आया। रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में रखा गया। जेल में ही लिखी बिस्मिल की आत्मकथा का प्रकाशन गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने पत्र प्रताप में किया। प्रताप का यह अंक जब्त कर लिया गया था। 19 दिसम्बर 1927 को फांसी का दिन निर्धारित था। फांसी के समय अन्तिम इच्छा पूछे जाने पर बिस्मिल ने कहा-मैं अंग्रेजी साम्राज्य का विनाश चाहता हूँ। धार्मिक प्रवृत्ति के देशभक्त, कवि और लेखक रामप्रसाद बिस्मिल की लिखी गज़ले अत्यन्त ओजपूर्ण हैं।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है।

अब न अहले वलवले हैं और न अरमानें की भीड़।
एक मिट जाने की हसरत, अब दिले-बिस्मिल में है। ।

मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही ज़िक्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे। ।

अशफ़ाक उल्ला खाँ

पं0 रामप्रसाद बिस्मिल के अनन्य सहयोगी अशफ़ाक उल्ला खॅां का जन्म शाहजहॅांपुर में हुआ था। अशफ़ाक उल्ला खॅां एकमात्र एैसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने बिस्मिल के सरकारी खजाने को लूटने के प्रस्ताव का विरोध किया था। दूरदृष्टि रखने वाले अशफ़ाक जानते थे कि सरकारी खज़ाने को लूटने का मतलब है ब्रितानिया हुकूमत से सीधी टक्कर लेना। अशफ़ाक का मानना था कि अभी ब्रितानिया हुकूमत से सीधी टक्कर लेना मुनासिब नहीं है। अभी इस कार्यवाही से ब्रितानिया हुकूमत बौखला उठेगी तथा क्रांतिकारियों को पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी, परिणामस्वरूप क्रांतिकारी बिखर जायेंगें। क्रांतिकारियों को फिर से संगठित करना बड़ा मुश्किल हो जायेगा। अशफ़ाक की दलीलें तथा विरोध व्यावहारिक थीं। दरअसल इस समय क्रांतिकारियों के संगठन के पास धन की बड़ी कमी थी। उसी कमी को पूरा कर, हथियार आदि की व्यवस्था के लिए सरकारी खज़ाने को लूटने का दुःसाहसिक निर्णय अशफ़ाक के विरोध के बावज़ूद क्रांतिकारियों ने लिया। निर्णय पूर्व विरोध जताने वाले अशफ़ाक, खज़ाना लूटा जायेगा यह निर्णय होने के बाद अपने साथियों के साथ काकोरी षड़यंत्र में शामिल हुए। 9 अगस्त, 1925 को काकोरी के आगे खज़ाना लूटने के बाद सभी क्रांतिकारी तितर-बितर हो गये थे। 26 सितम्बर, 1925 को सुबह 4बजे पुलिस ने शाहजहॅांपुर में पं0रामप्रसाद बिस्मिल के घर पर छापा मार कर, बिस्मिल को गिरफतार कर लिया। अशफ़ाक उल्ला खॅां बिस्मिल के घर पर ही थे, वे पीछे के रास्ते से भागने में सफल रहे। दो दिन तक गन्ने के खेत में छिपे रहने के बाद अशफ़ाक किसी प्रकार बनारस पहुँचे। यहाँ के भी सभी साथी पुलिस हिरासत में पहुंच चुके थे। बनारस से अशफ़ाक राजस्थान पहुंचे। यहाँ के क्रांतिकारी अर्जुनलाल सेठी के घर में रहने लगे। कुछ समय बाद अशफ़ाक बिहार आ गये तथा डाल्टनगंज में क्लर्क की नौकरी करने लगे। आठ माह के डाल्टनगंज प्रवास के दौरान अशफ़ाक ने अपने को मथुरा का कायस्थ बता रखा था। यहीं पर बंग्ला भाषा सीखी। यहीं पर शाहजहॅांपुर के रहने वाले एक इंजीनियर से अशफ़ाक की जान पहचान हो गई। बाद में धन के लालच में इस इंजीनियर ने अशफ़ाक को पुलिस के हाथों पकड़वा दिया। इस समय तक काकोरी षड़यंत्र का फैसला हो चुका था। मुकद्मा चला तथा अशफ़ाक को भी फाँसी की सजा मिली। क्रांतिकारियों की फाँसी की सजा के खिलाफ़ जब अपील तैयार की गई तब उस पर अशफ़ाक उल्ला खॅां ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और कहा-मैं परवरदिग़ार खुदा के अलावा किसी से भी माफ़ी नहीं मांगता हूँ। अशफ़ाक को फैज़ाबाद जेल में रखा गया। 19 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक को जेल में ही फांसी दे दी गई। इस दिन अशफ़ाक ने नये कपड़े पहने, इत्र लगाया, कुरान शरीफ को हाथ में ले कर, कलमा पढ़ते-पढ़ते फाँसी के तख्ते पर चढ़ गये। शहीद होने के पहले अशफ़ाक उल्ला खॅां ने कहा था-

फना है सबके लिए, हम पै कुछ नहीं मौक़ूफ़।
बक़ा है एक फ़कत जाने किब्रिया के लिए। ।
तंग आकर हम भी उनके जुलूम-ऐ-बेदाद से,
चल दिए सूए-अदम ज़िन्दाने फैज़ाबाद से!

अशफ़ाक उल्ला खाँ का जेल से भेजा गया संदेश

भारतमाता के रंगमंच पर हम अपनी भूमिका अदा कर चुके हैं। ग़लत किया या सही, जो भी हमने किया, स्वतन्त्रता-प्राप्ति की भावना से प्रेरित होकर किया। हमारे अपने अर्थात कांग्रेसी नेता हमारी निन्दा करें या प्रशंसा, लेकिन हमारे दुश्मनों तक को हमारी हिम्मत और वीरता की प्रशंसा करनी पड़ी है। लोग कहते हैं हमने देश में आतंकवाद फैलाना चाहा है, यह ग़लत है। इतनी देर तक मुकद्मा चलता रहा। हमारे में से बहुत से लोग बहुत दिनों तक आज़ाद रहे और अब भी कुछ लोग आज़ाद हैं, फिर भी हमने या हमारे किसी साथी ने हमें नुक़सान पहुँचाने वालों तक पर गोली नहीं चलायी। हमारा उद्देष्य यह नहीं था। हम तो आज़ादी हासिल करने के लिए देश भर में क्रान्ति लाना चाहते हैं।

जजों ने हमें निर्दयी, बर्बर, मानव-कलंकी आदि विशेषणों से याद किया है। हमारे शासकों की क़ौम के जनरल डायर ने निहत्थों पर गोलियाँ चलायीं थीं और चलायीं थीं बच्चों, बूढ़ों व स्त्री-पुरूषों पर। इन्साफ के इन ठेकेदारों ने अपने इन भाई बन्धुओं को किस विशेषण से सम्बोधित किया था?फिर भी हमारे साथ यह सलूक क्यों?

हिन्दुस्तानी भाइयों। आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय को मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो। व्यर्थ आपस में न लड़ो। रास्ता चाहे अलग हों, लेकिन उद्देश्य सबका एक है। सभी कार्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के साधन हैं, फिर यह व्यर्थ के लड़ाई-झगड़े क्यों?एक होकर देश की नौकरशाही का मुक़ाबला करो, अपने देश को आज़ाद कराओ। देश के सात करोड़ मुसलमानों में पहला मुसलमान हूँ, जो देश की आज़ादी के लिए फॅांसी चढ़ रहा हूँ, यह सोचकर मुझे गर्व महसूस होता है।

अन्त में सभी को मेरा सलाम।

हिन्दुस्तान आज़ाद हो।

मेरे भाई खुश रहें।

आपका भाई
अशफ़ाक़

रोशन सिंह

रोशन सिंह रायबरेली के रहने वाले थे। किसान आन्दोलन में जेल जा चुके थे। पुलिस की नजरों से बचे रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहने वाले रोशन सिंह ने पुलिस की मदद करते हुए कई डकैतों को पकड़वाया था। काकोरी रेल डकैती के पहले ही कई बार राजनैतिक डकैतियां डाल चुके रोशन सिंह भी क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। काकोरी षड़यंत्र में रोशन सिंह के खिलाफ़ कोई भी सबूत नहीं था लेकिन फिर भी वे अंग्रेजशाही का शिकार हो ही गये और 19 दिसम्बर, 1927 को इलाहाबाद जेल में फॅांसी पर लटका दिये गये। तख्ते पर खडे़ होने के बाद रोशन सिंह ने वन्देमात्रम का उद्घोष किया। आपके शव को जुलूस की इज़ाजत नहीं मिली। रोशन सिंह ने अंतिम पत्र 13दिसम्बर को लिखा-इस हफ़ते फॅांसी हो जायेगी। ईश्वर के आगे विनती है कि आपके प्रेम का आपको फल दे। आप मेरे लिए कोई गम़ न करना। मेरी मौत तो खुशी वाली है। चाहिए तो यह कि कोई बदफैली करके बदनाम होकर न मरे और अन्त समय ईश्वर याद रहे। सो यही दो बातें हैं। इसलिए कोई ग़म नहीं करना चाहिए। दो साल बाल बच्चों से अलग रहा हूँ। ईश्वर भजन का खूब अवसर मिला है। इसलिए मोह-माया सब टूट गयी। अब कोई चाह बाक़ी न रही। मुझे विश्वास है कि जीवन की दुख भरी यात्रा खत्म करके सुख के स्थान जा रहा हूँ। शास्त्रों में लिखा है, युद्ध में मरने वालों की ऋषियों जैसी श्रेणी होती हैं।

जिन्दगी ज़िन्दादिली को जानिए रोशन,
वरना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं।

Thursday, December 2, 2010

खुदीराम बोस का जीवन संघर्ष

अरविन्द विद्रोही श्री त्रिलोक्यनाथ बोस के पुत्र रूप में खुदीराम बोस का जन्म 3दिसम्बर,1889 को ग्राम्य हबीबपुर,जनपद-मिदनापुर,प0बंगाल में हुआ।स्वदेशी आन्दोलन में शिरकत करने के लिए खुदीराम बोस ने नवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी।माता व पिता दोनो जनों का स्वर्गवास अल्पायु में ही हो गया।खुदीराम बोस का जन्म भारत वर्ष में आजादी के लिए लड़ने व क्रांति मार्ग को प्रज्जवलित करने के लिए ही हुआ था। 28फरवरी,1906 को ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ परचा बांटने के जुर्म में पुलिस सिपाही ने आपको पकड़ लिया।इस समय मात्र 15वर्षीय खुदीराम बोस ने सिपाही को एक जोरदार तमाचा मारा और उससे अपना हाथ छुड़ा कर भाग निकले।1अप्रैल,1906 को मिदनापुर के जिलाधीश की उपस्थिति में भी खूदीराम बोस ने वन्देमातरम् का उद्घोष किया व पर्चे बांटे तथा वहॉं से भी फरार हो लिए।31मई,1906 को छात्रावास में सोते समय ही पुलिस खुदीराम बोस को गिरफतार कर पाई थी।बंग-भंग आंदोलन के समय कलकत्ता का मुख्य मजिस्टेट किंग्सफोर्ड था।इसके दमन चक्र ने सारी हदें तोड़ दी थी।28मार्च,1908 को किंग्सफोर्ड़ का तबादला मुजफफरपुर,बिहार कर दिया गया। खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को किंग्सफोर्ड़ को मारने का कार्य सौंपी गया।30अप्रैल,1908 को रात के 8बजे दोनों लोग यूरोपीयन क्लब पहुॅंचे।वहॉं किंग्सफोर्ड़ की गाड़ी के धोखें में कैनेड़ी परिवार की गाड़ी को बम चलाकर नष्ट कर दिया।फिर चाकी समस्तीपुर स्टेशन की तरफ तथा खुदीराम बोस बेनीपुर स्टेशन की तरफ भागे।चाकी ने 1मई,1908 को पुलिस द्वारा पकड़े जाने अपनी ही गोली से अपनी जान दे दी।उधर 20-25 किमी पैदल चनने के बाद पुलिस के दो सिपाहियों ने खुदीराम बोस को दो रिवाल्वर,37कारतूस व नक्शों के साथ हिरासत में लियाा।खुदीराम बोस को 21मई,1908 को मुजफफरपुर के मजिस्टेट के सामने पेश किया गया।वहॉं से अपराध स्वीकृति के बाद 25मई,1908 को सेशन्स कोर्ट भेजा गया तथा 8जून,1908 को सेशन्स कोर्ट में सुनवाई हुई।जज ने खुदीराम बोस को फॉंसी की सजा दी।6जुलाई,1908 को हाईकोर्ट में अपील की गई।जिसकी सुनवाई 13जुलाई,1908 को हुई।अभी खुदीराम की उम्र 18 वर्ष की भी नहीं थी लेकिन फॉंसी की सजा हाईकोर्ट ने बरकरार रखी। फॉंसी के दिन 11अगस्त,1908 को खुदीराम बोस का वनज दो पौण्ड़ बढ़ गया था।प्रातः6बजे उन्हें फॉंसी पर चढ़ा दिया गया था।गंड़क नदी के तट पर खुदीराम बोस के वकील श्री करलीदास मुखर्जी ने उनके चिता में आग लगाई।हजारों की संख्या में युवकों का समूह एकत्रित था।चिता की आग से निकली चिंगारियां सम्पूर्ण भारत में फैली।चिता की भस्मी को लोगों ने अपने माथे पर लगाया,पुड़िया बांध कर घर ले गये।खुदीराम बोस ही प्रथम शख्स हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में आजादी के लिए फॉंसी के तख्ते पर अपने प्राणों की आहुति दी थी। 

Wednesday, December 1, 2010

भ्रष्टाचार का भारतीय राजनीति में विकास यात्रा
अरविन्द विद्रोही
भारत देश भ्रष्टाचार के सडे़ तालाब में परिवर्तित हो चुका है ।भ्रष्टाचार आज जो सरकारी लोकसेवकों के,राजनैतिक व्यक्तियांे के, व्यापारियो के,बहुत हद तक नागरिकों के भी नस-नस में रक्त बन कर प्रवाहित हो रहा है,उसका सबसे बड़ा कारण भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजनेताओं द्वारा किये गये भ्रष्टाचार पर परदा डालते रहना है।आजादी मिलने के तुरन्त बाद महात्मा गॉंधी ने उच्च पद पर आसीन व्यक्तियों के भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में चेतावनी दी थी।महात्मा गॉंधी ने 12जनवरी,1948 को प्रार्थना सभा में डी0के0 वेंकटपैया गुरू का पत्र उपस्थित जनों को सुनाया था।तत्कालीन विधायकों और मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विषय में इस पत्र में लिखा था-डी0के0वेंकटपैया गुरू ने।इस दौर में कृष्णामेनन,चौ0ब्रह्मप्रकाश,प्रताप सिंह कैरों,टी0टी0कृष्णमाचारी,बख्शी गुलाम मुहम्मद आदि राजनेताओं को भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के बावजूद सरकारी संरक्षण मिला।साठ के दशक में डा0 राम मनोहर लोहिया और मधु लिमये संसद में भ्रष्टाचार के राक्षस को खत्म करने के लिए पूरी ताकत से लडते थे।मस्तराम कपूर जी ने अपने एक लेख में लिखा है कि,-‘‘भ्रष्टाचार की गंगा का उद्गम गंगोत्री से हुआ अर्थात सर्वोच्च और पूज्य स्थान से।’’इस समय पंड़ित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे।‘नेशनल हेराल्ड’ को दिल्ली लाने की योजना नेहरू जी ने बनाई और पॉंच लाख की धनराशि का इन्तजाम करना तय हुआ।तत्कालीन विमानन मंत्री रफी अहमद किदवाई ने,हिमालयन एयरवे़ज के मालिक दो राणाओं से पच्चीस-पच्चीस हजार रूपये, अपने विभाग में ठेके देने के बदले में वसूल लिए।सरदार वल्लभ भाई पटेल के संज्ञान में यह बात आई तो उन्होनें जवाहर लाल नेहरू से इसकी शिकायत की तथा कड़ा प्रतिवाद किया।नेहरू के ‘नेशनल हेराल्ड’ को धर्मार्थ संस्था कहने पर पटेल ने आश्चर्य प्रकट किया।बाद में नेहरू ने पटेल को पत्र लिखकर रफी अहमद किदवाई द्वारा राणाओं से धनराशि लेने को उचित ठहराया।सरदार पटेल जैसे ईमानदार-दृढ़ संकल्पित व्यक्ति और पण्डित नेहरू जो कि पश्चिमी सभ्यता को तरक्की में सहयोगी मानते थे,के बीच उत्पन्न कटु सम्बन्धों का एक बडा कारण नेहरू जी द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपियों को संरक्षण देना था।मस्तराम कपूर के अनुसार,-‘‘चंूकि इस घटना से नेहरू जैसी शख्सियत का सम्बन्ध था,समाचार पत्रों,बुद्धिजीवियों ने इसे रफ़ा-दफ़ा कर दिया।लेकिन भ्रष्टाचार के लिए उर्वरा मिट्टी में दबा यह बीज़ आगे चलकर कितना विशाल वृक्ष बन गया,यह बताने की जरूरत नहीं।’’बताते चलें कि मुम्बई के प्रसिद्ध वकील एम0आर0जयकर ने असहयोग आन्दोलन के दिनों में महात्मा गॅंाधी के खादी प्रचार के लिए 25हजार रूपये दिये।अपनी आत्मकथा में जयकर ने लिखाः‘‘कुछ दिन बाद मोतीलाल नेहरू मेरे घर आए और कहने लगे कि मुझे एतराज न हो तो वे गॅंाधी जी को दिये गये रूपयों का इस्तेमाल ‘‘इंडिपेंडेण्ट’’ की वित्तीय कठिनाई दूर करने में कर लें।मोतीलाल की इस बात को सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।मैने कहा,मैने तो अपनी तरफ़ से दे ही दिये हैं,गॅंाधी जी जैसे चाहे। उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।बाद में मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उस सारी रकम को ‘‘इंडिपेंडेण्ट’’ अखबार- जो कि मोतीलाल नेहरू का था,हजम कर गया।लेकिन इसके बदले में मुझे मोतीलाल की दोस्ती अवश्य मिल गयी।’’
मोतीलाल नेहरू,जवाहरलाल नेहरू से सम्बन्धित ये प्रसंग मनुष्य की स्वभावगत् कमजोरी के प्रतीक हैं।यह हजारों रूपयों का सिलसिला,उच्च पदासीन नेताओं के भ्रष्टाचार का सिलसिला,इंदिरा गॅंाधी-संजय गॅंाधी-राजीव गॅंाधी के समय तक पहॅंुचते-पहॅंुचते करोड़ों के खेल में बदल गया।बोफोर्स का जिन्न आज तक मंडरा रहा है।संजय गॅंाधी के प्रभाव काल में,आपातकाल के दौरान भ्रष्टाचार ने विराट रूप धारण किया। सरकारी ठेकों की कमीशनबाजी अफसरों के हाथ से छीनकर मंत्रियों ने अपने हाथ में ले लिया।तस्करों के साथ साझेदारी के रूप में एक नया अवैध धन का श्रोत इस समय खुला।जनता पार्टी की सरकार ने जब ईमानदारी पूर्वक आयोगों का गठन कर घोटालों का पर्दाफाश शुरू किया तो भ्रष्टाचार पर पोषित पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने ही इन आयोगों के खिलाफ़ आवाज उठायी और इसे बदले की कार्यवाही करार दे दिया।जब कंाग्रेस पुनः सत्ता में आई तो एक-एक करके सारे मामले वापस ले लिए गये तथा आयोगों को बन्द कर दिया गया।जनता पार्टी की सरकार में पहली बार सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की व्यापक वैधानिक कार्यवाही हो रही थी। महात्मा गॅंाधी ने 12जनवरी,1948 को प्रार्थना सभा में भ्रष्टाचार पर जो चिन्ता व्यक्त की थी,उसका विधिवत इलाज जनता पार्टी की सरकार कर रही थी,परन्तु राजनीति के अर्न्तविरोध की परिणति स्वरूप यह सरकार गिर गयी।
अवैध धनसंग्रहों के टुटपंुजिया तरीकों का स्थान योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी सोैदो की दलाली से पैसा बनाना सन1980 के चुनावों से व्यापक रूप में प्रचलित हो गया।भ्रष्टाचार के आकण्ठ में डुबे,भ्रष्टाचार के प्रतीक अब्दुल रहमान अंतुले,जगन्नाथ मिश्र,भजनलाल, रामलाल गंुडुराव,जानकी वल्लभ पटनायक,भास्कर राव और निलंगेकर अपने कारनामों से प्रसिद्धि बटोरते रहे।भ्रष्ट नौकरशाही,कमजोर न्याय पालिका और दिशाहीन विपक्ष के कारण यह समय भ्रष्टाचारियों के लिए मुफ़ीद समय साबित हुआ।1980 का दशक वह दौर था जिसमें सरकारी कार्यालयों में विकास की योजनाओं में लूट तो जारी ही रही,प्राकृतिक सम्पदा के भण्ड़ारों,राजकीय उपक्रमों और जमीन आदि को पूॅंजीपतियों के नाम करने,ठेके पर देने,दोहन करने,लाइसेन्स देने,करों में रियायत देने आदि की दलाली में नौकरशाहों और राजनेताओं ने करोड़ों रूपया कमाना शुरू किया।स्विटजरलैण्ड की प्रसिद्ध पत्रिका स्वाइजर इलस्टायटी 1991 के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी का स्विस बैंक खातों में 46अरब,25करोड़ रूपये जमा हैं।अर्थशास्त्री बी0एम0भाटिया द्वारा लिखित इण्डियाज मिड़िल क्लास के अनुसार स्विस बैंकों में भारतीयों का काला धन विश्व बैंक की 1986 की रिपोर्ट के अनुसार तब 13अरब रूपये था।स्विटजरलैण्ड के दिल्ली स्थित दूतावास के उपप्रमुख के बयान जो कि 26मार्च,1997 के आउटलुक में छपा था,के अनुसार-स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल जमा धन लगभग दो खरब 80अरब रूपये था।स्विस बैंकिंग एसोसिएशन की 2006 की रपट के आधार पर 8-9मई,2007 को सी एन एन-आई बी एन न्यूज चैनल ने बताया कि स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि 1456अरब डालर है।यदि डॉलर का मूल्य औसतन 40रूपये भी मान लिया जाये तो यह धनराशि 582खरब,40अरब रूपये होगी।आज के समय में भ्रष्ट भारतीयों का अथाह काला धन विदेशों में जमा होने व उसको वापस भारत लाने की बात जोर-शोर से उठायी जा रही है।
भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी व दुःखद पहलू यह है कि राजनेता जो समाज के लिए श्रेष्ठ नैतिक आचरण के लिए आदर्श माने जाते थे,आजादी के बाद शनैःशनैः भ्रष्टाचार,अपराध के पर्याय बन गये हैं।चन्द राजनैतिज्ञों को छोड़कर सभी पूॅंजीवादी सोच व भ्रष्ट तंत्र के वाहक बन चुके हैं।जिस देश की आम जनता आज भी हाड़-तोड़ मेहनत के पश्चात् बुनियादी पारिवारिक जरूरतों को पूरा न कर पाने की समस्या से बेजार है,उसी देश के,उसी आम जनता के मतों से निर्वाचित नेताओं की ऐयाशी व जीवन शैली मानवता को शर्मसार करने वाली है।देश का न्यायालय तक इस भ्रष्टाचार से नही बचा है और सर्वोच्च न्यायालय भी इस विषय पर अब मुखरित हो चुका है।लगभग सभी सत्ता में रहे राजनेता भ्रष्टाचार के आरोपी हैं,इस नासूर बन चुके भ्रष्टाचार का उपचार कौन करेगा????

Sunday, November 28, 2010

सेनापति पांडुरंग महादेव बापट का जीवन संघर्ष

अरविन्द विद्रोही

किसी भी देश की पहचान उसके गौरवशाली,संघर्षमय इतिहास से होती है।हजारों वर्षों की दासता और दासता की बेड़ियों को तोड़ने में लगे मातृभूमि के लाड़लों की एक बृहद् समृद्धिशाली,त्यागमयी गौरवपूर्ण गाथा है,जो पीढ़ी दर पीढ़ी देश के युवाओं को प्रगति व आत्मसम्मान के पथ पर ले जाने हेतु पथ-प्रदर्शक का कार्य करती रहेगी।भारत-भूमि देवभूमि यूॅं ही नही कही जाती है।यह धरा अपना बचपन,अपनी जवानी,अपना सर्वस्व धरती माता के चरणों में,सेवा में,रक्षा में अर्पित कर देने वाले सपूतों की जन्मदात्री है।एैसे ही एक भारत के लाल पांडुरंग बापट का जन्म 12नवम्बर,1880 को महादेव व गंगाबाई के घर पारनेर-महाराष्ट में हुआ था।
प्रारम्भ में ही आपको बताते चलें कि इनके विषय में साने गुरू जी ने कहा था-सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज,समर्थ गुरू रामदास तथा सन्त तुकाराम की त्रिमूर्ति दिखायी पड़ती है।साने गुरू जी बापट को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक,महात्मा गॉंधी तथा वीर सावरकर का अपूर्व व मधुर मिश्रण भी कहते थे।बापट को भक्ति,ज्ञान व सेवा की निर्मल गायत्री की संज्ञा देते थे-साने गुरू जी।बापट ने पारनेर में प्राथमिक शिक्षा के बाद बारह वर्ष की अवस्था में न्यू इंग्लिश हाईस्कूल-पूणे में शिक्षा ग्रहण की।पूणे में फैले प्लेग के कारण बापट को पारनेर वापस लौटना पड़ा।गृहस्थ जीवन में आपका प्रवेश 18वर्ष की आयु में हुआ।अपनी मौसी के घर अहमदनगर में मैटिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने 5वॉं स्थान तथा जगन्नाथ सेठ की छात्रवृत्ति प्राप्त की।कचेहरी में दस्तावेज-नवीस का कार्य आपने इसी दौरान किया।उस समय 12रू प्रति माह की छात्रवृत्ति आपने संस्कृत विषय में हासिल की।उच्च शिक्षा हेतु 3जनवरी,1900 को 20वर्ष की उम्र में डेक्कन कॉलेज,पूणे में दाखिला लिया।छात्रावास में टोपी लगाकर बाहर जाने के नियम का असावधानी पूर्वक उल्लंघन करने के कारण आपको 6महीने छात्रावास से बाहर रहने का दण्ड़ मिला।इस अवसर पर सतारा के नाना साहब मुतालिक ने बापट को अपने कमरे में रख कर सहारा दिया।अपनी उच्च शिक्षा को जारी रखने के उद्देश्य से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् बापट ने बम्बई पहुॅंच कर स्कूल में अस्थायी अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया।सौभाग्य से बापट को मंगलदास नाथूभाई की छात्रवृत्ति मिल गई।अब बापट मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने स्काटलैण्ड पहुॅंच गये।यहां के कवीन्स रायफल क्लब में आपने निशानेबाजी सीखी।
भारतीय क्रान्ति के प्रेरणाश्रोत श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा,जिन्होंने लन्दन में क्रान्तिकारियों के लिए इण्डिया हाउस की स्थापना की थी,इण्डियन सोशलाजिस्ट नामक अखबार से क्रांति का प्रचार-प्रसार किया था,उस महान विभूति से यहीं पर पांडुरंग महादेव बापट की मुलाकात हुई।ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत की परिस्थिति विषय शेफर्ड सभागृह में निबन्ध-वाचन के अवसर पर श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा उपलब्ध करायी गयी सामग्री के आधार पर आपने भाषण दिया,आपका निबन्ध छपा।तत्काल मुम्बई विद्यापीठ सिफारिश पर बापट की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई।अपनी मातृभूमि की दशा को बखान करने की कीमत चुकायी बापट ने।अब बापट ने क्रान्ति की शिक्षा ग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया।इण्डिया हाउस में रहने के दौरान बापट,वीर सावरकर के सम्पर्क में आये।आपको पेरिस बम कौशल सीखने भेजा गया।अपनी विद्वता का इस्तेमाल आपने अपने देश की सेवा व लेखन में किया।दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में होने वाले 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में वॉट शैल अवर कांग्रेस डू तथा 1907 में सौ वर्ष बाद का भारत आपके कालजयी लेख हैं।
मजदूरों-मेहनतकशों-आम जनों को एकता के सूत्र में बांघने तथा क्रांति की ज्वाला को तेज करने के उद्देश्य से श्यामजी कृष्ण वर्मा व सावरकर की सलाह पर बापट भारत वापस आये।शीव बन्दरगाह पर उतरने के पश्चात् धुले-भुसावल होते हुए कलकत्ता के हेमचन्द्र दास के घर माणिकतल्ला में पहुॅंचे।यहां कई क्रांतिकारियों के साथ आपकी बैठक हुई।इन्ही क्रान्तिकारियों में से एक क्रान्तिकारी बम प्रकरण में दो माह बाद गिरफतार हो गया,जो मुखबिर बन गया।बापट की भी तलाश प्रारम्भ हो गई।साढ़े चार वर्ष बाद इन्दौर में पुलिस के हाथों बापट की गिारफतारी हुई।इसी बीच मुखबिर बने नरेन्द्र गोस्वामी को क्रान्तिकारी चारू चन्द्र गुहा ने मार गिराया फलतःबापट पर कोई अभियोग सिद्ध नहीं हो सका।पांच हजार की जमानत पर छूटकर बापट पारनेर घर आकर सामाजिक सेवा,स्वच्छता जागरूकता,महारों के बच्चों की शिक्षा,धार्मिक प्रवचन आदि कार्यों में जुट गये।पुलिस व गुप्तचर बापट के पीछे पड़े रहे।1नवम्बर,1914 को पुत्र रत्न की प्राप्ति के पश्चात् नामकरण के अवसर पर प्रथम भोजन हरिजनों को कराने का साहसिक कार्य किया था-बापट ने।अप्रैल1915 में पूना के वासु काका जोशी के चित्रमय जगत नामक अखबार में फिर 5माह बाद तिलक के मराठी पत्र में बापट ने कार्य किया।पूणे में भी सामाजिक कार्य व रास्ते की साफ-सफाई करते रहते थे-बापट।बापट ने मराठा पत्र छोड़ने के बाद पराड़कर के लोक-संग्रह दैनिक में विदेश राजनीति पर लेखन करने के साथ-साथ डॉ0श्रीधर व्यंकटेश केलकर के ज्ञानकोश कार्यालय में भी काम किया।आपकी पत्नी की मृत्यु 4अगस्त,1920 को हो गई।इस समय बापट 2अगस्त,1920 से चल रही श्रमिक मेहतरों की मुम्बई में चल रही हड़ताल का नेतृत्व कर रहे थे।झाडू-कामगार मित्रमण्डल का गठन कर सन्देश नामक समाचार पत्र में विवरण छपवाया।मानवता की शिक्षा देते हुए,मुम्बई वासियों को जागृत करने हेतु,गले में पट्टी लटका कर भजन करते हुए 1सितम्बर,1920 को आप चौपाटी पहॅंुचे।यह हड़ताल सफल हुई।
इसके पश्चात् अण्ड़मान में कालेपानी की सजा भोग रहे क्रान्तिकारियों की मुक्ति के लिए डा0नारायण दामोदर सावरकर के साथ मिलकर आपने हस्ताक्षर अभियान चलवाया,घर-घर भ्रमण किया,लेख लिखे,सभायें आयोजित की।बापट ने राजबन्दी मुक्ता मण्डल की भी स्थापना की।कालेपानी की कठोर यातना से इन्द्रभूषण सेन आत्महत्या कर चुके थे तथा उल्लासकर दत्त पागल हो गये थे।महाराष्ट में सह्याद्रि पर्वत की विभिन्न चोटियों पर बॉंध बॉंधने की योजना टाटा कम्पनी ने की।मुलशी के निकट मुला व निला नदियों के संगम पर प्रस्तावित बॉंध से 54गॉंव और खेती डूब रही थी।विनायक राव भुस्कुटे ने इस के विरोध में सत्याग्रह चला रखा था।1मई,1922 को दूसरे सत्याग्रह की शुरूआत होते ही बापट को गिरफतार कर 6माह के लिए येरवड़ा जेल भेज दिया गया।छूटने के बाद बापट मुलशी के विषय में घूम-घूम कर कविता पाठ करते,प्रचार फेरियां निकलवाते।नागपुर में बेलगॉंव तक भ्रमण किया बापट ने।अब बापट सभाओं में कहते,-अब गप्प मारने के दिन खत्म हुए,बम मारने के दिन आ गये हैं।मुलशी प्रकरण में 23अकतूबर,1923 को बापट तीसरी बार गिरफतार हो गये।रिहाई के बाद रेल पटरी पर गाड़ी रोकने के लिए पत्थर बिछाकर,हाथ में तलवार,कमर में हथियार और दूसरे हाथ में पिस्तौल लेकर बापट धोती की कॉंख बॉंधे अपने 5साथियों के साथ खड़े थे।इस रेल रोको आन्दोलन में गिरफतारी के बाद 7वर्ष तक सिंध प्रांत की हैदराबाद जेल में बापट अकेले कैद रहे।मुलसी आन्दोलन से ही बापट को सेनापति का खिताब मिला।रिहाई के बाद 28जून,1931को महाराष्ट कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।विदेशी बहिष्कार का आन्दोलन चला।अपने भाषणों के कारण बापट फिर जेल पहुॅंच गये।सिर्फ 5माह बाद ही गिरफतार हुए बापट ने वकील करने से मना कर दिया।7वर्ष के काले पानी तथा 3वर्ष की दूसरे कारावास में रहने की दूसरी सजा मिली।जेल में रहने के ही दौरान बापट के माता-पिता की मृत्यु हो गई।बाहर कांग्रेस ने सार्वजनिक हड़ताल व सभायें की।येरवड़ा जेल में बन्द गॉंधी जी के अनशन के समर्थन में बापट ने जेल में ही अनशन किया।सूत कातने,कविता लिखने,साफ-सफाई करने में वे जेल में अपना समय बिताते।अनशन में स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें बेलगांव भेज दिया गया।23जुलाई,1937 को रिहा कर दिये गये सेनापति बापट के रिहाई के अवसर पर स्वागत हेतु बहुत विशाल सभा हुई।
सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना करने पर बापट को महाराष्ट शाखा का अध्यक्ष बनाया गया।द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने का किया -फारवर्ड ब्लाक ने।भाषण दिये गये।कोल्हापुर रियासत में धारा144 लागू थी,वहॉं भाषण देने के कारण आपको गिरफतार की कराड़ लाकर छोड़ दिया गया।आपने फिर कोल्हापुर में सभा कर विचार रखे।5अप्रैल,1940 को मुम्बई स्टेशन पर आपको गिरफतार कर कल्याण छोड़ा गया तथा मुम्बई प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।नजरबन्दी के बावजूद आपने चौपाटी में पुलिस कमिशनर स्मिथ की मौजूदगी में उर्दू में भाषण दिया,इस अवसर पर अंग्रेज का पुतला तथा यूनियन जैक भी जलाया गया।बापट को गिरफतार कर नासिक जेल में रखा गया।यहां पर बापट का वीर पुत्र वामनराव भी द्वितीय विश्व युद्ध के विरोध की सजा में बन्द थे।20मई,1944को आपकी पुत्री का देहान्त हो गया तथा सात माह की नातिन की जिम्मेदारी भी आप पर आ गई।
नवम्बर,1944 में विद्यार्थी परिषद का आयोजन हुआ।चन्द्रपुर,अकोला की सभाओं के बाद बापट अमरावती की सभा के पहले गिरफतार हो गये।एक वर्ष की सजा हो गई।1946 में दुर्भिक्ष पड़ा।इस अवसर पर मजदूरों का साथ दिया सेनापति बापट ने तथा सहायता निधि जमा करके मजदूरों की मदद की।मातृभूमि की सेवा करने की जो शपथ 1902 में छात्र जीवन में बापट ने ली थी,अक्षरशःपालन किया।देश के लिए पूरा जीवन व्यतीत कर देने वाले इस सेनापति का अधिकांश समय जेल में ही बीता।संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट सदैव हमारे मध्य सदैव प्रेरणा बन करके रहेंगे।आजादी के दिन 15अगस्त,1947 को बापट ने पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया।सेनापति बापट की देहावसान 28नवम्बर,1967 को हुआ था।पुणे-मुम्बई में सेनापति बापट के सम्मान में एक प्रसिद्ध सड़क का नामकरण किया गया है।

Saturday, November 27, 2010

छात्र संघ की बहाली लोकतान्त्रिक अधिकार

छात्र संघ की बहाली लोकतान्त्रिक अधिकार

अरविन्द विद्रोही
भारतीय राजनीति आज समाजसेवा का माध्यम न रहकर सत्ता प्राप्ति और सुनियोजित तरीके से जनता की मेहनत की कमाई को लूटने का जरिया बन गई है।लोकसभा चुनावों में,विधानसभा चुनावों में,पंचायती चुनावों में प्रत्याशियों के द्वारा चुनाव में विजयी होने के लिए अपनाये जाने वाले अनैतिक एवं असंवैधानिक कृत्यों को सभी जानते भी हैं और स्वीकारते भी हैं।समस्त राजनैतिक दल पूरे जोशो-खरोश से युवा वर्ग को आकर्षित करने के लिए नाना प्रकार के लोक-लुभावन वायदे करते नजर आते हैं।अधेड़ हो चुके अपने अनुभव हीन पुत्रों को तमाम राजनेता युवा नेता के रूप् में प्रस्तुत करके किसी साज-सज्जा की,उपभोग की वस्तु की तरह प्रचारित-प्रसारित करने में करोड़ों रूपया खर्च कर चुके हैं।आज 18वर्ष की उम्र का कोई भी युवा अपना मत चुनावों में अपना जनप्रतिनिधि निर्वाचित करने में दे सकता है।
लोकतंत्र का दुर्भाग्य कहें या वंशानुगत राजनीति का प्रभाव कहें कि भारत में प्रधान से लेकर सांसद तक के निर्वाचन में अपना मत देने वाला युवा वर्ग अपने शिक्षण संस्थान में अपना छात्र-संघ का प्रतिनिधि नहीं निर्वाचित कर सकता है।कारण है छात्र संघों का निर्वाचन बन्द होना।छात्र राजनीति लोकतांत्रिक राजनीति की प्रयोगात्मक,शिक्षात्मक व प्राथमिक पाठशाला होती है और इस राजनीति पर प्रतिबन्ध लगाकर अपने क्षमता के बूते छात्र-छात्राओं के हितों के लिए संघर्ष करके राजनीति में आये गैर राजनैतिक पृष्ठभूमि के होनहारों को राजनीति में अपना स्थान बनाने से रोकने के लिए यह दुष्चक्र रचा गया है।यह दुष्चक्र युवा वर्ग ही तोडेगा,इसमें तनिक भी सन्देह की गुंजाइश नही है।क्या सिर्फ इस दौरान आम युवा वर्ग को राजनीति में आने से रोकने का दुष्चक्र रचा गया है?नहीं.....छात्र-संघ पर प्रतिबन्ध लगाना,युवा वर्ग राजनीति में प्रवेश न करे इसका प्रयास पूर्व में भी किया गया है।लेकिन घ्यान रखना चाहिए कि भारत ही नहीं समूचे विश्व के इतिहास में जब भी तरूणाई ने अव्यवस्था के खिलाफ अंगड़ाई मात्र ही ली तो परिणामस्वरूप बड़ी-बड़ी सल्तनतें धूल चाटने लगी।क्रांति व युद्ध का सेहरा सदैव नौजवानों के ही माथे रहा है।छात्र-संघ बहाली की लड़ाई ने अब जोर पकड़ना प्रारम्भ कर दिया है।केन्द्र सरकार की सर्वेसर्वा सोनिया गॉंधी को इलाहाबाद यात्रा के दौरान छात्रों विशेषकर समाजवादी पार्टी के युवाओं ने भ्रष्टाचार-महॅंगाई आदि मुद्दों पर अपने विरोध प्रदर्शन से लोहिया के अन्याय के खिलाफ संघर्ष के सिद्धान्त को कर्म में उतार कर खुद को साबित किया है।अब छात्र-छात्राओं,युवा वर्ग को अपने जनतांत्रिक अधिकार की लड़ाई लड़कर अधिकार हासिल करके खामोश नहीं बैठना है वरन् सतत् संघर्ष का रास्ता अख्तियार करके वंशानुगत राजनीति की यह जो विष बेल बड़ी तेजी से भारतीय लोकतंत्र में फैल रही है,इसकी जड़ में मठ्ठा डालने का काम भी करना है।छात्र-संघों का चुनाव न कराना एक बड़ा ही सुनियोजित षड़यंत्र है-आम जन के युवाओं को राजनीति में संघर्ष के रास्ते से आने की।
इसी प्रकार से जंग-ए-आजादी के दौरान तमाम् नेता विद्यार्थियों को राजनीति में,क्रंाति के कामों में हिस्सा न लेने की सलाहें देते थे,जिसके जवाब में क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता भगत सिेह ने किरती के जुलाई,1928 के अंक में सम्पादकीय विचार में एक लेख लिखा था।इस लेख में भगत सिंह ने लिखा था,-‘‘दूसरी बात यह है कि व्यावहारिक राजनीति क्या होती है?महात्मा गॉंधी,जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना तो हुई व्यावहारिक राजनीति,पर कमीशन या वाइसराय का स्वागत करना क्या हुआ?क्या वह पोलिटिक्स का दूसरा पहलू नहीं?सरकारों और देशों के प्रबन्ध से सम्बन्धित कोई भी बात पोलिटिक्स के मैदान में ही गिनी जायेगी,तो फिर यह भी पोलिटिक्स हुई कि नहीं?कहा जायेगा कि इससे सरकार खुश होती है और दूसरी से नाराज?फिर सवाल तो सरकार की खुशी या नाराजगी का हुआ।क्या विद्यार्थियों को जन्मते ही खुशामद का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए?हम तो समझते हैं कि जब तक हिन्दुस्तान में विदेशी डाकू शासन कर रहे हैं तब तक वफादारी करने वाले वफादार नहीं,बल्कि गद्दार हैं,इन्सान नहीं,पशु हैं,पेट के गुलाम हैं।तो हम किस तरह कहें कि विद्यार्थी वफादारी का पाठ पढ़ें।‘‘
आज भगत सिंह के इस लेख के 82 वर्ष एवं भारत की ब्रितानिया दासता से मुक्ति के 63वर्ष बाद भी युवा वर्ग को मानसिक गुलामी का पाठ पढ़ाने का,वंशानुगत राजनैतिक चाकरी करवाने का दुष्चक्र रचा गया है।छात्र-संघ को बहाल न करना तथा अपने दल में छात्र व युवा संगठन रखना राजनैतिक दास बनाने के समान नहीं तो ओर क्या है?क्रंातिकारियों के बौद्धिक नेता भगत सिंह ने अपने इसी लेख में आगे लिखा,-‘‘सभी मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश-सेवकों की जरूरत है,जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दें।लेकिन क्या बुड्ढों में ऐसे आदमी मिल सकेंगे?क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटों में फॅंसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे?यह तो वही नौजवान निकल सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फॅंसे हों और जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी या नौजवान तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो।‘‘
आज आजाद भारत में छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हरण किया जा रहा है।सत्ताधारी दलों की निरंकुशता का चाबुक छात्र हितों व छात्र राजनीति पर बारम्बार प्रहार करके राजनीति के प्राथमिक स्तर को नष्ट करने पर आमादा है।इन छात्र-युवा जन विरोधी सरकारों को छात्र-संघ बहाली का ज्ञापन देना,इनसे अपने अधिकारों की बहाली की मांग करना अन्धे के आगे रोना,अपना दीदा खेाना के समान है।सन् 1960-62 में डा0राम मनोहर लोहिया ने नारा दिया था-देश गरमाओं।जिसका अर्थ है,-‘‘आदमी को अन्याय और अत्याचार पूर्ण रूतबे से लड़ने के लिए हमेशा तैयार करना।दरअसल अन्याय का विरोघ करने की अीदत बन जानी चाहिए।आज ऐसा नहीं है।आदमी लम्बे अर्से तक गद्दी की गुलामी और बहुत थोडें अर्से के लिए उससे नाराजगी के बीच एक अन्तर करता रहता है।‘‘वर्तमान समय में छात्र संघ की बहाली व छात्र हितों की आवाज उठाने वाले लोगों को शासन-सत्ता व भाड़े के गुलामों के दम पर कुचलने का प्रयास किया जा रहा है।छात्र संघ बहाली के लिए आंदोलित सभी छात्र-युवा संगठनों को एक साथ आकर अनवरत् सत्याग्रह व हर सम्भव संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना चाहिए।

Wednesday, November 24, 2010

संघर्ष के रास्ते से समाजवादी राज्य की स्थापना

संघर्ष के रास्ते से समाजवादी राज्य की स्थापना

अरविन्द विद्रोही

समाजवाद और समाजवादी आन्दोलन ही किसानों,मजदूरों,छात्र-छात्राओं,महिलाओं एवं आम जनों के अधिकार बहाली का एकमात्र रास्ता है।पूँजीवाद का राक्षस समाज के प्रत्येक अंग को निगल चुका है। भ्रष्टाचारियों का काकस समाज व देश का रक्त चूसता ही चला जा रहा है।पूँजीवाद के राक्षस और भ्रष्टाचार के दानव का मुकाबला आम जन में सदाचरण, नैतिकता, सामूहिकता, सामाजिक एकता व देश-प्रेम के बीज रोपित,अंकुरित,पोषित व पल्लवित करके ही किये जा सकते हैं।शासन सत्ता के जिम्मेदार लोग भ्रष्टाचार में सराबोर होकर बेशर्मी का लबादा पहने हुए भारत के लोकतन्त्र को भीड़तन्त्र में तब्दील करके एक कुशल चरवाहे की तरह भारतीय जनमानस को जानवरों की मानिन्द हांक रहें हैं।

जनता के प्रतिनिधि आज अव्वल दर्जे के स्वार्थी हो गये हैं।राजनीति में सत्ता प्राप्ति और सत्ता प्राप्ति के पश्चात् जनता के द्वारा दिये गये विभिन्न राजस्व करों से अर्जित धन से बने विकास कार्यों के प्रचुर धन की लूट व बन्दर-बाँट ही इनकी राजनीति का प्रमुख उद्देश्य बन चुका है।आज महामानव महात्मा गाँधी के ग्राम्य स्वराज्य की कल्पना अनियंत्रित व अनियोजित औद्योगीकरण के चलते दम तोड़ चुकी है।क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता भगत सिंह के अनुसार-क्रांति की वास्तविक सेनायें किसान व मजदूर हैं,और आज भी भारत का किसान अपनी कृषि गत् समसयाओं से परेशान है,किसान अपनी कृषि योग्य बेशकीमती भूमि के मनमाने अधिग्रहण से भयाक्रांत है।किसान को खाद,बीज,सिंचाई,बिजली,शिक्षा,स्वास्थ्य परक सुविधा कुछ भी समय पर पूर्णतःमयस्सर नहीं है।मजदूर कल-कारखानों के मालिकान की शोषक नीति के शिकार हो कर दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

डा0राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि लोग मेरी बात सुनेंगें जरूर,लेकिन मेरे मरने के बात।डा0लोहिया की बातें मात्र 12वर्ष की उम्र में ही आत्मसात् कर चुके,आज 72वर्ष की उम्र के मुलायम सिंह यादव ने डा0लोहिया के विचारों व समाजवाद की अग्नि को प्रज्जवलित करे रहने का बहुत ही बड़ा, नेक,सराहनीय व अनुकरणीय काम किया है।संघर्षों की ज्वाला में तपकर व समाजवादी मूल्यों की बदौलत मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनैतिक जीवन में अपना लोहा समस्त राजनैतिक दलों व नेताओं को मनवाया।मुलायम सिंह यादव की राजनैतिक-मानसिक दृढ़ता का कारण उनकी महात्मा गाँधी,भगत सिंह,डा0लोहिया,चैधरी चरण सिंह जैसी महीन विभूतियों के आदर्शों,विचारों पर पकड़ और अनवरत् चलते रहने का संकल्प ही है,एैसा मेरा अपना मानना है।अब समाजवादी आन्दोलन,लोहिया के लोगों,समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं,मुलायम सिंह यादव के अनुयायियों को समाजवाद के मायने व समाजवादी आन्दोलन व कार्यक्रम पुनःपढ़ना चाहिए।डा0लोहिया के द्वारा प्रदत्त कार्यक्रम समाजवादी विचारधारा व आन्दोलन के प्राण हैं।डा0लोहिया के कार्यक्रमों पर चले बगैर,जनता को साथ लिए बगैर,सामाजिक चेतना का काम किए बगैर कोई भी पक्का समाजवादी कार्यकर्ता नहीं हो सकता है।अपने को समाजवादी कहने मात्र से,किसी समाजवादी संगठन में पदाधिकारी हो जाने मात्र से कोई समाजवादी नही हो जाता है।समाजवादी तो वही है जिसने समाजवाद के सिद्धान्तों को आत्मसात् किया हो,उन सिद्धान्तों पर चला हो,अड़िग रहा हो,जिसके लिए राजनीति सत्ता साधन मात्र हो-साध्य नही।समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव समाजवाद की कसौटियों पर खरे साबित हो चुके हैं।13मार्च,2003 को समाजवादी पार्टी के विशेष राष्टीय सम्मेलन में मुलायम सिंह यादव ने कहा,‘‘क्या याद है,4-5नवम्बर1992 को जिस बेगम हजरत महल पार्क के ऐतिहासिक मैदान में फैसला लिया था,संकल्प किया था,क्या वह संकल्प याद है?क्या आप उस संकल्प पर चलने के लिए तैयार हैं?इसीलिए हम कहते हैं कि किस खेत की मूली है यह सरकार,चाहे वह दिल्ली की हो,चाहे उत्तर-प्रदेश की हो।हम लोग वे लोग हैं जो देश के गरीब लोगों के लिए इस देश के नौजवान विद्यार्थियों के लिए,इस देश के किसानों के लिए,झुग्गी-झोपड़ी वाले लोगों के लिए जिन्होंने 56साल की आजादी के बाद भी पक्की छत नहीं देखी,उनको छत दिलाने के लिए,नौजवानों को रोजगार दिलाने के लिए,किसानों की लूट बचाने के लिए,वैट द्वारा व्यापारियों को आतंकित करके उनका पूरा धंधा बर्बाद करने के खिलाफ,मँहगाई बढ़ाने के खिलाफ,इस देश के विकास के लिए,उत्तर प्रदेश के विकास के लिए,सारे हिन्दुस्तान के विकास के लिए,चाहे हम लोगों को खून नहीं,जीवन की आहुति भी देनी पड़ेगी तो देंगें,हम इस व्यवस्था को बदलेंगे।’’

और आज नवम्बर,2010 में,वर्तमान परिस्थितियों में समाजवादी आन्दोलन से जुड़े लोगों विशेषकर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों को आम जनता के मुद्दों पर संघर्ष की तैयारी करके संगठन करना चाहिए।मुलायम सिंह यादव में यह क्षमता विद्यमान है कि वे जनता के हित के मुद्दों पर आन्दोलन खड़ा कर देते हैं।समाजवादी आन्दोलन को अब कर्म प्रधान कार्यकर्ताओं की पुनःआवश्यकता आन पड़ी है।देश की समस्याओं,जनता के बुनियादी अधिकार व समाज के प्रति कत्र्तव्यों पर मुखरित होकर ही समाजवादी आन्दोलन अपना विकास कर सकता है।राजनीति का व्यवसायीकरण व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की राजनीति में प्रभावी कब्जेदारी के खिलाफ मोर्चा समाजवादियों को ही सम्भालना होगा।डा0लोहिया के कार्यक्रम क्रमशःसमान शिक्षा नीति,विशेष अवसर व समता के सिद्धान्त,चैखम्भा राज,पंचायती राज का अनुपालन,अल्पसंख्यकों की समस्याओं,न्यूनतम मजदूरी,कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण का विरोध,भारतीय संस्कृति का सर्व-धर्म समभाव प्रधान रूप,हिन्दी का प्रसार आदि वैचारिक क्रांति के रूप में हैं।इन कार्यक्रमों के जमीनी संचालन से एक लहर उत्पन्न होगी जो देश के समस्त समाजवादियों को जागृत करके देश को सशक्त-समृद्ध बनायेगी।प्रसिद्ध समाजवादी लेखक लक्ष्मीकांत वर्मा के कथनानुसार-कर्म और ज्ञान,बुद्धि और हाथ,चिन्तन और वाणी एक सजग प्रहरी के रूप में यदि समाजवादी आन्दोलन को दिशा देंगें और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में निरन्तर धार पैदा होती रहेगी तो निश्चय ही समाजवादी आन्दोलन का भविष्य उज्जवल होगा।

समाजवादी आन्दोलन,डा0लोहिया की सोच,मुलायम सिंह यादव का समाजवादी राज्य स्थापना का प्रयास व संकल्प तभी साकार हो सकते हैं,जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता व पदाधिकारी कर्म के क्षेत्र में समाजवादी विचारों को आन्दोलन का स्वरूप प्रदान करें।

Sunday, November 21, 2010

समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

अरविन्द विद्रोही

समाजवादी आन्दोलन की विरासत को संजोंये हुए धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री उ0प्र0शासन के पद पर रहते हुए 1995 में कहा था,-डा0लोहिया जरूर चले गये हैं दुनिया से लेकिन उनके विचारों को कोई मिटा नहीं सकता।उनके विचारों पर चलना पडे़गा।आज उसी पर चलने की हम लोग कोशिश कर रहें हैं।चाहे विशेष अवसर की नीति हो,चाहे भूमि सेना का गठन हो,चाहे अंग्रेजी हटाओ का आन्दोलन हो,उसका समर्थन हम आज कर रहे हैं,सरकार में रहकर भी कर रहे हैं।

भारत में समाजवाद की सोच,विचारधारा का जन्म भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग-ए-आजादी के दौरान जेल के सींखचों,काल कोठरी में हुआ था।राजनैतिक आजादी व मूल्यों के साथ-साथ भारत में समाजवाद मूलतःनैतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है।समाजवादी आन्दोलन के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव ने महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन,व्यक्तित्व व जंग-ए-आजादी के आन्दोलन की जानकारी हासिल करके ही समाजवादी आन्दोलन को समझने पर जोर दिया था।लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने जीवन की अंतिम सांस तक समाजवाद,गाँधीवाद,सर्वोदय ओर सम्पूर्ण क्रंाति की अवधारणाओं के लिए जूझते रहे।जे0पी0 का भी सारा आन्दोलन गाँधी जी के सिद्धान्तों और समाजवाद के समीकरणों पर ही आधारित है।समाजवादी संगठन और समाजवादी नेता पूर्णरूपेण महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे।दरअसल वास्तविकता ही है कि डा0लोहिया के देहावसान के पश्चात् समाजवादी आन्दोलन में बिखराव आ गया।जे0पी0 का व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया जनान्दोलन मात्र सत्ता परिवर्तन बन के रह गया।डा0लोहिया के बाद,1967 से लेकर 1992 तक के बीच समाजवादी आन्दोलन निरन्तर बिखरता और टूटता ही रहा।निरन्तर टूटन के बावजूद आज समाजवादी आन्दोलन की प्रासंगिकता बनी रहने के पीछे मुख्य बात यह है कि 1992 से जब से मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की पुर्नस्थापना की और 4-5नवम्बर,1992 को बेगम हजरत महल पार्क लखनउ में सम्पन्न हुए समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में भारत के लगभग सभी प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल हुए।इस सम्मेलन से मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर डा0लोहिया के कार्यक्रम अन्याय के विरूद्ध सिविल नाफरमानी,सत्याग्रह,मारेंगें नहीं लेकिन मानेंगें नहीं,अहिंसा,लघु उद्योग,कुटीर उद्योग आदि मुद्दों को जीवित करने का सराहनीय कार्य किया।इस वक्त की चुनौतियों को स्वीकार करके मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी चरित्र के वास्तविक रूप को उभारा।डा0लोहिया के दामन को जिस इच्छा शक्ति के सहारे मुलायम सिंह यादव ने पकड़ा था,उसी इच्छा शक्ति को लोगों ने जिद्दीपन भी करार दिया।भारतीय राजनैतिक पार्टियों की कार्यशैली और संगठनात्मक प्रक्रिया में निरन्तर गिरावट जारी थी और आज भी जारी है।भीड़ का पैमाना ही राजनीति की सफलता आंकी जाती रही है।समाजवादी पार्टी के इस स्थापना सम्मेलन में सबसे अच्छी बात थी कि इसमें भीड़ की जगह तपे तपाये समाजवादी विचारों के वाहक गण थे।यह समाजवादी विचारों के लोग लोहिया के विचारों और समाजवाद की स्थापना के ध्येय से एकत्र हुए थे।इस समय तक समाजवादी डा0लोहिया द्वारा दिये गये सटीक मुहावरों व नारों को लगभग विस्मृत कर चुका था।डा0लोहिया के मुहावरे वैचारिक सोच को तीव्र करने के साथ-साथ कर्म करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।अंग्रेजी हटाओ, जाति तोड़ो,दाम बांधो,हिमालय बचाओ इन सब आन्दोलनों में कर्म की प्रधानता के साथ-साथ प्रेरक शक्ति भी है।डा0लोहिया के विचारों और अनुशासन की छत्रछाया में मुलायम सिंह यादव ने कर्म और भाषा को एक साथ मिलाकर सकारात्मक रूप प्रदान करने की कार्यशैली को पुर्नजीवित किया।गाँव को आत्मनिर्भरता के प्रश्न पर मुलायम सिंह ने कहा था,‘‘हम चाहते है। कि हमारे गाँवों का विकास हो,प्राथमिकता गाँव के विकास की हो’’व्यवस्था के सवाल पर मुलायम सिंह ने कहा था,‘‘व्यवस्था परिवर्तन का मतलब है सामाजिक परिवर्तन,सामाजिक परिवर्तन का मतलब सामाजिक न्याय नहीं है। सामाजिक न्याय तो केवल एक अंग है सामाजिक परिवर्तन का।जहाँ पर पिछड़ों का बहुमत है,वे दबंग हैं और अगड़ी जाति के लोग कमजोर हैं,तो अगड़ी जाति के लोगों को भी वहाँ परेशान किया जाता है।गाँव में उनका पानी रोका जाता है,नाला रोका जाता है,ट्यूबवेल पर पानी नहीं लगाने देते।यह भी स्थिति आज है।इसलिए हम सम्पूर्ण व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं,व्यवस्था परिवर्तन चाहते हैं,सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं जिसमें शोषण व अत्याचार समाज में किसी का भी न हो।चाहे गरीब हो,चाहे अमीर हो,चाहे अगड़ा हो,चाहे पिछड़ा हो।इस तरह का समाज हम चाहते हैं।हम समता चाहते हैं,सम्पन्नता चाहते हैं,परिवर्तन चाहते हैं,बख्शीश की राजनीति खत्म करना चाहते हैं,ताकि समाज में कोई किसी की कृपा पर न रहे।ऐसा समाज बनाने का हमारा सपना है।इसीलिए हम चाहते हैं कि हमारा देश स्वावलम्बी बने।देश स्वावलम्बी बनेगा तो हमारा स्वाभिमान जागेगा,हमारे देश का स्वाभिमान जाग जायेगा।हम अपने गौरव को,स्वाभिमान को कायम रखना चाहते है। और आगे बढ़ाना चाहते है।।यही हमारी नीति है।’’इस वचन पर मुलायम सिेह यादव ने कभी समझौता नही किया।

आज भी बहुत से पेशेवर और शौकिया राजनीति करने वाले यह समझते हैं कि समाजवादी आन्दोलन और समाजवादी पार्टी का गठन चुनाव और सत्ता पर काबिज होने के उद्देश्य मात्र के लिए मुलायम सिेह यादव ने किया है।डा0 लोहिया के व्यक्तित्व को आत्मसात् कर चुके मुलायम सिेह यादव जब डा0 लोहिया के ही अंदाज में मैं अकेले ही चलूगा का उद्घोष करते हैं तो लोग परेशान हो जाते हैं।मात्र 12वर्ष की उम्र में ही डा0राम मनोहर लोहिया के नहर आन्दोलन में जेल जाने वाले मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक जीवन संघर्षों व त्याग-समर्पण की देन है।मुलायम सिंह यादव ने कई बार अपने भाषणों में कहा है कि,-देश की एकता और अखण्डता,आर्थिक शोषण से मुक्ति तथा दलितों और पिछडे वर्गों के हितों की रक्षा और अल्पसंख्यक मुसलमानों और हर प्रकार से पीड़ित नारी जाति की मुक्ति के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी का पुर्नगठन किया है।सत्ता साधन है,साध्य नहीं हो सकती है,उनकी समाजवादी पार्टी सत्ता में आये या न आये किन्तु उनकी नीतियों में परिवर्तन नहीं हो आयेगा।आज की तारीख में भी समाजवादी विचारधारा के लोग,आम जन को अगर किसी राजनैतिज्ञ से जनता के हित के लिए संघर्ष की आशा रखता है तो वह सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी के अगुआ मुलायम सिंह यादव ही हैं।उ0प्र0 सहित समूचे देश में किसान बेहाल है,भूमि अधिग्रहण के मामलो ने किसानों को संकट में डाल दिया है।मंहगाई के दानव ने आम नागरिकों की दो वक्त की रोटी को भी निगल लिया है।मंहगाई के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन ने समाजवादी नेतृत्व के प्रति जनता में विश्वास जगाया है।

मुलायम सिंह यादव अपने संघर्ष व नेतृत्व क्षमता की बदौलत आज समाजवादी आन्दोलन के सबसे बड़े अगुआ व संगठनकर्ता हैं।मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को समाजवादी आन्दोलन का पुनः अध्ययन करना चाहिए।तात्कालिक अन्याय का प्रतिरोध जिस बेबाकी से और बिना राजनैतिक नुकसान की परवाह किये मुलायम सिंह यादव करते हैं वह एक नजीर के रूप में सभी के सामने है।डा0 लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने तो अपने जीवन में अपने नेता लोहिया के सिद्धान्त व विचारों को आत्मसात् किया और उनको बखूबी निभाया भी।लेकिन अफसोस जनक बाद यह है कि समाजवादी पार्टी के लोग अपने नेता मुलायम सिंह यादव के संघर्ष-कत्र्तव्य पथ पर चलने की जगह सिर्फ सियासी गोष्ठियों और चुनावी तिकड़म में लगे रहते हैं।समाजवादी आन्दोलन व पार्टी की स्थापना सत्ता पाना ही नहीं है-यह तथ्य जब तक समाजवादी पार्टी के लोगों के द्वारा आत्मसात् नहीं किया जायेगा,तब तक कोई भी बड़ा संघर्ष व आन्दोलन नही खडा हो पायेगा।डा0 लोहिया के कार्यक्रम जो कि मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन के लक्ष्य बना लिए,उन लक्ष्यों को पूरा करने का जज्बा अब समाजवादियों में दिखाई पड़ना चाहिए।छात्रसंघ बहाली का आन्दोलन,मंहगाई के खिलाफ संघर्ष,भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा,नौकरशाही व भ्रष्टाचार के खिलाफ जन जागरण अभियान,हिन्दी आन्दोलन,बिजली की समस्या पर लगातार आन्दोलन,जन समस्याओं पर जेल भरो आन्दोलन लगातार चलाते रहना समाजवादी आनदोलन की मूल प्रवृत्ति है।जनता के लिए,जनता के मुद्दों पर संघर्ष तैयार करना समाजवादी आन्दोलन की पहचान है और इस पहचान को बनाये रखने में मुलायम सिंह यादव सदैव सफल रहे हैं।अब खुद को डा0 लोहिया,मुलायम सिंह यादव और समाजवादी आन्दोलन का सिपाही साबित करने की बारी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की है।

Wednesday, November 17, 2010

बाघा यतीन्द्र नाथ मुखर्जी

बाघा यतीन्द्र नाथ मुखर्जी

8दिसम्बर,1879को काया ग्राम,जनपद नदिया-कुष्टिया,पश्चिम बंगााल में एक प्रतिभाशाली विद्वान श्री उमेश चन्द्र मुखर्जी के एवं उच्च कोटि की कवियत्री मांॅ शरत शशि देवी के पुत्र रत्न रूप में यतीन्द्र नाथ मुखर्जी का जन्म हुआ।मात्र 5वर्ष की उम्र में पिता का साया यतीन्द्र के सिर से उठ गया।1899 में फैले प्लेग की बीमारी के दौरान मरीजों की सेवा करते हुए यतीन्द्र की समाज सेवी माॅं शरत शशि देवी की रोग ग्रस्त हो जाने के कारण मृत्यु हो गयी।माॅं की मृत्यु के पश्चात् यतीन्द्र को अपनी बडी बहन श्रीमती विनोद बाला का ममत्व भरा संरक्षण मिला।बहन की देख-रेख में यतीन्द्र ने इण्टर-मीडियट तक की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् शार्ट हैण्ड और टाइपिंग सीखी।यतीन्द्र ने जीविकोपार्जन हेतु बंगाल सचिवालय में स्टेनोग्राफर के पद पर नौकरी की।सचिवालय के गुलामी भरे वातावरण में यतीन्द्र के ह्दय में कोने में दबा हुआ क्रंातिकारी जाग गया।यतीन्द्र का एक बार रेल यात्रा के दौरान फौज के अंग्रेज सिपाहियों से झगड़ा हो गया।उन चार फौजियों को यतीन्द्र ने अकेले ही पीट डाला।उन्होंने यतीन्द्र के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी तथा अभियोग भी चला,परन्तु यह मुकद्मा ही वापस लेना क्योंकि अदालत को यह विश्वास दिलाना उनके लिए असंभव हो गया कि एक व्यक्ति ने अकेले ही चार फौजियों को पीटा।लेकिन इस घटना के कारण यतीन्द्र नौकरी से निकाल दिये गये।माॅं समान बडी बहन विनोद बाला ने गृहस्थी का बोझ डालते हुए यतीन्द्र का विवाह अप्रैल,1900 में इन्दुबाला नामक युवती से करा दिया।यतीन्द्र को तीन संताने क्रमशःतेजेन,वीरेन और आशालता की प्राप्ति हुई।

यतीन्द्र गृहस्थ होकर भी गृहस्थ जीवन में लिप्त न हो पाये।हरिद्वार के प्रसिद्ध सन्त भोलानाथ गिरि के परम् शिष्य यतीन्द्र ने अपने विद्वान व देशभक्त गुरू भोलानाथ गिरि की प्रेरणा से गीता का पाठ कर गीता-प्रेमी बन गये।आत्मा की अमरता का सिद्धान्त गीता से आत्मसात् करके यतीन्द्र अब देश के प्रति कत्र्तव्य पथ के पथिक बन गये।पारिवारिक जीविका व क्रांतिकारी संगठन चलाने हेतु यतीन्द्र ठेकेदारी करने लगे।ठेकेदारी के काम में यतीप्द्र को भरपूर लाभ होने लगा।यतीन्द्र ने अपने साथ उत्साही एवं आस्थावान नवयुवकों को जोड़ना प्रारम्भ कर दिया।प्रत्येक नवयुवक का ख्याल रखते थे-यतीन्द्र एवं यदि किसी को आर्थिक मदद की जरूरत पडती तो आर्थिक मदद भी करते थे।उम्र एवं अनुभव में बडे होने के कारण ये सभी नवयुवक यतीन्द्र को जतीन दा कहते थे।चारूचन्द्र बोस,वीरेन्द्रनाथ दत्त,चित्तप्रिय रे ,भोलानाथ चटर्जी,मनोरंजन सेन गुप्त,वीरेन्द्र नाथ दास गुप्त,ज्योतिष चन्द्र पाल आदि नवयुवक अपने जतीन दा के इशारे पर किसी की भी जान ले सकते थे तथा उनके लिए कभी भी जन दे भी सकते थे।यतीन्द्र कोमलता,मानवता,देशप्रेम और क्रांति की प्रतिमूर्ति थे।सुन्दर और बलशाली यतीन्द्र ने 26वर्ष की उम्र में एक शाही बाघ से लड कर और उसको मारकर बाघा की उपाधि प्राप्त की थी।तभी से यतीन्द्र बाघा जतीन के नाम से प्रसिद्ध हुए थे।जतीन के व्यक्तित्व से रवीन्द्र नाथ टैगोर,योगी श्री अरविन्द घोष,स्वामी विवेकानन्द,श्राी जगदीश चन्द्र बसु,बहन निवेदिता आदि महान विभूतियां जतीन से बहुत प्रभावित थी।जतीन के शौर्य,देशभक्ति से अंग्रेज भयाक्रांत हो गये थे।

बाघा जतीन ने अपने साथियों के साथ मिल कर बंगाल में दर्जनों राजनैतिक डकैतियां डाली।अंग्रेजों के संस्थानों में दिन-दहाडे़ डकैतियां डाली गईं तथा अनेकों कत्ल किये गये।अंग्रेज बाघा जतीन से बहुत भयभीत होकर शहर बहुत कम निकलते थे।क्रांतिकारी मौत बनकर अंग्रेजों के मनो-मस्तिष्क में छा गये थे।बाघा जतीन को पुलिस ने हावडा षड़यंत्र केस में सन्1910-11 में दो बार हिरासत में लिए गये,किन्तु कुछ माह कारागार में रहने के पश्चात् सबूतों के अभाव में यतीन्द्र रिहा हो गये।बलिया घाट तथा गार्डन रीच की डकैतियां भी बाघा जतीन के द्वारा की गई थी।जेल से रिहा होने के बाद अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बने बाघा जतीन ने युगान्तर का भी कार्य संभाला।बाघा जतीन ने एक लेख में लिखाः-पॅंूजीवाद समाप्त कर श्रेणी हीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है।देशी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्म-निर्णय द्वारा जीवन यापन का अवसर देना हमारी मांग है।अदालत से बरी बाघा जतीन पर पुलिस की पैनी नजर थी।2फरवरी,1915 को एक मकान में जतीन व साथी बैठ कर कोई योजना बना रहे थे,तभी वहां सी0आई0डी0 पुलिस इंस्पेक्टर निरोध हलधर आ धमका।मजबूरन हलधर को मौत के घाट उतार कर इन क्रांतिकारियों को मकान छोड़कर फरार होना पडा।

सन्1914 में विश्व युद्ध छिडने पर गदर पार्टी ने भारत में आजादी का जंग छेडने की योजना बनाई थी।इस योजना के सूत्रधार रासबिहारी बोस,करतार सिंह सराभा,शचीन्द्रनाथ सान्याल आदि की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रयास विफल रहा था।लेकिन इसके बावजूद भारत में बाघा जतीन अपने साथियों के साथ क्रांति की अलख जगाने में जुटे रहे।सितम्बर,1915 में मेवरिक नामक जर्मन जहाज को कैप्टीपोदा,बालासोर-उड़ीसा युद्ध की सामग्री लेकर पहुॅंचना था।इस जहाज से हथियार उतारने की जिम्मेदारी बाघा जतीन की थी।अपने साथियों के साथ बाघा जतीन मार्च,1915 में ही बालासोर आ गये।जतीन साधु तथा मनोरंजन और चित्तप्रिय उनके शिष्य बनकर मालदीव मौजा में रहने लगे।आश्रम से कुछ ही दूरी पर तालडीह गाॅंव में नीरेन्द्रनाथ दास गुप्त और ज्योतिष चन्द्र पाल खेती-बाड़ी करने वाले किसान बनकर रहने लगे।यूनिवर्सल इम्पोरियम नामक साईकिल व घड़ी की दुकान बालासोर में खोलकर अन्य साथी गण वहां जम गये।बालासोर एक एकांत व शान्त क्षेत्र था।जतीन व साथियों के आ जाने के कारण स्थानीय लोगों में उत्सुकता बढ़ी।इन लोगों के पास नये-नये चेहरे बालासोर आते थे।स्थानीय लोगों ने बालासोर पुलिस को सूचना दे दी।बालासोर की पुलिस को भी इन बंगाली नवयुवकों पर शक हो गया।बालासोर पुलिस ने इस बात की खबर कलकत्ता पुलिस को कर दी कि बालासोर में कुछ अपरिचित बंगााली युवक आकर रह रहे हैं।कलकत्ता की पुलिस निरोध हलधर की हत्या के बाद से जतीन व उनके साथियों की तलाश में थी,एक सूत्र उसके हाथ लग गया।

कलकत्ता के कई उच्च पुलिस अधिकारियों का एक दल बालासोर आ धमका,स्थानीय पुलिस को साथ लेकर इन लोगों 5सितम्बर,1915 को यूनिवर्सल इम्पोरियम की तलाशी लेकर दो लोगों को हिरासत में ले लिया।वहां एक कागज मिला जिस पर कैप्टीपौदा गाॅंव का नाम लिखा था।6सितम्बर की शाम को ही पुलिस बल हाथियों पर सवार होकर कैप्टीपौदा गाॅंव आ पहुॅंचा।गाॅंव में हलचल मच गई।एक भक्त ने जतीन को पुलिस आगमन की सूचना दी।रातों-रात जतीन ने आश्रम खाली कर दिया और जतीन,मनोरंजन और चित्तप्रिय मालदीव गाॅंव आ गये।यहाॅं पर भी सारा सामान नष्ट करके पांचों साथी बालासोर रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़े।8सितम्बर,1915 को जब पुलिस ने मालदीव वाले घर की भी तलाशी ली और कुछ न मिला तब पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि साधु कोई और नहीं यतीन्द्र नाथ मुखर्जी ही हैं और चेले उसके क्रांतिकारी साथी।पुलिस ने सारे इलाके की नाके बन्दी कर ली।पुलिस ने खबर फैला दी कि कुछ बंगाली डाकू बालासोर क्षेत्र में घुस आयें हैं,जो कोई उनको पकड़वाने में मदद करेगा उसको उचित ईनाम दिया जायेगा।

बाघा जतीन और उसने साथियों के पीछे बालासोर रेलवे स्टेशन जाते समय कुछ ग्रामीण लग गये।ईनाम के लालच में इन ग्रामीणों ने इन देशभक्त क्रांतिकारियों को पकड़ना चाहा जिससे विवश होकर इन लोगों को गोली चलानी पड़ी फलतःएक ग्रामीण मौके पर ही मारा गया।कुछ ग्रामीणों ने भागकर बालासोर पुलिस को सूचना दे दी,तैयार बैठी पुलिस ग्रामीणों के साथ मौके पर आ गई।बुरी तरह से थके हुए पांचों क्रांतिकारी धान के एक खेत में विश्राम कर रहे थे तभी बालासोर के जिला मजिस्टेट किल्वी ने पुलिस बल के साथ ग्रामीणों की मुखबिरी व निशानदेही के आधार पर उसी धान के खेत को चारों तरफ से घेर कर गोलियां बरसाना चालू कर दिया।क्रांतिकारियों ने 20मिनट तक डटकर मुकाबला किया।चित्तप्रिय मौके पर शहीद हो गये।जतीन बुरी तीह घायल हो गये।ज्योतिष पाल भी घायल हो गये।क्रंातिकारियों के पास गोलियां खत्म हो जाने के कारण बाघा जतीन ने लड़ाई बन्द करने का संकेत दिया।पुलिस ने सभी को हिरासत में ले लिया।जतीन और पाल को कटक-उड़ीसा के अस्पताल,चित्तप्रिय के शव को मुर्दाघर तथा नीरेन्द्र व मनोरंजन को बालासोर की हवालात में पहुॅंचाया गया।दूसरे ही दिन 10सितम्बर,1915 को प्रातः5बजे यतीन्द्र नाथ मुखर्जी चिर निद्रा में लीन हो गये।कुछ समय बाद ज्योतिष चन्द्र पाल स्वस्थ हो गये।इन बचे तीनों लोगों पर बगावत का मुकदमा चलाकर,नीरेन्द्र और मनोरंजन को 22नवम्बर,1915 को प्रातः6बजे बालासोर की जेल में फांसी पर लटका दिया गया तथा ज्योतिष चन्द्र पाल को 14वर्ष की काले पानी की सजा सुनाकर अण्डमान भेज दिया गया।

इस प्रकार बाघा जतीन के साथ एक क्रांति युग का समापन हो गया।

अहिंसा-सत्याग्रह के राही थे क्रान्तिकारी

अहिंसा-सत्याग्रह के राही थे क्रान्तिकारी

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी आज हमारे बीच सशरीर नहीं हैं। महात्मा गाँधी के आदर्श, सोच हमारे लिए मार्गदर्शक बनकर विद्यमान हैं। ‘‘अहिंसा परमों धर्मः‘‘ के मूर्त रूप में अपने जीवन में उतार चुके महात्मा गाँधी के अनुयायियों की लम्बी फेहरिस्त है। यहाँ चर्चा महात्मा गाँधी के उन दो अनुयायियों की कर रहा हूँ जो ‘‘सत्याग्रह‘‘ और ‘‘अहिंसा‘‘ को अपने जीवन में अंगीकार कर क्रान्ति मार्ग के सेनानी ही नहीं वरन् अमिट हस्ताक्षर बने। यह चन्द्रशेखर आजाद ही थे जिन्होंने मात्र 14वर्ष की उम्र में महात्मा गाँधी के द्वारा प्रेरित असहयोग आन्दोलन में शिरकत की। यह वह समय था, जब सम्पूर्ण भारत में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा था और उनकी होली जलाई जा रही थी। इसी दौरान ब्रिटेन के युवराज ड्यूक ऑफ विण्डसर का भारत आगमन हुआ, युवराज की यात्रा का पूरे भारत में जबरदस्त विरोध हुआ। सर्वत्र हड़ताल की गई। महात्मा गाँधी को 6माह का कारावास हुआ। चन्द्रशेखर आजाद ने बनारस के सरकारी विद्यालय पर धरना दिया। पकड़े जाने पर न्यायाधीश खारेघाट के सवालों के जवाब में- नामःआजाद, पिताःस्वतन्त्र, निवासःजेलखाना देने पर आजाद को पन्द्रह कोड़ों की सजा मिली।आजादी का दीवाना यह वीर बालक सेनानी, महात्मा गाँधी का अनुयायी वन्देमातरम और महात्मा गाँधी की जय बोलते-बोलते कोड़ों को सहते-सहते मातृभूमि की गोद में मूर्छित हो कर गिर पड़ा था।कालान्तर में चौरी चौरा काण्ड़ के पश्चात् शचीन्द्रनाथ सान्याल के दल ‘‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन‘‘ से आजाद जुड़ गये। सत्याग्रह और अहिंसा का यह सिपाही भारत की जंग-ए-आजादी में क्रान्ति का संगठक बना। इतिहास साक्षी है कि आजाद तो पैदा ही भारत की आजादी की लड़ाई में सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हुए थे। अब बात करते हैं- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कीं। सशस्त्र क्रान्ति के सेनानायक सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के जो सूत्र महान क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से पकड़े व फौज का पुर्नगठन कर आजादी का संघर्ष छेड़ा, वह अविस्मरणीय है। आजाद हिन्द फौज के इस महानायक के दिल में महात्मा गाँधी के प्रति, उनके विचारों के प्रति अपार श्रद्धा व विश्वास था। नेताजी ने ही सर्वप्रथम रंगून रेडियो से महात्मा गाँधी को राष्टपिता कहकर सम्बोधित किया था। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि एक बार भारत स्वतन्त्र हो जाये, तो इसे मैं गाँधी जी को सौप दूंगा और कहूँगा कि अब इसे आपकी अहिंसा की सबसे ज्यादा जरूरत है।‘‘

ध्यान देने की बात यह है कि क्या वजह रही कि गाँधी को मानने वालों ने, सत्याग्रह और अहिंसा का पालन करने वालों ने सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग अपनाया। क्या ये सशस्त्र क्रान्ति के सेनानी सत्याग्रही नहीं रहे, क्या इन क्रान्ति के वाहकों ने अहिंसा का मार्ग त्याग दिया और ये हिंसक हो गये थे? सत्याग्रह और अहिंसा को स्पष्ट करते हुए भगवती चरण वोहरा ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की ओर से ‘‘बम का दर्शन‘‘ लेख लिखा, जिसका शीर्षक ‘‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन का घोषणा-पत्र‘‘ रखा गया। क्रान्तिकारियों के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह ने जेल में इसे अंतिम रूप दिया। 26जनवरी,1930 को यह पर्चा पूरे देश में वितरित किया गया। इसमें लिखा गया कि- ‘‘पहले हम हिंसा और अहिंसा के प्रश्न पर ही विचार करें। हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया है, और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है, क्योंकि इन शब्दों से दोनों ही दलों के सिद्धान्तों का स्पष्ट बोध नहीं हो पाता। हिंसा का अर्थ है- अन्याय करने के लिए किया गया बल प्रयोग, परन्तु क्रान्तिकारियों का तो यह उद्देश्य नहीं है। दूसरी ओर अहिंसा का जो आम अर्थ समझा जाता है, वह है आत्मिक शक्ति का सिद्धान्त। उसका उपयोग व्यक्तिगत तथा राष्टीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अपने आप को कष्ट देकर आशा की जाती है कि इस प्रकार अन्त में अपने विरोधी का ह्दय-परिवर्तन सम्भव हो सकेगा। आगे लिखा कि,- ‘‘एक क्रान्तिकारी जब कुछ बातों को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी मांग करता है, अपनी उस मांग के पक्ष में दलीलें देता है, समस्त आत्मिक शक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है, उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है, इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बल भी प्रयोग करता है। इसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारें, परन्तु आप इन्हें हिंसा के नाम से सम्बोधित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना कोष में दिये इस शब्द के साथ अन्याय होगा। ‘‘सत्याग्रह के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा गया कि,- ‘‘सत्याग्रह का अर्थ है सत्य के लिए आग्रह। उसकी स्वीकृति के लिए केवल आत्मिक शक्ति के प्रयोग का ही आग्रह क्यो।? इसके साथ-साथ शारीरिक बल-प्रयोग भी क्यों न किया जाये? क्रान्तिकारी स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपनी शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है, परन्तु नैतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले शारीरिक बल प्रयोग को निषिद्ध मानते हैं। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि आप हिंसा चाहते हैं या अहिंसा, बल्कि प्रश्न तो यह है कि आप अपनी उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते हैं, या केवल आत्मिक शक्ति का? ‘‘इस प्रकार हम पाते है कि क्रान्तिकारी सत्याग्रही तो थे ही, क्योंकि उनका उद्देश्य ब्रितानिया हुकूमत से भारत की आजादी था, साथ ही साथ वे अहिंसा के भी पुजारी थे। वे हिंसक कदापि नहीं थे, वे तो अत्याचारियों के सर्वनाश करने की राम-कृष्ण-शिव की परम्परा के पालनकर्ता मात्र थे।

जब-जब महात्मा गाँधी के बताये रास्तों, अनुनय विनय, भूख हड़ताल, सत्याग्रह, धरना आदि से भारत के नागरिकों की बात नहीं सुनी गई तब-तब इन्हीं गाँधी को मानने वाले सत्याग्रहियों ने क्रान्तिकारियों का सशस्त्र मार्ग अपनाया है। राम द्वारा तीन दिनों तक निवेदन के पश्चात् भी समुद्र द्वारा रास्ता न दिये जाने पर जब राम ने प्रत्यंचा चढ़ाई तो समुद्र ने तत्काल उपस्थित होकर समुद्र पर पुल निर्माण का रास्ता बताया। क्रान्तिकारी तो सिर्फ अपने पूर्वजों के उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हैं।कृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा का वध किया, हक की लड़ाई लड़ रहे पांड़वों के सारथी बने। इस प्रकार क्रान्तिकारियों ने न तो सत्याग्रह छोड़ा था और न ही अहिंसा का मार्ग। हाँ, वीरोचित धर्म का वरण कर कायरता का त्याग कर अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए, अपने हक के लिए प्राण लेने व देने में कोई संकोच नहीं किया।

भारत माँ का लाल भगत सिंह

भारत माँ का लाल भगत सिंह

भगतसिंह का जन्म 27-28सितम्बर,1907 को बंगा गांव,लायलपुर जिला में हुआ।पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीत सिंह स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल में बन्द थे।भगतसिंह के जन्म के ही बाद ये लोग जेल से रिहा हुए थे।गुलामी से नफरत और देशभक्ति इनके खून में समाई थी।विरासत में मिली थी गुलामी से लड़ने की हिम्मत।शिक्षा देशभक्तों के केन्द्र नेशनल कालेज-लाहौर में ग्रहण की।सुखदेव,यशपाल,भगवतीचरण वोहरा इनके कालेज के मित्र थे।भगतसिंह पढ़ने लिखने में ज्यादा ध्यान देते थे।विक्टर ह्यूगो,हाॅल केन,टाॅल्सटाॅय,गोर्की,बर्नोर्ड शाॅ,डिकेन्स आदि उनके पसंदीदा लेखक थे।भगतसिंह ने कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र प्रताप में काम किया था।कानपुर में ही इनकी मुलाकात चन्द्रशेखर आजाद,बटुकेश्वर दत्त,शिव वर्मा,जयदेव कपूर,कुन्दनलाल आदि क्रांतिकारियों से हुई।भगतसिंह और सुखदेव रूसी अराजकतावादी बाकुनिन से प्रभावित थे।भगतसिंह को अराजकता से समाजवाद की ओर लाने का श्रेय कामरेड सोहन सिंह जोश और लाला छबील दास को है।

क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता के रूप में भगतसिंह स्थापित हो चुके थे।असेम्बली बम काण्ड़ में सुखदेव ने इसी कारण से भगतसिंह को बम फोडने जाने के लिए केन्द्रीय समिति का निर्णय बदलवाने पर जोर दिया था।सन 1926 में भगतसिंह,भगवती चरण वोहरा और यशपाल ने लाहौर नैजवान भारत सभा की स्थापना की।भगतसिंह इसके प्रथम महामंत्री व भगवती चरण वोहरा प्रथम प्रचार मंत्री चुने गये।सुखदेव,धन्वंतरी,यशपाल और एहसान इलाही प्रमुख सक्रिय सदस्य नियुक्त किये गये।सभा का उद्देश्य क्रान्तिकारी आन्दोलन के तन्त्र को पुनःजीवित करना था और कार्य था-क्रान्ति के विचारों और उद्देश्यों का प्रचार करने के लिए आम सभायें करना,बयान देना,इश्तहार बांटना आदि।शोषण,गरीबी,विषमता जैसी विश्वव्यापी समस्याओं से निपटने के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता चाहिए।क्रान्तिकारियों का विचार था कि आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना पूर्ण स्वतंत्रता सम्भव नही है।स्वतंत्रता के बाद के शासन की रूपरेखा पर भी क्रांतिकारी विचार-विमर्श करते थे।हुतात्माओं के चित्रों की प्रदर्शनी लगाकर,उनके बारे में जानकारी दी जाती थी।जनता के सामने क्रातिकारी अपना इतिहास बताते थे।सशस्त्र क्रांति के गुप्त संगठन के लिए कार्यक्षेत्र तैयार करना और लोगों में साम्राज्यवाद के विरोध में राष्टीयता की प्रबल भावना को जागृत करना-यही उद्देश्य था भगतसिेह का।

भगतसिंह श्रेष्ठ प्रचारक थे।कुशल वक्ता तो वे थे ही,लेखनी और विचारों में पैनापन और पकड़ भी थी।हिन्दी,उर्दू,अंग्रेजी व पंजाबी भाषाओं पर उनका अधिकार था।अमृतसर से निकलने वाले उर्दू अखबारों में वे नियमित लेख लिखते थे।छद्म नामों से उन्होंने कीर्ति में लिखा।हिन्दी प्रताप,प्रभा,महारथी,चांद में भगतसिंह ने लिखा।क्रान्तिकारियों के विषय में अध्ययन करने से मन अशान्त हो जाता है।कैसे थे ये मतवाले?आजाद भारत में लोग जीवन जीने के लिए रोज मर रहें हैं और ये मतवाले आने वाली नस्लों को जीवित करने के उद्देश्य से हॅंसते-हॅंसते मर गये।फिर भी आज आजाद भारत में बेकारी,बेरोजगारी,शोषण,विषमता,भुखमरी,भ्रष्टाचार,कुशासन,अपने चरम पर है।क्या क्रान्तिकारियों का आजाद भारत बन गया है ?देश की आजादी की लड़ाई लडते हुए भगतसिंह अपने साथियों राजगुरू व सुखदेव के साथ 23मार्च,1931 को फांसी पर चढ़ गये।रह गये शेष भगतसिंह और उनके साथियों के सपने,आदर्श,उनके सोच को परिलक्षित करते लेख व देश-समाज के लिए मर मिटने की प्रेरणा।

भगतसिंह के सखा-समर्पण की प्रतिमूर्ति सुखदेव

भगतसिंह के सखा-समर्पण की प्रतिमूर्ति सुखदेव

स्वभावगत जिद्दी,सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति,मासूम व्यक्तित्व,कुशल संगठनकर्ता,अपनत्व के धनी-एैसे थे सुखदेव।सुखदेव का जन्म 15मई,1907 को रामलाल थापर के पुत्र रूप में नौधरा,लुधियाना में हुआ था ।बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया।लालन पालन माता रल्लीदेई और ताउ चिंताराम थापर जो कि देशभक्त थे तथा जेल की सजा भुगत चुके थे,ने किया ।

क्रांतिकारी दल के नायक चंद्रशेखर आजाद के बाद दल के समस्त साथियों की आवश्यकताओं की तरफ अगर कोई ध्यान देता था तो वह दल में ‘विलेजर‘ नाम प्राप्त सुखदेव ही थे ।सुखदेव जिद्दी थे ।सुखदेव ने कभी अपने साथियों से कोई स्पर्धा नहीं रखी,कोई शिकायत नहीं की और न ही कोई स्पष्टीकरण दिया ।एक तरफ राजगुरू भगतसिंह को शौके शहादत में अपना रकीब मानते थे तो सुखदेव के मन में भगतसिंह के प्रति सबसे ज्यादा प्रेम और अपनापन था ।जब भी सुखदेव और भगतसिंह की मुलाकात होती,तो क्रांति दल के साथियों को भूलकर ये दोनों रात-रात भर बाते करते रहते थे ।भगतसिंह और सुखदेव समाजवाद के पक्के समर्थक थे ।भगतसिंह की स्मरण शक्ति तीव्र व विलक्षण थी ।किसी भी पुस्तक को जल्दी खत्म करने की जैसे उन्हें सनक सवार रहती थी ।

ध्यान दीजिए,यह सुखदेव ही हैं जिनके मित्र के और आदर्शों के प्रति हठ ने क्रांतिकारी आदर्शों के प्रचार के लिए,न्यायालय का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए,अपने भगतसिंह की नाराजगी झेलकर,उसे भलाबुरा कहकर असेम्बली बम काण्ड का दायित्व केन्द्रीय समिति से सौंपवाया ।दुर्गा भाभी गवाह थीं कि इस निर्णय को करवाने के पश्चात् सुखदेव की आंखें रोने के कारण सूजी हुईं थी ।सुखदेव ने केन्द्रीय समिति से पहले कहा था कि असेम्बली में बम फोड़ने का काम भगतसिंह को करना चाहिए ।इसका कारण बम फोड़ने का उद्देश्य,दल के आदर्श,महत्व व उद्देश्यों को जनता के सामने लाना था और इस काम के लिए भगतसिेह ही सबसे सक्षम व योग्य थे ।जब भगतसिंह केन्द्रीय समिति के सदस्यों को इस विषय में राजी न कर सके,तब सुखदेव ने भगतसिंह को ललकारा-‘‘जब तुम्हे मालूम है कि दूसरा कोई भी व्यक्ति दल के उद्देश्यों की जवाबदारी पूर्ण करने में तुमसे समर्थ नहीं है,तब तुमने केन्द्रीय समिति के सदस्यों को यह निर्णय करने क्यों दिया कि तुम्हारी जगह कोई और असेम्बली में बम डालने जायेगा ।‘‘ सुखदेव ने भगतसिंह को कायर,डरपोक,अहंकारी जाने क्या-कया कह डाला ।उन्होंने कहा-जिस प्रकार लाहौर हाईकोर्ट ने भाई परमानन्द के विरूद्ध निर्णय देते हुए कहा था कि वे दल के सूत्रभार व मस्तिष्क होते हुए भी डरपोक हैं,इसलिए संकट के समय दूसरों को आगे करते हैं ।इसी तरह की बातें तुम्हारे लिए भी कही जाएगी ।इस विषय में भगतसिंह ने सुखदेव को समझाने की असफल कोशिश की और सुखदेव के व्यंग्य बाणों का शिकार होते रहे ।भगतसिंह का मन मस्तिष्क जब सुखदेव के प्रहारों से घायल हो गया तब उन्होंने सुखदेव से कहा-तुम मेरा अपमान कर रहे हो ।चुप रहो मैं अपने मित्र के प्रति अपना कत्र्तव्य निभा रहा हूॅं-गरजे सुखदेव ।

आखिरकार केन्द्रीय समिति की दोबारा बैठक हुई ।बैठक में सुखदेव चुप रहे ।भगतसिंह ने तर्कपूर्ण आग्रह किया, फैसला हुआ-विजय कुमार सिन्हा के स्थान पर भगतसिंह के साथ बटुकेश्वरदत्त असेम्बली में बम फोड़ेंगें ।

बाद में सुखदेव सहित अन्य पर लाहौर षड़यंत्र का मुकद्मा चला ।सुखदेव का ध्यान बचाव में न था ।वे न्यायालय को ही क्रान्ति का प्रचार माध्यम मानते थे ।अंत में 7अतूबर,1930 को मुकदमें का निर्णय सुनाया गया ।सुखदेव इस षड़यंत्र के प्रमुख तथा भगतसिेह उनके दाहिने हाथ घोषित किये गये ।सुखदेव को क्रांतिकारियों के उद्देश्यों की सफलता पर कितना अडिग विश्वास था,इसका प्रमाण फाॅंसी से कुछ ही पहले महात्मा गाॅंधी के नाम लिखा उनका पत्र है जिसमें उन्होंने लिखा-‘‘क्रांतिकारियों का ध्येय इस देश में सोशलिस्ट प्रजातन्त्र प्रणाली स्थापित करना है।इस ध्येय में संशोधन की जरा भी गुंजाइश नहीं है।‘‘ वे गाॅंधी जी से प्रश्न पूछते हैं कि आपकी भी धारणा होगी कि क्रांतिकारी तर्कहीन होते हैं और उन्हें केवल विनाशकारी कार्यों में आनन्द आता है।सुखदेव आगे लिखते हैं-‘‘हम आपको बतला देना चाहते हैं कि यथार्थ में बात इसके बिल्कुल विपरीत है।वे प्रत्येक कदम आगे बढ़ाने के पहले अपने चारों तरफ की परिस्थितियों पर विचार कर लेते हैं।उन्हें अपनी जिम्मेदारी का ज्ञान हर समय बना रहता है।वे अपने क्रांतिकारी विधान में रचनात्मक अंश की उपयोगिता को मुख्य स्थान देते हैं यद्यपि मौजूदा परिस्थितियों में उन्हें केवल विनाशात्मक अंश की ओर ध्यान देना पड़ता है।वह दिन दूर नही जबकि क्रांतिकारियों के नेतृत्व में और उनके झण्डे के नीचे जन समुदाय उनके समाजवादी प्रजातंत्र के उच्च ध्येय की ओर बढ़ता हुआ दिखायी पड़ेगा ।महात्मा गाॅंधी को लिखे इस पत्र में सुखदेव ने लिखा,-‘‘फाॅंसी देने का हुक्म हुआ है और जिन्होंने संयोगवश देश में बहुत ख्याति प्राप्त कर ली है,क्रांतिकारी दल के सब कुछ नही हैं।वास्तव में इनकी सजाओं को बदल देने देश का उतना कल्याण न होगा,जितना इन्हें फाॅंसी पर चढ़ा देने से होगा ।‘‘

सुखदेव फूल की तरह कोमल परन्तु पाषाण से कठोर अपनी कोमल भावनाओं को,प्यार और ममता को निजी चीज समझ कर अपने अन्दर समेटे रहने वाले सुखदेव के व्यक्तित्व की सबसे खतरनाक चीज थी-उनकी मुस्कुराहट,जिसके पीछे शरारत के साथ साथ हर गलत चीज पर नफरत भरा व्यंग्य साफ साफ उभर आता था ।समाज की कुरीतियों,रूढ़ियों,राजनैतिक मतभेदों के प्रति गहरी उपेक्षा और विद्रोह का प्रतीक थी सुखदेव की मुस्कुराहट ।यहां तक कि बड़ी-बड़ी असफलताओं के आघात को भी वे अपनी मुस्कुराहट की उपेक्षा में डुबो देते थे ।यही र्निविकार भाव समेटे क्रांति का यह पुरोधा आजादी के सपने सजोये अपने हम सफरों भगतसिेह तथा राजगुरू के साथ फाॅंसी के तख्ते पर चढ़कर 23मार्च,1931 को क्रांति मार्ग आलोकित कर गया ।