Wednesday, December 1, 2010

भ्रष्टाचार का भारतीय राजनीति में विकास यात्रा
अरविन्द विद्रोही
भारत देश भ्रष्टाचार के सडे़ तालाब में परिवर्तित हो चुका है ।भ्रष्टाचार आज जो सरकारी लोकसेवकों के,राजनैतिक व्यक्तियांे के, व्यापारियो के,बहुत हद तक नागरिकों के भी नस-नस में रक्त बन कर प्रवाहित हो रहा है,उसका सबसे बड़ा कारण भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजनेताओं द्वारा किये गये भ्रष्टाचार पर परदा डालते रहना है।आजादी मिलने के तुरन्त बाद महात्मा गॉंधी ने उच्च पद पर आसीन व्यक्तियों के भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में चेतावनी दी थी।महात्मा गॉंधी ने 12जनवरी,1948 को प्रार्थना सभा में डी0के0 वेंकटपैया गुरू का पत्र उपस्थित जनों को सुनाया था।तत्कालीन विधायकों और मंत्रियों के भ्रष्टाचार के विषय में इस पत्र में लिखा था-डी0के0वेंकटपैया गुरू ने।इस दौर में कृष्णामेनन,चौ0ब्रह्मप्रकाश,प्रताप सिंह कैरों,टी0टी0कृष्णमाचारी,बख्शी गुलाम मुहम्मद आदि राजनेताओं को भ्रष्टाचार में लिप्त रहने के बावजूद सरकारी संरक्षण मिला।साठ के दशक में डा0 राम मनोहर लोहिया और मधु लिमये संसद में भ्रष्टाचार के राक्षस को खत्म करने के लिए पूरी ताकत से लडते थे।मस्तराम कपूर जी ने अपने एक लेख में लिखा है कि,-‘‘भ्रष्टाचार की गंगा का उद्गम गंगोत्री से हुआ अर्थात सर्वोच्च और पूज्य स्थान से।’’इस समय पंड़ित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे।‘नेशनल हेराल्ड’ को दिल्ली लाने की योजना नेहरू जी ने बनाई और पॉंच लाख की धनराशि का इन्तजाम करना तय हुआ।तत्कालीन विमानन मंत्री रफी अहमद किदवाई ने,हिमालयन एयरवे़ज के मालिक दो राणाओं से पच्चीस-पच्चीस हजार रूपये, अपने विभाग में ठेके देने के बदले में वसूल लिए।सरदार वल्लभ भाई पटेल के संज्ञान में यह बात आई तो उन्होनें जवाहर लाल नेहरू से इसकी शिकायत की तथा कड़ा प्रतिवाद किया।नेहरू के ‘नेशनल हेराल्ड’ को धर्मार्थ संस्था कहने पर पटेल ने आश्चर्य प्रकट किया।बाद में नेहरू ने पटेल को पत्र लिखकर रफी अहमद किदवाई द्वारा राणाओं से धनराशि लेने को उचित ठहराया।सरदार पटेल जैसे ईमानदार-दृढ़ संकल्पित व्यक्ति और पण्डित नेहरू जो कि पश्चिमी सभ्यता को तरक्की में सहयोगी मानते थे,के बीच उत्पन्न कटु सम्बन्धों का एक बडा कारण नेहरू जी द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपियों को संरक्षण देना था।मस्तराम कपूर के अनुसार,-‘‘चंूकि इस घटना से नेहरू जैसी शख्सियत का सम्बन्ध था,समाचार पत्रों,बुद्धिजीवियों ने इसे रफ़ा-दफ़ा कर दिया।लेकिन भ्रष्टाचार के लिए उर्वरा मिट्टी में दबा यह बीज़ आगे चलकर कितना विशाल वृक्ष बन गया,यह बताने की जरूरत नहीं।’’बताते चलें कि मुम्बई के प्रसिद्ध वकील एम0आर0जयकर ने असहयोग आन्दोलन के दिनों में महात्मा गॅंाधी के खादी प्रचार के लिए 25हजार रूपये दिये।अपनी आत्मकथा में जयकर ने लिखाः‘‘कुछ दिन बाद मोतीलाल नेहरू मेरे घर आए और कहने लगे कि मुझे एतराज न हो तो वे गॅंाधी जी को दिये गये रूपयों का इस्तेमाल ‘‘इंडिपेंडेण्ट’’ की वित्तीय कठिनाई दूर करने में कर लें।मोतीलाल की इस बात को सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।मैने कहा,मैने तो अपनी तरफ़ से दे ही दिये हैं,गॅंाधी जी जैसे चाहे। उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।बाद में मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि उस सारी रकम को ‘‘इंडिपेंडेण्ट’’ अखबार- जो कि मोतीलाल नेहरू का था,हजम कर गया।लेकिन इसके बदले में मुझे मोतीलाल की दोस्ती अवश्य मिल गयी।’’
मोतीलाल नेहरू,जवाहरलाल नेहरू से सम्बन्धित ये प्रसंग मनुष्य की स्वभावगत् कमजोरी के प्रतीक हैं।यह हजारों रूपयों का सिलसिला,उच्च पदासीन नेताओं के भ्रष्टाचार का सिलसिला,इंदिरा गॅंाधी-संजय गॅंाधी-राजीव गॅंाधी के समय तक पहॅंुचते-पहॅंुचते करोड़ों के खेल में बदल गया।बोफोर्स का जिन्न आज तक मंडरा रहा है।संजय गॅंाधी के प्रभाव काल में,आपातकाल के दौरान भ्रष्टाचार ने विराट रूप धारण किया। सरकारी ठेकों की कमीशनबाजी अफसरों के हाथ से छीनकर मंत्रियों ने अपने हाथ में ले लिया।तस्करों के साथ साझेदारी के रूप में एक नया अवैध धन का श्रोत इस समय खुला।जनता पार्टी की सरकार ने जब ईमानदारी पूर्वक आयोगों का गठन कर घोटालों का पर्दाफाश शुरू किया तो भ्रष्टाचार पर पोषित पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने ही इन आयोगों के खिलाफ़ आवाज उठायी और इसे बदले की कार्यवाही करार दे दिया।जब कंाग्रेस पुनः सत्ता में आई तो एक-एक करके सारे मामले वापस ले लिए गये तथा आयोगों को बन्द कर दिया गया।जनता पार्टी की सरकार में पहली बार सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की व्यापक वैधानिक कार्यवाही हो रही थी। महात्मा गॅंाधी ने 12जनवरी,1948 को प्रार्थना सभा में भ्रष्टाचार पर जो चिन्ता व्यक्त की थी,उसका विधिवत इलाज जनता पार्टी की सरकार कर रही थी,परन्तु राजनीति के अर्न्तविरोध की परिणति स्वरूप यह सरकार गिर गयी।
अवैध धनसंग्रहों के टुटपंुजिया तरीकों का स्थान योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी सोैदो की दलाली से पैसा बनाना सन1980 के चुनावों से व्यापक रूप में प्रचलित हो गया।भ्रष्टाचार के आकण्ठ में डुबे,भ्रष्टाचार के प्रतीक अब्दुल रहमान अंतुले,जगन्नाथ मिश्र,भजनलाल, रामलाल गंुडुराव,जानकी वल्लभ पटनायक,भास्कर राव और निलंगेकर अपने कारनामों से प्रसिद्धि बटोरते रहे।भ्रष्ट नौकरशाही,कमजोर न्याय पालिका और दिशाहीन विपक्ष के कारण यह समय भ्रष्टाचारियों के लिए मुफ़ीद समय साबित हुआ।1980 का दशक वह दौर था जिसमें सरकारी कार्यालयों में विकास की योजनाओं में लूट तो जारी ही रही,प्राकृतिक सम्पदा के भण्ड़ारों,राजकीय उपक्रमों और जमीन आदि को पूॅंजीपतियों के नाम करने,ठेके पर देने,दोहन करने,लाइसेन्स देने,करों में रियायत देने आदि की दलाली में नौकरशाहों और राजनेताओं ने करोड़ों रूपया कमाना शुरू किया।स्विटजरलैण्ड की प्रसिद्ध पत्रिका स्वाइजर इलस्टायटी 1991 के अनुसार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी का स्विस बैंक खातों में 46अरब,25करोड़ रूपये जमा हैं।अर्थशास्त्री बी0एम0भाटिया द्वारा लिखित इण्डियाज मिड़िल क्लास के अनुसार स्विस बैंकों में भारतीयों का काला धन विश्व बैंक की 1986 की रिपोर्ट के अनुसार तब 13अरब रूपये था।स्विटजरलैण्ड के दिल्ली स्थित दूतावास के उपप्रमुख के बयान जो कि 26मार्च,1997 के आउटलुक में छपा था,के अनुसार-स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल जमा धन लगभग दो खरब 80अरब रूपये था।स्विस बैंकिंग एसोसिएशन की 2006 की रपट के आधार पर 8-9मई,2007 को सी एन एन-आई बी एन न्यूज चैनल ने बताया कि स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा राशि 1456अरब डालर है।यदि डॉलर का मूल्य औसतन 40रूपये भी मान लिया जाये तो यह धनराशि 582खरब,40अरब रूपये होगी।आज के समय में भ्रष्ट भारतीयों का अथाह काला धन विदेशों में जमा होने व उसको वापस भारत लाने की बात जोर-शोर से उठायी जा रही है।
भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी व दुःखद पहलू यह है कि राजनेता जो समाज के लिए श्रेष्ठ नैतिक आचरण के लिए आदर्श माने जाते थे,आजादी के बाद शनैःशनैः भ्रष्टाचार,अपराध के पर्याय बन गये हैं।चन्द राजनैतिज्ञों को छोड़कर सभी पूॅंजीवादी सोच व भ्रष्ट तंत्र के वाहक बन चुके हैं।जिस देश की आम जनता आज भी हाड़-तोड़ मेहनत के पश्चात् बुनियादी पारिवारिक जरूरतों को पूरा न कर पाने की समस्या से बेजार है,उसी देश के,उसी आम जनता के मतों से निर्वाचित नेताओं की ऐयाशी व जीवन शैली मानवता को शर्मसार करने वाली है।देश का न्यायालय तक इस भ्रष्टाचार से नही बचा है और सर्वोच्च न्यायालय भी इस विषय पर अब मुखरित हो चुका है।लगभग सभी सत्ता में रहे राजनेता भ्रष्टाचार के आरोपी हैं,इस नासूर बन चुके भ्रष्टाचार का उपचार कौन करेगा????