Sunday, January 22, 2012

सत्ता के लिए समाजवादी सिद्धांतो का त्याग सर्वथा अनुचित है --- अरविन्द विद्रोही

दुर्भाग्य ही है कि आज कांग्रेस सरकार की मदद अपने को डॉ लोहिया के लोग मानने वाले समाजवादी लोग ही कर रहे है डॉ लोहिया की गैरकांग्रेस वाद की अवधारणा को दरकिनार कर कांग्रेस की सरकार को समर्थन जारी है | राहुल गाँधी को काले झंडे दिखाने वाले युवा को समाजवादी पार्टी से निकालना क्या साबित करता है? कांग्रेस के साथ रिश्ते ख़त्म होने चाहिए चाहे सरकार बने या ना बने |सत्ता के लिए सिद्धांतो का त्याग सर्वथा अनुचित है ,अनुचित कार्यो का साथ हम समाजवादी नहीं दे सकते है |उत्तर प्रदेश में चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की मिली जुली सरकार की संभावनाओ से ही समाजवादी पार्टी को बसपा -कांग्रेस की सरकारों से नाराज़ मतदाताओ का उपहार स्वरुप मिलने वाला मत अब नहीं मिलता दिख रहा है |चुनाव में मतदान की तारीख निकट आते आते ये समाजवादी पार्टी के नेता गण जाने क्यूँ आम जनता की बात त्याग कर मुस्लिम और बाबरी मस्जिद की चर्चा करने लगे है |उत्तर प्रदेश में आम जनमानस में समाजवादी पार्टी बिना किसी बाबरी मस्जिद के सवाल को उठाये अपने कार्यकर्ताओ के संघर्ष की बदौलत बसपा के मुकाबिल अपना स्थान बना चुकी थी लेकिन जब से बाबरी मस्जिद की चर्चा सपा नेतृत्व ने शुरु की है परिस्थिति बदल गयी है | अगर हिन्दू और मुस्लिम की बात होगी ,अगर बाबरी मस्जिद की चर्चा होगी तो अपने आप हिन्दू एक साथ उस जगह जायेगा जहा हिंदुत्व की ही बात होगी ,हिन्दू को भी अपने प्रभु श्री राम के जन्मभूमि पर जबरन काबिज़ होकर बनाये गये ढांचे और मुग़ल आक्रंताओ के द्वारा ढहाए गये जुल्म की याद दिलाने वाले नेताओ की बात समझ में आने लगेगी | राजनीति में प्रत्येक समुदाय की भावना का सम्मान समान रूप से करने की सोच होनी चाहिए ,समाजवादियो को धार्मिक राजनीति में ना पड़कर समाज के सभी लोगो के लिए एक समान भाव रखना चाहिए |सिर्फ मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने के फेर में भारी संख्या में हिन्दू मतदाता समाजवादी पार्टी से दूर जा सकता है इसका अंदाज़ा शायद समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नहीं है | अगर बात मुस्लिम मतदाताओ की ही की जाये तो इस बार के उत्तर प्रदेश के आम चुनावो में मुस्लिम मतदाता डॉ अय्यूब के नेतृत्व में पीस पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा है और वहा पे कोई भी अलगाव की बात ना होकर एकता और देश की तरक्की में हिन्दू-मुस्लिम साथ चलने की बात हो रही है ,जिसको हिन्दू मतदाता भी पसंद कर रहा है |समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को अभी भी यह समझ लेना चाहिए कि बसपा के खिलाफ जो संघर्ष बोते वर्षो में उसके समर्पित कार्यकर्ताओ ने किया है उसकी ही बदौलत उसका जनाधार बढ़ा है और जनता ने उसको पसंद करना ,उसके नेताओ के भाषण को सुनने आना शुरु किया था ,अनर्गल बयानबाज़ी और सिर्फ एक समुदाय के प्रति अतिरेक लगाव से दुसरे समुदाय के लोग भी नाराज़ हो कर अपना फैसला बदल सकते है | जाती-धर्म आधारित राजनीति को त्याग कर समाज-जमात की राजनीति की समाजवादी सोच को आगे बढ़ाना ज्यादा बेहतर है |