Friday, April 29, 2011

समाजवादी आन्दोलन-संघर्ष और सत्ता

समाजवादी आन्दोलन-संघर्ष और सत्ता

अरविन्द विद्रोही
डा0 राम मनोहर लोहिया ने समाजवादी आन्दोलन को सार्थक व सही राह पर चलाने के लिए 1957 में ही कहा था - किसी भी बड़े आन्दोलन में एक अजीब तरह की वाहियात चीज या मोड़ बन जाया करता है। एक तरफ वे लोग जो कि आन्दोलन के उद्देश्यों के लिए तकलीफ उठाते हैं, दूसरी तरफ वे लोग जो आन्दोलन के सफल होने के बाद उसके हुकूमती काम-काज को चलाते हैं। और आप याद रखना कि ये संसार के इतिहास में हमेशा ही हुआ है लेकिन इतना बुरी तरह से नहीं हुआ कभी जितना कि हिन्दुस्तान में हुआ है। और मुझे खतरा लगता है कि कहीं सोशलिस्ट पार्टी की हुकूमत में भी एैसा न हो जाये कि लड़ने वालों का तो एक गिरोह बने और जब हुकूमत का काम चलाने का वक्त आये तब दूसरा गिरोह आ जाये।
डा0 राम मनोहर लोहिया की यह आशंका दुर्भाग्य-वश अक्षरशः सत्य साबित हुई।डा0 लोहिया के धुर अनुयायी मुलायम सिंह यादव भी बगैर संघर्ष किये हुकूमत चलाने वाले गिरोह के मोहपाश में जकड़ गये थे।तमाम खांटी समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव से दूर होते गये और मजे की बात यह है कि इन सबके दूर जाने के पीछे था सिर्फ एक चेहरा अमर सिंह। यह वह दौर था जब सपा में फिल्मी सितारों,खिलाड़ियों,पॅंूजीपतियों,ठेकेदारों, का वर्चस्व कायम हुआ। समाजवादी कार्यकर्ताओं के संघर्ष व त्याग के मूल्य की जगह ग्लैमर व दौलत ने ले लिया। कालान्तर में उ0प्र0 व केन्द्र दोनों जगह की सरकारों में सपा की कोई भागीदारी न रहने के कारण मौका पाकर व्यावसायिक नेता ने सपा व मुलायम सिंह यादव दोनों से किनारा कर लिया और अपना अलग राजनैतिक दल बना लिया।सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के लिए यह आघात के साथ-साथ एक सबक भी था।व्यावसायिक,आपराधिक प्रवृत्ति के दलबदलू लोग निहायत ही स्वार्थी व लोभी होते हैं।इन स्वार्थी लोगों का किसी भी राजनैतिक विचारधारा से कोई लगाव नहीं होता है। किसी भी संगठन से,उसके प्रचार-प्रसार से, विचारों के अनुपालन से इन तत्वों की कोई भी दिलचस्पी नहीं होती है। यह अवसरवादी प्रजाति के सर्वव्यापी जीव होते हैं तथा सरकार में रहकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। यह जनता का रूझान भांप कर उसी दल में प्रवेश करते हैं जिसकी सरकार बनने की उम्मीद होती है।
खतरा बहुत बड़ा है समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के नेतृत्व पर भी। एक तरफ दमनात्मक व अलोकतांत्रिक कार्यवाही पर आमादा उ0प्र0 की बसपा सरकार, दूसरी तरफ संघर्ष के पश्चात् सपा में संगठन में ही मौजूद गणेश परिक्रमा करने वाले,पूॅजीपतियों,स्वार्थी प्रवृत्ति के लोगों को नेतृत्व द्वारा तवज्जों दिये जाने का आंतरिक भय। और यह आंतरिक भय टिकट वितरण के बाद असंतोष के रूप में सामने आ रहा है।सड़क पर उतर कर गॉंव-गॉंव में जा कर जनता के दुःख-दर्द को बॉंटने वाला कार्यकर्ता या नेता कहॉं रोज मुख्यालय पर हाजिरी लगा पायेगा,इस तथ्य को समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को संज्ञान में लेना चाहिए। एक बात और है समाजवादी पार्टी में कौन-कौन कार्यकर्ता व नेता अपने संगठन के कार्यक्रमों को मनोयोग से पूरा किया है,इसकी पुख्ता जानकारी नेतृत्व के पास होनी चाहिए।
डा0 लोहिया ने संगठन के संदर्भ में भी सचेत किया था कि संगठन में जो लोग आयें उनमें सहयोगिता होनी चाहिए। अगर संगठन चलाना है तो व्यक्तिवाद कैसे चल सकता है? दोनों में सहअस्तित्व नहीं हो सकता है।जब संगठन चलेगा तो व्यक्तिवाद को खत्म करना ही पडेगा। पूरी तरह से खत्म करना नामुमकिन है क्योंकि हम लोग पूरी तरह से तो अच्छे हो नही सकते। लेकिन जिस हद तक व्यक्तिवाद को खत्म करना जरूरी है,करना पड़ेगा।

Thursday, April 7, 2011

मंगल पाण्डेय-1857 के गदर का प्रथम बलिदानी

मंगल पाण्डेय-1857 के गदर का प्रथम बलिदानी
अरविन्द विद्रोही
8 अप्रैल,1857 के दिन बैरकपुर की रेजीमेण्ट के एक सिपाही को फौजी अनुशासन भंग करने तथा हत्या करने के अपराध में फांसी पर चढ़ाया गया। फांसी चढ़ाने के लिए कोई स्थानीय जल्लाद न मिला। कलकत्ता से चार जल्लादों को बुलाकर इस फौजी को फॉंसी दी गई।यह फौजी था भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का प्रथम योद्धा-मंगल पाण्ड़ेय।
अजीमुल्ला खॉं द्वारा अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल करके तैयार की गई 31मई,1857 के गदर की योजना को क्रियान्वित नाना साहेब पेशवा ने किया, परन्तु मातृभूमि की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले प्रथम योद्धा हैं-मंगल पाण्ड़ेय। भारतीय क्रान्ति के अग्रदूत-मंगल पाण्डेय एक देशभक्त तथा धर्मपरायण व्यक्ति थे। बैरकपुर की 19नम्बर रेजीमेण्ट के भावुक तथा जोशीले सिपाही मंगल पाण्डेय का क्रोध मानों सातवें आसमान पर जा पहुॅंचा, जब यह खबर फैली कि अंग्रेजों द्वारा गाय तथा सूअर की चर्बी व खून का प्रयोग करके बनायी गई कारतूसों को रेजीमेण्ट में भेजा गया है। रेजीमेण्ट में असंतोष फैल गया।अंग्रेजों ने समझाया कि यैसा कुछ भी नहीं किया गया है परन्तु गो मांस भक्षी अंग्रेजों की बातों का रेजीमेण्ट में किसी को विश्वास नहीं हुआ। 31मई,1857 के गदर की तैयारी के लिए बैरकपुर में रेजीमेण्ट का मुखिया वजीर अली खॉं को बनाया गया था। कारतूसों को इस्तेमाल करने से इंकार कर देने के कारण रेजीमेण्ट को निशस्त्र करने की योजना अंग्रेजों द्वारा बनायी गई। इसकी भनक लगते ही भावुक ह्दय के जोशीले-धार्मिक-देशभक्त मंगल पाण्डेय संभवतः अपने मनोभावों एवं शक्ति पर नियंत्रण न रख सके अपितु रखना भी नहीं चाहा होगा। वो तो बलिदान की सजी हुई वेदी में प्रथम आहुति देने को उद्वेलित मानस था। सोचा होगा,‘‘ विद्रोह करना ही है तो कई मास बाद क्यो।? अभी क्यों नहीं?कहीं बर्मा से गोरी पलटन न आ जाये?‘‘ यह विचार मनो-मस्तिश्क में कौंधने लगे मंगल पाण्डेय के। क्रान्ति की धधकती ज्वाला में आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक कारणों के साथ-साथ धार्मिक कारण के जुड़ जाने से ज्वाला ने मंगल पाण्डेय के तन-बदन में आग लगा दी। समस्त कारणों ने एक सूत्र में एकत्र होकर गुलामी की बेडियां काटने के लिए मंगल पाण्डेय के भावुक-जोशीले मन को उद्वेलित कर दिया। फिरंगियों के प्रति घृणा,विद्वेष,असंतोष की अग्नि ने 29मार्च,1857 को पहली गोली चलाने पर विवश कर दिया,छेड़ दिया स्वतन्त्रता-संग्राम मंगल पाण्डेय ने। गुलामी की जंजीरों को काटने को बेचैन मन ने किस तरह विद्रोह की आधारशिला रखी,यह इतिहास में दर्ज हो चुका है।
29मार्च,1857 के दिन बैरकपुर की छावनी में अपने कमरे में बैठे मंगल पाण्डेय ने अचानक अपनी बन्दूक को उठाकर, माथे पर लगाकर चूमा। भारत माता की बारम्बार स्तुति करते हुए मंगल पाण्डेय ने बन्दूक में गोली भरी। शेर की तरह वीर मंगल पाण्डेय परेड ग्राउण्ड की तरफ चल पडे़। दमकता ललाट,गर्व से चौडी छाती,बलिदान की महान भावना से ओत-प्रोत आत्मा और नश्वर शरीर मानों साक्षात् काल अपने शिकार की तरफ लपका हो। साथियों ने रोका, मंगल पाण्डेय ने ललकारा, ‘‘व्यर्थ प्रतीक्षा मत करो। चलो,आज ही फैसला करो। आज ही फिरंगियो। का सफाया करो। भाइयों,उठो,आप पीछे क्यों हट रहे हो?‘‘ उन्होंने धर्म की सौगन्ध देते हुए ललकारा, ‘‘स्वतन्त्रता की देवी तुम्हें पुकार रही है और कह रही है कि तुम्हें धोखेबाज तथा मक्कार शत्रुओं पर फौरन आक्रमण बोल देना चाहिए। अब और रूकने की आवश्यकता नहीं है।‘‘ अन्य सिपाहियों के भाव क्रान्तिकारी नेताओं के निर्देशों की डोर में बधें रहे। मंगल पाण्डेय ने सिंहनाद कर दिया। सिंह की चपेट में ब्रितानिया हुकूमत का सार्जेन्ट मेजर ह्यूसन आ गया। सार्जेन्ट ने मंगल पाण्डेय की गिरफतारी का आदेष दिया, कोई सिपाही आगे नहीं बढ़ा। सिंह की आंखे शोले उगल रही थीं, आत्मा रक्तदान के लिए तड़प रही थी। ठॉंय की आवाज हुई और सार्जेण्ट ह्यूसन जमीन चाटने लगा। दूसरा अंग्रेज अफसर लेफटीनेण्ट बॉब घोडे पर सवार होकर मंगल पाण्डेय की तरफ झपटा। मंगल पाण्डेय ने दूसरी गोली चला दी, गोली घोडे को लगी,घोडा व बॉब दोनो गिर पडे। बॉब ने पिस्टल से मंगल पाण्डेय पर फायर किया। निशाना चूका। मंगल पाण्डेय ने तलवार से अंग्रेज बॉब को मौत के घाट उतार दिया। इसी समय एक अंग्रेज ने पीछे से मंगल पाण्डेय पर हमला किया। एक भारतीय सिपाही ने जोर से बन्दूक का कुन्दा उस अंग्रेज के सर पर मारा,अंग्रेज का सिर फट गया और वह धरती पर गिर पड़ा। मंगल पाण्डेय की ऑंखें क्रान्ति की ज्वालायें बरसा रहीं थी। विद्रोह की खबर कर्नल व्हीलर को मिली। परेड-ग्राउण्ड में पहुॅंच कर उसने भारतीय सैनिकों को आज्ञा दी,‘‘पाण्डेय को गिरफतार करो।‘‘ सिपाहियों के मध्य से सिंहनाद हुआ, ‘‘खबरदार,मंगल पाण्डेय को कोई हाथ न लगाये। हम ब्राह्मण देवता का बाल भी बांका न होने दे।गें।‘‘ कर्नल व्हीलर ने अंग्रेजों की लाशें देखीं, मंगल पाण्डेय का रक्त से सना शरीर देखा तथा विद्रोह के मुहाने पर खड़ी फौज को देखा और कुछ सोचता हुआ लौट गया। उसने जनरल हियरे को खबर की। अंग्रेज सेना के साथ हियरे परेड ग्राउण्ड आ धमका। मंगल पाण्डेय ने अंग्रेज सेना को आते देखकर गर्जना की,‘‘भाइयों,बगावत करो,बगावत करो। अब देर करना उचित नहीं। देश को तुम्हारा बलिदान चाहिए।‘‘ परन्तु भारतीय सिपाही 31मई की तय तारीख और क्रान्तिकारी आन्दोलन के अनुशासन के कारण शान्त रहे। मंगल पाण्डेय ने तत्काल अपनी छाती पर नाल रखकर गोली चला दी। वह नहीं चाहते थे कि अंग्रेज जीवित पकड़ कर उनकी दुर्गति कर दें। दुर्भाग्य वश वो मरे नहीं, अंग्रेजों ने फौजी अस्पताल में इलाज कराया।ठीक होने पर उन पर फौजी अनुशासन भंग करने का तथा हत्या का मुकदमा चला। मंगल पाण्डेय ने कहा,‘‘जिन अंग्रेजों पर मैने गोली चलाई, उनसे मेरा कोई बैर नहीं था , झगड़ा व्यक्तियों का नहीं,दो देशों का है। हम नहीं चाहते कि दूसरों के गुलाम बन कर रहें। फिरंगियों को हम अपने देश से निकाल देना चाहते हैं।‘‘अदालत ने मंगल पाण्डेय को सजा-ए-मौत की सजा सुनाई। 8अप्रैल,1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई।