Thursday, October 28, 2010

पंचायती चुनाव-लोकतन्त्र या भीड़तन्त्र

उ0प्र0 में पंचायती चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं।चार चरणों में सम्पन्न हुए पंचायती चुनावों ने लोकतन्त्र के वर्तमान स्वरूप को ही कठघरे में खडा कर दिया है।चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव आचार संहिता की प्रतिक्षण धज्जियां उडाते हुए तमाम प्रत्याशियों ने अपनी पूॅंजी एवं शक्ति के दम-खम पर ईमानदार-कर्मठ व नेक प्रवृत्ति के सामाजिक सोच रखने वाले प्रत्याशियों को प्रारम्भिक दौर में ही नेपथ्य में धकेल दिया था।निरंकुश,धनमद व शक्तिमद में चूर तमाम प्रत्याशियों ने पंचायत चुनाव में जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने के लिए कोई भी अनैतिक रास्ता छोडा नही।प्रलोभन का रास्ता विफल हो जाने पर विपक्षी की हत्या जैसा जघन्य कृत्य भी उ0प्र0 पंचायत चुनाव में घटित हुआ।प्रत्याशी की हत्या में शामिल नामजद आरोपी पंचायत चुनाव में प्रत्याशी बने रहे,यह स्वच्छ व निर्भीक मतदान कराने की चुनाव आयोग की घोषणा का मजाक व माखौल नहीं है तो आखिर है क्या?

जनता का प्रतिनिधि बनने के लिए व्यावसायिक व आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों ने विगत 3-4 महीने बहुत ही मशक्कत की है।जिन्होंने कभी भी किसी भूखे को नही खिलाया न ही किसी प्यासे को कभी पानी पिलाया,वही लोग पंचायती चुनाव में विभिन्न पदों पर निर्वाचित होने के लिए दावतों का आयोजन प्रतिदिन करते रहे।शराब की रिकार्ड तोड बिक्री चुनाव में शराब के अन्धाधुन्ध इस्तेमाल का प्रत्यक्ष प्रमाण है।उपहार के रूप में साड़ी,कपड़ा के साथ-साथ नकदी ने मतदाताओं के आंखों पर व्यक्तिगत स्वार्थ व धनलोलुपता की पट्टी बांध दी थी।

चुनाव आचार संहिता का माखौल उडाते हुए पूॅंजी के दम पर चुनाव लड़ रहे आपराधिक व गैर सामाजिक प्रवृत्ति के प्रत्याशियों ने शराब बांट कर व शराब पिला कर मतदाताओं का समर्थन जुटाने व मत हासिल करने पर ज्यादा जोर दिया।यह अनैतिक तरीका काफी असरदायक व फायदेमंद साबित हुआ।इस अनैतिक कृत्य के खिलाफ गिने-चुने ईमानदार सामाजिक प्रत्याशियों ने जनता के बीच आवाज उठानी प्रारम्भ की।जनता के एक बडे तबके का रूझान भी शराब-खेरी के खिलाफ बनना प्रारम्भ हुआ।बहुतायत में मतदाताओं ने शराबखोरी व पैसा वितरण जैसा घृणित अनैतिक काम करने वालों को चुनावों में शिकस्त देने के लिए ईमानदार व सशक्त प्रत्याशी की तलाश भी प्रारम्भ की।इन परिस्थितियों को भंापकर व्यावसायिक क्षेत्र के तमाम प्रत्याशियों ने भी सामाजिक-राजनैतिक ईमानदार प्रत्याशियों के वक्तव्यों को दोहराना व जनता के बीच कहना शुरू कर दिया।साथ ही साथ उन्होने एक कुशल व्यावसायी की भांति अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए शराब पिलाने में पैसा न खर्च करके जगह-जगह हैण्डपम्प लगवाने,मरम्मत करवाने,मंदिर-मस्जिद का सौन्दर्यीकरण करवाने,क्षेत्र के बीमार लोगों को आर्थिक सहायता करने,क्षेत्र के मृत व्यक्तियों के अंत्येष्टि संस्कार में शामिल होकर आर्थिक सहायता करना आदि जैसा आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का काम मरना प्रारम्भ किया।क्षेत्र की एक आबादी पैसे की ताकत पर शराब,साड़ी व नकदी के जरिए बहक गई तथा धार्मिक व व्यक्तिगत लाभ के दृष्टिकोण से तमाम मतदाता व्यावसायिक प्रत्याशियों की तरफ चले गये।मतदाताओं का बड़ा तबका जातिवाद में फंसा रहा।जातिवाद,तात्कालिक लाभ,शराबखोरी,धार्मिक उन्माद,प्रलोभन व आतंक के जाल में फंस कर आदर्श चुनाव संहिता ने दम तोड़ दिया और तमाम शिकायतों व प्रत्यक्ष प्रमाणों के पश्चात भी चुनाव आयोग मौन रहा।

सामाजिक-राजनैतिक आचरण को नकारते हुए चुनाव जीतने की लालसा में जिस प्रकार का आचरण बहुतायत में प्रत्याशियों ने किया और उनके अनैतिक आचरण के प्रभाव में आकर जाति-धर्म के फेर में पड़कर,धन वितरण,शराब खोरी,व्यक्तिगत तात्कालिक लाभ के फेर में पड़कर जो समर्थन व मत देने नहीं अपितु बेचने का कार्य जाने-अनजाने मतदाताओं ने किया है,उसका परिणाम मतगणना के पूर्व ही सामने आ चुका है।सामाजिक-राजनैतिक चरित्र के प्रत्याशियों की बहुतायत में हार व धनवान,व्यावसायिक व आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। सम्पन्न हुए पंचायती चुनाव ने सही अर्थों में साबित कर दिया है कि लोकतनत्र अब भीड़तन्त्र में बदल गया,जहां आदर्श-शुचिता-सदाचरण-ईमानदारी-नेकी जैसी बातें बेमानी हैं।

पंचायती चुनाव-जनप्रतिनिधि चयन के आधार
अरविन्द विद्रोही

उत्तर-प्रदेश में पंचायती राज चुनाव में नामांकन प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है।समस्त पदों ग्राम्य प्रधान,ग्राम्य पंचायत सदस्य,क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा जिला पंचायत सदस्य के सभी दावेदार सामने आ चुके हैं।समाज के प्राथमिक स्तर को,ग्राम्य विकास के प्रारम्भिक,प्रत्यक्ष व आघारभूत आधार को मजबूत करने का उत्तर-दायित्व इन पदों पर होता है।इन पदांे के लिए जनता के सम्मुख अपना प्रतिनिधि चयनित करने का अवसर पुनःआ गया है।आज इस निर्वाचन की बेला में प्रत्याशी गण वायदों की पोटली खोले घूमना प्रारम्भ कर चुके हैं।ऐन-केन प्रकारेण मतदाताओं को अपने-अपने पाले में करके विजयश्री प्राप्त करने की फिराक में सभी प्रत्याशी गण लगे हैं।मतदाता को क्या करना चाहिए?इन प्रत्याशियों में से किस प्रकार मतदाता योग्य प्रतिनिधि निर्वाचित करे,यह प्रश्न उठना लाजिमी है।

मतदाता अपना जनप्रतिनिधि चयनित करने के लिए जातिवाद,सम्प्रदायवाद,क्षेत्रवाद,शराब-खोरी,धनलिप्सा,गुण्ड़ागर्दी आदि तरीकों के बीच अपना जनप्रतिनिधि चुनता है।दुर्भाग्य-वश मतदाता इन्हीं में से किसी तरीके के प्रभाव में आकर मतदान कर देता है।मतदान के पूर्व मतदाता को जनप्रतिनिधि चयनित करने के लिए पूर्वाग्रहों व वादों से विरत् होकर चयन के आधार बनाना चाहिए।यैसे प्रत्याशियों को मत देना सर्वथा उचित होगा जो कि सामाजिक,सांस्कारिक,मिलनसार,योग्य,कर्मठ,निर्भीक हो।जनता के प्रति,सममानित मतदाता के प्रति,समाज व राष्ट के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाले प्रत्याशी को अपना मत देना चाहिए।जनता व समाज के प्रति जवाबदेही योग्य जनप्रतिनिधि चयन का मूल आधार होना चाहिए।यैसा प्रत्याशी जो व्यक्तिगत,सार्वजनिक,राजनैतिक जीवन में ईमानदार व सह्दय हो-वही जनता के अमूल्य मत का पात्र है।

जिस प्रकार वर्षा ऋतु में तमाम खर-पतवार,जंगली,अनुपयोगी पौधे उग आते हैं,ठीक उसी प्रकार विकास के धन के लुटेरे भी चुनाव लड़ने की बेला में जनता के बीच हाथ जोड़ कर अपना मिथ्या जाल फैला कर,जनता-मतदाता को फंसाकर अमूल्य मत को लूटने आ जाते हैं।एैसे तमाम लोग जो कभी भी समाज में लोगों से,पास-पड़ोस के निवासियों से दुःख-सुख में मिलना गवारा नहीं समझते हैं,अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते हैं,ग्राम्य विकास विभाग में व पंचायती राज विभाग में विकास के लिए आवण्टित अथाह-प्रचुर धनराशि के लालच में पेशेवर तरीकें से जनप्रतिनिधि बनने के लिए चुनावी समर के योद्धा बन जाते हैं।वर्चस्व बरकरार रखने,बढ़ाने व विकास का धन लूटने के फेर में प्रतिद्वन्दी प्रत्याशी की हत्या तक से गुरेज बाहुबली व धनमद में चूर लोग नहीं करते हैं।मतदाता ही किसी भी प्रत्याशी का भाग्य-विधाता होता है।मतदाताओं को एैसे प्रत्याशियों को नकार देना चाहिए जो कि सिर्फ चुनावी बेला में सामाजिक जीवन में आयें हों।गुण्ड़ों,अपराधियों,उनके संरक्षण दाताओं व सहयोगियों को किसी भी कीमत या दबाव में अपना मत व समर्थन नहीं देना चाहिए।मतदाता का मत व समर्थन इन असामाजिक तत्वों को और मजबूती प्रदान करता है।बहुत से प्रत्याशी चुनाव लड़ने के दौरान माॅंस व मदिरा के ही सहारे चुनावी वैतरणी पार करने में लगे रहते हैं,इनको सिरे से नकारना अपने स्वयं के लिए,अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सबके हित में है।सत्तामद में चूर गैर-जिम्मेदार,पूॅंजीवादी विचारों के वाहकों,विकास का धन लूटने वाले तथा विकास का धन लूटने का इरादा रखते हुए आज चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं पर धन लुटाने वालों को नकार देना श्रेयस्कर व लोकतन्त्र के रक्षार्थ कार्य होगा।फर्जी व बोगस मतदाताओं के सहारे जनप्रतिनिधि बनने की कोशिश करने वालों का चुनाव में किसी भी प्रकार से सहयोग नहीं करना चाहिए।
पंचायती चुनाव-प्रत्याशी व मतदाता
अरविन्द विद्रोही

उ0प्र0 में पंचायत राज चुनाव की अधिसूचना जारी होने,आदर्श आचार चुनाव संहिता लागू होने के बाद चुनाव की सरगर्मी व प्रत्याशियों के करतब दिन दूना रात चैगुना बढ़ गये हैं।ऐन केन प्रकारेण पंचायत चुनाव में प्रतिनिधि निर्वाचित होने के लिए तमाम पदों के प्रत्याशी राजनैतिक दांव पेंच खेलने व बनाने में मशगूल हैं।जातीय आंकडे,जातीय नेताओं का आर्शीवाद,धन-बल,बाहुबल,सत्ता की धमक जैसे विभिन्न अस्त्रों-शस्त्रों से लैस प्रत्याशी गण अब मतदाताओं को अपना शिकार बनाने में जुट गये हैं।आबकारी विभाग के सूत्रों के अनुसार मदिरा की बिक्री में गुणोत्तर वृद्धि का एक मात्र कारण उ0प्र0 में पंचायती राज चुनाव है।

आखिर पंचायत चुनाव क्यों होते हैं?प्रत्याशी चुनाव में क्यों खडे़ हैं?प्रत्याशियों के चुनाव में खडे़ होने का कारण क्या है?प्रत्याशी की सोच क्या है?मतदाता प्रत्याशी चयन में क्या सोचता है?यह सवाल मेरे समझ से परे होते जा रहा है।राजनीति एक समय समाज-सेवा का माध्यम होती थी।राजनैतिक-सामाजिक व्यक्ति किसी विचार धारा का समर्पित कार्यकर्ता होता था।विचारधारा आधारित राजनीति कब व्यक्तित्व आधारित राजनीति में तब्दील हो गई,पता ही नहीं चला।विचार धारा व सिद्धान्त के अनुयायियों का स्थान व्यक्ति विशेष की चरण वन्दना-स्तुति गान करने वाले चाटुकारों ने ले लिया।व्यक्ति आधारित राजनीति के कारण ही आज राजनैतिक-सामाजिक मूल्य बिखर से गये हैं।भारतीय प्रजातांत्रिक राजनीति आज स्याह और संकीर्ण हो चुकी है।बाल गंगाधर तिलक,वीर सावरकर,करतार सिंह सराभा,अशफाक उल्लाह खान,भगत सिंह,शचीन्द्र नाथ सान्याल,महात्मा गाॅंधी,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,डा0भीमराव अम्बेडकर,डा0राममनोहर लोहिया,जय प्रकाश नारायण,संत विनोबा भावे,आचार्य नरेन्द्र देव,चैधरी चरण सिंह आदि महान विभूतियों की विचारधारा आधारित राजनीति व देश के प्रति अनूठा समर्पण तथा त्याग की भावना से मानों कोई प्रेरणा लेना ही नहीं चाहता।

आज राजनीति गुण्ड़ों,अपराधियों,भ्रष्टाचारियों,अवसरवादियों की पनाहगाह बन चुकी है।राजनैतिक-सामाजिक मूल्यों की गिरावट ने राजनीति में भी चरित्र पर विपरीत प्रभाव डाला है।विकास के लिए आवण्टित प्रचुर मात्रा में धन की उपलब्धता ने राजनीति में लुटेरों के प्रवेश हेतु आकर्षण पैदा किया है।यह लुटेरे जनता का विश्वास रूपी मत लूटने के लिए चुनावों में अपने धन-बल का प्रयोग करते हुए शराब की दरिया बहाकर,साड़ी कपड़ा आदि वितरित करके,नगद-नारायण भेंट करके जनप्रतिनिधि बनने का प्रयास करते हैं।जातीय राजनीति के माहिर प्रत्याशी अपना जातीय वैमन्यसता का जहर समाज में उगल कर जनप्रतिनिधि बनने की फिराक में लगे रहते हैं।बाहुबली अपने दमखम पर सवार होकर मतदाताओं पर भय का साम्राज्य स्थापित करते हुए नाना प्रकार के तिकडम की रचना करते हुए जनता का प्रतिनिधि बनने की फिराक में लगा रहता है।इन स्वार्थी तत्वों के बीच समाज में अच्छी सोच रखने वाला प्रत्याशी कहीं टिक ही नहीं पाता।मतदाता उस मजबूत विचारों वाले प्रत्याशी की सामाजिक सोच,सामाजिक पकड़,ईमानदारी,कर्मठता को नजरअंदाज करके उसको कमजोर प्रत्याशी घोषित कर देता है तथा साधन संपन्न,धन को चुनाव में लुटाने वाले प्रत्याशियों,जातीय विषमता का जहर घोल कर चुनावी वैतरणी पार लगाने के फिराक में लगे रहने वाले प्रत्याशियों को प्रबल दावेदार मान बैठता है।चुनाव में धन को लुटाने वाले प्रत्याशी जनता की मेहनत की कमाई से दिये गये राजस्व से बने विकास के लिए आवण्टित धन को निःसन्देह लुटेगा,यह साधारण सी सामान्य ज्ञान की बात जानते हुए भी मतदाता स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है।

पंचायती चुनाव का मकसद ग्राम्य स्तर पर विकास को सुचारू रूप से क्रियान्वयन पर जनता के प्रतिनिधि का,अपने चैकीदार का निर्वाचन करता है।आज पंचायती चुनाव में मतदाता अगर धन लुटाने वाले को निर्वाचित करती है तो आज धन को लुटा करके चुनाव जीतने वाला उस खर्च किये गये धन की भरपाई विकास के लिए आवण्टित धनराशि की लूट व बन्दरबाॅंट से ही तो करेगा।पंचायती चुनाव में क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के पद पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का मकसद आज चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र पंचायत प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में अपना मत देने के बदले सौदेबाजी करना हो गया है।ग्राम्य पंचायत सदस्य पद प्रधान के साथ मिलकर कुछ थोडा बहुत पा लेने का जरिया मात्र बन चुका है।प्रधान पद के प्रत्याशी गण यह बता ही नहीं पाते कि उनके पास गाॅंव के विकास की क्या योजना है।दुर्भाग्य वश सारे पदों के अधिकतर प्रत्याशी अपने-अपने तरीकों से जनता का विश्वास रूपी मत लूटने के लिए कमर कस करके चुनावी मैदान में आ चुके हैं,देखिये अभी क्या-क्या गुल खिलता है……………….

पंचायती चुनाव-लूट का जरिया बनी राजनीति

उ0प्र0 में पंचायती चुनाव की रणभेरी बज चुकी है।चुनावी महाभारत में तमाम योद्धा अपना दम-खम दिखाने के लिए उतरने का ऐलान कर चुके हैं।पंचायती चुनाव में ग्राम पंचायत सदस्य,ग्राम प्रधान,क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा जिला पंचायत सदस्य का चुनाव एक साथ करने का मौका मतदाताओं के सम्मुख आ गया है।आज मतदाता के सम्मुख पुनःअपना पंचायत प्रतिनिधि निर्वाचित करने का अवसर आन पड़ा है।दुर्भाग्य वश चुनावों में भारी तादात् में ऐसे लोग निर्वाचित होते हैं जिनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं होता है।राजनीति समाजसेवा का माध्यम न रहकर व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति एवं विकास के धन की लूट करने का जरिया बन चुकी है।आसन्न पंचायती चुनावों में सर्वाधिक दिलचस्प व खर्चीला चुनाव प्रधान पद पर हो रहा है।ग्राम्य विकास विभाग में विकास के लिए आवण्टित धनराशि को आहरित करने का अधिकार ग्राम प्रधान को प्राप्त है।इसी विकास के धन की लूट करने के मकसद से प्रधान पद के अधिकांश प्रत्याशी मतदाताओं को ठगने के फेर में धन को आज चुनाव प्रचार के दौरान लुटा रहें हैं।ढ़ाबे,रेस्टोरेण्ट,शराब की दुकाने,बीयर शाप,पान,चाय की दुकानों सभी जगह प्रधान पद के प्रत्याशी गण मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए अपने दामाद की भांति सेवा करने में लगे हैं।

भ्रष्टाचार वह दानव है जो समाज,देश व आम आदमी को शनैःशनैः निगलता जा रहा है।लोकतंत्र का स्वरूप भीड़तंत्र में बदल चुका है।पैसा,भीड़ और बाहुबल ने सार्थक सोच व ईमानदार व्यक्तित्व के लोगों के जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने पर पूर्ण विराम लगा दिया है।फिर भी समाज को सही आईना दिखने,जनता को चेताने,उचित सलाह देने के ध्येय से यह विचार मन में आया कि कुछ सवालात प्रधान पद के प्रत्याशियों से पूछा जाना चाहिए।जनता को पूछना होगा कि आप आखिर कार चुनाव क्यों लड़ रहें हैं?चुनाव में ग्राम्य स्तर पर विकास कार्यों की प्राथमिकताओं का ब्यौरा प्रधान प्रत्याशियों से मांगना सर्वथा उचित होगा।यह ब्यौरा लिखित ही होना चाहिए।गांव में गरीब और विभिन्न सरकारी कल्याण कारी योजनाओं के पात्र लोगों को आवास आवण्टन,राशन वितरण से लेकर समस्त योजनाओं के क्रियान्वयन कैसे करने की योजना प्रधान प्रत्याशी की है,यह प्रश्न प्रत्याशी से पूछने से प्रधान पद प्रत्याशी की योग्यता और कार्य क्षमता हमारे सामने आ जायेगी।स्थानीय विषयों पर सवालात का जवाब दे सकने वाला प्रत्याशी निःसन्देह योग्य होगा।अगर योग्य,जानकार व्यक्ति प्रधान पद पर निर्वाचित होगा तो वह किसी की कठपुतली नहीं होगा तथा जन दबाव के कारण वह विकास के धन की लूट,कमीशन खोरी व पक्षपात पूर्ण व्यवहार में नही पड़ेगा।दरअसल अभी मतदाता भी बुनियादी सवालातों के स्थान पर जातीय समीकरण तथा फौरी लाभ,व्यक्तिगत राग-द्वेष को ध्यान में रखकर मतदान करते हैं।जब तक ग्राम्य विकास के दृढ़ संकल्प वाले,नेक इरादे रखने वाले,ईमानदार,जानकार व्यक्ति प्रधान पद पर निर्वाचित नहीं होंगें,विकास के धन की लूट व जनता की गाढ़ी कमाई का बन्दर-बांट होता रहेगा।

अधिकांश सीटों पर वर्तमान प्रधान स्वयं चुनाव लड़ रहें हैं या किसी को प्रत्यक्षतःचुनाव लड़वा रहे हैं।वर्तमान प्रधानों से जनता को पूछना चाहिए कि आप को हम दोबारा आखिर क्यों अपना मत देकर प्रधान निर्वाचित करें?हमने पिछले पंचायती चुनाव में अपना मत आपको दिया,अपने परिवार को समझाया,पूरे परिवार ने आपको अपना मत दिया।आपके वायदों से प्रभावित होकर,इस उम्मीद के साथ कि आप अपने-हमारे इस गांव के सर्वांगीण विकास को पूर्ण मनोयोग से करेंगें,हमने आपके समर्थन में प्रचार कर के मत भी मांगें।कुछ परिचित जो दूसरे प्रत्याशियों को चुनाव लड़वा रहे थे,वो नाराज भी हुए।लेकिन पूरे मनोयोग से हमने आपकी मदद की।आप हमारे क्षेत्र से ही भारी मत पाकर पिछले चुनाव में प्रधान पद पर निर्वाचित हुए,लेकिन आपने जो जो कारनामें अपने कार्यकाल में किया वो आशा,विश्वास व वायदों के बिल्कुल विपरीत था।आपने गांव की आबादी की सड़को का निर्माण न कराकर अपने खेत जाने के मार्ग को बनवा डाला।अपनी दुकानों तक जाने का मार्ग तथा नई बस रही आबादी यानि नई प्लाटिंग क्षेत्र में सड़क,नाली का निर्माण करवाया।गांव में बगैर सड़क निर्माण कराये आपके द्वारा घटिया सामग्री से नालियां बनवा दी गईं।अब रास्ते पर पानी भरा रहता है क्योंकि नालियां टूट चुकी हैं तथा सफाई कर्मी सिर्फ आपके निवास की सफाई को ही अपनी ड्यूटी मानते हैं।पूरे गांव में व्याप्त गन्दगी की सफाई करने में न तो सफाई कर्मी की न तो रूचि है और न आपको प्रधान पद का कत्र्तवय बोध ग्राम्य समाज की भूमि का कोई पुरसाहाल नहीं है।एक धारणा है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं,वह भी आपने अपने कदाचरण से मिथ्या साबित कर दिया है।गांव के प्राथमिक विद्यालय के निर्माण से लेकर नौनिहालों के लिए बनी मध्यान्ह भोजन योजना तक में आपने शिक्षक से मिलीभगत करके धनराशि डकार ली।आपने अपने ही गांव के गरीब बच्चों के मुहँ का निवाला तक खा लिया और आपको अपने इस घृणित कृत्य पर तनिक भी शर्म न आई।समस्त योजनाओं में सरकारी कर्मचारियों के साथ मिल कर आपने अपना आर्थिक विकास करने के सिवाय कुछ किया हो तो बताइये?

दरअसल अपने कर्मों के कारण प्रधान यह जानते हैं कि गांव की जनता का विश्वास उन से उठ चुका है।जनता का मन भांप चुके प्रधान ने गांव की मतदाता सूची में सैकड़ों फर्जी नाम बढ़वा लिए।यह सर्वविदित है कि ज्यादातर बढ़े हुए मतदाता गांव के निवासी ही नहीं हैं।प्रधान ने आस-पास रहने वाले रिश्तेदारों,जानने वालों,भाई,बान्धवों के सहकर्मियों के सपरिवार नाम गांव की मतदाता सूची में बढवा कर यह सुनिश्चित कर लिया है कि गांव की आम जनता अपना मत दे या न दे,अपने द्वारा बढ़वाये हुए फर्जी मतदाताओं के ही मतों से हम दोबारा चुनाव जीत लेंगें।

वास्तव में ये सारे प्रश्न,संवाद,चित्रण यथार्थ हैं-आज की पंचायती चुनाव की कुव्यवस्था का।आज लोकतंत्र भीड़तंत्र में तब्दील होकर भ्रष्टाचारियों का सबसे बड़ा आश्रय गृह बन चुका है।यह जनता ही है जो अपने अधिकारों की बहाली के लिए जागरूक हो कर,अपने मत का प्रयोग योग्य प्रतिनिधि चुन कर इन नाकारा व समाज द्रोही भ्रष्ट लोगों को रोक सकती है।