Sunday, April 22, 2012

समाजवादी धरा बाराबंकी में आम जनता , समाजवादियों व समर्पित कार्यकर्ताओ में बढती मायूसी


अरविन्द विद्रोही ..................... लखनऊ के समीप वर्ती जनपद बाराबंकी में हालिया संपन्न उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावो में सभी ६ सीटो पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी आम जनता के विश्वास रूपी मत और अपने कार्यकर्ताओ के अनवरत संघर्ष व मेहनत के बलबूते विजयी हुये | समाजवादी पार्टी की सरकार में बाराबंकी जनपद की रामनगर विधान सभा से नव निर्वाचित विधायक अरविन्द सिंह गोप को स्वतंत्र प्रभार मंत्री- ग्राम्य विभाग , कुर्सी विधान सभा से निर्वाचित फरीद महफूज़ किदवई को राज्य मंत्री - नियोजन तथा दरियाबाद से निर्वाचित राजीव कुमार सिंह को राज्य मंत्री - कृषि विभाग की जिम्मेदारी दी गयी है | इन तीनो मंत्रियो में अरविन्द सिंह गोप सर्वाधिक लोकप्रिय छवि के और जनाधार वाले नेता माने जाते है | बाराबंकी जनपद में संगठन के सभी निर्णय बिना अरविन्द सिंह गोप की रजामंदी के नहीं होते रहे है यह सभी जानते है | चुनाव जीतने व मंत्री बनने के पश्चात् संगठन को तवज्जो दिये जाने की बात प्रभावी मंत्री अरविन्द सिंह गोप ने दोहराई भी थी | दुभाग्य वश संगठन में गिनती के चार - पाँच निवर्तमान पदाधिकारियों के अलावा किसी को महत्व मिलते दिखाई नहीं दे रहा है | संगठन के फ्रंटल संगठनो सहित जमीनी कार्यकर्ताओ की जगह इर्द गिर्द मंडराने वाले लोगो और सपा में विधान सभा चुनावो के एन पहले शामिल चन्द अवसरवादी नेता ही नव निर्वाचित मंत्रियो के साथ स्वागत समारोहों और सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखाई पड़ रहे है | यह स्थिति समाजवादी पार्टी के लोकसभा २०१४ के विजय अभियान के लिए घातक सिद्ध हो सकती है | बाराबंकी जनपद में सपा का आधार मतदाता पिछड़ा वर्ग अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है | एक ही जाति के लोगो के बढ़ते प्रभाव से पिछड़े वर्ग में असंतोष व्याप्त हो चुका है | बाराबंकी सदर विधायक धर्म राज यादव उर्फ़ सुरेश यादव को अपने स्वजातिये - अन्य पिछड़ा वर्ग को सहेजे रहने में कड़ी मसक्कत का सामना करना पड़ रहा है | जनपद के दो मंत्रियो फरीद महफूज़ किदवई और राजीव कुमार सिंह से जनपद के कार्यकर्ताओ-आम जनता को कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है लेकिन छात्र राजनीति से निकले और समाजवादी पार्टी में अपना खासा महत्व बनाये रखने वाले अरविन्द सिंह गोप से आम जनता , समर्पित कार्यकर्ताओ को बहुत उम्मीदे है | बाराबंकी में जनता की उम्मीदों के केंद्र बिंदु अरविन्द सिंह गोप जाने - अनजाने एक काकस में घिर चुके है | बाराबंकी के तमाम कार्यकर्ता-नेता व समर्थको की इनसे मुलाकातों में भी दुश्वारी आने की बात सामने आ रही है | विश्व विद्यालय में अरविन्द सिंह गोप के सह पाठी रहे एक उनके पुराने साथी ने अपना नाम ना छापने के अनुरोध के साथ आक्रोशित लहजे में कहा कि इस बार मंत्री बनने के पश्चात् गोप के व्यवहार व आचरण में भारी बदलाव आ गया है और अब मैं कभी उनसे मुलाकात करने या किसी काम को कहने नहीं जाऊंगा | पिछड़े वर्ग के ही राम मिलन यादव , मौल्हे यादव , छोटे लाल यादव , रीना यादव , राम सनेही निषाद , राम सुरेश , डॉ राम सागर , शिवराम यादव , सुधीर , केशव राम , बाराती लाल यादव , राम समुझ यादव आदि वार्ता के दौरान निराश व स्थानीय नेतृत्व से नाराज़ दिखे | समाजवादी पार्टी के नव नियुक्त मंत्रियो को यह कतई नहीं विस्मृत होना चाहिए कि आम जनता और कार्यकर्ता की बेरुखी राजनीतिक खात्मे की वजह बन जाती है | चापलूसों को दरकिनार करके आम जनता और कार्यकर्ताओ से मिलने , उनका वाजिब कार्य करने की परिपाटी के निर्वाहन से समाजवादी पार्टी को और ताकत प्राप्त होगी | बाराबंकी समाजवादी पार्टी के जिम्मेदार नेता मौलाना मेराज , ज्ञान सिंह यादव , डॉ कुलदीप सिंह , धीरज गुलासिया , फरजान उस्मानी , ज्ञान मिश्र , राजेश यादव बबलू , नसीम गुड्डू आदि कार्यकर्ताओ को समझाने और धैर्य से काम लेने की सलाह दे कर अपना कर्त्तव्य निर्वाहन कर रहे है | बाराबंकी जनपद में बिजली कटौती ने नागरिको को परेशान कर दिया है , समाजवादी पार्टी के ३ मंत्री होने के बावजूद जनपद बाराबंकी में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बिजली कटौती सम्बंधित आदेशो का अनुपालन ना होने और मंत्रियो की रूचि इस मसले पे तनिक भी ना होने से आम जनमानस हतप्रभ है | आम जनमानस की दुश्वारियो से बेखबर, सपा नेतृत्व के निर्देशों के अनुपालन तक में दिलचस्पी ना लेने वाले सपा के मंत्री गणों का यह आचरण क्या गुल खिलायेगा यह भविष्य के गर्भ में ही है |

Friday, April 20, 2012

समाजवादी पार्टी लोकसभा २०१४


समाजवादी पार्टी लोकसभा २०१४ की तैयारियों में जुट चुकी है | उत्तर प्रदेश में विधान सभा २०१२ के घोषणा पत्र में अमल की जिम्मेदारी युवा मुख्य मंत्री अखिलेश यादव और उनके मंत्री मंडल पर है | देश स्तर पर समाजवादी संगठन से समाजवादियो , सामाजिक कार्यकर्ताओ को जोड़ने का काम जारी है | गैर कांग्रेस- गैर भाजपा समान विचारधारा के संगठनो के एकीकरण के लिए समाजवादी पार्टी अब अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में तैयार है | विभिन्न कारणों से पिछले वर्षो में समाजवादी पार्टी से अलग हुये तमाम स्वनाम धन्य नेता समाजवादी पार्टी में पुनः वापस आ सकते है | समाजवादी पार्टी के काफिले में वृद्धि के प्रयास तेज़ है| देखते है कि क्या प्रयास सफल होता है ?

Wednesday, April 18, 2012

सामाजिक कार्य

किसी भी व्यक्ति को अगर कोई दूसरा व्यक्ति या समूह जिसके साथ मिलकर वो सामाजिक कार्यो में अपना योगदान दे रहा है गलत लगता है तो उसको उस व्यक्ति या समूह का साथ तत्काल छोड़ ही देना चाहिए | सामाजिक कार्य करने की सोच रखने वाले के लिए कोई दूसरा भ्रष्ट -अहंकारी व्यक्ति , समूह या संस्था कोई मायने नहीं रखती है | अगर किसी को समाज के लिए कुछ करने की इच्छा शक्ति है तो उसको निर्भय भाव से अपने मन की सुनकर ही स्व विवेकानुसार कार्य करना चाहिए | हमको अपनी उर्जा सद्कार्यो के क्रियान्वयन में लगाना चाहिए ना कि किसी व्यक्ति , समूह , संस्था के महिमा मंडन या चरित्र हनन में , सिर्फ सावधानी बरतनी चाहिए कि हम किसी प्रकार के धोखे का ना तो शिकार होवें ना तो हम किसी के साथ धोखा करें |

Monday, April 16, 2012

संघर्ष , प्रतिभा , नैतिकता और समाजवादी मूल्यों के प्रथम प्रधान मंत्री - चन्द्र शेखर


अरविन्द विद्रोही ................................ बलिया उत्तर प्रदेश के गाँव इब्राहीम पट्टी में १७अप्रैल, १९२७ को जन्मे चन्द्र शेखर सिंह विद्यार्थी जीवन से ही समाजवादी विचार धारा से प्रभावित हो गये थे | हाई स्कूल में अपने अध्यापक रूपनारायण जो कि एक अच्छे कवि भी थे , की प्रेरणा से विद्यार्थी चन्द्र शेखर ने कवितायेँ भी लिखी | विद्यालय के एक कवि सम्मेलन के आयोजन के अवसर पे कविता पथ हेतु हलवाहे पे एक कविता लिखी | इस कविता को पढने का दायित्व साथी चेला राम पर था लेकिन कवि सम्मेलन के दिन मौके पर चेला राम गायब हो गये और इस प्रकार विद्यार्थी चन्द्र शेखर की कविता कवि सम्मेलन में मंच से नहीं पढ़ी जा सकी | ग्रामीण पृष्ट भूमि में जन्मे बालक चन्द्र शेखर का मध्यम वर्गीय परिवार आर्थिक रूप से औरो से बेहतर ही था | जरूरतों की पूर्ति के पर्याप्त साधन ना होने के कारण चन्द्र शेखर ने बचपन से ही ग्रामीण जीवन की बेबसी और गरीबी को बहुत करीब से देखा था | १९४० में ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ आज़ादी की लडाई में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौर में मिडिल के विद्यार्थी चन्द्र शेखर के मन में यह बात आई कि अगर अंग्रेज अपने देश भारत से चले जाएँ तो भारत से विशेष कर ग्रामीण अंचलो से गरीबी चली जाएगी | किशोर चन्द्र शेखर की राजनीतिक सक्रियता के पीछे ना कोई शास्त्र था , ना वेड , ना कोई नेता था और ना ही उनकी पढाई , बल्कि जीवन की अनुभूतियों ने ही चन्द्र शेखर को राजनीति में उतारा था | परिवार का जयेष्ट पुत्र होने के कारण परिजनों को अपेक्षा रहती थी कि चन्द्र शेखर नौकरी कर परिवार का आर्थिक सहयोग भी करे | हाई स्कूल की परीक्षा में सफल होने के पश्चात् कचेहरी में एक नौकरी मिली भी लेकिन उम्र कम होने के कारण नौकरी कर नहीं पाए | अगर उस वक्त उम्र बाधक ना बनी होती तो चन्द्र शेखर का विशाल व्यक्तित्व देश- समाज के सामने आने से रह जाता | शोध करते समय अध्यापक बनने का विचार भी विद्यार्थी चन्द्र शेखर के मन में आया लेकिन यह विचार भी नेपथ्य में ही रह गया | पूरी तरह से सक्रिय राजनीति में आने का मन बनाते समय चन्द्र शेखर के मन में जीविको पार्जन के लिए खाने का ढाबा चलाने का या लेखन का काम करने का विचार आया| ढाबा चलाने के लिए खरीद कर लायी गयी किताब - हाउ टू मैनेज ए स्माल होटल को पढने के बाद चन्द्र शेखर की ढाबा संचालन की योजना समाप्त हो गयी | दरअसल इस पुस्तक में स्विट्जर्लैंड के समुद्र तट पर होटल संचालन हेतु इ मिलियन डॉलर की योजना का विवरण था | १९५१ के दौरान लेखन में संभावनाओ को तलाशते हुये चन्द्र शेखर भी लेखन कार्य में नव लेखको के शोषण से रूबरू हुये | राजनीति शास्त्र से परा स्नातक चन्द्र शेखर ने राजनीति शास्त्र पर ही पुस्तक लिखने का मन बनाया | राजनीति शास्त्र पर ही लिखने वाले एक स्थापित लेखक से मिलकर चन्द्र शेखर ने लेखन सम्बन्धी अपनी इच्छा बताई | लेखक ने एक विषय पे चन्द्र शेखर से लिखने को कहा | दुसरे दिन चन्द्र शेखर लेख तैयार करके उनके पास गये | लेख की प्रशंसा करते हुये उन स्थापित लेखक ने १०० - १५० रूपये प्रति माह पारिश्रमिक देने की बात कही लेकिन एक शर्त भी जोड़ी कि चन्द्र शेखर द्वारा लिखे लेखो-पुस्तकों में चन्द्र शेखर का नाम ना होगा बल्कि उनका नाम होगा | समाजवादी चरित्र के चन्द्र शेखर को अपना यह शोषण कतई गवारा ना था और इस तरह लेखन के माध्यम से जीविकोपार्जन की सम्भावना ने भी दम तोड़ दिया | लिखने-पढने के शौक़ीन युवा चन्द्र शेखर जब १९५३-५४ में युवा सोशलिस्ट पार्टी के संयुक्त सचिव बन कर मऊ पहुचे तो वहा पर समाजवादियों के बंद पड़े अख़बार संघर्ष को दुबारा चालू करवाया और उसमे सम्पादकीय के अलावा सम सामयिक विषयों पर , घटनाओ पर टिप्पणियो पर एक कालम चंचरीक शीर्षक से लिखना शुरू किया | नियमित डायरी लिखने वाले युवा चन्द्र शेखर ने सांसद बनने के बाद भी लिखना जारी रखा | १९७१ में यंग इंडिया के प्रकाशन की शुरुआत करके १९७५ तक चन्द्र शेखर ने यंग इंडिया में नियमित लेखन किया | चन्द्र शेखर के लेखो और भाषणों को संकलित करके डॉयनिमिक्स ऑफ़ सोशल चेंजेस प्रकाशित हुई | आपातकाल में कारगर में निरुध चन्द्र शेखर ने तमाम पुस्तकों का अध्ययन किया | अनवरत अध्ययन से होने वाली नीरसता व उबन से बचने के लिए मन में आने वाले विचारो को चन्द्र शेखर ने लिपि बद्ध करना शुरू किया | धीरे धीरे सारी अभ्यास पुस्तिकाओ को लिख कर भर डाला चन्द्र शेखर ने | चन्द्र शेखर के मित्र ब्रह्मा नन्द ने जेल में मुलाकात के दौरान इस लेखन कार्य को देखा और किसी तरह कई बार में इस संपूर्ण लेखन सामग्री को जेल से बाहर लेकर गये | आपातकाल के पश्चात् जेल से रिहाई के पश्चात् चन्द्र शेखर के सामने अपने द्वारा जेल में लिखा गया लेखन अपने मित्र ब्रह्मानंद के द्वारा टाइप करवा के एक पाण्डु लिपि के रूप में मौजूद था | यही लेखन मेरी जेल डायरी के नाम से प्रकाशित हुआ | चन्द्र शेखर का मानना था कि उन्होंने गंभीरता पूर्वक पुस्तक लिखने की कोशिश नहीं की लेकिन नामवर सिंह जैसे आलोचक की प्रशंसा लेखन की उत्कृष्टता को प्रमाणित करती है | कवि भवानी प्रसाद मिश्र के अनुसार -- जेल डायरी जैसी कोई कृति हिंदी साहित्य में नहीं है और अगर मैं निर्णायक होते तो इसको साहित्य अकादमी का पुरुस्कार अवश्य देता | समाजवादी राजनीति में पढने को एक आवश्यक काम मानने वाले चन्द्र शेखर की रूचि संस्मरणात्मक साहित्य में ज्यादा रही | आपातकाल में हिटलर, स्टालिन से सम्बंधित पुस्तकों ने चन्द्र शेखर के मन पर गहरी छाप छोड़ी थी | शरद चन्द्र का पथ का दावेदार , सत्यार्थ प्रकाश , श्याम नारायण पाण्डेय की लिखी हल्दी घाटी चन्द्र शेखर की मनपसंद रचनाये रही | चन्द्र शेखर राजनीति में संघर्ष की वो मिसाल है जिन्होंने राजनीति में कोई कदम राजनीतिक लाभ के लिए सोच समझ के नहीं उठाया | परिस्थितियो ने चन्द्र शेखर को आगे बढ़ने पर विवश किया | राजनीति में आगे बढ़ने के लिए चन्द्र शेखर ने कभी भी किसी से मदद नहीं ली | यहाँ तक कि आचार्य नरेन्द्र देव और जय प्रकाश नारायण तक से कोई निवेदन नहीं किया | बड़े नेताओ के बुलावे पर ही चन्द्र शेखर उनसे मिलने जाते थे | ग्रामीण परिवेश के चन्द्र शेखर शहरी नेताओ से अपने को अलग रखते थे | उनका खुद का सोचना था कि ---- मुझे उनसे क्या मतलब , वह अपने दायरे में रहे और मैं अपने दायरे में | अपने इसी जिद और अहंकार के चलते चन्द्र शेखर को राजनीतिक उपलब्धियां नहीं मिली और जो मिली भी तो देर से और आधी अधूरी सी | चन्द्र शेखर का साफ कहना था कि - मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है क्यूंकि जो व्यक्ति अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर सकता , वह मानवता की भलाई क्या करेगा ? मैं इस बात का सिद्धान्तता विरोधी हूँ कि देश या समाज के निर्माण के लिए किसी प्रकार का समझौता कर लिया जाये | चन्द्र शेखर का साफ़ कहना था कि जिसके मन में समाजवाद के प्रति थोड़ी सी भी आस्था होगी , वह दुसरो के विचारो का आदर जरुर करेगा | व्यक्तिवादी सिर्फ अपने व्यक्तित्व के उत्थान को लेकर चिंता करते है लेकिन जिनमे स्वाभिमान होता है , वह दुसरे के स्वाभिमान की रक्षा करना भी जानते है | चन्द्र शेखर के व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव आचार्य नरेन्द्र देव का पड़ा | चन्द्र शेखर के ही शब्दों में --- आचार्य नरेन्द्र देव को देख कर ऐसा लगता था कि उनके जैसा बन पाना संभव नहीं है | उनके अलावा कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसको मैं बहुत महत्व पूर्ण मानू | राजनीतिक जीवन में चन्द्र शेखर का तमाम नेताओ से वास्ता पड़ा | चन्द्र शेखर कि नजरो में जयप्रकाश नारायण एक सरल और ममत्व भरे व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे | इतने मृदु स्वाभाव के किसी की आलोचना भी नहीं करते थे लेकिन जयप्रकाश नारायण के व्यक्तित्व में खामी यह थी कि वे अपनी आलोचना भी सह नहीं पाते थे | जयप्रकाश निर्णय लेने के मामले में पक्के थे | डॉ लोहिया को सादगी की प्रतिमूर्ति मानने वाले चन्द्र शेखर के अनुसार डॉ लोहिया के मन में नए नए समाजवादी विचार आते रहते थे , वे विचारो के धनी थे | डॉ लोहिया में संवेदनशीलता की कमी थी और वे जिससे रुष्ट हो जाते थे उसकी भर्त्सना कही भी , किसी के भी सामने कर देते थे | इंदिरा गाँधी को गरीबो की पीड़ा समझने वाली लेकिन सत्ता के बिना ना रह सकने वाली नेता मानते थे चन्द्र शेखर | अटल बिअहरी बाजपाई को बेहतर इन्सान और नेता , राजीव गाँधी को कमजोर आधारों पे देश को आगे ले जाने की कोशिश करने वाला नेता तथा विश्व नाथ प्रताप सिंह को दोहरे चरित्र व आचरण का नेता मानते थे चन्द्र शेखर | संजय गाँधी में समझ का अभाव लेकिन कुछ कर गुजरने की और निर्णय लेने की झमता वाला , नर सिंह राव को व्यवहार कुशल लेकिन ढुलमुल रुख वाला मानते थे चन्द्र शेखर | कांशी राम को सीमित व एकांगी व्यक्तित्व , मुलायम सिंह को सीमित दायरे में रहने वाला तथा लालू यादव को संघर्ष शील लेकिन नया कुछ ना सीखने वाला नेता मानते थे | प्रतिभा , सिद्धांत , नैतिकता और समाजवादी मूल्यों से परिपूर्ण चन्द्र शेखर का व्यक्तित्व साफ गोई का ज्वलंत उदाहरण रहा है | चन्द्र शेखर का संपूर्ण जीवन एक खुली किताब की तरह रहा है | इनके करीबी और पुरे भारत यात्रा के दौरन साथ रहे बाराबंकी के निवासी कुंवर रामवीर सिंह - पूर्व अध्यक्ष ,लखनऊ विश्व विद्यालय के अनुसार चन्द्र शेखर जी अपने करीबी , अपने समर्थको के प्रति अत्यधिक स्नेह रखते थे | वे करुना के सागर और गाँव गरीब के हित चिन्तक थे | युवाओ को राजनीति में स्वाभिमान व सिद्धांत से जुड़े रहने व जनहित के कामों में बैगैर राजनीतिक हानि लाभ के जुटे रहने की सलाह देने वाले चन्द्र शेखर जी के दिल में सूर्य देव सिंह से लेकर धीरू भाई अम्बानी तक सबके लिए जगह थी | लेकिन देश हित की कीमत पर उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत रिश्तो को महत्व नहीं दिया था | अपने अल्प काल के प्रधान मंत्रित्व में अम्बानी से १२ सौ करोड़ का जुरमाना वसूला था | यह चन्द्र शेखर का ही व्यक्तित्व था की मंडल , मंदिर और भूमंडलीकरण के मुद्दों पर उन्होंने कभी भावनात्मक उभार की राजनीति ना करके समन्वय और सामंजस्य की अनवरत चेष्टा करी | चन्द्र शेखर ने अपने अल्प प्रधान मंत्रित्व काल में मंदिर-मस्जिद मामले में लोगो के बीच की दूरियां पाटने की कोशिश करी | मंडलवाद का फायदा लालू-मुलायम ने और मंदिर मुद्दे का फायदा भाजपा ने उठाया | लेकिन चन्द्र शेखर बिना इसकी परवाह किये हुये एवं के दिलो की दूरियों को कम करने की चिंता और चेष्टा में लगे रहे | स्वदेशी के सवाल पर चन्द्र शेखर सक्रिय हुये , राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रमों में भी भागीदार रहे | चन्द्र शेखर ने राजनीतिक लाभ व संगठन की मजबूती की जगह विचारो के प्रचार व दृठता को महत्व दिया | समाजवादी लेखक- पत्रकार मस्तराम कपूर के अनुसार ---- चन्द्र शेखर सदाबहार वृक्ष नहीं थे | वे ऐसे पेड़ थे पतझड में अपने पत्ते निर्विकार भाव से छोड़ देता है और फिर नए पत्ते और कोपलों के लिए अपने को तैयार कर लेता है | लेकिन इसी व्यावहारिकता में राजनीति के इस अजातशत्रु की राजनीतिक विरासत विलीन हो गयी |

Friday, April 13, 2012

सपा के जमीनी कार्यकर्ता

अपराधी किसी जाति-धर्म के नहीं होते है , अपराधी सिर्फ और सिर्फ अपराधी ही होते है , अपराध करना ही उनका जाति-धर्म होता है | समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव - मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश शासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुंडों - अपराधियों की पार्टी और उनके संरक्षक के रूप में सपा नेताओ के होने की बात को गलत साबित करने की है | सत्यता तो यह है कि तमाम बयानों और निर्देशों के बावजूद सपा विधायको और नेताओ के साथ अपराधिक प्रवृति के लोगो की नजदीकिया बढती साफ दिख रही है | समाजवादी पार्टी के संघर्ष शील युवाओ जिन्होंने संघर्ष काल में जनता के हित के लिए संगठन के निर्देशों पर लाठी खायी और जेल गये अब उनकी जगह बहुजन समाज पार्टी में रहे दलालों और अपराधियों को चन्द प्रभावी नेताओ-मंत्रियों , बाहुबली विधायको द्वारा सपा शासन में तवज्जो दिये जाने की बात सपा के जमीनी कार्यकर्ताओ ने ही उठानी शुरू कर दी है |

Wednesday, April 11, 2012

राजस्व विभाग और पुलिस के मनमाने और भ्रष्ट रवैये को उजागर करते है संदुपुर के हालात


अरविन्द विद्रोही ...................... निश्चित कार्यक्रम के अनुसार मैं लगभग ११ बजे तहसील फतेहपुर पहुच गया | वहा पहुच के फतेहपुर के पत्रकार साथियों के साथ बैठ कर संदूपुर की घटना के विषय में सबसे विचार- विमर्श किया | फतेहपुर के अधिवक्ता गण संदूपुर निवासी अपने साथी अधिवक्ता यादवेन्द्र प्रताप सिंह और उनके परिजनों की संदूपुर की घटना में फर्जी नामज़दगी को हटाये जाने की मांग को लेकर न्यायिक कार्यो से विरत आज भी रहे | तमाम अधिवक्ताओ से मुलाकात के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि जिन भी अधिवक्ताओ का जुडाव जनता से राजनीतिक रूप से भी है उनसे भ्रष्ट राजस्व कर्मी और भ्रष्ट पुलिस कर्मी दोनों बुरी तरह चिढ़ते है | इन भ्रष्ट कर्मियों के द्वारा आम जनता के आर्थिक उत्पीडन के विरोध करने वाले यादवेन्द्र सिंह यादव ने कई बार कलम और कई बार सीधे मोर्चे पे भ्रस्टाचार के खिलाफ लडाई लड़ी है | यही मूल कारण रहा है कि संदूपुर कि घटना में जो की राजस्व कर्मियों और पुलिस के लापरवाह और मनमाने -भ्रष्ट रवैये कि देन है में यादवेन्द्र सिंह यादव की और उनके परिजनों की नामजदगी की गयी | हालिया घटित विवाद के पीछे ग्राम पंचायत की नव निर्वाचित प्रधान शकुंतला के पति पप्पू वर्मा का हाथ होने का आरोप लगाते हुये स्थानीय ग्रामीणों ने एक शिकायती पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी प्रेषित किया है | इस शिकायती पत्र के आधार पे , उसमे दिये गये तथ्यों का संदुपुर में मौके पे जाकर अवलोकन करने पे प्रथम दृष्टया ग्राम प्रधान पति पप्पू वर्मा की मनमानी और चुनावी रंजिशन बदले की भावना से विपक्षियों का राजस्व कर्मियों और पुलिस कर्मियों की मदद से उत्पीडन की बात सत्य प्रतीत होती है | कल जब दोपहर २ बजे अनूप सिंह , नीरज शर्मा , हृदेश श्रीवास्तव , सोनेलाल , सर्वेश श्रीवास्तव , अशोक रस्तोगी , राकेश कुमार वर्मा के साथ मैं संदुपुर में ग्रामीणों से और शिकायती पत्र के बिन्दुओ का अवलोकन करने पंहुचा तो हतप्रभ रहा गया | नक़्शे में दर्शाए गये चक मार्ग की जगह प्राथमिक विद्यालय की जमीन से रास्ता निकलवाने का मामला , हरे वृक्षों को कटवाने का मामला , गाँव के मंदिर पे जबरन कब्ज़ा करवाने के मामले में प्रधान पति का नाम सामने आया | गाँव के मंदिर में जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश करने में विरोध करने वालो से प्रधान पति पप्पू वर्मा रंजिश मानते हुये उनको उत्पीडित करने में लग गया और उसकी ही परिणिति है कि पंचायत मित्र के परिजन राजेंद्र से बलराम सिंह , अर्जुन आदि से नाली और रास्ते का विवाद पैदा करवाया | इस मामले की शिकायत बलराम सिंह ने २० जनवरी को पुलिस कप्तान व २५ जनवरी को ही तत्कालीन जिला अधिकारी से कर दी थी | प्रशासन द्वारा कोई प्रभावी कार्यवाही ना होने के कारण ३ फ़रवरी को बलराम सिंह ने दीवानी न्यायलय की शरण ले ली जिसकी जानकारी के बाद १२ फ़रवरी को पुलिस , हल्का लेखपाल के साथ मिलकर राजेंद्र व पप्पू वर्मा ने बलराम सिंह की दीवार तोड़ने का प्रयास किया जिसकी आपत्ति करने पर थाने में दोनों पक्षों को बुलाकर ३० हज़ार रूपये की मांग दीवार ना गिराए जाने की एवज़ में करने की बात भी शिकायती पत्र में स्पष्ट रूप से है | इसी दिन बलराम सिंह के भाई उमेश व बेटे यदु नाथ को पुलिस ने जेल भेज दिया और दुसरे दिन राजेंद्र आदि ने दीवार हटाने की बात कहते हुये अर्जुन को मारा पीटा , इस मार पीट की घटना को भी पुलिस ने संज्ञान में नहीं लिया | २५ फ़रवरी को दीवानी न्यायलय ने इस मामले में कमीशन आख्या प्राप्त होने पर यथा स्थिति बनाये रखने का आदेश जारी किया जो आज तक प्रभावी है | माननीय न्यायलय के आदेश के अनुपालन के स्थान पे प्रधान पति पप्पू वर्मा और राजेंद्र की मनमानी को पुलिस कर्मियों द्वारा संरक्षण देने की शिकायतों पे कोई भी प्रभावी कार्यवाही ना होने का परिणाम है कि २८ मार्च को बलराम सिंह का छप्पर पुलिस कर्मियों राजेंद्र यादव और इम्तियाज़ कि मौजूदगी में राजेंद्र और उनके साथियों ने जला दिया , जिसके कारण उपजे जनाक्रोश को भापकर दोनों सिपाही भागे और गिरकर और दोनों तरफ से हो रही गुम्मेबजी में चोटिल भी हुये | जिसकी सुचना फ़ोन पे प्रशासन के अधिकारीयों को दी गयी थी | पुलिस कर्मियों की मिलीभगत और न्यायलय की जगह खुद ही फैसला करने के रवैये ने संदुपुर में संघर्ष की आधारशिला को एक नया आयाम दे दिया है | इस दुर्भाग्य पूर्ण घटना में पीड़ित ग्रामीण जनों को ही भ्रष्ट पुलिस कर्मियों की गलत बयानी के चलते अभियोगी बना देना और भी दुखद है | आगजनी के पश्चात् इन्ही सिपाहियों ने संदुपुर में प्रिय यादव पत्नी विमल कुमार और उसके बच्चो के साथ जो अभद्रता किया है वो इस मामले में इन पुलिस कर्मियों की संलिप्तता को उजागर करता है | इन सिपाहियों के लाइन हाज़िर होने से एक छनिक आशा की ज्योति जो प्रशासन ने जलाई है वो प्रभावी कार्यवाही की देरी में बुझ ना जाये यह देखने की बात है | संदुपुर में सार्वजनिक उपयोग की भूमि बंजर , चारागाह , खलिहान पे किन किन व्यक्तियों का कब्ज़ा है , राजस्व कर्मियों ने इन कब्जो पे अपनी रिपोर्ट दी है की नहीं ये न्यायिक जाँच से सामने आ सकता है | संदुपुर में एक राजस्व कर्मी के ही कब्जे में सार्वजनिक भूमि के होने की बात सामने आ रही है | प्रशासन को त्वरित कार्यवाही करते हुये निष्पक्ष कार्यवाही सुनिश्चित करनी चाहिए | जिन पीड़ित परिवारों के पुरुषो पे अभियोग दर्ज हुआ है उनके घर की महिलाएं दहशत भरी जीवन को जी रही है , बच्चो की मासूमियत की जगह एक अनजाने खौफ ने ले लिया है |

Saturday, April 7, 2012

पुलिस जुल्म के खिलाफ अधिवक्ताओ की हड़ताल जारी


पुलिस जुल्म के खिलाफ अधिवक्ताओ की हड़ताल जारी फतेहपुर ,बाराबंकी | ग्राम संदुपुर में प्रशासनिक अधिकारीयों के पक्षपात पूर्ण रवैये के पश्चात् पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में हुई आगजनी व पत्थर बाजी में घायल हुये सिपाहियों की तरफ से गाँव के २७ लोगो के विरुद्ध सिपाहियों के साथ मार पीट की रिपोर्ट में द बार एशोसियसन - फतेहपुर के पूर्व अध्यक्ष यादवेन्द्र प्रताप सिंह यादव व उनके परिजनों का नाम शामिल किये जाने के विरोध में तहसील फतेहपुर के घटना के दुसरे दिन से ही हड़ताल पे है | अधिवक्ताओ का एक प्रतिनिधि मंडल आगामी १० अप्रैल को जिला अधिकारी व पुलिस अधीक्षक से मिलेगा और यादवेन्द्र प्रताप सिंह यादव का नाम प्रथिमिकी से निकलने , घटना की न्यायिक जाँच करने , दोषी अधिकारियों- पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का मांग पत्र सौपेगा | यादवेन्द्र प्रताप सिंह यादव प्रेस क्लब फतेहपुर के संरक्षक भी है और स्वतंत्र भारत , कुबेर टाइम्स , जनसत्ता एक्सप्रेस , वोइस ऑफ़ लखनऊ से जुड़े रहे है | जिला पंचायत सदस्य भी रहे यादवेन्द्र सिंह कई जन संगठनो से जुड़े है , जिनमे प्रमुख रूप से जन संघर्ष समिति बाराबंकी , भूमि अधिग्रहण विरोधी मोर्चा -पचघरा , बाराबंकी विकास मंच , मानस उत्कर्ष संस्थान , द आर्ट ऑफ़ लिविंग है | ग्रामीणों के हित की लडाई लड़ते रहने वाले यादवेन्द्र सिंह की फर्जी नामजदगी के पीछे राजनीतिक प्रतित्वन्दिता से इंकार नहीं किया जा सकता है | अधिवक्ताओ के साथ साथ अब पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओ के भी यादवेन्द्र सिंह यादव के समर्थन में आने के आसार नज़र आने लगे है |

युवा मुस्लिम नेताओ

"विधान परिषद् में भेजे जाने के योग्य मुस्लिम युवा नेताओ की कमी समाजवादी पार्टी के पास नहीं है | बुखारी और आज़म खान के रिश्तेदारों और चहेतों की बजाये समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को अपने संगठन के युवा मुस्लिम नेताओ में से किसी को भी विधान परिषद् भेजना चाहिए | युवा चेहरे के चयन में यह भी ध्यान रखना होगा कि वो संघर्ष के दिनों में साथ रहा हो,अभी मार्च २०११ के सफल आन्दोलन में उसने हिस्सेदारी की हो और आम जनता में अपनी पहचान भी रखता हो |

Wednesday, April 4, 2012

मन की बात

मन की बात , मन में आये विचार अपने मित्रो में विचार-विमर्श के लिए रखना अपराध है क्या जी ? अपने को बुद्धिजीवी मानने वाले वर्ग को समझना चाहिए कि अपने को बुद्धिमान समझने वाले वर्ग से आम जन , मित्र यहाँ त़क कि परिजन भी पीड़ित रहते है , तो आखिर क्यूँ ? अपनी बुद्धिमानी के समुन्दर से तनिक सामान्य ज्ञान की लुटिया से जल अपने पे भी डाल लेने में कोई हर्जा नहीं है | दुसरो को ज्ञान वितरित करने के साथ साथ स्वयं भी लाभान्वित होइए जी |

Tuesday, April 3, 2012

भ्रस्टाचार

मजदूर तो हर जगह का मजबूर है ही , किसान भी बेजार है | युवाओ को राहत और बख्शीश की दरकार है , महिलाओ का कौन पुरसाहाल है ? तंत्र है भ्रष्ट लेकिन जन के मन में लगा है जंग | शिराओ में भ्रस्टाचार रक्त बनके हो रहा प्रवाहित लेकिन दुसरो पे ऊँगली उठाने में हम है माहिर | खुद में सुधार की बात को मानते है बेमानी दुसरो पे लगाम लगाने की इक्छा भारी | बलिदानी पैदा हो पड़ोस में और मेरे घर अनिल अम्बानी येही सोच बन चुकी है| बुरा ना मानो तो होगी मेहरबानी | --- अरविन्द विद्रोही

भ्रस्टाचार

मजदूर तो हर जगह का मजबूर है ही , किसान भी बेजार है | युवाओ को राहत और बख्शीश की दरकार है , महिलाओ का कौन पुरसाहाल है ? तंत्र है भ्रष्ट लेकिन जन के मन में लगा है जंग | शिराओ में भ्रस्टाचार रक्त बनके हो रहा प्रवाहित लेकिन दुसरो पे ऊँगली उठाने में हम है माहिर | खुद में सुधार की बात को मानते है बेमानी दुसरो पे लगाम लगाने की इक्छा भारी | बलिदानी पैदा हो पड़ोस में और मेरे घर अनिल अम्बानी येही सोच बन चुकी है| बुरा ना मानो तो होगी मेहरबानी | --- अरविन्द विद्रोही

Sunday, April 1, 2012

कांग्रेस की कुटिल चाल

कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी और संरक्षक है | डॉ लोहिया आजाद भारत की सभी बुराइयों की जननी कांग्रेस को मानते थे और आज भी सत्य यही है कि कांग्रेस और भ्रस्टाचार एक दुसरे के पर्याय है | युवा समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को डॉ लोहिया का ध्यान रखते हुये इनके षड्यंत्रों को समझना चाहिए | ये बज़ट में वृद्धि करके पहले अधिकारीयों की मदद से सरकारी धन का बंदरबांट करते है फिर उत्तर प्रदेश के सत्ताधारी दल पे धन के दुरूपयोग का आरोप मढ़ते है | साथ ही साथ प्रचार करते है की हमने पैसा दिया लेकिन प्रदेश सरकार ने खा लिया | सावधान रहिये , सावधान | कांग्रेस की करारी हार के पश्चात् कांग्रेस की कुटिल चाल का पहला नमूना है जयराम रमेश का उत्तर प्रदेश दौरा |