Saturday, February 26, 2011

चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर

साहस-शौर्य-संकल्प के प्रतीक हैं -आजाद
अरविन्द विद्रोही
दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे,
आजाद ही रहें हैं,आजाद ही रहेंगे ।

चन्द्रशेखर आजाद नाम नहीं,प्रतीक बन गया है-साहस,शौर्य,संकल्प,देशभक्ति,मिलन सारिता एवं सूझ-बूझ का।ऩि़र्धनता में पले-बढ़े चन्द्रशेखर तिवारी के पिता पं0सीताराम तिवारी मूलतः ग्राम बदरका,जनपद उन्नाव,उ0प्र0 के रहने वाले थे।
संवत्1956 के देशव्यापी अकाल के समय जीविकोपार्जन के लिए पं0सीताराम तिवारी बदरका छोड़ कर भावश,तत्कालीन अली राजपुर जिला-वर्तमान में झाबुआ जिला में सरकारी बाग की रखवाली का काम करने लगे थे।आजाद के पिता अत्यन्त निर्धन,सदाचारी,ईमानदार किन्तु क्रोधी स्वभाव के थे।माता जगरानी देवी जी निरक्षर थी।परिवार कट्टर सनातनी ब्राह्मण।बालक चन्द्रशेखर तेजस्वी,कर्मशील और नटखट।अपने नटखटपने के कारण वे अपने पिता के कोप-भाजन का शिकार बनते रहते थे।चन्द्रशेखर के
चार भाई मौत के शिकार हो चुके थे,माता अपने इकलौते पुत्र पर स्नेह-ममत्व लुटाती रहती।सनातनी ब्राह्मण का तेजस्वी बालक संस्कृत पढ़ने काशी आ पहुॅंचा।सन्1921,चन्द्रशेखर तिवारी की उम्र चौदह वर्ष मात्र।सर्वत्र असहयोग आन्दोलन का वातावरण।भारत-भर में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और होली मनाई जा रही थी।परिवार की स्थितिजन्य परिस्थितियों ने बालक चन्द्रशेखर को कष्ट सहने वाला,कठोर परिश्रमी,विकट परिस्थितियों में संघर्ष करने वाला बना दिया था।इसी दौरान ब्रिटेन के युवराज डयूक ऑफ विण्डसर का भारत आगमन हो गया।भारत को एक क्रान्तिपुत्र मिलने की,उस क्रान्ति के हीरे की जौहरियों के नजर में आने की घड़ी आ गई।
कंाग्रेस ने ब्रिटेन के युवराज की भारत यात्रा का विरोध किया।सर्वत्र हड़ताल रखी गई।तनाव पैदा हो गया।दंगे भी हुए।सरकार ने सख्ती बरती।महात्मा गॉंधी को छः महीने का कारावास मिला।चन्द्रशेखर ने बनारस के सरकारी विद्यालय पर धरना दिया।पकड़े गये।इसी अपराध में मुकदमा चला।बालक चन्द्रशेखर ने मुकदमें के दौरान जो उत्तर दिये,वो आज तक ह्दय को झकझोरने के लिए पर्याप्त है।प्रत्येक उत्तर में देश भक्ति व निर्भीकता।
नाम-आजाद
पिता-स्वतन्त्र
निवास-जेलखाना

यैसे उत्तरों को सुनकर न्यायाधीश खारेघाट क्रोधित हो उठा,पन्द्रह कोड़ों की सजा सुनाई।प्रत्येक कोड़े के लगने पर वन्देमातरम् व महात्मा गॉ।धी की जय बोलते-बोलते वीर बालक मुर्छित होकर धरती मॉं की गोद में विश्राम करने लगा।
सारे बनारस में मानों हवा के माध्यम से यह घटना फैल गई।शहर कांग्रेस समिति ने उनके अभिनन्दन समारोह का आयोजन किया।श्री मन्मथनथ गुप्त ने लिखा है कि काशी के इतिहास में सभा एक अविस्मरणीय घटना है।सभा में चन्द्रशेखर का अभिनन्दन उनकी वीरता के अनुरूप ही हुआ। आततायी ब्रितानिया हुकुमत से टक्कर लेने वाले किशोर के दर्शन करने व आर्शीवाद देने मानों समूचा काशी आ उमड़ा।छोटे से बालक को देखने पहुॅंची अपार भीड़।मंच पर मेज लगाकर साहसी बालक को खड़ा किया गया।महात्मा गॉंधी की जय से सारा वातावरण गुंजायमान हो उठा।चन्द्रशेखर ने अपना वक्तव्य दिया।सारा शरीर फूलों से लाद दिया गया।ऑंखे सिंह की भॉंति चमक रही थी।सिंह की गर्जना अंग्रेजों के कानों तक पहुॅंच ही चुकी थी।बस वो घड़ी,चन्द्रशेखर तिवारी को श्री प्रकाश जी ने आजाद नाम से अलंकृत किया।
बनारस के सुप्रसिद्ध देशभक्त शिव प्रसाद गुप्त ने आजाद को अपने संरक्षण में लिया।काशी विद्यापीठ में दाखिला कराया।पहले ही दिन उनके दर्शन के लिए विद्याार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ी।आजाद का लक्ष्य शिक्षा तो था नहीं,लिहाजा थोड़े ही दिनों में उन्होंने शिव प्रसाद गुप्त का घर छोड़ दिया।आजाद ने आजादी प्राप्त करने की दिशा में स्वयं को समर्पित कर लिया था।
चौरी चौरा काण्ड के कारण असहयोग आन्दोलन स्थगित हो गया और महात्मा गॉंधी के अहिंसक मार्ग से क्रान्तिकारियों का विश्वास हिलने लगा था।प्रख्यात क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल संयुक्त प्रान्त में संगठन कर रहे थे।श्री सान्याल अण्डमान जेल से छूटकर आये थे।श्री सान्याल की पुस्तक ‘‘बन्दीरक्षक‘‘ अपनी प्रसिद्धी की ओर अग्रसर थी।पुस्तक युवाओं को क्रान्ति के मार्ग पर चलाने के लिए एक बड़ी प्रेरणा श्रोत बन गई।श्री सान्याल ने राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी के नेतृत्व में ‘‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन‘‘ नामक दल को तैयार किया।प्रणवेश चटर्जी इस दल के सदस्य थे।श्री चटर्जी ने मन्मथनाथ गुप्त को आजाद का मन टटोलने की जिम्मेदारी सौंपी।आजाद तो पैदा ही भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए हुए थे।शीघ्र ही आजाद अंतरंग समिति के सदस्य बन गये।दल का उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करने के साथ-साथ शोषण रहित प्रजातन्त्र की स्थापना करना था।अमर शहीद पं0 रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी रेल काण्ड में हिस्सा लिया और 1925 में काकोरी षड़यंत्र केस में फरार होकर झा।सी पहुॅंचे।झॉंसी और ओरछे के बीच सातार नदी के किनारे पर एक कुटिया में हरिशंकर ब्रह्मचारी बन कर रहे।आजाद ने कुशल संगठनकर्ता होने का परिचय देते हुए छिन्न-भिन्न हो चुके सूत्रों को फिर से जोड़ लिया।क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर आजाद ने प्रमुख कार्य किये उनमें- लाहौर में लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज करने वाले ए0एस0पी0 साण्डर्स का वध,देहली की धारा सभा में बम विस्फोट तथा वायसराय की गाड़ी के नीचे बम विस्फोट कराना शामिल है।27 फरवरी,1931 को अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में पुलिस से युद्ध करते हुए,बलिदान देते समय तक चन्द्रषेखर आजाद ने अपने एक-एक शब्द को जीया।उन्होंने साथियों से जो कहा वही किया।जिस वृक्ष के नीचे आजाद ने अपने प्राण त्यागे थे,दूसरे दिन वह फूलों से लदा था।जनता ने वृक्ष पर आजाद का नाम लिखा,पेड़ के नीचे की माटी विद्यार्थी माथे पर लगाकर साथ ले गये।जनता का आदर और उत्साह देखकर ब्रितानिया हुकुमत ने शहीद स्थल के उस वृक्ष को काट डाला।स्वतन्त्रता के पश्चात् बाबा राघव दास ने उसी जगह पुनः वृक्षारोपण किया।वर्तमान में पार्क में चन्द्रशेखर आजाद का जो स्मारक बना है,वह श्रद्धेय पं0 बनारसी दास चतुर्वेदी पूर्व राज्य सभा सदस्य के अथक प्रयासों का परिणाम है।
यह स्मारक अशिक्षित,कुसंस्कार ग्रस्त,गरीबी में पड़ी हुई जनता का क्रान्ति के मार्ग पर उत्तरोतर बढ़ते जाने का स्मारक है,अदम्य साहस,व्यवहारिक सूझ-बूझ और साथियों के लिए हार्दिक स्नेह,त्याग और बलिदान के लिए सतत् तत्परता के द्वारा प्राप्त नेतृत्व का स्मारक है,और है साम्राज्यवाद के विरूद्ध आमरण दृढ़ निश्चयी युद्ध और समाजवाद की स्थापना के लिए निर्भयता से बढ़ते जाने का स्मारक।