Wednesday, May 25, 2011

अन्याय के खिलाफ संघर्ष




समाजवादी नेता स्वर्गीय राम सेवक यादव की नगरी बाराबंकी के कमला नेहरु पार्क में आज जुटे खांटी समाजवादी कार्यकर्ता व विचारक | अनन्तराम जयसवाल-पूर्व सांसद,रामसागर रावत-पूर्व सांसद, असर्फ़ी लाल यादव-पूर्व विधायक,छोटे लाल यादव-पूर्व मंत्री,कुंवर रामवीर सिंह,अरविन्द यादव-पूर्व विधान परिसद सदश्य ,कुसुम लता रावत,अनित यादव,सिद्धीक पहेलवान,राम चन्द्र मिश्रा, मास्टर राम दुलारे, हौसिला बख्स सिंह, मेवा लाल, शेखर चौधरी, आरिफ,कमलेश कुमारी आदि नेताओ के साथ हजारो कार्यकर्ताओ ने अन्याय के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लिया.

Tuesday, May 24, 2011

संगठन व सत्ता के सिधान्त व डॉ लोहिया

संगठन व सत्ता के सिधान्त व डॉ लोहिया अरविन्द विद्रोही यह सर्व विदित है की किसी भी लोकतान्त्रिक संघठन के सफल संचालन हेतु कार्यकर्ता,कार्यालय,कार्यक्रम,कोष,क्रियान्वयन अनिवार्य तत्त्व होते हैं| सिधान्त विहीन अवसरवादी राजनीति राजनीति आज के दौर में अपना परचम लहरा रही है| दल बदल व पूंजीवाद के सहारे सत्ता के गलियारे में अपना वजूद बने रखने के फेर में माहिर फरेबी किस्म के लोगो ने अपना पाला बदलना व भावनात्मक प्रलाप शुरु कर दिया है| आज राजनीति स्याह व संक्रीन हो चुकी है| काजल की कोठरी बन चुकी इस राजनीति में बेदाग रहना ही एक बड़ी उब्लाब्धि है| आज संघठन आधारित राजनीति का स्थान व्यक्ति,व्यक्ति के परिवार की चाटुकारिता व जी हजुरी ने ले लिया है| प्रख्यात समाजवादी विचारक व चिन्तक डॉ राम मनोहर लोहिया राजनीति में परिवार वाद के कट्टर विरोधी थे| वो इसे राजतन्त्र मानते थे| डॉ लोहिया आजाद भारत की दुर्दशा का कारण आजाद भारत की कांग्रेसी सरकार व पंडित नेहरु को मानते थे| कांग्रेस के खिलाफ गैर कांग्रेस वाद की मुहीम को साकार रूप लोहिया ने दिया था| आज डॉ लोहिया के विचार व सोच कार्यकर्ताओ की उपेक्षा व अवसर वादिओं को बढ़ावा दिये जाने के कारण नेपथ्य में चलते चले जा रहे हैं | डॉ राम मनोहर लोहिया राजनीति को समाज सेवा का माध्यम मानते थे | राजनीति में विचार व सिधान्त को सर्वोपरि मानने वाले डॉ लोहिया ने अपने सम्पुर्न्य जीवन में कभी भी संघर्ष शील साथियों - कार्यकर्ताओं की ना तो उपेक्षा की और ना ही चुनावी लाभ के दृष्टिकोण से अपने विचारों और सिधान्तों से समझोता किया | दरअसल १९६७ का वाकया है -- इस समय डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता थे | खुद कन्नौज सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तथा दल के अन्य उम्मीदवारों की सभाओं में भाषण भी देने जाते थे | इस समय विधान सभा व लोक सभा दोनों के चुनाव साथ साथ हो रहे थे | डॉ लोहिया १९६३ में फर्रुखा बाद लोकसभा सरात से उपचुनाव में विजई होकर प्रथम बार सांसद बने थे | डॉ लोहिया समान नागरिक संहिता को लागु करने की आवाज उठाया करते थे | मुस्लिमो के एक बड़ा तबका डॉ लोहिया के इस विचार से आक्रोशित था | इलाहबाद में १९६७ के आज चुनावों में डॉ लोहिया को एक विशाल चुनावी सभा को संबोधित करना था | संसोपा के उम्मीदवारों का मानना था कि डॉ लोहिया का सभा में समान नागरिक संहिता का समर्थन करना उनके चुनावों में प्रतिकूल असर डालेगा | डॉ लोहिया सड़क मार्ग से प्रताप गढ़ से इलाहबाद आने वाले थे | समाजवादी नेता सत्य प्रकाश मालवीय ने गंगा पर - फाफा मौऊ बाज़ार में डॉ लोहिया का स्वागत किया और उसने साथ कार में ही बैठ लिए | कार में कैप्टेन अब्बास अली भी थे | सत्य प्रकाश मालवीय ने किसी तरह प्रत्याशियो की बात डॉ लोहिया से कही | डॉ लोहिया ने कहा ---- तुम चाहो तो मुझे मीटिंग में मत ले जाओ | लेकिन मीटिंग में यदि मुझसे प्रश्न पूछा गया या किसी ने वहा इस विषय पर चर्चा की , तो उसका वही उत्तर दूंगा जो मेरी राय है ,मेरी विचारधारा है | मैं वोट के लिए विचारधारा नहीं बदला करता भले ही मैं हार जाऊ , पार्टी के सभी उम्मीदवार हार जाएँ | मेरी विचारधारा मैं समझता हूँ देश हित में है और देश दल से , चुनावो से बड़ा है | आज उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा के चुनावों में सत्ता प्राप्ति के लिए जिस प्रकार का दांव - पेंच व निष्ठा परिवर्तन का कार्य करने वालो को पुराने समाजवादी कार्यकर्ताओं के हक की कीमत पर समाजवादी पार्टी का नेतृत्व स्थापित कर रहा है , वाह डॉ लोहिया के समाजवादी विचार धारा के प्रति समर्पण व दृढ़ता के सिधान्त के नितांत प्रतिकूल है | इस प्रकार का आचरण समाजवादी चरित्र का परिचायक ना हो कर के सत्ता लोलुप चरित्र का घोतक है | सिर्फ डॉ लोहिया का नाम जपने व उनकी फोटो पे माला चढाने, उनके नाम से ट्रस्ट चलने से कोई उनका अनुयायी नहीं हो जाता, उनके विचारों को व्यव्हार में अमल करने वाले ही लोहिया के लोग है | कार्यकर्ताओं के हक के लिए लड़ने वाले डॉ लोहिया के तात्कालिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष का पालन ही कर रहे है और इनको करना भी चाहिए | तानाशाही के खिलाफ लड़ते लड़ते कब खुद तानाशाह सा आचरण करने लगते हैं राजनेता इसका इनको पता ही नहीं चलता,अब लोहिया के लोगो की हुनकर ही इनका भ्रम तोड़ेगी.....

Tuesday, May 10, 2011

समाजवादी विचार,लोहिया और मुलायम सिंह यादव

उत्तर प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनावो में चुनाव लड़ने के लिए दल बदलने का खेल चालू हो चुका है| राजनीती के व्यवसायीकरण का ही दुष्परिणाम है कि समाजवादी विचार के राजनैतिक संघठन भी आदर्श ,सुचिता ,संघर्ष ,समर्पण को दरकिनार कर दलबदलूं लोगो को तवज्जो दे रहे हैं | भारत की राजनीति में व्याप्त विसंगतियो को बखूबी समझने वाले समाजवादी विचारक व चिन्तक राम मनोहर लोहिया का हवाला देते हुए उनके शिष्य समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कई बार कहा है की ---- डॉ लोहिया जरुर चले गये है दुनिया से लेकिन उनके विचारों को कोई नहीं मिटा सकता | उनके विचारों पे चलना पड़ेगा| आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत ही भयावह स्थिति उत्पन्न हो चुकी है | किसानों की कृषि योग्य भूमि पर सरकारों की कुदृष्टि पड़ चुकी है | किसान जगह जगह अपना संघठन बना कर संघर्ष रत है | किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है | खेती के औजार की जगह विवशता में किसान हथियार उठा रहे है | आज किसान आन्दोलन पे भी गन्दी राजनीति हो रही है | डॉ लोहिया के तात्कालिक अन्याय के विरोध के सिधान्त के पालन करने वाले समाजवादी कार्यकर्ता कहा है? कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के बीच संघठन करने वालो को कितना तवज्जो समाजवादी पार्टी ने दिया है? डॉ लोहिया के सिधांतो के अनुपालन में , जनसंघर्षो में जेल जाने वाले कार्यकर्ताओ का मनोबल कैसे बढेगा? अब यह प्रश्न उठना लाजिमी है | दफा १४४ जैसे काले कानों को तोड़ने में लगातार जेल जाने वाले डॉ लोहिया की विरासत को बहुत हद तक संजो कर रखने वाले मुलायम सिंह यादव के द्वारा अपने समाजवादी कार्यकर्ताओ की आगामी उत्तर प्रदेश विधान सभा की प्रत्याशिता में उपेक्षा करना हतप्रभ करने वाला ,डॉ लोहिया व समाजवादी आन्दोलन के संघर्ष के साथियो का मान मर्दन करने वाला गैर जरुरी कदम है | बसपा सरकार में वर्षो मलाई काटने वाले लोगो को समाजवादी पार्टी में स्थानीय कार्यकर्ताओ पर थोपना व विधान सभा का प्रत्याशी बनाना घोर राजनितिक अवसरवादिता है | डॉ लोहिया के अनुसार पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादियो को अपनी सफलता और कमजोरियो को जान लेना चाहिए | जहा समाजवादी ताकतवर है,वहा चुनाव समझोते की कोई जरुरत नहीं है| क्या डॉ लोहिया की इस बात पर समाजवादी नेतृत्व ध्यान देगा? उत्तर प्रदेश में बसपा के मुकाबिल समाजवादी पार्टी अपने जमीनी कार्यकर्ताओं के संघर्ष की बदौलत ही पहुची है | दल्बद्लुओ को तवज्जो दिये जाने से एक निराशा व छोभ का वातावरण व्याप्त हो रहा है | सत्ता की तरफ समाजवादी पार्टी के बढ़ते कदम को भांप के स्वार्थी प्रवृति के लोग भी समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे है | इनका अतीत ना तो जनसंघर्ष का रहा है ना ही संघठन के प्रति वफ़ादारी का |इनसे भविष्य में भी कोई वफ़ादारी की उम्मीद करना बेकार है ,यह सिर्फ समाजवादी पार्टी के टिकेट से विधायक बनने की लालसा में आये है| दलबदल कर आये स्वार्थी तत्वों को बढ़ावा देना,उनको चुनाव में प्रत्याशी बनाना वो भी समाजवादी कार्यकर्ताओ के रहते डॉ राम मनोहर लोहिया की आत्मा और विचारो दोनों को लहूलुहान करने वाला कृत्या है | दलबदल कर के आये लोगो को कुछ समय समाजवाद के संघर्ष में जुटाना चाहिए,एक चुनाव में इनको पार्टी के प्रचार प्रसार में लगाना चाहिए |लेकिन क्या तब यह स्वार्थी तत्त्व समाजवादी पार्टी में रहेंगे?