Sunday, June 3, 2012

स्थानीय निकाय चुनाव -राजनीतिक दल,प्रत्याशी व मतदाता ---आशुतोष कुमार श्रीवास्तव


लोकतंत्र को परिभाषित करते हुये विद्वानों ने कहा है कि लोक तंत्र का मतलब होता है - लोक + तंत्र , मतलब जन सामान्य का शासन |लोकतंत्र में लोकप्रिय सरकार या नेता जनता द्वारा , जनता के लिए व जन सामान्य का होने कि परिकल्पना की गयी है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में लोकतंत्र अपने मायने बदल चुका है या कहना चाहिए की लोकतंत्र के मायने बदल दिये गये है | जनता से मीठे मीठे वायदे करके सत्ता को किसी तरह हासिल कर के लोकतंत्र की आत्मा व मतदाता को चुनावो के पश्चात् ठेंगा दिखाना आज ने अधिकाश नेताओ का चरित्र बन चुका है | वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर गहमा गहमी मची हुई है| निर्वाचन आयोग ने पुरे प्रदेश में चार चरणों में चुनाव करने की रुपरेखा बना कर चुनावो के कार्यक्रमों की घोषणा कर ही दिया और नामांकन कार्य शुरु भी हो चुके है | एक बार पुनः आम जनता की कीमत नेताओ की नज़र में बढ़ सी गयी है | सुबह होते ही सभासद और अध्यक्ष पद के प्रत्याशी व उनके समर्थक मतदाताओ के घर की परिक्रमा करना शुरु कर देते है जो देर रात तक जारी रहता है , एक गया नहीं दूसरा हाज़िर | चुनाव मैदान में हर सूरत में विजय हासिल करने के लिए मतदाताओ को लुभाने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है| मतदाताओ से प्रेमपूर्वक मिलना , अपनी नजदीकियो को याद दिलाना सिर्फ चुनाव के दौरान तक ही रहेगा यह बात आम मतदाता प्रत्याशियो के जाते ही कह देते है | मतदाता आपसी वार्ता में साफ़ कहते है की अभी ये अपने फायदे के लिए अपना पन दिखा रहे है जीत जाने के पश्चात् इनके दर्शन ही दुर्लभ हो जायेंगे | इनके दरवाजे हमारे लिए बंद हो जायेंगे | चुनाव जीतने के पश्चात् निर्वाचित जनप्रतिनिधि लोकतंत्र का मजाक बनाते हुये अपनी स्वार्थ सिद्धि में जुट जायेंगे , विकास कार्यो में मनमाने तरीका अपनाएंगे | स्थानीय निकाय चुनाव में सत्ता धारी समाजवादी पार्टी व विधान सभा में मुख्य विपक्षी दल दोनों ही दल अपने चुनाव चिन्हों पर प्रत्याशी लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है | दोनों ही राजनीतिक दलों में स्थानीय निकाय चुनाव में प्रत्याशिता घोषित करने में आत्म विश्वास की कमी साफ दिखाई पड़ती है | मुख्य विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी ने पहले तो निकाय चुनाव में भागीदारी से साफ इंकार किया था लेकिन पता नहीं अब किस तिलिस्म के चलते कार्यकर्ताओ का हौसला बढ़ाने की बात कहते हुये प्रत्याशियो को निर्दालिये लड़ने की बात कही जा रही है | सत्ताधारी समाजवादी पार्टी में भी मारामारी मची हुई है , चुनाव ना लड़ने की स्पष्ट घोषणा के बावजूद स्थानीय निकाय के दावेदार अपने अपने को सपा का प्रत्याशी बता कर जनता को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं रख रहे है | अभी मार्च में ही पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली सपा अपने कार्यकर्ताओ को अदालिये अनुसाशन में बंधे रखने में नाकामयाब सी दिख रही है | भाजपा - कांग्रेस के पास यहाँ कुछ खोने के लिए बचा ही नहीं है और ये दोनों दल अपने अपने चुनाव चिन्हों पर प्रत्याशियो को लड़ा कर अपना वजूद दुबारा हासिल करने में लगे हुये है | इन दोनों दलों को इनके ही अपने चिरागों ने जलाकर खाक कर डाला है , इनको निचा दिखाने के लिए गिरो की जरुरत ही नहीं है | अभी तो स्थानीय स्तर के मानिये के खजाने व दरवाजे आम जनता के लिए खुले हुये है , धर्मनिष्ठ - कर्तव्यनिष्ठ बनने की होड़ लगी हुई है | इस समय सारे प्रत्याशी जनता के हितो के लिए अपने को न्योछावर कर देना चाहते है और उसके लिए अपने को जनप्रतिनिधि बनाना चाहते है | काश यही ज़ज्बा वास्तव में इन प्रत्याशियो के आ जाता तो बजबजाती नाली , कूडो के ढेर ,मच्छरों की फौज , जलभराव , उबड़ खाबड़ सड़क आदि से निजात मिल जाये और जन सुविधाएँ बहाल हो सके |