Sunday, January 23, 2011

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर हुए विभिन्न कार्यक्रम

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर हुए विभिन्न कार्यक्रम

बाराबंकी।आजाद हिन्द फौज के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन पर विभिन्न संगठनों के द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।सर्वप्रथम शिवसेना के जिला अध्यक्ष किशन लाल रावत के नेतृत्व में अमित सैनी,रूद्र प्रताप,अनिरूद्ध प्रसाद आदि दर्जनों शिवसैनिकों ने अम्बेड़कर छाया चौराहे पर स्थित नेताजी की प्रतिमा पर मार्ल्यापण किया।्राष्टीय जनता दल के जिलाध्यक्ष रामकैलाश यादव,लालजी वर्मा,मनोज कुमार वर्मा,राजकमल भाष्कर,हरिश्चन्द्र यादव,अनिल श्रीवास्तव,दिनेश चन्द्र यादव,फिरोज वारसी,रामप्रसाद रावत,राजकिशोर वर्मा एवं रामप्रसाद गौतम ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।इसी क्रम में शहर के तमाम युवा रामनगर-बेगमगंज में एकत्र हुए।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन संघर्ष पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन युवा समाजसेवी अमित सिंह वर्मा के निवास पर किया गया।गोष्ठी में मुस्तैहसन जुबैर उर्फ जिम्मी,बृजेन्द्र सिंह,फैसल नसीम,अमित सिंह वर्मा,अब्दुल्ला नवेद,नितिन श्रीवास्तव,राजा बाली,फैज अहमद,मो0 राशिद,सुफियान गाजी,सईद अहमद खॉं,सैययद मो0हारिस,अतुल बाजपेई आदि युवाओं ने अपने सम्बोधन में नेताजी जैसे शख्सियत की भारत में पुनः आवश्यकता की बात कही।गोष्ठी के बाद यह सभी नौजवान भारत माता की जय व नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिन्दाबाद के नारे लगाते हुए अम्बेड़कर छाया चौराहे पर पहॅंुचे तथा नेताजी की प्रतिमा पर मार्ल्यापण किया।
शहर के ही नगर-पालिका प्रांगण में चित्राश महोत्सव का आयोजन किया गया जिसमें स्थानीय विधायक व उ0प्र0 सरकार के मंत्री संग्राम सिंह वर्मा ने हिस्सा लिया।

आजाद हिन्द फौज के नायक-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर विश्ेाष

आजाद हिन्द फौज के नायक-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर विश्ेाष
अरविन्द विद्रोही
कटक के वकील जानकीनाथ बोस के घर 23जनवरी, 1897 को एक पुत्र का जन्म हुआ।श्रीमती प्रभावती बोस व जानकीनाथ बोस का यह पुत्र मॉं भारती की बेड़ियां काटने के लिए ही मानो जन्मा था।यह बालक ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम से विश्व विख्यात हुआ।मेधावी प्रतिभा के धनी सुभाष ने बी0ए0आनर्स प्रथम श्रेणी में द्वितीए स्थान प्राप्त करने के पश्चात् पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आई0सी0एस की परीक्षा 1921 में लन्दन जाकर उत्तीर्ण की।सिविल सर्विसेज की नौकरी न करके सुभाष ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लगाया।
सुभाष चन्द्र बोस पर स्वामी विवेकानन्द,अरविन्द घोष का बड़ा गहरा प्रभाव था।किशोरावस्था में सुभाष ने देश में यात्रायें की।आजाद हिन्द फौज के इस सेनापति का स्वभाव आध्यात्मिक ही था।सन्यासियों के प्रति आर्कषण रखने वाले सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे समाजसेवी तथा स्वाभिमानी योद्धा थे।क्रान्तिकारियो। के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह के अनुसार,-‘‘सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तान के युवाओं के रूप में स्थापित हो चुके हैं।’’सुभाष को हिन्दुस्तान की आजादी का पक्का समर्थक बताते हुए भगत सिंह ने जुलाई 1928 के किरती में लिखा था कि सुभाष को प्राचीन संस्कृति का उपासक कहा जाता है।सुभाष चन्द्र बोस को ब्रितानिया हुकूमत तख्ता पलट गिरोह का सदस्य मानती थी।बंगाल अध्यादेश के तहत् सुभाष को कैद भी किया गया था।मद्रास सम्मेलन में सुभाश चन्द्र बोस,पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि के प्रयासों से ही पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव स्वीकृत हो सका था।आध्यात्मिक प्रवृत्ति के सुभाष चन्द्र बोस ने बम्बई में आयोजित एक जनसभा में,जिसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू कर रहे थे,में कहा कि,-‘‘हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष सन्देश है।वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा।.........चॉंदनी रात में ताजमहल को देखो और जिस दिल की यह समझ
का परिणाम था,उसकी महानता की कल्पना करो।सोचो,एक बंगाली उपन्यास कार ने लिखा है कि हममें यह हमारे आंसू ही जम-जम कर पत्थर बन गये हैं।राष्टीयता के सवाल पर सुभाष चन्द्र बोस ने कहा,-‘‘अन्तर राष्टीयता वादी, राष्टीयता वाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचार धारा बताते हैं,लेकिन यह भूल है।हिन्दुस्तानी राष्टीयता का विचार ऐसा नही है।वह न संकीर्ण है,न निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है,क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो यह ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ है,अर्थात‘सच,कल्याणकारी और सुन्दर’सुभाष चन्द्र बोस के नजरिए मे। पंचायती राज और जनता का राज की अवधारणा भारत के लिए नई चीज नहीं है,यह भारत की पुरातन व्यवस्था है।भावुक सुभाष चन्द्र बोस अपनी पुरातन मर्यादाओं और सिद्धान्तों के मानने वाले एक राजपरिवर्तन कारी व्यक्तित्व के थे।पूर्ण स्वराज्य के समर्थक सुभाष चन्द्र बोस,पश्चिम वासी अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ मजदूरों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा उनकी स्थिति में सुधार चाहने वाले थे।सुभाष चन्द्र बोस के फैसले दिल के फैसले होते थे।सुभाष चन्द्र बोस राष्टीय राजनीति में तब तक ध्यान देना आवश्यक समझते थे,जब तक दुनिया की राजनीति में हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल हो।देशबन्धु चित्तरंजन दास के राजनैतिक शिष्य सुभाष चन्द्र बोस,उनके निर्देश पर कलकत्ता की राष्टीय विद्यापीठ में प्रचार विभाग में कार्य करने लगे।सुभाष चन्द्र बोस को ‘‘बांग्लारकथा’’नामक अखबार का सम्पादन कार्य की जिम्मेदारी भी दी गई।1924 में चित्तरंजन दास के कलकत्ता के महापौर बनने पर सुभाष चन्द्र बोस को उन्होंने अपना कार्यकारी अधिकारी बनाया।समाजसेवी सुभाश चन्द्र बोस अपनी तनख्वाह गरीब छात्रों पर खर्च करने लगे।स्वंयसेवकों के संगठन का अपराधी होने के आरोप में सुभाष को छः माह की जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी।जेल से रिहायी के बाद देशबंधु चित्तरंजन दास के ‘फारवर्ड’ नामक पत्र का सम्पादन कार्य सुभाष चन्द्र बोस ने संभाला।25अक्तूबर,1924 को बगैर कारण पुनःहिरासत में ले लिए गये सुभाष को अस्वस्थ हो जाने पर ही 15मई,1927 को रिहा किया गया।बंगाल प्रांतीय समिति के अध्यक्ष के पद और उसके बाद अखिल भारतीय राष्टीय कांग्रेस के महामंत्री के पद पर कार्य करके सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिभा और व्यक्तित्व में निखार आया।बहुमुखी प्रतिभावान सुभाष चन्द्र बोस एक लेखक,सैनिक,दार्षनिक,राजनीतिज्ञ,कुशल प्रशासक,वक्ता,सेनानायक व भविष्य दृष्टा के रूप में युगों-युगों तक भारतीय जनमानस के,राष्टवादी विचारधारा के वाहको। के ह्दय सम्राट व आदर्श रहेंगें।सन्1930 में कलकत्ता के महापौर चुने जाने पर सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के अभिनन्दन की प्रथा को समाप्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया।साथ ही साथ कलकत्ता को स्वच्छ करवाया,आरोग्य सेवा के प्रचार प्रसार को प्रारम्भ कराया,‘‘महाजती सदन’’ का शिलान्यास गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के हाथों करवाया,सांस्कृतिक पारम्परिक कार्यक्रमों को पुनः आयोजित करवाना प्रारम्भ किया,प्रषासनिक दक्षता बढ़ायी,कल्याण कोषों की स्थापना तथा उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
सुभाष चन्द्र बोस के प्रभाव से परेशान ब्रितानिया हुकूमत,बार-बार सुभाष चन्द्र बोस को कैद करके इघर उधर के जेलों में रखती थी।सुभाष को अंग्रेज सरकार ने निर्वासित करके यूरोप भेज दिया।पिता की बीमारी की खबर सुनकर सुभाष चन्द्र बोस,भारत में निषेधाज्ञा की परवाह किये बगैर लौट आये।कराची में सुभाष चन्द्र बोस को रोक कर,उनकी पुस्तक ‘‘इंडियन स्टगल’’ को जब्त कर लिया गया।पिता की मृत्यु के पश्चात्,सुभाष चन्द्र बोस को अंत्येष्टि हेतु जाने मिला।अंत्येष्टि के पश्चात् सुभाश चन्द्र बोस ने भूमिगत होकर,यूरोपीय देशों का प्रवास कर वहॉं पर भारतीयों की आजादी के लिए समर्थन जुटाया।लन्दन में प्रवेश प्रतिबन्धित होने के कारण 10जून, 1933 को लन्दन में आयोजित तृतीय भारतीय राजनीतिक सभा के अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस का अध्यक्षीय भाषण पढ़कर सुनाया गया।हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्षीय भाषण,सुभाष चन्द्र बोस के इतिहास की गहरी जानकारी तथा अन्तर राष्टीय राजनीति के असाधारण ज्ञान का दस्तावेज है। सत्याग्रह को क्रियात्मक बनाने पर जोर देने वाले सुभाष चन्द्र बोस 1939 में पुनः त्रिपुरा कंाग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।महात्मा गॉंधी से राजनैतिक मतभेद के कारण सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी तथा 3मई,1939 को कलकत्ता में ‘‘फारवर्ड ब्लाक’’ की स्थापना कर बिखरी वाम शक्ति के एकीकरण तथा स्वतंत्रता आन्दोलन को तेज करने का प्रयास किया।द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ में ही ब्रितानिया हुकूमत ने सुभाष चन्द्र बोस को ‘‘हॉलवैल स्मारक हआओ’’ मुहिम के कारण कैद कर लिया।सुभाष चन्द्र बोस की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए यह ग्यारहवीं तथा अन्तिम जेल यात्रा साबित हुई। सुभाष चन्द्र बोस ने इस अन्याय व दमन के खिलाफ अंग्रेज सरकार को पत्र लिखा कि या तो उन्हें जेल से मुक्त किया जाये नहीं तो वे अनशन कर प्राण त्याग देगें।अंग्रेजों को लिखा यह पत्र सुभाष चन्द्र बोस की राजनैतिक वसीयत है।सप्ताह भर के अनशन के बाद अंग्रेजों ने 5दिसम्बर,1940 को सुभाष चन्द्र बोस को जेल से रिहा कर दिया।धूर्त अंग्रेजों ने सुभाष चन्द्र बोस को घर में नजरबन्द कर दिया।आखिरकार 18जनवरी,1941 को सुभाष चन्द्र बोस,मौलवी का वेष धर कर घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर,अपने भतीजे डॉ0 शिशिर बोस के द्वारा लाई गई कार में बैठ कर धनबाद पहुॅंचे।इस समय भारत की आजादी के लिए जापान में रह रहे,सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक रासबिहारी बोस ने जापान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदद के लिए तैयार कर,आजाद हिन्द फौज का गठन कर लिया था।15जून,1942 के बैंकाक सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस को जापान आकर इस फौज का नेतृत्व संभालने का निमंत्रण भेजा गया।सुभाष चन्द्र बोस 16मई,1943 को टोकियो-जापान पहुॅंचे।सुभाष चन्द्र बोस ने टोकियो रेडियो पर बोलते हुए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संग्राम के दृढ़ निश्चय और पूर्वी सरहद से आक्रमण आरम्भ करने की घोषणा की।4जुलाई,1943 को रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस को सौंपा।सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनाने तथा आजाद हिन्द फौज को लेकर हिन्दुस्तान जाने की घोषणा की।5जुलाई,1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का निरीक्षण कर ‘‘दिल्ली चलो’’ का उद्घोष किया।25अगस्त, 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का सिपहसालार पद ग्रहण कर,सेना में भारतीय युवतियों को लेकर ‘‘झॉंसी की रानी रेजीमेण्ट’’ बनाई। आजाद हिन्द फौज में गॉंधी,आजाद और नेहरू बिग्रेड़ बनाई गई।23अक्तूबर, 1943 को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार की तरफ से सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।जापान,जर्मनी,इटली,बर्मा,चीन,थाईलैण्ड़,फिलीपीन्स,मंचूरिया की सरकारों ने आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को मान्यता दी तथा 6नवम्बर,1943 को तोजो ने बृहत्तर पूर्व एशिया सम्मेलन में घोषणा की कि जापान ने अंडमान और निकोबार के टापुओं को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार के हाथों में सौंपने का फैसला किया है।31दिसम्बर,1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान पहुॅंच कर दोनो टापुओं का प्रशासन अपने हाथों में लेकर दोनों टापुओं का नाम क्रमश्ःः‘शहीद’ और ‘स्वराज्य’ द्वीप रखा।गॉंधी,आजाद व नेहरू बिग्रेड़ के चुनिन्दा सैनिकों को लेकर सितम्बर1943 में मलाया के ताइपिंग में पहली छापामार रेजीमेण्ट ‘सुभाष बिग्रेड’ के नाम से बनायी गयी थी।इसके सेनापति शाहनवाज खॉं बनाये गये।4जनवरी,1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून पहुॅंच कर,मुख्य कार्यालय स्थापित किया।3फरवरी,1944 को रंगून से सुभाश चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को जीत या शहादत के लिए रवाना किया। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों और भारतवासियों से सुभाष चन्द्र बोस ने कहा,-‘‘तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूॅंगा।’’शहनवाज खॉं,कप्तान सूरजमल,कमांडर अजब सिंह,मनसुख लाल,मेजर आबिद हुसैन,मेजर रतूरी आदि आजाद हिन्द के सेना नायकों ने अपनी सरजमीं की आजादी के लिए हरसम्भव प्रयास किये।इन रणबांकुरों ने अपने अदम्य शौर्य व साहस का प्रदर्शन करते हुए टेटमा,प्लेटवा,डलेटमा,मोडक चौकी,अल्वा चौकी,क्लंग-क्लंग चौकी,क्लालखुआ,कोहिमा पर तिरंगा फहरा कर नेताजी की जय और जय हिन्द के नारे लगाये।इम्फाल के निर्णायक युद्ध में हार चुकी अंग्रेज फौज भागने का मार्ग न मिलने के कारण लडती रही,प्रकृति ने अंग्रेजों का साथ दे दिया,भीषण बरसात ने आजाद हिन्द फौज को तितर-बितर कर दिया।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मन व शरीर दोनो से युद्ध,प्रशासन व संगठन तीनों मोर्चों पर एक साथ काम करते हुए फौजों का मनोबल व उत्साह बढ़ा रहे थे। इम्फाल में शिकस्त खाकर फौज रंगून लौटी।अमेरिका के द्वारा जापान पर अणु बम के हमले के बाद जापान ने हार स्वीकार कर ली परन्तु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हार न स्वीकारी।आपात कालीन फैसले लेते हुए गोपनीय दस्तावेज नष्ट करके,झंासी की रानी रेजीमेण्ट को भंग करके,युवतियों को घर भेजा गया।सारे साथियों को बर्मा से सकुशल बाहर निकाल कर,16अगस्त 1946 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर से बैंकाक होते हुए सैगोन,सैगोन से इण्डोचायना व फारमोसा द्वीप पहुॅंचे।फारमोसा के ताईहोकू हवाई अड्डे पर 18अगस्त,1945 को भोजन करने के पश्चात्,दो इंजन वाले जापानी बमबाज हवाई जहाज में बैठकर जैसे ही रवाना हुए,जहाज में आग लग गई।बुरी तरह जले हुए सुभाष चन्द्र बोस को अस्पताल ले जाया गया,जहॉं पर रात 8 से 9 बजे के बीच उनका देहान्त हो गया।इस दुर्घटना की बात को सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों व प्रशंसकों ने सत्य नहीं माना।आजादी के बाद भारत सरकार की जांच में यह दुर्घटना सत्य साबित हुई।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का अंतिम संदेश था,-’’मेरा अन्त समीप है,हबीब।देशवासियों से कहना कि आजादी की लड़ाई चालू रखें।भारत शीघ्र ही आजाद होने वाला है।’’ साहस,सह्दयता व नैतिकता की साक्षात् मूर्ति सुभाष चन्द्र बोस के दिल में महात्मा गॉंधी के एवं अहिंसा के प्रति गहन आस्था थी।परन्तु आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष को वे वीरोचित आचरण मानते थे।यह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे,जिन्होंने सर्वप्रथम रेडियो रंगून से महात्मा गॉंधी को ‘‘राष्टपिता’’ कह कर सम्बोधित किया था।सुभाष चन्द्र बोस ने एक बार कहा था,-‘‘एक बार भारत स्वतंत्र हो जाये,तो इसे मैं गॉंधी जी को सौंप दूॅंगा और कहूॅंगा कि अब इसे आपकी अहिंसा की सबसे ज्यादा जरूरत है।’’सुभाष चन्द्र बोस के संघर्ष,उनकी सोच व कर्मठता आज हमारे बीच प्रेरक बनकर,उनके सदैव हमारे साथ होने का अहसास कराने के साथ-साथ देशहित में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का पाठ पढ़ाती रहती है।

सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक-रास बिहारी बोस

सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक-रास बिहारी बोस

अरविन्द विद्रोही

भारत के स्वाधीनता संग्राम में सन् 1911 से लेकर 21 जनवरी 1945 तक,जब तक जीवन रहा,अपना योगदान अनवरत् देने वाले एकमात्र क्रान्तिकारी का नाम रास बिहारी बोस है।आपका जन्म 25मई,1885 को बंगाल में बर्द्धमान के सुबालदह गाॅंव में हुआ था।बंगाल में फैले क्रान्तिकारी आन्दोलन को सम्पूर्ण भारत में प्रसारित करने वाले आप ही हैं।अपने पिता विनोद बिहारी बोस को भारतीय स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करने का अपना इरादा बताकर व आर्शीवाद लेकर रास बिहारी बोस ने शिमला पहुॅंच कर एक छापेखाने में नौकरी की। फिर देहरादून के वन विभाग के शोध संस्थान में रसायन विभाग के संशोधन सहायक के पद पर कार्य किया।फे्रंच आधिपत्य वाले चन्दन नगर में रहकर बम बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके रास बिहारी बोस,शोध संस्थान में नौकरी बम निर्माण के लिए आवश्यक रासायनिक पदार्थ को प्राप्त करने के लिए कर रहे थे।देहरादून में ही इनकी मुलाकात जितेन्द्र मोहन चटर्जी से हुई। जितेन्द्र मोहन चटर्जी का पंजाब के क्रंातिकारियों लालचन्द फलक,सूफी अम्बाप्रसाद,सरदार अजित सिंह,सरदार किसन सिंह-भगतसिंह के पिता तथा लाला हरदयाल से घनिष्ठ सम्बन्ध था।जितेन्द्र मोहन चटर्जी जब इंग्लैण्ड जाने लगे तब उन्होंने रास बिहारी बोस का सम्पर्क पंजाब के साथ-साथ संयुक्त प्रांत के क्रंातिकारियों से कराया।इस समय बनारस क्रंातिकारी गतिविधियों का केन्द्र था।

कलकत्ता में क्रंातिकारियों के बढ़ते दबाव के कारण अंग्रेजों ने राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित कर दी।नई राजधानी दिल्ली में विश्व जगत को बताने के लिए कि इंग्लैण्ड का सम्राट ही भारत का वास्तविक सम्राट है,भारतीय राजाओं को सम्मानपूर्वक बुलाया था,और राजाओं ने निमंत्रण स्वीकार भी कर लिया था।रास बिहारी बोस ने तत्कालीन वायसराय हाॅर्डिंग पर फेंकने की योजना चन्दन नगर में आकर बनाई।योजना को क्रियान्वित करने के लिए 21सितम्बर,1912 को बसंत कुमार विश्वास दिल्ली के क्रंातिकारी अमीरचन्द के घर आ गये।दूसरे दिन 22सितम्बर को रास बिहारी बोस भी दिल्ली आ गये।23सितम्बर को शाही शोभायात्रा निकाली। हाथी पर सपत्नीक सवार वायसराय हार्डिंग्स का अंगरक्षक मैक्सवेल,महावत के पीछे और हौदे के बाहर छत्रधारी महावीर सिंह था।लोग सड़क किनारे खड़े होकर,घरों की छतों-खिड़कियों से इस विशाल शोभा यात्रा को देख रहे थे। शोभा यात्रा चांदनी चैक के बीच स्थित पंजाब नेशनल बैंक के सामने पहुॅंचा कि एकाएक भंयकर धमाका हुआ।इस बम विस्फोट में वायसराय को हल्की चोटें आई और छत्रधारी महावीर सिंह मारा गया।वायसराय को मारने में असफल रहने के बावजूद रास बिहारी बोस अंग्रेज सरकार के मन में भय उत्पन्न करने में कामयाब हो गये।बम विस्फोट के अपराधियों को पकड़वाने वालों को एक लाख रूपये पुरस्कार की घोषणा सरकार की तरफ से की गई। रास बिहारी बोस दिल्ली से वापस देहरादून आ गये।यहाॅं पहुॅंच कर रास बिहारी बोस ने सभा की तथा बम विस्फोट का निन्दा प्रस्ताव पारित कर वायसराय के स्वस्थ जीवन की कामना की।अनेक स्थानों पर रास बिहारी बोस ने ऐसी सभायें आयोजित कर के पुलिस की ओर से राजभक्त होने का सम्मान प्राप्त किया।कुछ दिनों बाद लाहौर के कमिष्नर गोर्डन के सम्मान में 17मई,1913 को मिंटगुमरी भवन में आयोजित सभा में भी बसंत कुमार विश्वास के हाथों रास बिहारी बोस ने बम फेंकवाया।गोर्डन बच गया परन्तु चपरासी मर गया।इसी समय क्रंातिकारियों ने सारे भारत में जनता के बीच सरकार के खिलाफ माहौल बनाने तथा स्वतंत्रता की भावना फैलाने के उद्देश्य से ‘‘लिबर्टी‘‘ नामक पर्चा वितरित किया।रास बिहारी बोस देहरादून से छुट्टी लेकर चन्दन नगर वापस आ गये।

चन्दन नगर में शचीन्द्रनाथ सान्याल एवं ज्योतिन्द्रनाथ मुखर्जी सन् सत्तावन की तरह एक बड़ा आन्दोलन करना चाहते थे।योजना के अनुसार मुखर्जी को बंगाल,शचीन्द्रनाथ सान्याल को संयुक्त प्रंात व रास बिहारी बोस को पंजाब में सेना तथा सामान्य जनता में विद्रोह की ज्वाला भड़काने की जिम्मेदारी मिली।मुखर्जी को जर्मनी से शस्त्र मंगाने की भी जिम्मेदारी दी गई।पंजाब में शस्त्रों के निरीक्षण के दौरान मुखर्जी के बांयें हाथ की उंगुलियाॅं जल गई।इसी बीच अंग्रेज सरकार ने दीनानाथ को पकड़ लिया। फिर पुलिस ने 19फरवरी,1914 को अवधबिहारी,अमीरचन्द,बालमुकुन्द,बसंत कुमार विश्वास को भी हिरासत में ले लिया।रास बिहारी बोस को भी पकड़ने के लिए इनाम घोषित किया गया।पिता को पत्र लिख कर रास बिहारी बोस ने अज्ञातवास स्वीकार लिया।अब रास बिहारी बोस के मन में 1857 के गदर की पुनरावृत्ति की योजनायें आकार लेने लगीं।तीन-तीन षड़यंत्रों के अभियुक्त रास बिहारी बोस को ब्रितानिया हुकूमत तेजी से तलाश रही थी।बोस एक वर्ष बनारस में रहे परन्तु पुलिस उनकी छाया तक भी न पहुॅंच पाई।बनारस में शचीन्द्रनाथ सान्याल थे ही,अमेरिका से गदर पार्टी के विष्णु गणेश पिंगले भी आ गये।पिंगले को गदर पार्टी ने रास बिहारी बोस को पंजाब में क्रंातिकारियों को संगठित करने के लिए तैयार करने हेतु भेजा था।पिंगले से मिलने के बाद बोस के साथी सान्याल पंजाब गये।31दिसम्बर,1914 को अमृतसर की पीरवाली धर्मशाला में क्रंातिकारियों की गुप्त बैठक हुई।पि।गले व सान्याल के साथ इस बैठक में कर्तार सिंह सराभा,पंडित परमानन्द,बलवन्त सिंह,हरनाम सिंह,विधान सिंह,भूला सिंह आदि प्रमुख लोग उपस्थित थे।रास बिहारी बोस जनवरी 1915 में पंजाब आये।कर्तार सिंह सराभा गज़ब के उत्साही और जोशीले थे।इन्होंने रास बिहारी बोस के साथ मिल कर सम्पूर्ण भारत में पुनः एक बार गदर करने की योजना बनाई।तारीख तय हुई-21फरवरी1915।देश के सभी क्रंातिकारियो। में जोश की लहर दौड़ पड़ी।सर्वत्र संगठन किया जाने लगा।लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।पंजाब पुलिस का जासूस सैनिक कृपाल सिंह क्रंातिकारियों की पार्टी में शामिल हो चुका था।पैसे के लिए उसने अपना जमीर बेच दिया,तैयारी की सूचना उसने अंग्रेजों को दे दी।परिणामस्वरूप समस्त भारत में धर पकड़,तलाशियां और गिरफतारियां हुईं।ऐसी स्थिति मे। गदर की योजना विफल हो जाने के बाद रास बिहारी बोस ने लाहौर छोड़ दिया।लाहौर से बनारस,फिर चन्दन नगर आ कर रहने लगे।रास बिहारी बोस ने पराधीन देशों का इतिहास पढ़ा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि बिना किसी अंतर्राष्टीय मदद के कोई भी पराधीन देश स्वतन्त्रता नहीं प्राप्त कर सका है। इसी समय गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जापान जाने वाले थे,रास बिहारी बोस ने गुरूदेव के पहुॅंचने के पहले जापान पहुॅंच कर व्यवस्था देखने का इरादा बता कर,प्रियनाथ टैगोर के नाम से टिकट लिया।कलकत्ते में भारत छोड़ने के पहले क्रंातिकारियों की बैठक कर क्रंाति की ज्योति सतत् जलाये रखने का अनुरोध किया।रास बिहारी बोस भारत भूमि को ब्रितानिया हुकूमत की दासता से मुक्ति की दिशा में कार्य करने हेतु 12मई,1915 को भारत से जापान के लिए मातृभूमि को अन्तिम प्रणाम कर चल दिये।रास बिहारी बोस ने 27नवम्बर, 1915 को जापान में आयोजित एक सभा में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में भाषण दिया।इस भाषण से जापान में यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई कि वे प्रियनाथ टैगोर न हो कर रास बिहारी बोस हैं।इस समय जापान व इंग्लैण्ड़ मित्र देश थे।जापान पुलिस ने गिरफतारी का वारण्ट जारी किया,रास बिहारी बोस भूमिगत हो गये।बोस ने जापान पहुंॅच कर मात्र चार माह में ही जापानी भाषा व शैली आत्मसात कर ली थी।‘‘हयाशी इचिरो’’ नाम रख कर बोस पूरे जापानी बन गये।बोस जापान की ब्लैक डैगन सोसायटी के अध्यक्ष तोयामा से मिले,तोयामा ने भरपूर मदद की।बोस ने जापान सरकार से बचने के लिए सत्रह बार अपना निवास बदला।1918 में तोशिको नामक युवती से शादी की।1923 में बोस जापान के नागरिक बन गये।इन वर्षों में रास बिहारी बोस ने भारत में हथियार भेजवाने,क्रंातिकारियों से सम्पर्क साधने तथा अंग्रेजी व जापानी भाषा में भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन पर किताबें लिखने का कार्य किया।रास बिहारी बोस की लिखी 15 पुस्तकें अभी भी उपलब्ध हैं।1923 में जापानी नागरिकता प्राप्त होने के पश्चात् रास बिहारी बोस खुल कर भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में कार्य करने लगे।1924 में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की तथा दक्षिण-पूर्व के कई देशों में इसकी शाखायें स्थापित की।28अक्तूबर,1937 को बोस ने ‘एशिया एशिया के लिए’ नारा देते हुए ‘‘एशिया युवक संघ’’ की स्थापना की।8दिसम्बर,1941 को जापान ने इंग्लैण्ड व अमेरिका के विरूद्ध युद्ध प्रारम्भ कर दिया।रास बिहारी बोस ने जापान के प्रधानमंत्री जनरल तोजो को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहायता करने के लिए तैयार कर लिया और जनरल तोजो ने जापानी संसद में घोषणा की कि यदि जापान विजयी हुआ तो वे भारत को स्वतंत्र कर देंगें। सिंगापुर जीतकर जापान ने भारतीय सेना के लगभग 1लाख लोगों को बन्दी बना लिया।रास बिहारी बोस के ही कहने पर जापान के सम्पर्क अधिकारी मेजर फुजिवारा ने भारतीय स्वाधीनता परिषद के साथ आजाद हिन्द फौज का गठन किया।इसके कमाण्डर मोहन सिंह तथा युद्ध परिषद के अध्यक्ष रास बिहारी बोस थे।रास बिहारी बोस द्वारा भारत की आजादी के लिए टोकियो सम्मेलन,बीदादरी सम्मेलन,बैंकाक सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया। टोकियो सम्मेलन में सम्पूर्ण व सार्वभौमिक स्वराज्य प्राप्ति का उद्देश्य का प्रस्ताव हुआ तथा बीदादरी सम्मेलन में आजाद हिन्द फौज के विस्तार की योजना बनी।15जून,1942 को बैंकाक सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस को जापान बुलाकर दक्षिण-पूर्व एशिया के राष्टीय आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया।सुभाष चन्द्र बोस पनडुब्बी की लम्बी व जोखिम भरी यात्रा करके 13जून,1943 को टोकियो पहुंॅचे।रास बिहारी बोस इस समय आन्दोलन के केन्द्र सिंगापुर में थे।सिंगापुर से रास बिहारी बोस टोकियो सुभाष चन्द्र बोस से मिलने आये,मुलाकात के बाद रास बिहारी बोस ने कर्नल यामामोही से कहा,‘‘मेरे कंधों का बोझ अब कम हो गया है।’’ 4जुलाई,1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान सुभाष चन्द्र बोस को सौंपी।सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वोच्च सलाहकार के पद पर रास बिहारी बोस को रखा।आजीवन संघर्ष व जीवन सहचरी तोशिको तथा पुत्र माशेहीदे के निधन से रास बिहारी बोस का मन व शरीर दोनो टूट चुके थे।नवम्बर1944 में सुभाष चन्द्र बोस जब रास बिहारी बोस के पास आये तो इनकी हालत खराब थी।स्थिति बिगडने पर जनवरी1945 में सरकारी अस्पताल टोकियो में उपचार हेतु भर्ती कराया गया। जापान के सम्राट ने उगते सूर्य के देश का दो किरणों वाला द्वितीय सर्वोच्च राष्टीय सम्मान से रास बिहारी बोस को विभूषित किया।रास बिहारी बोस 21जनवरी,1945 को परलोक सिधार गये।रास बिहारी बोस का निश्चित मत था कि विश्व में नवयुग,सत्य और षान्ति की स्थापना का दायित्व भारत का है और उसे सिद्ध करने का साधन भारत की स्वतंत्रता है।रास बिहारी बोस के कार्य,सुभाष चन्द्र बोस के कार्यों के लिए नींव के पत्थर व प्रेरक बने।प्रवासी क्रंातिकारियों में रास बिहारी बोस का नाम अग्रणी,चिर-स्मरणीय व वन्दनीय है।

भारत के नेताओं के प्रतिमा स्थल की बदहाली

भारत के नेताओं के प्रतिमा स्थल की बदहाली
अरविन्द विद्रोही
आज 23जनवरी है,भारत की ब्रितानिया हुकूमत से गुलामी से मुक्ति की लड़ाई में सशस्त्र सेना यानि की आजाद हिन्द फौज के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म दिन।आज से मात्र दो दिन बाद ही 26जनवरी अर्थात भारत का गणतंत्र है।भारत को ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति पाने की लड़ाई में अपना सम्पूर्ण जीपन होम करने वाले,समाज-देश व आम जनों के हितों के लिए ही राजनीति करने वाले मॉं भारती के सपूतों की प्रतिमा तथा उनके नाम से बने उद्यानों की सुधि लेने वाला बाराबंकी जनपद में कोई नही है।प्रशासन की नजरों की कौन कहे,इन महापुरूषों का नाम लेकर राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों,सामाजिक संगठनों को भी मानों कोई फिक्र नहीं है।
बाराबंकी शहर के अम्बेड़कर चौराहा पर डा0 भीमराव अम्बेड़कर,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,रामसेवक यादव,रफी अहमद किदवाई की प्रतिमायें बीचों-बीच स्थापित है।ज्ञात हो कि यह प्रतिमायें शहर के ही मूर्तिकार स्व0 रामगुलाम ने स्वेच्छा से बनाकर निःशुल्क प्रशासन को दी थी।नगर पालिका प्रशासन के द्वारा यहॉं पर सौन्दर्यीकरण कराया गया।अभी गुजरे वर्ष में इस स्थल पर सौन्दर्यीकरण के दौरान लगाया गया फौव्वारा पूरे जनपद के आर्कषण का केन्द्र बना।मगर यह फौव्वारा चन्द माह ही अपने मूल स्वरूप में रहा।लाखों रूपया खर्च होने के बावजूद यह स्थल आज राजनैतिज्ञों की मनमानी,अधिकारियों की लापरवाही तथा जनता की उदासीनता तथा खामोशी की सजा भुगत रहा है।इसी चौराहे पर चन्द कदम दूर स्थित राजा बलभद्र सिंह चहलारी की स्मृति में बने उद्यान के सामने मुख्य मार्ग पर इसी जगह पर स्थित एक नामी रेस्तरां द्वारा अपना निःप्रयोज्य खाद्यय सामग्री प्रतिदिन फेंकवाया जाता है।इस खाद्यय सामग्री को खाने के लिए दर्जनों गाय,सांड़ व कुत्ते यहां घूमा करते हैं।कोई भी एैसा दिन नही व्यतीत होता जब यहां पर इस कारण से दुर्घटना न होती हो।कई बार इस समस्या के विषय में प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराये जाने के बावजूद रेस्तरां के कर्मचारी यहीं पर निःप्रयोज्य साम्रगी फेंकते हैं।नगर पालिका के सफाई कर्मी भी कई बार यहां सड़क पर सामग्री फेंकने से इन कर्मचारियों को मना कर चुके हैं लेकिन इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।भगवान न करे कि कभी एैसा घटित हो लेकिन अगर कभी इस स्थल पर दुर्घटना में किसी की मृत्यु हो गई तो इसकी जवाबदेही प्रशासन,रेस्तरां मालिक,वाहन चालक,भुक्त-भोगी में से किस कि होगी,यह अनुत्तरित किन्तु विचारणीय प्रश्न है।
आज सामाजिक-राजनैतिक सोच व विचारों में गिरावट का ही परिणाम है कि आम नागरिकों की कौन कहे अधिकतर जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारी व जनप्रतिनिधि अपने कर्त्तव्यों का निर्वाहन न करके सिर्फ स्वयं स्वार्थ सिद्धि में और अपनी अपनी मलाईदार कुर्सी बचाने के फेर में पडे रहते है।अभी नव-वर्ष के स्वागत व शुभकामनाओं की होर्ड़िग्स,पोस्टर से पूरा शहर पटा पड़ा है।उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती के जन्म दिन के अवसर पर भव्य माहौल में कार्यक्रम आयोजित हुए।भारत रत्न से सम्मानित संविधान रचयिता डा0 भीमराव अम्बेड़कर के नाम के इस चौराहे तथा प्रतिमा स्थल को देखकर इन महापुरूषों के नाम पर राजनीति करने वाले दिल से इन चारों महान नेताओं की कितनी इज्जत करते हैं यह इस स्थल की बदहाली से साफ दिखता है।