Saturday, May 25, 2013

उत्तर-प्रदेश की राजनैतिक चौसर पर बिछती बिसाते - बेनी के बोल अनमोल अरविन्द विद्रोही

उत्तर-प्रदेश की राजनीति में हासिये पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी मरता क्या ना करता की तर्ज़ पर आख़िरकार नरेन्द्र मोदी , हिंदुत्व , विकास ,बाहुबलियों की शरण में जा चुकी है । भाजपा अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह की ताजपोशी के दिन से ही कयास लगने लगे थे कि अब भाजपा में ठाकुर- बाहुबली जुड़ना शुरू होंगे और यह होने भी लगा । विगत दिनों सुल्तानपुर में संपन्न हुई भाजपा की रैली में स्थानीय छत्रिय बाहुबली की दमदार उपस्थिति ने भाजपा की रणनीति का एक पक्ष उजागर कर ही दिया है । लोकसभा चुनावों में विजय हासिल करने हेतु भाजपा बाहुबलियों-दागियों को पुनः अंगीकार करने की शुरुआत कर चुकी है । लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र उत्तर-प्रदेश अत्यंत महत्वपूर्ण प्रदेश है । उत्तर-प्रदेश की राजनीति के दो प्रमुख राजनैतिक दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों के राष्ट्रीय अध्यक्षों का मानना है कि अगर उनका दल उत्तर-प्रदेश में बढ़त हासिल करके ५० सीटों पर विजय हासिल करले तो एन केन प्रकारेण वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हो ही जायेंगे । भाजपा में गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनावों के पूर्व ही भाजपा का प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित करने की मांग भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ताओं द्वारा करना अनवरत जारी है । पिछली लोकसभा गठन के समय भाजपा की हार के चलते प्रधानमंत्री बनने के स्थान पर मुँह ताकते रह गए वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी व उनके समर्थक पार्टी नेताओं को नरेन्द्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित हो यह कतई स्वीकार नहीं है । इसी बीच भारतीय जनता पार्टी में सर्वमान्य नेता के रूप में प्रधानमंत्री पद हेतु एक मुहीम उत्तर-प्रदेश के ही राजनाथ सिंह के पक्ष में भीतर खाने चलनी शुरू हो गई है । क्या पता भाजपा की सरकार बनने का अवसर आने पर अध्यक्ष पद की ही तरह भाग्य के धनी राजनाथ सिंह के लिए पुरानी कहावत बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा चरितार्थ हो ही जाये । और तो और यह सर्व विदित है कि कांग्रेस में भी अब राहुल गाँधी को अगला प्रधानमंत्री बनाये जाने की सहमति बन ही गई है सिर्फ उचित अवसर पर घोषणा या यूँ कहे ताजपोशी शेष है । उत्तर-प्रदेश की जटिलता भरी राजनीति में प्रधानमंत्री पद के तमाम दावेदार यही से हैं । उत्तर-प्रदेश के राजनैतिक किले को फतह करने की चाहत ही है कि भाजपा अपने सर्वाधिक लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी को लोकसभा के चुनावी दंगल में उत्तर-प्रदेश की किसी सीट से लड़ाकर माहौल अपने पक्ष में करने का मन बना चुकी है । बसपा सुप्रीमों मायावती अपने संगठन के समर्पित कार्यकर्ताओं के बलबूते एक मर्तबा फिर से मतदाताओं के विश्वास अर्जित करने की चेष्टा में लगी हैं । उत्तर-प्रदेश में अखिलेश सरकार को घेरने व उसकी खामियां उजागर करने का कोई भी अवसर बसपा प्रमुख मायावती नहीं गँवा रही हैं । उत्तर-प्रदेश की बहुमत प्राप्त अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व की सरकार को भंग करने की मांग तक महामहिम राज्यपाल से बसपा नेत्री कर चुकी हैं । बसपा के राजनैतिक प्रहारों का ही तीखा परिणाम है कि सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के निशाने पर बसपा का बीता शासनकाल रहता है , मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल को तानाशाही पूर्ण ,भ्रष्टाचार से सराबोर बताना सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कभी नहीं भूलते । बसपा प्रमुख मायावती और बसपा प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या द्वारा उठाये जाने वाले प्रश्नों /मामलों का सीधा जवाब देना शायद सपा नेतृत्व मुनासिब नहीं समझता । बसपा ही नहीं सपा सरकार पर प्रहार तो सभी विपक्षी दल करते हैं और सपा सरकार पर राजनैतिक प्रहार को सपा प्रवक्ता बड़ी खूबसूरती से विपक्षी दलों की बौखलाहट कहके किनारा कर लेते हैं । भाजपा के आरोपों को अत्यंत सहज भाव से नकार कर भाजपा को साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले दल घोषित करने वाला सपा नेतृत्व पुराने समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा - केंद्रीय इस्पात मंत्री के अनवरत जारी बयानों से असहज व हलकान हो चुका है । यह कथन अतिश्योक्ति न होगा कि बेनी प्रसाद वर्मा - केंद्रीय इस्पात मंत्री उत्तर-प्रदेश की राजनीति में एक अहम् भूमिका का निर्वाहन कर रहे हैं । कभी मुलायम सिंह यादव के प्रिय व खासमखास रहे उनके सखा , हमराह बेनी प्रसाद वर्मा अब अपनी स्मृतियों के पिटारे से नूतन जानकारियां प्रेस वार्ताओं में दे रहे हैं । राजनीति के अनोखे-निराले खेल का नजारा तो देखिये कि कभी कांग्रेस के मुखर विरोधी रहे बेनी प्रसाद वर्मा आज उत्तर-प्रदेश के एकमात्र कांग्रेसी नेता हैं जो उत्तर-प्रदेश की सत्ताधारी सपा सरकार व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से अपने बयानों व जनाधार के बूते सीधे दो दो हाथ करने की चुनौती पेश कर रहे हैं । किंग मेकर की भूमिका शुरू से ही निभाने वाले बेनी प्रसाद वर्मा की बेबाकी व कांग्रेस में बढ़े कद से कांग्रेस के भी तमाम घाघ मठाधीशों की नींद हराम हो चुकी है । उत्तर-प्रदेश विधानसभा २०१२ के चुनावों के दौरान बेनी प्रसाद वर्मा के खिलाफ गोंडा में कई सभाओं में नारेबाजी हुई और उनके पुत्र राकेश वर्मा - पूर्व कारागार मंत्री को भी दरियाबाद विधानसभा में पराजित होना पड़ा । पुराने कांग्रेसी मठाधीशों को और सपाइयों को लगा था कि अब बेनी प्रसाद वर्मा का कद व रुतबा कांग्रेस में कम हो जायेगा परन्तु समय बीतता गया और बेनी प्रसाद वर्मा के कद व रुतबे दोनों में वृद्धि हुई । शतरंज के खिलाडी बेनी प्रसाद वर्मा अवसर को ध्यान में रखते हुये अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ा से बड़ा जोखिम उठाने में तनिक संकोच नहीं करते हैं । अपने लड़ाकू तेवर व बेबाक बयानबाजी से चर्चा में बने रहने वाले बेनी प्रसाद वर्मा एक जमीनी नेता हैं । दरअसल बेनी प्रसाद वर्मा का आत्मविश्वास अपने स्वजातीय कुर्मी मतदाताओं पर टिका हुआ है । लगभग ९ प्रतिशत कुर्मी मतदाताओं के साथ-साथ बेनी प्रसाद वर्मा की नजर हमेशा अन्य पिछड़ा वर्ग सहित सभी जाति - धर्म के अपने व्यक्तिगत संबंधों वाले लोगों पर रहती है । सपा से वर्षों पुराना नाता तोड़ कर कांग्रेस में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने वाले पुराने समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा अब बहुत ही सुनियोजित तरीके से सपा में असंतुष्ट जमीनी पकड़ - जनाधार रखने वाले नेताओं से संवाद कायम कर चुके हैं । कयास तो यहाँ तक लगाया जा रहा है कि चिर असंतुष्ट एक वरिष्ठ मुस्लिम नेता की भी मध्यस्थों के माध्यम से बेनी प्रसाद वर्मा से राजनैतिक संवाद परवान चढ़ चूका है । अपने धुन के पक्के बेनी प्रसाद वर्मा एक साथ दो संदेश देने में जुटे हैं -- पहला मुलायम सिंह यादव का मुस्लिम प्रेम दिखावा है दूसरा मुलायम और भाजपा में भीतर खाने याराना है । सार्वजनिक बयानबाजी के अतिरिक्त पर्दे के पीछे बेनी प्रसाद वर्मा एक चतुर-सुजान राजनैतिज्ञ की भांति अपने संसदीय इलाके गोंडा सहित गृह जनपद बाराबंकी , कैसरगंज , बहराइच , श्रावस्ती , बलरामपुर , डुमरियागंज , महाराजगंज , खलीलाबाद , बस्ती , अम्बेडकरनगर , फैजाबाद लोकसभा इलाके में सपा सरकार से व्यथित मतदाताओं के सम्मुख खुद के तीखे बयानों से कांग्रेस को विकल्प के तौर पर स्थापित करने के भागीरथ प्रयास में लगे हैं । गोंडा लोकसभा में कोई सशक्त मुस्लिम प्रत्याशी ना होने के कारण बेनी प्रसाद वर्मा अपनी स्थिति दिन प्रति दिन मजबूत करने में कामयाब हो रहे हैं । गृह जनपद बाराबंकी सीट पर कांग्रेस सांसद पी एल पुनिया से बेनी प्रसाद वर्मा व जिला कमेटी की तल्खी सर्व विदित है ,वर्तमान सांसद का टिकट बदल कर यहाँ से कांग्रेस बेनी प्रसाद वर्मा के किसी पसंदीदा नेता को अपना प्रत्याशी घोषित कर दे तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगा । इसके अतिरिक्त इलाहाबाद से सोनभद्र तक के इलाके में बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा किया जा रहा गुणा - भाग अन्य दलों की रणनीति को प्रभावित कर सकता है । बहरहाल अपने समर्थकों और बाराबंकी की आम जनता के बीच विकास पुरुष की छवि रखने वाले बेनी प्रसाद वर्मा के तरकश में अभी कई सनसनीखेज बयानों के तीखे तीर मौजूद हैं जो सपा-भाजपा के रिश्तों की परत उधेड़ने का काम सफलतापूर्वक करेंगे , ऐसा उनके करीबी सूत्रों का दावा है । अपने बयानों से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव तक को असहज कर चुके बेनी प्रसाद वर्मा अगला बयान कब देंगे और क्या देंगे इसका इंतजार पत्रकारों के साथ-साथ जनता को भी रहता है । बेनी प्रसाद वर्मा के बयानों पर गंभीरतापूर्वक चर्चा अब खासकर मुस्लिम बस्तियों में जोर पकड़े हुए है जिसका सीधा नकारात्मक प्रभाव सपा के लोकसभा चुनाव के अपने विजय लक्ष्य पर पड़ता दिख रहा है । अपने अंतर्द्वंद में उलझी और सत्ता सुख के रसास्वादन में मशगूल सपा सरकार व संगठन के जिम्मेदारों का ध्यान अब मुलायम सिंह यादव के निर्देशों की अवहेलना करने वाले सपाइयों और जनता की बुनियादी जरूरतों बिजली-पानी-सड़क की तरफ भी नहीं जाता ऐसे परिस्थितियों में लाभ उठाने में कोई कसर विपक्षी दल नहीं रखना चाहते हैं और इस कार्य में फिलहाल बेनी प्रसाद वर्मा बाजी मारते दिख रहे हैं ।