Tuesday, February 28, 2012

अरविन्द केजरीवाल जैसे तीस मार-खां लोग सिर्फ बातो के वीर है


अरविन्द विद्रोही .............. अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग सिर्फ बातो के वीर है , धन लेकर ही कार्यक्रम करवाने वाले ये लोग सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओ के संघर्षमयी जीवन को क्या जाने ? अपराधियो को कोई अच्छा नहीं मानता लेकिन जन संघर्षो में दर्ज मुकदमो से कोई अपराधी नहीं होता ,वो तो जन नेता और जन प्रतिनिधि बन जाता है और जो अपराधी है उसको कोई बलिदानी नहीं मानता है | जनता जिसको ज्यादा पसंद करती है उसको अपना प्रतिनिधि चुनती है ,जनता के चयन के आधार क्या है यह सोचने की बात है |जनता अपने रोज मर्रा के सवालो को हाल करने वालो को , अपने लोगो को -भले ही उसका आधार जाति-धर्म हो मानती है | संसद पे,लोकतंत्र पे बार बार प्रहार व कुठाराघात करने से बेहतर है कि अपने को तीस मार खां समझने वाले ये विदेशी धन पे संस्था चलाने वाले लोग आम जनता के बीच ,किसानों-मजदूरों के बीच उनके जीवन से जुडी समस्याओ के लिए लड़े | डॉ लोहिया या और भी तमाम सामाजिक-राजनीतिक लोगो ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था की खामिओ और भ्रष्ट व तानाशाह सरकारों के खिलाफ हल्ला बोला था ,जनता को जगाने के लिए अपने विचार दिये और राजनीतिक संगठन बना के लडाई लड़ी ना कि भारत के आम जन को भड़काने व बरगलाने कि कुचेष्ठ करी जैसा कि ये लोग कर रहे है | राजनीतिक चेतना के बिना क्या मनमानी और तानाशाही का राज्य स्थापित करना चाहते है ये अरविन्द केजरीवाल जैसे लोग |अभी चुनावो में भागीदारी करनी चाहिए थी या आगे एक राजनीतिक दल बनाके अपने मुद्दों के साथ निर्वाचन के मैदान में आये और व्यवस्था परिवर्तन की लडाई लड़े ,किसने रोका है ? जनता को जगा के जन प्रतिनिधि बनने में क्या दिक्कत है ? एक बात सत्य है कि भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना कभी भी जनता को बरगलाना नहीं कहा जा सकता है | आज भारत की आम जनता तक की रक्त में भ्रस्टाचार जाने अनजाने प्रवाहित हो रहा है ,जनता को सुधरने के लिए चरित्र वान नेतृत्वकी जरुरत है जो आम जनता के बीच से ही संघर्षो से निकलेगा | अरविन्द केजरीवाल ,किरण बेदी आदि कितने ईमानदार है ये सबके सामने आ चुका है | जो व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग ना कर सके ,ये ना सुनिश्चित कर सके की उसका नाम मतदाता सूची में है की नहीं ,उससे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में कोई आशा रखना व्यर्थ है | भ्रष्ट गैर सरकारी संगठनो के लोगो,अपराधिक चरित्र के नेताओ के विषय में सिर्फ चर्चा की अपेक्षा राजनीतिक सुधार के लिए काम करना बेहतर है | ध्यान यह भी रखना है कि अन्याय-शोषण के खिलाफ लड़ना और अपने को बेहतर -बुद्धिमान साबित करने के लिए सिर्फ अपनी व अपने समूह की बात मनवाने के लिए काम करने में,दबाव डालने में अंतर होता है |अपने स्वार्थ सिद्धि के प्रयास में जुटे है ये गैर सरकारी संगठनो के कर्ता धर्ता | कितना हास्यास्पद है कि लोगो को जागरूक बनाने निकले अरविन्द केजरीवाल खुद कितना जागरूक है ये सभी ने देखा |अपना नाम है कि नहीं ये सुनिश्चित ना कर पाना गैर जिम्मेदारी है ,एक साधारण ग्रामीण तक अपना नाम बढवाने में कोई कसर नहीं रखते है,यह पता करते है कि नयी मतदाता सूची में नाम है कि नहीं ,किसी ने कटवा तो नहीं दिया ,इतना जागरूक है आम जन | अपने मत पर नज़र नहीं और दुसरो को प्रेरित करते घूम रहे है ,,अच्छा मजाक है ,, ये मिथ्या अहंकार में मदमस्त गैर जिम्मेदार ,लोकतंत्र विरोधी,सामाजिक न्याय के विरोधी चरित्र के है और सामंत वादी मानसिकता के पोषक है |इनका विरोध जारी रहेगा ,, ये कोई जनता की आशा के चिराग नहीं , पूंजीवादियो की लगायी आग है और ऐसी आग जिससे भारत भूमि के आमजन घर जले , तबाही आये और लोकतंत्र कमजोर हो |

Saturday, February 25, 2012

राम ,कृष्ण और शिव

सिर्फ मुस्लिम ही नहीं हिन्दू भी अपने को ठगा महसूस करता है ,क्या हिन्दू समुदाय की भावना की परवाह किसी को है ? मेरा मानना है कि कम से कम समाजवादियो- डॉ लोहिया के लोगो को हिन्दू-मुस्लिम में फर्क बंद करना चाहिए | राम ,कृष्ण और शिव भारत के जन की आत्मा में वास करते है ,बहुत लिखा है डॉ लोहिया ने ,पता नहीं क्यूँ समाजवादी भी एक समुदाय की बात करने लगते है ? आज पूरा प्रदेश-देश बुनियादी जरुरतो की कमी से त्रस्त है ,और क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सब परेशान है | जनता के हितो की जगह ये सिर्फ मुस्लिम की चिंता की बात करना वाजिब नहीं ,,,जब ये बात उठेगी सब से ज्यादा नुकसान समाज को होगा ,वोटो का फायदा भले ही किसी को हो जाये --- अरविन्द विद्रोही

Wednesday, February 22, 2012

डॉ लोहिया के कार्यक्रम,सिद्धांत और वर्तमान में समाजवादियों का दायित्व

अरविन्द विद्रोही ........................................ डॉ राम मनोहर लोहिया ब्रितानिया हुकूमत से आजादी की जंग लड़ने वाले सेनानी के साथ साथ आजाद भारत में कांग्रेस सरकार की गलत नीतिओ के खिलाफ लड़ने वाले महान समाजवादी चिन्तक व योद्धा भी थे | आजाद भारत में व्याप्त बुराइयों की जननी कांग्रेस को मानने वाले डॉ लोहिया ने गैर कांग्रेस वाद की आधार-शिला रखी थी| वर्तमान समय में अपने को डॉ लोहिया के अनुयायी मानने वाले लोगो में विचारधारा ,सिद्धांतो के अनुपालन का संकट व्याप्त है | राजनीतिक स्वार्थो और सत्ता की चाहत में समाजवादी पुरोधा डॉ लोहिया के सिद्धांतो की अनदेखी करना समाजवादी मूल्यों और समाजवादी राज्य की स्थापना के प्रयासों-संकल्पों पर कुठारा घात सरीखा ही होगा | डॉ लोहिया की गरीब-गुरबा के जीवन स्तर में सुधार की सोच के क्रियान्वयन की जगह राहत और बख्शीश की राजनीति से समाजवाद का परचम कैसे लहरा सकता है ? राहत और बख्शीश की राजनीति की जगह अधिकार और कर्त्तव्य के संघर्ष को आगे बढ़ाने का दायित्व अपने को डॉ लोहिया के लोग मानने वालो को ,राजनेताओ को शुरु करना चाहिए | डॉ राम मनोहर लोहिया आत्मा की आवाज की शक्ति को स्वीकार करते थे | साथ साथ सामाजिक और वस्तु परक सत्य को भी आत्मा की आवाज की शक्ति के जितना ही महत्व-पूर्ण मानते थे | डॉ लोहिया के अनुसार - समस्त निर्गुण सिद्धांत और आदर्श थोथे है और इनकी सार्थकता तभी हो सकती है जब इस निर्गुण आदर्शो को सगुण और संभव आचार संहिता में ढाल कर प्रस्तुत किया जाये | यह डॉ लोहिया ही थे जिन्होंने सगुण सिद्धांतो और गाँधी की प्रासंगिकता के माध्यम से तत्कालीन सरकारी नीतियो की प्रासंगिकता और गाँधी की प्रासंगिकता दोनों की चुनौतियो को देश के निवासियो के बीच विचार-विमर्श का मुद्दा बनाया ,इन मुद्दों पर बहस चलायी | डॉ लोहिया का जीवन चरित्र व संघर्ष कट्टर अहिंसक आंदोलनों और सिद्धांतो का ज्वलंत उदाहरण है | दफा १४४ का विरोध करते हुये पचासों बार जेल जाने वाले डॉ लोहिया ने आजाद भारत में पुरे देश के नागरिको के अधिकारों के हित के लिए , शासन सत्ता के जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुये एक सत्याग्रही के रूप में मारेंगे नहीं पर मानेंगे नहीं का एक निर्भीक दर्शन प्रस्तुत किया | भारतीय संविधान में दिये गये नैसर्गिक अधिकारों के विरुद्ध दफा १४४ को मानने वाले डॉ लोहिया के लोग देखते है कब दफा १४४ को ख़त्म करने का संघर्ष जीवित करते है या सत्ता मिलने पर दफा १४४ को ख़त्म करते है | डॉ लोहिया मूलता अस्वीकारवादी थे-गाँधी के सही मायनो में शिष्य थे ,प्रसिद्ध समाजवादी लेखक लक्ष्मी कान्त वर्मा के अनुसार ---- डॉ लोहिया का यह अस्वीकारवाद गाँधी के उस नैतिक बोध से विकसित हुआ है जिसके आधार पर गाँधी ने भारत में ब्रिटिश शासन को अनैतिक करार दिया था और यह कहा था कि मैं ब्रिटिश शासन का इसलिए विरोध करता हूँ कि अंग्रेजो का भारत में शासक के रूप में रहना अनैतिक है | उन्होंने तो अंग्रेजो को यह सलाह दी थी कि वे अपनी इस अनैतिक उपस्थिति को स्वीकार करके भारत छोड़ कर चले जाये | सन १९२०-२१ में ही गाँधी जी ने अंग्रेजो को यह सलाह दी थी और १९४२ में उन्होंने अंग्रेजो को भारत छोड़ो का नारा देकर भारतवासियों से कहा कि अंग्रेजो को भारत से हटाने के लिए करो या मरो के स्तर पर संघर्ष करे | डॉ लोहिया ने इसी नैतिक बोध के आधार पर पूरे समाजवादी आन्दोलन को संगठित किया था और गाँधी के मौलिक सिद्धांतो को भारतीय समाजवाद का एक अंग माना था | अंग्रेजी हटाओ ,सत्ता का विकेंद्री करण करो,ग्राम्य पंचायतो को स्वायत्ता और अधिकार दो ,चौखम्भा राज्य की स्थापना करो,स्वदेशी अपनाओ ये सारे के सारे समाजवादी कार्यक्रम गाँधी जी के सिद्धांतो पर आधारित थे और इसी आधार पर वह भारत की स्वायत्ता की रक्षा करना अपना नैतिक कर्त्तव्य मानते थे | गाँधी की नैतिकता का आधार यदि उनका मन था तो लोहिया का आधार भारत का सामाजिक यथार्थ था | गाँधी की आत्मा की आवाज और डॉ लोहिया के सामाजिक यथार्थ में कोई भेद नहीं है ,क्योंकि लोहिया भी देश का मन बनाने की बात करते थे | सीधे शब्दों में आत्मा के पारंपरिक अर्थ व्यूह में ना फंस कर वह मन की बात करते थे | बारीकी से देखे तो हम पाएंगे की लोहिया के मन में और गाँधी की आत्मा में कोई विशेष अंतर नहीं है | जो लोहिया का मन है वही गाँधी की आत्मा है | आज सामाजिक -राजनीतिक जीवन में नैतिक बोध समाप्त प्राय हो गया है | राजनेताओ के पास सिर्फ तिकड़म,व्यक्तिगत स्वार्थ और सत्ता लोलुपता ,सिद्धांत हीनता - विमुखता ही शेष बची है | राजनीति के अपराधी करण के बाद अपराध का राजनीतिकरण हो चुका है | व्यावसायिक उत्पादों की तरह नेताओ का प्रस्तुतीकरण जनता जनार्दन के सामने प्रचार माध्यमो के जरिये बदस्तूर जारी है | भाषण देने ,कुरता पहनने से लेकर कैसे कदम बढाया जाये ,कैसे हाथ हिलाया जाये इस तक का प्रशिक्षण लेकर आज लोग जन नेता बनने की तरफ अग्रसर है | नेताओ की कथनी करनी में गज़ब का विरोधाभास उत्तर प्रदेश विधान सभा के इस आम चुनाव २०१२ में देखने को मिला | डॉ लोहिया दूरदर्शी थे ,उनके चिंतन और साहित्य में आम जन के प्रति समर्पण साफ़ दीखता है | डॉ लोहिया की नीति भारत की आम जनता के हित में है | डॉ राम मनोहर लोहिया देश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार और उसकी नीतियो से उपज रहे हालातो से परेशान रहते थे | सरकार के द्वारा पनपायी जा रही यथास्थितिवादी जड़ता को कैसे समाप्त किया जाये ?, इसकी चिंता गाँधी के क्रांतिकारी स्वरुप को उभारने की चिंता ,हर पल बढती हिंसा ,अन्याय और समता विरोधी सरकारी कानूनों और शिकंजो को तोड़ने की चिंता ,यह तीन चिंताए डॉ लोहिया को आंदोलित करती थी | डॉ लोहिया देश की संस्कृति और चेतना का संरक्षण करते हुये सामाजिक न्याय और शोषण रहित समाज की संरचना की प्रक्रिया को तेज़ करने में विश्वास रखते थे | डॉ लोहिया लोकतंत्र की कसौटी पर जब आजाद भारत की कांग्रेसी सरकार के कार्यक्रमों की समीक्षा करते थे तो उन्हें अपार कष्ट होता था ,यही कष्ट गैर कांग्रेस वाद के सिद्धांत के जन्म का कारण बना | डॉ लोहिया का मानना था कि सरकार की यह जो गृह नीति है उससे भारत के आम जनों के नैसर्गिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा है | विदेश नीति में राष्ट्रीय हितो की बलि चढ़ाई जा रही है | आर्थिक नीतियो में उपभोक्ता-वादी दृष्टिकोण को अपनाया जा रहा है और बढ़ावा दिया जा रहा है | सरकार के द्वारा ग्राम्य विकास की उपेक्षा से, लघु और कुटीर उद्योगों की जगह सरकार के द्वारा अधिकार और सत्ता पर एकाधिपत्य ज़माने के लिए देश की प्रकृति के विरुद्ध भारी उद्योगों को अनावश्यक बढ़ावा देने के कारण डॉ लोहिया परेशान रहते थे | लोहिया की विशेषता थी कि वो जैसा महसूस करते थे वैसा ही व्यक्त भी कर देते थे | लोहिया के मतानुसार कि किसी भी सत्य को इसलिए ना कहना कि सत्य कहने से भय लगता है ,अनुचित है | असत्य पनपता रहे और आदमी उस असत्य को आने वाले सत्य की मृग मरीचिका में स्वीकार कर ले तो वह स्वयं को नष्ट और कलुषित करता है | लोहिया के जीवन संघर्ष के दो महत्व पूर्ण पक्ष सत्य बोलना और अन्याय के खिलाफ अविलम्ब संघर्ष करते रहना रहे है | लोहिया की नज़र में निर्भय होकर अन्याय के खिलाफ लडाई लड़ना ,सहारा लेकर अन्याय के खिलाफ लड़ने की पद्धति से अधिक शक्तिशाली है | लोहिया बिना हथियार के अन्याय के खिलाफ लड़ने की इच्छा शक्ति को अधिक महत्व पूर्ण मानते थे | डॉ लोहिया के ही अनुसार -- इस माध्यम से समाज के हर व्यक्ति की साझेदारी अन्याय को समाप्त करने में हो जाती है ,जबकि संगीन के सहारे लड़ने में ,जिसके पास संगीन नहीं है ,वह केवल मूक दर्शक बन कर रह जाता है | डॉ लोहिया की समाजवादी पार्टी के कार्यक्रमों का मूल आधार चौखम्भा राज था | डॉ लोहिया का साफ़ मानना था कि चौखम्भा राज कि ग्राम पंचायत कि इकाई तभी प्रभावी हो सकती है ,जब उसके काम काज की भाषा और प्रदेश तथा केंद्र की सरकार की काम काज की भाषा भारतीय भाषा हो | जब तक अंग्रेजी रहेगी तब तक भारत की कोई भी भाषा प्रयोग में नहीं आ सकेगी | इसलिए डॉ लोहिया ने अंग्रेजी हटाओ का कार्यक्रम दिया था | यह डॉ लोहिया की क्रांतिकारी सोच थी जिसका उद्देश्य मूल रूप से ग्राम पंचायत की इकाई में आत्म विश्वास पैदा करने को था | उनका मानना था कि अंग्रेजी धीरे धीरे नहीं एक झटके से समाप्त की जा सकती है | भाषा के साथ साथ शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन चाहने वाले डॉ लोहिया का सपना था कि प्रधान मंत्री का बेटा और प्रधान मंत्री के चपरासी का बेटा जब एक ही स्कूल में पढ़ेगा तो समता प्रधान समाज विकसित होगा | अंग्रेजी की वरीयता समाप्त हो जाने से अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की प्रभुता भी समाप्त हो जाएगी तथा भारतीय स्थानीय भाषा व हिंदी का महत्व बढेगा | डॉ लोहिया का कथन था कि -- अंग्रेजी इसी तरह जाएगी | डेढ़ मिनट में नहीं बल्कि एक सेकंड में | झटके में यह सब चीजे हुआ करती है | धीरे धीरे नहीं हुआ करती हैं | धीरे धीरे कहने वाला यह शासक और शोषक सामंती वर्ग है जो कि ८० करोड़ भारतीय जनता पर अपना राज चलाना चाहता है और इसीलिए इस मसले पर एक मजबूत विचार ना करके अंग्रेजी बनाये रखना चाहता है | अब हमें तयें करना चाहिए कि अंग्रेजी को अपने इलाके से हटायेंगे | जाती तोड़ो-समाज जोड़ो आन्दोलन ,विशेष अवसर का सिद्धांत की व्याख्या करते हुये डॉ लोहिया ने कहा कि --- जब तक तेली,अहीर, चमार,पासी आदि में से नेता नहीं निकलते ,छोटी जाति में कहे जाने वाले लोगो को जब तक उठने और उभरने का मौका नहीं दिया जता ,देश आगे नहीं बढ़ सकता | कांग्रेसी लोग कहते है पहले छोटी जाति के लोगो को योग्य बनाओ फिर कुर्सी दो | मेरा मानना है कि अवसर की गैर बराबरी का सिद्धांत अपनाना होगा | देश की अधिसंख्य जनता जिसमे तमोली ,चमार,दुसाध ,पासी,आदिवासी आदि शामिल है ,पिछले दो हज़ार वर्षो से दिमाग के काम से अलग रखे गये हैं | जब तक तीन चार हज़ार वर्षो के कुसंस्कार दूर नहीं होता ,सहारा देकर ऊँची जगहों पर छोटी जातियो को बैठना होगा | चाहे नालायक हो तब भी | इस देश ने ऊँची जातियो की योग्यता को बहुत देख लिया है | देश की गजटी नौकरियो ,राजनीतिक पार्टियो की नेतागिरी ,पलटन ,व्यापार आदि में जनता के दिमाग पर जो हजारो वर्ष का ताला बंद किया गया है,खुलेगा | दाम बांधो और आमदनी खर्ज पर सीमा लगाओ का नारा लोहिया ने शायद आजाद भारत के ग्रामीणों की दशा को देख कर लगाया था और संसद में पैरवी भी की थी | डॉ लोहिया के विचार और कार्यक्रम भारत के आम जन से जुड़े थे और आज भी जुड़े है | आज डॉ लोहिया के विचारो के दो टूक और निर्भीक सत्य की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है | अगर अपने को डॉ लोहिया के लोग मानने वालो ने इस पर ईमानदारी से काम किया होता तो आज पूरा देश समाजवादी आन्दोलन से जुड़ा होता | समाजवादियो को लोहिया के विचारो की चर्चा परिचर्चा के शिविर लगाने चाहिए , समाजवादी आन्दोलन में जातीयता की जकड़न की जगह समाजवादी विचारो की प्रखरता और कर्म का मिश्रण महत्वपूर्ण है | देश में व्याप्त समस्याओ- बुराइयों की जननी कांग्रेस के मुकाबिल अंततोगत्वा डॉ लोहिया के लोगो को खड़ा ही होना होगा और समाजवादियो की एका के सपने एक मधुर परन्तु दुष्कर स्वप्न की तरह आने बदस्तूर जारी है |

Thursday, February 16, 2012

अंतर्जाल के अनुभव व उपयोगिता -फेसबुक के मित्रो के नज़रिए से---

मेरे प्रश्न कि फेसबुक कि इस दुनिया में आपके अनुभव क्या है ? को मित्रो ने पसंद करते हुये इसके प्रतिउत्तर में अपनी टिप्पणी भी दर्ज करी | मेरे इस पोस्ट को पसंद व टिप्पणी करने वालो में गौतम बुद्ध नगर के जिला प्रचार ,प्रसार प्रमुख एवं विद्यार्थी कार्य प्रमुख - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अवधेश पाण्डेय ,ग्रेटर नोयडा के यूनाईटेड कालेज ऑफ़ इंजिनियरिंग एंड कालेज के अमित शुक्ल , लखनऊ इंदिरा नगर निवासी अमित तुलसी , बाराबंकी के मोहम्मद फैसल ,बाराबंकी के निवासी और बाबु बनारसी दास कालेज के दन्त चिकित्सा के विद्यार्थी शशांक शेखर मिश्र , लखनऊ से प्रकाशित लोकमत दैनिक पेपर के उप संपादक प्रणय विक्रम सिंह , आगरा के निवासी नरेश कुमार पारस , भिवंडी के निवासी बलवीर चौधरी , कलकत्ता के निवासी और व्यावसायिक प्रबंधन के विद्यार्थी सियाबिहारी शर्मा , बाराबंकी के निवासी सतीश कुमार सिंह , दिल्ली के मनीष कुमार शर्मा , दिल्ली में कार्यरत ताबिश रिज़वी , आज़मगढ़ के निवासी और वर्तमान में बैंगलोर में कार्यरत दरश यादव है |अवधेश पांडे जी ने फेसबुक को काम करने का साधन बताते हुये टिप्पणी की शुरुआत की | किसी दिन अवधेश पांडे की लिखी हुई रचनाओ को भी आप पाठको के सामने प्रस्तुत करूँगा ,वास्तव में अंतर्जाल को काम करने का ,अपनी भावनाओ को प्रचारित करने का माध्यम बनाने वालो में एक नाम पांडे जी का है ही | दरश यादव जी ने फेसबुक को राजनीतिक प्रचार व संपर्क का एक सशक्त-त्वरित माध्यम बताया और उन्होंने उदाहरण दिया कि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फेसबुक पे अपनी उपस्थिति से अपने समर्थको के लिए अपनी बात पहुचने में ,मिलने में आने वाली दुश्वारियो को सरल कर दिया है | मनीष कुमार शर्मा जी ने लोगो के पास समय की कमी होने के इन हालात में समाज को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम करार दिया और सतीश कुमार सिंह ने फेसबुक को दूर दराज़ के लोगो को आपस में जोड़ने के लिए धन्यवाद देते हुये अपनी भावना को उजागर किया |ताबिश रिज़वी जी जो की मेरे ५ मित्रो के साझा मित्र है और अभी मेरे फेसबुक की मित्र मंडली में शामिल नहीं है ,ने बहुत ही खूबसूरती से नकारात्मक और सकारात्मक पहलू का जिक्र अपनी टिप्पणी में किया | दिल्ली की निवासी कल्पना शर्मा के अनुसार समाज की तरह ही फेसबुक पर भी उनका अनुभव व्यक्ति दर व्यक्ति अलग रहा है और यहाँ अच्छे लोगो की तादाद उन्हें ज्यादा मिली | तमाम फेसबुक के समूह में अनजानों ने इस बात को पसंद तो किया लेकिन टिप्पणी नहीं की,खैर टिप्पणी आने पर उनकी बातो को आपके सम्मुख रखने की कोशिश करूँगा | आज लखनऊ के वरिष्ट सामाजिक कार्यकर्ता -लेखक राजीव चतुर्वेदी जी ने फेसबुक पे अभिव्यक्ति को लेकर एक सटीक रचना लिखी | अगले अंक में फेसबुक से अपनी पसंदीदा सार्थक रचनाओ और विचारो को लिखूंगा या उत्तर प्रदेश के राजनीति घमासान पर होने वाली फेसबुक पर चर्चाओ पर |

Monday, February 13, 2012

प्रियंका बढेरा भी भिखारी ?

मैं लिखना नहीं चाहता था लेकिन लिख रहा हूँ| उत्तर प्रदेश के मेहनत कश लोगो को भिखारी कहने वाले राहुल गाँधी खुद तो अपनी पार्टी के लिए पुरे उत्तर प्रदेश में घूम घूम के आम जनता से मतों की भीख मांग ही रहे थे उनकी बहन और राबर्ट बढेरा की पत्नी प्रियंका बढेरा भी आम जनता से मतों की भीख मांगने आ चुकी है | इन सभी को आभास हो चुका है कि इनको अब जनता मत नहीं देने वाली है | यह सभी जानते है कि जब भिखारी जान जाते है कि मुझे भीख नहीं मिलेगी तब वो अपने बच्चो को भीख मांगने के लिए जनता के सामने ले आते है और उनसे भीख मंगवाते है |धन रूपी भीख मांगने वालो के खिलाफ कानून है लेकिन बिना कोई जन हित का काम किये मासूम बच्चो को दिखा कर या मरे हुये लोगो की याद दिला कर भीख मांगने वालो के खिलाफ क्या कोई कानून नहीं है ?--- अरविन्द विद्रोही

Saturday, February 11, 2012

ई वी एम मशीनों में फेर बदल की आशंका

बाराबंकी में चनावी चर्चा मतदान संपन्न होने के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रही है | जगह जगह राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता गुणा भाग में दिन भर जुटे रहते है | प्रत्याशियो की हार जीत के कयास तो लग ही रहे है,जीत पर शर्तो को लगाने का दौर भी चरम पे है |केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की प्रतिष्ठा अपने पुत्र राकेश वर्मा-पूर्व कारागार मंत्री के दरियाबाद विधान सभा निर्वाचन में दांव पर लगी होने के कारण वहा पर जन चर्चाओ और संभावनाओ का बाज़ार गरम है | बेनी प्रसाद वर्मा -केंद्रीय इस्पात मंत्री के राजनीतिक तौर तरीको से विपक्षियो में बैचैनी व्याप्त है | ई वी एम मशीनों में फेर बदल बेनी प्रसाद वर्मा द्वारा करवाए जाने की आशंका से खौफ जदा बहुजन समाज पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओ को लगाया सुरक्षा में ,समाजवादी पार्टी के जिम्मेदार नेताओ ने भी चर्चाओ और आशंका के चलते अपने कार्यकर्ताओ को ई वी एम की सुरक्षा में लगाने और चुनाव आयोग को शिकायती पत्र भेजने का किया है निर्णय ,कल कर सकते है शिकायत |

Thursday, February 9, 2012

संभावित स्थानीय निकाय चुनाव

बाराबंकी जनपद में विधान सभा के आम चुनाव २०१२ के लिए मतदान संपन्न हो गये अब अप्रैल-मई में संभावित स्थानीय निकाय चुनावो के लिए संभावित दावेदारों ने कमर कस ली है | बाराबंकी के सामाजिक सोच रखने वाले मित्रो से अनुरोध है कि राजनीतिक दलों के बंधन से मुक्त होकर बाराबंकी की नगर पालिका के भावी अध्यक्ष और सभी वार्डों के भावी सभासदों के निर्वाचन की एक संयुक्त रणनीति बनायीं जाये | भ्रष्टाचारी व आपराधिक प्रवृति के संभावित प्रत्याशियो को चुनाव में शिकस्त देने के लिए आइये अभी से एक साथ जनमानस को लाम बंद किया जाये ----- अरविन्द विद्रोही

Wednesday, February 8, 2012

पी एल पुनिया पंजाब से आया हुआ घुस पैठिया

बिलकुल सही कहा है बाराबंकी के विकास पुरुष माने जाने वाले धुर समाजवादी बेनी प्रसाद वर्मा-वर्तमान केंद्रीय इस्पात मंत्री ने कि पी एल पुनिया पंजाब से आया हुआ घुस पैठिया है | बीते लोकसभा के चुनाव में जब कांग्रेस के टिकेट पर ये बाराबंकी सीट से चुनाव लड़ रहे थे तब ही हमने भी बाराबंकी में जगह जगह यह बात कही थी ,लेकिन अफ़सोस यह बेनी प्रसाद वर्मा की ही मेहरबानी है कि पी एल पुनिया बाराबंकी से सांसद निर्वाचित हो गये थे ----- अरविन्द विद्रोही

Friday, February 3, 2012

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव २०१२ की चकल्लस और मतदाता

अरविन्द विद्रोही ....................... जाति के रथ पे सवार तमाम राजनीतिक दलों की सेनाएं लोकतान्त्रिक रण भूमि में अपने कौशल दिखाने के लिए नाना प्रकार के हथकंडे अपनाने में कोई गुरेज़ नहीं करती है | वर्तमान राजनीति में नैतिकता की बातें कभी कदार जिह्वा का स्वाद बदलने हेतु राजनेता कर लेते है और फिर अपनी उस कही नैतिकता की बात पे रात गयी बात गयी वाला रुख अख्तियार कर लेते है | तमाम राजनीतिक दलों के सिद्धांत हीन,सत्ता लोलुप आचरण के ही कारण चुनाव आयोग तानाशाही रुख अख्तियार किये हुये है और तो और स्व गठित चन्द लोगो का एक समूह भी अब राजनीतिक दलों से बेवजह के सवाल-जवाब करने पर आमादा है | सड़क पर तमाशा खड़ा कर के,अंट-शंट कर के सदन को नकारने व चुनौती देने वाले स्वगठित समूह के लोगो की लोकतान्त्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत तक नहीं पड़ी और जगह जगह घूम कर कोरी बयान बाज़ी कर के अपने मुह मिया मिट्ठू बनने में लगे ये स्वयंभू लोग आत्म मुग्धता में डूबे ,उसी गलत फहमी की दरिया में डुबकी लगा रहे है |माना कि भावनाओ में बह कर भारत में जनता जुटती खूब है,खेल और तमाशे,नाटक-नौटंकी देखने में अपना समय भी देती है और उसका हिस्सा भी बनती है लेकिन जैसे ही उसको ये पता चलता है कि मदारी अब खेल दिखा चुका है और अब मदारी को खेल देखने के एवज़ में धन भी देना पड़ेगा ,जनता शाबाशी देकर ताली बजा कर अपना रास्ता पकड़ लेती है | जनता के व्यक्तिगत हित का काम लगातार करते रहते राजनेता भी जब चुनाव लड़ने के लिए चुनावी मैदान में उतारते है तो उनको आटे-दाल का भाव मालूम चल जाता है | जनता - मतदाता के पास अपना जन प्रतिनिधि चुनने की कई कसौटिया है , सभी कसौटियो पर कसे जाने और मुख्य चुनावी दौड़ में शामिल होने की बात साबित होने के बाद ही मतदाता अपनी नज़रे प्रत्याशी विशेष की तरफ इनायत करता है | अपने को बेहतर और अक्लमंद समझने वाले लोग चुनावी समर में आम जनता के सम्मुख जाने से घबराते है और तमाशा खड़ा कर के खुद को जनता की बात कहने वाला नुमाइन्दा साबित करने की कुचेष्टा में लगे है | चुनाव आयोग के सख्त निर्देशों के अनुपालन में जुटा प्रशासन देखते है कब तक राजनीतिक दबाव में नहीं आता है या भेद-भाव नहीं बरतता है | अब चुनावी नारे - गाने से सुसज्जित रथ विधान सभाओ में घुमने शुरु हो चुके है , चुनाव जीतने की व्यवस्थाएं प्रारंभ हो चुकी है ,देखना है कि चुनाव आयोग और प्रशासन इन व्यवस्थाओ को रोकने में कितना कामयाब साबित होता है | चुनाव प्रचार थमने के बाद और मतदान के पहले तक मतदाताओ को लोभ-लालच व जातीय उन्माद के बलबूते अपने अपने पाले में करने का खेल भी खेला जाना निश्चित है | चुनाव की इस बेला में प्रत्याशियो के पक्के समर्थक अपनी जी जन लगाकर अपने प्रत्याशी को जिताने की कोशिश में जुटे है ,चुनावी दंगल में मारपीट व हत्याओ का दौर इस विधान सभा चुनाव में भी शुरु हो चुका है | प्रशासन को ध्यान अधिक मतदान के साथ साथ शांति व्यवस्था बनाये रखने की तरफ भी ज्यादा देना पड़ेगा | चुनावो में आम मतदाताओ की अभी तक की ख़ामोशी ने प्रत्याशियो के साथ साथ उनके समर्थको के भी होश उड़ा दिये है |

हफ़ीज़ भारती ने संभाली संग्राम सिंह वर्मा के चुनाव की कमान ,चुनाव प्रचार शबाब पर

बाराबंकी विधान सभा २६८ में चुनाव प्रचार अपने शबाब पर पंहुचा | पीस पार्टी के अजय वर्मा ,भाजपा के संतोष सिंह ,कांग्रेस के छोटे लाल यादव चुनावी संघर्ष को और कठिन बनाने में जुटे | निर्दलिए मुकेश सिंह दौड़ से बाहर जाते हुये , कुर्मी मतों का ध्रुवीकरण शुरु हुआ ,बसपा के संग्राम सिंह वर्मा के लिए नवाबगंज नगर पालिका के अध्यक्ष हफ़ीज़ भारती ने लगायी अपनी पूरी ताकत ,मुस्लिम मतों के अलावा गोस्वामी-कायस्थ मतों के एकीकरण पर दे रहे है हफ़ीज़ भारती ज्यादा जोर |कल नगर पालिका नवाबगंज के पुरे इलाके में करेंगे हफ़ीज़ भारती के साथ संग्राम सिंह वर्मा-राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश ,प्रत्याशी बसपा सुबह ११ बजे से पद यात्रा | कराये हुये विकास कार्यो और कानून व्यवस्था पर मांग रहे है जनता से वोट | समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सुरेश यादव उर्फ़ धर्मराज यादव यादव मत के एकीकरण में ही जुटे है ,मुस्लिम मतों की ख़ामोशी सपा के लिए सर दर्द बनी हुई है | बाराबंकी विधान सभा में निर्णायक होंगे सवर्ण मतदाता एक बार फिर से |

Wednesday, February 1, 2012

उत्तर प्रदेश के लोगो को भिखारी कहने वाले कांग्रेस के महामंत्री राहुल गाँधी

उत्तर प्रदेश के लोगो को भिखारी कहने वाले कांग्रेस के महामंत्री राहुल गाँधी -सांसद ने कल बाराबंकी में दो जगह जनता से भीख मांगी | उत्तर प्रदेश के मेहनत कश लगो को भिखारी कहने वाला यह राहुल गाँधी अपने दल के प्रत्याशियो के लिए जगह जगह घूमकर मतों की भीख मांग रहा है | जनता से अनुरोध है कि मतों कि भीख मांग रहे इस राहुल गाँधी के किसी भी प्रत्याशी को मतदान मत करे , सरकार बनाने के बाद यह जनता क सिर्फ और सिर्फ भ्रस्टाचार,महंगाई,आतंकवाद ,गरीबी और तंगहाली ही देगा |भिखारी भी भीख लेने के बाद आशीर्वाद देता है और कांग्रेस मतदान से बनी सरकार के बाद आम जनता को लाठी-गोली देती है | कांग्रेस हराओ-देश व समाज बचाओ ---