Saturday, September 29, 2012

भगत सिंह के विचारो की आजाद भारत में प्रासंगिकता --- अरविन्द विद्रोही


वर्तमान समय में भगत सिंह के विचार कितने प्रासंगिक हैं, यह एक बड़ा प्रश्न है।सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता थे,वे क्रांति के उच्च आदर्शों की स्थापना के लिए संघर्षरत् थे। क्रांति क्या है ?,यह स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा,‘‘नौजवानों को क्रान्ति का यह संदेश देश के कोने कोने तक पहुँचाना है, फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में,गन्दी बस्तियों और गांवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रान्ति की अलख जगानी है जिससे आज़ादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।‘‘क्या क्रान्ति सफल हुई? क्या आम जनता को स्वतन्त्रता मिली? गोरे शासकों से सत्ता काले- भूरे शासकों को हस्तांतरित हो गई। आम जन पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है। लाल फीताशाही अपना परचम लहरा रही है। अन्नदाता,फटे कपड़ों में जिन्दगी ग़ुजार रहा है।किसानों की उपजाउ भूमि का अधिग्रहण बदस्तूर जारी है। जीवन भर दूसरों का घर बनाने वाला श्रमिक वर्ग बेघर है। अपनी आवाज उठाने पर जनता को लाठी-गोली खानी पड़ रही है।जनता की मेहनत की कमाई राजनेताओं की सनक व आपसी प्रतिद्वन्दिता का भेंट चढ़ रही है।सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का आरोप जिम्मेदार लोग एक दूसरे पर लगा रहें हैं।दण्ड़ देने के बजाए वोटबैंक बनाने के लिए दूसरे के वोटबैंक में सेंध लगा रहें हैं।युग दृष्टा थे सरदार भगत सिंह।इन स्थितियों का पूर्वानुमान उन्होने फरवरी 1931 में ही लगा लिया था।आपने क्रान्ति का अर्थ समझाते हुए लिखा,‘‘जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना।वास्तव में यही क्रान्ति है,बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी सड़ांध को ही आगे बढ़ाते हैं।किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छिपा सकती,लोग छल को पहचानते हैं।भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ भी नहीं चाहते।भारतीय श्रमिकों को-भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार हटाकर,जो कि उसी आर्थिक व्यवस्था के पैरोकार हैं,जिसकी जड़ें शोषण पर आधारित हैं-आगे आना है।हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते।बुराइयां ,एक स्वार्थी समूह की तरह,एक दूसरे का स्थान लेने के लिए तैयार हैं।‘‘आइये मंथन करें,आज भारत में शासक वर्ग क्या कर रहा है? क्या श्रमिकों-गरीबों-मज़लूमों-छात्रों-युवकों-आम जनों को उनका हक हासिल है? बड़े-बड़े नेता गाँव-गाँव जाकर अपनत्व का ढोंग नहीं कर रहे ? क्या दलितो-मजलूमों की आवाज बुलन्द करने वाले महापुरूषों के प्रचार-प्रसार को पूंजीवादी राजनैतिक दल झूठ का सहारा लेकर बाधित नहीं कर रहे? युग दृष्टा भगत सिंह ने इन परिस्थितियों को उसी समय दृष्टि में रखते हुए लिखा था कि-‘‘साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है।कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती।सभी विचारों वाले राष्टवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आज़ादी हासिल हो।पर उन्हे यह समझने की भी जरूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्यवाइयों से ही सफलता हासिल होगी।चूॅंकि इसका सरल समाधान नहीं हो सकता,इसलिए स्वयं को छलकर वे उस ओर लपकते हैं,जिसे वे आराजी इलाज,लेकिन झटपट और प्रभावशाली मानते हैं-अर्थात चन्द सैकड़े दृढ़ आदर्शवादी राष्टवादियों के सशस्त्र विद्रोह के जरिए विदेशी शासन को पलट कर राज्य का समाजवादी रास्ते पर पुर्नगठन।उन्हें समय की वास्तविकता में झांककर देखना चाहिए।हथियार बड़ी संख्या में प्राप्त नहीं हैं और जुझारू जनता से अलग होकर अशिक्षित गुट की बग़ावत की सफलता का इस युग में कोई अवसर नहीं है।राष्टवादियों की सफलता के लिए उनकी पूरी कौम को हरकत में आना चाहिए और बगावत के लिए खड़ा होना चाहिए।और क़ौम कांग्रेस के लाउडस्पीकर नहीं है,वरन् वे मजदूर-किसान हैं,जो भारत की 95प्रतिशत जनसंख्या है। राष्ट स्वयं को राष्टवाद के विश्वास पर ही हरकत में लायेगा,यानि साम्राज्यवाद और पूंजीपति की गुलामी से मुक्ति के विश्वास दिलाने से।हमें याद रखना चाहिए कि श्रमिक क्रान्ति के अतिरिक्त न किसी और क्रान्ति की इच्छा करनी चाहिए और न ही वह सफल ही हो सकती है।‘‘ युग दृष्टा सरदार भगत सिंह ने जून 1928 के किरती पत्र में एक लेख अछूत का सवाल में दलितों को अपनी ताकत बनाने और बाद में बचाये रखने का आह्वान किया।भगत सिंह ने लिखा था-हम मानते हैं कि उनके अपने जन प्रतिनिधि हों।वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगें ।हम तो साफ कहते हैं कि उठो,अछूत कहलाने वाले असली जनसेवकों तथा भाइयों उठो।अपना इतिहास देखो।गुरू गोविन्द सिंह की फ़ौज की असली शक्ति तुम्हीं थे।शिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सब कुछ कर सके,जिस कारण उनका नाम आज भी जिन्द़ा है।तुम्हारी कुर्बानियां स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं।तुम जो नित्य प्रति सेवा करके जनता के सुखों में बढ़ोत्तरी करके और जिन्दगी सम्भव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो,उसे हम लोग नहीं समझते!…….उठो, अपनी शक्ति को पहचानो।संगठनबद्ध हो जाओ।असल में स्वयं कोशिशें किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा।स्वतन्त्रता के लिए स्वाधीनता चाहने वालों को स्वयं यत्न करना चाहिए।इन्सान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गयी हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है,लेकिन जो उनके मातहत है उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाये रखना चाहता है।कहावत है,लातों के भूत बातों से नहीं मानते।अर्थात संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो।तब देखना,कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इन्कार करने की जुर्रत न कर सकेगा।तुम दूसरों की खुराक मत बनो। दूसरों के मुंह की ओर न ताको।लेकिन ध्यान रहे,नौकरशाही के झांसे में मत फॅंसना। यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती,बल्कि तुम्हें अपना मोहरा बनाना चाहती है।यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गुलामी और ग़रीबी का असली कारण है।इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना।उसकी चालों से बचना।तब सब कुछ ठीक हो जायेगा। तुम असली सर्वहारा हो…..संगठनबद्ध हो जाओ।तुम्हारी कुछ हानि न होगी।बस गुलामी की जंजीरें कट जायेंगी।उठो,और वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा।सामाजिक आन्दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो।तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो,वास्तविक शक्ति हो,सोये हुए शेरों,उठो,और बग़ावत खड़ी कर दो। इस तरह दलित शक्ति का भान रखते थे भगतसिंह।उनको विश्वास था कि इनके शक्तिशाली बनने पर पूंजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा इनको छल,प्रपंच,लोभ से बरगला कर इनके अपने नेतृत्व से अलग किया जायेगा।इसीलिए उनके साथ किसी भी हालात में न मिलने की चेतावनी दी थी-भगतसिंह ने।आज पूॅंजीपति ताकतें दलितों की एकता को खण्डित करने के लिए नाना प्रकार की नाटक नौटंकी कर रहीं हैं।नौजवानों से अपील करते हुए भगत सिंह ने लिखा,‘‘सभी मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय एैसे देशसेवकों की जरूरत है,जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दें।लेकिन क्या बुड्ढ़ों में ऐसे आदमी मिल सकेंगे?क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटो में फॅंसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे?यह तो वही नौजवान निकल सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फॅंसे हों।…….क्या हिन्दुस्तान के नौजवान अलग अलग रहकर अपना और अपने देश का अस्तित्व बचा पायेंगे ? अमृतसर में 11,12,13 अप्रैल 1928 को नौजवान भारत सभा का सम्मेलन हुआ।इसका घोषणा पत्र भगत सिंह और भगवतीचरण वोहरा ने तैयार किया था।घोषणा पत्र में लिखा गया,-‘‘हमनें केवल नौजवानों से ही अपील की है क्योंकि नौजवान बहादुर होते हैं,उदार एवं भावुक होते हैं,क्योंकि नौजवान भीषण अमानवीय यन्त्रणाओं को मुस्कराते हुए बर्दाश्त कर लेते हैं,और बगैर किसी प्रकार की हिचकिचाहट के मौत का सामना करते हैं,क्योंकि मानव प्रगति का सम्पूर्ण इतिहास आदमियों तथा औरतों के खून से लिखा है,क्योंकि सुधार हमेशा नौजवानों की शक्ति,साहस, आत्मबलिदान और भावात्मक विश्वास के बल पर ही प्राप्त हुए हैं- ऐसे नौजवान जो भय से परिचित नहीं हैं और जो सोचने के बजाए दिल से महसूस कहीं अधिक करते हैं।‘‘ धार्मिक उत्तेजना पर कटाक्ष करते हुए लिखा गया-‘‘पीपल की एक डाल टूटते ही हिन्दुओं की धार्मिक भावनायें चोटिल हो उठती हैं।बुतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिये नामक काग़ज के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह नापाक हिन्दुओं के खून से कम किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता।‘‘घोषणा पत्र में साफ-साफ कहा गया कि-‘‘हमारे हजारों मेधावी नौजवानों को अपना बहुमूल्य जीवन गावों में बिताना पड़ेगा और लोगों को समझाना पड़ेगा कि भारतीय क्रान्ति वास्तव में क्या होगी।…….सफलता मात्र एक संयोग है,जबकि बलिदान एक नियम है।………उनके जीवन अनवरत् असफलताओं के जीवन हो सकते हैं-गुरू गोविन्द सिंह को आजीवन जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था,हो सकता है उससे भी अधिक नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पडे।‘‘आगे लिखा,-‘‘नौजवान दोस्तों,इतनी बड़ी लड़ाई में अपने आप को अकेला पाकर हताश मत होना।अपनी शक्ति को पहचानो।अपने उपर भरोसा करो।सफलता आपकी है।धनहीन,निस्सहाय एवं साधनहीन अवस्था में भाग्य आज़माने के लिए अपने पुत्र को बाहर भेजते समय जेम्स गैरीबाल्डी की महान जननी ने उससे जो शब्द कहे थे,याद रखो।उसने कहा,‘‘दस में से नौ बार एक नौजवान के साथ जो सबसे अच्छी घटना हो सकती है,वह यह है कि उसे जहाज की छत पर से समुद्र में फेंक दिया जाये ताकि वह तैरकर या डूबकर स्वयं अपना रास्ता तय करें।‘‘प्रणाम है उस माँ को जिसने ये शब्द कहे और प्रणाम है उन लोगों को जो इन शब्दों पर अमल करेंगें। घोषणा-पत्र के अन्त में लिखा गया-इतालवी पुनरूत्थान के प्रसिध्द विद्वान मैजिनी ने एक बार कहा था,‘‘सभी महान राष्टीय आन्दोलनों का शुभारम्भ जनता के अविख्यात या अनजाने,गैर प्रभावशाली व्यक्तियों से होता है,जिनके पास समय और बाधाओं की परवाह न करने वाला विश्वास तथा इच्छा शक्ति के अलावा और कुछ नहीं होता।‘‘जीवन की नौका को लंगर उठाने दो।उसे सागर की लहरों पर तैरने दो और फिर- लंगर ठहरे हुए छिछले पानी में पड़ता है विस्तृत और आश्चर्यजनक सागर पर विश्वास करो जहाँ ज्वार हर समय ताज़ा रहता है और शक्तिशाली धारायें स्वतन्त्र होती हैं वहां अनायास,ऐ नौजवान कोलम्बस सत्य का नया तुम्हारा नया विश्व हो सकता है। मत हिचको,अवतार के सिध्दान्त को लेकर अपना दिमाग परेशान मत करो और उसे तुम्हें हतोत्साहित मत करने दो।हर व्यक्ति महान हो सकता है,बशर्ते कि वह प्रयास करे। अपने शहीदों को मत भूलो।करतार सिंह एक नौजवान था,फिर भी बीस वर्ष से कम की आयु में ही देश की सेवा के लिए आगे बढ़कर मुस्कराते हुए वन्देमात्रम के नारे के साथ वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ गया।भाई बालमुकुन्द और अवधबिहारी दोनों ने ही जब ध्येय के लिए जीवन दिया तो वे नौजवान थे।वे तुममें से ही थे। तुम्हें भी वैसा ही ईमानदार,देशभक्त और वैसा ही दिल से आज़ादी को प्यार करने वाला बनने का प्रयास करना चाहिए,जैसे कि वे लोग थे।सब्र और होशो-हवाश मत खोओ,साहस और आशा मत छोड़ो।स्थिरता और दृढ़ता को स्वभाव के रूप में अपनाओ।नौजवानों को चाहिए कि वे स्वतन्त्रता पूर्वक,गम्भीरता से,शान्ति और सब्र के साथ सोचें।उन्हें चाहिए कि वे भारतीय स्वतन्त्रता के आदर्श को अपने जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में अपनायें। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए।उन्हें अपने आपको बाहरी प्रभावों से दूर रख कर संगठित करना चाहिए।उन्हें चाहिए कि मक्कार तथा बेईमान लोगों के हाथों में न खेलें, जिनके साथ उनकी कोई समानता नहीं है और जो हर नाजुक मौक़े पर आदर्श का परित्याग कर देते हैं।उन्हें चाहिए कि संजीदगी और ईमानदारी के साथ ‘‘सेवा,त्याग,बलिदान‘‘ को अनुकरणीय वाक्य के रूप में अपना मार्गदर्शक बनायें।याद रखिये कि-राष्टनिर्माण के लिए हजारों अज्ञात स्त्री,पुरूषों के बलिदान की आवश्यकता होती है जो अपने आराम व हितों के मुकाबले तथा अपने एवं अपने प्रियजनों के प्राणों के मुक़ाबले देश की अधिक चिन्ता करते हैं। यह अपील,यह घोषणा पत्र आज भी प्रासंगिक है।सर्वहारा के हक पर पूंजीपति फन काढे बैठे हैं।राजनीति वंशानुगत जागीर हो गयी है।संघर्ष के रास्ते व्यवस्था परिवर्तन की अगुवाई कर रहे नेताओं को पूंजीवादी,वंशानुगत राजनीति के युवराज अपने भ्रमजाल के माध्यम से खत्म करना चाहते हैं।आज शोषितों,मजदूरों,युवाओं व सर्वहारा वर्ग को इनका फरेब समझना होगा।इन पूंजीवादी,साम्राजियों के भ्रमजाल में पड़ने के बजाए आर्थिक-मानसिक आजादी को हासिल करने के लिए राजनैतिक ताकत को एकजुट रखना पडेगा।आज फिर पूंजीपति गरीब रियाया को आडम्बरयुक्त आचरण से भरमाने हेतु गाँव-गली-कूचे तथा मलिन बस्तियों में फूट डालने,उनकी राजनैतिक ताकत को तोडने के लिए घूम रहे हैं।आज फिर युवकों को चाहिए कि जनजागरण पर निकल पड़ें।जनता को बतायें कि आज़ादी के बाद से अब तक उन्हें आर्थिक तरक्की नहीं मिली तो इसका जिम्मेदार कौन है?आज पुनः आवश्यकता आन पड़ी है कि बरसों के मेहनत व त्याग से अर्जित की गई सर्वहारा वर्ग की राजनैतिक शक्ति को पूंजीपतियों के ‘‘फूट डालो-राज करो‘‘नीति से बचाने की।

Thursday, September 27, 2012

२२ से २५ तक का मेरा दिल्ली प्रवास - अरविन्द विद्रोही

२२ को सुबह १० बजे दिल्ली पहुचने के पश्चात् सराय काले खां स्थित एक गेस्ट हाउस में दैनिक क्रिया से निवृत होकर मैं तक़रीबन दोपहर १ बजे जंतर मंतर पंहुचा | जंतर मंतर पर चल रहे प्रदर्शनों को देखते देखते एक घंटे कब गुजर गये ये पता ही नहीं चला | यहाँ से स्वामी अग्निवेश जी के कार्यालय में गया , स्वामी अग्निवेश जी के ना होने के कारण मुलाकात ना हो सकी | मित्र दीपक सिंह - महामंत्री जनता दल यू दिल्ली प्रदेश से दूरभाष से वार्ता करने पे ज्ञात हुआ की वे अपने कार्यालय में ही पार्टी की बैठक में मौजूद है | उनके निमंत्रण पे मैं उनके कार्यालय में गया | कार्यालय में जनता दल-यू के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह सहित दर्जनों प्रदेश पदाधिकारी २४ को होने वाले अपने कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारी बैठक कर रहे थे , दीपक सिंह के द्वारा मेरा परिचय कराने के बाद ठाकुर बलबीर सिंह ने सप्रेम पूर्वक मुझे भी अपने साथ बैठे रहने को कहा | कुछ समय पश्चात् जनता दल -यू के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण कुमार श्रीवास्तव के अपने भी कार्यालय में आने की सुचना मिली , जिनसे मिलने के लिए मैं उनके कार्यालय में तेजपाल सिंह के साथ गया | एक दशक के अन्तराल के पश्चात् मुलाकात के पश्चात् भी अरुण जी ने पहचान लिया ये मेरी आत्म संतुष्टि का कारण बना | जनता दल - यू के होने वाले दिल्ली प्रदेश के सम्मेलन में जिसमे शरद यादव जी को मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहना था से सम्बंधित एक प्रपत्र लिखने की जिम्मेदारी मुझे अरुण जी ने दी जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया | तभी जनता दल यू के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह का सन्देश आया कि जनता दल अध्यक्ष श्री शरद यादव जी के घर चलना है , सभी लोगो के साथ मैं भी शरद जी के घर रवाना हुआ | शरद यादव जी के घर तमाम छात्रों और पदाधिकारियों से मुलाकात हुई | तक़रीबन ८ बजे वहा से निकल कर मित्र दीपक सिंह के साथ जर्नलिस्ट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में गया जहा कमाल भाई ने हम लोगो को आमंत्रित किया था | वहा से १० बजे निकलने के पश्चात् दीपक सिंह ने अपने मित्रो के साथ मेरा परिचय और भोज का कार्यक्रम रखा था ,वहा गया | लगा ही नहीं उन सभी मित्रो से मिलकर कि आज पहली बार मिल रहा हूँ ,हिंदी गाने , ग़ज़ल , पंजाबी गाने और चुटकुलों को सुनते सुनाते और सह भोज का आनंद उठाते उठाते २ बज गये | रात्रि २.३० में गेस्ट हाउस पंहुचा और तुरंत सो गया | २३ तारीख को प्रातः ११.४५ बजे से राष्ट्रवादियो का लक्ष्मी नगर में एक सम्मेलन था जिसमे मित्र अवधेश पाण्डेय ने आमंत्रित किया था उसमे शिरकत के लिए मैं लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन ११ बजे पहुच गया , वहा अवधेश पाण्डेय जी के साथ कार्यक्रम स्थल गया | मित्र अवधेश पाण्डेय ने कार्यक्रम पश्चात् कार्यक्रम के विषय में अपनी कलम से जो लिखा वही प्रस्तुत है ---- दिल्ली में हुए ऐतिहासिक सम्मेलन का आयोजन अभूतपूर्व अनुभव रहा, आयोजकों के लिये भी और सम्मेलन में उपस्थित हो माँ भारती का गौरव बढ़ाने वाले भाई-बह्नों के लिये भी. देश के विभिन्न भागों से स्वत: प्रेरणा से आये लोगों का संगम अविस्मरणीय घटना है. आज जब जन-सामान्य राजनीति से घृणा करता है, तब देश को आगे ले जाने का संकल्प लेकर लोग किसी नेता के लिये अपना काम-धाम छोड़ दिल्ली आते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है. सम्मेलन में जहाँ सोशल मीडिया के नामी धुरंधर उपस्थित हुए, वहीं अन्य राष्ट्रभक्त भी पीछे न रहे. लगभग 150 के आसपास की संख्या रही होगी. जो लोग सम्मेलन में नहीं आ सके उनके लिये कार्यक्रम विवरण कलमबद्ध करने का परम सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, जो आप सभी को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित है. कार्यक्रम महन्त नित्यानंददास जी एवं एक अन्य उपस्थित बुजुर्ग द्वारा माँ भारती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलित करने के साथ प्रारंभ हुआ. दो सत्रों में संपन्न कार्यक्रम के प्रथम सत्र में देश की विभिन्न समस्याओं पर चिंता जताते हुए, वक्ताओं ने मोदी जी के द्वारा किये गये विकास कार्यों, समाज के लोगों में जाति-धर्म आदि का भेद न करते हुए सभी का समान विकास करने की भावना, पारदर्शी व कुशल प्रशासन, आतंकवाद से सख्ती से निपटने, नशाबंदी व गौरक्षा आदि के लिये मोदी जी के कार्यों जैसे अनेकों कारण गिनाये. मोदी जी की कार्यक्षमता का लोहा मानते हुए सभी ने माँ भारती के मंदिर के लिये मोदी जी को ही उपयुक्त पूजारी बताया. प्रथम सत्र के बाद भोजन की व्यवस्था भी थी. भोजन के उपरांत दूसरे सत्र में मोदी जी को राष्ट्र का नेतृत्व सौपने के मार्गों पर उपस्थित राष्ट्रवादियों ने निम्नलिखित सुझाव दिये. सुझाव अनंतिम है और आप लोग टिप्पणी के रूप में अपने बहुमूल्य सुझाव देने की कृपा करें तो यह राष्ट्रकार्य थोड़ा आसान हो सकता है. 1) युवाओं को राष्ट्र की समस्याओं से अवगत कराना और उन्हे अपने मताधिकार का प्रयोग करने का प्रोत्साहन देना 2) राष्ट्र के विरोधियों की पोल जनता के सामने खोलना, केन्द्र सरकार के घोटाले व उनके सहयोगियों के बारे में जनता को बताते हुए, मोदी जी के द्वारा कराये गये कार्यों को जनता के समक्ष रखना. 3) किसी भी संगठन से जुड़े लोगों को अपनी अपनी मातृ संस्थाओं पर दबाव डालना होगा. 4) देश में काँग्रेस के विरुद्ध माहौल है अत: मोदी जी को गैर काँग्रेसवाद का प्रतिनिधित्व करना होगा. 5) नारी शक्ति को राष्ट्र की समस्याओं से अवगत करा, उन्हे अपने आसपास चर्चा व मताधिकार का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहन देना होगा. 6) माननीय श्री सुरेश जी सोनी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, केशव कुँज, झण्डेवालान, नयी दिल्ली को पत्र भेज मोदी जी राष्ट्र रक्षा के लिये आगे करने का अनुरोध करना. 7) गली-मुहल्लों में नोटिस बोर्ड लगाकर मोदी जी के द्वारा कराये गये कार्यों का उल्लेख करना. 8) गाँवों और कस्बों में टोलियाँ बना देश की उन्नति के लिये मोदी जी जैसे अनुभवी व प्रामाणिक क्षमता की आवश्यकता के बारे में लोगों को बताना. 9) केन्द्र का रास्ता गुजरात के विधानसभा चुनाव से होकर जाने वाला है, अत: सभी राष्ट्रवादियों को गुजरात विधानसभा चुनाव में अपना समय देने के लिये तैयार रहना होगा. उपरोक्त प्रस्तावों को वास्तविकता का रूप देने के लिये अगली कार्ययोजना बैठक का भी विचार किया गया. सम्मेलन में आने वाले राष्ट्रभक्तों का सादर धन्यवाद. !! भारत माता की जय !! राष्ट्रवादियो का यह कार्यक्रम शाम ६बजे तक चला था | कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात् मैंने मित्र दीपक सिंह को दूरभाष से सुचना दिया और ७ बजे वो आये और मैं उनके साथ जनता दल यू के कार्यालय की तरफ चल पड़ा | सम्मेलन की तैयारियां अपने चरम पर थी | १० बजे तक वहा रहने के पश्चात् हम लोगो ने भोजन किया और वापस गेस्ट हाउस सराय काले खां आ गये | २४ तारीख को प्रातः १० बजे मैं तैयार होकर दीपक सिंह के साथ मान्वलकर सभागार पंहुचा | भव्य व्यवस्था के साथ साथ सुबह से ही कार्यकर्ताओ के हुजूम आने शुरू थे | दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह और उनके सभी पदाधिकारियों की मेहनत अपना रंग दिखा रही थी | ११ बजते बजते सभागार में कोई सीट खाली ना रही और बाहर भी सैकड़ो की तादात में कार्यकर्ता मौजूद रहे | खांटी समाजवादी शरद यादव - राष्ट्रीय अध्यक्ष जनता दल यू के साथ साथ राष्ट्रीय महासचिव अरुण कुमार श्रीवास्तव , गोविन्द यादव - अध्यक्ष मध्य प्रदेश ने कार्यकर्ता सम्मेलन को विशेष रूप से संबोधित किया | कार्यकर्ताओ के हुजूम और उत्साह से शरद यादव गद गद दिखे और उन्होंने कार्यकर्ताओ का उत्साह वर्धन किया | इस दिन मेरे छात्र जीवनसे मित्र रहे सैयद आमिर जो की दिल्ली में ही रहते रहते साथ साथ रहे और हमने खूब सारी बातें भी करी | दिल्ली प्रवास के अंतिम दिन २५ तारीख को प्रातः १० बजे मित्र दीपक सिंह के साथ प्रवीन प्रधान जी से मिलने उनके कार्यालय गया | वहा परिचय के पश्चात् कुछ सामाजिक कार्यक्रमों की योजना बनी जिसका क्रियान्वयन आने वाले दिनों में होगा | यहाँ से सुप्रीम कोर्ट पंहुचा जहा पर वरिष्ट अधिवक्ता श्री राजेंद्र वर्मा जी से मुलाकात करी | श्री राजेंद्र वर्मा जी से लगभग एक वर्ष के अन्तराल पर हुई दूसरी मुलाकात भी मेरे लिए बहुत उत्साहवर्धक रही | वरिष्ट लेखक - पत्रकार श्री मस्तराम कपूर जी से मुझे मेरी अगली दिल्ली यात्रा में मिलवायेंगे यह उन्होंने वायदा किया | वहा से जंतर मंतर होते हुये शाम ६.२० बजे पुरानी दिल्ली स्टेशन पंहुचा |अपने नियत समय ६.४० पे ट्रेन चल पड़ी और मैं उसमे सवार होकर अपने घर बाराबंकी वापस .......

Tuesday, September 11, 2012

हिन्दू धर्म-दर्शन व अध्यात्म के प्रचारक स्वामी विवेकानंद ----- अरविन्द विद्रोही

गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस की अमर वाणी, ‘‘सभी धर्म सत्य हैं और वे ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न उपाय मात्र हैं। ‘‘को आत्म सात् किये हुए स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो -अमेरिका में आयोजित होने वाले विराट धर्मसभा व महासम्मेलन में जाने का निश्चय मद्रास के शिष्यों के अनवरत् दबाव व इच्छा तथा एक रात को गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस को स्वप्न में देखा कि वे महासागर के अथाह जल में पैदल चलते चले जा रहें हैं और उन्हें अपने पीछे-पीछे आने को कह रहे हैं, देखकर किया था। मातु श्री शारदा देवी की आज्ञा उन्होंने विदेश यात्रा के लिए पत्र लिख कर मांगीं माता की आज्ञा व आशीर्वाद एक साथ प्राप्त हो गये। स्वामी विवेकानन्द ने सारी उलझनों को त्याग कर धर्मसभा में जाने का निश्चय किया। पश्चिम को हिन्दू दर्शन और अध्यात्म का सन्देश देने तथा गुलामी की जंजीरों में जकड़े स्वदेश को जाने के महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने 31मई 1893 को मातृभूमि भारत के सागर तट से जलयान पर सवार हो कर, अपनी यात्रा प्रारम्भ की। पश्चिम के वैज्ञानिक विकास को देखने-समझने की जिज्ञासा मन में समेटे स्वामी विवेकानन्द जहाज के सहयात्रियों तथा कैप्टेन के साथ परिचय प्राप्त कर घुलमिल गये। सागर की तरंगों से उत्पन्न संगीत को ध्यान का माध्यम बना कर विवेकानन्द ने सात दिनों की यात्रा के बाद, जहाज के श्रीलंका के बन्दरगाह पर पहूँचने पर कोलम्बों का नगर भ्रमण किया। बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म की विद्रोही शाखा व पूरक मानने वाले विवेकानन्द ने भगवान बुद्धदेव की महानिर्वाण अवस्था की मूर्ति के दर्शन किये। भाषा की कठिनाई के चलते वहाँ के पुरोहित से स्वामी विवेकानन्द की बात न हो पाई। कोलम्बो से जलयान चलकर मलाया, सुमात्रा, सिंगापुर होते हुए हांगकांग पहूँचा। यहाँ तीन दिन के प्रवास में स्वामी विवेकानन्द ने दक्षिण चीन की राजधानी कैण्टन की यात्रा कर ली। यहाँ भी बौद्ध मन्दिर के दर्शन किये और जापान पहूँचने पर नागासाकी, याकोहामा, ओसाका और टोक्यो को देखकर अपने शिष्यों को लिखा, – ‘‘भारत की मानो जराजीर्ण स्थिति से बुद्धि का भी नाश हो गया है! देश छोड़कर बाहर जाने से तुम लोगों की जाति बिगड़ जाती है! हजारों वर्ष पुराने इस कुसंस्कार का बोझ सिर पर धरे हुए तुम लोग बैठे हुए हो! हजारों वर्ष से खाद्य-अखाद्य की शुद्धा-शुद्धि पर विचार करते हुए तुम लोग अपनी शक्ति बरबाद कर रहे हो! पौरोहित्य रूपी मूर्खता के गम्भीर आवर्त में चक्कर काट रहे हो! सैकड़ों युग के लगातार सामाजिक अत्याचार से तुम्हारा सारा मनुष्यत्व नष्ट हो गया है!……..आओ, मनुष्य बनो। अपने संकीर्ण अन्धकूप से निकलकर बाहर जाकर देखो, सभी देश कैसे उन्नति के पथ पर चल रहें है। क्या तुम मनुष्य से प्रेम करते हो? तुम लोग क्या देश से प्रेम करते हो? तो फिर आओ हम भले बनने के लिए प्राणपण से चेष्टा करे। जहाज प्रशान्त महासागर पार कर बैंकुवर बन्दरगाह पहूँचा। स्वामी विवेकानन्द रेलमार्ग से 3दिन की यात्रा पूरी कर के शिकागों पहूँचे। गेरूवा वस्त्र धारी अपरिचित युवक को देख लोग घूरने व ठगने लगे। खिन्न होकर स्वामी विवेकानन्द एक होटल में जाकर विश्राम करने लगे। दूसरे दिन स्वामी विवेकानन्द प्रदर्शनी देखने गये। वहाँ पर भी अपरिचित युवा साधु को देखकर पत्रकारों ने परिचय प्राप्त किया। अत्यधिक व्यय से चिन्तित स्वामी विवेकानन्द को यह ज्ञात हुआ कि धर्मसभा का आयोजन सितम्बर माह में होगा तथा प्रतिनिधि के रूप में आवेदन पत्र भेजने का समय भी बीत चुका है। व्यय खर्च कम करने के उद्देश्य से विवेकानन्द बोस्टन चल पड़े। एक वृद्ध महिला से आकस्मिक भेंट हो गई। वृद्ध महिला ने अमेरिका में आये वेदान्त के इस प्रचारक को अपने घर अतिथि के रूप में रहने का आमंत्रण दिया। स्वामी विवेकानन्द का मन निश्चिन्त हुआ और वे उनके घर रहने लगे। यहीं पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विख्यात प्रोफेसर श्री जे0एच0राइट आये और स्वामी विवेकानन्द से परिचय होने के बाद, प्रभावित होकर, धर्मसभा से सम्बन्धित अपने मित्र मिस्टर बनी को पत्र लिखा, -‘‘मेरा विश्वास है कि यह अज्ञात हिन्दू सन्यासी हमारे सभी विद्वानों से अधिक विद्वान है। ’’स्वामी विवेकानन्द श्री राइट के लिखे इस पत्र को लेकर शिकागो आये, दुर्भाग्यवश वे पत्र को खो बैठे। भीषण शीतलहर में किसी तरह रात रेलवे मालगोदाम के सामने पड़े एक बडे से बक्से में बिताई। सड़क किनारे बैठे भूख से निढ़ाल स्वामी विवेकानन्द ने गुरूदेव का स्मरण किया ।जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द बैठे थे, वहीं सामने एक विशाल घर था। इसी घर से एक स्त्री ने बाहर आकर स्वामी विवेकानन्द से पूछा, ‘‘क्या आप धर्ममहासभा के प्रतिनिधि हैं? विवेकानन्द ने अपना पूरा हाल बताया। मिसेज जार्ज डब्ल्यू० हैल नामक इस स्त्री ने स्वामी विवेकानन्द को सादर अपने घर आमंत्रित किया, भोजन कराया तथा फिर उन्हें धर्म महासभा के कार्यालय ले कर गई। इस तरह विभिन्न लोगों के सहयोग तथा गुरूदेव के आशीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में ले लिए गये तथा वहा अतिथि भवन में रहने लगे। फिर वो घड़ी भी आ गई जिसके लिए स्वामी विवेकानन्द भारत भूमि से शिकागो पधारे थे।11सितम्बर1893 को प्रातः से ही शिकागो के आर्ट इंस्टिच्यूट के अन्दर बाहर हजारों का हुजूम एकत्र होने लगा। बड़े हाॅल में एक विशाल मंच पर बीचो-बीच एक बड़ी सी राजसिंहासन नुमा कुर्सी और दोनो तरफ पीछे की तीन पंक्तियों में अर्धगोलाकार तरीके से सजाई गई लकड़ी की कुर्सियां थी। बडे घण्टे की गूंज के साथ ही विश्व धर्म महासम्मेलन के अधिवेशन के सभापति चाल्र्स कैरोल बोनी और अमेरिकी कैथेलिक चर्च के प्रमुख पादरी कार्डिनल गिबन्स हाथ में हाथ डाले, समस्त अतिथि धर्म प्रतिनिधियों का नेतृत्व करते हुए मंच तक आये और फिर सभी लोग तयशुदा स्थान पर आसीन हो गये। चीन, जापान, यूनानी गिरजाघर, अफ्रीका, मिस्र तथा भारत के विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधि अपनी-अपनी वेशभूषा में आसीन हो गये । भारत से-प्रतापचन्द्र मजूमदार ब्रह्म समाज के, वीरचन्द्र गाँधी जैन धर्म के, श्रीमती ऐनी बेसेन्ट थियोसोफी की, नागरकर जी बम्बई के साथ-साथ स्वामी विवेकानन्द गेरूए अचकन और पगड़ी में एक विशुद्ध परिव्राजक के रूप में उपस्थित थे। स्वामी विवेकानन्द का वैराग्य साफ झलक रहा था। श्रोताओं और दर्शकों की निगाहें बरबस ही मंचासीन श्रेश्ठजनों से फिसलती हुई इसी युवा साधु पर टिक जाती थी। विश्व के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखने वाली यह धर्म महासभा, हिन्दू धर्म के इतिहास में नये युग का द्वार खोलने वाली सिद्ध हुई। विश्व के प्रत्येक कोने के करोड़ों व्यक्तियों की आस्थाओं व विचारों का प्रतिनिधित्व यहाँ हुआ। सभा का उद्घाटन मधुर वाद्य संगीत से हुआ। सर्वव्यापी परमेश्वर की स्तुति की गई । सभी का परिचय हुआ । सर्वप्रथम यूनानी गिरजाघर के प्रधान धर्माध्यक्ष ने बहुत ही उदार व भाव पूर्ण व्याख्यान दिया। फिर कई प्रतिनिधियो के व्याख्यान हुए । अपरान्ह में चार प्रतिनिधियों के पश्चात् स्वामी विवेकानन्द ने गुरू रामकृष्ण व जगदम्बा काली की शक्ति का स्मरण कर, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को मन ही मन नमन कर अंग्रेजी में अपना व्याख्यान प्रारम्भ किया,-‘‘अमेरिका की बहनों और भाईयो।’’। इस सम्बोधन का विद्युत प्रवाह श्रोताओं पर पड़ा एवं हाॅल काफी देर तक तालियों से गुंजायमान रहा। शिकागो स्थित आर्ट इंस्टिच्यूट के हाॅल में उपस्थित विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि तथा हजारों-हजार नागरिक भारत के इस युवा सन्यासी की वाणी के अधीन हो, सम्मोहित भाव से सुनते रहे और युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने आगे कहा, -‘‘आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हमारा स्वागत किया है, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा ह्दय अवर्णनीय हर्ष से भरा जा रहा है । संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से धन्यवाद देता हूँ। इस पर उपस्थित अपार जनसमूह द्वारा काफी समय तक जय ध्वनि की गई । फिर विवेकानन्द ने कहा,-‘‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है।’’ 11सितम्बर के तीसरे प्रहर की समाप्ति तक विवेकानन्द ने अपने इस प्रथम लघु व्याख्यान में साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उसकी वीभत्स धर्मान्धता की तीव्र भत्र्सना की। सत्रह दिनों तक लगातार प्रातः, दोपहर और शाम को सम्मेलन की बैठकें चलती रही। ।स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिया गया प्रथम लघु व्याख्यान श्रोताओं के ह्दय को स्पर्श कर गया था । सनातन धर्म की सहिष्णुता, सार्वभौमिकता, सच्चाई तथा विशालता का वर्णन स्वामी विवेकानन्द ने जिस भावपूर्ण तरीके से किया था, उससे सभी अत्यन्त प्रभावित हुए । चौथे दिन 15 सितम्बर को ‘‘हमारे मतभेद के कारण’’ विषय पर बोलते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कुएं के मेंढ़क की कथा सुनाने के बाद कहा कि, ‘‘हम सभी धर्मावलम्बी इसी प्रकार के अपने अपने कुएं में बैठकर अपने अपने धर्म को एक-दूसरे से बड़ा कह कर झगड़ा मोल ले रहें हैं । मैं आप अमेरिका वालों को धन्य कहता हूँ, क्योंकि आप हम लोगों के इन छोटे-छोटे संसारों की क्षुद्र सीमाओं को तोड़ने का महान प्रयत्न कर रहें हैं । ’’फिर 19सितम्बर को ‘‘हिन्दू धर्म’’ पर लिखित निबन्ध को श्रोताओं को बताते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि, ‘‘हिन्दू धर्म सभी प्रकार के धार्मिक विचारों तथा सभी प्रकार की आराधनाओं का समन्वय करता है । ’’वेदान्त दर्शन की व्याख्या के साथ-साथ परमेश्वर की सगुण उपासना का महत्व समझाते हुए उन्होंने सार्वभौमिक धर्म के विषय में उम्मीद जतायी और कहा- ‘‘जो किसी देश और काल से सीमाबद्ध नहीं होगा – वह उस असीम ईश्वर के समान ही असीम होगा, जो संसार के सभी कोटियों के सभी प्राणियो। पर एक सा प्रकाश वितरण करता रहेगा । यह विश्वधर्म सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लेगा और मानवता को सुकार्य एवं प्रेम का संदेश देगा । ’’इसी दिन स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका को सम्बोधित करते हुए कहा,- ‘‘ऐ स्वाधीनता की मातृभूमि कोलम्बिया, तू धन्य है । यह तेरा सौभाग्य है कि तूने अपने पड़ोसियों के रक्त से अपने हाथ नहीं भिगोये, तूने अपने पड़ोसियों का सर्वस्व हरण कर सहज में ही धनी और सम्पन्न होने की चेश्टा नहीं की, अतएव समन्वय की ध्वजा फहराते हुए सभ्यता की अग्रणी होकर चलने का सौभाग्य तेरा ही था । ’’20सितम्बर को ‘‘धर्म भारत की प्रधान आवश्यकता नही। ’’विषय पर अपने छोटे से भाषण में ईसाइयों के द्वारा भारत में भेजे हुए धर्म प्रचारकों की कटु निन्दा करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कहा, -‘‘आप ईसाई लोग जो मूर्तिपूजकों की आत्मा का उद्धार करने के लिए धर्म प्रचारकों को भेजने के लिए इतने उत्सुक रहते है। उनके शरीरों को भूख से मर जाने से बचाने के लिए कुछ क्यों नहीं करते?……………आप लोग सारे भारत में जाकर गिरजे बनवाते हैं, पर पूर्व का प्रधान अभाव धर्म नहीं है, उनके पास धर्म पर्याप्त है ।’’ 26सितम्बर को ‘‘बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म की निष्पत्ति’’ विषय पर व्याख्यान में स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म को बौद्ध धर्म की जननी बताया तथा बौद्ध धर्म की मौलिकताओं को भी बताया । स्वामी ने कहा,-‘‘हिन्दू धर्म बौद्ध धर्म के बिना नहीं रह सकता और न बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म के बिना ही । हिन्दू धर्म का पाण्डित्यपूर्ण दर्शन और बौद्ध धर्म का विशाल ह्दय दोनों जब तक पृथक पृथक रहेंगें, भारत का पतन अवश्यंभावी है, दोनो के सम्मिलन से ही भारत का कल्याण सम्भव है । ’’विश्व धर्म महासभा के अन्तिम दिन 27 सितम्बर को स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचार रखते हुए कहा,-‘‘इस महासभा ने जगत के समक्ष यदि कुछ प्रदर्शित किया है, तो वह यह है-इसने यह सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता किसी सम्प्रदाय विशेष की एकान्तिक सम्पत्ति नहीं है एवं प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अतिशय उन्नत चरित्र स्त्री-पुरुषों को जन्म दिया है । ……….शीघ्र ही सारे प्रतिरोधों के रहते हुए प्रत्येक धर्म की पताका पर यह लिखा होगा-‘‘सहायता करो, लड़ो मत । पर भाव ग्रहण, न कि पर भाव विनाश, समन्वय और शान्ति न कि मतभेद और कलह ।’’ शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों ने अज्ञात, अपरिचित गेरूआ वस्त्रधारी भारत के इस सन्यासी की प्रसिद्धी बढ़ा दी। जगह-जगह बड़ी-बड़ी आदमकद तस्वीरें लगाकर आदर प्रकट किया गया । न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा,-‘‘धर्म महासभा में वे निःसन्देह सर्वश्रेश्ठ व्यक्ति हैं । उन्हे सुनने के बाद लगता है कि उनके देश में हम धर्म प्रचारकों को भेजकर कैसा मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं । ’’विभिन्न समाचार पत्रों ने भारत के इस युवा सन्यासी के प्रशंसा में लेख लिखे । धर्मसभा में स्वामी विवेकानन्द को मिली सफलता एवं यश के समाचार भारत में भी पहूँचा । देश में एक आत्मगौरव की लहर तेजी से व्याप्त हो गई । आत्महीनता का स्थान आत्मगौरव ने ले लिया। तप और वैराग्य की घनीभूत शक्ति, गुरूदेव, माँ जगदम्बा, माता तथा माँ सरस्वती के आषीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द ने देश के जनमानस को आत्मविभोर कर, आत्मगौरव का अहसास करा दिया। शिकागो के इस धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द ने अपने कथन,- ‘‘जब भारत का इतिहास लिखा जाएगा, तब यह सिद्ध होगा कि धर्म के विषय में और ललित कलाओं में भारत सारे विश्व का प्रथम गुरू है ’’को अक्षरशः सिद्ध कर दिखाया था ।iv>

Saturday, September 8, 2012

कांग्रेस हराओ-देश बचाओ --- अरविन्द विद्रोही


डॉ राम मनोहर लोहिया आजाद भारत में व्याप्त बुराइयों की जननी कांग्रेस को मानते थे जो आज की परिस्थितियो में भी सत्य ही है | आगामी चुनावो में कांग्रेस को परास्त करने और सत्ता से बेदखल करने के लिए अपने अपने स्तर पे कार्य शुरू करना होगा | कांग्रेस की सरकार को समर्थन दे सकने वाले दलों को भी नकारना होगा | डॉ लोहिया का गैर कांग्रेस वाद का सपना आगामी लोकसभा चुनाव में साकार करने की मुहिम में आइये जुटा जाये | अब मैं तो जुट गया ,जो साथी इस विचार से सहमत हो वो अपनी राय देवें | कांग्रेस हराओ-देश बचाओ --- अरविन्द विद्रोही

Wednesday, September 5, 2012

विद्यार्थी की मनोकामना - ईश्वर से प्रार्थना ------------- अरविन्द विद्रोही


हे पूज्य गुरुदेवों सादर चरण स्पर्श । हे बृहस्पति गुरु,हे शुक्राचार्य, हे द्रोणाचार्य आदि गुरुओं की परम्परा के वाहक गुरुजन अपनी गौरवमयी परम्परा को याद करें ।यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि समाज को शिक्षित करके सत्मार्ग पर ले जाने वाले आप समाज के शिक्षक गण अपनी राह से भटक ही नहीं गये हैं वरन पथभ्रष्ट हो गये हैं ।यह वेदना है एक शिष्य की ........पीडा है आपके शिष्य के अंर्तमन की ।जिसका शीश किसी भी गुरुकुल के शिक्षक के सम्मान में झुक जाता था, वो शीश आज शिक्षकों के नित नये अनैतिक कारनामों के उजागर होने से शर्म व ग्लानि से धसां जा रहा है ।हे गुरुदेवों ....अपना पुर्न उत्थान करें ।अपनी ज्ञान उर्जा को शिक्षा जगत में , समाज को शिक्षित करने में लगाने का प्रयास करें । आप मॉं शारदे के पुत्र ,आपको यह सांसारिक लोभ लालच भ्रष्टाचार ने कैसे अपने बंधनो में जकड लिया है ।हे गुरुश्रेष्ठ -जागृत हो,मोह-लोभ की बेडियों को तोड दीजिए ।छोड दीजिए-ठेकेदारी का लालच ।मत मोड़िए ,अपनी शैक्षिक छवि को ,ज्ञान पुंज को-लोभ के दरिया में।व्यभिचार के कुंभ में बदलते अपने स्वरूप को तत्काल रोकें-गुरूदेवों ।हम महादेव के सामने सिर पटक चुके हैं कि हे महादेव-हमारे गुरूओं को सत्मार्ग पर लायें ।हम मॉं सरस्वती से विनयावत हो चुके हैं कि हे माते अपने पुत्रों को सहेजें ।हमने अपने छात्र जीवन की उन घटनाओं को याद किया है ,जब हे गुरूश्रेष्ठ-आप हमें सिर्फ असत्य बोल देने पर कक्षा में दण्डित करते थे ।आज आप ही के द्वारा दण्डित ,सत्मार्ग पर आपके ही द्व्रारा चलाये गये विधार्थी आपके सम्मुख चरण वन्दना को प्रस्तुत हैं-हे गुरूवर ,हे परशुराम ,हे वशिष्ठ आदि ऋषियों मुनियों की भॉंति हमें युगों-युगों से शिक्षित कर रहे शिक्षा के पुजारियों ,आप मॉं लक्ष्मी के पुजारी क्यों बन रहें हैं?आप अपना स्वरूप क्यों बिगाड रहें हैं?विद्या ददाति विनयम् आपने हमें पढाया था। आपकी उदारता ,आपका कर्त्तव्यबोघ ,समाज के प्रति आपका अनुराग कब ,कैसे ,क्यों और कहॉं लुप्त हो गया?हम चिंतातुर हैं मुनिवर् ।हम व्याकुल हैं ,आघुनिक भारत के शिक्षा गुरूओं-हम व्यथित हैं। हे जगतजननी मॉं ,आप ही दया करो। आने वाली अपनी औलादों के लिए हमारे गुरूओं की सद्बुध्दि वापस कर दो -मॉं! मॉं , हम अपने लिए नहीं वरन् अपने गुरूओं और अपनी संतानों और समाज के लिए आपसे गुरूओं को सत्मार्ग पर लाने की भिक्षा मॉंगते। हैं। हे भारतमाता। आप ही समझाओं इन गुरूश्रेष्ठों को। हे दुर्गा मॉं-आपसे तो असुर भी भय खाते थे ,क्या हमारे गुरू आपसे नहीं डरते?हे सनातन धर्म के कोटि2 देवताओं ,हे समस्त धर्मो के श्रध्देयों-हमारी ,विद्यार्थियों की विनती पर भी ध्यान दें ।हमारे शिक्षकों को मॉं सरस्वती का ही पुत्र रहने दें ।हमारे शिक्षकों को भ्रष्टाचार के दलदल से निकालो-कृष्ण ।हे वासुदेव कृष्ण-तुमने तो अधर्म के नाश के लिए चचेरे भाईयों में महाभारत कराकर धर्म की स्थापना की थी। हे मधुसूदन-अपने मामा कंस का वध आपने ही अत्याचार ,आतंक खत्म करने के लिए किया था ।अवतार ले लो हे चक्रधारी । हे सर्वशक्तिमान-सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता ।आप जिस भी रूप में हों, आपकी नजर तो सब पर है ।हम आपको नहीं देख पाते ,आपका डाक पता भी नहीं है ,इसलिए हम इस लेख के माध्यम से आप देवगणों से निवेदन करते हैं कि हमें सत्मार्ग दिखाते आ रहे हमारे गुरूओं ने अपना मार्ग बदल दिया है ,इन्हें राह पर लाने का कोई तो जुगाड. करो प्रभु ।हे सृष्टि रचयिता ब्रहमाजी-आपने कहॉं चूक कर दी?हे पालनहार विष्णु जी-आपने पालन में क्या असमानता कर दी?हे महादेव-क्या आपके त्रिनेत्र खोलने का समय आ गया है?नहीं2 महादेव नहीं , हम अपने गुरूदेवों की तरफ से क्षमाप्रार्थी हैं ।आपने तो समस्त दोषियों को अपनी गलती सुधारने का मौका दिया है ,उन्हें सचेत किया है ।फिर हमारे मार्गदर्शकों ,हमारे पूज्यनीयों के साथ यह भेदभाव क्यों?गुरूओं को अवसर दें प्रभु ।उन्हे सत्मार्ग पर लाने के लिए मॉं से बोलिए प्रभु ।अपने कर्मो से स्वयं अपना अपमान करा रहे गुरूवरों को दण्डित करने के बारे में अभी मत सोचें-महादेव ।भ्रष्टाचार के घनघोर बियावान में भटक रहे गुरूजनों को अपने ज्ञानपुंज से सदाचरण की राह पर लाओ मॉं ।।।।।।।।।।। इसी आाशा और विश्वास के साथ कि हमारी मनोकामना अतिशीघ्र पूरी होगी।

Tuesday, September 4, 2012

५ सितम्बर ,शिक्षक दिवस - डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्म दिवस-- अरविन्द विद्रोही


आज शिक्षक दिवस है।शिक्षक दिवस भारत के प्रथम उपराष्टपति 1952-1962 तथा द्वितीय राष्टपति 13मई,1962-13मई,1967 तक रहे डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन के अवसर पर मनाया जाता है।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5सितम्बर,1888 को तिरूट्टनी,तमिलनाडु में हुआ था।आपकी पत्नी का नाम शिवकामु था।अपने पीछे 1पुत्र तथा 5पुत्रियां आप छोड़ कर गये थे।डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रखर वक्ता तथा आदर्श शिक्षक थे।भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को अंगीकार किये दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान हिन्दू विचारक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 40वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये गये अपने व्याख्यान में कहा था कि-‘‘मानव को एक होना चाहिए।मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है।अब देशों की नीतियों का आधार विश्व शांति की स्थापना का प्रयत्न करना हो।‘‘ वास्तव में डाॅ0सर्वपल्ली राधाकृष्णन वसुघैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मानने वाले थे।पूरे विश्व को एक इकाई के रूप में रखकर शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डॉ०राधाकृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से छात्रों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे।शिक्षण कार्य में अपनी जबरदस्त पकड़ रखने के कारण दर्शन शास्त्र जैसे गंभीर विषय को भी अपनी शिक्षण शैली से वो रोचकता पैदा करके सरलतम रूप में छात्रों को समझाते-पढ़ाते थे।शिक्षण काल में छात्रों के मध्य कुछ रोचक प्रस्तुतियां,प्रेरक प्रसंग,हास्य-व्यंग्य की कहानियां प्रस्तुत करके छात्रों में सदैव शिक्षा के प्रति अभिरूचि बनाये रखने में कामयाब रहते थे- डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन। डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुमुखी प्रतिभा व व्यक्तित्व के धनी एक प्रसिद्ध विद्वान,शिक्षक,प्रखर वक्ता,कुशल प्रशासक,राजनयिक,देश-भक्त,दार्शनिक तथा शिक्षा-शास्त्री थे।शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय यांगदान रहा है।जीवन के उत्तरार्द्ध में भी उच्च पदों पर रहने के दौरान शैक्षिक क्षेत्र में आपका योगदान सदैव बना रहा।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे।मात्र सूचना व जानकारी को ही शिक्षा न मानते हुए डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन व्यक्ति के बौद्धिक,आध्यात्मिक,सामाजिक रूप से विकास को भी शिक्षा का अभिन्न अंग मानते थे।प्रत्येक नागरिक के मन में लोकतांत्रिक भावना व सामाजिक मूल्यों की स्थापना शिक्षा का मुख्य व महत्वपूर्ण कार्य मानते थे।डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार-शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति।वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान व कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है।करूणा,प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा का उद्देश्य हैं। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों।उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता है,तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए,शिक्षकों को अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए।सिर्फ शिक्षक बन जाने से सम्मान नहीं होता,सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है-यह कहना था डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का।