Monday, January 23, 2012

चुनाव आयोग अपने निर्णय की समीक्षा करे , सूंड उठाये हाथी को ढकना गैर जरुरी कृत्य

अरविन्द विद्रोही ......... सूंड उठाये हाथी को परदे के पीछे ढकने का चुनाव आयोग का फैसला पक्षपात पूर्ण ही है |बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान तो सूंड नीचे किये हुये हाथी है |सरकारी धन से बने और खरीद कर वितरित किये गये सभी चुनाव चिन्हों पर एक साथ एक तरह का निर्णय होना चाहिए था ,मसलन साइकिल को भी सरकारी धन से खरीद कर पुरे प्रदेश में वितरित किया गया ,सभी सरकारी भवनों में पंखा लगा है ,बाल्टी खरीदी गयी है ,हैण्ड पम्प लगा है जिसको आम जनता उपयोग भी कर रही है और देख भी रही है |सिर्फ और सिर्फ सनातन धर्म में समृधि के सूचक सूंड उठाये हुये हाथी जो कि बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान भी नहीं है को परदे में ढकने का आदेश देना चुनाव आयोग के एकतरफा -मनमाने और गैर व्यावहारिक फैसले की बानगी मात्र है | उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग में बहुजन समाज पार्टी जब नेपथ्य में जाने लगी थी तभी चुनाव आयोग ने एकदम से अपना यह फैसला दे दिया और चारो तरफ चुनाव आयोग के इसी निर्णय के कारण बसपा सरकार की सभी की गयी गलतियो की चर्चा होनी बंद हो गयी तथा सिर्फ हाथी और उस पर पर्दा यह चर्चा आम हो गयी | हाथी को चुनाव आयोग ने स्वतः संज्ञान में लिया और उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति को अपने एक ही फैसले से बदल दिया |बहुजन समाज पार्टी का अपना काडर वोट ,कट्टर समर्थक तक मायूस था ,चुनाव आयोग के इस निर्णय ने उनको एकदम से संजीविनी दे दी है |दलित बस्तिओ में एक जगह चुप-चाप एक साथ बैठ कर प्रति दिन हाथी पे पर्दा डाल कर क्यूँ ढका गया इस पर मंथन किया जाना जारी है |सूंड उठाये हाथी को बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान बता कर उस पर पर्दा डालने को अपने स्वाभिमान से सीधा जोड़ रहा है दलित समाज |बसपा के वे लोग भी जो किसी कारण वश स्थानीय बसपा विधायक से नाराज़ थे, इस प्रकरण के बाद जी जान से पार्टी के प्रचार में जुट गये है |चुनावी राजनीति में समाजवादी पार्टी से पिछड़ रही बहुजन समाज पार्टी को चुनाव आयोग ने जाने -अनजाने पुनः मजबूती देने का अद्भुत काम किया है |भारत-भूमि के सनातन समाज के दलित वर्ग को चुनाव आयोग का यह निर्णय अपनी भावनाओ पे कुठाराघात सरीखा प्रतीत हो रहा है ,बाकी दलों के चुनाव चिन्हों की तरफ चुनाव आयोग की ख़ामोशी उनके घावो को बरक़रार रखे है | चुनाव आयोग का यह फैसला गलत है , जिस हाथी को ढका गया वो बसपा का चुनाव चिन्ह नहीं है ,और सूंड उठाये हुये हाथी सनातन धर्म में समृधि का सूचक है उसको ढकना भावनाओ पे कुठाराघात है ,यह बात तेजी से आम जन मानस में घर करती जा रही है |मतदान की तारीख तक अगर हाथी पर पर्दा प्रकरण इसी प्रकार हावी रहा तो इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुजन समाज पार्टी को विधान सभा २०१२ के आम चुनावो में बढ़त मिल जाये और वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे | उत्तर प्रदेश जी राजधानी में जब बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ था और मायावती ने प्राथमिकता के आधार पर राजधानी लखनऊ में विभिन्न पार्को व पार्को में जगह जगह हाथी की प्रतिमा की स्थापना का काम शुरु करवाया तब भी बहुत कोहराम मचा था | राजनीतिक बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोप के साथ साथ माननीये न्यायलय में भी मायावती सरकार द्वारा करवाए जा रहे पार्को के निर्माण कार्य व हाथी की प्रतिमा की स्थापना पर रोक की याचिका दायर हुई | माननीये न्यायलय के ही फैसले के बाद ही पार्क का निर्माण कार्य - सौंदर्यी करण हुआ और हाथी की प्रतिमा भी लगी रही | माननीये न्यायलय ने इस बात को माना कि पार्को में लगाया जा रहा सूंड उठाये हाथी की ये प्रतिमाएं बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान नहीं है ,और सूंड उठाये हुये हाथी की प्रतिमा को लगाने में कोई दिक्कत नहीं है | और अब चुनावी बेला में अचानक चुनाव आयोग ने लखनऊ में लगी इन्ही सूंड उठाये हाथी की प्रतिमाओ को परदे में ढ़कने का निर्णय दे दिया कि इससे बहुजन समाज पार्टी के चुनाव निशान हाथी का प्रचार -प्रसार हो रहा है |इन हाथियो को बनाने और लगाने से लेकर ढकने तक में आम जनता का ही धन लगा है |आम जनता के धन से बनी चीजो को देखने से ,उपयोग करने से रोकना किस लिहाज़ से उचित है ? क्या माननीये न्यायलय का पार्को में सूंड उठाये हाथी की प्रतिमा लगने देने का निर्णय गलत था ? समाजवादी विचारक -नेता डॉ राम मनोहर लोहिया तात्कालिक अन्याय का विरोध करने में यकीन रखते थे और समाजवादियो से ,अपने अनुयायिओ से तात्कालिक अन्याय का विरोध करने को कहते थे | शरद यादव -अध्यक्ष जनता दल यू ने इस मामले में चुनाव आयोग के निर्णय को गलत करार देकर सही ही किया और एक सच्चे समाजवादी नेता के चरित्र को निभाया | भारत की सभी संवैधानिक संस्थानों को निष्पक्ष भाव से काम करना चाहिए लेकिन चुनाव आयोग के इस निर्णय पर सवालिया निशान लगने और बसपा सुप्रीमो व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा चुनाव आयोग को दलित विरोधी करार देने से चुनाव आयोग के जिम्मेदारो को मंथन करके अपने निर्णय पर गंभीरता पूर्वक पुनर्विचार करना चाहिए | स्वागत के लिए लगाए जाने वाले समृद्धि सूचक सूंड उठाये हाथी को परदे से ढकना न्याय संगत नहीं है यह बात दलित समाज ही नहीं सभी निष्पक्ष जनों को समझ में आ चुकी है |

उत्तर प्रदेश में चुनावी दंगल ,राहुल -अखिलेश का युवा नेतृत्व ,चुनौतियाँ और संभावनाएं

अरविन्द विद्रोही ................. उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति का पारा दिन प्रति दिन तेज़ी से बढ़ता ही जा रहा है | विधान सभा के आम चुनावो में हर हाल में चुनाव जीतने की ललक में राजनीतिक दलों ने तमाम स्वार्थी ,दल बदलुओं ,सिधान्त हीन व आपराधिक प्रवृति के लोगो को बगलगीर करने में ,गले लगाने में तनिक भी परहेज़ नहीं किया है | निश्चित रूप से प्रत्येक चुनाव प्रत्याशी व राजनीतिक दलों के लिए जीत हासिल करने के दृष्टिकोण से महत्व पूर्ण होता है | उत्तर प्रदेश का यह विधान सभा २०१२ का आम चुनाव तो राजनीतिक दलों के नेतृत्व की छमता के आकलन व युवा नेतृत्व की स्वीकारिता ,आम जन मानस में उनकी छवि के आकलन व असर के मद्देनज़र भी राजनीतिक विचारको-समीक्षकों के लिए रुचिकर व महत्व-पूर्ण हो गया है | उत्तर प्रदेश ही नहीं वरन भारत - भूमि की स्याह -संकीर्ण हो चुकी राजनीति में आम जनमानस भी तमाम मोह्पाशों में जकड़ा किंकर्तव्य विमूढ़ अवस्था में पहुँच चुका है | सामाजिक-राजनीतिक-विकास परक स्थानीय मुद्दों पर राजनीतिक दलों के उदासीन व मनमाने रवैये के कारण ही जाति-धर्म आधारित राजनीति ने अपनी हनक जनता के बीच जन प्रतिनिधि निर्वाचन में इस बार भी बदस्तूर जारी रखी है | भ्रष्ट व स्याह हो चुकी अवसरवादी-सिद्धांत हीन राजनीति के गलियारे में एक उम्मीद की करण राजनतिक दलों में युवा नेतृत्व ने जगा रखी है | लेकिन कश्मीर से कन्या-कुमारी तक राजनितिक दलों के आकाओं के पुत्र-पुत्री के युवा नेतृत्व के रूप में उभार को क्या सही मायनो में लोकतंत्र में युवा नेतृत्व माना जाना चाहिए ,यह एक यक्ष प्रश्न है | इस प्रश्न का जवाब इन्ही युवा नेताओ को अपने कर्मो व कार्य छमता से स्वयं को साबित करने के लिए स्वयं ही देना होगा | उत्तर प्रदेश की विधान सभा २०१२ की चुनावी रणभूमि में समूचे उत्तर प्रदेश में दो युवा चेहरे क्रमशः अखिलेश यादव -प्रदेश अध्यक्ष ,समाजवादी पार्टी और राहुल गाँधी - राष्ट्रीय महासचिव ,कांग्रेस अपने अपने राजनीतिक दलों की चुनावी जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाये हुये है | दोनों युवा नेताओ की सभाओ में जनता जम कर जमा हो रही है | अपने तेवरों व बयानों के कारण दोनों लगातार चर्चा में बने रहते है | जनता की भीड़ चर्चित चेहरों को देखने - सुनने में बहुत दिलचस्पी रखती है फिर चुनावो के समय प्रत्याशी जनता को आने जाने का सुविधा साधन भी उपलब्ध करते ही है ,सो जनता खूब जुटती है | जन सभाओ में जुटाए जाने वाले मजमे से मतदाताओ का रुझान व राजनीतिक लोकप्रियता का आकलन अक्सर गलत ही साबित होता है | कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी के द्वारा बिहार प्रदेश के संपन्न हुये विधान सभा में की गयी मेहनत व उनकी जन सभाओ में उमड़ती भीड़ के बाद आये चुनाव नतीजो तथा सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव की लोकसभा चुनाव में शिकस्त को कौन भुला सकता है ? राजनीति के व्यवसायी-करण की ही देन है कि आज राहुल गाँधी और अखिलेश यादव के व्यक्तित्व को विभिन्न प्रचार माध्यम से निखारने , तराशने व उभरने का काम एक सुनियोजित -चरण बद्ध योजना के तहत कांग्रेस-समाजवादी पार्टी कर रही है | अब इसे चाहे कोई सत्ता की वंशानुगत राजनीति कहे या संघर्ष की वंशानुगत राजनीति ,है तो ये वंशानुगत राजनीति ही ,इसे कोई नहीं नकार सकता है | राजनीतिक दलों के आकाओं ने अपने पुत्र,पुत्रिओं ,परिजनों को कमान सौंप कर अपने संगठन में मुख्य केंद्रीय निर्णायक भूमिका देकर संगठन में उनके दबदबे व महत्व को स्थापित करने का काम किया है | कांग्रेस व सपा दोनों के नेता ,चाहे वो वरिष्ठ नेता ही या युवा ,सभी अपने अपने दल के राजनीतिक आका के पुत्र-परिजन का यश -गुणगान करते ही है | कांग्रेस की पूरी मशीनिरी व प्रत्याशी राहुल गाँधी के कार्यक्रमों - दौरों को सफल बनाने में जुटी हुई है और समाजवादी पार्टी के सभी प्रत्याशी-नेतागण अखिलेश यादव को ,अखिलेश यादन के क्रांति रथ को अपने विधान सभा में पा कर स्वागत कर के अपने को धन्य मानते है | राहुल गाँधी और अखिलेश यादव दोनों के ही इर्द गिर्द राजनीति का ताना-बना बुनने की कोशिश कांग्रेस-सपा का शीर्ष नेतृत्व चाह रहा है | राहुल गाँधी के सम्मुख कांग्रेस के भीतर कोई भी चुनौती नहीं है ,बहन प्रियंका भी साथ देने वक़्त आने पर मुस्तैदी से आ ही जाती है वही दूसरी तरफ सपा के अन्दर समाजवादियो के आशाओं के केंद्र बिंदु बनकर उभरे अखिलेश यादव के सम्मुख पारिवारिक चुनौती भी मौजूद है | चाचा शिवपाल यादव -नेता प्रतिपक्ष के अलावा अब प्रतीक यादव की राजनीतिक हसरते हिलोरे मारती दिख रही है | राहुल गाँधी को जहा सिर्फ दुसरे दलों पर प्रहार करके कांग्रेस की रहे बनाते हुये अपनी उपयोगिता साबित करनी है वही अखिलेश यादव सपा के भीतर भी वर्चस्व की लडाई लड़ने को विवश है | स्वयं निर्भीक निर्णय लेने की छमता में अखिलेश यादव ने राहुल गाँधी को शिकस्त देकर अपनी वैचारिक दृठता व संगठन पर पकड़ मजबूत होने का आभास करा दिया है | अंत में सत्य यह है आम जनता दोनों को सिर्फ देखने सुनने के लिए ही जुट रही है | इनके विचारो-बयानों का भरपूर रसास्वादन व समीक्षा आम जनता कर रही है | प्रत्याशी व स्थानीय -जातीय आधार को प्रमुखता से ध्यान में रखकर इस बार मतदाता मतदान करेगा ,यह आसार साफ़ तौर पर प्रतीत हो रहा है | परंपरागत मतदाताओ को अपने पक्ष में करने में अखिलेश यादव कामयाब दिख रहे है वही राहुल गाँधी को कई जगह विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ रहा है | उत्तर प्रदेश के विधान सभा के २०१२ के आम चुनाव इन दोनों युवा नेताओ के व्यक्तिगत राजनीतिक आभा-मण्डल को प्रभावित करेंगे | उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के सम्मुख जहाँ चुनौती अधिक है वही उनसे उम्मीद भी बहुत है
| अपनी युवा बिग्रेड के सहारे अखिलेश यादव पार्टी के अन्दर बाहर की हर जंग लड़ने व जीतने के लिए कमर कसे दीखते हैं , वही राहुल गाँधी को सिर्फ पार्टी के लिए ,प्रत्याशियो के लिए सिर्फ प्रचार करना और भाषण करना है |