Sunday, December 30, 2012

गुज़रा राजनितिक परिदृश और जनमानस ------ अरविन्द विद्रोही

भारत जैसे विशाल भू भाग वाले देश में विभिन्न धर्म को मानने वालों को समानता का दर्ज़ा प्राप्त है । भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि निर्वाचन का अवसर प्राप्त है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सामान्य जनमानस को प्रदत्त ताकत ही है कि बहुमत प्राप्त सत्ता अहंकार में मदमस्त हो जाने वाले सत्ताधिसों को आमचुनावो में अपने एक एक मत से आम जनमानस सत्ता से बेदखल कर देता है। परिवर्तन का ऐसा तूफान उत्पन्न अहंकारी वा मदमस्त जनविरोधी सत्ताधारी के खिलाफ आम जनमानस में व्याप्त होता जाता है कि अपने को चतुर सुजान व काबिल समझने वाले तमाम राजनीतिज्ञों सहित राजनितिक ज्ञानियों के होश चुनाव नतीजों से फाख्ता हो जाते है । उत्तर प्रदेश के संपन्न हुए विधान सभा के 2012 आम चुनावों में जिस प्रबल बहुमत की प्राप्ति समाजवादी पार्टी को हुई उसकी उम्मीद खुद समाजवादी पार्टी नेतृत्व को नहीं थी लेकिन परिवर्तन का मान बना चुकी उत्तर प्रदेश के जनमानस ने अपना निर्णय हुए बहुजन समाज पार्टी को सत्ता से पदच्युत हुए समाजवादी पार्टी को बेहतर विकल्प मानते हुए सत्ता पे बैठा दिया । इसी दौरान हुए उत्तराखंड के विधान सभा आम चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त मिली और कांग्रेस ने यहाँ अपनी सरकार बना डाली । वर्ष के प्रारम्भ की बेला में जहां उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड-पंजाब मणिपुर -गोवा में चुनावी घमासान मचा था वहीं वर्ष 2012 के समापन बेला में हिमांचल प्रदेश व गुजरात में चुनावी दंगल अपने शबाब पे रहा । हिमांचल में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हारी और कांग्रेस को विजय की प्राप्ति हुई । गुजरात जहाँ पर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की जबरदस्त घेरेबंदी में विपक्षी राजनितिक दलों के साथ साथ कुछ भाजपा नेता भी लगे थे वहां नरेन्द्र मोदी एक बार गुजराती जनमानस की पसंद बनकर उभरे । 2012 में संपन्न गुजरात के सिवाय सभी विधान सभा आम चुनावो में सत्ता धारी दल को सत्ता से बेदखल करने का कार्य आम जनमानस ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए किया । यह विचारणीय बिंदु है कि परिवर्तन के तूफान में एक राज्य गुजरात में तमाम विरोधाभास , घेरेबंदी के बावजूद नरेन्द्र मोदी तीसरी बार अनवरत गुजराती जनमानस के पसंदीदा व्यक्तित्व कैसे बने रहे ? निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की जनता के उम्मीदों पे अपने को खरा साबित किया है , लोकतंत्र में विरोध के लिए विरोध करते रहना एक राजनितिक फैशन व मानसिक-आर्थिक जरुरत की विषय हो सकती है कुछ लोगों के लिए । वर्ष 2012 राजनितिक दृष्टिकोण से चुनावी वर्ष रहा । आरोप -प्रत्यारोप रूपी चुनावी भाषणों के पश्चात निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और मुख्यमंत्रियों को उस उम्मीद को पूरा करने की दिशा में जुटना चाहिए जिसकी अपेक्षा करते हुए उनको आम जनमानस ने सत्ता सौपीं है । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी निःसंदेह अपने समर्थक गुजराती मतदाताओं की कसौटी पे खरे उतरे है और अपने अपने प्रदेश में आम जनमानस के हितों के कार्य करने के संकल्प को साकार रूप देने में अन्य निर्वाचित मुख्यमंत्रियों को जुटना चाहिए । इस वर्ष एक तरफ युवा चेहरा समाजवादियों की आशाओं के केंद्र बिंदु बनकर उभरे अखिलेश यादव ने संघर्ष के रास्ते उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करी वही कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश में तमाम बयानों -भाव -भंगिमाओं के प्रदर्शन , अपने आक्रोशित ह्रदय के जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद निराशा ही हासिल हुई । राहुल गाँधी को हार का जो स्वाद बिहार में नितीश कुमार ने चखाया उसको और तीखापन देने का कार्य उत्तर प्रदेश में क्रांति रथ पे सवार युवा समाजवादी अखिलेश यादव ने अपने सौम्य -सहज व्यवहार से अर्जित बहुमत के द्वारा किया । वर्षान्त 2012 में नरेन्द्र मोदी की गुजरात में सत्ता वापसी ने राहुल गाँधी की आगे की उम्मीदों पे भी ग्रहण लगा दिया है । दरअसल आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद पे बैठाने का मन बना चुकी है लेकिन गुजरात में नरेन्द्र मोदी की विजय ने कांग्रेस रणनीतिकारों को पेशोंपेश में डाल दिया है । उत्तर प्रदेश के भी दो महारथी क्रमशः समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती आगामी लोकसभा चुनावों को अपने आप को प्रधानमंत्री बनाने की सोच के तहत कार्य कर रहे है । उत्तर प्रदेश के इन दो महारथियों की नज़र उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों को जीतने पे है , अपने अपने राजनितिक लाभ के जातीय समीकरण को बुनने- गुनने में लगे इन दोनों राजनेताओं की अनदेखी करना न तो कांग्रेस के की है और न ही भाजपा के । समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव तो लोकसभा चुनावों के पश्चात गैर कांग्रेस - गैर भाजपा दलों के मोर्चे के गठन की बात कह भी चुके है । प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने भाजपा नीत राजग गठबंधन के अध्यक्ष धुर समाजवादी शरद यादव को प्रधानमंत्री पद का सर्वाधिक सुयोग्य राजनितिक व्यक्ति घोषित करके भविष्य की तरफ इंगित कर ही दिया है । भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की भारी तादात गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में अभी से घोषित करने की मांग अपने केंद्रीय नेतृत्व से कर रही है । कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ बने वातावरण व भ्रष्टाचार के नित नए मामलों ने एक के पश्चात् एक मुद्दों को जनमानस के सम्मुख रखा है । बहुमत के जादुई आंकड़ें से कांग्रेस की नित बढती दूरी की भरपाई के लिए कांग्रेस ने अपने विरोधी मतों के विभाजन की योजना तो बनायीं ही है , राहत और बख्शीश के सहारे मतदाताओं को लुभाकर उनके मतों पर डाका डालने की स्व कल्याणकारी योजना भी शुरू हो चुकी है । इसी वर्ष राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का निर्वाचन हुआ । चुनावी राजनीती से इतर वर्ष 2012 में शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे की लम्बी बीमारी के बाद हुए निधन की सूचना मात्र से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई थम गयी । महाराष्ट्र सहित देश के हर हिस्से से शोक संवेदना के सन्देश उनके परिजनों को प्रेषित हुए । शोकाकुल - ठहर सी गई भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई के तक़रीबन 25लाख मुम्बईकरों ने अपने ह्रदय सम्राट की अंतिम यात्रा में अश्रु पूरित ह्रदय समेत शामिल होकर श्रधा सुमन अर्पित किये । आम जनमानस के ह्रदय में बसे रहने का इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकता है कि कभी न थमने वाले मुंबई कर सिसकते हुए ठहर से गये थे । लगभग सभी राजनितिक दलों के नेताओं ने शिवसेना प्रमुख बल ठाकरे को अपनी श्रधांजलि प्रेषित करते हुए उन्हें महाराष्ट्र की राजनीती में कभी न भुला पाने वाला व निर्णायक जननेता कहा । वर्ष में तमाम अन्य वरिष्ठ राजनेताओं की मृत्यु हुई परन्तु जो शोक का माहौल शिवसेना प्रमुख के के मौके पे व्याप्त हुआ उसने यह साबित कर कि तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद वो मुंबई करों सहित हिन्दुओ के ह्रदय सम्राट थे । वर्ष 2012 में तमाम नए राजनितिक दलों के गठन का ऐलान भी हुआ है जिनके राजनीतिक उपलब्धियों में सिर्फ आरोपों की फेहरिस्त जारी करना है । चंद लोगों के द्वारा लोकतंत्र , संसद -सांसदों , राजनितिक दलों को कोसते कोसते खुद भी वही बनने की दबी मनोकामना भी इसी वर्ष जगजाहिर हो ही गयी । भारत की राजनीती में चुनावी दंगल से इतर सामाजिक - राजनितिक -आर्थिक मुद्दों पर इस वर्ष बहस आन्दोलन अपने चरम के शिखर को छुते नज़र आये । विदेशों में जमा काला धन लाने की मांग , भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण हेतु लोकपाल विधेयक की मांग सामाजिक मुद्दों से राजनितिक मुद्दों में तब्दील चुकी है । राजनितिक दलों की कार्यप्रणाली से ऊबे लोगों ने अपनी सारी उम्मीद व उर्जा भ्रष्टाचार विरोधी जन अन्दोलनो में लगायी लेकिन जल्द ही उस आम जन मानस को घोर निराशा का सामना करना पड़ा जब आंदोलन के चर्चित चेहरे अरविन्द केजरीवाल ने आन्दोलन के अगुवा अन्ना हजारे की मंशा के विपरीत राजनितिक दल के गठन का ऐलान कर दिया । जन आन्दोलन अब बिखराव के दोराहे पे आ पंहुचा था और सामाजिक चेतना और जन मानस की शक्ति के बलबूते राजशक्ति को झुकाने की अन्ना हजारे की मंशा पर गहरा आघात अरविन्द केजरीवाल ने राजनितिक दल के गठन के द्वारा किया । सामाजिक आन्दोलन के बैनर और अपने नाम के इस्तेमाल न करने की हिदायत देते हुए अन्ना हजारे ने जनादोलन जारी रखने और अरविन्द केजरीवाल द्वारा गठित राजनितिक दल से कोई वास्ता न रखने की बात अंत में कह ही दी । भ्रस्टाचार , महंगाई , बेकारी , बिगड़ी कानून व्यवस्था से त्रस्त भारत के लोगो के सम्मुख समर्पण और संघर्ष दो रास्तों में से एक के चुनाव का विकल्प आन पड़ा है और सामाजिक चेतना और जनमानस के उद्वेलित मन ने सड़क पर उतर कर वर्तमान हुक्मरानों और व्यवस्था को चुनौती देने का साहस दिखाया । इसी जन शक्ति के सहारे अति महत्वकांछी चन्द लोगो ने अपना राजनितिक व आर्थिक मकसद पूरा करने की जुगत लगा ली है । पदोन्नति में आरक्षण मसले पर समाजवादी पार्टी ने सड़क से संसद तक जमकर विरोध किया और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नूतन छवि सवर्णों के मध्य अपने हित चिन्तक व रक्षक की बन कर उभरी है । प्रोन्नति के मुद्दे पर मचे घमासान के दौरान ही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने संप्रग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार व कांग्रेस प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सी बी आई का भय दिखा कर ब्लैक मेल कर रही है । राजेंद्र चौधरी ने यह भी कहा था कि संप्रग सरकार देश के आर्थिक व सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने की साजिश कर रही है । उसने पहले देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी से उतारने के लिए एफ डी आई को मंजूरी दी और अब प्रोन्नति में आरक्षण बिल लाकर सामाजिक विषमता और वैमनस्य को बढ़ावा देने में लगी है । वही बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती - पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने अपने परंपरा गत अधर मतों के हित के लिए राज्य सभा में अपने अंदाज़ में आवाज़ बुलंद करी, मायावती पर संसदीय मर्यादा से बाहर होने का आरोप तक लगा । पिछड़े वर्ग के लिए भी पदोन्नति में आरक्षण की मांग करके मायावती ने पिछड़ों को आकर्षित करने का दांव चला है । कांग्रेस अपने फैसलों से खुद को संकट में डालने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखे है और भाजपा में अंदरखाने से आरक्षण मामले में नेतृत्व के के आवाज़ बुलंद हुई । एफ डी आई को मंजूरी मिलने के साथ ही साथ इसकी मंजूरी के मामले में रिश्वत खोरी का मामला भी सामने आया । अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट के अनुसार वालमार्ट ने भारत में मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रवेश के लिए लाबिंग पर लगभग 125करोड़ रूपये खर्च किये है । विपक्ष के जबरदस्त दबाव के चलते सरकार ने वालमार्ट मामले की समय बद्ध जाँच सेवा निवृत न्यायाधीश से करने की घोषणा की । केंद्र सरकार दुर्भाग्य वश अपने हर कदम से खुद को ही परेशानी में डालती जा रही ही है । वर्ष 2012 के अंतिम माह में दिल्ली में भी के अन्य राज्यों की तरह शर्मसार करने वाली सामूहिक बलात्कार की एक के बाद एक जघन्य घटना घटित हुई । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने बयान कि 5व्यक्ति के परिवार का महीने का खर्च 600 रूपये काफी है ,से एक बार फिर से विपक्ष के निशाने पे आई । भाजपा के प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नकवी ने संप्रग सरकार की सब्सिडी के बदले नगदी देने की योजना के सन्दर्भ में शीला दीक्षित के बयान को गरीबों का अपमान करार दिया । अपमान तो शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली सरकार इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक बनाये जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का विरोध करके उन शहीदों का भी कर चुकी है जिन्होंने आजादी के पश्चात देश हित में अपने आप को कुर्बान किया । दरअसल रक्षा मंत्री ए के एंटोनी की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह ने इंडिया गेट के समीप प्रिंसेस पार्क में स्वतंत्रता के पश्चात शहीद हुये सैनिकों की याद में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने की सिफारिश की है और इस सिफारिश का विरोध दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने करते हुए कहा कि इससे इलाके का माहौल प्रभावित होगा और घुमने - फिरने के मकसद से यहाँ आने वाले लोगो की आवा जाही पर भी असर पड़ेगा । दिल्ली की मुख्यमंत्री शिला दीक्षित की मानसिकता व सोच का दायरा उनके बयानों से समझ आ ही जाता है । शहीदों की याद में बनने वाले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण पे एतराज निःसंदेह घृणित सोच का परिचायक है ।

Wednesday, November 21, 2012

22 नवम्बर - स्व रामसेवक यादव और मुलायम सिंह यादव को जोडती तारीख

अरविन्द विद्रोही .......................................................................... तारीखों का अपना महत्व अलग ही होता है । पुरखों , शख्सियतों को प्रति दिन स्मरण करना , उनके आदर्शो-संकल्पों का स्मरण करना ,स्वयं अपने चारित्रिक-मानसिक विकास के लिए अत्यंत कारगर होता है । परन्तु पुरखों- शख्सियतों के जन्मदिन व पुण्य तिथि को विशेष यादगार दिवस के रूप में मनाना एक अच्छी सोच व सच्चे अनुयायी के प्रत्यक्ष परिलक्षित होने वाले गुणों में से एक होता है । अद्भुत संयोग की घडी तब आ जाती है जब एक ही दिन दो शख्सियतों का मेल हो जाये । तमाम ऐसे ही दिवसों में से एक दिवस 22 नवम्बर भी है,इस दिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्म दिन तो है ही आज ही के दिन 1974 में समाजवादी पुरोधा राम सेवक यादव की आत्मा ने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर परिनिर्वाण की प्राप्ति की थी । वर्तमान सामाजिक राजनितिक फलक पर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव एक बहुचर्चित राजनेता है । उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के सैफई गाँव में माता श्रीमती मूर्तिदेवी के कोख से जन्मे मुलायम सिंह यादव के जन्म २२नवम्बर,१९३९ के समय उनके जन्मदाता पिता श्री सुघर सिंह यादव ने भी तनिक कल्पना नहीं की होगी कि उनकी संतान के रूप में जन्मा यह अबोध बालक करोडो-करोड़ गरीबो-मज़लूमो-पीडितो-वंचितों-आम जनों का दुःख हर्ता बनकर युगों युगों तक के लिए कुल का नाम रोशन करेगा | क्या उस वक़्त किसी ने भी तनिक सा सोचा होगा कि एक किसान के घर जन्मा यह बालक मुलायम अपनी वैचारिक-मानसिक दृठता और कुशल संगठन छमता के बलबूते समाजवादी विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी व उनके संकल्पों,उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने वाला बनेगा? और स्व राम सेवक यादव का नाम जनसाधारण , नई समाजवादी पीढ़ी के लोगो के लिए अनजाना सा हो गया है । सवाल लाज़मी है की आखिर राम सेवक यादव थे कौन ? रामसेवक यादव ही वह शख्स थे जिन्होंने युवक मुलायम सिंह यादव की प्रतिभा को पहचान कर युवजन सभा की जिम्मेदारी सौपीं थी और राजनीती में आगे किया था । ग्राम ताला मजरे रुक्मुद्दीनपुर पोस्ट थल्वारा (वर्तमान में पोस्ट रुक्मुद्दीनपुर ) परगना व थाना सुबेहा हैदरगढ़ जनपद बाराबंकी के एक संपन्न कृषक परिवार में हुआ था । पिता श्री राम गुलाम यादव को किंचित भी अभाश न था कि उनका यह वरिष्ठ पुत्र देश की राजनीती में अपना व जनपद का नाम रोशन करेगा । दो अनुजों क्रमशः प्रदीप कुमार यादव और डॉ श्याम सिंह यादव तथा तीन बहनों क्रमशः रामावती , शांतिदेवी व कृष्णा के सर्व प्रिय भाई रामसेवक यादव की प्राथमिक शिक्षा कक्षा 4 तक की ग्राम ताला में ही हुई । मिडिल5 -6 की शिक्षा अपने एक करीबी रिश्तेदार जो की मटियारी-लखनऊ में रहते थे के घर पे रहकर ग्रहण करी ।कक्षा 7 की शिक्षा के लिए बाराबंकी के सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया । सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल से कक्षा 8 की परीक्षा में सफल होने के पश्चात् हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्थानीय राजकीय हाई स्कूल में राम सेवक यादव ने दाखिला लिया । इंटर मिडियट की शिक्षा रामसेवक यादव ने कान्य कुब्ज इंटर कॉलेज से पूरी करी । उच्च शिक्षा स्नातक व विधि स्नातक की उपाधि लखनऊ विश्व विद्यालय से ग्रहण करके रामसेवक यादव ने बाराबंकी जनपद में वकालत करना प्रारंभ किया । आज़ादी के पश्चात् 1952 के चुनावो में कांग्रेस व नेहरु के नाम का डंका बज रहा था , वहीं दूसरी तरफ आज़ादी के पश्चात् देश में बुराई की जननी कांग्रेस व नेहरु को मानने वाले समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी के माध्यम से देश के ग्रामीण जनता के हितकारी विचार व कार्यक्रम देने में जुटे थे ।बाराबंकी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दमदार प्रत्याशी जगन्नाथ बक्श सिंह के मुकाबिल सोशलिस्ट पार्टी ने रामसेवक यादव को अपना प्रत्याशी बनाया ,1952 का यह चुनाव रामसेवक यादव हार गए थे लेकिन सामाजिक राजनितिक सक्रियता व प्रभाव बढ़ता गया । बाराबंकी जनपद में 1955-56 में अलग अलग घटनाओ में कांग्रेस के विधायक भगवती प्रसाद शुक्ला और सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या हो गयी । सोशलिस्ट पार्टी के विधायक लल्ला जी की हत्या अपने मित्र सियाराम से मित्रता निभाने के परिणामस्वरूप हुई थी । लल्ला जी की हत्या के प्रतिकार स्वरुप रामसेवक यादव ने जनता को जगाने का शुरू किया तथा जालिमों - हत्यारों के इलाकों में जाकर सोशलिस्ट पार्टी की बैठकों -सभाओं का आयोजन किया । सोशलिस्ट पार्टी के विधायक स्व लल्ला जी की श्रधांजलि सभा बड्डूपुर में समाजवादी पुरोधा डॉ राममनोहर लोहिया ने कहा था कि --- लल्ला जी की शहादत ने यह साबित कर दिया है की खाली एक माँ के पेट से पैदा होने वाले ही दो सगे भाई नहीं होते बल्कि अलग अलग माँ के से पैदा होने वाले भी सगे भाई हो सकते है । सोशलिस्ट पार्टी के नेता रामसेवक यादव द्वारा लल्ला सिंह - सियाराम की हत्या के विरोध में जनांदोलन व मजबूत अदालती पैरवी के चलते ही मुख्य अभियुक्त भोला सिंह 26सहित लोगो को दोहरे हत्याकांड के इस मामले में सजा हुई थी । 1956 के दौरान हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा उप चुनाव में रामसेवक यादव रामनगर विधान सभा से विजयी हुए । 1957 के आम चुनावों में बाराबंकी जनपद की पर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जीते थे । 1957-62,1962-67 और 1967-71 तीन बार रामसेवक यादव लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए । उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य रुधौली से 1974 में निर्वाचित हुए और उपभोक्ता विभाग और अध्यक्ष लोक लेखा समिति भी रहे । आपकी मृत्यु सिरोसिस ऑफ़ लीवर बीमारी के कारन हुई । रामसेवक यादव मन से गरीबों के दोस्त व वंचितों के साथी थे ।अपने गुणों के कारन ही वे डॉ लोहिया के प्रिय थे । पार्टी की जिम्मेदारी के साथ साथ डॉ लोहिया ने रामसेवक यादव को लोकसभा में पार्टी संसदीय दल का नेता भी बनाया था । स्व रामसेवक यादव के बाल्य काल से मित्र रहे वयोवृद्ध समाजवादी नेता अनंत राम जायसवाल (पूर्व मंत्री-पूर्व सांसद ) की नज़र में रामसेवक यादव के अन्दर आम जनता को जोड़ने और उनके लिए लड़ने की असीम ताकत थी , वो सही मायनों में गाँव -गरीब के नायक थे । स्व रामसेवक यादव के राजनितिक उत्तराधिकारी अरविन्द कुमार यादव ( पूर्व विधान परिषद् सदस्य ) के अनुसार डॉ लोहिया , राम सेवक यादव के पश्चात् अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी आन्दोलन व संघर्ष को नूतन आयाम दिए है । आज जरुरत है समाजवादी युवाओ को स्व रामसेवक यादव सरीखे समाजवादी आन्दोलन की आधार शिलाओं को स्मरण करने का ,उनके संघर्षो-विचारो के अनुपालन का ।

Tuesday, November 20, 2012

डॉ लोहिया के विचारो और समाजवाद की अलख जगाये धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव

अरविन्द विद्रोही.................................. उत्तर प्रदेश के जनपद इटावा के सैफई गाँव में माता श्रीमती मूर्तिदेवी के कोख से जन्मे मुलायम सिंह यादव के जन्म २२नवम्बर,१९३९ के समय उनके जन्मदाता पिता श्री सुघर सिंह यादव ने भी तनिक कल्पना नहीं की होगी कि उनकी संतान के रूप में जन्मा यह अबोध बालक करोडो-करोड़ गरीबो-मज़लूमो-पीडितो-वंचितों-आम जनों का दुःख हर्ता बनकर युगों युगों तक के लिए कुल का नाम रोशन करेगा | क्या उस वक़्त किसी ने भी तनिक सा सोचा होगा कि एक किसान के घर जन्मा यह बालक मुलायम अपनी वैचारिक-मानसिक दृठता और कुशल संगठन छमता के बलबूते समाजवादी विचारक डॉ राम मनोहर लोहिया का सबसे बड़ा जनाधार वाला अनुयायी व उनके संकल्पों,उनके विचारो को प्रचारित-प्रसारित करने वाला बनेगा? १२अक्तुबर,१९६७ में जुल्म अन्याय के खिलाफ लड़ते-लड़ते डॉ लोहिया हमारे बीच से चले गये ,रह गये सिर्फ उनके विचार-उनके संकल्प और उनके अनुयायी| डॉ राम मनोहर लोहिया के देहावसान के बाद १९६७ से लेकर १९९२ तक समाजवादी आन्दोलन-संगठन का विघटन अफसोसजनक व दुर्भाग्य पूर्ण रहा |४-५ नवम्बर ,१९९२ को बेगम हज़रत महल पार्क-लखनऊ में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में देश भर के तपे-तपाये समाजवादियो के बीच संकल्प लिया कि अब मैं डॉ लोहिया द्वारा निर्धारित सिधांतो के आधार पर समाजवादी पार्टी का पुनर्गठन करूँगा ,तब से ले कर आज तक धरतीपुत्र की उपाधि से नवाजे गये मुलायम सिंह यादव ने तमाम राजनीतिक दुश्वारिया झेली हैं |डॉ लोहिया के कार्यक्रमों अन्याय के विरुद्ध सिविल नाफ़रमानी,सत्याग्रह,मारेंगे नहीं पर मानेगे नहीं,अहिंसा,लघु उद्योग,कुटीर उद्योग आदि मुद्दों को कर्म के छेत्र में व्यापक जनाधार करके स्थापित करने वाले सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही हैं |आज के राजनीतिक दौर में जहा सिर्फ भीड़ ही राजनीतिक ताकत मानी जाती है ,उस दौर में डॉ लोहिया के विचारो-कार्यक्रमों को मजबूती से व्यावहारिक रूप में लागु करते हुये मुलायम सिंह यादव ने भीड़ के पैमाने पर भी खुद को और समाजवादी पार्टी को हमेशा अव्वल साबित करके दिखाया है | ४-५नवम्बर,१९९२ को समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में तपे-तपाये धुर समाजवादियो का जमावड़ा डॉ लोहिया के विचारो-संकल्पों के प्रचार-प्रसार व समाजवादी मूल्यों की सरकार बनाने को लेकर हुआ था |समाजवादी पार्टी की स्थापना को 20 वर्ष पुरे हो चुके हैं|इन 20 वर्षो में मुलायम सिंह यादव व समाजवादी पार्टी दोनों ने तमाम उतार-चढाव देखे है| तमाम लोग समाजवादी पार्टी से अलग हुये और तमाम जुड़े भी,लेकिन जिन डॉ लोहिया के विचारो को ,समाजवादी सोच व संघर्ष की मशाल को मुलायम सिंह यादव ने अपने मजबूत हाथो में पकड़ लिया था ,उस पकड़ को मुलायम सिंह यादव ने कभी भी तनिक भी ढीला नहीं किया | अपनी-अपनी राजनीतिक विवशता-महत्वाकांछाओं की पूर्ति ना होते देख कई समाजवादी नेताओ ने समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव का साथ छोड़ा|चन्द वैचारिक नेताओ ने बिना जमीनी हकीकत समझे समाजवादी पार्टी को त्याग करके डॉ लोहिया के विचारो के प्रचार -प्रसार व अनुपालन के एक बड़े अवसर को त्यागा| मौका पाकर तमाम अवसरवादी ,मौका परस्त ,शौकिया राजनीति करने वालो ने भी एक काकस बनाकर समाजवादी पार्टी को आघात लगाया|मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी ,समाजवादी आन्दोलन को कमज़ोर करने की कुचेष्टा सफल नहीं हो पाई और ऐसे तत्वों को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया| डॉ राम मनोहर लोहिया एक महान चिन्तक थे ,अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का संकल्प उनके लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण था|१२ अक्टूबर ,१९६७ को डॉ लोहिया के देहावसान के बाद डॉ लोहिया को एक महापुरुष मानने वाले मुलायम सिंह यादव ने आगे बढ़ कर मृत समाजवादी आन्दोलन में आगे बढ़ कर नयी जान फूंक दी| प्रसिद्ध समाजवादी लेखक स्व लक्ष्मी कान्त वर्मा ने अपनी पुस्तक समाजवादी आन्दोलन- लोहिया के बाद में लिखा है कि दस-बारह वर्ष आशा-निराशा भरे अनुभवों से गुजरने के बाद जब मुलायम सिंह ने १९९२ में डॉ लोहिया का नाम लेकर और उनके समस्त रचनात्मक कार्यक्रमों को स्वीकार करते हुये समाजवादी आन्दोलन को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया तो वह ना तो गाँधी थे और ना ही लोहिया थे| वह मात्र अपने युग के एक जागरूक व्यक्ति के रूप में पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे| मुलायम सिंह वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसने स्वतंत्रता के तीन-चार दशको तक आम आदमी के दुःख-दर्द,अन्याय और उपेक्षा को देखा और भोगा है| वे उस अंतराल की पीढ़ी के के प्रतिनिधि है जो समस्त संवेदनशील बिन्दुओ को अपने में समेट कर समाजवाद सत्ता और सगुण सिद्धांतो को कार्यान्वित करने का सपना देख रही है| जिस तरह गाँधी ने कभी यह दावा नहीं किया कि वह स्वयं कोई शंकराचार्य या मसीहा हैं,ठीक उसी प्रकार मुलायम ने भी कभी यह दावा नहीं किया कि वह दुसरे लोहिया हैं| उन्होंने डॉ लोहिया के साथ-साथ जयप्रकाश और आचार्य नरेन्द्र देव को भी अपना पुरखा स्वीकार किया है और जब इन्होने इनको अपना पुरखा मान लिया है तो यह शंका अपने आप समाप्त हो जाती है कि वह डॉ लोहिया बनना चाहते है या अकेले उन्ही के सिद्धांतो के उत्तराधिकारी हैं| वे स्वतंत्रता के बाद आर्थिक ,सामजिक,सांस्कृतिक और राजनीतिक न्याय के छेत्र में संघर्ष करने वाले चौधरी चरण सिंह के भी उत्तराधिकारी हैं| डॉ भीम राव अम्बेडकर के भी उत्तराधिकारी हैं और खुले दिमाग के एक संघर्ष शील समाजवादी कार्यकर्ता के रूप में लोहिया ,जयप्रकाश,आचार्य नरेन्द्र देव ,मधु लिमये,राज नारायण इन सब के विचारो और राजनीतिक प्रयोगों और प्रयासों के उत्तराधिकारी है| विगत नवम्बर २०११ में भी डॉ लोहिया के विचारो पर समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले मुलायम सिंह यादव एक बार फिर से राजनीतिक चुनौतिओ का सामना करने के लिए कमर कस चुके थे | राजनीतिक विश्लेषकों के इस पूर्वानुमान कि इस बार के उत्तर प्रदेश के विधान सभा के आम चुनावो में सपा की केंद्रीय भूमिका में मुलायम सिंह यादव नहीं रहेंगे ,असत्य साबित हो चुका है| अपने पिछले जन्म दिन के मात्र ५दिन पूर्व १६नवम्बर को राम लीला मैदान-एटा में आयोजित जन सभा में उमड़े अथाह जन सैलाब को संबोधित करके नयी चेतना व विश्वास उत्पन्न करने में कामयाबी हासिल करने वाले धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव ने पुनः साबित कर दिखाया था कि ७३ साल की उम्र में भी सपा कार्यकर्ताओ ,जनता व डॉ लोहिया के विचारो के प्रति समर्पण में तनिक भी कमी नहीं आयी है| चाहे उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार के द्वारा आम जनता,किसानों व जन संगठनो पे किये गये अत्याचार की बात हो या चाहे कांग्रेस की केंद्र सरकार के द्वारा राम लीला मैदान में बाबा राम देव और सोती हुई जनता पर ढाए गये जुल्म की बात हो ,मुलायम सिंह यादव ने हर एक जुल्म की ,अत्याचार की पुरजोर खिलाफत की है| डॉ राम मनोहर लोहिया के अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने के सिद्धांत का पालन करते हुये समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में जुल्मी सरकार बदलने की पुरजोर अपील के साथ एक बार पुनः क्रांति रथ यात्रा को उत्तर प्रदेश की सभी विधान सभाओ में भ्रमण हेतु रवाना किया था | उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के कुशल नेतृत्व में निकली रथ यात्रा में भारी तादात में जनता की उमड़ती भीड़ ने जहा सपा नेताओ के हौसले बढ़ा दिये थे और बसपा के खिलाफ समाजवादी पार्टी का युवा चेहरा अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के लोगों की उम्मीदों के नव केंद्र बिंदु बनकर उभरे | समाजवादी संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ाते हुये मुलायम सिंह यादव के एक अन्य सेनानी इलाहाबाद के युवा नेता अभिषेक यादव ने अपने साथियो के साथ मिल कर १४नवम्बर को समाजवादी मूल्यों और छात्र संघ बहाली की हक़ की लड़ाई लड़ने के मार्ग को और अधिक दृढ़ता प्रदान की थी | समाजवादी संघर्ष की विरासत को बढ़ाते हुये धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के पहले और बाद में भी समाजवादी संघर्ष के तमाम तोहफे देकर आम जनता के हितो की आवाज बुलंद करते हुये उत्तर प्रदेश में समाजवादी कार्यकर्ताओ ने विधान सभा के आम चुनावों में जनता का विश्वास अर्जित कर समाजवादी मूल्यों की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया | डॉ लोहिया के अनुयायी मुलायम सिंह यादव ने अपने को हर बार साबित कर दिखाया था और समाजवादी पार्टी के नेताओ और कार्यकर्ताओ ने भी बहुजन समाज पार्टी की तत्कालीन तानाशाह सरकार के खिलाफ परीक्षा की घडी में अपने अपने संघर्ष रूपी योगदान की आहुति डालकर धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव को आने वाले इस जन्मदिन का उपहार अग्रिम रूप से ही दे दिया था । समाजवादी आन्दोलन की विरासत को संजोंये हुए धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री उ0प्र0शासन के पद पर रहते हुए 1995 में कहा था,-डा0लोहिया जरूर चले गये हैं दुनिया से लेकिन उनके विचारों को कोई मिटा नहीं सकता।उनके विचारों पर चलना पडे़गा।आज उसी पर चलने की हम लोग कोशिश कर रहें हैं।चाहे विशेष अवसर की नीति हो,चाहे भूमि सेना का गठन हो,चाहे अंग्रेजी हटाओ का आन्दोलन हो,उसका समर्थन हम आज कर रहे हैं,सरकार में रहकर भी कर रहे हैं। भारत में समाजवाद की सोच,विचारधारा का जन्म भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग-ए-आजादी के दौरान जेल के सींखचों,काल कोठरी में हुआ था।राजनैतिक आजादी व मूल्यों के साथ-साथ भारत में समाजवाद मूलतःनैतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है।समाजवादी आन्दोलन के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव ने महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन,व्यक्तित्व व जंग-ए-आजादी के आन्दोलन की जानकारी हासिल करके ही समाजवादी आन्दोलन को समझने पर जोर दिया था।लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने जीवन की अंतिम सांस तक समाजवाद,गाँधीवाद,सर्वोदय ओर सम्पूर्ण क्रंाति की अवधारणाओं के लिए जूझते रहे।जे0पी0 का भी सारा आन्दोलन गाँधी जी के सिद्धान्तों और समाजवाद के समीकरणों पर ही आधारित है।समाजवादी संगठन और समाजवादी नेता पूर्णरूपेण महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे।दरअसल वास्तविकता ही है कि डा0लोहिया के देहावसान के पश्चात् समाजवादी आन्दोलन में बिखराव आ गया।जे0पी0 का व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया जनान्दोलन मात्र सत्ता परिवर्तन बन के रह गया। आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार है , सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव साफ तौर पर कह चुके है कि सरकार के कार्यो पर नज़र रखने और समाजवादी कार्यकर्ताओ से संवाद बरक़रार रखने की मंशा के कारण ही वो खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बने है जबकि निर्वाचित विधायकों की इच्छा थी । समाजवादी संघर्ष की विरासत के चलते उम्मीदों के केंद्र बिंदु युवा मुख्यमंत्री को सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में भारी विजय हासिल हुई और समाजवादी संकल्पों - जनता से किये गये वायदों को पूरा करने व भ्रष्ट -नाकारा -गैरजिम्मेदार नौकर शाहों को सही ढर्रे पर लाने का प्रयास पुनः एक चुनौती माफिक अखिलेश यादव के सम्मुख है । पुलिस तंत्र मनमानी पर उतारू है , कानून व्यवस्था पर अकारण सवालिया निशान नहीं लग रहे हैं । आपराधिक घटनाओं की प्राथमिकी दर्ज़ करने में हीलाहवाली करना और वसूली करना मानो पुलिसिया प्रशिक्षण का अहम् हिस्सा है । एक पुत्र के रिश्ते और उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री के नाते अखिलेश यादव को अपने पिता व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के अवसर पर ही सही कानून व्यवस्था , नौकरशाही व भ्रष्ट - मनमाने पुलिस तंत्र पर तत्काल प्रभावी नियंत्रण करने का कठोर कदम उठाना चाहिए ।

Sunday, November 11, 2012

मन का रावण मारें ,अंधकार मिटायें - दीप पर्व मनायें

अरविन्द विद्रोही फिर इस वर्ष भी हमने,हम सबने लंकेश रावण के पुतले का दहन कर डाला।नव दुर्गा का उपवास रखा,शक्ति रूपों की पूजा की,माँ-स्वरूप् कन्याओं को भरपूर भोजन कराया,उन्हें भेटें दी।महिलाओ ने करवा चौथ का पर्व भी अपने सुहाग के लिए व्रत रखकर आनंद व उल्लास के साथ मना लिया । अब हम सभी को दीपावली की तैयारी में लगना है।सुख,समृद्धि,खुशियों के त्यौहार,मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के लंका विजय व वनवास पूरा करने के पश्चात् अयोध्या वापस आने की प्रसन्नता में मनाया जाने वाला दीप पर्व भी हमें मनाना है।अंधकार भगाने के प्रतीक स्वरूप दीपावली का यह पुनीत पर्व सम्पूर्ण परिवार तथा समाज को बहुप्रतीक्षित सदैव रहा है।साथ ही साथ धनतेरस,नरक चौदस ,गोवर्धन पूजा,भैया दूज,कलम दवात आदि पर्व हम श्रद्धा-भक्ति व धूमधाम से मनायेंगें।सदियों से इन त्यौहारों को मनाने की परम्परा है और निःसन्देह सदैव रहेगी। प्रत्येक त्यौहार-परम्परा का एक विशेष महत्व होता है।उसके मूल में एक सन्देश-भाव छिपा रहता है।महापराक्रमी विद्वान दशानन लंकेश रावण पर अयोध्या के राजकुमार-वनवासी राम की विजय सिर्फ एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति पर विजय नहीं थी।न ही यह विजय राक्षसों की सेना पर वानरों,भील आदि रामभक्तों की सेना की विजय मात्र थी।वस्तुतःयह विजय थी-सत्ता के मद में चूर महापराक्रमी रावण के द्वारा स्त्री के अपमान के फलस्वरूप् उत्पन्न परिस्थितियों एवं असत्य के राही एवं मदमस्त रावण पर मर्यादा की स्थापना हेतु पिता के आज्ञा पालन हेतु अयोध्या छोड़कर वन में विचरण करने वाले सत्य के राही राम की।यह विजय थी-असत्य पर सत्य की। सत्यमेव जयते।सत्य की विजय हो।कैसे?कभी सोचा हमने? आज तो जन-मन-गण की सोच ही थक चुकी है या साफ-साफ कहें तो सोच निस्प्राण होकर विकृत अवस्था को प्राप्त हो चुकी है। जहाँ जिस धरा पर आदिकाल से वसुधैव-कुटुम्बकम् की अवधारणा स्थापित रही हो, वहां पाश्चात्य सभ्यता व पूंजीवाद इतना प्रभावी हो गया है कि पैसों के लिए परिवार भी विखण्डित हो रहे हैं।पारिवारिक विखण्डन अब व्यक्ति के आंतरिक टूटन की वजह बन गई है।अंधाधुंध आर्थिक उन्नति की मंजिलें तय करते-करते मनुष्य मानसिक-सामाजिक-चारित्रिक रूप से बिखरता जा रहा है।इन नैतिक मूल्यों का हनन व्यक्ति-परिवार-समाज सभी को हानि के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे रहा है। हाँ, तो बात फिर से दीपावली पर्व के सन्दर्भ में।दीप पर्व की हमारे वर्तमान जीवन में उपयोगिता की,असत्य पर विजय प्राप्त कर के अयोध्या वापस लौटे मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम चन्द्र जी के सम्मान व स्वागत में आयोजित हुए इस दीप पर्व के आज हमारे द्वारा परम्परागत रूप से मनाये जाने की प्रासंगिकता पर।माँ कैकेयी द्वारा मांगे गये पिता से वरदान की लाज रखने हेतु,पिता के वचनों की,राजधर्म की मर्यादा की रक्षा के लिए पत्नी-भाई समेत वन जाने जैसा आचरण क्या आज हमारे समाज में करने की कोई सोच भी सकता है?आज तो हालात यह हो गई है कि पुत्र के विवाहोपरान्त बेचारे माॅं-बाप ही घर से कब निकाल दिये जायें,इसका ही ठिकाना नहीं है।रिश्तों को भौतिकता रूपी दीमक चाट चुका है।लालच का बिच्छू अपना जहर लोगों के नसों में उतार चुका है।मिथ्याचरण मनुष्य के आभूषण रूप में सुशोभित हो रहा है।सदाचार मानव स्वभाव से विलुप्त हो चुका है और व्यभिचार आम जीवन शैली का अनिवार्य हिस्सा बना हुआ है।आज कहाँ हैं राम जैसा आज्ञाकारी पुत्र कहाँ है भरत-शत्रुध्न और लक्ष्मन जैसे भाई?क्या कोई स्त्री सीता जैसा कष्ट सहने का,पति के साथ दुःखमय जीवन जीने का निर्णय ले सकती है?त्याग की भावना की जगह वासना-पूर्ति की अभिलाषा अपना साम्राज्य स्थापित कर चुका है।तो क्या हमें अपने अन्दर के राक्षस रूपी इन विकारों को,आसुरी प्रवृत्तियों को खत्म करने का प्रयास नहीं करना चाहिए?क्या परम्परागत रूप से महाविद्वान पुलस्त्य ऋषि के नाती,महापराक्रमी,बलवान,ज्ञानी,शिवभक्त परन्तु अहंकारी,सत्ता मद में चूर,राक्षसी प्रवृत्ति के,स्त्री उत्पीड़क लंकेश रावण के पुतले का दहन कर के ही हम दशहरा मनाते रहेंगें?सिर्फ परम्परा के निर्वाहन हेतु दीप पर्व मनायेंगें? आइये……समाज के हितार्थ स्वयं की आन्तरिक आसुरी शक्तियों के खिलाफ धर्मयुद्ध की शुरूआत करें।अन्र्तद्वन्द छेड़े।चेतना को नया आयाम दें।नया सबेरा लाने की दिशा में कदम बढ़ायें।अपने मन के लंकेश को सदाचार रूपी बाणों से नाभि प्रहार यानि दुराचरण का खात्मा करके आसुरी शक्ति को परास्त कर परिवार-समाज की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें।यदि मानव एैसा करे तो श्री रामचन्द्र जी के लंका विजय के उल्लास में,अयोध्या वापसी की प्रसन्नता में आज तक मनाये जा रहे इन पर्वों की,दीप पर्व की प्रासंगिकता हमारे वर्तमान में है अन्यथा सिर्फ अवकाश,थोड़ा सैर-सपाटा,मन बहलाव व ईश्वर भक्ति के ढ़ोंग के लिए दीपावली मनाना कोई मायने नहीं रखता।

Saturday, November 10, 2012

बाराबंकी पुलिस का रवैया --अपराध न करेंगे दर्ज ,हम रहेंगे मस्त ,ठेंगे से रहो तुम त्रस्त

पिछले शनिवार - रविवार 27-28 की रात मेरे अपने निजी आवास पे हुई चोरी की घटना ने मुझे हैरानी के साथ साथ दहशत जदा भी कर दिया था । शनिवार 27 की रात 1 1.15 के पश्चात् मैं सोने के लिए बिस्तर के हवाले हो गया । घर में मैं अकेला था- पत्नी दोनों बेटों के साथ दशहरे के अवकाश में अपने मायके तहसील फतेहपुर में थी । रविवार 28 को सभी को लेने के लिए 10 बजे सुबह घर से फतेहपुर के लिए निकलने का कार्यक्रम सुनिश्चित कर लिया था यही कारन था कि देर रात तक पढना लिखना न करके सो गया ।फिर एक आहट सी लगने पे अचानक मेरी नींद खुली और मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ । सोने के कमरे से बगल के बड़े कमरे की तरफ होकर मुंह धोने / लघु शंका करने के लिए बढ़ा , बड़े कमरे से लगे रसोई घर से खाना आदि दिए जाने वाले झरोखा जो कि ईटों से बंद था को खुला देख कर , उसमे से आती रौशनी देखकर मैं चौंक गया । तभी एकदम से नज़र बड़े कमरे से आंगन में खुलने वाले दरवाजे पे गयी और उसको भी खुला देखकर मैं सकते में आ गया । मैं समझ गया कि मेरे घर में कोई घुस चूका है और अपना हाथ साफ़ कर चूका है । बड़े कमरे की मेरी अपनी अध्धयन की मेज पर मेरा लैपटॉप मुझे दिखाई पड़ा । मेरे समझ में तुरंत ये आया कि रसोई के सामान पे चोरो ने अपना हाथ साफ़ कर लिया होगा ।मैं बड़े कमरे से आंगन में आया और बड़े कमरे से बिलकुल सटे रसोई घर को देखा । रसोई का सामान व ईटे बिखरे पड़े मिले लेकिन गैस - सिलेंडर आदि सुरक्षित मिले । आंगन में पड़ी तमाम वस्तुओं के साथ साथ बेटों की साइकिल भी सुरक्षित मिली । अब मेरी घबराहट एकदम से बढ़ गयी कि आखिर कौन आया और किस मकसद से ? कितना बजा है ये देखने के लिए मैं वापस बिस्तर वाले कमरे में आया और अपना मोबाइल तलाशने लगा , बिस्तर पर मोबाइल न मिलने पे मेरा माथा ठनका और तभी मेरी नज़र भीतरी कमरे के दरवाजे के पल्ले पे गयी जहा रात में मैंने अपने कपडे टांग दिये थे, कपड़े भी गायब दिखे । माज़रा लगभग साफ़ हो चूका था , अब समय देखने के लिए मैंने अपना लैपटॉप ऑन किया , उस समय लगभग 4.45 हुये थे । अपने मित्रों से संपर्क साधने के लिए तत्काल मैंने फेसबुक का अपना खाता खोला और अपने वाल पे चोरी की घटना को लिख दिया इस उम्मीद में कि अगर बाराबंकी के , मेरे पड़ोस के कोई भी व्यक्ति तक ये सुचना पहुच जाएगी तो वो मेरे घर आ जायेगा। संपर्क का साधन मोबाइल चोरी जाने के पश्चात् मैंने अंतरजाल को संपर्क के लिए प्रयोग किया । यह लिख कर मैं अपने घर की छत की तरफ चल पड़ा । जीने पे मेरा -पेंट शर्ट पड़ा मिला जिसमे से मेरा पर्स चोर साथ ले जा चूका था । मामूली 35 0 रूपये लेकिन सभी जरुरी कागज मतदाता पहचान पत्र , वाहन चालक अनुज्ञप्ति पत्र , पैन कार्ड , विजिटिंग कार्ड आदि अज्ञात चोर ले जा चूका था । छत से अगल बगल नीचे देखने के पश्चात् मैं दुबारा नीचे कमरे में आ गया । इस समय तक सुबह के 5 बज चुके थे। मैं घर से निकल कर मुख्य मार्ग विकास भवन मार्ग पे आ कर देखने लगा । मुख्य मार्ग निवासी इक श्रीवास्तव परिवार बाहर अपने बेटे को स्टेशन भेजने के लिए खड़ा था ,मैंने उनको भी अपने घर हुई चोरी की घटना बताई और उनके छोटे बेटे से अपना चोरी गया मोबाइल नंबर मिलाने को कहा , उसने तुरंत मिलाया लेकिन तब तक फ़ोन बंद हो चूका था । मिलाते रहना थोड़ी थोड़ी देर में यह कहने के बाद मैं अपने घर आ गया ।थोड़ी देर बाद कुछ समझ में न आने के कारण मैंने अपने पड़ोस में रहने वाले अनिल श्रीवास्तव को घर से बाहर निकल कर उनके मुख्य द्वार से आवाज देकर जगाया और उनको अपने घर हुई घटना की जानकारी दी । वो तत्काल निकले और मेरे घर में कमरे-रसोई से लेकर छत तक गये । उनके घर के लोग भी जग गये और अपनी छत पर पड़ोसी प्रेम पाठक,उनकी पत्नी ,अनिल श्रीवास्तव की पत्नी भी पहुच गये । मैंने अपने पत्नी को फ़ोन करने के लिए अनिल श्रीवास्तव से फ़ोन माँगा तो उन्होंने सलाह दिया की अभी सुबह के 5.30 ही है , थोड़ी देर बाद करियेगा । वो भी अपने मोबाइल से मेरा नंबर मिलाये लेकिन चोर उसे बंद कर ही चूका था । थोड़ी देर में सभी लोग अपने घर चले गये । मैं एक बार फिर अपने घर में अकेला था ,कुछ देर बाद फेसबुक पर नज़र डाली तो स्थानीय दो -तीन मित्र ऑनलाइन दिखे , उन सभी को मैंने सन्देश दिया और मेरे एडवोकेट मित्र मो सबाह - प्रतिनिधि माननीय बेनी प्रसाद वर्मा (केंद्रीय इस्पात मंत्री ) ने जवाब दिया ,मैंने उन्हें ऑनलाइन चोरी की घटना की जानकारी दी और उन्होंने 30 मिनट के अन्दर मेरे घर आने की बात कही । कुछ देर बाद मैं फिर घर से बाहर सड़क पे निकला ,पड़ोस में ही रहने वाले मतीन अहमद प्रातः भ्रमण के अपने दैनिक चर्या के अनुसार मिल गए , उन्हें भी बताया । वो भी तुरंत मेरे मेरे घर और सब जगह देखे । कुछ मिनट के पश्चात् मतीन अहमद अपने घर चले गए और मैं अपने छत से लेकर बहार सड़क तक चहल कदमी करने लगा । कुछ ही देर में मो सबाह अपने वायदे के मुताबिक आ गये । सुबह के सात बजने को थे । मो सबाह के आने से मुझे थोडा सुकून मिला और मैंने कॉफ़ी बने और दोनों लोगो ने पी । इस बीच मो सबाह के मोबाइल से पत्रकार साथी मो अतहर - जिला संवाददाता , पंजाब केसरी को फ़ोन किया पर उनका मोबाइल उठा नहीं । उसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता धीरज गुलसिया को फ़ोन से घटना की जानकारी दी और उन्होंने भी जल्दी मेरे घर आने को कहा । घटना की सूचना देने व प्राथमिकी दर्ज करने का आवेदन पत्र मो सबाह ने मेरे निवेदन पे मेरे बताये अनुसार लिखा । लगभग आधे घंटे बाद मो सबाह अपने घर के लिए चले , मैंने उनसे कहा कि अगर अतहर भाई का फ़ोन आयेगा तो उनको मेरे यहाँ चोरी की घटना से अवगत करा दीजियेगा और मैंने अपने घर बुलाया है ये कह दीजियेगा । मो सबाह के जाने के पश्चात् मैं अपनी छत पे गया और बगल में निवासी अनिल श्रीवास्तव जो अपनी छत पर अपने किसी सहकर्मी से वार्ता कर रहे थे, से बात करने लगा । उन्ही से मोबाइल लेकर मैंने अपनी को घर में घटित चोरी की घटना को बताया और कहा कि तुम किसी के साथ बच्चो को लेकर जल्द से जल्द आ जाओ । तभी सपा नेता धीरज गुलसिया आ गये और मैं नीचे आ गया ।उनके घटना स्थल देखने के पश्चात् मैंने कहा कि घटना की सुचना चलकर कोतवाल दे दी जाये और उन्होंने तुरंत हामी भरी और कहा कि चलिए । कमरे और मुख्य द्वार में ताला लगा कर मैं उनके साथ कोतवाली पंहुचा तब तक शायद 8बजने वाले थे । कोतवाली में मौजूद पुलिस कर्मी ने कहा कि अभी कोतवाल साहब नहीं है , 10 बजे के बाद आ जाइये , प्राथमिकी भी दर्ज हो जाएगी और कोतवाल साहब के से कुछ कार्यवाही भी हो जाएगी । मैं वापस अपने घर आ गया और दैनिक क्रिया से निवृत होने के पश्चात् कमरे में ही लेट गया । लगभग 9 बजे दो पुलिसकर्मी आये और मौका मुआयना देखने लगे ।कमरा , रसोई , आंगन और छत सभी जगह देखने के पश्चात् बड़े कमरे में बैठ कर वार्ता करने लगे तभी पंजाब केसरी के जिला संवाददाता मो अतहर और एक अन्य पत्रकार साथी अब्बास भी आ गये । उनके घर के अन्दर आने के चंद मिनट बाद ही आवास विकास चौकी प्रभारी सतीश यादव को साथ लेकर धीरज गुलसिया आ गये । सभी लोग एक साथ कमरे , रसोई , आंगन को देखते हुये छत तक गये और फिर कमरे में आकर बैठ गये । त्वरित कार्यवाही की बात कहते हुए चौकी प्रभारी ने स्वयं घटना का प्राथमिकी दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र माँगा ,जो की मैंने तुरंत दे दिया । दो दिन के भीतर चोरी के खुलासे की बात और समुचित कार्यवाही करने का आश्वासन देकर चौकी प्रभारी और अन्य पुलिस कर्मी चल दिये । यह सब 10.30 बजे तक हो गया , पुलिस चौकी प्रभारी के आने और उसके कथन से तब मुझे बहुत सुकून मिला था । दोपहर में परिवार वापस आ गया , साफ -सफाई और लोगो के आने जाने वार्ता में ही शाम हो गई । सोमवार और मंगलवार को फ़ोन से चौकी प्रभारी से मामले की प्रगति लेता रहा । मामले में प्रगति शून्य प्रतीत होने व चोरी का तक दर्ज न होने के बाबत जब चौकी प्रभारी से मैंने कहा तो उन्होंने कहा कि चोरी की जगह गुमशुदगी की दरखास्त दे दीजिये , चोरी की प्राथमिकी मत दर्ज कराइए । मैंने कहा कि जब चोरी हुई है तो गुमशुदगी की बात कैसे लिखूं? समाजवादी पार्टी के वरिष्ट नेता अरविन्द यादव - पूर्व विधान परिषद् सदस्य , जिला सचिव ज्ञान सिंह यादव , धीरज गुलसिया आदि ने भी चोरी की प्राथमिकी दर्ज करने और कार्यवाही करने के लिए सतीश यादव - चौकी प्रभारी आवास विकास कालोनी से कहा । अंततः शनिवार 3नवम्बर को बाराबंकी कोतवाल संतोष सिंह से पत्रकार साथी मो अतहर ,आशुतोष श्रीवास्तवा , रेहान के साथ प्रातः 10.30 पे मिला । कोतवाल बाराबंकी संतोष सिंह ने कहा कि दो - तीन दिन का मौका और दे दीजिये , अभियोग पंजीकृत के साथ साथ तब तक अपराधी भी सर्विलांस के द्वारा पकड़ में आ जायेंगे । साथी पत्रकारों की सलाह से मैंने भी कहा कि ठीक है सोमवार तक ही अभियोग पंजीकृत कर दीजियेगा । कोतवाल ने कहा कि गुमशुदगी अभी दर्ज करा दीजिये , मैंने इंकार और कहा कि चोरी हुई है , चोरी की रिपोर्ट लिखिए । खैर सोमवार 5 नवम्बर को अभियोग दर्ज करने और अभियुक्त का पता लगाने का आश्वासन मिल चूका था और पीरबटावन में किसी मामले की सुचना आने के कारण कोतवाल को वहा जाना था । औपचारिक नमस्कार के पश्चात हम सभी लोग बाराबंकी कोतवाली से निकल गये । कोतवाली से निकलने के पश्चात मेरा कार्यक्रम एकदम से मझगवां शरीफ तहसील फतेहपुर जाने का बन गया । शाम को लगभग 6बजे वहा से वापस बाराबंकी घर पंहुचा । इस दौरान कई पत्रकारों ने बाराबंकी कोतवाल संतोष सिंह व आवास विकास चौकी प्रभारी सतीश यादव से प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कहा , लेकिन आपराधिक घटनाओं को ना दर्ज करने की फितरत के चलते अभियोग पंजीकृत पुलिस द्वारा नहीं किया गया । पुलिस के प्राथमिकी तक ना दर्ज करने के कारण मंगलवार 6 नवम्बर को तहसील दिवस के अवसर अपने घर हुई चोरी की घटना और पुलिस द्वारा कार्यवाही ना करने की सूचना और प्राथमिकी दर्ज किये जाने का प्रार्थना पत्र सुनील चौधरी -सदर उप जिला अधिकारी को दिया । उनके साथ सी ओ सिटी दीपेन्द्र चौधरी मौजूद थे , पूरा प्रकरण समझने के पश्चात अधिकारी द्वय ने स्पष्टतः कहा कि कल आप कोतवाली से चोरी की घटना की प्राथमिकी रिपोर्ट की प्रति ले लीजियेगा । दूसरे दिन शाम को पता करने पे अभियोग दर्ज ना होने की जानकारी मिली । गुरुवार 8 नवम्बर को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को बाराबंकी आना निश्चित था ,7नवम्बर की शाम को चौकी प्रभारी सतीश यादव ने वार्ता करने पे कहा कि कोतवाल साहब सहित सभी उसी में व्यस्त हैं , कार्यक्रम के पश्चात प्राथमिकी दर्ज हो जायेगी । 8 नवम्बर को सपा प्रमुख आये और चले भी गए ,आज शनिवार 10नवम्बर तक भी मेरे घर शनिवार - रविवार 27-28 को हुई चोरी की घटना को बाराबंकी की पुलिस ने दर्ज नहीं किया है । गुरुवार 8 नवम्बर को एक सुखद लेकिन हैरान कर देने वाला वाकया हुआ । दोपहर बाद करीब 3.15 बजे जब मैं पंजाब केसरी के बाराबंकी कार्यालय में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के द्वारा दिए गये भाषण पे पत्रकार साथियों से विचार विमर्श कर रहा था तभी मेरे पडोसी मतीन अहमद जी का फ़ोन आया । उन्होंने कहा कि तत्काल आ जाओ ,तुम्हारा पर्स मिला है । तत्काल वहा मौजूद अब्बास भाई के साथ अपने मोहल्ले आ गया । मेरे घर के चंद कदम पहले विकास भवन मार्ग पे ही मतीन भाई का निर्माणाधीन अतिथि गृह है , वही मतीन भाई मिले । मुख्य मार्ग पे सड़क के किनारे ईटों का एक चट्टा लगा हुआ है , उसी पे मेरा चोरी गया पर्स एक ईटें से दबा कर रखा था ,जिसको वहा कार्य कर रहे मजदूर ने देखा था और मतीन भाई को सूचना दी । खैर ,मैंने पर्स मिलने की सूचना तत्काल चौकी प्रभारी सतीश यादव को दिया और उन्होंने एक घंटे में आने को कहा , दुर्भाग्यवश आज 10नवम्बर दिन शनिवार दोपहर 1.25 तक भी लगभग 46 घंटे बीत जाने के बाद भी चौकी प्रभारी का एक घंटा नहीं हुआ । बाराबंकी में आवास विकास चौकी प्रभारी सतीश यादव की इन हरकतों से साफ़ समझ में आ चूका है कि पुलिस अपराधी को संरक्षण दे रही है।पड़ोसियों और मित्रों की सलाह से मैंने कल 9नवम्बर को अपना पर्स वहा से उठा के अपने कब्जे में ले लिया । पुलिस की इन सारी गैर जिम्मेदाराना व भ्रष्टाचार युक्त आचरण की जानकारी मैंने सुनील चौधरी - उपजिलाधिकारी को दिया । उनके द्वारा भी पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने व कार्यवाही करने को निर्देशित किया गया था , जिस को तक नज़र अंदाज़ पुलिस कोतवाल द्वारा किया गया । कोतवाली अंतर्गत आवास विकास कालोनी चौकी इलाके में अपराधों को दर्ज न करने के सिलसिले का ताज़ा प्रमाण मेरे अपने निजी आवास में पिछले 27-28 की रात हुई चोरी की प्राथमिकी आज तक दर्ज न किया जाना है । कोतवाली इलाके में अपराध हो ही नहीं रहे है ये साबित करने के लिए प्राथमिकी ही नहीं दर्ज करी जाती है । कोतवाली अंतर्गत आवास विकास कालोनी चौकी इलाके में तमाम चोरी की घटनायें प्रकाश में आई है जिनकी प्राथमिकी नहीं दर्ज की गयी है । चौकी प्रभारी आवास विकास कालोनी और बाराबंकी शहर कोतवाल दोनों लोग मेरे अपने घर हुई चोरी की घटना की प्राथमिकी दर्ज करने में हीला हवाली कर रहे है ।अपराधों पर नियंत्रण और अपराधियों पे नकेल कसने के स्थान पर बाराबंकी कोतवाली पुलिस अपराध छुपाने और अपराधियों को बचाने में जुटी हुई स्पष्टतः दिखाई दे रही है । वसूली अभियान को अपना पहला व अंतिम ध्येय बना चुकी बाराबंकी कोतवाली पुलिस की नाक के नीचे अनवरत घटित आपराधिक घटनाओं से यह साबित हो रहा है कि कोतवाली बाराबंकी के पुलिस कोतवाल/चौकी प्रभारी गैर जिम्मेदार व कर्त्तव्य निर्वाहन के प्रति लापरवाह है । बाराबंकी पुलिस के इस कदाचरण , मनमाने आचरण और अभियोग ना दर्ज कर अपराधियों को संरक्षण देने के मामले को अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मा अखिलेश यादव एवं पुलिस व गृह विभाग के आला अधिकारीयों के संज्ञान में सोमवार 12नवम्बर को इस मामले का शिकायती पत्र सौंप कर कराऊंगा और घटना की प्राथमिकी दर्ज करवाने के निवेदन के साथ साथ इन गैर जिम्मेदार पुलिस कर्मियों को उचित दंड दिए जाने का भी अनुरोध करूँगा ।

Thursday, November 8, 2012

दिवंगत ब्लैक लिस्टेड शराब व्यवसाई की प्रतिमा का मुलायम सिंह द्वारा अनावरण

दिवंगत ब्लैक लिस्टेड शराब व्यवसाई गुरु प्रसाद जयसवाल - पूर्व अध्यक्ष नगर पालिका बाराबंकी की प्रतिमा अनावरण के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के आज आगमन के पहले ही बाराबंकी कोतवाली पुलिस का कहर बाराबंकी के नागरिको पर बरसा । तमाम रास्तो पर बैरिकैडिंग लगाकर नागरिको को अपने अपने घर में कैद में रहने को किया मजबूर , छाया चौराहे पर अपनी जीविका के लिए प्रति दिन जमा होकर मजदूरी तलाशने वाले मजदूरों को खदेड़ा गया । सड़क के किनारे खड़ेवाहनों के स्वामियों - चालको से प्रातः से ही अभद्र व्यवहार बाराबंकी पुलिस कर्मियों द्वारा मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर किया गया है । बाराबंकी नगर पालिका में आयोजित दिवंगत ब्लैक लिस्टेड शराब व्यवसाई गुरु प्रसाद जयसवाल - पूर्व अध्यक्ष की प्रतिमा का अनावरण समारोह आयोजित करने वाले वयो वृद्ध पूर्व सांसद अनंत राम जयसवाल ने अभी हालिया संपन्न उत्तर प्रदेश विधान सभा के आम चुनावो में समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशियों का खुलकर व जम कर विरोध किया था और कांग्रेस के प्रत्याशियों की मदद करी थी लेकिन बाराबंकी की सभी सीटो पर समाजवादी पार्टी के ही प्रत्याशी जीते । प्रचंड बहुमत से अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी सरकार का गठन भी हुआ और चुनावो के दौरान समाजवादी पार्टी का खुलम खुल्ला विरोध करने वाले और मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव पर व्यक्तिगत प्रहार करने वाले तमाम जनाधार विहीन लोगो के होश फाख्ता हो गए थे । अपने पुराने रिश्तों की दुहाई देकर समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव से बधाई देने के लिए मिलने की मिन्नतों से मिली सफलता के पश्चात् मुलायम सिंह यादव पे अपना व्यक्तिगत प्रभाव व पकड़ दिखाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त कार्यक्रम वर्षो से अनावरण के लिए नगर पालिका परिसर में दिवंगत ब्लैक लिस्टेड शराब व्यवसाई गुरु प्रसाद जयसवाल - पूर्व अध्यक्ष नगर पालिका बाराबंकी की प्रतिमा अनावरण का आयोजन पूर्व सांसद महोदय को समझ में आया । जबकि इस प्रतिमा का अनावरण बहुजन समाजपार्टी के शासन काल में ही एक संगठन के लोगो ने कर था । बाराबंकी समाजवादी धरा पर ब्लैक लिस्टेड शराब के कारोबारी की प्रतिमा अनावरण करके समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने महात्मा गाँधी के मध निषेध कार्यक्रम व शराब बंदी आन्दोलन की अवधारणा पर आघात पहुचाया है । शराब के कारोबारी को महिमा मंडित करके मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद की नूतन अवधारणा का प्रतिपादन ही कर डाला । बकौल सपा मुखिया शराब के कारोबार से सरकार को दुसरे नंबर का राजस्व प्राप्त होता है इसलिए शराब व्यवसाई की प्रतिमा लगाई जा सकती है । दलित समाज के महापुरुषों की प्रतिमाओ पर लगातार हो हल्ला मचाने वाले और मूर्ति लगाने को जनता के धन की बरबादी करार देने वाले सपा नेतृत्व को आखिर हो क्या गया है यह मेरी समझ से परे है । आज के इस प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के रंजीत बहादुर श्रीवास्तव - नगर पालिका अध्यक्ष की विशिष्ट उपस्थिति और राष्ट्रीय स्वयं संघ के अजय सिंह के संचालन से भ्रम पैदा हो चुका है । बहरहाल शराब व्यवसाई पुत्र के शराब व्यवसाई दिवंगत पिता की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के चलते शराब के शौक़ीन पत्रकारों की पौ बारह रही , खूब दावतें कटी और विज्ञापन / नगदी के बहाने दीपावली का भी इन्तेजाम हो ही गया । बाराबंकी के ही गाँधी वादी समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा - अध्यक्ष गाँधी जयंती समारोह ट्रस्ट ने इस प्रतिमा अनावरण समारोह के आयोजन के औचित्य पर सवाल उठाये थे और मुलायम सिंह यादव से इस कार्यक्रम में न आने की अपील की थी । खैर मुलायम सिंह यादव आज बाराबंकी आये और चले भी गये लेकिन पार्टी के जिला कार्यकर्ताओं में एक निराशा भर के गये जिसका खामियाजा आगामी लोकसभा में भुगतना पड सकता है ।

बाराबंकी कोतवाली पुलिस का कहर

दिवंगत ब्लैक लिस्टेड शराब व्यवसाई गुरु प्रसाद जयसवाल - पूर्व अध्यक्ष नगर पालिका बाराबंकी की प्रतिमा अनावरण के लिए समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के आज आगमन के पहले ही बाराबंकी कोतवाली पुलिस का कहर बाराबंकी के नागरिको पर बरसा । तमाम रास्तो पर बैरिकैडिंग लगाकर नागरिको को अपने अपने घर में कैद में रहने को किया मजबूर , छाया चौराहे पर अपनी जीविका के लिए प्रति दिन जमा होकर मजदूरी तलाशने वाले मजदूरों को खदेड़ा गया । सड़क के किनारे खड़ेवाहनों के स्वामियों - चालको से प्रातः से ही अभद्र व्यवहार बाराबंकी पुलिस कर्मियों द्वारा मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर किया जा रहा है ।

Sunday, November 4, 2012

बाराबंकी शहर कोतवाली पुलिस का मनमाना - भ्रष्ट रवैया

बाराबंकी शहर कोतवाली पुलिस का मनमाना - भ्रष्ट रवैया बदस्तूर जारी है । कोतवाली अंतर्गत आवास विकास कालोनी चौकी इलाके में अपराधों को दर्ज न करने के सिलसिले का ताज़ा प्रमाण मेरे अपने निजी आवास में पिछले शनिवार - रविवार की रात हुई चोरी की प्राथमिकी आज तक दर्ज न किया जाना है । कोतवाली इलाके में अपराध हो ही नहीं रहे है ये साबित करने के लिए प्राथमिकी ही नहीं दर्ज करी जाती है । कोतवाली अंतर्गत आवास विकास कालोनी चौकी इलाके में तमाम चोरी की घटनायें प्रकाश में आई है जिनकी प्राथमिकी नहीं दर्ज की गयी है । चौकी प्रभारी आवास विकास कालोनी और बाराबंकी शहर कोतवाल दोनों लोग मेरे अपने घर हुई चोरी की घटना की प्राथमिकी दर्ज करने में हीला हवाली कर रहे है । कल इस घटना के सन्दर्भ में / बाराबंकी कोतवाली पुलिस के कदाचरण के संदर्भ में समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता श्री राजेंद्र चौधरी - विधान परिषद सदस्य से मुलाकात कर के अवगत कराऊंगा । ---- अरविन्द विद्रोही

Friday, October 12, 2012

मंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह का इस्तीफा

जनपद गोंडा के समाजवादी पार्टी के तमाम कार्यकर्ताओ से मैंने हालिया चर्चित घटना क्रम के सन्दर्भ में वार्ता की । किसी भी कार्यकर्ता ने सपा नेता पंडित सिंह - मंत्री उत्तर प्रदेश शासन को दोषी नहीं बताया । पंडित सिंह से व्यक्तिगत रंजिश रखने वाले कुछ प्रभावी लोगो ने भी इस घटना चक्र में पंडित सिंह की भूमिका को नाकारा और कहा कि अधिकारी अपनी मनमानी करते है और जब कोई उनपे अंकुश लगाने की कोशिश करता है तो इसी तरह उस व्यक्ति , नेता को अपराधी - दोषी करार करने का दुष्चक्र रचा जाता है । चिकित्सा अधिकारी द्वारा मनमानी पूर्ण कार्य की कलाई खुलने की आशंका से प्रभावी मंत्री विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह की घेराबंदी का कार्य नौकर शाहों और पंडित सिंह के राजनितिक विरोधियो ने किया है -- यह मानना है स्थानीय मित्रो का । पंडित सिंह के इस्तीफे से साफ़ है कि नौकर शाही ने सपा सरकार को अपने दबाव में उसी तरह ले लिया है जिस तरह बसपा सरकार को ले लिया था । अधिकारी किसी के नहीं होते है , सपा के -नेताओ कार्यकर्ताओ में हताशा व्याप्त होगी अब और ज्यादा ।नौकर शाह चिकित्सा अधिकारी के भ्रस्टाचार को उजागर करने की जगह अपने पुराने समाजवादी की बलि नुकसान दायक ही होगी सपा के लिए

Thursday, October 11, 2012

लोकनायक जय प्रकाश नारायण का जन्म दिवस

लखनऊ के चिनहट विकास खंड के गाँव मुरलीपुर ( विधान सभा - बख्शी का तालाब ) में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के जन्म दिवस पे किसान नेताओ ने चित्र पर पुष्प अर्पित करके उनके योगदान की चर्चा की । लोकनायक जय प्रकाश नारायण के जन्म दिवस के अवसर पर आयोजित इस विचार गोष्ठी में अरविन्द विद्रोही , गंगा प्रसाद यादव , संतोष सिंह , चन्द्र शेखर वर्मा , पंकज श्रीवास्तव , कौसल किशोर वर्मा , राम कैलाश गौतम , धन पत रावत , उमेश वर्मा , राम कुमार , हनुमान , संजय यादव आदि ने अपने अपने विचार रखे । गोष्ठी में निर्णय लिया गया कि भारत के महापुरुषों के जीवन संघर्ष - विचारो के प्रचार प्रसार के लिए साहित्य का प्रकाशन और ग्रामीण इलाको में वितरण पुनः शुरू किया जाये । किसानो के साथ विचार विमर्श चौपाल लगाके किया जाये । ग्रामीण इलाको में शराब बंदी आन्दोलन शुरू हो । ग्रामीण युवाओ को रोजगार परक योजनाओ की जानकारी देने की और उनको सामाजिक जिम्मेदारी भावना से जोड़ने के लिए युवाओ को ग्रामीण चौपाल में बुलाने पर जोर गया ।

Tuesday, October 9, 2012

बहुजन समाज को सामाजिक चेतना से राजनीतिक चेतना तक ले जाने वाले नायक मान्यवर कांशीराम

अरविन्द विद्रोही ............. कांशीराम - भारत की राजनीति में एक अनूठा व्यक्तित्व | बालक कांशीराम का जन्म खवासपुर गाँव - जिला रोपड़ - पंजाब में एक रामदासिया हरिजन परिवार में हुआ था | गाँव में ही शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक कांशीराम के दादा व चाचा फ़ौज में थे | कांशीराम ने विज्ञानं स्नातक की शिक्षा रोपड़ में ग्रहण की | बाल्य कल से लेकर शैक्षिक जीवन तक कांशीराम को सामाजिक भेदभाव व छुआ छूत का अनुभव नहीं था क्यूंकि आर्य समाज व सिख संप्रदाय के प्रभाव के चलते पंजाब में सामाजिक बुराई समाप्त प्राय : थी | आखिर युवक कांशीराम से - एक शिक्षित नौकरी शुदा कांशीराम से सामाजिक राजनीतिक चेतना का नायक मान्यवर कांशीराम तक का सफ़र कैसे शुरू हुआ ? यह एक दिलचस्प और प्रेरक प्रसंग है | वर्तमान परिस्थितियो में भी मानों इतिहास खुद को दोहराने की प्रक्रिया में लगा हुआ है | आभास होता है कि काल की गति स्वयं को दोहारने वाली है | कांशीराम १९५७ में सर्वे ऑफ़ इंडिया की परीक्षा में उत्तीर्ण हुये | विभाग में कार्यभार ग्रहण करने के पूर्व भरवाए जाने वाले बंद को भरने से इंकार करके कांशीराम ने वो नौकरी ना करने का फैसला किया | तत्पश्चात आपने पूना में एक्स प्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्री ( ई आर डी एल ) में अनुसन्धान सहायक के पद पे कार्य करना प्रारंभ किया | अनुसन्धान सहायक के पद पे कार्य रत कांशीराम की रूचि सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों की तरफ होने लगी थी | कांशीराम की इसी नौकरी के दौरान ई आर डी एल में एक ऐसी घटना घटी जिसने शिक्षित कांशीराम को जो अगर यह घटना ना घटी होती तो शायद गुमनामी में ही गम रह जाता , को करोडो - करोड़ लोगो का मान्यवर कांशीराम बनाने में अहम् भूमिका अदा की | दरअसल इसी समय बुद्ध जयंती व अम्बेडकर जयंती के अवकाश को निरस्त करने का निर्णय ई आर डी एल ने लिया और जब उसका विरोध वही के एक कर्मचारी ने किया तो उसे नौकरी से निलंबित कर दिया गया | कांशीराम से ना रहा गया , अपने मित्रो-सहकर्मियों के तमाम मना करने के बावजूद कांशीराम ने अन्याय के खिलाफ प्रतिकार का संकल्प लेते हुये उस निलंबित कर्मचारी की मदद कारी तथा मा ० न्यायालय में इसके विरोध में वाद दायर किया | मा० न्यायालय ने न्याय किया तथा निलंबित कर्मचारी के निलंबन को रद्द करने के साथ साथ बुद्ध व अम्बेडकर जयंती दोनों के अवकाश को बहाल किया | आज उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पर घोषित अवकाश को रद्द करते हुये पुनः वही परिस्थितिया - हालात पैदा कर दिया है जो किसी नए कांशीराम के आगे आने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है | सामाजिक - राजनीतिक दिलचस्पी लेना प्रारंभ कर चुके कांशीराम ने डॉ भीमराव अम्बेडकर को उनके विचारो-पुस्तकों के अध्धयन से आत्मसात करना प्रारंभ कर दिया | इसी अध्धयन काल में कांशीराम ने नौकरी का परित्याग किया और संकल्प लिया --- "मैं कभी शादी नहीं करूँगा और ना ही किसी प्रकार की कोई व्यक्तिगत संपत्ति अर्जित करूँगा |" सामाजिक बुराइयों की जड़ जातिवाद है और इसको समाप्त करना जरुरी है , यह बात समाजवादी चिन्तक युगद्रष्टा डॉ राममनोहर लोहिया हमेशा दोहराते रहते थे | डॉ लोहिया ने कार्यक्रम भी दिया था , जाती तोड़ो - समाज जोड़ो | इसी जाती के विष को भांपते हुये , परखते हुये कांशीराम ने कहा था कि , -- " मुझे लगा कि जातिवाद सामाजिक व्यवस्था ही सारी बुराइयों की जड़ है | जाती विहीन समाज की स्थापना के बगैर इस तरह की बुराइयाँ समाप्त नहीं हो सकती है | मैं इस बुराई को ख़त्म करने का काम करूँगा इसीलिए मैंने १९६४ में अपनी नौकरी त्याग दी थी | " सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में पूरी तरह तल्लीन कांशीराम ने महाराष्ट्र रिपब्लिक पार्टी तथा डॉ अम्बेडकर द्वारा स्थापित पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के लिए काम शुरू किया | लगभग ४ वर्षो तक इन संगठनो में कार्य करने के पश्चात् कांशीराम ने अनुभव किया कि इन संगठनो में आन्तरिक मतभेद बहुत है तथा संगठन - समाज का मूल कम कर पाना इसमें संभव नहीं है | कांशीराम ने नया संगठन बनाने और शोषित समाज को एक साथ लाने कि दिशा में सोचा और ६ दिसम्बर , १९७३ को पुन व दिल्ली के चन्द सरकारी कर्मचारियों को साथ लेकर बामसेफ का गठन किया | बामसेफ को अखिल भारतीय स्वरुप देने में कांशीराम को ५ वर्षो का समय लगा और ६ दिसम्बर , १९७८ को दिल्ली में ही बामसेफ की औपचारिक घोषणा की | बामसेफ को सरकारी कर्मचारियों की संस्था के रूप में खड़ा करके एक मजबूत सामाजिक आधार के साथ साथ आर्थिक मजबूती का कार्य कांशीराम ने किया | कांशीराम के ही अनुसार ,- " जिस समाज की राजनीतिक जड़े मजबूत नहीं होती , उस समाज की राजनीति कभी कामयाब नहीं होती | मैंने बामसेफ बना कर दलित-शोषित समाज का राजनीतिक आधार मजबूत किया | " सक्रिय राजनीति में कदम रख चुके कांशीराम की नज़र सर्वोच्च सत्ता पे थी , बगैर किसी लाग लपेट के कांशीराम का कहना था ,- " राजनीति सत्ता के लिए होती है और सत्ता बिना संघर्ष के नहीं मिलती | " असमान सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष को धार देने के लिए , जाती विहीन समाज की सथापना के लिए , समाज में बराबरी कायम करने के लिए कांशीराम ने १९८१ में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति ( डी एस फोर ) का गठन किया | डी एस फोर के बैनर तले कांशीराम ने ' समता और सम्मान के लिए संघर्ष ' आन्दोलन की शुरुआत ६ दिसम्बर ,१९८३ को प्रारंभ किया | देश के पाँच कोनो कन्याकुमारी , कोहिमा , कारगिल , पूरी तथा पोरबंदर से कांशीराम ने दो-दो दिन के अंतराल पर दिल्ली के लिए साइकिल यात्रा शुरू की | सौ दिन में दिल्ली पहुची इस यात्रा में डी एस फोर के ३ लाख कार्यकर्ताओ ने साढ़े सात हज़ार सभा करी , १० करोड़ से ज्यादा लोगो तक इस आन्दोलन के माध्यम से समता और सम्मान की बात पहुचाई | कांशीराम का मानना था कि , -- " जब हम इस गैर बराबरी वाले समाज को ध्वस्त कर एक नए समाज की स्थापना के लिए संघर्ष की बात करते है तो हमें विकल्प भी प्रस्तुत करना होगा और यह विकल्प राजनीतिक सत्ता को हासिल किये बगैर संभव नहीं है | " और कांशीराम ने --- करोडो- करोड़ लोगो में सामाजिक राजनीतिक चेतना जगाने वाले बहुजन समाज के नायक कांशीराम ने अपने जीते जी राजनीतिक सत्ता- ताकत हासिल करके दिखाई भी | भारतीय लोकतंत्र में कांशीराम द्वारा गठित राजनीतिक दल बहुजन समाज पार्टी ने जोरदार आगाज़ किया तथा सभी प्रमुख राजनीतिक दलों - नेताओ को अपने चातुर्य व रणनीति के तहत बार - बार घुटने टेकने पर विवश किया | कांशीराम अपने समाज को जागृत करते हुये कहते थे ,--" शिक्षित करो , संघर्ष करो तथा संगठित करो | " कांशीराम का स्पष्ट मानना था कि सामाजिक कार्यवाही बिना उग्रता के होनी चाहिए | मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पे अवकाश को रद्द किये जाने पे प्रतिक्रिया देते हुये साथी पत्रकार धनञ्जय सिंह लिखते है कि -- यू पी में कांशीराम पुण्यतिथि पर अवकाश रद्द होना ठीक नहीं | यही एक प्रदेश है जहा उनके प्रयोग धरातल पर उतरे | छुट्टी के बहाने ही सही लोग उन्हें याद करते | आप उन्हें नकार नहीं सकते | नोयडा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश पाण्डेय का मानना है कि सीमित संसाधनों में समाज के सबसे निचले वर्ग का संकलन कर उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के सत्ता शीर्ष पर बैठने वाले मा कांशीराम जी वन्दनिये है | भले ही उनके मिशन को आगे बढ़ाने वाले कार्यकर्ताओ का अभाव हो गया है किन्तु तब भी अभी तक उनके द्वारा किये गये प्रयासों का अपेक्षित परिणाम ही आया है |

Saturday, September 29, 2012

भगत सिंह के विचारो की आजाद भारत में प्रासंगिकता --- अरविन्द विद्रोही


वर्तमान समय में भगत सिंह के विचार कितने प्रासंगिक हैं, यह एक बड़ा प्रश्न है।सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों के बौद्धिक नेता थे,वे क्रांति के उच्च आदर्शों की स्थापना के लिए संघर्षरत् थे। क्रांति क्या है ?,यह स्पष्ट करते हुए उन्होने कहा,‘‘नौजवानों को क्रान्ति का यह संदेश देश के कोने कोने तक पहुँचाना है, फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में,गन्दी बस्तियों और गांवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रान्ति की अलख जगानी है जिससे आज़ादी आयेगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जायेगा।‘‘क्या क्रान्ति सफल हुई? क्या आम जनता को स्वतन्त्रता मिली? गोरे शासकों से सत्ता काले- भूरे शासकों को हस्तांतरित हो गई। आम जन पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है। लाल फीताशाही अपना परचम लहरा रही है। अन्नदाता,फटे कपड़ों में जिन्दगी ग़ुजार रहा है।किसानों की उपजाउ भूमि का अधिग्रहण बदस्तूर जारी है। जीवन भर दूसरों का घर बनाने वाला श्रमिक वर्ग बेघर है। अपनी आवाज उठाने पर जनता को लाठी-गोली खानी पड़ रही है।जनता की मेहनत की कमाई राजनेताओं की सनक व आपसी प्रतिद्वन्दिता का भेंट चढ़ रही है।सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का आरोप जिम्मेदार लोग एक दूसरे पर लगा रहें हैं।दण्ड़ देने के बजाए वोटबैंक बनाने के लिए दूसरे के वोटबैंक में सेंध लगा रहें हैं।युग दृष्टा थे सरदार भगत सिंह।इन स्थितियों का पूर्वानुमान उन्होने फरवरी 1931 में ही लगा लिया था।आपने क्रान्ति का अर्थ समझाते हुए लिखा,‘‘जनता के लिए जनता का राजनीतिक शक्ति हासिल करना।वास्तव में यही क्रान्ति है,बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी सड़ांध को ही आगे बढ़ाते हैं।किसी भी हद तक लोगों से या उनके उद्देश्यों से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता नहीं छिपा सकती,लोग छल को पहचानते हैं।भारत में हम भारतीय श्रमिक के शासन से कम कुछ भी नहीं चाहते।भारतीय श्रमिकों को-भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार हटाकर,जो कि उसी आर्थिक व्यवस्था के पैरोकार हैं,जिसकी जड़ें शोषण पर आधारित हैं-आगे आना है।हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते।बुराइयां ,एक स्वार्थी समूह की तरह,एक दूसरे का स्थान लेने के लिए तैयार हैं।‘‘आइये मंथन करें,आज भारत में शासक वर्ग क्या कर रहा है? क्या श्रमिकों-गरीबों-मज़लूमों-छात्रों-युवकों-आम जनों को उनका हक हासिल है? बड़े-बड़े नेता गाँव-गाँव जाकर अपनत्व का ढोंग नहीं कर रहे ? क्या दलितो-मजलूमों की आवाज बुलन्द करने वाले महापुरूषों के प्रचार-प्रसार को पूंजीवादी राजनैतिक दल झूठ का सहारा लेकर बाधित नहीं कर रहे? युग दृष्टा भगत सिंह ने इन परिस्थितियों को उसी समय दृष्टि में रखते हुए लिखा था कि-‘‘साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है।कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती।सभी विचारों वाले राष्टवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आज़ादी हासिल हो।पर उन्हे यह समझने की भी जरूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्यवाइयों से ही सफलता हासिल होगी।चूॅंकि इसका सरल समाधान नहीं हो सकता,इसलिए स्वयं को छलकर वे उस ओर लपकते हैं,जिसे वे आराजी इलाज,लेकिन झटपट और प्रभावशाली मानते हैं-अर्थात चन्द सैकड़े दृढ़ आदर्शवादी राष्टवादियों के सशस्त्र विद्रोह के जरिए विदेशी शासन को पलट कर राज्य का समाजवादी रास्ते पर पुर्नगठन।उन्हें समय की वास्तविकता में झांककर देखना चाहिए।हथियार बड़ी संख्या में प्राप्त नहीं हैं और जुझारू जनता से अलग होकर अशिक्षित गुट की बग़ावत की सफलता का इस युग में कोई अवसर नहीं है।राष्टवादियों की सफलता के लिए उनकी पूरी कौम को हरकत में आना चाहिए और बगावत के लिए खड़ा होना चाहिए।और क़ौम कांग्रेस के लाउडस्पीकर नहीं है,वरन् वे मजदूर-किसान हैं,जो भारत की 95प्रतिशत जनसंख्या है। राष्ट स्वयं को राष्टवाद के विश्वास पर ही हरकत में लायेगा,यानि साम्राज्यवाद और पूंजीपति की गुलामी से मुक्ति के विश्वास दिलाने से।हमें याद रखना चाहिए कि श्रमिक क्रान्ति के अतिरिक्त न किसी और क्रान्ति की इच्छा करनी चाहिए और न ही वह सफल ही हो सकती है।‘‘ युग दृष्टा सरदार भगत सिंह ने जून 1928 के किरती पत्र में एक लेख अछूत का सवाल में दलितों को अपनी ताकत बनाने और बाद में बचाये रखने का आह्वान किया।भगत सिंह ने लिखा था-हम मानते हैं कि उनके अपने जन प्रतिनिधि हों।वे अपने लिए अधिक अधिकार मांगें ।हम तो साफ कहते हैं कि उठो,अछूत कहलाने वाले असली जनसेवकों तथा भाइयों उठो।अपना इतिहास देखो।गुरू गोविन्द सिंह की फ़ौज की असली शक्ति तुम्हीं थे।शिवाजी तुम्हारे भरोसे पर ही सब कुछ कर सके,जिस कारण उनका नाम आज भी जिन्द़ा है।तुम्हारी कुर्बानियां स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं।तुम जो नित्य प्रति सेवा करके जनता के सुखों में बढ़ोत्तरी करके और जिन्दगी सम्भव बनाकर यह बड़ा भारी अहसान कर रहे हो,उसे हम लोग नहीं समझते!…….उठो, अपनी शक्ति को पहचानो।संगठनबद्ध हो जाओ।असल में स्वयं कोशिशें किये बिना कुछ भी न मिल सकेगा।स्वतन्त्रता के लिए स्वाधीनता चाहने वालों को स्वयं यत्न करना चाहिए।इन्सान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गयी हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है,लेकिन जो उनके मातहत है उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाये रखना चाहता है।कहावत है,लातों के भूत बातों से नहीं मानते।अर्थात संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो।तब देखना,कोई भी तुम्हें तुम्हारे अधिकार देने से इन्कार करने की जुर्रत न कर सकेगा।तुम दूसरों की खुराक मत बनो। दूसरों के मुंह की ओर न ताको।लेकिन ध्यान रहे,नौकरशाही के झांसे में मत फॅंसना। यह तुम्हारी कोई सहायता नहीं करना चाहती,बल्कि तुम्हें अपना मोहरा बनाना चाहती है।यही पूंजीवादी नौकरशाही तुम्हारी गुलामी और ग़रीबी का असली कारण है।इसलिए तुम उसके साथ कभी न मिलना।उसकी चालों से बचना।तब सब कुछ ठीक हो जायेगा। तुम असली सर्वहारा हो…..संगठनबद्ध हो जाओ।तुम्हारी कुछ हानि न होगी।बस गुलामी की जंजीरें कट जायेंगी।उठो,और वर्तमान व्यवस्था के विरूद्ध बगावत खड़ी कर दो। धीरे-धीरे होने वाले सुधारों से कुछ नहीं बन सकेगा।सामाजिक आन्दोलन से क्रान्ति पैदा कर दो तथा राजनीतिक और आर्थिक क्रान्ति के लिए कमर कस लो।तुम ही तो देश का मुख्य आधार हो,वास्तविक शक्ति हो,सोये हुए शेरों,उठो,और बग़ावत खड़ी कर दो। इस तरह दलित शक्ति का भान रखते थे भगतसिंह।उनको विश्वास था कि इनके शक्तिशाली बनने पर पूंजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा इनको छल,प्रपंच,लोभ से बरगला कर इनके अपने नेतृत्व से अलग किया जायेगा।इसीलिए उनके साथ किसी भी हालात में न मिलने की चेतावनी दी थी-भगतसिंह ने।आज पूॅंजीपति ताकतें दलितों की एकता को खण्डित करने के लिए नाना प्रकार की नाटक नौटंकी कर रहीं हैं।नौजवानों से अपील करते हुए भगत सिंह ने लिखा,‘‘सभी मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय एैसे देशसेवकों की जरूरत है,जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दें।लेकिन क्या बुड्ढ़ों में ऐसे आदमी मिल सकेंगे?क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटो में फॅंसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे?यह तो वही नौजवान निकल सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फॅंसे हों।…….क्या हिन्दुस्तान के नौजवान अलग अलग रहकर अपना और अपने देश का अस्तित्व बचा पायेंगे ? अमृतसर में 11,12,13 अप्रैल 1928 को नौजवान भारत सभा का सम्मेलन हुआ।इसका घोषणा पत्र भगत सिंह और भगवतीचरण वोहरा ने तैयार किया था।घोषणा पत्र में लिखा गया,-‘‘हमनें केवल नौजवानों से ही अपील की है क्योंकि नौजवान बहादुर होते हैं,उदार एवं भावुक होते हैं,क्योंकि नौजवान भीषण अमानवीय यन्त्रणाओं को मुस्कराते हुए बर्दाश्त कर लेते हैं,और बगैर किसी प्रकार की हिचकिचाहट के मौत का सामना करते हैं,क्योंकि मानव प्रगति का सम्पूर्ण इतिहास आदमियों तथा औरतों के खून से लिखा है,क्योंकि सुधार हमेशा नौजवानों की शक्ति,साहस, आत्मबलिदान और भावात्मक विश्वास के बल पर ही प्राप्त हुए हैं- ऐसे नौजवान जो भय से परिचित नहीं हैं और जो सोचने के बजाए दिल से महसूस कहीं अधिक करते हैं।‘‘ धार्मिक उत्तेजना पर कटाक्ष करते हुए लिखा गया-‘‘पीपल की एक डाल टूटते ही हिन्दुओं की धार्मिक भावनायें चोटिल हो उठती हैं।बुतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिये नामक काग़ज के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह नापाक हिन्दुओं के खून से कम किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता।‘‘घोषणा पत्र में साफ-साफ कहा गया कि-‘‘हमारे हजारों मेधावी नौजवानों को अपना बहुमूल्य जीवन गावों में बिताना पड़ेगा और लोगों को समझाना पड़ेगा कि भारतीय क्रान्ति वास्तव में क्या होगी।…….सफलता मात्र एक संयोग है,जबकि बलिदान एक नियम है।………उनके जीवन अनवरत् असफलताओं के जीवन हो सकते हैं-गुरू गोविन्द सिंह को आजीवन जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था,हो सकता है उससे भी अधिक नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पडे।‘‘आगे लिखा,-‘‘नौजवान दोस्तों,इतनी बड़ी लड़ाई में अपने आप को अकेला पाकर हताश मत होना।अपनी शक्ति को पहचानो।अपने उपर भरोसा करो।सफलता आपकी है।धनहीन,निस्सहाय एवं साधनहीन अवस्था में भाग्य आज़माने के लिए अपने पुत्र को बाहर भेजते समय जेम्स गैरीबाल्डी की महान जननी ने उससे जो शब्द कहे थे,याद रखो।उसने कहा,‘‘दस में से नौ बार एक नौजवान के साथ जो सबसे अच्छी घटना हो सकती है,वह यह है कि उसे जहाज की छत पर से समुद्र में फेंक दिया जाये ताकि वह तैरकर या डूबकर स्वयं अपना रास्ता तय करें।‘‘प्रणाम है उस माँ को जिसने ये शब्द कहे और प्रणाम है उन लोगों को जो इन शब्दों पर अमल करेंगें। घोषणा-पत्र के अन्त में लिखा गया-इतालवी पुनरूत्थान के प्रसिध्द विद्वान मैजिनी ने एक बार कहा था,‘‘सभी महान राष्टीय आन्दोलनों का शुभारम्भ जनता के अविख्यात या अनजाने,गैर प्रभावशाली व्यक्तियों से होता है,जिनके पास समय और बाधाओं की परवाह न करने वाला विश्वास तथा इच्छा शक्ति के अलावा और कुछ नहीं होता।‘‘जीवन की नौका को लंगर उठाने दो।उसे सागर की लहरों पर तैरने दो और फिर- लंगर ठहरे हुए छिछले पानी में पड़ता है विस्तृत और आश्चर्यजनक सागर पर विश्वास करो जहाँ ज्वार हर समय ताज़ा रहता है और शक्तिशाली धारायें स्वतन्त्र होती हैं वहां अनायास,ऐ नौजवान कोलम्बस सत्य का नया तुम्हारा नया विश्व हो सकता है। मत हिचको,अवतार के सिध्दान्त को लेकर अपना दिमाग परेशान मत करो और उसे तुम्हें हतोत्साहित मत करने दो।हर व्यक्ति महान हो सकता है,बशर्ते कि वह प्रयास करे। अपने शहीदों को मत भूलो।करतार सिंह एक नौजवान था,फिर भी बीस वर्ष से कम की आयु में ही देश की सेवा के लिए आगे बढ़कर मुस्कराते हुए वन्देमात्रम के नारे के साथ वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ गया।भाई बालमुकुन्द और अवधबिहारी दोनों ने ही जब ध्येय के लिए जीवन दिया तो वे नौजवान थे।वे तुममें से ही थे। तुम्हें भी वैसा ही ईमानदार,देशभक्त और वैसा ही दिल से आज़ादी को प्यार करने वाला बनने का प्रयास करना चाहिए,जैसे कि वे लोग थे।सब्र और होशो-हवाश मत खोओ,साहस और आशा मत छोड़ो।स्थिरता और दृढ़ता को स्वभाव के रूप में अपनाओ।नौजवानों को चाहिए कि वे स्वतन्त्रता पूर्वक,गम्भीरता से,शान्ति और सब्र के साथ सोचें।उन्हें चाहिए कि वे भारतीय स्वतन्त्रता के आदर्श को अपने जीवन के एकमात्र लक्ष्य के रूप में अपनायें। उन्हें अपने पैरों पर खड़े होना चाहिए।उन्हें अपने आपको बाहरी प्रभावों से दूर रख कर संगठित करना चाहिए।उन्हें चाहिए कि मक्कार तथा बेईमान लोगों के हाथों में न खेलें, जिनके साथ उनकी कोई समानता नहीं है और जो हर नाजुक मौक़े पर आदर्श का परित्याग कर देते हैं।उन्हें चाहिए कि संजीदगी और ईमानदारी के साथ ‘‘सेवा,त्याग,बलिदान‘‘ को अनुकरणीय वाक्य के रूप में अपना मार्गदर्शक बनायें।याद रखिये कि-राष्टनिर्माण के लिए हजारों अज्ञात स्त्री,पुरूषों के बलिदान की आवश्यकता होती है जो अपने आराम व हितों के मुकाबले तथा अपने एवं अपने प्रियजनों के प्राणों के मुक़ाबले देश की अधिक चिन्ता करते हैं। यह अपील,यह घोषणा पत्र आज भी प्रासंगिक है।सर्वहारा के हक पर पूंजीपति फन काढे बैठे हैं।राजनीति वंशानुगत जागीर हो गयी है।संघर्ष के रास्ते व्यवस्था परिवर्तन की अगुवाई कर रहे नेताओं को पूंजीवादी,वंशानुगत राजनीति के युवराज अपने भ्रमजाल के माध्यम से खत्म करना चाहते हैं।आज शोषितों,मजदूरों,युवाओं व सर्वहारा वर्ग को इनका फरेब समझना होगा।इन पूंजीवादी,साम्राजियों के भ्रमजाल में पड़ने के बजाए आर्थिक-मानसिक आजादी को हासिल करने के लिए राजनैतिक ताकत को एकजुट रखना पडेगा।आज फिर पूंजीपति गरीब रियाया को आडम्बरयुक्त आचरण से भरमाने हेतु गाँव-गली-कूचे तथा मलिन बस्तियों में फूट डालने,उनकी राजनैतिक ताकत को तोडने के लिए घूम रहे हैं।आज फिर युवकों को चाहिए कि जनजागरण पर निकल पड़ें।जनता को बतायें कि आज़ादी के बाद से अब तक उन्हें आर्थिक तरक्की नहीं मिली तो इसका जिम्मेदार कौन है?आज पुनः आवश्यकता आन पड़ी है कि बरसों के मेहनत व त्याग से अर्जित की गई सर्वहारा वर्ग की राजनैतिक शक्ति को पूंजीपतियों के ‘‘फूट डालो-राज करो‘‘नीति से बचाने की।

Thursday, September 27, 2012

२२ से २५ तक का मेरा दिल्ली प्रवास - अरविन्द विद्रोही

२२ को सुबह १० बजे दिल्ली पहुचने के पश्चात् सराय काले खां स्थित एक गेस्ट हाउस में दैनिक क्रिया से निवृत होकर मैं तक़रीबन दोपहर १ बजे जंतर मंतर पंहुचा | जंतर मंतर पर चल रहे प्रदर्शनों को देखते देखते एक घंटे कब गुजर गये ये पता ही नहीं चला | यहाँ से स्वामी अग्निवेश जी के कार्यालय में गया , स्वामी अग्निवेश जी के ना होने के कारण मुलाकात ना हो सकी | मित्र दीपक सिंह - महामंत्री जनता दल यू दिल्ली प्रदेश से दूरभाष से वार्ता करने पे ज्ञात हुआ की वे अपने कार्यालय में ही पार्टी की बैठक में मौजूद है | उनके निमंत्रण पे मैं उनके कार्यालय में गया | कार्यालय में जनता दल-यू के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह सहित दर्जनों प्रदेश पदाधिकारी २४ को होने वाले अपने कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारी बैठक कर रहे थे , दीपक सिंह के द्वारा मेरा परिचय कराने के बाद ठाकुर बलबीर सिंह ने सप्रेम पूर्वक मुझे भी अपने साथ बैठे रहने को कहा | कुछ समय पश्चात् जनता दल -यू के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण कुमार श्रीवास्तव के अपने भी कार्यालय में आने की सुचना मिली , जिनसे मिलने के लिए मैं उनके कार्यालय में तेजपाल सिंह के साथ गया | एक दशक के अन्तराल के पश्चात् मुलाकात के पश्चात् भी अरुण जी ने पहचान लिया ये मेरी आत्म संतुष्टि का कारण बना | जनता दल - यू के होने वाले दिल्ली प्रदेश के सम्मेलन में जिसमे शरद यादव जी को मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहना था से सम्बंधित एक प्रपत्र लिखने की जिम्मेदारी मुझे अरुण जी ने दी जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया | तभी जनता दल यू के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह का सन्देश आया कि जनता दल अध्यक्ष श्री शरद यादव जी के घर चलना है , सभी लोगो के साथ मैं भी शरद जी के घर रवाना हुआ | शरद यादव जी के घर तमाम छात्रों और पदाधिकारियों से मुलाकात हुई | तक़रीबन ८ बजे वहा से निकल कर मित्र दीपक सिंह के साथ जर्नलिस्ट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया के द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में गया जहा कमाल भाई ने हम लोगो को आमंत्रित किया था | वहा से १० बजे निकलने के पश्चात् दीपक सिंह ने अपने मित्रो के साथ मेरा परिचय और भोज का कार्यक्रम रखा था ,वहा गया | लगा ही नहीं उन सभी मित्रो से मिलकर कि आज पहली बार मिल रहा हूँ ,हिंदी गाने , ग़ज़ल , पंजाबी गाने और चुटकुलों को सुनते सुनाते और सह भोज का आनंद उठाते उठाते २ बज गये | रात्रि २.३० में गेस्ट हाउस पंहुचा और तुरंत सो गया | २३ तारीख को प्रातः ११.४५ बजे से राष्ट्रवादियो का लक्ष्मी नगर में एक सम्मेलन था जिसमे मित्र अवधेश पाण्डेय ने आमंत्रित किया था उसमे शिरकत के लिए मैं लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन ११ बजे पहुच गया , वहा अवधेश पाण्डेय जी के साथ कार्यक्रम स्थल गया | मित्र अवधेश पाण्डेय ने कार्यक्रम पश्चात् कार्यक्रम के विषय में अपनी कलम से जो लिखा वही प्रस्तुत है ---- दिल्ली में हुए ऐतिहासिक सम्मेलन का आयोजन अभूतपूर्व अनुभव रहा, आयोजकों के लिये भी और सम्मेलन में उपस्थित हो माँ भारती का गौरव बढ़ाने वाले भाई-बह्नों के लिये भी. देश के विभिन्न भागों से स्वत: प्रेरणा से आये लोगों का संगम अविस्मरणीय घटना है. आज जब जन-सामान्य राजनीति से घृणा करता है, तब देश को आगे ले जाने का संकल्प लेकर लोग किसी नेता के लिये अपना काम-धाम छोड़ दिल्ली आते हैं तो यह बहुत बड़ी बात है. सम्मेलन में जहाँ सोशल मीडिया के नामी धुरंधर उपस्थित हुए, वहीं अन्य राष्ट्रभक्त भी पीछे न रहे. लगभग 150 के आसपास की संख्या रही होगी. जो लोग सम्मेलन में नहीं आ सके उनके लिये कार्यक्रम विवरण कलमबद्ध करने का परम सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है, जो आप सभी को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित है. कार्यक्रम महन्त नित्यानंददास जी एवं एक अन्य उपस्थित बुजुर्ग द्वारा माँ भारती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलित करने के साथ प्रारंभ हुआ. दो सत्रों में संपन्न कार्यक्रम के प्रथम सत्र में देश की विभिन्न समस्याओं पर चिंता जताते हुए, वक्ताओं ने मोदी जी के द्वारा किये गये विकास कार्यों, समाज के लोगों में जाति-धर्म आदि का भेद न करते हुए सभी का समान विकास करने की भावना, पारदर्शी व कुशल प्रशासन, आतंकवाद से सख्ती से निपटने, नशाबंदी व गौरक्षा आदि के लिये मोदी जी के कार्यों जैसे अनेकों कारण गिनाये. मोदी जी की कार्यक्षमता का लोहा मानते हुए सभी ने माँ भारती के मंदिर के लिये मोदी जी को ही उपयुक्त पूजारी बताया. प्रथम सत्र के बाद भोजन की व्यवस्था भी थी. भोजन के उपरांत दूसरे सत्र में मोदी जी को राष्ट्र का नेतृत्व सौपने के मार्गों पर उपस्थित राष्ट्रवादियों ने निम्नलिखित सुझाव दिये. सुझाव अनंतिम है और आप लोग टिप्पणी के रूप में अपने बहुमूल्य सुझाव देने की कृपा करें तो यह राष्ट्रकार्य थोड़ा आसान हो सकता है. 1) युवाओं को राष्ट्र की समस्याओं से अवगत कराना और उन्हे अपने मताधिकार का प्रयोग करने का प्रोत्साहन देना 2) राष्ट्र के विरोधियों की पोल जनता के सामने खोलना, केन्द्र सरकार के घोटाले व उनके सहयोगियों के बारे में जनता को बताते हुए, मोदी जी के द्वारा कराये गये कार्यों को जनता के समक्ष रखना. 3) किसी भी संगठन से जुड़े लोगों को अपनी अपनी मातृ संस्थाओं पर दबाव डालना होगा. 4) देश में काँग्रेस के विरुद्ध माहौल है अत: मोदी जी को गैर काँग्रेसवाद का प्रतिनिधित्व करना होगा. 5) नारी शक्ति को राष्ट्र की समस्याओं से अवगत करा, उन्हे अपने आसपास चर्चा व मताधिकार का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहन देना होगा. 6) माननीय श्री सुरेश जी सोनी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, केशव कुँज, झण्डेवालान, नयी दिल्ली को पत्र भेज मोदी जी राष्ट्र रक्षा के लिये आगे करने का अनुरोध करना. 7) गली-मुहल्लों में नोटिस बोर्ड लगाकर मोदी जी के द्वारा कराये गये कार्यों का उल्लेख करना. 8) गाँवों और कस्बों में टोलियाँ बना देश की उन्नति के लिये मोदी जी जैसे अनुभवी व प्रामाणिक क्षमता की आवश्यकता के बारे में लोगों को बताना. 9) केन्द्र का रास्ता गुजरात के विधानसभा चुनाव से होकर जाने वाला है, अत: सभी राष्ट्रवादियों को गुजरात विधानसभा चुनाव में अपना समय देने के लिये तैयार रहना होगा. उपरोक्त प्रस्तावों को वास्तविकता का रूप देने के लिये अगली कार्ययोजना बैठक का भी विचार किया गया. सम्मेलन में आने वाले राष्ट्रभक्तों का सादर धन्यवाद. !! भारत माता की जय !! राष्ट्रवादियो का यह कार्यक्रम शाम ६बजे तक चला था | कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात् मैंने मित्र दीपक सिंह को दूरभाष से सुचना दिया और ७ बजे वो आये और मैं उनके साथ जनता दल यू के कार्यालय की तरफ चल पड़ा | सम्मेलन की तैयारियां अपने चरम पर थी | १० बजे तक वहा रहने के पश्चात् हम लोगो ने भोजन किया और वापस गेस्ट हाउस सराय काले खां आ गये | २४ तारीख को प्रातः १० बजे मैं तैयार होकर दीपक सिंह के साथ मान्वलकर सभागार पंहुचा | भव्य व्यवस्था के साथ साथ सुबह से ही कार्यकर्ताओ के हुजूम आने शुरू थे | दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर बलबीर सिंह और उनके सभी पदाधिकारियों की मेहनत अपना रंग दिखा रही थी | ११ बजते बजते सभागार में कोई सीट खाली ना रही और बाहर भी सैकड़ो की तादात में कार्यकर्ता मौजूद रहे | खांटी समाजवादी शरद यादव - राष्ट्रीय अध्यक्ष जनता दल यू के साथ साथ राष्ट्रीय महासचिव अरुण कुमार श्रीवास्तव , गोविन्द यादव - अध्यक्ष मध्य प्रदेश ने कार्यकर्ता सम्मेलन को विशेष रूप से संबोधित किया | कार्यकर्ताओ के हुजूम और उत्साह से शरद यादव गद गद दिखे और उन्होंने कार्यकर्ताओ का उत्साह वर्धन किया | इस दिन मेरे छात्र जीवनसे मित्र रहे सैयद आमिर जो की दिल्ली में ही रहते रहते साथ साथ रहे और हमने खूब सारी बातें भी करी | दिल्ली प्रवास के अंतिम दिन २५ तारीख को प्रातः १० बजे मित्र दीपक सिंह के साथ प्रवीन प्रधान जी से मिलने उनके कार्यालय गया | वहा परिचय के पश्चात् कुछ सामाजिक कार्यक्रमों की योजना बनी जिसका क्रियान्वयन आने वाले दिनों में होगा | यहाँ से सुप्रीम कोर्ट पंहुचा जहा पर वरिष्ट अधिवक्ता श्री राजेंद्र वर्मा जी से मुलाकात करी | श्री राजेंद्र वर्मा जी से लगभग एक वर्ष के अन्तराल पर हुई दूसरी मुलाकात भी मेरे लिए बहुत उत्साहवर्धक रही | वरिष्ट लेखक - पत्रकार श्री मस्तराम कपूर जी से मुझे मेरी अगली दिल्ली यात्रा में मिलवायेंगे यह उन्होंने वायदा किया | वहा से जंतर मंतर होते हुये शाम ६.२० बजे पुरानी दिल्ली स्टेशन पंहुचा |अपने नियत समय ६.४० पे ट्रेन चल पड़ी और मैं उसमे सवार होकर अपने घर बाराबंकी वापस .......

Tuesday, September 11, 2012

हिन्दू धर्म-दर्शन व अध्यात्म के प्रचारक स्वामी विवेकानंद ----- अरविन्द विद्रोही

गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस की अमर वाणी, ‘‘सभी धर्म सत्य हैं और वे ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न उपाय मात्र हैं। ‘‘को आत्म सात् किये हुए स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो -अमेरिका में आयोजित होने वाले विराट धर्मसभा व महासम्मेलन में जाने का निश्चय मद्रास के शिष्यों के अनवरत् दबाव व इच्छा तथा एक रात को गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस को स्वप्न में देखा कि वे महासागर के अथाह जल में पैदल चलते चले जा रहें हैं और उन्हें अपने पीछे-पीछे आने को कह रहे हैं, देखकर किया था। मातु श्री शारदा देवी की आज्ञा उन्होंने विदेश यात्रा के लिए पत्र लिख कर मांगीं माता की आज्ञा व आशीर्वाद एक साथ प्राप्त हो गये। स्वामी विवेकानन्द ने सारी उलझनों को त्याग कर धर्मसभा में जाने का निश्चय किया। पश्चिम को हिन्दू दर्शन और अध्यात्म का सन्देश देने तथा गुलामी की जंजीरों में जकड़े स्वदेश को जाने के महान उद्देश्य को पूरा करने के लिए स्वामी विवेकानन्द ने 31मई 1893 को मातृभूमि भारत के सागर तट से जलयान पर सवार हो कर, अपनी यात्रा प्रारम्भ की। पश्चिम के वैज्ञानिक विकास को देखने-समझने की जिज्ञासा मन में समेटे स्वामी विवेकानन्द जहाज के सहयात्रियों तथा कैप्टेन के साथ परिचय प्राप्त कर घुलमिल गये। सागर की तरंगों से उत्पन्न संगीत को ध्यान का माध्यम बना कर विवेकानन्द ने सात दिनों की यात्रा के बाद, जहाज के श्रीलंका के बन्दरगाह पर पहूँचने पर कोलम्बों का नगर भ्रमण किया। बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म की विद्रोही शाखा व पूरक मानने वाले विवेकानन्द ने भगवान बुद्धदेव की महानिर्वाण अवस्था की मूर्ति के दर्शन किये। भाषा की कठिनाई के चलते वहाँ के पुरोहित से स्वामी विवेकानन्द की बात न हो पाई। कोलम्बो से जलयान चलकर मलाया, सुमात्रा, सिंगापुर होते हुए हांगकांग पहूँचा। यहाँ तीन दिन के प्रवास में स्वामी विवेकानन्द ने दक्षिण चीन की राजधानी कैण्टन की यात्रा कर ली। यहाँ भी बौद्ध मन्दिर के दर्शन किये और जापान पहूँचने पर नागासाकी, याकोहामा, ओसाका और टोक्यो को देखकर अपने शिष्यों को लिखा, – ‘‘भारत की मानो जराजीर्ण स्थिति से बुद्धि का भी नाश हो गया है! देश छोड़कर बाहर जाने से तुम लोगों की जाति बिगड़ जाती है! हजारों वर्ष पुराने इस कुसंस्कार का बोझ सिर पर धरे हुए तुम लोग बैठे हुए हो! हजारों वर्ष से खाद्य-अखाद्य की शुद्धा-शुद्धि पर विचार करते हुए तुम लोग अपनी शक्ति बरबाद कर रहे हो! पौरोहित्य रूपी मूर्खता के गम्भीर आवर्त में चक्कर काट रहे हो! सैकड़ों युग के लगातार सामाजिक अत्याचार से तुम्हारा सारा मनुष्यत्व नष्ट हो गया है!……..आओ, मनुष्य बनो। अपने संकीर्ण अन्धकूप से निकलकर बाहर जाकर देखो, सभी देश कैसे उन्नति के पथ पर चल रहें है। क्या तुम मनुष्य से प्रेम करते हो? तुम लोग क्या देश से प्रेम करते हो? तो फिर आओ हम भले बनने के लिए प्राणपण से चेष्टा करे। जहाज प्रशान्त महासागर पार कर बैंकुवर बन्दरगाह पहूँचा। स्वामी विवेकानन्द रेलमार्ग से 3दिन की यात्रा पूरी कर के शिकागों पहूँचे। गेरूवा वस्त्र धारी अपरिचित युवक को देख लोग घूरने व ठगने लगे। खिन्न होकर स्वामी विवेकानन्द एक होटल में जाकर विश्राम करने लगे। दूसरे दिन स्वामी विवेकानन्द प्रदर्शनी देखने गये। वहाँ पर भी अपरिचित युवा साधु को देखकर पत्रकारों ने परिचय प्राप्त किया। अत्यधिक व्यय से चिन्तित स्वामी विवेकानन्द को यह ज्ञात हुआ कि धर्मसभा का आयोजन सितम्बर माह में होगा तथा प्रतिनिधि के रूप में आवेदन पत्र भेजने का समय भी बीत चुका है। व्यय खर्च कम करने के उद्देश्य से विवेकानन्द बोस्टन चल पड़े। एक वृद्ध महिला से आकस्मिक भेंट हो गई। वृद्ध महिला ने अमेरिका में आये वेदान्त के इस प्रचारक को अपने घर अतिथि के रूप में रहने का आमंत्रण दिया। स्वामी विवेकानन्द का मन निश्चिन्त हुआ और वे उनके घर रहने लगे। यहीं पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विख्यात प्रोफेसर श्री जे0एच0राइट आये और स्वामी विवेकानन्द से परिचय होने के बाद, प्रभावित होकर, धर्मसभा से सम्बन्धित अपने मित्र मिस्टर बनी को पत्र लिखा, -‘‘मेरा विश्वास है कि यह अज्ञात हिन्दू सन्यासी हमारे सभी विद्वानों से अधिक विद्वान है। ’’स्वामी विवेकानन्द श्री राइट के लिखे इस पत्र को लेकर शिकागो आये, दुर्भाग्यवश वे पत्र को खो बैठे। भीषण शीतलहर में किसी तरह रात रेलवे मालगोदाम के सामने पड़े एक बडे से बक्से में बिताई। सड़क किनारे बैठे भूख से निढ़ाल स्वामी विवेकानन्द ने गुरूदेव का स्मरण किया ।जहाँ पर स्वामी विवेकानन्द बैठे थे, वहीं सामने एक विशाल घर था। इसी घर से एक स्त्री ने बाहर आकर स्वामी विवेकानन्द से पूछा, ‘‘क्या आप धर्ममहासभा के प्रतिनिधि हैं? विवेकानन्द ने अपना पूरा हाल बताया। मिसेज जार्ज डब्ल्यू० हैल नामक इस स्त्री ने स्वामी विवेकानन्द को सादर अपने घर आमंत्रित किया, भोजन कराया तथा फिर उन्हें धर्म महासभा के कार्यालय ले कर गई। इस तरह विभिन्न लोगों के सहयोग तथा गुरूदेव के आशीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में ले लिए गये तथा वहा अतिथि भवन में रहने लगे। फिर वो घड़ी भी आ गई जिसके लिए स्वामी विवेकानन्द भारत भूमि से शिकागो पधारे थे।11सितम्बर1893 को प्रातः से ही शिकागो के आर्ट इंस्टिच्यूट के अन्दर बाहर हजारों का हुजूम एकत्र होने लगा। बड़े हाॅल में एक विशाल मंच पर बीचो-बीच एक बड़ी सी राजसिंहासन नुमा कुर्सी और दोनो तरफ पीछे की तीन पंक्तियों में अर्धगोलाकार तरीके से सजाई गई लकड़ी की कुर्सियां थी। बडे घण्टे की गूंज के साथ ही विश्व धर्म महासम्मेलन के अधिवेशन के सभापति चाल्र्स कैरोल बोनी और अमेरिकी कैथेलिक चर्च के प्रमुख पादरी कार्डिनल गिबन्स हाथ में हाथ डाले, समस्त अतिथि धर्म प्रतिनिधियों का नेतृत्व करते हुए मंच तक आये और फिर सभी लोग तयशुदा स्थान पर आसीन हो गये। चीन, जापान, यूनानी गिरजाघर, अफ्रीका, मिस्र तथा भारत के विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधि अपनी-अपनी वेशभूषा में आसीन हो गये । भारत से-प्रतापचन्द्र मजूमदार ब्रह्म समाज के, वीरचन्द्र गाँधी जैन धर्म के, श्रीमती ऐनी बेसेन्ट थियोसोफी की, नागरकर जी बम्बई के साथ-साथ स्वामी विवेकानन्द गेरूए अचकन और पगड़ी में एक विशुद्ध परिव्राजक के रूप में उपस्थित थे। स्वामी विवेकानन्द का वैराग्य साफ झलक रहा था। श्रोताओं और दर्शकों की निगाहें बरबस ही मंचासीन श्रेश्ठजनों से फिसलती हुई इसी युवा साधु पर टिक जाती थी। विश्व के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखने वाली यह धर्म महासभा, हिन्दू धर्म के इतिहास में नये युग का द्वार खोलने वाली सिद्ध हुई। विश्व के प्रत्येक कोने के करोड़ों व्यक्तियों की आस्थाओं व विचारों का प्रतिनिधित्व यहाँ हुआ। सभा का उद्घाटन मधुर वाद्य संगीत से हुआ। सर्वव्यापी परमेश्वर की स्तुति की गई । सभी का परिचय हुआ । सर्वप्रथम यूनानी गिरजाघर के प्रधान धर्माध्यक्ष ने बहुत ही उदार व भाव पूर्ण व्याख्यान दिया। फिर कई प्रतिनिधियो के व्याख्यान हुए । अपरान्ह में चार प्रतिनिधियों के पश्चात् स्वामी विवेकानन्द ने गुरू रामकृष्ण व जगदम्बा काली की शक्ति का स्मरण कर, ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को मन ही मन नमन कर अंग्रेजी में अपना व्याख्यान प्रारम्भ किया,-‘‘अमेरिका की बहनों और भाईयो।’’। इस सम्बोधन का विद्युत प्रवाह श्रोताओं पर पड़ा एवं हाॅल काफी देर तक तालियों से गुंजायमान रहा। शिकागो स्थित आर्ट इंस्टिच्यूट के हाॅल में उपस्थित विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधि तथा हजारों-हजार नागरिक भारत के इस युवा सन्यासी की वाणी के अधीन हो, सम्मोहित भाव से सुनते रहे और युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द ने आगे कहा, -‘‘आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हमारा स्वागत किया है, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा ह्दय अवर्णनीय हर्ष से भरा जा रहा है । संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से धन्यवाद देता हूँ। इस पर उपस्थित अपार जनसमूह द्वारा काफी समय तक जय ध्वनि की गई । फिर विवेकानन्द ने कहा,-‘‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है।’’ 11सितम्बर के तीसरे प्रहर की समाप्ति तक विवेकानन्द ने अपने इस प्रथम लघु व्याख्यान में साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उसकी वीभत्स धर्मान्धता की तीव्र भत्र्सना की। सत्रह दिनों तक लगातार प्रातः, दोपहर और शाम को सम्मेलन की बैठकें चलती रही। ।स्वामी विवेकानन्द द्वारा दिया गया प्रथम लघु व्याख्यान श्रोताओं के ह्दय को स्पर्श कर गया था । सनातन धर्म की सहिष्णुता, सार्वभौमिकता, सच्चाई तथा विशालता का वर्णन स्वामी विवेकानन्द ने जिस भावपूर्ण तरीके से किया था, उससे सभी अत्यन्त प्रभावित हुए । चौथे दिन 15 सितम्बर को ‘‘हमारे मतभेद के कारण’’ विषय पर बोलते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कुएं के मेंढ़क की कथा सुनाने के बाद कहा कि, ‘‘हम सभी धर्मावलम्बी इसी प्रकार के अपने अपने कुएं में बैठकर अपने अपने धर्म को एक-दूसरे से बड़ा कह कर झगड़ा मोल ले रहें हैं । मैं आप अमेरिका वालों को धन्य कहता हूँ, क्योंकि आप हम लोगों के इन छोटे-छोटे संसारों की क्षुद्र सीमाओं को तोड़ने का महान प्रयत्न कर रहें हैं । ’’फिर 19सितम्बर को ‘‘हिन्दू धर्म’’ पर लिखित निबन्ध को श्रोताओं को बताते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कहा कि, ‘‘हिन्दू धर्म सभी प्रकार के धार्मिक विचारों तथा सभी प्रकार की आराधनाओं का समन्वय करता है । ’’वेदान्त दर्शन की व्याख्या के साथ-साथ परमेश्वर की सगुण उपासना का महत्व समझाते हुए उन्होंने सार्वभौमिक धर्म के विषय में उम्मीद जतायी और कहा- ‘‘जो किसी देश और काल से सीमाबद्ध नहीं होगा – वह उस असीम ईश्वर के समान ही असीम होगा, जो संसार के सभी कोटियों के सभी प्राणियो। पर एक सा प्रकाश वितरण करता रहेगा । यह विश्वधर्म सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपने बाहुपाश में आबद्ध कर लेगा और मानवता को सुकार्य एवं प्रेम का संदेश देगा । ’’इसी दिन स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका को सम्बोधित करते हुए कहा,- ‘‘ऐ स्वाधीनता की मातृभूमि कोलम्बिया, तू धन्य है । यह तेरा सौभाग्य है कि तूने अपने पड़ोसियों के रक्त से अपने हाथ नहीं भिगोये, तूने अपने पड़ोसियों का सर्वस्व हरण कर सहज में ही धनी और सम्पन्न होने की चेश्टा नहीं की, अतएव समन्वय की ध्वजा फहराते हुए सभ्यता की अग्रणी होकर चलने का सौभाग्य तेरा ही था । ’’20सितम्बर को ‘‘धर्म भारत की प्रधान आवश्यकता नही। ’’विषय पर अपने छोटे से भाषण में ईसाइयों के द्वारा भारत में भेजे हुए धर्म प्रचारकों की कटु निन्दा करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने कहा, -‘‘आप ईसाई लोग जो मूर्तिपूजकों की आत्मा का उद्धार करने के लिए धर्म प्रचारकों को भेजने के लिए इतने उत्सुक रहते है। उनके शरीरों को भूख से मर जाने से बचाने के लिए कुछ क्यों नहीं करते?……………आप लोग सारे भारत में जाकर गिरजे बनवाते हैं, पर पूर्व का प्रधान अभाव धर्म नहीं है, उनके पास धर्म पर्याप्त है ।’’ 26सितम्बर को ‘‘बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म की निष्पत्ति’’ विषय पर व्याख्यान में स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू धर्म को बौद्ध धर्म की जननी बताया तथा बौद्ध धर्म की मौलिकताओं को भी बताया । स्वामी ने कहा,-‘‘हिन्दू धर्म बौद्ध धर्म के बिना नहीं रह सकता और न बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म के बिना ही । हिन्दू धर्म का पाण्डित्यपूर्ण दर्शन और बौद्ध धर्म का विशाल ह्दय दोनों जब तक पृथक पृथक रहेंगें, भारत का पतन अवश्यंभावी है, दोनो के सम्मिलन से ही भारत का कल्याण सम्भव है । ’’विश्व धर्म महासभा के अन्तिम दिन 27 सितम्बर को स्वामी विवेकानन्द ने अपने विचार रखते हुए कहा,-‘‘इस महासभा ने जगत के समक्ष यदि कुछ प्रदर्शित किया है, तो वह यह है-इसने यह सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता किसी सम्प्रदाय विशेष की एकान्तिक सम्पत्ति नहीं है एवं प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अतिशय उन्नत चरित्र स्त्री-पुरुषों को जन्म दिया है । ……….शीघ्र ही सारे प्रतिरोधों के रहते हुए प्रत्येक धर्म की पताका पर यह लिखा होगा-‘‘सहायता करो, लड़ो मत । पर भाव ग्रहण, न कि पर भाव विनाश, समन्वय और शान्ति न कि मतभेद और कलह ।’’ शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों ने अज्ञात, अपरिचित गेरूआ वस्त्रधारी भारत के इस सन्यासी की प्रसिद्धी बढ़ा दी। जगह-जगह बड़ी-बड़ी आदमकद तस्वीरें लगाकर आदर प्रकट किया गया । न्यूयार्क हेराल्ड ने लिखा,-‘‘धर्म महासभा में वे निःसन्देह सर्वश्रेश्ठ व्यक्ति हैं । उन्हे सुनने के बाद लगता है कि उनके देश में हम धर्म प्रचारकों को भेजकर कैसा मूर्खतापूर्ण कार्य करते हैं । ’’विभिन्न समाचार पत्रों ने भारत के इस युवा सन्यासी के प्रशंसा में लेख लिखे । धर्मसभा में स्वामी विवेकानन्द को मिली सफलता एवं यश के समाचार भारत में भी पहूँचा । देश में एक आत्मगौरव की लहर तेजी से व्याप्त हो गई । आत्महीनता का स्थान आत्मगौरव ने ले लिया। तप और वैराग्य की घनीभूत शक्ति, गुरूदेव, माँ जगदम्बा, माता तथा माँ सरस्वती के आषीर्वाद से स्वामी विवेकानन्द ने देश के जनमानस को आत्मविभोर कर, आत्मगौरव का अहसास करा दिया। शिकागो के इस धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानन्द ने अपने कथन,- ‘‘जब भारत का इतिहास लिखा जाएगा, तब यह सिद्ध होगा कि धर्म के विषय में और ललित कलाओं में भारत सारे विश्व का प्रथम गुरू है ’’को अक्षरशः सिद्ध कर दिखाया था ।iv>

Saturday, September 8, 2012

कांग्रेस हराओ-देश बचाओ --- अरविन्द विद्रोही


डॉ राम मनोहर लोहिया आजाद भारत में व्याप्त बुराइयों की जननी कांग्रेस को मानते थे जो आज की परिस्थितियो में भी सत्य ही है | आगामी चुनावो में कांग्रेस को परास्त करने और सत्ता से बेदखल करने के लिए अपने अपने स्तर पे कार्य शुरू करना होगा | कांग्रेस की सरकार को समर्थन दे सकने वाले दलों को भी नकारना होगा | डॉ लोहिया का गैर कांग्रेस वाद का सपना आगामी लोकसभा चुनाव में साकार करने की मुहिम में आइये जुटा जाये | अब मैं तो जुट गया ,जो साथी इस विचार से सहमत हो वो अपनी राय देवें | कांग्रेस हराओ-देश बचाओ --- अरविन्द विद्रोही

Wednesday, September 5, 2012

विद्यार्थी की मनोकामना - ईश्वर से प्रार्थना ------------- अरविन्द विद्रोही


हे पूज्य गुरुदेवों सादर चरण स्पर्श । हे बृहस्पति गुरु,हे शुक्राचार्य, हे द्रोणाचार्य आदि गुरुओं की परम्परा के वाहक गुरुजन अपनी गौरवमयी परम्परा को याद करें ।यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि समाज को शिक्षित करके सत्मार्ग पर ले जाने वाले आप समाज के शिक्षक गण अपनी राह से भटक ही नहीं गये हैं वरन पथभ्रष्ट हो गये हैं ।यह वेदना है एक शिष्य की ........पीडा है आपके शिष्य के अंर्तमन की ।जिसका शीश किसी भी गुरुकुल के शिक्षक के सम्मान में झुक जाता था, वो शीश आज शिक्षकों के नित नये अनैतिक कारनामों के उजागर होने से शर्म व ग्लानि से धसां जा रहा है ।हे गुरुदेवों ....अपना पुर्न उत्थान करें ।अपनी ज्ञान उर्जा को शिक्षा जगत में , समाज को शिक्षित करने में लगाने का प्रयास करें । आप मॉं शारदे के पुत्र ,आपको यह सांसारिक लोभ लालच भ्रष्टाचार ने कैसे अपने बंधनो में जकड लिया है ।हे गुरुश्रेष्ठ -जागृत हो,मोह-लोभ की बेडियों को तोड दीजिए ।छोड दीजिए-ठेकेदारी का लालच ।मत मोड़िए ,अपनी शैक्षिक छवि को ,ज्ञान पुंज को-लोभ के दरिया में।व्यभिचार के कुंभ में बदलते अपने स्वरूप को तत्काल रोकें-गुरूदेवों ।हम महादेव के सामने सिर पटक चुके हैं कि हे महादेव-हमारे गुरूओं को सत्मार्ग पर लायें ।हम मॉं सरस्वती से विनयावत हो चुके हैं कि हे माते अपने पुत्रों को सहेजें ।हमने अपने छात्र जीवन की उन घटनाओं को याद किया है ,जब हे गुरूश्रेष्ठ-आप हमें सिर्फ असत्य बोल देने पर कक्षा में दण्डित करते थे ।आज आप ही के द्वारा दण्डित ,सत्मार्ग पर आपके ही द्व्रारा चलाये गये विधार्थी आपके सम्मुख चरण वन्दना को प्रस्तुत हैं-हे गुरूवर ,हे परशुराम ,हे वशिष्ठ आदि ऋषियों मुनियों की भॉंति हमें युगों-युगों से शिक्षित कर रहे शिक्षा के पुजारियों ,आप मॉं लक्ष्मी के पुजारी क्यों बन रहें हैं?आप अपना स्वरूप क्यों बिगाड रहें हैं?विद्या ददाति विनयम् आपने हमें पढाया था। आपकी उदारता ,आपका कर्त्तव्यबोघ ,समाज के प्रति आपका अनुराग कब ,कैसे ,क्यों और कहॉं लुप्त हो गया?हम चिंतातुर हैं मुनिवर् ।हम व्याकुल हैं ,आघुनिक भारत के शिक्षा गुरूओं-हम व्यथित हैं। हे जगतजननी मॉं ,आप ही दया करो। आने वाली अपनी औलादों के लिए हमारे गुरूओं की सद्बुध्दि वापस कर दो -मॉं! मॉं , हम अपने लिए नहीं वरन् अपने गुरूओं और अपनी संतानों और समाज के लिए आपसे गुरूओं को सत्मार्ग पर लाने की भिक्षा मॉंगते। हैं। हे भारतमाता। आप ही समझाओं इन गुरूश्रेष्ठों को। हे दुर्गा मॉं-आपसे तो असुर भी भय खाते थे ,क्या हमारे गुरू आपसे नहीं डरते?हे सनातन धर्म के कोटि2 देवताओं ,हे समस्त धर्मो के श्रध्देयों-हमारी ,विद्यार्थियों की विनती पर भी ध्यान दें ।हमारे शिक्षकों को मॉं सरस्वती का ही पुत्र रहने दें ।हमारे शिक्षकों को भ्रष्टाचार के दलदल से निकालो-कृष्ण ।हे वासुदेव कृष्ण-तुमने तो अधर्म के नाश के लिए चचेरे भाईयों में महाभारत कराकर धर्म की स्थापना की थी। हे मधुसूदन-अपने मामा कंस का वध आपने ही अत्याचार ,आतंक खत्म करने के लिए किया था ।अवतार ले लो हे चक्रधारी । हे सर्वशक्तिमान-सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता ।आप जिस भी रूप में हों, आपकी नजर तो सब पर है ।हम आपको नहीं देख पाते ,आपका डाक पता भी नहीं है ,इसलिए हम इस लेख के माध्यम से आप देवगणों से निवेदन करते हैं कि हमें सत्मार्ग दिखाते आ रहे हमारे गुरूओं ने अपना मार्ग बदल दिया है ,इन्हें राह पर लाने का कोई तो जुगाड. करो प्रभु ।हे सृष्टि रचयिता ब्रहमाजी-आपने कहॉं चूक कर दी?हे पालनहार विष्णु जी-आपने पालन में क्या असमानता कर दी?हे महादेव-क्या आपके त्रिनेत्र खोलने का समय आ गया है?नहीं2 महादेव नहीं , हम अपने गुरूदेवों की तरफ से क्षमाप्रार्थी हैं ।आपने तो समस्त दोषियों को अपनी गलती सुधारने का मौका दिया है ,उन्हें सचेत किया है ।फिर हमारे मार्गदर्शकों ,हमारे पूज्यनीयों के साथ यह भेदभाव क्यों?गुरूओं को अवसर दें प्रभु ।उन्हे सत्मार्ग पर लाने के लिए मॉं से बोलिए प्रभु ।अपने कर्मो से स्वयं अपना अपमान करा रहे गुरूवरों को दण्डित करने के बारे में अभी मत सोचें-महादेव ।भ्रष्टाचार के घनघोर बियावान में भटक रहे गुरूजनों को अपने ज्ञानपुंज से सदाचरण की राह पर लाओ मॉं ।।।।।।।।।।। इसी आाशा और विश्वास के साथ कि हमारी मनोकामना अतिशीघ्र पूरी होगी।

Tuesday, September 4, 2012

५ सितम्बर ,शिक्षक दिवस - डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्म दिवस-- अरविन्द विद्रोही


आज शिक्षक दिवस है।शिक्षक दिवस भारत के प्रथम उपराष्टपति 1952-1962 तथा द्वितीय राष्टपति 13मई,1962-13मई,1967 तक रहे डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन के अवसर पर मनाया जाता है।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5सितम्बर,1888 को तिरूट्टनी,तमिलनाडु में हुआ था।आपकी पत्नी का नाम शिवकामु था।अपने पीछे 1पुत्र तथा 5पुत्रियां आप छोड़ कर गये थे।डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रखर वक्ता तथा आदर्श शिक्षक थे।भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को अंगीकार किये दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान हिन्दू विचारक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 40वर्ष तक शिक्षण कार्य किया। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये गये अपने व्याख्यान में कहा था कि-‘‘मानव को एक होना चाहिए।मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है।अब देशों की नीतियों का आधार विश्व शांति की स्थापना का प्रयत्न करना हो।‘‘ वास्तव में डाॅ0सर्वपल्ली राधाकृष्णन वसुघैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मानने वाले थे।पूरे विश्व को एक इकाई के रूप में रखकर शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डॉ०राधाकृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से छात्रों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे।शिक्षण कार्य में अपनी जबरदस्त पकड़ रखने के कारण दर्शन शास्त्र जैसे गंभीर विषय को भी अपनी शिक्षण शैली से वो रोचकता पैदा करके सरलतम रूप में छात्रों को समझाते-पढ़ाते थे।शिक्षण काल में छात्रों के मध्य कुछ रोचक प्रस्तुतियां,प्रेरक प्रसंग,हास्य-व्यंग्य की कहानियां प्रस्तुत करके छात्रों में सदैव शिक्षा के प्रति अभिरूचि बनाये रखने में कामयाब रहते थे- डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन। डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुमुखी प्रतिभा व व्यक्तित्व के धनी एक प्रसिद्ध विद्वान,शिक्षक,प्रखर वक्ता,कुशल प्रशासक,राजनयिक,देश-भक्त,दार्शनिक तथा शिक्षा-शास्त्री थे।शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय यांगदान रहा है।जीवन के उत्तरार्द्ध में भी उच्च पदों पर रहने के दौरान शैक्षिक क्षेत्र में आपका योगदान सदैव बना रहा।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे।मात्र सूचना व जानकारी को ही शिक्षा न मानते हुए डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन व्यक्ति के बौद्धिक,आध्यात्मिक,सामाजिक रूप से विकास को भी शिक्षा का अभिन्न अंग मानते थे।प्रत्येक नागरिक के मन में लोकतांत्रिक भावना व सामाजिक मूल्यों की स्थापना शिक्षा का मुख्य व महत्वपूर्ण कार्य मानते थे।डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार-शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति।वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान व कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है।करूणा,प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा का उद्देश्य हैं। डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों।उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता है,तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए,शिक्षकों को अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए।सिर्फ शिक्षक बन जाने से सम्मान नहीं होता,सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है-यह कहना था डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का।

Wednesday, August 15, 2012

मौलाना मेराज पर शासन सत्ता के दुरूपयोग का आरोप


समाजवादी पार्टी के बाराबंकी जनपद अध्यक्ष मौलाना मेराज पर शासन सत्ता के दुरूपयोग का आरोप लगाते हुये राईन समाज - सब्जी व्यापारियों ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव को शिकायती पत्र प्रेषित किया | मौलाना मेराज के खिलाफ गलत तरीके से मंडी परिषद् में दुकान सस्ते दर पे आवंटित करा लेने का आरोप लगाने वाले मो इसरार हाफिज़ के भाई की बीती रात पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के पश्चात् तनाव का माहौल व्याप्त हो चुका है | राईन समाज के नेता गण मो सिद्धिक पहलवान , वसीम राईन , ताज बाबा राईन आदि ने अपने शिकायती पत्र में कहा है कि समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष का इस समय एक ही कार्य है कि किसी भी तरीके से शासन सत्ता के आधार पे ज्यादा से ज्यादा संपत्ति अर्जित कर ली जाये | आज सब्जी व्यापारियों और राईन समाज के लोगो ने बैठक कर के यह निर्णय लिया है कि अगर ४ दिनों के भीतर मौलाना मेराज के कृत्यों की जाँच करके कार्यवाही ना की गयी तो आन्दोलन किया जायेगा |

Monday, August 6, 2012

जनता - जन लोकपाल व टीम अन्ना का आन्दोलन


अरविन्द विद्रोही ....................... भारत में संसद व आम जनता द्वारा चुने हुये जनप्रतिनिधियो को धमकाते- गरियाते - धिक्कारते चले जन लोकपाल आन्दोलन की परिणिति राजनीतिक दल के गठन के रूप में आ ही गयी है | चलो यह सुखद ही है संवैधानिक व्यवस्था , लोक्तान्त्रन्तिक व्यवस्था से मिली आम जनता को अपना जन प्रतिनिधि निर्वाचित करने ले अधिकार की ताकत का मखौल उड़ाते उड़ाते गैर सरकारी संगठनो के ये कर्ता धर्ता राजनीतिक ताने बने में आ ही गये | निश्चित रूप से लोकतान्त्रिक देश में राजनीतिक दल बनाने व निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल होने का इनका कदम स्वागत योग्य है | अब इस टीम के स्व नाम धन्य नेताओ को अपना मताधिकार भी सुनिश्चित करने की तरफ ध्यान देना होगा और आम जनता से अपने दल के लिए मत भी जुटाना पड़ेगा | गैर सरकारी संगठनो के इस जमावड़े में आई हेट पोलिटिक्स का जुमला भी खूब चला था | जुमला उछालने वाले युवाओ की मानसिक दशा अब इनके प्रति क्या होगी यह समझा जा सकता है | विचार - सिद्धांत - संगठन की जगह सिर्फ व्यक्ति को प्रतीक बना कर , उसको महिमा मंडित करके उसके इर्द गिर्द मिडिया के रहमो करम से इस आन्दोलन को प्रारंभ में बखूबी परवान चढ़ाया गया | प्रारंभिक दौर में तमाम खुले - ढके - छुपे कारणों से जन लोकपाल विधयेक लागु करने का यह आन्दोलन मिडिया ने खूब प्रचारित प्रसारित किया | भ्रस्टाचार और सरकार की गैर जिम्मेदाराना कृत्यों से त्रस्त व अपना अपना सामाजिक राजनीतिक प्रभाव आम जन में बढ़ाने के लिए तमाम राजनीतिक कार्यकर्ताओ ने - समर्थको ने इस सामाजिक आन्दोलन में अपना योगदान बखूबी दिया | दलिए सीमाओ का बंधन टूटा और जन भावनाएं उभरी | लोगो का हुजूम मुख्य आन्दोलन स्थल जंतर मंतर की तरफ कूच किया और एक जन कारवां बन गया | जगह जगह जनपद स्तर पे भी अनशन आन्दोलन जारी हो गये थे | जिले स्तर पे भी गैर सरकारी संगठनो से जुड़े लोगो का भारी जमावड़ा आन्दोलन में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने में तत्पर दिखा | इंडिया अगेंस्ट करेप्सन नामक संगठन के बैनर तले स्व घोषित व मिडिया पोषित स्वयंभू सिविल सोसाइटी के इन कर्ता धर्ताओ ने भारत को भ्रस्टाचार से मुक्त करने का एक मसौदा तैयार किया और उसको ही लागु करने के लिए आन्दोलन शुरु किया था | इनके मसौदे के प्रावधानों की जानकारी के बगैर ही सिर्फ व्यक्ति आधारित विश्वास की अवधारणा के वशीभूत होकर भारत का शहरी नागरिक व युवा उद्वेलित दिखा | स्वतः स्फूर्ति से संचालित यह आन्दोलन प्रारंभ से ही संगठनहीन व दिशा हीन रहा | अन्ना टीम अपने ही खेलो - करतबों और बयानों से तेजी से कुख्यात होती गयी | इंडिया अगेंस्ट करेप्सन के जनपद स्तर के कई कर्ता धर्ताओ से वार्ता के दौरान स्पष्ट पता चला की ये सभी लोग अन्ना हजारे के व्यक्तिगत आभा मंडल , मिडिया के द्वारा प्रचार व जनता के स्वतः स्फूर्त भावनात्मक उभर के भरोसे अपना गाल बजा के व पीठ थपथपा के आत्म मुग्धता के शिकार हो रहे है | इस टीम का एक और प्रसिद्ध जुमला कि अब पूरा देश भ्रस्टाचार के खिलाफ है और हमारे साथ है , कितना हास्यास्पद था , इसका इनको भान ही नहीं रहा | दुर्भाग्य वश भारत में भ्रस्टाचार भारत के आम नागरिक की शिराओ में रक्त बनकर प्रवाहित हो रहा है , यह अलग बात है कि अपना भ्रस्टाचार उसको चलता है , अपने खिलाफ षड़यंत्र और दुसरे का भ्रस्टाचार देश द्रोह दिखता है | भारत में सभी नागरिक यदि भ्रस्टाचार के खिलाफ हो गये और अन्ना टीम के साथ आंदोलित हो गये थे तो भ्रस्टाचार स्वतः समाप्त हो जाना चाहिए था आखिर भारत में भ्रस्टाचार भारत के ही नागरिक तो करते है | इस तरह के ही बयान बड बोलेपन की निशानी होते है , आम जन चेतना के कार्य को करे बैगैर सिर्फ कोर बयानों - भावनाओ से आन्दोलन करने का परिणाम सामने आ ही चुका है | भ्रस्टाचार समाप्ति का एक सुन्दर सपना देख रहे लोगो का , उसके लिए सार्थक तरीके से लगे , आंदोलित लोगो का एक सपना जो की विगत वर्षो में तेजी से लोगो के जेहन में समाया वो बिखर गया | भ्रस्टाचार के खिलाफ इस सामाजिक आन्दोलन का सर्वाधिक दुर्भाग्य पूर्ण पहलु यह रहा की इसके कर्ता धर्ताओ ने संवैधानिक संस्थाओ पे प्रहार किया और जनता के मताधिकार का मखौल उड़ाया | अंततोगत्वा उंट पहाड़ के नीचे आ ही गया और इस टीम ने राजनीति में आने व राजनीतिक दल बनाने की अपनी घोषणा सार्वजनिक कर दी | इनको यह याद नहीं रहा कि मजदूर तो हर जगह मजबूर है ही , किसान भी बेजार है , युवा वर्ग को भी राहत और बख्शीश की दरकार है |महिलाओ का कौन पुरसाहाल है ? तंत्र है भ्रष्ट लेकिन जन के मन में लगा है जंग ,शिराओ में भ्रस्टाचार रक्त बनकर हो रहा है प्रवाहित लेकिन दुसरो पे ऊँगली उठाने में है हम माहिर | खुद में सुधार की बात को मानते है बेमानी और दुसरो पे लगाम अगने की है इच्छा भारी | बलिदानी पैदा हो पड़ोस में और मेरे घर अनिल अम्बानी ये ही सोच बन गयी है भारत के शहरी समाज की | इस सोच को बदलने के लिए अनवरत जनचेतना जागृत करने की जरुरत है | अनशन समाप्ति के अवसर पे समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया - लोक नायक जय प्रकाश नारायण के विचारो और संघर्षो की याद जंतर मंतर पे ताज़ा की गयी व उनके अनुपालन की भी प्रतिबद्धता दोहराई गई | टीम अन्ना में शामिल इन गैर सरकारी संगठनो के करता धर्ताओ को यह पता होना चाहिए कि अपने को महात्मा गाँधी का कुजात शिष्य मानने वाले समाजवादी चिन्तक - युग दृष्टा डॉ लोहिया आजाद भारत में व्याप्त सभी बुराइयों कि जननी कांग्रेस व नेहरु को मानते थे | डॉ लोहिया ने गैर सरकारी संगठनो के भ्रस्टाचार के प्रति आगाह करते हुये कहा था कि , --- " सरकार भ्रष्ट करती है और पढ़ा लिखा तैयार हो जाता है | यह बहुत मुमकिन है कि पढ़ा लिखा राजी यों हो जाता है वह इतने ज्यादा बच्चो का बाप होता है कि सबको पालना पोसना उसके बूते के बाहर हो जाता है और शहरो के पश्चिमी ढर्रे की वजह सबब से उसे जीवन का एक स्तर बनाये रखना पड़ता है | पढ़े लिखे के संपूर्ण पतन का ज्यादा कारण हो सकता है उसके बच्चे पैदा करने की प्रवृति | विरोधी पार्टियों समेत सभी राजनीतिक दलों में पढ़े लिखे पर इस पतन का असर पड़ा है | संगठन और संस्थाएं खड़ी कर दी गयी है , जहा सरकार के और विरोधी दलों के लोग एक दुसरे से सांठ गांठ कर सकते है और आमदनी या चंदे का बंटवारा कर लेते है | राष्ट्रीय एकता के नाम पर और राष्ट्र निर्माणात्मक काम की आड़ में यह सब किया जा सकता है | १९२० से आज तक हिंदुस्तान में सरकार ने अनेक गैर सरकारी संगठन खड़े किये जो उसकी सक्रिय सरपरस्ती में चलते है | १९२०-३० की अमन सभाएं और ३०-४० के राष्ट्रीय युद्ध फ्रंट के वारिस ही तो है ५० के भारत सेवक समाज इत्यादि | इन पुस्तैनी गुलामी के अड्डो पे जनता की सेवा के नाम पर झूठी मुठी योजनायें लेकर गाने बजने वाले भाट और चिल्ल पों मचने वाले राजनीतिक भी जमा होते है | मतलब सिर्फ पैसे से होता है | पढ़े लिखे को पैसा चाहिए और इन संगठनो से उसे वह इस तरह से मिलता है कि उसे भान होता है कि जैसे वो जनता का भला कर रहा हो | " डॉ लोहिया ने वर्षो पहले साफ़ संकेत दे दिया था | गाजे बजे के साथ चले गैर सरकारी संगठनो के इस अनशन - आन्दोलन में धन के प्राप्ति के माध्यमो की पड़ताल होनी चाहिए | जन लोकपाल विधेयक लागु करने के लिए इंडिया अगेंस्ट करेप्सन के बैनर तले टीम अन्ना के द्वारा चलाये गये अनशन - आन्दोलन में वैचारिक प्रतिबद्धता का नितांत अभाव रहा | प्रारंभ से ही जैसे जैसे आन्दोलन में उभर आता गया , आन्दोलन को अपने कब्जे में लेने का प्रयास आन्दोलन के ही एक आतंरिक समूह द्वारा तेज हुआ और परिणाम स्वरुप आन्दोलन से जुड़े प्रमुख चेहरे एक के बाद एक अलग होते गये | विरोधाभाशो के ही कारण अंत में तमाम अपीलों के बावजूद प्रारंभिक अनशन- आन्दोलन की तरह जन भावना को अन्ना टीम नहीं उभार पाई | अन्ना टीम को ना तो जन सैलाब दिखा और ना ही इलेक्ट्रानिक मिडिया का अतिरिक्त स्नेह रूपी अनवरत प्रसारण | अब इसे अन्ना टीम की हताशा कहे या प्रमुख हस्तिओं की अनशन ख़त्म करने की अपील का असर --- बलिदान देने की बड़ी बड़ी बोल वचन वालो ने एक आन्दोलन - एक सपने का अंत स्वतः कर दिया | सुखद सिर्फ यह रहा कि बडबोले व आत्म मुग्धता के शिकार अन्ना टीम को अब राजनीति में संगठन व कार्यकर्ताओ की फौज तैयार करना पड़ेगा और इनको भी राजनीति में आटे दाल का भाव पता चलेगा |