वर्तमान भारतीय परिवेश में महिलाओं का जीवन
अरविन्द विद्रोही
भाारतीय सभ्यता और संस्कृति में मातृ शक्ति अर्थात महिला वर्ग का स्थान सदैव सर्वोपरि माना गया है।इस देवभूमि में समस्त आराधना पद्धतियों में नारी शक्ति का पूजन किया जाता है।नारी के बगैर पुरूष के द्वारा की गई ईश आराधना अधूरी ही होती है।सृष्टि के दो अनिवार्य व पूरक अंग के रूप में महिला व पुरूष ही हैं,इस शाश्वत सत्य को कौन नकार सकता है?क्या कोई स्त्री-पुरूष के सहअस्तित्व को नकार सकता है?अधिकारों की बात करें तो भारतीय सभ्यता-संस्कृति व पारिवारिक मूल्य तो परिवार ही नही वरन् समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वो नर हो या नारी,बालक हो या वृद्ध सभी के संरक्षण व अधिकारों की बेमिसाल धरोहर है।भारतीय समाज सदैव सहिष्णु व मानवता वादी सोच का रहा है।मुगलों तथा ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की लडाई में महिला शक्ति किसी भी नजरिए से पुरूषों से पीछे नहीं रही हैं।वास्तविकता तो यह है कि वीर पुरूषों की जननी मातृशक्ति ही वीरोचित कर्म व धर्म की प्रेरक रही हैं।
अतीत की गौरव-शाली,बलिदानी,त्यागमयी गाथायें समेटे भारत-भूमि में आज पारिवारिक मूल्य व आपसी विश्वास दम तोड चुका है।जिस प्रकार दीमक अच्छे भले फलदायक वृक्ष को नष्ट कर देता है उसी प्रकार पूॅजीवादी व भौतिकतावादी विचारधारा भारतीय जीवन पद्धति व सोच को नष्ट करने में प्रति पल जुटा है।जिस प्रकार एक शिक्षित पुरूष स्वयं शिक्षित होता है लेकिन एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को शिक्षित व सांस्कारिक करती है,उसी प्रकार ठीक इसके उलट यह भी है कि एक दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन पुरूष अपने आचरण से स्वयं का अत्यधिक नुकसान करता है,परिवार व समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है लेकिन अगर कोई महिला दिग्भ्रमित,भ्रष्ट व चरित्रहीन हो जाये तो वह स्वयं के अहित के साथ-साथ अपने परिवार के साथ ही दूसरे के परिवार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।एक कटु सत्य यह भी है कि एक पथभ्रष्ट पुरूष के परिवार को उस परिवार की महिला तो संभाल सकती है,अपनी संतानों को हर दुःख सहन करके जीविकोपार्जन लायक बना सकती है लेकिन एक पथभ्रष्ट महिला को संभालना किसी के वश में नहीं होता है और उस महिला के परिवार व संतानों को अगर कोई महिला का सहारा व ममत्व न मिले तो उस परिवार के अवनति व अधोपतन को रोकना नामुमकिन है।
पूॅजीवाद के प्रभाव में भारत में भी महिलाओं को एक उत्पाद के रूप में,एक उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुतिकरण का नतीजा है कि आज अर्धनग्नता फिल्मी परदों से निकल कर महानगरों से गुजरती हुई शहरों-कस्बों में पांव पसार चुकी है।परिवारों में आपसी सामंजस्य की कमी,विलासिता व उपभोगवादी संस्कृति के प्रति आर्कषण तथा अन्धानुकरण ने युवा वर्ग को गर्त में धकेलने का काम किया है।फिल्म,टेलीविजन,पत्र-पत्रिकायें यहां तक कि विद्यार्थियों की पाठ्य व लेखन पुस्तिका के आवरण पृष्ठ भी अश्लील,अर्धनग्न,कामुक,नायक-नायिकाओं,खिलाडियों,कार्टून चरित्रों से परिपूर्ण हैं।जिनका शिक्षा जगत से,नैतिकता से कोई लेना-देना नही है उनका दर्शन प्रतिक्षण करने को विद्यार्थियों को अनवरत् प्रेरित किया जा रहा है।दरअसल वर्तमान दौर में आधुनिकता व अधिकारों के नाम पर स्वच्छंदता व भौण्डेपन को अपनाया जा रहा है।आज भी भारत की बहुसंख्यक ग्राम्य आधारित जीवन जीने वाली मेहनतकश आम जनता अपने मनोरंजन के लिए तो इन तडक-भडक वाली जीवन शैली युक्त फिल्मों को देखता है परन्तु निजी तौर पर उस शैली को,उस जीवन पद्धति को अपनाने का विचार भी उसके जेहन में नही आता है।भारत में पारिवारिक विखण्डन व नैतिक अवमूल्यन के पश्चात् भी अभी सामाजिक-धार्मिक ताने बाने के कारण,लोक-लाज के कारण छोटे शहरों,कस्बों व ग्रामीण अंचलों में महिलायें कामकाज पर,नौकरी पर निकल तो रही हैं परन्तु महानगरों सी स्वछंदता यहां देखने को नही मिलती है।
कृषि आधारित भारतीय परिवारों का जीवन सरल व सुव्यवस्थित था।इसमें परिवार के सभी सदस्यों के काम बंटे होते थे और हित-अधिकार सुरक्षित।आज के आर्थिक युग में नौकरी कर रहीं महिलायें आर्थिक कमाई तो निश्चित रूप से कर ले रही हैं परन्तु शारीरिक,मानसिक व भावनात्मक रूप से कमजोर होती जा रही हैं।अपनी नौकरी के,व्यवसाय के दायित्वों का निर्वाहन के साथ-साथ पत्नी धर्म का पालन,संतानों की परवरिश,सास-श्वसुर की देखभाल के साथ-साथ मायके में वृद्ध मॉं-बाप के स्वास्थ्य की चिन्ता कामकाजी महिलाओं को हलकान कर देती हैं।आज महिला वर्ग नौकरी पाने पर अत्यधिक प्रसन्नता की अनुभूति करती हैं।दरअसल अब महिला वर्ग का दोहरा शोषण हो रहा है।रिश्तों को,परिवार को सहेजने के साथ-साथ महिला को परिवार के लिए धर्नाजन के लिए श्रम करना क्या महिला सशक्तिकरण है?यह बात उन महिलाओं पर कदापि लागू नही होती है जो परिवार व रिश्तों से ज्यादा अहमियत दूसरी बातों को देती हैं।मेरा यह विचार सिर्फ उन महिलाओं की आंतरिक पीडा पर है जो पारिवारिक सुख व सम्पन्नता को प्राथमिकता पर रखते हुए जीवन जी रही हैं और अपनी कमाई परिवार पर ही खर्च करती हैं।
Sunday, March 6, 2011
सोच बदलिए
प्रतिभा वाजपेयी
सोच बदलिए
सकारात्मक खबर न देने के लिए अक्सर मीडिया पर इल्जाम लगाए जाते हैं, लेकिन मुझे यह कहते हुए थोड़ी तकलीफ जरूर हो रही है पर सच यही है कि फेसबुक की स्थिति इससे कुछ बेहतर नहीं है। देश की वर्तमान हालात उसे विचलित करती हैं परंतु देश का भविष्य हमारे बच्चे उसकी प्राथमिकता में नहीं आते। मी सिंधुताई सपकाल सिखते समय मुझे लगा था कि फेसबुक में जो हमारे हजारो-हजार मित्र हैं उनके हाथ उनकी सहायता के लिए आगे आएंगे। मित्र चंदन आर्यन को छोड़कर किसी ने भी इस विषय में अपनी उत्सुकता तक व्यक्त नहीं की। निश्चित रूप से निराशा हुई। यह निराशा उस समय और बढ़ गई जब अरुंधती राय की नग्न पेंटिग को लेकर एक जगह नहीं कई जगह प्रतिक्रियाओं का सैलाब देखा। कुछ ने तो इसे तुरंत नेट पर डालने का भी आग्रह किया हुआ था। किसी महिला के नग्न चित्र को देखने के लिए इतनी उत्सुकता किस मानसिकता का द्योतक है। अगर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना जा रहा है...तो हुसैन का इतना विरोध क्यों किया गया क्योंकि जो चित्र उन्होंने बनाएं थे वे भी तो मूल रूप से स्त्रियों के ही थे....
इसे पुरुषों की विकृत मानसिकता कहें या उनका दोगलापन जो एक तरफ दुर्गा, सरस्वती को पूजते हैं दूसरी तरफ महिलाओं के नग्न चित्र सार्वजनिक करने को उतावले रहते है।
अगर कोई महिला अपनी इच्छा से ऐसे चित्र बनवाती है तो उसकी मर्जी। परंतु यदि वह ऐसे चित्र का समाजिक प्रदर्शन करती है तो किसी को भी उस चित्र के प्रति अपनी राय देने का हक बनता था पर यहां तो यह भी स्पष्ट नहीं है अरुंधती ने यह चित्र स्वयं बनवाया या यह उस चित्रकार के दिमाग का खुराफात है।
अरुंधती एक अच्छी लेखिका है। उनके अपने सामाजिक सरोकार भी हैं। उनके विचारों से सहमत या असहमत होने का समाज के हर व्यक्ति को अधिकार है। पर इस तरह का सोच निंदनीय है।
-प्रतिभा वाजपेयी.
सकारात्मक खबर न देने के लिए अक्सर मीडिया पर इल्जाम लगाए जाते हैं, लेकिन मुझे यह कहते हुए थोड़ी तकलीफ जरूर हो रही है पर सच यही है कि फेसबुक की स्थिति इससे कुछ बेहतर नहीं है। देश की वर्तमान हालात उसे विचलित करती हैं परंतु देश का भविष्य हमारे बच्चे उसकी प्राथमिकता में नहीं आते। मी सिंधुताई सपकाल सिखते समय मुझे लगा था कि फेसबुक में जो हमारे हजारो-हजार मित्र हैं उनके हाथ उनकी सहायता के लिए आगे आएंगे। मित्र चंदन आर्यन को छोड़कर किसी ने भी इस विषय में अपनी उत्सुकता तक व्यक्त नहीं की। निश्चित रूप से निराशा हुई। यह निराशा उस समय और बढ़ गई जब अरुंधती राय की नग्न पेंटिग को लेकर एक जगह नहीं कई जगह प्रतिक्रियाओं का सैलाब देखा। कुछ ने तो इसे तुरंत नेट पर डालने का भी आग्रह किया हुआ था। किसी महिला के नग्न चित्र को देखने के लिए इतनी उत्सुकता किस मानसिकता का द्योतक है। अगर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना जा रहा है...तो हुसैन का इतना विरोध क्यों किया गया क्योंकि जो चित्र उन्होंने बनाएं थे वे भी तो मूल रूप से स्त्रियों के ही थे....
इसे पुरुषों की विकृत मानसिकता कहें या उनका दोगलापन जो एक तरफ दुर्गा, सरस्वती को पूजते हैं दूसरी तरफ महिलाओं के नग्न चित्र सार्वजनिक करने को उतावले रहते है।
अगर कोई महिला अपनी इच्छा से ऐसे चित्र बनवाती है तो उसकी मर्जी। परंतु यदि वह ऐसे चित्र का समाजिक प्रदर्शन करती है तो किसी को भी उस चित्र के प्रति अपनी राय देने का हक बनता था पर यहां तो यह भी स्पष्ट नहीं है अरुंधती ने यह चित्र स्वयं बनवाया या यह उस चित्रकार के दिमाग का खुराफात है।
अरुंधती एक अच्छी लेखिका है। उनके अपने सामाजिक सरोकार भी हैं। उनके विचारों से सहमत या असहमत होने का समाज के हर व्यक्ति को अधिकार है। पर इस तरह का सोच निंदनीय है।
-प्रतिभा वाजपेयी.
मुख्यमंत्री जी .........फिर कब आओगी???
मुख्यमंत्री जी .........फिर कब आओगी???
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती का निरीक्षण कार्यक्रम बाराबंकी जनपद में 12फरवरी,दिन शनिवार को निर्धारित था।अपने निर्धारित कार्यक्रम के एक दिन पूर्व 11फरवरी,दिन शुक्रवार को ही बाराबंकी जनपद में मुख्यमंत्री महोदया का आगमन हो गया।जिलाधिकारी विकास गोठलवाल रात-दिन एक करके विभागवार व क्षेत्रवार समीक्षा व भ्रमण करके मुख्यमंत्री के निरीक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे रहे।यूॅं भी जनपद बाराबंकी में अपनी तैनाती के प्रारम्भ में ही भ्रष्ट व गैर जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों को कुछ हद तक प्रशासनिक नियंत्रण में कर चुके जिलाधिकारी विकास गोठलवाल निरन्तर समीक्षा बैठक करते ही रहते हैं।प्रशासनिक दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री का जनपद बाराबंकी का भ्रमण कार्यक्रम सफल ही माना जायेगा क्योंकि किसी भी स्तर के अधिकारी को न तो निलम्बित किया गया और न ही स्थानान्तरित।लेकिन क्या विकास के तय मापदण्डों,शासनादेशों के अनुपालन तथा सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की अवधारणा पर जनपद बाराबंकी में कार्य हो रहा है?यह विचारणीय प्रश्न है।
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती के जनपद आगमन पर संभावित निरीक्षण स्थलों,सम्पर्क मार्गों की साफ-सफाई युद्ध स्तर पर की गई।विकास भवन मार्ग तक की सफाई विगत् 13वर्षों में पहली बार इतने कायदे से प्रशासन द्वारा कराई गई।मुख्यमंत्री के बाराबंकी आगमन कार्यक्रम निर्धारित होने के पश्चात् सुनियोजित तरीके से सब कुछ दुरूस्त है का एक माहौल बनाया गया।मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान प्रशासन ने जगह-जगह बैरियर लगाकर आम जनता को सडक पर बेवजह घण्टों खडा करके एक जनविरोधी कृत्य किया है।प्रशासन के इस रास्ता रोको अभियान से परेशान नागरिक आक्रोशित हुए।अपनी कमियां न उजागर हो पाये,कोई नागरिक मुख्यमंत्री से किसी बात की शिकायत रूबरू होकर न कह पाये,इस मकसद में निःसन्देह प्रशासनिक अमला सफल रहा लेकिन उसकी प्रशासनिक मनमानी से कितना जनाक्रोश मुख्यमंत्री के खिलाफ पनपा है,इसका आकलन नौकरशाहों को करने की न तो आवश्यकता है और न ही फुर्सत।
मुख्यमंत्री मायावती के बाराबंकी आगमन पर प्रमुख स्थानों व मार्गों की सफाई हुई थी।मुख्यमंत्री को अब औचक निरीक्षण रात में करना चाहिए।जनपद बाराबंकी में शिक्षा-स्वास्थ्य व ग्राम्य विकास विभाग में भ्रष्टाचार व शासनादेशों के उल्लंघन को लेकर विभिन्न संगठन कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं।ठोस प्रशासनिक कार्यवाही न होने से इन विभागों के भ्रष्ट,नाकारा कर्मियों की चॉंदी है।आप दोबारा बाराबंकी कब आओगी यह सवाल जेहन में कौंधता है।अब आप जब भी आओगी हम तो घर से निकलेंगे ही नही।एक फायदा हो जायेगा कि फिर से साफ-सफाई हो जायेगी।इस बार आप जब आओ तो यहां कि प्रशासनिक गंदगी को साफ करके जाओ तो आम जनता का कुछ भला हो।
अरविन्द विद्रोही
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती का निरीक्षण कार्यक्रम बाराबंकी जनपद में 12फरवरी,दिन शनिवार को निर्धारित था।अपने निर्धारित कार्यक्रम के एक दिन पूर्व 11फरवरी,दिन शुक्रवार को ही बाराबंकी जनपद में मुख्यमंत्री महोदया का आगमन हो गया।जिलाधिकारी विकास गोठलवाल रात-दिन एक करके विभागवार व क्षेत्रवार समीक्षा व भ्रमण करके मुख्यमंत्री के निरीक्षण कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे रहे।यूॅं भी जनपद बाराबंकी में अपनी तैनाती के प्रारम्भ में ही भ्रष्ट व गैर जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों को कुछ हद तक प्रशासनिक नियंत्रण में कर चुके जिलाधिकारी विकास गोठलवाल निरन्तर समीक्षा बैठक करते ही रहते हैं।प्रशासनिक दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री का जनपद बाराबंकी का भ्रमण कार्यक्रम सफल ही माना जायेगा क्योंकि किसी भी स्तर के अधिकारी को न तो निलम्बित किया गया और न ही स्थानान्तरित।लेकिन क्या विकास के तय मापदण्डों,शासनादेशों के अनुपालन तथा सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की अवधारणा पर जनपद बाराबंकी में कार्य हो रहा है?यह विचारणीय प्रश्न है।
उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती के जनपद आगमन पर संभावित निरीक्षण स्थलों,सम्पर्क मार्गों की साफ-सफाई युद्ध स्तर पर की गई।विकास भवन मार्ग तक की सफाई विगत् 13वर्षों में पहली बार इतने कायदे से प्रशासन द्वारा कराई गई।मुख्यमंत्री के बाराबंकी आगमन कार्यक्रम निर्धारित होने के पश्चात् सुनियोजित तरीके से सब कुछ दुरूस्त है का एक माहौल बनाया गया।मुख्यमंत्री के दौरे के दौरान प्रशासन ने जगह-जगह बैरियर लगाकर आम जनता को सडक पर बेवजह घण्टों खडा करके एक जनविरोधी कृत्य किया है।प्रशासन के इस रास्ता रोको अभियान से परेशान नागरिक आक्रोशित हुए।अपनी कमियां न उजागर हो पाये,कोई नागरिक मुख्यमंत्री से किसी बात की शिकायत रूबरू होकर न कह पाये,इस मकसद में निःसन्देह प्रशासनिक अमला सफल रहा लेकिन उसकी प्रशासनिक मनमानी से कितना जनाक्रोश मुख्यमंत्री के खिलाफ पनपा है,इसका आकलन नौकरशाहों को करने की न तो आवश्यकता है और न ही फुर्सत।
मुख्यमंत्री मायावती के बाराबंकी आगमन पर प्रमुख स्थानों व मार्गों की सफाई हुई थी।मुख्यमंत्री को अब औचक निरीक्षण रात में करना चाहिए।जनपद बाराबंकी में शिक्षा-स्वास्थ्य व ग्राम्य विकास विभाग में भ्रष्टाचार व शासनादेशों के उल्लंघन को लेकर विभिन्न संगठन कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं।ठोस प्रशासनिक कार्यवाही न होने से इन विभागों के भ्रष्ट,नाकारा कर्मियों की चॉंदी है।आप दोबारा बाराबंकी कब आओगी यह सवाल जेहन में कौंधता है।अब आप जब भी आओगी हम तो घर से निकलेंगे ही नही।एक फायदा हो जायेगा कि फिर से साफ-सफाई हो जायेगी।इस बार आप जब आओ तो यहां कि प्रशासनिक गंदगी को साफ करके जाओ तो आम जनता का कुछ भला हो।
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