Thursday, October 28, 2010

पंचायती चुनाव-जनप्रतिनिधि चयन के आधार
अरविन्द विद्रोही

उत्तर-प्रदेश में पंचायती राज चुनाव में नामांकन प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है।समस्त पदों ग्राम्य प्रधान,ग्राम्य पंचायत सदस्य,क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा जिला पंचायत सदस्य के सभी दावेदार सामने आ चुके हैं।समाज के प्राथमिक स्तर को,ग्राम्य विकास के प्रारम्भिक,प्रत्यक्ष व आघारभूत आधार को मजबूत करने का उत्तर-दायित्व इन पदों पर होता है।इन पदांे के लिए जनता के सम्मुख अपना प्रतिनिधि चयनित करने का अवसर पुनःआ गया है।आज इस निर्वाचन की बेला में प्रत्याशी गण वायदों की पोटली खोले घूमना प्रारम्भ कर चुके हैं।ऐन-केन प्रकारेण मतदाताओं को अपने-अपने पाले में करके विजयश्री प्राप्त करने की फिराक में सभी प्रत्याशी गण लगे हैं।मतदाता को क्या करना चाहिए?इन प्रत्याशियों में से किस प्रकार मतदाता योग्य प्रतिनिधि निर्वाचित करे,यह प्रश्न उठना लाजिमी है।

मतदाता अपना जनप्रतिनिधि चयनित करने के लिए जातिवाद,सम्प्रदायवाद,क्षेत्रवाद,शराब-खोरी,धनलिप्सा,गुण्ड़ागर्दी आदि तरीकों के बीच अपना जनप्रतिनिधि चुनता है।दुर्भाग्य-वश मतदाता इन्हीं में से किसी तरीके के प्रभाव में आकर मतदान कर देता है।मतदान के पूर्व मतदाता को जनप्रतिनिधि चयनित करने के लिए पूर्वाग्रहों व वादों से विरत् होकर चयन के आधार बनाना चाहिए।यैसे प्रत्याशियों को मत देना सर्वथा उचित होगा जो कि सामाजिक,सांस्कारिक,मिलनसार,योग्य,कर्मठ,निर्भीक हो।जनता के प्रति,सममानित मतदाता के प्रति,समाज व राष्ट के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाले प्रत्याशी को अपना मत देना चाहिए।जनता व समाज के प्रति जवाबदेही योग्य जनप्रतिनिधि चयन का मूल आधार होना चाहिए।यैसा प्रत्याशी जो व्यक्तिगत,सार्वजनिक,राजनैतिक जीवन में ईमानदार व सह्दय हो-वही जनता के अमूल्य मत का पात्र है।

जिस प्रकार वर्षा ऋतु में तमाम खर-पतवार,जंगली,अनुपयोगी पौधे उग आते हैं,ठीक उसी प्रकार विकास के धन के लुटेरे भी चुनाव लड़ने की बेला में जनता के बीच हाथ जोड़ कर अपना मिथ्या जाल फैला कर,जनता-मतदाता को फंसाकर अमूल्य मत को लूटने आ जाते हैं।एैसे तमाम लोग जो कभी भी समाज में लोगों से,पास-पड़ोस के निवासियों से दुःख-सुख में मिलना गवारा नहीं समझते हैं,अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते हैं,ग्राम्य विकास विभाग में व पंचायती राज विभाग में विकास के लिए आवण्टित अथाह-प्रचुर धनराशि के लालच में पेशेवर तरीकें से जनप्रतिनिधि बनने के लिए चुनावी समर के योद्धा बन जाते हैं।वर्चस्व बरकरार रखने,बढ़ाने व विकास का धन लूटने के फेर में प्रतिद्वन्दी प्रत्याशी की हत्या तक से गुरेज बाहुबली व धनमद में चूर लोग नहीं करते हैं।मतदाता ही किसी भी प्रत्याशी का भाग्य-विधाता होता है।मतदाताओं को एैसे प्रत्याशियों को नकार देना चाहिए जो कि सिर्फ चुनावी बेला में सामाजिक जीवन में आयें हों।गुण्ड़ों,अपराधियों,उनके संरक्षण दाताओं व सहयोगियों को किसी भी कीमत या दबाव में अपना मत व समर्थन नहीं देना चाहिए।मतदाता का मत व समर्थन इन असामाजिक तत्वों को और मजबूती प्रदान करता है।बहुत से प्रत्याशी चुनाव लड़ने के दौरान माॅंस व मदिरा के ही सहारे चुनावी वैतरणी पार करने में लगे रहते हैं,इनको सिरे से नकारना अपने स्वयं के लिए,अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सबके हित में है।सत्तामद में चूर गैर-जिम्मेदार,पूॅंजीवादी विचारों के वाहकों,विकास का धन लूटने वाले तथा विकास का धन लूटने का इरादा रखते हुए आज चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं पर धन लुटाने वालों को नकार देना श्रेयस्कर व लोकतन्त्र के रक्षार्थ कार्य होगा।फर्जी व बोगस मतदाताओं के सहारे जनप्रतिनिधि बनने की कोशिश करने वालों का चुनाव में किसी भी प्रकार से सहयोग नहीं करना चाहिए।

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