Thursday, October 21, 2010

जनविरोधी विनाशोन्मुखी अनियंत्रित विकास के परिणाम

विकास की अंधाधुंध दौड़ में मानव जाति अपने विनाश की आधारशिला पर एक के बाद एक पत्थर रखती जा रही है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से ग्राम्यांचलों की स्थिति अभी भी बेहतर है। कस्बे और शहर विकसित होने के साथ साथ जल, शुद्ध हवा और स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से जूझ रहें हैं। ग्राम्य अंचलों में जल के भूमिगत् श्रोतों में कमी एक बड़ी समस्या है। नदी-पोखरों का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते जल के पारम्परिक श्रोतों को पाटने के चलन ने बड़ी विकट स्थिति पैदा कर दी है। ग्रामीण क्षेत्र आज भी शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगार जैसी आवश्यक जन सुविधाओं से वंचित हैं। ग्राम्य विकास का धन भ्रष्टाचारियों के काकस के चलते व्यक्तिगत् तिजोरियों मे। भरा जा रहा है। गावों में आपसी रंजिश की बड़ी वजह पानी निकासी की समुचित व्यवस्था न होना, सम्पर्क मार्गो का व्यवस्थित न होना तथा भूमि सम्बन्धी मामलों में त्वरित निर्णय न होना है। भ्रष्टाचार का दानव विकास का धन किस प्रकार लीलता जा रहा है, यह सर्वविदित है। सरकारी योजनायें लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण अपना जन कल्याणकारी स्वरूप पूर्ण नहीं कर पाती हैं। और लोकतंत्र में सरकारें बगैर जन सहयोग एवं जन दबाव के योजनायें बनाने के अलावा कर भी क्या सकती है।? सिर्फ शासन-प्रशासन को दोषी ठहराने से हमारे मुल्क को हम तरक्की के शीर्ष स्तर पर नहीं ले जा सकते।

जरा आइये, शहरी क्षेत्रों के विकास की योजनाओं की वस्तु-स्थिति की बात करें। शहरी आवासीय व्यवस्था के तहत सड़क-पार्क-सार्वजनिक उपभोग की भूमि-सभागार आदि सुविधाओं की व्यवस्था होती है या जगह छूटी होती है। सुगम आवागमन के लिए प्रत्येक आवास को सड़क से जोडा जाता है। पार्कों की अवस्थापना बच्चों, बुजुर्गों, स्थानीय जनता के टहलने, विश्राम करने और शुद्ध वायु के उत्सर्जन के उद्देश्यों हेतु किया जाता है। नगरीय क्षेत्रों में सामाजिक, वैवाहिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन हेतु सार्वजनिक उपभोग की भूमि या सभागार होते हैं। विचारणीय प्रश्न यह है कि-शासन द्वारा चिन्हित एवं स्वीकृत हमारे लिए स्वीकृत एवं निर्धारित इन जन-सुविधाओं पर डाका कौन और कैसे डालता है? यह जन-उपयोगी सुविधायें नागरिकों के लिए ही उपलब्ध कराई जाती हैं या निर्धारित होती हैं। फिर ऐसा क्यों होता है कि तंग सड़के, फुटपाथों पर अतिक्रमित दुकानें, सड़कों पर अवैध निर्माण व कब्जे, पार्कों की भूमि पर अवैध कब्जे, पार्कों के सौन्दर्यीकरण एवं रख-रखाव के प्रति अरूचि, गन्दी नालिया दिखती हैं।

शहरी नागरिक भी अपनी मूलभूत सुविधाओं को स्वयं क्षरित भी करता है तथा किंकर्तव्य-विमूढ़ होकर इन्ही सुविधाओं को लुटता हुआ देखता भी, और मौका पाते ही लूटता भी है। उसके देखते ही देखते उसके लिए बनाई गई सुविधायें लुटती रहती है और वो खामोशी अख्तियार किये रहता है।भ्रष्टाचारियों, अपराधियों, माफियाओं, मानवता के दुश्मनों एवं पूंजी के पुजारियों के आगे बेबस जन साधारण घुटता रहता है। यदि कोई हिम्मत करके इन समाज विरोधियों के क्रिया-कलापों की शिकायत प्रशासन से करता है तो अधिकतर मामलों में शिकायत कर्ता को धमकी-प्रलोभन के दौर से गुजरना पड़ता है। शिकायत तो साधारणतया दूर नहीं होती, हां शिकायत कर्ता को परेशानिया और जाँचकर्ता को बैठे-बिठाये मलाई जरूर मिल जाती है। रोटी-रोजी के चक्कर में फंसा नागरिक जनसुविधाओं के लिए संघर्ष की सोच भी नहीं पाता। असुविधाओं का ठीकरा सरकार के मत्थे फोड़ कर अपने दायित्व से मुंह चुराने का अभ्यस्त हो चुका आम नागरिक सिर्फ अपने-अपने परिवार के बारे में सोच रहा है। राजनैतिक दलों के द्वारा जनहित के कार्यों को अपनी प्राथमिकता में न रखने का कारण सिर्फ यही है कि जनता भी वोट देते समय किये गये कार्यों के स्थान पर जातिगत आधार पर एवं पूंजी के अंधाधुंध वितरण, प्रयोगकर्ता, बाहुबली को चयनित करती आ रही है। जातिगत आधार पर, बाहुबल के इस्तेमाल व प्रभाव से, धन के इस्तेमाल से चयनित जनप्रतिधि अपने मूल आधार को बढ़ाते हैं। यदि जनसमस्याओं के लिए लड़ने वाले लोग जनप्रतिनिधि निर्वाचित होने लगें तो वे स्वाभाविक रूप से जनहित के कार्यों को करते हुए अपना आधार व जनविश्वास बढ़ायेंगे । मॅंहगाई के खिलाफ जिस तरह से जनता ने अपना आक्रोश भारत बन्द को सफल बना कर प्रदर्शित किया है, उससे जनहित को नजरअंदाज करना सरकारों के लिए चेतावनी है। अब यह आक्रोश व्यवस्था परिर्वतन तक बना रहे यह अत्यन्त आवश्यक है। सरकार के रवैये ने जनाक्रोश की ज्वाला में घी डाल दिया है। अपने सत्ता के अहंकार में मदमस्त मंत्री का बढ़ी कीमतों की वापसी के विषय में इंकार जन भावनाओं को कुचलने सरीखा है। मॅंहगाई रोकने में नाकाम सरकार विकास के नाम पर मनमानी कर के जनता को ठेंगा दिखाती है। सरकारों का पूरा ध्यान नोट व वोट बटोरने की रणनीति बनाना व विपक्षी दलों को, जनता को धकियाने में लगा रहता है।

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