Friday, January 7, 2011

9अगस्त-अगस्त प्रस्ताव,कांग्रेस व जनान्दोलन

9अगस्त-अगस्त प्रस्ताव,कांग्रेस व जनान्दोलन
अरविन्द विद्रोही
5जुलाई,1942 को कंाग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के समय गॉंधी जी ने इस बात पर जोर दिया कि अब वह समय आ गया है जब कंाग्रेस को ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो‘‘ की आवाज जोर शोर से उठानी चाहिए।भारत में ब्रितानिया हुकूमत की समाप्ति करके भारत में भारत के लोगों की राष्टीय सरकार की स्थापना करने के उद्देश्य से गॉंधी जी अंग्रेजों भारत छोड़ो‘‘ आंदोलन तथा अहिंसक क्रान्ति प्रारम्भ करने के लिए जोर दे रहे थे।दरअसल यह वही समय था जब आजाद हिन्द फौज के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोष अपनी सेना तथा जापानी सेना की टुकड़ियों के साथ भारत माता की गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए भारत की सीमा पर आ चुके थे।गॉंधी जी को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने समझाया था कि अगर इस समय हम कांग्रेस के बड़े आन्दोलन की बात करें और आन्दोलन प्रारम्भ भी कर दे ंतो ब्र्रितानिया हुकूमत दबाव में आ जायेगी और समझौता करने तथा राष्टीय सरकार बनाने के लिए तैयार हो जायेगी।और अगर भारत में भारत के लोगों की राष्टीय सरकार बन गई एवं अंग्रेज यहां से चले गये तो फिर आजाद हिन्द फौज तथा जापानी सेना भारत पर आक्रमण नहीं करेगी।और युद्ध के नुकसानों से बचा जा सकेगा।यह योजना गॉंधी जी ने स्वीकार ली,लेकिन यह योजना मौलाना आजाद और पं0नेहरू को अव्यवहारिक लगी।इन लोगों का मानना था कि आन्दोलन प्रारम्भ करने से ब्रितानिया हुकूमत दमन पर उतारू हो जायेगी,फिर आन्दोलन अहिंसक नहीं रहेगा।कांग्रेस अध्यक्ष आजाद ने कहा भी कि,‘‘मैं इस निष्कर्ष पर पहुॅंचा हूॅं कि जनता का जोश बनाये रखने के लिए कुछ करना ही होगा।अगर गॉंधी जी को अपने रास्ते आन्दोलन चलाने दिया गया,तो वह स्वभावतःअहिंसक दिशा में होगा,लेकिन अगर हम सब गिरफतार कर लिए गये तो लोगों की निष्क्रियता की हालत में पहुंचने न देना होगा बल्कि हिंसा-अहिंसा के बारे में बहुत ज्यादा सिर न खपाकर लोगों को भरसक पुरजोर आन्दोलन चलाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।‘‘
कंागेस वर्किंग कमेटी में 5जुलाई,1942 से इस विषय पर चर्चा शुरू हुई।7जुलाई,1942 को गंॉधी जी ने एक पत्र आजाद को भेजा,जिससे आजाद और नेहरू से उनके मतभेद उजागर हुए।गॉंधी जी ने आजाद को पत्र में लिखा,‘‘अगर कांग्रेस चाहती है कि मैं उसका नेतृत्व करूं तो आपको कांग्रेस के अध्यक्ष पद से और वर्किंग कमेटी के पद से तथा जवाहर लाल नेहरू को वर्किंग कमेटी से इस्तीफा देना होगा।‘‘पत्र प्राप्त होते ही आजाद ने नेहरू को बुलवाया,संयोगवश सरदार पटेल भी आ गये।पटेल भी इस अप्रत्याशित घटनाचक्र व पत्र में गॉंधी जी की मांग से भौचक रह गये।पटेल तत्काल गॉंधी जी के पास गये और उन्होंने गॉंधी जी से कहा कि अगर आजाद अध्यक्ष पद से और नेहरू वर्किंग कमेटी से हट गये तो देश में इसकी भंयकर प्रतिक्रिया होगी।पटेल के समझाने पर गॉंधी जी ने अपना मांग पत्र वापस ले लिया।तत्पश्चात् वर्किंग कमेटी ने विस्तार के साथ अहिंसा पर आधारित इस भारत छोड़ो आन्दोलन के कार्यक्रम व स्वरूप पर विचार किया।गॉंधी जी ने इस कार्यक्रम को अहिंसक विद्रोह की संज्ञा दी तथा 14जुलाई,1942 को राष्टीय मांग पर सर्वसम्मति से आन्दोलन का प्रस्ताव पास किया गया। 15जुलाई,1942 को वर्धा में एक बड़े पत्रकार सम्मेलन में गॉंधी जी ने कहा कि,‘‘अगर आन्दोलन शुरू होगा तो वह ब्रितानिया हुकूमत के खिलाफ अहिंसक विद्रोह होगा।‘‘ कांगेस नेताओं ने 14जुलाई,1942 के प्रस्ताव पर वार्ता हेतु वाइसराय से मिलने मीरा बेन अर्थात मिस स्लेड को भेजा परन्तु वाइसराय ने मिलने से इंकार कर दिया तथा कहा कि युद्ध के दौरान ब्रितानिया सरकार बगावत की कोई भी बात,अहिंसक अथवा हिंसक बर्दाश्त नहीं करेगी।
इन सभी हालातों में कांगेस का बम्बई अधिवेशन प्रारम्भ हुआ जिसमें 7अगस्त,1942 को कांगेस वर्किंग कमेटी द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव पेश किया गया।यही प्रस्ताव कांग्रेस का इतिहास प्रसिद्ध ‘‘अगस्त प्रस्ताव‘‘था।यह पूरा आन्दोलन वास्तव में कांग्रेस का न होकर गॉंधी जी का था।इस आन्दोलन के सर्वे-सर्वा गॉंधी जी ही थे।गॉंधी जी तत्काल कोई आन्दोलन नहीं करना चाहते थे,न कोई कार्यक्रम बनाया था।गॉंधी सर्वप्रथम रूजवेल्ट,च्यांग आदि को पत्र लिखना चाहते थे।सरकार को कम से कम तीन महीने का समय गॉंधी जी देने वाले थे।कांग्रेस की कमेटियों को भेजने के लिए तैयार पत्रक में लिखा गया था,‘‘जब तक गॉंधी जी तय न करें तब तक कोई भी आन्दोलन शुरू नहीं किया जाना चाहिए और न कोई अन्य काम किया जाना चाहिए।हो सकता है कि वह कुछ दूसरी ही बात तय करें,तब आप बड़ी अनावश्यक गलती के लिए जिम्मेदार होंगें।तैयार हो जाओ,फौरन संगठित हो जाओ,होशियार हो जाओ लेकिन कोई भी काम मत करो।‘‘यह पत्रक सम्पूर्ण तैयार होकर वितरित हो पाता इसके पहले ही 8अगस्त,1942 को प्रस्ताव पास किये जाने के बाद 9अगस्त को ही सबेरे कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सारे सदस्यों तथा कई नेताओं को ब्रितानिया हुकूमत ने हिरासत में ले कर कांग्रेस को एक गैरकानूनी संगठन घोषित कर दिया।गॉंधी जी,सरोजनी नायडू पूना के आगा खॉं पैलेस,कांगेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य अहमदनगर दुर्ग तथा राजेन्द्र प्रसाद पटना में गिरफतार कर नजरबन्द कर दिये गये।जनता ने राष्ट के नेताओं के इस दमन पर वीरोचित आचरण का प्रदर्शन किया और ब्रितानिया हुकूमत ने पूरी बर्बरता तथा दमन का परिचय दिया।इस आन्दोलन में 250रेलवे स्टेशन,550पोस्ट ऑफिस,70थाने,85अन्य सरकारी इमारतें तथा 3500 टेलीग्राफ और टेलीफोन की तार लाइने भारत के वीरों ने तहस-नहस करके अपना विरोध प्रदर्शन किया।इस आन्दोलन में 940लोग पुलिस की गोली से मारे गये,1630लोग घायल हो गये।भारत रक्षा कानून में 18000लोगों को नजरबन्द किया गया तथा 60229लोगों को गिरफतार किया गया।इस भयंकर ब्रितानिया दमन के कारण जनान्दोलन छब गया।9नवम्बर,1942 को जय प्रकाश नारायण पॉंच साथियों के साथ हजारीबाग जेल से भाग निकले थे।जे0पी0 ने केन्द्रीय संग्राम समिति बनाकर अंग्रेजों से सशस्त्र संग्राम का आह्वान किया था।नेपाल में सदर दफतर बनाकर जन-क्रांति की कोशिश की।इस जनान्दोलन में जय प्रकाश नारायण,अरूणा आसफ अली,राम मनोहर लोहिया,अच्युत पटवर्धन आदि ने भरपूर काम किया तथा इनका नाम भी खूब हुआ।
गॉंधी जी ने 23दिसम्बर,1942को वाइसरॉय को पत्र लिखा,-‘‘लगता है कि कांगेस नेताओं की एक तरफ से गिरफतारी ने लोगों को गुस्से में इतना पागल बना दिया कि वे आत्मनियंत्रण खो बैठे।मुझे लगता है कि जो भी तोड़फोड़ हुई है उसके लिए सरकार जिम्मेदार है कांग्रेस नही।‘‘गॉंधी जी की यह बात अक्षरशः सत्य है,यदि सरकार ने दमन न किया होता तो कम से कम तीन माह तक कहीं भी अहिंसक सत्याग्रह भी न होता।गॉंधी जी ने ब्रितानिया हुकूमत के गृह विभाग को भी 15जुलाई,1943 को पत्र लिख कर बताया कि कांग्रेस ने कोई भी आंदोलन शुरू नहीं किया था।कांग्रेस के नेताओं पण्ड़ित जवाहर लाल नेहरू,वल्लभ भाई पटेल एवं गोविन्द वल्लभ पंत ने 21दिसम्बर,1945 को संयुक्त प्रेस बयान में कहा,-‘‘कोई भी आन्दोलन आल इण्ड़िया कांग्रेस कमेटी या गॉंधी जी द्वारा आरम्भ नहीं किया गया।‘‘सबसे अफसोस की बात यह है कि तीन वर्ष तक लगातार जिन लोगों ने लिखित बयान दिया कि यह कांग्रेस का आन्दोलन नहीं था,उन्हीं कांग्रेसी नेताओं ने बाद में सन्1942 के इस जन आन्दोलन को कांग्रेस का आन्दोलन कहा और अगस्त क्रांति कहा।गॉंधी जी और कांग्रेस के अहिंसा के सिद्धान्त के सर्वथा विपरीत चले इस जनान्दोलन को आज जो भी कांग्रेसी अपने दल द्वारा चलाया गया आन्दोलन करार देते हैं,उनको कम से कम उन सभी कांग्रेसी नेताओं की सार्वजनिक रूप से निन्दा करनी चाहिए,जिन्होंने इस आन्दोलन को कांग्रेस का आन्दोलन न होने का लिखित बयान लगातार 3वर्षों तक दिया।
वस्तुतः यह आन्दोलन भारत की जनता द्वारा आजादी के लिए छेड़ा गया जनान्दोलन था,जो अपने राष्टीय नेताओं के दमन व ब्रितानिया हुकूमत की बर्बरता की उपज था।

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