Monday, January 31, 2011

तिरंगा कार्यक्रम

तिरंगा कार्यक्रम में भाग न लेने वालों को जिम्मेदार पदों से हटाये भाजपा
अरविन्द विद्रोही
भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा के द्वारा लाल चौक में गणतंत्र दिवस के पावन पर्व पर देश के सम्मान के प्रतीक राष्टीय ध्वज तिरंगे को फहराने के कार्यक्रम ने पूरे देश के देशभक्त आम जन को उद्वेलित कर दिया है।यह शर्म और दुर्भाग्य की बात है कि आज आजाद भारत में भी सरकारें ब्रितानिया हुकूमत की तर्ज पर तिरंगे को फहराने पर पाबन्दी लगा रही हैं।भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को लाल चौक जाने से रोकना,उनको हिरासत में लेना अलगाववादियों के आगे सरकारों का समर्पण ही है।अपने ही देश में अपना ध्वज फहराये जाने से जिस व्यक्ति,समुदाय या संगठन को आपत्ति हो उसको देशद्रोही के अतिरिक्त क्या समझा जाये?भारतीय गणराज्य के किसी भी हिस्से में तिरंगे को फहराने पर आपत्ति करने वालों को क्या अंग्रेजों की संतान कहना उचित नही है?
अभी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिन पर पूरे भारत में नेताजी के चित्र,प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।गोष्ठियों,सभाओं का आयोजन विभिन्न राजनैतिक-सामाजिक संगठनों द्वारा किया गया।एक जाति विशेष के संगठन ने देश के गौरव,सशस्त्र क्रान्ति के सेनापति,आजाद हिन्द फौज के नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को जातीय सीमा में बांधने का निन्दनीय किन्तु नाकामयाब प्रयास किया।दरअसल अपनी राजनीति चमकाने के फेर में लगे कई तथाकथित नेताओं को जनससमयाओं से तो कोई वास्ता रहता नहीं है,लेकिन अपने प्रभाव में वृद्धि व जनप्रतिनिधि बनने के फिराक में इस प्रवृत्ति के लोग देश के महापुरूषों को जातीय परिधि में बांधने का घृणित कार्य करते रहते हैं।आजादी के इन मतवालों ने न तो सिर्फ अपनी जाति की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी और न ही अपनी जाति के लोगों का संगठन खड़ा किया था।आजाद हिन्द फौज के संस्थापक सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक रास बिहारी बोस ने करतार सिंह सराभा के साथ मिल प्रथम विश्व युद्ध के समय भारत में गदर की योजना को क्रियान्वित किया था।ब्रितानिया हुकूमत की गुलामी से मुक्ति की लड़ाई लड रहे इन मतवालों ने कभी भी जातीय आधार पर संगठन नही तैयार किया।इसके भी पूर्व 1857 में भी गदर के दौरान कही भी जाति विशेष की लड़ाई की अवधारणा क्रान्तिकारियों में नहीं थी।एक जुनून था अपने वतन की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने व आतताई अंग्रेजों के प्राणों को हर लेने का।एक देश एक संकल्प की भावना को आत्मसात् किये मॉं भारती के सपूत क्रान्ति की ज्वाला में जलते हुए अपने देश की आम जनता को ब्रितानिया हुकूमत के अत्याचार से निजात दिलाने के लिए क्रान्ति पथ पर मर मिटने का कोई भी अवसर हाथ से जाने नही देते थे।राजगुरू तो इसी बात से क्रान्तिकारी संगठन से नाराज हो गये थे कि असेम्बली में बम फेंकने के लिए उनको अवसर नहीं मिला।
बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हालात आज भारत में उत्पन्न हो चुके हैं।आजाद भारत में देश के सम्मान के प्रतीक घ्वज को अपनी ही सरजमीं पर फहराने से रोकने से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है।इसी तिरंगे को हाथ में लेकर वन्देमातरम् व भारत माता की जय बोलते हुए मॉं भारती के सपूतों ने छाती पर ब्रितानिया हुकूमत की गोली खाई थी लेकिन तिरंगे को अपने बलिदान व समर्पण से लाल किले पर फहराने का अवसर दिलाने वाले अमर बलिदानियों की आत्मा भारत सरकार के रवैये पर दुःखी ही होती होगी।इस देशभक्ति-पूर्ण कार्यक्रम को सिर्फ इस कारण से नकारना कि यह कार्यक्रम भारतीय जनता युवा मोर्चा ने तैयार किया,लाल चौक में तिरंगा फहराने से अशांति फैलेगाी,एक नाकाम सरकार का अलगाववादियों के सम्मुख समर्पण ही है।केन्द्र सरकार को और जम्मू-कश्मीर सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि लाल चौक पर तिरंगा कब और कौन फहरायेगा?सरकारों को यह भी जवाब देना होगा कि क्या अपनी ही सरजमीं पर तिरंगा फहराने से रोकना किस श्रेणी का अपराध है?
लाल चौक पर तिरंगा फहराने के कार्यक्रम को तैयार करके युवा मोर्चा ने एक साहसिक कार्य किया है।भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व को अब अपने संगठन को इस कार्यक्रम में सहभागिता की कसौटी पर कसना चाहिए।इस तिरंगा यात्रा में अपनी सहभागिता न करने वाले नेताओं को संगठन में जिम्मदार पदों से हटा कर उर्जावान व सांगठनिक कार्यों में सहभागिता करने वाले कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपने से कार्यकर्ता और उत्साहित होंगे।

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