Sunday, January 23, 2011

आजाद हिन्द फौज के नायक-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर विश्ेाष

आजाद हिन्द फौज के नायक-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जन्म दिवस पर विश्ेाष
अरविन्द विद्रोही
कटक के वकील जानकीनाथ बोस के घर 23जनवरी, 1897 को एक पुत्र का जन्म हुआ।श्रीमती प्रभावती बोस व जानकीनाथ बोस का यह पुत्र मॉं भारती की बेड़ियां काटने के लिए ही मानो जन्मा था।यह बालक ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम से विश्व विख्यात हुआ।मेधावी प्रतिभा के धनी सुभाष ने बी0ए0आनर्स प्रथम श्रेणी में द्वितीए स्थान प्राप्त करने के पश्चात् पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आई0सी0एस की परीक्षा 1921 में लन्दन जाकर उत्तीर्ण की।सिविल सर्विसेज की नौकरी न करके सुभाष ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लगाया।
सुभाष चन्द्र बोस पर स्वामी विवेकानन्द,अरविन्द घोष का बड़ा गहरा प्रभाव था।किशोरावस्था में सुभाष ने देश में यात्रायें की।आजाद हिन्द फौज के इस सेनापति का स्वभाव आध्यात्मिक ही था।सन्यासियों के प्रति आर्कषण रखने वाले सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे समाजसेवी तथा स्वाभिमानी योद्धा थे।क्रान्तिकारियो। के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह के अनुसार,-‘‘सुभाष चन्द्र बोस हिन्दुस्तान के युवाओं के रूप में स्थापित हो चुके हैं।’’सुभाष को हिन्दुस्तान की आजादी का पक्का समर्थक बताते हुए भगत सिंह ने जुलाई 1928 के किरती में लिखा था कि सुभाष को प्राचीन संस्कृति का उपासक कहा जाता है।सुभाष चन्द्र बोस को ब्रितानिया हुकूमत तख्ता पलट गिरोह का सदस्य मानती थी।बंगाल अध्यादेश के तहत् सुभाष को कैद भी किया गया था।मद्रास सम्मेलन में सुभाश चन्द्र बोस,पंडित जवाहर लाल नेहरू आदि के प्रयासों से ही पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव स्वीकृत हो सका था।आध्यात्मिक प्रवृत्ति के सुभाष चन्द्र बोस ने बम्बई में आयोजित एक जनसभा में,जिसकी अध्यक्षता जवाहर लाल नेहरू कर रहे थे,में कहा कि,-‘‘हिन्दुस्तान का दुनिया के नाम एक विशेष सन्देश है।वह दुनिया को आध्यात्मिक शिक्षा देगा।.........चॉंदनी रात में ताजमहल को देखो और जिस दिल की यह समझ
का परिणाम था,उसकी महानता की कल्पना करो।सोचो,एक बंगाली उपन्यास कार ने लिखा है कि हममें यह हमारे आंसू ही जम-जम कर पत्थर बन गये हैं।राष्टीयता के सवाल पर सुभाष चन्द्र बोस ने कहा,-‘‘अन्तर राष्टीयता वादी, राष्टीयता वाद को एक संकीर्ण दायरे वाली विचार धारा बताते हैं,लेकिन यह भूल है।हिन्दुस्तानी राष्टीयता का विचार ऐसा नही है।वह न संकीर्ण है,न निजी स्वार्थ से प्रेरित है और न उत्पीड़नकारी है,क्योंकि इसकी जड़ या मूल तो यह ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ है,अर्थात‘सच,कल्याणकारी और सुन्दर’सुभाष चन्द्र बोस के नजरिए मे। पंचायती राज और जनता का राज की अवधारणा भारत के लिए नई चीज नहीं है,यह भारत की पुरातन व्यवस्था है।भावुक सुभाष चन्द्र बोस अपनी पुरातन मर्यादाओं और सिद्धान्तों के मानने वाले एक राजपरिवर्तन कारी व्यक्तित्व के थे।पूर्ण स्वराज्य के समर्थक सुभाष चन्द्र बोस,पश्चिम वासी अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ मजदूरों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तथा उनकी स्थिति में सुधार चाहने वाले थे।सुभाष चन्द्र बोस के फैसले दिल के फैसले होते थे।सुभाष चन्द्र बोस राष्टीय राजनीति में तब तक ध्यान देना आवश्यक समझते थे,जब तक दुनिया की राजनीति में हिन्दुस्तान की रक्षा और विकास का सवाल हो।देशबन्धु चित्तरंजन दास के राजनैतिक शिष्य सुभाष चन्द्र बोस,उनके निर्देश पर कलकत्ता की राष्टीय विद्यापीठ में प्रचार विभाग में कार्य करने लगे।सुभाष चन्द्र बोस को ‘‘बांग्लारकथा’’नामक अखबार का सम्पादन कार्य की जिम्मेदारी भी दी गई।1924 में चित्तरंजन दास के कलकत्ता के महापौर बनने पर सुभाष चन्द्र बोस को उन्होंने अपना कार्यकारी अधिकारी बनाया।समाजसेवी सुभाश चन्द्र बोस अपनी तनख्वाह गरीब छात्रों पर खर्च करने लगे।स्वंयसेवकों के संगठन का अपराधी होने के आरोप में सुभाष को छः माह की जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी।जेल से रिहायी के बाद देशबंधु चित्तरंजन दास के ‘फारवर्ड’ नामक पत्र का सम्पादन कार्य सुभाष चन्द्र बोस ने संभाला।25अक्तूबर,1924 को बगैर कारण पुनःहिरासत में ले लिए गये सुभाष को अस्वस्थ हो जाने पर ही 15मई,1927 को रिहा किया गया।बंगाल प्रांतीय समिति के अध्यक्ष के पद और उसके बाद अखिल भारतीय राष्टीय कांग्रेस के महामंत्री के पद पर कार्य करके सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिभा और व्यक्तित्व में निखार आया।बहुमुखी प्रतिभावान सुभाष चन्द्र बोस एक लेखक,सैनिक,दार्षनिक,राजनीतिज्ञ,कुशल प्रशासक,वक्ता,सेनानायक व भविष्य दृष्टा के रूप में युगों-युगों तक भारतीय जनमानस के,राष्टवादी विचारधारा के वाहको। के ह्दय सम्राट व आदर्श रहेंगें।सन्1930 में कलकत्ता के महापौर चुने जाने पर सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के अभिनन्दन की प्रथा को समाप्त करने का ऐतिहासिक कार्य किया।साथ ही साथ कलकत्ता को स्वच्छ करवाया,आरोग्य सेवा के प्रचार प्रसार को प्रारम्भ कराया,‘‘महाजती सदन’’ का शिलान्यास गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के हाथों करवाया,सांस्कृतिक पारम्परिक कार्यक्रमों को पुनः आयोजित करवाना प्रारम्भ किया,प्रषासनिक दक्षता बढ़ायी,कल्याण कोषों की स्थापना तथा उद्योगों को प्रोत्साहन दिया।
सुभाष चन्द्र बोस के प्रभाव से परेशान ब्रितानिया हुकूमत,बार-बार सुभाष चन्द्र बोस को कैद करके इघर उधर के जेलों में रखती थी।सुभाष को अंग्रेज सरकार ने निर्वासित करके यूरोप भेज दिया।पिता की बीमारी की खबर सुनकर सुभाष चन्द्र बोस,भारत में निषेधाज्ञा की परवाह किये बगैर लौट आये।कराची में सुभाष चन्द्र बोस को रोक कर,उनकी पुस्तक ‘‘इंडियन स्टगल’’ को जब्त कर लिया गया।पिता की मृत्यु के पश्चात्,सुभाष चन्द्र बोस को अंत्येष्टि हेतु जाने मिला।अंत्येष्टि के पश्चात् सुभाश चन्द्र बोस ने भूमिगत होकर,यूरोपीय देशों का प्रवास कर वहॉं पर भारतीयों की आजादी के लिए समर्थन जुटाया।लन्दन में प्रवेश प्रतिबन्धित होने के कारण 10जून, 1933 को लन्दन में आयोजित तृतीय भारतीय राजनीतिक सभा के अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस का अध्यक्षीय भाषण पढ़कर सुनाया गया।हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन का अध्यक्षीय भाषण,सुभाष चन्द्र बोस के इतिहास की गहरी जानकारी तथा अन्तर राष्टीय राजनीति के असाधारण ज्ञान का दस्तावेज है। सत्याग्रह को क्रियात्मक बनाने पर जोर देने वाले सुभाष चन्द्र बोस 1939 में पुनः त्रिपुरा कंाग्रेस के अध्यक्ष चुने गये।महात्मा गॉंधी से राजनैतिक मतभेद के कारण सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस छोड़ दी तथा 3मई,1939 को कलकत्ता में ‘‘फारवर्ड ब्लाक’’ की स्थापना कर बिखरी वाम शक्ति के एकीकरण तथा स्वतंत्रता आन्दोलन को तेज करने का प्रयास किया।द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ में ही ब्रितानिया हुकूमत ने सुभाष चन्द्र बोस को ‘‘हॉलवैल स्मारक हआओ’’ मुहिम के कारण कैद कर लिया।सुभाष चन्द्र बोस की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए यह ग्यारहवीं तथा अन्तिम जेल यात्रा साबित हुई। सुभाष चन्द्र बोस ने इस अन्याय व दमन के खिलाफ अंग्रेज सरकार को पत्र लिखा कि या तो उन्हें जेल से मुक्त किया जाये नहीं तो वे अनशन कर प्राण त्याग देगें।अंग्रेजों को लिखा यह पत्र सुभाष चन्द्र बोस की राजनैतिक वसीयत है।सप्ताह भर के अनशन के बाद अंग्रेजों ने 5दिसम्बर,1940 को सुभाष चन्द्र बोस को जेल से रिहा कर दिया।धूर्त अंग्रेजों ने सुभाष चन्द्र बोस को घर में नजरबन्द कर दिया।आखिरकार 18जनवरी,1941 को सुभाष चन्द्र बोस,मौलवी का वेष धर कर घर के पिछले दरवाजे से बाहर निकल कर,अपने भतीजे डॉ0 शिशिर बोस के द्वारा लाई गई कार में बैठ कर धनबाद पहुॅंचे।इस समय भारत की आजादी के लिए जापान में रह रहे,सशस्त्र क्रान्ति के संयोजक रासबिहारी बोस ने जापान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मदद के लिए तैयार कर,आजाद हिन्द फौज का गठन कर लिया था।15जून,1942 के बैंकाक सम्मेलन में सुभाष चन्द्र बोस को जापान आकर इस फौज का नेतृत्व संभालने का निमंत्रण भेजा गया।सुभाष चन्द्र बोस 16मई,1943 को टोकियो-जापान पहुॅंचे।सुभाष चन्द्र बोस ने टोकियो रेडियो पर बोलते हुए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संग्राम के दृढ़ निश्चय और पूर्वी सरहद से आक्रमण आरम्भ करने की घोषणा की।4जुलाई,1943 को रासबिहारी बोस ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस को सौंपा।सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनाने तथा आजाद हिन्द फौज को लेकर हिन्दुस्तान जाने की घोषणा की।5जुलाई,1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का निरीक्षण कर ‘‘दिल्ली चलो’’ का उद्घोष किया।25अगस्त, 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का सिपहसालार पद ग्रहण कर,सेना में भारतीय युवतियों को लेकर ‘‘झॉंसी की रानी रेजीमेण्ट’’ बनाई। आजाद हिन्द फौज में गॉंधी,आजाद और नेहरू बिग्रेड़ बनाई गई।23अक्तूबर, 1943 को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार की तरफ से सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।जापान,जर्मनी,इटली,बर्मा,चीन,थाईलैण्ड़,फिलीपीन्स,मंचूरिया की सरकारों ने आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को मान्यता दी तथा 6नवम्बर,1943 को तोजो ने बृहत्तर पूर्व एशिया सम्मेलन में घोषणा की कि जापान ने अंडमान और निकोबार के टापुओं को आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार के हाथों में सौंपने का फैसला किया है।31दिसम्बर,1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने अंडमान पहुॅंच कर दोनो टापुओं का प्रशासन अपने हाथों में लेकर दोनों टापुओं का नाम क्रमश्ःः‘शहीद’ और ‘स्वराज्य’ द्वीप रखा।गॉंधी,आजाद व नेहरू बिग्रेड़ के चुनिन्दा सैनिकों को लेकर सितम्बर1943 में मलाया के ताइपिंग में पहली छापामार रेजीमेण्ट ‘सुभाष बिग्रेड’ के नाम से बनायी गयी थी।इसके सेनापति शाहनवाज खॉं बनाये गये।4जनवरी,1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने रंगून पहुॅंच कर,मुख्य कार्यालय स्थापित किया।3फरवरी,1944 को रंगून से सुभाश चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज को जीत या शहादत के लिए रवाना किया। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों और भारतवासियों से सुभाष चन्द्र बोस ने कहा,-‘‘तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूॅंगा।’’शहनवाज खॉं,कप्तान सूरजमल,कमांडर अजब सिंह,मनसुख लाल,मेजर आबिद हुसैन,मेजर रतूरी आदि आजाद हिन्द के सेना नायकों ने अपनी सरजमीं की आजादी के लिए हरसम्भव प्रयास किये।इन रणबांकुरों ने अपने अदम्य शौर्य व साहस का प्रदर्शन करते हुए टेटमा,प्लेटवा,डलेटमा,मोडक चौकी,अल्वा चौकी,क्लंग-क्लंग चौकी,क्लालखुआ,कोहिमा पर तिरंगा फहरा कर नेताजी की जय और जय हिन्द के नारे लगाये।इम्फाल के निर्णायक युद्ध में हार चुकी अंग्रेज फौज भागने का मार्ग न मिलने के कारण लडती रही,प्रकृति ने अंग्रेजों का साथ दे दिया,भीषण बरसात ने आजाद हिन्द फौज को तितर-बितर कर दिया।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मन व शरीर दोनो से युद्ध,प्रशासन व संगठन तीनों मोर्चों पर एक साथ काम करते हुए फौजों का मनोबल व उत्साह बढ़ा रहे थे। इम्फाल में शिकस्त खाकर फौज रंगून लौटी।अमेरिका के द्वारा जापान पर अणु बम के हमले के बाद जापान ने हार स्वीकार कर ली परन्तु नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने हार न स्वीकारी।आपात कालीन फैसले लेते हुए गोपनीय दस्तावेज नष्ट करके,झंासी की रानी रेजीमेण्ट को भंग करके,युवतियों को घर भेजा गया।सारे साथियों को बर्मा से सकुशल बाहर निकाल कर,16अगस्त 1946 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर से बैंकाक होते हुए सैगोन,सैगोन से इण्डोचायना व फारमोसा द्वीप पहुॅंचे।फारमोसा के ताईहोकू हवाई अड्डे पर 18अगस्त,1945 को भोजन करने के पश्चात्,दो इंजन वाले जापानी बमबाज हवाई जहाज में बैठकर जैसे ही रवाना हुए,जहाज में आग लग गई।बुरी तरह जले हुए सुभाष चन्द्र बोस को अस्पताल ले जाया गया,जहॉं पर रात 8 से 9 बजे के बीच उनका देहान्त हो गया।इस दुर्घटना की बात को सुभाष चन्द्र बोस के परिजनों व प्रशंसकों ने सत्य नहीं माना।आजादी के बाद भारत सरकार की जांच में यह दुर्घटना सत्य साबित हुई।नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का अंतिम संदेश था,-’’मेरा अन्त समीप है,हबीब।देशवासियों से कहना कि आजादी की लड़ाई चालू रखें।भारत शीघ्र ही आजाद होने वाला है।’’ साहस,सह्दयता व नैतिकता की साक्षात् मूर्ति सुभाष चन्द्र बोस के दिल में महात्मा गॉंधी के एवं अहिंसा के प्रति गहन आस्था थी।परन्तु आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष को वे वीरोचित आचरण मानते थे।यह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे,जिन्होंने सर्वप्रथम रेडियो रंगून से महात्मा गॉंधी को ‘‘राष्टपिता’’ कह कर सम्बोधित किया था।सुभाष चन्द्र बोस ने एक बार कहा था,-‘‘एक बार भारत स्वतंत्र हो जाये,तो इसे मैं गॉंधी जी को सौंप दूॅंगा और कहूॅंगा कि अब इसे आपकी अहिंसा की सबसे ज्यादा जरूरत है।’’सुभाष चन्द्र बोस के संघर्ष,उनकी सोच व कर्मठता आज हमारे बीच प्रेरक बनकर,उनके सदैव हमारे साथ होने का अहसास कराने के साथ-साथ देशहित में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का पाठ पढ़ाती रहती है।

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