Sunday, March 13, 2011

बसपा के मुकाबिल समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन

बसपा के मुकाबिल समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन
अरविन्द विद्रोही
और आखिरकार मुलायम सिंह यादव ने उ0प्र0 में बसपा सरकार के खिलाफ पुनः संघर्ष की तारीख 17मार्च घोषित कर ही दी।समाजवादी पार्टी के द्वारा 7,8,9मार्च को छेड़ा गया जनान्दोलन समाप्त हो चुका है।समाजवादी पार्टी का जनान्दोलन उ0प्र0 की वर्तमान बहुजन समाज पार्टी की सरकार की नीतियों और कार्यों के विरोध में आयोजित हुआ।समाजवादी पार्टी के अनुसार यह जनान्दोलन सफल रहा जिसमें बसपा सरकार के खिलाफ समाजवादी पार्टी के लााखों कार्यकर्ता सड़क पर उतरे तथा जेल गये।दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी ने सपा के इस आन्दोलन को फलॉप शो तथा जनविरोधी बताया।पूरे प्रदेश में आन्दोलनकारी समाजवादी कार्यकर्ताओं को कानून व्यवस्था कायम रखने के उद्देश्य का हवाला देते हुए सरकार ने हिरासत में ले लिया।समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव व अखिलेश यादव की नजरबंदी का मामला देश के सर्वोच्च सदन संसद में भी उठाया गया।बहुजन समाज पार्टी के अनुसार 7,8,9मार्च को सरकार द्वारा किये गये प्रशासनिक इंतजामों,चप्पे-चप्पे पर तैनात पुलिस बल ने किसी भी उपद्रव,तोड़-फोड़,आगजनी जैसी घटनाओं के घटित होने व उससे आम जनता को होने वाले नुकसान,सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान से प्रदेश को बचाया।मुख्यमंत्री मायावती ने साफ तौर पर चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि कानून व्यवस्था को तोड़ना कतई बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।लेकिन जनता के हितों की अनदेखी होने पर आवाज उठाना व सत्याग्रह करना कानून तोड़ना नही होता यह बात सबको समझना चाहिए।वहीं यह भी सत्य है कि जनान्दोलन के नाम पर तोड़-फोड़,आगजनी,अराजकता फैलाना अनुचित है।अब आने वाली 17तारीख को यही चुनौती पुनःसरकार व समाजवादी नेतृत्व के सामने रहेगी।जनान्दोलन जनता के हित के लिए आयोजित किया जाता है,आन्दोलन के दौरान एक ही घटना सम्पूर्ण सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य बदल सकती है इसका विशेष ध्यान आन्दोलनकारियों व सरकार दोनों को रखना चाहिए।अभी समाजवादी पार्टी के नेताओं के साथ पुलिस का अमानवीय व क्रूर चेहरा सामने आया है।पुलिस का जनविरोधी रवैया किसी से छुपा नही है लेकिन आम जन पर होने वाले अनवरत् अत्याचार पर राजनैतिक कार्यकर्ताओं की खामोशी ने,उस अत्याचार का,तात्कालिक अन्याय का प्रतिकार न करने का ही यह परिणाम है कि पुलिस का रवैया ब्रितानिया हुकूमत की दरिंदगी की याद ताजा करा गया।
डा0राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सच को कैसे मजबूत बनाया जाये?मेरी समझ में यह केवल सत्याग्रह है।इसमें केवल एक और शब्द इस्तेमाल करता हूॅं-तर्क।लेकिन केवल तर्क कमजोर रह जाता है।केवल तर्क अच्छा भी हो और उसमें आप जीत भी जाओं तो जो शक्तिशाली है वह और अपने अणुबम,तलवार या पिस्तौल के बल पर तर्क को खत्म कर देता है।इसलिए तर्क को कोई एैसी ताकत मिलनी चाहिए जो पशुबल न हो,हिंसा न हो,लेकिन एक हिंसक के मुकाबले में उस तर्क को खड़ा कर सकें और वह वही ताकत है कि हम तुमको मारेंगें भी नहीं मगर तुम्हारी बात मानेंगें भी नहीं।यह था किसी जुल्मी,अत्याचारी,निरंकुश,तानाशाह व्यक्ति या व्यवस्था से संघर्ष करने का लोहिया का रास्ता।समाजवादी पार्टी के नेतृत्व को समीक्षा करनी चाहिए कि क्या डा0लोहिया की इन बातों का व्यवहार में अमल हो रहा है?शासन सत्ता के खिलाफ सत्याग्रह में दमनात्मक कार्यवाही का एक नाजुक मोड़ आता है और यही मोड़ निर्णायक भी होता है।शासन की दमनात्मक कार्यवाही से झुक जाने से,भाग जाने से या उत्तेजित होकर शारीरिक प्रतिकार करने से शासन ही विजयी होता है अन्यथा जनता के हित के लिए लडने वालों के कदमों में विजय श्री होती है।बहरहाल आजाद भारत में भी आम जनों का दुर्भाग्य ही है कि जिन पुलिस बलों या सरकारी कर्मियों की तनख्वाह आम जनता के द्वारा दिये गये विभिन्न राजस्व करों से बने राजकीय कोष से निकलती है,वही वेतनभोगी पुलिस-प्रशासन के लोग आम जन को व उनके अधिकारों को बूटों तले रौंद रहे हैं।इस तरह के अमानवीय प्रवृत्ति के कर्मियों को अब कौन सजा देगा?
जो भी हो समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव की अगुवाई में वर्तमान बसपा सरकार को चुनौती देने का काम सड़क पर उतर कर समाजवादी पार्टी के जुझारू कार्यकर्ताओं ने दिया।आन्दोलन अपने मकसद में सफल रहा,समाजवादी पार्टी का नेतृत्व यह मान कर चल रहा है।समाजवादी पार्टी के कई स्वनाम धन्य,गणेश परिक्रमा करने में सिद्धहस्त नेताओं ने जनान्दोलन में क्या भूमिका निभाई,किन-किन क्षेत्रों में जाकर कार्यकर्ताओं व जनता को आन्दोलन की रूपरेखा बताई,इसकी गहन समीक्षा समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को स्वयं ही करनी चाहिए।मैने अपने पूर्व के लेखों में एक बात लिखा है और पुनःलिख रहा हूॅं कि संगठन में जिम्मेदारी व विधान सभा के टिकट वितरण में आन्दोलन के साथियों और संक्रमण काल में समाजवादी पार्टी में बने रहे निष्ठावान कार्यकर्ताओं को ही तवज्जों देना चाहिए।उ0प्र0 में बसपा के मुकाबिल आज सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी ही लड़ती नजर आ रही है।बसपा सरकार से नाखुश मतदाताओं की पहली पसन्द समाजवादी पार्टी बन चुकी है,इस स्थिति को भांपते हुए जनप्रतिनिधि बनने के फेर में तमाम दलों के लोग समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुके हैं,और बहुत अभी करेंगें।एैसे लोगों को चुनावों में प्रत्याशी बनाने से कोई भी सामाजिक-राजनैतिक फायदा समाजवादी पार्टी को नहीं होगा उल्टा नुकसान अवश्यंभावी है।इस विषय में भी दशकों पहले डा0लोहिया ने लिखा है कि-‘‘यह सही है कि सत्याग्रह में कई तरह की मिलावट रहेगी।न जाने उसमें कितनी जलन,कितनी ईर्ष्या और कितना द्वेष रहेगा,न जाने कितने ही लोग उसे गद्दी हासिल करने के लिए करेंगे,न जाने कितने ही लोग उसे विधान सभा और लोक सभा की मेम्बरी हासिल करने के लिए करेंगे।‘‘समाजवादी नेतृत्व को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब पुराना संघर्ष का वफादार साथी सालों-साल से साथ निभा रहा है तो उसकी जगह मात्र स्वार्थ सिद्धि करने के फेर में लगे जनाधार विहीन,दलबदलू,पूॅजीवादी सोच के मगरूर लोग जिनका आम गा्रमीण जनता से कोई सरोकार नहीं को महत्व देना अपने संघर्षशील कार्यकर्ता के साथ विश्वासघात सरीखा होगा।अब गॉंव-गॉंव में 17मार्च के संघर्ष की अलख जलाने के लिए समाजवादी संघर्षशील-जुझारू कार्यकर्ताओं को घर से निकल जाना चाहिए।

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