Sunday, March 6, 2011

सोच बदलिए

प्रतिभा वाजपेयी
सोच बदलिए

सकारात्मक खबर न देने के लिए अक्सर मीडिया पर इल्जाम लगाए जाते हैं, लेकिन मुझे यह कहते हुए थोड़ी तकलीफ जरूर हो रही है पर सच यही है कि फेसबुक की स्थिति इससे कुछ बेहतर नहीं है। देश की वर्तमान हालात उसे विचलित करती हैं परंतु देश का भविष्य हमारे बच्चे उसकी प्राथमिकता में नहीं आते। मी सिंधुताई सपकाल सिखते समय मुझे लगा था कि फेसबुक में जो हमारे हजारो-हजार मित्र हैं उनके हाथ उनकी सहायता के लिए आगे आएंगे। मित्र चंदन आर्यन को छोड़कर किसी ने भी इस विषय में अपनी उत्सुकता तक व्यक्त नहीं की। निश्चित रूप से निराशा हुई। यह निराशा उस समय और बढ़ गई जब अरुंधती राय की नग्न पेंटिग को लेकर एक जगह नहीं कई जगह प्रतिक्रियाओं का सैलाब देखा। कुछ ने तो इसे तुरंत नेट पर डालने का भी आग्रह किया हुआ था। किसी महिला के नग्न चित्र को देखने के लिए इतनी उत्सुकता किस मानसिकता का द्योतक है। अगर इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता माना जा रहा है...तो हुसैन का इतना विरोध क्यों किया गया क्योंकि जो चित्र उन्होंने बनाएं थे वे भी तो मूल रूप से स्त्रियों के ही थे....

इसे पुरुषों की विकृत मानसिकता कहें या उनका दोगलापन जो एक तरफ दुर्गा, सरस्वती को पूजते हैं दूसरी तरफ महिलाओं के नग्न चित्र सार्वजनिक करने को उतावले रहते है।

अगर कोई महिला अपनी इच्छा से ऐसे चित्र बनवाती है तो उसकी मर्जी। परंतु यदि वह ऐसे चित्र का समाजिक प्रदर्शन करती है तो किसी को भी उस चित्र के प्रति अपनी राय देने का हक बनता था पर यहां तो यह भी स्पष्ट नहीं है अरुंधती ने यह चित्र स्वयं बनवाया या यह उस चित्रकार के दिमाग का खुराफात है।

अरुंधती एक अच्छी लेखिका है। उनके अपने सामाजिक सरोकार भी हैं। उनके विचारों से सहमत या असहमत होने का समाज के हर व्यक्ति को अधिकार है। पर इस तरह का सोच निंदनीय है।

-प्रतिभा वाजपेयी.

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