Friday, September 30, 2011

चापलूसों-पारिवारिक लोगो व दल बदलुओ,अवसर वादियो की पनाह गाह बनी कांग्रेस - अरविन्द विद्रोही

अरसा पहले राहुल गाँधी ने कांग्रेस के सांगठनिक चुनावो की घोषणा करते हुये एलान किया था की अब कांग्रेस के आतंरिक लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए , आतंरिक ढांचे को बदलने के लिए बीड़ा उठा कर काम किया जायेगा | कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गाँधी की राजनीतिक सक्रियता और आम कार्यकर्ताओ के हितो की बात पार्टी मंचो और प्रेस-वार्ताओ में कहने से युवाओ और कांग्रेस के समर्पित-निष्ठावान पुराने कार्यकर्ताओ में एक उम्मीद की किरण राजनीतिक भागीदारी की प्राप्ति की जग गयी थी | दरअसल कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी में प्रत्येक जनपद में मठाधिशो के दबदबे के चलते संगठन व कार्यक्रम आधारित राजनीति करने वाले , चापलूसी व गणेश परिक्रमा ना कर सकने वाले कार्यकर्ता हाशिये पर ही रहते चले आये है | जब किसी मठाधीश ने अपने किसी राजनीतिक मज़बूरी के चलते,निजी स्वार्थ वश संगठन के समर्पित कार्यकर्ता को आगे बढ़ने दिया तभी वो आगे बढ़ पता अन्यथा मठाधीशो के द्वारा रचाए गये षड्यंत्र व जाल में फंस कर कार्यकर्ता मन मसोस के ,संतोष कर के सिर्फ अपने कांग्रेसी निष्ठा के सहारे कांग्रेस में रहता और यथा संभव संगठन के कार्यो में सहयोग व शिरकत करता जाता रहा है | कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी के संगठन कार्यो में विशेष रूचि लेने से आशा जगी की अब कांग्रेस में मठाधीसो से मुक्ति मिलेगी | कोई भी कार्यकर्ता संगठन के आतंरिक चुनावो में भागीदारी लेकर मन वांछित पद पर चुनाव में निर्वाचन के जरिये पहुँच सकता है | कांग्रेस के बड़े नेताओ के भी बयान आये की राहुल गाँधी की इस साकारात्मक पहल से बूथ स्तर तक का कार्यकर्ता निर्वाचन के जरिये देश के संगठन के नेता तक पहुँच सकता है | देश में लोकतंत्र ही भयावह स्थिति में गुज़र रहा हैदेश में सर्वाधिक वर्षो तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र की बहाली की बात , वो भी गाँधी-नेहरु राजवंश के तथा कथित युवराज कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गाँधी के द्वारा निश्चित ही यह अगर व्यवहार मेभी क्रियान्वित हो जाता तो भारत के लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत होता | दुर्भाग्य वश कांग्रेस पार्टी की, कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी की पार्टी के अन्दर लोकतंत्र बहाली की घोषणा व समर्पित कार्यकर्ताओ को अवसर देने की घोषणा महज़ लफ्फाजी साबित हो रही है | उत्तर प्रदेश में आगामी विधान सभा २०१२ के आम चुनावो में सरकार बनाने के लिए तड़प रही कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से राहुल गाँधी पर ही , उनकी छवि और कर्मो पर आधारित-आश्रित है | राहुल गाँधी की सांगठनिक चुनावो में आतंरिक लोकतंत्र बहाली की सोच व कर्मठ कार्यकर्ताओ को संगठन में दायित्व निरावाहन का अवसर देने के प्रयास को कांग्रेस के ही मठाधीशो ने धुल-धूसरित कर दिया है | जनपदों में जनपद अध्यक्षों, कार्यकारिणी,प्रान्तिये कार्यसमिति सदस्य के निर्वाचन प्रक्रिया में निर्वाचितो को दरकिनार कर रसूख रखने वाले कांग्रेसी नेताओ,मठाधीशो,के करीबियो -रिश्तेदारों को नामित कर दिया गया |राहुल गाँधी घोषनाये काफी अच्छी कर लेते है, उनका अनुपालन - क्रियान्वयन संगठन में हो रहा है कि नहीं शायद इसकी जानकारी लेने की कोई जरुरत नहीं समझते | संगठन के चुनाव में अनियमितता , कांग्रेस की निर्वाचन की घोषणा के विपरीत मनोनयन प्रक्रिया से पुनः आम-समर्पित कार्यकर्ता निराशा के भंवर में जा डूबा है | यही नहीं राहुल गाँधी के किसी भी घोषणा , उनके किसी भी कार्यक्रमों का , उनके क्रिया-कलापों का अनुसरण कोई भी जिम्मेदार पदाधिकारी नहीं कर रहा है | बुंदेलखंड में सड़क पर धरना देना, उत्तर प्रदेश के तमाम ग्रामीण इलाको में जाना,भूमि अधिग्रहण के विरोध में भट्टा पारसौल में जाना,पंचयत आयोजन के लिए पद यात्रा करना यह सभी काम राहुल गाँधी की राजनीतिक कर्मो की सूची के उल्लेखनीय कृत्य बन चुके है | कांग्रेस नेतृत्व को सोचना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के आसन्न विधानसभा २०१२ के आम चुनावो में वातानुकुलित कमरों और लग्ज़री वाहनों से ना निकलने वाले सुविधाभोगी लोगो के भरोसे वो कैसे चुनावी सफलता हासिल कर सकती है ? गावो में रात्रि विश्राम कार्यक्रम में फजीहत करने वालो को क्या कांग्रेसी आलाकमान भूल चुका है ? जनपदों में व्याप्त जन समस्याओ , भूमि अधिग्रहण के सवाल ,मजदूरों के सवाल ,युवा मामलो .महिला उत्पीडन ,उत्तर प्रदेश कि तानाशाही आदि मुद्दों पर कितने जनपदों के संगठन ने आन्दोलन किया ? थोपे गये जनाधार विहीन नेताओ के कारण ही कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कोई जनता का आन्दोलन नहीं खड़ा कर सकी सिर्फ राहुल गाँधी कि सक्रियता और उनके कार्यक्रमों में पहुचना ही मानी पुरे प्रदेश के संगठन का एकमात्र उत्तर दायित्व रहा है | उत्तर प्रदेश के विधान सभा २०१२ के आम चुनाव अति निकट है | तमाम दलबदल कर के आये नेता आज कांग्रेस के पुराने लोगो के लिए सर दर्द बन चुके है| मठाधीशो- दल बदलुओ -अवसर वादियो से मुक्ति पा कर ही कांग्रेस अपने समर्पित , जनाधार रखने वाले कर्मठ कार्यकर्ताओ को संगठन की जिम्मेदारी व चुनाव में पुराने नेताकर्यकर्ताओ को प्रत्याशी बना के ही चुनावी समर की मुख्य धारा में आ सकती है | उत्तर प्रदेश में अभी तो बहुजन समाज पार्टी के मुकाबिल समाजवादी पार्टी ही संघर्ष करते दिख रही है और अपने कार्यकर्ताओ के संघर्ष के बूते समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में बसपा राज्य से निजात पाने की सोच रखने वाले आम मतदाताओ की पहली पसंद बन चुकी है | भाजपा अपने द्वन्द से कब उभरेगी, यह राम ही जाने | बाकी दलों की स्थिति सिर्फ वोट कटवा या चन्द निर्वाचन सीटो पे प्रभावी है |

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