Tuesday, November 29, 2011

राजनितिक दलों की कार्य प्रणाली से बंधुआ मजदूर बनते कार्यकर्ता -संगठन व लाचार चुनाव आयोग

अरविन्द विद्रोही ----- राजनीतिक दलों के गठन का उद्देश्य अब सिर्फ और सिर्फ एन केन प्रकारेण चुनाव में विजय हासिल करना और सरकार बनाना या सरकार में हिस्सेदारी पा लेना मात्र रह गया है| आजादी के बाद स्थापित लोकतंत्र में जनता के लिए ,जनता के द्वारा ,जनता की सरकार चुने जाने की अवधारणा राजनैतिक दलों के आलाकमानो की तानाशाही और उनके द्वारा अपने -अपने राजनीतिक संगठनो के भीतर लोकतान्त्रिक प्रणाली को नकार के मनोनयन प्रक्रिया स्थापित कर देने से समाप्त सी हो चुकी है |लोकतंत्र की प्राथमिक पाठशाला के रूप में माने जाने वाले छात्र संघ चुनावो पर भी समय-समय पर इन्ही लोकतंत्र विरोधी तत्वों ने निगाहें टेढ़ी की है |आज राजनीतिक दलों के द्वारा चुनाव लड़ने व जीतने के लिए किस किस प्रकार का अमर्यादित आचरण किया जाता है यह भारत के किसी भी नागरिक से छुपा नहीं है लेकिन चुनावो पर नज़र रखने वाले चुनाव आयोग के कर्ता-धर्ताओ को यह अमर्यादित आचरण नज़र नहीं आता है|चुनाव आयोग ने हर एक चुनाव की एक आचार संहिता बनायीं है जिसका खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन राजनीतिक दलों के घोषित प्रत्याशियो के द्वारा किया जाता है और चुनाव आयोग अपनी बेबसी के बयान जारी कर के जनता को भ्रमित करने के खेल में जाने-अनजाने मौन सहभागिता देता है |राजनीतिक दलों के द्वारा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियो के नाम घोषित करते ही सभी प्रत्याशी अपने-अपने विधान सभा में प्रचार कार्य में जुट जाते है |यही से चुनाव आयोग अपनी बेबसी दिखता है कि अभी चुनाव आचार संहिता नहीं लागु हुई है इसलिए हम कुछ नहीं कर सकते है|चुनाव सुधारो की कड़ी में इस पर अंकुश लगाने की जरुरत है,चुनाव में प्रत्याशी घोषित होते ही चुनाव आयोग को उस प्रत्याशी पर नज़र रखने ,उसके खर्चे का हिसाब लेने का अधिकार होना चाहिए |यह हालात और बिगडती है जब कोई प्रभावी मंत्री या उसका परिजन किसी चुनाव में प्रत्याशी घोषित हो जाता है | राजनीतिक दलों के द्वारा अपने दलों के द्वारा चुनावो में प्रत्याशी घोषित करने की चयन प्रक्रिया ने इस बार उत्तर-प्रदेश में अभी तक हत-प्रभ कर दिया है |राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार से अपने विधान सभा के प्रत्याशी चयन किये है ,वह चयन प्रक्रिया निश्चित रूप से अलोकतांत्रिक, तानाशाही व राजतन्त्र के रवैय्या सरीखी है|उत्तर-प्रदेश की सत्ता धारी बहुजन समाज पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री मायावती की तानाशाही की पानी पी पी कर चर्चा करने वाले राजनीतिक दलों के नेता खुद प्रत्याशी चयन में किन कारणों से तानाशाही रवैय्या अपना कर अपनी पीठ ठोंक रहे है यह समझ से परे है |उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों ने बहुजन समाज पार्टी की मुखिया पर अपनी पार्टी के टिकेट वितरण प्रक्रिया पर तमाम सवाल उठाये थे और आज भी उठाते रहते है|बाहुबलियो,अपराधियो,दल्बदलुओ को भारी धन ले कर प्रत्याशी बनाने के आरोप मायावती और बसपा पर हमेशा से विपक्षी दल लगाते रहे है| विधान सभा २०१२के आम चुनाव के मद्देनज़र उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी,कांग्रेस,और पीस पार्टी ने तमाम विधान सभाओ में अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये है| समाजवादी पार्टी जो कि अपने संघर्षो और अपने पुराने कार्यकर्ताओ की मेहनत के बलबूते उत्तर प्रदेश में तेज़ी से बसपा सरकार का विकल्प बनी है, में भी विधान सभा प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया समझ के परे नज़र आ रही है| अपने स्थानीय व पुराने ,संघर्षशील समाजवादी संघर्ष के साथियो के रहने के बावजूद जिन सीटों पर बहुजन समाज पार्टी या अन्य दलों से हालिया शामिल लोगो को टिकेट दे दिया गया,वहा पर समाजवादी पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता हताश व निराश होकर घर बैठ चुका है| पुराने धुर समाजवादियो जिनको विधान सभा का चूनाव् नहीं लड़ना है ,जिन कार्यकर्ताओ को सिर्फ समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाने में जुटने की प्रबल इक्छा थी, वो भी बसपा से आये लोगो को प्रत्याशी बनाये जाने वो भी बिना किसी संघर्ष में शामिल हुये ,मायुश है और वार्ता में साफ़ तौर पर कहते है कि इन अवसरवादियो की मदद करने से बेहतर होगा कि हम किसी साफ़ छवि के प्रत्याशी की मदद करे| आज समाजवादी पार्टी के टिकेट वितरण में उपजा असंतोष सामने आ चुका है|प्रत्याशियो के आचरण की समीक्षा की बात ने समाजवादी कार्यकर्ताओ को एक आशा दिखाई है|अगर समाजवादी नेतृत्व अपने पुराने -संघर्ष शील साथियो को अपने साथ जुटा लेता है तो समाजवादियो के लिए उत्तर प्रदेश में राहें आसान हो जाएँगी | चुनाव जीतने के फेर में इस बार समाजवादी पार्टी ने भी सिधांतो को प्रत्याशी चयन में दर किनार किया है जिसका फायदा होने की जगह नुकसान होता दिखाई पड़ रहा है | कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के २०१२ चुनावो से बहुत उम्मीद है|इस चुनाव को राहुल गाँधी के मिशन के रूप में लिया जा रहा है|समाजवादी पार्टी से समाजवादी क्रांति दल होते हुये कांग्रेस में शामिल होकर गोंडा से सांसद निर्वाचित होने वाले बाराबंकी के निवासी और बाराबंकी के विकास पुरुष माने जाने वाले बेनी प्रसाद वर्मा इस समय कांग्रेस के महा मंत्री राहुल गाँधी के प्रिय पात्र बने हुये है|अभी विगत सप्ताह राहुल गाँधी के उत्तर प्रदेश के दौरे के दौरान घटित घटनाओ ने बेनी प्रसाद वर्मा -इस्पात मंत्री के राजनीतिक-व्यक्तिगत आभा-मंडल पर निः संदेह कालिख पोतने का काम किया है | अपने गृह जनपद बाराबंकी में दरियाबाद से कांग्रेस के टिकेट पर चुनाव लड़ चुके ,वर्तमान में भी चुनाव का टिकेट मांग रहे ,तत्कालीन पी सी सी सदस्य शिव शंकर शुक्ल से बेनी प्रसाद वर्मा के द्वारा किया गया दुर्व्यवहार उनके लिए मुसीबत बन चुका है|आपराधिक धाराओ में मुकदमा दर्ज होने के साथ साथ दरियाबाद विधान सभा में जहा से बेनी प्रसाद वर्मा अपने बेटे राकेश वर्मा -पूर्व कारागार मंत्री उत्तर प्रदेश को कांग्रेस के टिकेट से चुनाव लडवा रहे है,वहा पर पुराने कांग्रेसी नेताओ-कार्यकर्ताओ के द्वारा प्रति- दिन विरोध बैठक व इस्पात मंत्री का पुतला दहन किया जाना जारी है|बलराम पुर,गोंडा ,बहराइच आदि जगहों पर भी पुराने कांग्रेस्सियो ने इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का जमकर विरोध किया और यहाँ तक विरोध किया कि राहुल गाँधी के सामने ही बेनी प्रसाद वर्मा को जन सभा से मंच त्याग कर हटना पड़ा | पुराने कांग्रेसी नेताओ की उपेक्षा से पनपा असंतोष सामने आ गया |राहुल गाँधी के मिशन २०१२ में पलीता कांग्रेस के ही पुराने नेता-कार्यकर्ता लगा देंगे|कारण असंतोष के स्वर के कारण पर नज़र डालने की जगह पुराने कांग्रेसी नेताओ को कांग्रेस से ही निकल दिया गया है,अब यह नेताओ का असंतोष ना होकर कांग्रेस के और बेनी प्रसाद वर्मा के खिलाफ जन असंतोष में तब्दील हो रहा है| इधर घटित घटनाओ ने पुराने कांग्रेसी नेताओ में एकजुटता और संगठन में हो रही पुराने लोगो की उपेक्षा के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत का रास्ता दिखाया है| तेज़ी से उभरी पीस पार्टी तो अभी से बहुजन समाज पार्टी का दूसरा प्रतिबिम्ब मानी जा रही है|अल्प समय में लोकप्रिय हुई पीस पार्टी में भी सुरूआत से पार्टी का काम कर रहे लोगो का चुनाव के समय टिकेट काट कर नव आगंतुको को दिया जाना पीस पार्टी के नेताओ के मंसूबो को साफ़ दर्शाता है|अन्य दलों की चर्चा के कोई खास मायने नहीं है ,सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के टिकेट वितरण पर निगाहे है|भारतीय जनता पार्टी में भी जो संकेत मिल रहे है उसके हिसाब से टिकेट वितरण में दलबदलू,अवसरवादियो ,चापलूसों और पारिवारिक लोगो को भरपूर तवज्जो मिलेगी|अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि आन्दोलन में शरीक कार्यकर्ताओ-नेताओ की जगह,संगठन के धारणा-प्रदर्शन में लाठी खाने वालो की जगह जब दुसरे दलों से चुनाव लड़ने के लिए आये लोगो को भारतीय जनता पार्टी विधान सभा में प्रत्याशी बनाएगी तो परिणाम क्या आएगा यह बताने की जरुरत नहीं है|खैर अभी भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशी नहीं घोषित किये है इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता है|लेकिन संगठन में ,चुनावी संघर्ष में जमीनी कार्यकर्ता ,पुराने कार्यकर्ताओ को जो भी राजनीतिक संगठन ज्यादा से ज्यादा तवज्जो देगा उसको उसका फायदा भी मिलेगा| यह सत्य है की चुनाव में जीतना जरुरी होता है है लेकिन चुनाव जीतने के लिए अपने संगठन के जमीनी कर्ता-धर्ताओ को उपेक्षित करना और उनकी जगह दुसरे दलों से आये लोगो को थोपना गैर जरुरी राजनीतिक अवसरवादिता का परिचायक है,और फिर चुनाव जीतना भी मुश्किल हो जाता है |आज राजनीतक दलों के नेताओ ने संगठन में जिम्मेदारी से लेकर चुनावो में टिकेट वितरण तक की प्रक्रिया में संगठन के बनाये नियमो का खुद ही उल्लंघन करने में कोई कसर नहीं रखी है और अगर कोई कार्यकर्ता-नेता इस अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करता है तो उसको पार्टी विरोधी गतिविधिओ में लिप्त बता कर संगठन से बाहर का रास्ता दिखाना एक आसान सी प्रक्रिया बन चुका है|शायद राजनीतिक दलों के आलाकमान ने राजनीतिक कार्य कर्ताओ को बंधुआ मजदूर समझ लिया है और समझे भी क्यूँ ना ? क्या आगामी विधान सभा २०१२ में राजनीतिक कार्यकर्ता इस मसले पर एक जुट हो सकते है कि गैर राजनीतिक चरित्र के ,दल बदलू लोगो और आपराधिक प्रवृत्त के लोगो की जगह राजनीतिक सूझ-बुझ वाले ईमानदार ,जनता के लिए संघर्ष करने वाले प्रत्याशी की मदद करेंगे ,फिर चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल का हो या निर्दलिए ही हो| अगर राजनीति कार्यकर्ता इस तरह की कोई पहल करते है तो सामाजिक कार्यकर्ताओ और बुधिजीविओ को भी आगे बढ़ कर इनके संघर्ष में और नव सृजन में साथ देना चाहिए|

3 comments:

  1. bahut hi achaa aur sach likha hai aapne arvind jee..

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  2. युद्ध बन गए हैं अब चुनाव ...

    चुनावी टिकट पाना... एक युद्ध ..
    चुनाव प्रचार ..दूसरा युद्ध ..
    चुनाव प्रचार की तिथि समाप्ति के बाद... तीसरा युद्ध ..
    और चुनाव जीतना ..चौथा युद्ध...

    और फिर भूल जाओ सब कुछ और सबसे महत्वपूर्ण पांचवा युद्ध ... कार्यकाल के बाद अगले 5 वर्ष कैसे स्थापित हुआ जाए.. उसके लिए युद्ध ...

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