Sunday, December 30, 2012

गुज़रा राजनितिक परिदृश और जनमानस ------ अरविन्द विद्रोही

भारत जैसे विशाल भू भाग वाले देश में विभिन्न धर्म को मानने वालों को समानता का दर्ज़ा प्राप्त है । भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली में प्रत्येक नागरिक को अपना प्रतिनिधि निर्वाचन का अवसर प्राप्त है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था की सामान्य जनमानस को प्रदत्त ताकत ही है कि बहुमत प्राप्त सत्ता अहंकार में मदमस्त हो जाने वाले सत्ताधिसों को आमचुनावो में अपने एक एक मत से आम जनमानस सत्ता से बेदखल कर देता है। परिवर्तन का ऐसा तूफान उत्पन्न अहंकारी वा मदमस्त जनविरोधी सत्ताधारी के खिलाफ आम जनमानस में व्याप्त होता जाता है कि अपने को चतुर सुजान व काबिल समझने वाले तमाम राजनीतिज्ञों सहित राजनितिक ज्ञानियों के होश चुनाव नतीजों से फाख्ता हो जाते है । उत्तर प्रदेश के संपन्न हुए विधान सभा के 2012 आम चुनावों में जिस प्रबल बहुमत की प्राप्ति समाजवादी पार्टी को हुई उसकी उम्मीद खुद समाजवादी पार्टी नेतृत्व को नहीं थी लेकिन परिवर्तन का मान बना चुकी उत्तर प्रदेश के जनमानस ने अपना निर्णय हुए बहुजन समाज पार्टी को सत्ता से पदच्युत हुए समाजवादी पार्टी को बेहतर विकल्प मानते हुए सत्ता पे बैठा दिया । इसी दौरान हुए उत्तराखंड के विधान सभा आम चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त मिली और कांग्रेस ने यहाँ अपनी सरकार बना डाली । वर्ष के प्रारम्भ की बेला में जहां उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड-पंजाब मणिपुर -गोवा में चुनावी घमासान मचा था वहीं वर्ष 2012 के समापन बेला में हिमांचल प्रदेश व गुजरात में चुनावी दंगल अपने शबाब पे रहा । हिमांचल में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हारी और कांग्रेस को विजय की प्राप्ति हुई । गुजरात जहाँ पर भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की जबरदस्त घेरेबंदी में विपक्षी राजनितिक दलों के साथ साथ कुछ भाजपा नेता भी लगे थे वहां नरेन्द्र मोदी एक बार गुजराती जनमानस की पसंद बनकर उभरे । 2012 में संपन्न गुजरात के सिवाय सभी विधान सभा आम चुनावो में सत्ता धारी दल को सत्ता से बेदखल करने का कार्य आम जनमानस ने अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए किया । यह विचारणीय बिंदु है कि परिवर्तन के तूफान में एक राज्य गुजरात में तमाम विरोधाभास , घेरेबंदी के बावजूद नरेन्द्र मोदी तीसरी बार अनवरत गुजराती जनमानस के पसंदीदा व्यक्तित्व कैसे बने रहे ? निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की जनता के उम्मीदों पे अपने को खरा साबित किया है , लोकतंत्र में विरोध के लिए विरोध करते रहना एक राजनितिक फैशन व मानसिक-आर्थिक जरुरत की विषय हो सकती है कुछ लोगों के लिए । वर्ष 2012 राजनितिक दृष्टिकोण से चुनावी वर्ष रहा । आरोप -प्रत्यारोप रूपी चुनावी भाषणों के पश्चात निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और मुख्यमंत्रियों को उस उम्मीद को पूरा करने की दिशा में जुटना चाहिए जिसकी अपेक्षा करते हुए उनको आम जनमानस ने सत्ता सौपीं है । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी निःसंदेह अपने समर्थक गुजराती मतदाताओं की कसौटी पे खरे उतरे है और अपने अपने प्रदेश में आम जनमानस के हितों के कार्य करने के संकल्प को साकार रूप देने में अन्य निर्वाचित मुख्यमंत्रियों को जुटना चाहिए । इस वर्ष एक तरफ युवा चेहरा समाजवादियों की आशाओं के केंद्र बिंदु बनकर उभरे अखिलेश यादव ने संघर्ष के रास्ते उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करी वही कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश में तमाम बयानों -भाव -भंगिमाओं के प्रदर्शन , अपने आक्रोशित ह्रदय के जबरदस्त प्रदर्शन के बावजूद निराशा ही हासिल हुई । राहुल गाँधी को हार का जो स्वाद बिहार में नितीश कुमार ने चखाया उसको और तीखापन देने का कार्य उत्तर प्रदेश में क्रांति रथ पे सवार युवा समाजवादी अखिलेश यादव ने अपने सौम्य -सहज व्यवहार से अर्जित बहुमत के द्वारा किया । वर्षान्त 2012 में नरेन्द्र मोदी की गुजरात में सत्ता वापसी ने राहुल गाँधी की आगे की उम्मीदों पे भी ग्रहण लगा दिया है । दरअसल आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद पे बैठाने का मन बना चुकी है लेकिन गुजरात में नरेन्द्र मोदी की विजय ने कांग्रेस रणनीतिकारों को पेशोंपेश में डाल दिया है । उत्तर प्रदेश के भी दो महारथी क्रमशः समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती आगामी लोकसभा चुनावों को अपने आप को प्रधानमंत्री बनाने की सोच के तहत कार्य कर रहे है । उत्तर प्रदेश के इन दो महारथियों की नज़र उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों को जीतने पे है , अपने अपने राजनितिक लाभ के जातीय समीकरण को बुनने- गुनने में लगे इन दोनों राजनेताओं की अनदेखी करना न तो कांग्रेस के की है और न ही भाजपा के । समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव तो लोकसभा चुनावों के पश्चात गैर कांग्रेस - गैर भाजपा दलों के मोर्चे के गठन की बात कह भी चुके है । प्रसिद्ध विचारक गोविंदाचार्य ने भाजपा नीत राजग गठबंधन के अध्यक्ष धुर समाजवादी शरद यादव को प्रधानमंत्री पद का सर्वाधिक सुयोग्य राजनितिक व्यक्ति घोषित करके भविष्य की तरफ इंगित कर ही दिया है । भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की भारी तादात गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में अभी से घोषित करने की मांग अपने केंद्रीय नेतृत्व से कर रही है । कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ बने वातावरण व भ्रष्टाचार के नित नए मामलों ने एक के पश्चात् एक मुद्दों को जनमानस के सम्मुख रखा है । बहुमत के जादुई आंकड़ें से कांग्रेस की नित बढती दूरी की भरपाई के लिए कांग्रेस ने अपने विरोधी मतों के विभाजन की योजना तो बनायीं ही है , राहत और बख्शीश के सहारे मतदाताओं को लुभाकर उनके मतों पर डाका डालने की स्व कल्याणकारी योजना भी शुरू हो चुकी है । इसी वर्ष राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का निर्वाचन हुआ । चुनावी राजनीती से इतर वर्ष 2012 में शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे की लम्बी बीमारी के बाद हुए निधन की सूचना मात्र से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई थम गयी । महाराष्ट्र सहित देश के हर हिस्से से शोक संवेदना के सन्देश उनके परिजनों को प्रेषित हुए । शोकाकुल - ठहर सी गई भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई के तक़रीबन 25लाख मुम्बईकरों ने अपने ह्रदय सम्राट की अंतिम यात्रा में अश्रु पूरित ह्रदय समेत शामिल होकर श्रधा सुमन अर्पित किये । आम जनमानस के ह्रदय में बसे रहने का इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकता है कि कभी न थमने वाले मुंबई कर सिसकते हुए ठहर से गये थे । लगभग सभी राजनितिक दलों के नेताओं ने शिवसेना प्रमुख बल ठाकरे को अपनी श्रधांजलि प्रेषित करते हुए उन्हें महाराष्ट्र की राजनीती में कभी न भुला पाने वाला व निर्णायक जननेता कहा । वर्ष में तमाम अन्य वरिष्ठ राजनेताओं की मृत्यु हुई परन्तु जो शोक का माहौल शिवसेना प्रमुख के के मौके पे व्याप्त हुआ उसने यह साबित कर कि तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद वो मुंबई करों सहित हिन्दुओ के ह्रदय सम्राट थे । वर्ष 2012 में तमाम नए राजनितिक दलों के गठन का ऐलान भी हुआ है जिनके राजनीतिक उपलब्धियों में सिर्फ आरोपों की फेहरिस्त जारी करना है । चंद लोगों के द्वारा लोकतंत्र , संसद -सांसदों , राजनितिक दलों को कोसते कोसते खुद भी वही बनने की दबी मनोकामना भी इसी वर्ष जगजाहिर हो ही गयी । भारत की राजनीती में चुनावी दंगल से इतर सामाजिक - राजनितिक -आर्थिक मुद्दों पर इस वर्ष बहस आन्दोलन अपने चरम के शिखर को छुते नज़र आये । विदेशों में जमा काला धन लाने की मांग , भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण हेतु लोकपाल विधेयक की मांग सामाजिक मुद्दों से राजनितिक मुद्दों में तब्दील चुकी है । राजनितिक दलों की कार्यप्रणाली से ऊबे लोगों ने अपनी सारी उम्मीद व उर्जा भ्रष्टाचार विरोधी जन अन्दोलनो में लगायी लेकिन जल्द ही उस आम जन मानस को घोर निराशा का सामना करना पड़ा जब आंदोलन के चर्चित चेहरे अरविन्द केजरीवाल ने आन्दोलन के अगुवा अन्ना हजारे की मंशा के विपरीत राजनितिक दल के गठन का ऐलान कर दिया । जन आन्दोलन अब बिखराव के दोराहे पे आ पंहुचा था और सामाजिक चेतना और जन मानस की शक्ति के बलबूते राजशक्ति को झुकाने की अन्ना हजारे की मंशा पर गहरा आघात अरविन्द केजरीवाल ने राजनितिक दल के गठन के द्वारा किया । सामाजिक आन्दोलन के बैनर और अपने नाम के इस्तेमाल न करने की हिदायत देते हुए अन्ना हजारे ने जनादोलन जारी रखने और अरविन्द केजरीवाल द्वारा गठित राजनितिक दल से कोई वास्ता न रखने की बात अंत में कह ही दी । भ्रस्टाचार , महंगाई , बेकारी , बिगड़ी कानून व्यवस्था से त्रस्त भारत के लोगो के सम्मुख समर्पण और संघर्ष दो रास्तों में से एक के चुनाव का विकल्प आन पड़ा है और सामाजिक चेतना और जनमानस के उद्वेलित मन ने सड़क पर उतर कर वर्तमान हुक्मरानों और व्यवस्था को चुनौती देने का साहस दिखाया । इसी जन शक्ति के सहारे अति महत्वकांछी चन्द लोगो ने अपना राजनितिक व आर्थिक मकसद पूरा करने की जुगत लगा ली है । पदोन्नति में आरक्षण मसले पर समाजवादी पार्टी ने सड़क से संसद तक जमकर विरोध किया और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की नूतन छवि सवर्णों के मध्य अपने हित चिन्तक व रक्षक की बन कर उभरी है । प्रोन्नति के मुद्दे पर मचे घमासान के दौरान ही समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने संप्रग सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार व कांग्रेस प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को सी बी आई का भय दिखा कर ब्लैक मेल कर रही है । राजेंद्र चौधरी ने यह भी कहा था कि संप्रग सरकार देश के आर्थिक व सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने की साजिश कर रही है । उसने पहले देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी से उतारने के लिए एफ डी आई को मंजूरी दी और अब प्रोन्नति में आरक्षण बिल लाकर सामाजिक विषमता और वैमनस्य को बढ़ावा देने में लगी है । वही बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती - पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने अपने परंपरा गत अधर मतों के हित के लिए राज्य सभा में अपने अंदाज़ में आवाज़ बुलंद करी, मायावती पर संसदीय मर्यादा से बाहर होने का आरोप तक लगा । पिछड़े वर्ग के लिए भी पदोन्नति में आरक्षण की मांग करके मायावती ने पिछड़ों को आकर्षित करने का दांव चला है । कांग्रेस अपने फैसलों से खुद को संकट में डालने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखे है और भाजपा में अंदरखाने से आरक्षण मामले में नेतृत्व के के आवाज़ बुलंद हुई । एफ डी आई को मंजूरी मिलने के साथ ही साथ इसकी मंजूरी के मामले में रिश्वत खोरी का मामला भी सामने आया । अमेरिकी सीनेट की रिपोर्ट के अनुसार वालमार्ट ने भारत में मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रवेश के लिए लाबिंग पर लगभग 125करोड़ रूपये खर्च किये है । विपक्ष के जबरदस्त दबाव के चलते सरकार ने वालमार्ट मामले की समय बद्ध जाँच सेवा निवृत न्यायाधीश से करने की घोषणा की । केंद्र सरकार दुर्भाग्य वश अपने हर कदम से खुद को ही परेशानी में डालती जा रही ही है । वर्ष 2012 के अंतिम माह में दिल्ली में भी के अन्य राज्यों की तरह शर्मसार करने वाली सामूहिक बलात्कार की एक के बाद एक जघन्य घटना घटित हुई । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपने बयान कि 5व्यक्ति के परिवार का महीने का खर्च 600 रूपये काफी है ,से एक बार फिर से विपक्ष के निशाने पे आई । भाजपा के प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नकवी ने संप्रग सरकार की सब्सिडी के बदले नगदी देने की योजना के सन्दर्भ में शीला दीक्षित के बयान को गरीबों का अपमान करार दिया । अपमान तो शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली सरकार इंडिया गेट पर युद्ध स्मारक बनाये जाने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का विरोध करके उन शहीदों का भी कर चुकी है जिन्होंने आजादी के पश्चात देश हित में अपने आप को कुर्बान किया । दरअसल रक्षा मंत्री ए के एंटोनी की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह ने इंडिया गेट के समीप प्रिंसेस पार्क में स्वतंत्रता के पश्चात शहीद हुये सैनिकों की याद में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाने की सिफारिश की है और इस सिफारिश का विरोध दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने करते हुए कहा कि इससे इलाके का माहौल प्रभावित होगा और घुमने - फिरने के मकसद से यहाँ आने वाले लोगो की आवा जाही पर भी असर पड़ेगा । दिल्ली की मुख्यमंत्री शिला दीक्षित की मानसिकता व सोच का दायरा उनके बयानों से समझ आ ही जाता है । शहीदों की याद में बनने वाले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण पे एतराज निःसंदेह घृणित सोच का परिचायक है ।

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