Sunday, November 21, 2010

समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

समाजवादी आन्दोलन,संघर्ष और मुलायम सिंह यादव

अरविन्द विद्रोही

समाजवादी आन्दोलन की विरासत को संजोंये हुए धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री उ0प्र0शासन के पद पर रहते हुए 1995 में कहा था,-डा0लोहिया जरूर चले गये हैं दुनिया से लेकिन उनके विचारों को कोई मिटा नहीं सकता।उनके विचारों पर चलना पडे़गा।आज उसी पर चलने की हम लोग कोशिश कर रहें हैं।चाहे विशेष अवसर की नीति हो,चाहे भूमि सेना का गठन हो,चाहे अंग्रेजी हटाओ का आन्दोलन हो,उसका समर्थन हम आज कर रहे हैं,सरकार में रहकर भी कर रहे हैं।

भारत में समाजवाद की सोच,विचारधारा का जन्म भारत की ब्रितानिया हुकूमत से जंग-ए-आजादी के दौरान जेल के सींखचों,काल कोठरी में हुआ था।राजनैतिक आजादी व मूल्यों के साथ-साथ भारत में समाजवाद मूलतःनैतिक मूल्यों से भी जुड़ा हुआ है।समाजवादी आन्दोलन के पुरोधा आचार्य नरेन्द्र देव ने महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन,व्यक्तित्व व जंग-ए-आजादी के आन्दोलन की जानकारी हासिल करके ही समाजवादी आन्दोलन को समझने पर जोर दिया था।लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने जीवन की अंतिम सांस तक समाजवाद,गाँधीवाद,सर्वोदय ओर सम्पूर्ण क्रंाति की अवधारणाओं के लिए जूझते रहे।जे0पी0 का भी सारा आन्दोलन गाँधी जी के सिद्धान्तों और समाजवाद के समीकरणों पर ही आधारित है।समाजवादी संगठन और समाजवादी नेता पूर्णरूपेण महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित थे।दरअसल वास्तविकता ही है कि डा0लोहिया के देहावसान के पश्चात् समाजवादी आन्दोलन में बिखराव आ गया।जे0पी0 का व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया जनान्दोलन मात्र सत्ता परिवर्तन बन के रह गया।डा0लोहिया के बाद,1967 से लेकर 1992 तक के बीच समाजवादी आन्दोलन निरन्तर बिखरता और टूटता ही रहा।निरन्तर टूटन के बावजूद आज समाजवादी आन्दोलन की प्रासंगिकता बनी रहने के पीछे मुख्य बात यह है कि 1992 से जब से मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की पुर्नस्थापना की और 4-5नवम्बर,1992 को बेगम हजरत महल पार्क लखनउ में सम्पन्न हुए समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मेलन में भारत के लगभग सभी प्रदेशों के प्रतिनिधि शामिल हुए।इस सम्मेलन से मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर डा0लोहिया के कार्यक्रम अन्याय के विरूद्ध सिविल नाफरमानी,सत्याग्रह,मारेंगें नहीं लेकिन मानेंगें नहीं,अहिंसा,लघु उद्योग,कुटीर उद्योग आदि मुद्दों को जीवित करने का सराहनीय कार्य किया।इस वक्त की चुनौतियों को स्वीकार करके मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी चरित्र के वास्तविक रूप को उभारा।डा0लोहिया के दामन को जिस इच्छा शक्ति के सहारे मुलायम सिंह यादव ने पकड़ा था,उसी इच्छा शक्ति को लोगों ने जिद्दीपन भी करार दिया।भारतीय राजनैतिक पार्टियों की कार्यशैली और संगठनात्मक प्रक्रिया में निरन्तर गिरावट जारी थी और आज भी जारी है।भीड़ का पैमाना ही राजनीति की सफलता आंकी जाती रही है।समाजवादी पार्टी के इस स्थापना सम्मेलन में सबसे अच्छी बात थी कि इसमें भीड़ की जगह तपे तपाये समाजवादी विचारों के वाहक गण थे।यह समाजवादी विचारों के लोग लोहिया के विचारों और समाजवाद की स्थापना के ध्येय से एकत्र हुए थे।इस समय तक समाजवादी डा0लोहिया द्वारा दिये गये सटीक मुहावरों व नारों को लगभग विस्मृत कर चुका था।डा0लोहिया के मुहावरे वैचारिक सोच को तीव्र करने के साथ-साथ कर्म करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।अंग्रेजी हटाओ, जाति तोड़ो,दाम बांधो,हिमालय बचाओ इन सब आन्दोलनों में कर्म की प्रधानता के साथ-साथ प्रेरक शक्ति भी है।डा0लोहिया के विचारों और अनुशासन की छत्रछाया में मुलायम सिंह यादव ने कर्म और भाषा को एक साथ मिलाकर सकारात्मक रूप प्रदान करने की कार्यशैली को पुर्नजीवित किया।गाँव को आत्मनिर्भरता के प्रश्न पर मुलायम सिंह ने कहा था,‘‘हम चाहते है। कि हमारे गाँवों का विकास हो,प्राथमिकता गाँव के विकास की हो’’व्यवस्था के सवाल पर मुलायम सिंह ने कहा था,‘‘व्यवस्था परिवर्तन का मतलब है सामाजिक परिवर्तन,सामाजिक परिवर्तन का मतलब सामाजिक न्याय नहीं है। सामाजिक न्याय तो केवल एक अंग है सामाजिक परिवर्तन का।जहाँ पर पिछड़ों का बहुमत है,वे दबंग हैं और अगड़ी जाति के लोग कमजोर हैं,तो अगड़ी जाति के लोगों को भी वहाँ परेशान किया जाता है।गाँव में उनका पानी रोका जाता है,नाला रोका जाता है,ट्यूबवेल पर पानी नहीं लगाने देते।यह भी स्थिति आज है।इसलिए हम सम्पूर्ण व्यवस्था में परिवर्तन चाहते हैं,व्यवस्था परिवर्तन चाहते हैं,सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं जिसमें शोषण व अत्याचार समाज में किसी का भी न हो।चाहे गरीब हो,चाहे अमीर हो,चाहे अगड़ा हो,चाहे पिछड़ा हो।इस तरह का समाज हम चाहते हैं।हम समता चाहते हैं,सम्पन्नता चाहते हैं,परिवर्तन चाहते हैं,बख्शीश की राजनीति खत्म करना चाहते हैं,ताकि समाज में कोई किसी की कृपा पर न रहे।ऐसा समाज बनाने का हमारा सपना है।इसीलिए हम चाहते हैं कि हमारा देश स्वावलम्बी बने।देश स्वावलम्बी बनेगा तो हमारा स्वाभिमान जागेगा,हमारे देश का स्वाभिमान जाग जायेगा।हम अपने गौरव को,स्वाभिमान को कायम रखना चाहते है। और आगे बढ़ाना चाहते है।।यही हमारी नीति है।’’इस वचन पर मुलायम सिेह यादव ने कभी समझौता नही किया।

आज भी बहुत से पेशेवर और शौकिया राजनीति करने वाले यह समझते हैं कि समाजवादी आन्दोलन और समाजवादी पार्टी का गठन चुनाव और सत्ता पर काबिज होने के उद्देश्य मात्र के लिए मुलायम सिेह यादव ने किया है।डा0 लोहिया के व्यक्तित्व को आत्मसात् कर चुके मुलायम सिेह यादव जब डा0 लोहिया के ही अंदाज में मैं अकेले ही चलूगा का उद्घोष करते हैं तो लोग परेशान हो जाते हैं।मात्र 12वर्ष की उम्र में ही डा0राम मनोहर लोहिया के नहर आन्दोलन में जेल जाने वाले मुलायम सिंह यादव का राजनैतिक जीवन संघर्षों व त्याग-समर्पण की देन है।मुलायम सिंह यादव ने कई बार अपने भाषणों में कहा है कि,-देश की एकता और अखण्डता,आर्थिक शोषण से मुक्ति तथा दलितों और पिछडे वर्गों के हितों की रक्षा और अल्पसंख्यक मुसलमानों और हर प्रकार से पीड़ित नारी जाति की मुक्ति के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी का पुर्नगठन किया है।सत्ता साधन है,साध्य नहीं हो सकती है,उनकी समाजवादी पार्टी सत्ता में आये या न आये किन्तु उनकी नीतियों में परिवर्तन नहीं हो आयेगा।आज की तारीख में भी समाजवादी विचारधारा के लोग,आम जन को अगर किसी राजनैतिज्ञ से जनता के हित के लिए संघर्ष की आशा रखता है तो वह सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी के अगुआ मुलायम सिंह यादव ही हैं।उ0प्र0 सहित समूचे देश में किसान बेहाल है,भूमि अधिग्रहण के मामलो ने किसानों को संकट में डाल दिया है।मंहगाई के दानव ने आम नागरिकों की दो वक्त की रोटी को भी निगल लिया है।मंहगाई के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन ने समाजवादी नेतृत्व के प्रति जनता में विश्वास जगाया है।

मुलायम सिंह यादव अपने संघर्ष व नेतृत्व क्षमता की बदौलत आज समाजवादी आन्दोलन के सबसे बड़े अगुआ व संगठनकर्ता हैं।मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को समाजवादी आन्दोलन का पुनः अध्ययन करना चाहिए।तात्कालिक अन्याय का प्रतिरोध जिस बेबाकी से और बिना राजनैतिक नुकसान की परवाह किये मुलायम सिंह यादव करते हैं वह एक नजीर के रूप में सभी के सामने है।डा0 लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने तो अपने जीवन में अपने नेता लोहिया के सिद्धान्त व विचारों को आत्मसात् किया और उनको बखूबी निभाया भी।लेकिन अफसोस जनक बाद यह है कि समाजवादी पार्टी के लोग अपने नेता मुलायम सिंह यादव के संघर्ष-कत्र्तव्य पथ पर चलने की जगह सिर्फ सियासी गोष्ठियों और चुनावी तिकड़म में लगे रहते हैं।समाजवादी आन्दोलन व पार्टी की स्थापना सत्ता पाना ही नहीं है-यह तथ्य जब तक समाजवादी पार्टी के लोगों के द्वारा आत्मसात् नहीं किया जायेगा,तब तक कोई भी बड़ा संघर्ष व आन्दोलन नही खडा हो पायेगा।डा0 लोहिया के कार्यक्रम जो कि मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन के लक्ष्य बना लिए,उन लक्ष्यों को पूरा करने का जज्बा अब समाजवादियों में दिखाई पड़ना चाहिए।छात्रसंघ बहाली का आन्दोलन,मंहगाई के खिलाफ संघर्ष,भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा,नौकरशाही व भ्रष्टाचार के खिलाफ जन जागरण अभियान,हिन्दी आन्दोलन,बिजली की समस्या पर लगातार आन्दोलन,जन समस्याओं पर जेल भरो आन्दोलन लगातार चलाते रहना समाजवादी आनदोलन की मूल प्रवृत्ति है।जनता के लिए,जनता के मुद्दों पर संघर्ष तैयार करना समाजवादी आन्दोलन की पहचान है और इस पहचान को बनाये रखने में मुलायम सिंह यादव सदैव सफल रहे हैं।अब खुद को डा0 लोहिया,मुलायम सिंह यादव और समाजवादी आन्दोलन का सिपाही साबित करने की बारी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की है।

1 comment:

  1. Kaun sa samajvadi andolan ye kahta tha ki nihathe karsevakon par goli chalyee jay...
    Dr Lohia ke adarsh lekar bahut log chale lekin beimaan aur bhrasht logon kee vajah se samaajvaadi andolan akheeri saanse le raha hai.

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