Friday, October 29, 2010

अभी तो अधूरा संकल्प है ।

प्रेरणा मिलेगी ,

कैसे ? कब ? कहाँ ?

आदर्श बचे ,

कहाँ ?

ढूढ़ता हूँ भीड़ में,

शायद मिल जाये भीड़ में ।

और यहाँ भीड़ ,

समूह है भेड़ों का ।

चरवाहे हैं वही,

नेता,अपराधी व नौकरशाह ।

जो ये कहें,करते रहो,

चुपचाप जीते हुए मरते रहो ।

चुप रहो,शान्त रहो,

शान्ति ही जीवन है ।

पर क्या यह सत्य है ?

अभी तो अधूरा संकल्प है ।।।।

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