Tuesday, March 1, 2011

अजब मठाधीश की गजब कहानी

अजब मठाधीश की गजब कहानी
Rashmi Singh
Disclaimer: इस कहानी के सारे पात्र और स्थान काल्पनिक हैं. लेकिन इसका सम्बन्ध कुछ जीवित व्यक्तियों से है और यह कहानी सच्ची घटनाओं पर आधारित है.



एक मठ था. बहुत बड़ा मठ था. लोग मिलजुल कर रहते थे उसमे. मठाधिशो की भी बहुत इज्जत थी उसमे. गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन बड़े अच्छे ढंग से होता था.

उस मठ के शिष्यों में से एक थे श्री पल्टू राम. गजब के पल्टू थे वे. जिधर पलड़ा भारी होता था पलट जाते थे. उनका सारा समय मठाधिशो के पीछे ही जाता था. मठाधिशो के बहुत सारे काम वो खुद ही कर दिया करते थे. उनकी एक और खासियत थी वो जो भी काम करते थे चद्दर ओढ़ के. खैर, मठाधिशो के काम करते-करते उनके मन में एक दिन भावना जगी की काश मैं भी किसी मठ का मठाधीश होता. भावना क्या जगी, उन्होंने तो बस ठान लिया की मुझे भी मठाधीश बनना है. लेकिन, उनको ये पता था की इस मठ में तो कोई संभावना नहीं है. तो उन्होंने एक नया मठ बनाने का निर्णय किया और लग गए मठ बनाने में.

उन्हें ये भी अच्छी तरह पता था की नया मठ बनाना इतना आसान नहीं है और इस मठ से भी लोग उनके मठ में ऐसे नहीं जायेंगे. इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए उन्होंने पहले तो लोगो की बुराई दुसरे के सामने करनी शुरू की और बहुत सारे फर्जी शिष्यों को इकठ्ठा करना शुरू किया. इसके लिए उन्होंने खूब मेहनत की. वो मठ बनाने के लिए दिन में १८ घंटे काम करने लगे. उन्होंने कुछ फर्जी शिष्याएं भी बना ली ताकि पुराने मठ के शिष्यों को ये शिष्याएं लुभा के उनके मठ में ले आये. खैर उनकी मेहनत रंग लायी और उनका एक मठ तैयार हो गया. उस मठ में उन्होंने फर्जी शिष्य-शिष्याओं को भर दिया ताकि लोगो को लगे की ये मठ चल निकला है. चुकी उनके मठ में बहुत सारी फर्जी शिष्याएं थी, तो शिष्य भी आकर्षित हो के आने लगे.

ऐसे करते-करते पल्टू राम की मेहनत रंग लाने लगी. लेकिन पल्टू राम को संतोष कहाँ ? उन्हें तो ज्यादा से ज्यादा शिष्य चाहिए थे. इसके लिए उन्होंने नया तरीका निकला. उन्होंने अपने फर्जी शिष्य-शिष्याओं को अलग-अलग मठों जो की अन्य क्षेत्रो के भी थे ,में शिष्य बनवा दिया. हालाँकि उनके मठ का क्षेत्र कुछ और था लेकिन उनको इससे क्या लेना-देना था, उन्हें तो ज्यादा से ज्यादा शिष्य चहिये थे जो उनका गुणगान कर सके.

वो सारे लोग अलग अलग क्षेत्रो से शिष्यों को इकठ्ठा कर उनके मठों में भेजने लगे. अब उनके शिष्यों की संख्या और भी ज्यादा हो गयी. वो शिष्यों के गुणगान करते, बदले में शिष्य भी उनका गुणगान करने लगे. अब पल्टू राम की दूकान अच्छी चलने लगी. वो रोज नयी तरह की बातें करते; कभी हंसी-मजाक तो कभी कुछ और.

लेकिन कहानी में नया मोड़ आने लगा. वो शिष्य जो दुसरे मठों से भगाकर लाये गए थे उन्हें लगने लगा की मठाधीश तो कुछ करते नहीं, खाली बातें करते हैं. अब ये पल्टू राम के लिए चिंता का विषय बन गया. खैर, हमारे पल्टू राम भी कहाँ ऐसे हार मानने वाले थे. उन्होंने नयी स्कीम निकाली. उन्होंने शिष्यों को बोला की चलो समाज सेवा करते हैं. अब जो गंभीर शिष्य थे वो फटाक से तैयार हो गए और साथ में पल्टू राम की गुणगान फिर से होने लगी. ऐसे करते करते उन्होंने ४ साल निकाल दिए. लोग भी सोचते रहे की पल्टू राम जी अब कुछ करेंगे की तब कुछ करेंगे, लेकिन , पल्टू राम तो कहाँ कुछ करने वाले थे. अब जब ४ साल तक कुछ नहीं हुआ तो आवाजें फिर से उठने लगी. लेकिन पल्टू राम के पास इसका भी जवाब था. जो आवाज़ उठती थी, उसको वो रातों रात मठ से गायब कर देते थे और अपने किसी फर्जी शिष्य से अपनी बड़ाई करवाने लगते थे. इस तरह से उनकी गाड़ी बढ़ने लगी.

लेकिन कहानी में बड़ा मोड़ तब आया जब कुछ उनके शिष्य जो उनकी समाज सेवा की बातें सुन सुन के गंभीर हो गए थे, सही में कुछ करने का सोचने लगे. अब जा के पल्टू राम की चिंता बढ़ी. उन्होंने सोचा की अब तो कुछ करना ही पड़ेगा ऐसा लगता है. तो उन्होंने शिष्यों की बैठक बुलाई और बाते की हम लोग समाज सेवा अब बहुत जल्दी ही शुरू करेंगे, आप लोग अब पैसे की व्यवस्था करना शुरू करें. ऐसा सुनना था की सारे शिष्य खुश हो गए. पैसा इकठ्ठा होने लगा. पल्टू राम के दिन अच्छे निकलने लगे और उनकी वाहवाही फिर से होने लगी. लेकिन, जब पैसे इकट्ठे होने लगे तो लोग सवाल भी पूछने कगे की पैसे तो इकट्ठे हो गए अब समाज सेवा कब करना है. पल्टू राम को तो कहाँ कुछ करना था. ज्यादा असंतोष देख उन्होंने शिष्यों को ही बांटना शुरू कर दिया. उन्होंने एक नयी स्कीम निकाली. अब वो शिष्यों में इनाम बांटने लगे. अलग अलग वर्गो के इनाम बना दिए जैसे सबसे अच्छा शिष्य, सबसे ज्यादा बोलने वाला शिष्य, सबसे ज्यादा घुमने वाला शिष्य आदि आदि. अब शिष्य भी इन सब चीजों के पीछे व्यस्त होने लगे. और पल्टू राम जी ने भी अपने एक दो फर्जी शिष्यों से कहवा कर अपने आपको को भी महान घोषित करवा लिया.

उनकी मठ में नए नए लोग आने लगे. वो भी पल्टू राम का गुणगान करने लगे ये जान कर की पल्टू राम जी समाज सेवक हैं. इस बीच पल्टू राम जी अलग अलग मठों से लोगो को भगाकर लाते रहे और अपने मठ में शिष्यों की संख्या अच्छी खासी कर ली.

लेकिन कुछ कुछ शिष्य भी कहाँ मानने वाले थे. उन्होंने फिर सवाल पूछने शुरू कर दिए. अब तो पल्टू राम जी को लगा की कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. अब तो पैसे भी इकट्ठे हो गए हैं. लोगो को पैसा तो वापस कर नहीं सकते ये बोलकर की मैं समाज सेवा नहीं कर सकता. खैर, अब उन्होंने अपनी बुद्धि लगायी और फिर एक उपाय निकाल लिया. ये उपाय अपने आप में अनूठा था. ये उपाय था "ठेके पर समाज सेवा" का. उन्होंने ये पैसे किसी और समाज सेवी को भेज, ठेके पर समाज सेवा करने की ठान ली. लोगो को बता भी दिया. लोग भी अलग अलग माध्यमो से प्रचार करने लगे पल्टू राम जी के महानता की. लेकिन पल्टू राम जी तो अपनी हरकतों से कहाँ बाज आने वाले थे. उन्हें लगा की इस चीज को जितना चला सकूँ चलाना चाहिए. एक बार ठेके पर समाज सेवा करा दिया तो फिर कौन पूछेगा. इसके लिए वो ठेके पर समाज सेवा की रोज-रोज नयी -नयी तारीखे रखने लगे. हालत ये है की पल्टू राम जी अभी भी तारीखें ही रख रहे हैं. और लोग अभी भी उनकी महानता का गुण ही गा रहे हैं.

खैर, छोडिये पल्टू राम जी को अभी तक ये कहानी यही तक है. जब कहानी आगे बढ़ेगी, तो मैं फिर बताउंगी. तब तक के लिए आप भी पल्टू राम जी की बातों का आनंद लीजिये.

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