Wednesday, November 17, 2010

अहिंसा-सत्याग्रह के राही थे क्रान्तिकारी

अहिंसा-सत्याग्रह के राही थे क्रान्तिकारी

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी आज हमारे बीच सशरीर नहीं हैं। महात्मा गाँधी के आदर्श, सोच हमारे लिए मार्गदर्शक बनकर विद्यमान हैं। ‘‘अहिंसा परमों धर्मः‘‘ के मूर्त रूप में अपने जीवन में उतार चुके महात्मा गाँधी के अनुयायियों की लम्बी फेहरिस्त है। यहाँ चर्चा महात्मा गाँधी के उन दो अनुयायियों की कर रहा हूँ जो ‘‘सत्याग्रह‘‘ और ‘‘अहिंसा‘‘ को अपने जीवन में अंगीकार कर क्रान्ति मार्ग के सेनानी ही नहीं वरन् अमिट हस्ताक्षर बने। यह चन्द्रशेखर आजाद ही थे जिन्होंने मात्र 14वर्ष की उम्र में महात्मा गाँधी के द्वारा प्रेरित असहयोग आन्दोलन में शिरकत की। यह वह समय था, जब सम्पूर्ण भारत में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा था और उनकी होली जलाई जा रही थी। इसी दौरान ब्रिटेन के युवराज ड्यूक ऑफ विण्डसर का भारत आगमन हुआ, युवराज की यात्रा का पूरे भारत में जबरदस्त विरोध हुआ। सर्वत्र हड़ताल की गई। महात्मा गाँधी को 6माह का कारावास हुआ। चन्द्रशेखर आजाद ने बनारस के सरकारी विद्यालय पर धरना दिया। पकड़े जाने पर न्यायाधीश खारेघाट के सवालों के जवाब में- नामःआजाद, पिताःस्वतन्त्र, निवासःजेलखाना देने पर आजाद को पन्द्रह कोड़ों की सजा मिली।आजादी का दीवाना यह वीर बालक सेनानी, महात्मा गाँधी का अनुयायी वन्देमातरम और महात्मा गाँधी की जय बोलते-बोलते कोड़ों को सहते-सहते मातृभूमि की गोद में मूर्छित हो कर गिर पड़ा था।कालान्तर में चौरी चौरा काण्ड़ के पश्चात् शचीन्द्रनाथ सान्याल के दल ‘‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन‘‘ से आजाद जुड़ गये। सत्याग्रह और अहिंसा का यह सिपाही भारत की जंग-ए-आजादी में क्रान्ति का संगठक बना। इतिहास साक्षी है कि आजाद तो पैदा ही भारत की आजादी की लड़ाई में सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हुए थे। अब बात करते हैं- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कीं। सशस्त्र क्रान्ति के सेनानायक सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के जो सूत्र महान क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस से पकड़े व फौज का पुर्नगठन कर आजादी का संघर्ष छेड़ा, वह अविस्मरणीय है। आजाद हिन्द फौज के इस महानायक के दिल में महात्मा गाँधी के प्रति, उनके विचारों के प्रति अपार श्रद्धा व विश्वास था। नेताजी ने ही सर्वप्रथम रंगून रेडियो से महात्मा गाँधी को राष्टपिता कहकर सम्बोधित किया था। सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था कि एक बार भारत स्वतन्त्र हो जाये, तो इसे मैं गाँधी जी को सौप दूंगा और कहूँगा कि अब इसे आपकी अहिंसा की सबसे ज्यादा जरूरत है।‘‘

ध्यान देने की बात यह है कि क्या वजह रही कि गाँधी को मानने वालों ने, सत्याग्रह और अहिंसा का पालन करने वालों ने सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग अपनाया। क्या ये सशस्त्र क्रान्ति के सेनानी सत्याग्रही नहीं रहे, क्या इन क्रान्ति के वाहकों ने अहिंसा का मार्ग त्याग दिया और ये हिंसक हो गये थे? सत्याग्रह और अहिंसा को स्पष्ट करते हुए भगवती चरण वोहरा ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन की ओर से ‘‘बम का दर्शन‘‘ लेख लिखा, जिसका शीर्षक ‘‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन का घोषणा-पत्र‘‘ रखा गया। क्रान्तिकारियों के बौद्धिक नेता सरदार भगत सिंह ने जेल में इसे अंतिम रूप दिया। 26जनवरी,1930 को यह पर्चा पूरे देश में वितरित किया गया। इसमें लिखा गया कि- ‘‘पहले हम हिंसा और अहिंसा के प्रश्न पर ही विचार करें। हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया है, और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है, क्योंकि इन शब्दों से दोनों ही दलों के सिद्धान्तों का स्पष्ट बोध नहीं हो पाता। हिंसा का अर्थ है- अन्याय करने के लिए किया गया बल प्रयोग, परन्तु क्रान्तिकारियों का तो यह उद्देश्य नहीं है। दूसरी ओर अहिंसा का जो आम अर्थ समझा जाता है, वह है आत्मिक शक्ति का सिद्धान्त। उसका उपयोग व्यक्तिगत तथा राष्टीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। अपने आप को कष्ट देकर आशा की जाती है कि इस प्रकार अन्त में अपने विरोधी का ह्दय-परिवर्तन सम्भव हो सकेगा। आगे लिखा कि,- ‘‘एक क्रान्तिकारी जब कुछ बातों को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी मांग करता है, अपनी उस मांग के पक्ष में दलीलें देता है, समस्त आत्मिक शक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है, उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है, इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बल भी प्रयोग करता है। इसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारें, परन्तु आप इन्हें हिंसा के नाम से सम्बोधित नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना कोष में दिये इस शब्द के साथ अन्याय होगा। ‘‘सत्याग्रह के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा गया कि,- ‘‘सत्याग्रह का अर्थ है सत्य के लिए आग्रह। उसकी स्वीकृति के लिए केवल आत्मिक शक्ति के प्रयोग का ही आग्रह क्यो।? इसके साथ-साथ शारीरिक बल-प्रयोग भी क्यों न किया जाये? क्रान्तिकारी स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपनी शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों के प्रयोग में विश्वास करता है, परन्तु नैतिक शक्ति का प्रयोग करने वाले शारीरिक बल प्रयोग को निषिद्ध मानते हैं। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि आप हिंसा चाहते हैं या अहिंसा, बल्कि प्रश्न तो यह है कि आप अपनी उद्देश्य प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते हैं, या केवल आत्मिक शक्ति का? ‘‘इस प्रकार हम पाते है कि क्रान्तिकारी सत्याग्रही तो थे ही, क्योंकि उनका उद्देश्य ब्रितानिया हुकूमत से भारत की आजादी था, साथ ही साथ वे अहिंसा के भी पुजारी थे। वे हिंसक कदापि नहीं थे, वे तो अत्याचारियों के सर्वनाश करने की राम-कृष्ण-शिव की परम्परा के पालनकर्ता मात्र थे।

जब-जब महात्मा गाँधी के बताये रास्तों, अनुनय विनय, भूख हड़ताल, सत्याग्रह, धरना आदि से भारत के नागरिकों की बात नहीं सुनी गई तब-तब इन्हीं गाँधी को मानने वाले सत्याग्रहियों ने क्रान्तिकारियों का सशस्त्र मार्ग अपनाया है। राम द्वारा तीन दिनों तक निवेदन के पश्चात् भी समुद्र द्वारा रास्ता न दिये जाने पर जब राम ने प्रत्यंचा चढ़ाई तो समुद्र ने तत्काल उपस्थित होकर समुद्र पर पुल निर्माण का रास्ता बताया। क्रान्तिकारी तो सिर्फ अपने पूर्वजों के उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हैं।कृष्ण ने अपने अत्याचारी मामा का वध किया, हक की लड़ाई लड़ रहे पांड़वों के सारथी बने। इस प्रकार क्रान्तिकारियों ने न तो सत्याग्रह छोड़ा था और न ही अहिंसा का मार्ग। हाँ, वीरोचित धर्म का वरण कर कायरता का त्याग कर अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए, अपने हक के लिए प्राण लेने व देने में कोई संकोच नहीं किया।

No comments:

Post a Comment