Wednesday, October 27, 2010

गणेश शंकर विद्यार्थी

अरविन्द विद्रोही

हिन्दी की राष्टीय पत्रकारिता के जनक गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्तूबर,1890 को अपनी ननिहाल अतरसुइया-इलाहाबाद,उ0प्र0 में हुआ था।आपके पिता श्री जयनारायण ग्वालियर रियासत में शिक्षक थे।विद्यार्थी जी की प्रारम्भिक शिक्षा मुंगावली व विदिशा में हुई।मिडिल पास करने के पश्चात विद्यार्थी जी कानपुर काम करने के उद्देश्य से आ गये।उनके चाचा शिवव्रत नारायण ने पढ़ाई करने के लिए समझाया।चाचा के समझाने पर वे पुनः विदिशा लौटे और मैटिक की परीक्षा 1907 में व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण की।आगे की पढ़ाई कायस्थ पाठशाला इलाहाबाद में की।विदिशा में आपने ‘‘हमारी आत्मोत्सर्गता‘‘ नामक किताब लिखी।विद्यार्थी जी की साहित्यिक प्रतिभा को प्रेरणा इलाहाबाद में पण्डित सुन्दरलाल जी से मिली।

जीविकोपार्जन के लिए विद्यार्थी जी ने कानपुर के करेंसी आफिस में नौकरी की।04जून,1909 को आपका विवाह चंद्रप्रकाशवती से हुआ।1910 तक आपने वहीं नौकरी की।फिर स्कूल में अध्यापकी,हिन्दुस्तान इन्श्योरेन्स कम्पनी में काम करके,होम्योपैथी डाक्टर के रूप में जीविका चलाई।साथ ही साथ आपकी साहित्यिक अभिरूचि निखरती रही।आपकी रचनायें सरस्वती,कर्मयोगी,स्वराज्य,हितवार्ता में छपती रहीं।आपने ‘सरस्वती‘ में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में काम किया।हिन्दी में ‘शेखचिल्ली की कहानियां’ आपकी देन है।‘‘अभ्युदय‘‘ नामक पत्र जो कि इलाहाबाद से निकलता था,से भी विद्यार्थी जी जुड़े।गणेश शंकर विद्यार्थी ने अंततोगत्वा कानपुर लौटकर ‘‘प्रताप‘‘ अखबार की शुरूआत की।‘‘प्रताप‘‘ भारत की आजादी की लड़ाई का मुख-पत्र साबित हुआ।कानपुर का साहित्य समाज ‘‘प्रताप‘‘ से जुड़ गया।क्रान्तिकारी विचारों व भारत की स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया था-प्रताप।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से प्रेरित गणेश शंकर विद्यार्थी जंग-ए-आजादी के एक निष्ठावान सिपाही थे।महात्मा गाॅंधी उनके नेता और वे क्रान्तिकारियों के सहयोगी थे।सरदार भगत सिंह को ‘‘प्रताप‘‘ से विद्यार्थी जी ने ही जोड़ा था।विद्यार्थी जी ने राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा प्रताप में छापी,क्रान्तिकारियों के विचार व लेख प्रताप में निरन्तर छपते रहते।

गणेष शंकर विद्यार्थी का सपना उन्नत व समृद्ध आजाद भारत का था।अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए ‘‘प्रताप‘‘ को माध्यम बनाकर,निर्भीक अभिव्यक्ति के साथ-साथ विद्यार्थी जी ने काकोरी के अमर शहीद अशफ़ाक उल्ला खां व अनेको क्रान्तिकारियों की आर्थिक सहायता भी प्रदत्त की।कानपुर में मजदूरों का संगठन तैयार करने के साथ ही कवियों-लेखकों-पत्रकारों को एकजुट कर चुके विद्यार्थी जी को देशभक्ति की भावना को बलवती बनाने के अपराध में ‘‘प्रताप‘‘ पर अनवरत् छापे,पाबन्दी और बार-बार जमानत जब्त होने को झेलना पड़ा।अपने जीवन काल में पांच बार जेल गये विद्यार्थी जी ने उत्कृष्ट व निर्भीक पत्रकारिता ब्रितानिया हुकूमत के शासन में,जिन कष्टों को सहकर की होगी,उसकी कल्पना मात्र से ह्दय द्रवित हो जाता है तथा शीश इस महापुरूष के सम्मान में झुक जाता है।हिन्दी उत्थान व ग्राम्य जीवन में सुधार,महिलाओं की तरक्की,भिक्षावृत्ति-वेश्यावृत्ति की समाप्ति,देश-प्रेम की भावना का विकास,सामाजिक बुराईयों का खात्मा व सामाजिक एकता गणेश शंकर विद्यार्थी के स्वप्न थे।दुर्भाग्यवश सरदार भगत सि।ह-राजगुरू-सुखदेव के शहादत दिवस 23मार्च,1931 के तुरन्त बाद कानपुर में ब्रितानिया हुक्मरानों की साजिश के फलस्वरूप उपजे हिन्दू-मुस्लिम दंगे में 25मार्च,1931 को ही विद्यार्थी जी एक मुस्लिम परिवार की जान बचाने में अपनी जान गवां बैठे। मानवता का यह पुजारी पाशविक वक्तियों का शिकार हो गया।साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की अपील करते हुए बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी गणेश शंकर विद्यार्थी असमय मौत का शिकार हो गए।

महात्मा गांधी ने विद्यार्थी जी की मृत्यु पर कहा था,-"व्यर्थ नहीं जायेगा बलिदान,विद्यार्थी का खून।वह हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सीमेण्ट का कार्य करेगा।"

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्ड़ित जवाहर लाल नेहरू के अनुसार,-"यदि विद्यार्थी जी थोड़े दिनों तक और जीवित रहते तो आज भारत की दूसरी ही तस्वीर होती।"

गणेश शंकर विद्यार्थी जी की शहादत को यदि चिंतन-मनन व प्रचारित-प्रसारित किया जाये तो भारत दंगा मुक्त हो जायेगा।

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