अभी तो अधूरा संकल्प है ।
प्रेरणा मिलेगी ,
कैसे ? कब ? कहाँ ?
आदर्श बचे ,
कहाँ ?
ढूढ़ता हूँ भीड़ में,
शायद मिल जाये भीड़ में ।
और यहाँ भीड़ ,
समूह है भेड़ों का ।
चरवाहे हैं वही,
नेता,अपराधी व नौकरशाह ।
जो ये कहें,करते रहो,
चुपचाप जीते हुए मरते रहो ।
चुप रहो,शान्त रहो,
शान्ति ही जीवन है ।
पर क्या यह सत्य है ?
अभी तो अधूरा संकल्प है ।।।।
अच्छी रचना , बधाई !
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